Saturday, July 21, 2007

टाइम आउट / Time Out ...ये क्या बला है ? ( especially for Kids or who are kids @ heart :)

बाल कृष्ण
ये छवि देखते ही भा गयी --
खास करके खाट देखिये - भारत की याद आ गयी -
-बडा भैया, छोटे भाई से प्यार जता रहा है --
और ये मस्तराम, बाल गोपाल खा पी के शान से अपनी कुर्सी पर बैठे हैँ !
और ये किसी ने, ऐसी तसवीर ली है मानोँ बिल्ली रानी सचमुच डर गयीँ !
टाइम आउट / Time Out टाइम आउट / Time Out
...ये क्या बला है ?
अमेरीका के माता पिता, अपने बच्चोँ को उनकी शैतानीयोँ पे अनुशासित करने के लिये अब मारते नहीँ -जो मारते हैँ और उस बात का पता स्कूल मेँ या अधिकारीयोँ को पता चल जाये तो ऐसे कठोर पेरेन्टज़ कोजेल की हवा खानी पड जाये ये बात भी हो सकती है - जिसे चाइल्ड अब्यूज़ कहा जाता है और ये दँडितअपराध माना गया है -- इसका विकल्प है, शैतानी कर रहे बच्चे को "टाइम आउट " किया जाये --उसे घर के कमरे के एक कोने मेँ , पीठे फेर के चुपचाप, बैठे रहने की ताकीद दी जाती है -- जब तक बच्चा शाँत ना हो जाये, या समझ ना ले कि उसे, शैतानी करना मस्ती करना अब बँद करना होगा -तो उसी तरह का ये प्रयोग है -- बच्चे को गोँद लगी पट्टीयोँ से भीँत पे लटका रखा है -- बाल कृष्ण को माँ यशोदा ने ऐसे ही ऊखल से बाँधा दिया था --



Thursday, July 19, 2007

समन्वय सेतु " डॉ. पी. जयरमन जी व श्रीमती तुलसी जयरमन जी से परिचय - ( निर्देशक, भारतीय विद्या भवन, न्यूयॉर्क )

http://www.srijangatha.com/2007-08/july07/usakidharti%20se-lshah.htm
आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन से संबंधित स्थायी समिति मेँ अनेक नाम ऐसे हैँ जो पहले से ही जग विख्यात हैँ -- जैसे,

1) विदेश सचिव 1) डॉ. कर्ण सिंह 2 )सचिव, (राजभाषा विभाग) 2) डॉ. एल.एम. सिंघवी और कई ऐसे नाम भी हैँ जो लेखन जगत से हैँ -
जैसे 12) संयुक्त सचिव (संस्कृति विभाग), पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय 12 )श्री बालकवि बैरागी, मध्यप्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री, पूर्व संसद सदस्य और प्रसिद्ध लेखक 14) श्रीमती मृणाल पांडेय, मुख्य संपादक, हिंदुस्तान 15) श्रीमती चित्रा मुद्गल, साहित्यकार 16) डॉ. इंदिरा गोस्वामी, प्रसिद्ध असमी साहित्यकार 23) डॉ. अशोक चक्रधर, प्रसिद्ध कवि और जामिया मिलिया विश्वविद्यालय दिल्ली के सेवानिवृत्त प्राध्यापक

19) डॉ. जे वीरा राघवन, निदेशक, भारतीय विद्या भवन, दिल्ली 20) डॉ. पी. जयरमन, निदेशक, भारतीय विद्या भवन, न्यूयॉर्क 21) डॉ. बालशौरि रेड्डी, पूर्व संपादक, चंदामामा और प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार 26) श्री सैय्यद रहमतुल्ला साहेब, हिंदी विभागाध्यक्ष, मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नै 27) डा. राम संजीवैया, महासचिव, मैसूर हिंदी प्रचार समिति, मैसूर

अब क्रम १९ से २७ तक के नामोँ पर जरा दुबारा द्रष्टि डालेँ -
- तो आपको ज्ञात हो जायेगा कि ये सारे नाम हमारे दक्षिण भारत से सामने -आये -- महानुभाव हैँ !
यह कुछ ऐसे नाम हैँ , कुछ ऐसे महत्वपूर्ण समन्वयकारी हिन्दी प्रेमीयोँ के जिनके प्रयास से ,उतर दक्षिण के बीच निकटता आयी है
जिन्होने न सिर्फ अपने सर्जनात्मक जीवन से , भारतीय अस्मिता और सँस्कृति को निखारा है और इतना ही नहीँ बल्कि हिन्दी के प्रति वे सजग व समर्पित रहे.
उनके प्रयास इस बात से और भी सराहनीय हो जाते हैँ कि हिन्दी के प्रचलन के खिलाफ कभी कभार दक्षिण भारत से विरोध के स्वर भी सुनाई दिये हैँ. भारत की भाषा भारती " हिन्दी " -- " जनवाणी है " !
इस मेँ दो मत नहीँ ! -


परँतु दक्षिण का अपना साहित्य है और अति समृध्ध भाषाएँ भी हैँ ...जैसे, तमिळ, कन्नड, मलयालम और तेलेगु , जिन्हेँ हम कभी अनदेखा न करेँ तो ही अच्छा है .आलव्वार साहित्य की कृति " शिलपाधीकारम्`" जग प्रसिध्ध है
आलवार साहित्य की मूल चेतना के आधारभूत साहित्य, वेद, उपनिषद, गीता, महाभारत , विष्णुपुराण रहे हैँ ये उक्ति सुनिये, " भक्ति द्रविड उपजी, लाये रामानन्द" " आण्डाल्` रचित कृष्ण भक्ति की वैतरणी है - "तिरुपावै " ,
तिरिकुल्लर`, मणिमेखले,पुरुनानुर,अहनानुर्`,परिपाडल, पुरुप्पोरुल्`,
वेणवा मालै ( जो आठवीँ शती मे रचित तमिळ काव्यशास्त्र है )
सँगम साहित्य महाकवि सुब्रह्मण्यम् भारती का दीर्घ व यशस्वी साहित्य
पुरुनानूर ,..महर्षि अगत्स्य के शिष्य तोल्` कप्पियार जो तमिळ व्याकरण : " तोल्` कप्पियाम" के सर्जक हैँ
ये सभी , भारतीय सँस्कृति के स्तँभ हैँ -
द्रविड सँस्कृति और आर्य सँस्कृति के खेमोँ मेँ इन्हेँ विभाजित करना इन विद्वानोने नहीँ अपनाया बल्कि अपने साहित्य सृजन व साहित्य सेवा से भारत की दक्षिण व उतर के जनपदोँ की भाषा के बीच साँस्कृतिक एकता का सूत्रपात किया गया जो आज, २१ वीँ शताब्दि के आरँभ मेँ, भारतीय अस्मिता की रक्षा व सँबल मेँ, निताँत महत्वपूर्ण भूमिका बनकर नवीन सँरचना मेँ अपना अपना योगदान दे रहा है -
- तमिल भाषा अति प्राचीन है और सँस्कृत के शब्दोँ को ध्वनि रुप मेँ ग्रहण कर आत्मसात किये हुए है -
उदाहरण हैँ ये शब्द : भोगम्`, निधि, नगर, मँगल, नील वितान इत्यादी -- " उदारचरितानाँ तु वसुधैव कुटुबकम्`" के सार्वभौम तत्व की गँभीरता को तमिळ कवि की निम्न पँक्ति मेँ पाकर भारतीय मनीषा की एकात्म चेतना को ह्रदयँगम किया जा सकता है
" यादुम्` उउरे वावरुम्` केलिर्` " अर्थात्` "सारा विश्व मेरा आवास है और जड चेतन, सभी मेरे बँधु बाँधव हैँ " ये सारी माहिती आप को बतला दूँ मैँने .."भक्ति के आयाम " शोध -ग्रँथ "मेँ पढीँ --
जिसे डा. जयरामन जी ने मुझे उपहार स्वरुप भेजी है
यह उनका शोध ग्रँथ है - एक अमूल्य बृहत्` पुस्तिका है --
प्राचीन तमिळ समाज की एक देवी का नाम " कोट्रवै" है जो अम्बिका भवानी के साद्रश्य हैँ -- ये भी उल्लेख किया गया है -
- तो आइये, डा. जयरामन जी से परिचित होँ लेँ :
~ सँस्कृत, हिन्दी, एवँ तमिल साहित्य के विद्वान, भारतीय सँस्कृति तथा साहित्य की एकात्मता के प्रति समर्पित , १८ वर्ष तक अध्ययन कार्य मे रत जन सामान्य के हित के लिये, भारतीय रीज़र्व बेन्क के प्रबँध तँत्र मेँ १६ वर्ष तक कार्यरत , १९८० मेँ न्यू योर्क मेँ भारतीय भवन की स्थापना कर, विगत २२ वर्षोँ से अमेरिका मेँ भारतीय सँस्कृति , परम्परा, दर्शन, भाषा , साहित्य व कलाओँ के प्रचार = प्रसार मेँ वे सँलग्न रहे हैँ -- शैक्षणिक योग्यता " एम्.ए. ( सँस्कृत तथा हिन्दी )पीएचडी.डी.लिट्`प्रमुख प्रकाशन :

१) कवि सुब्रह्मण्यम्` भारती तथा सूर्यकाँत त्रिपाठी निराला के काव्य का तुल्नात्मक अध्ययन ( पीएचडी.का शोध प्रबँध )
२) कवि श्री भारती --

कवि सुब्रह्मण्यम्` भारती की चुनी हुई कविताओँ का हिन्दी रुपान्तर
३) पुरुनानूरु ( प्राचीन तमिल काव्य ) की कथायेँ
४) स्वर्गीय अखिलन के तमिल उपन्यास " चित्त्रुप्पावै" का हिन्दी रुपान्तर ' चित्रित प्रतिमा " के नाम से ( नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित )
५) तमिल - हिन्दी सवयम्` शिक्षक ( के. हि. निर्देशाला का प्रकाशन)
६)चिन्मय - काव्य

( योगी श्री चिन्मय की चुनी हुई अँग्रेजी कविताओँ का हिन्दी पध्य रुपान्तर )
७) जैन धर्म स्वामी विवेकानन्द तथा आधुनिक भारत के निर्माताओ पर अँग्रेजी मेँ सँपादित ग्रँथ
८) शिलम्बु ( तमिळ नाटक - प्राचीन तमिल काव्य "शिल्पाधीकारम्`'पर आधारित )
सम्मान : साहित्य वाचस्पति ( हिन्दी साहित्य सम्मेला -प्रयाग ) साहित्य भूषण ( उत्तर प्रदेश हिन्दी सँस्थान)
अन्य सेवायेँ : आकाशवाणी मद्रास व बँबई से वार्ताकार तथा दूरदर्शन बँबई मेँ " सँचयिता " के नाम से पाक्षिक पत्रिका - कार्यक्रमोँ के प्रस्तोता
[बँबई मेँ डा. जयरमन जी व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती तुलसी जी मेरे पापा स्वर्गीय पँडित नरेन्द्र शर्मा व मेरी अम्मा श्रीमती सुशीला नरेन्द्र शर्मा मे घर पर अतिथि बनकर पधारे थे
और वहीँ मैँ, उन दोनोँ से , कन्या- अवस्था मेँ मिली थी] -


श्रीमती तुलसी जयरमन जी :
( जन्म: २१ जनवरी १९३४, मद्रास, भारत)
सन्` १९८० मेँ अमेरीका आगमन. न्यूयोर्क मेँ रहीँ जहाँ १८ अगस्त १९८९ को उनका देहाँत हो गया
लेखन वप्रकाशन : सँस्कृत, हिन्दी, तमिल एवँ अँग्रेजी भाषा व साहित्य की श्रेष्ठ विदुषी थीँ२२ वर्ष तक आकाशवाणी मद्रास तथा बम्बई स्टेशनोँ नेँ कार्यक्रम अधिकारी के रुप मेँ कार्यरत रहीँ." गाँधी अँजलि" और " अपना देश अपना सँगीत " उनकी लोक सँगीत के क्षेत्र की साँस्कृतिक व कलात्मक प्रस्तुति , अत्यँत सराही गई -- सँगीत से सभर उनकी गीत रचना व गायन श्रोता समुदाय को भाव विभोर कर देने मेँ सक्षम रहे -- 'प्रेयर्स अण्टु किम्` " भक्तिपरक श्लोकोँ की पाली कृति थी जिसे स्वामी श्री चिन्मयानन्द जी के साथ मिलकर तैयार किया था तुलसी जी ने -- नेशनल बुक ट्रस्ट के लिये ८ सर्वोत्तम उपन्यासोँ का हिन्दी से तमिल मेँ अनुवाद किया. तमिल के सँत अरुणगिरिनाथर के तमिल काव्य " कन्दरनुभूति" को उन्होँने हिन्दी काव्य रुप मेँ " स्कन्दानुभूति " के नाम से प्रस्तुत किया. अँग्रेजी साहित्य : रामायण और नो गाँधी इन वन हँड्रेड वेज़ - बहुत लोकप्रिय रहीँ हैँ"मेरी चिँतन की धारा " उनके लेखोँ का सँग्रह है -स्व. श्रीमती तुलसी जयरमन जी तमिल और हिन्दी के बीच एक मजबूत सेतु रुप थीँ - अनेक विश्व हिन्दी सम्मेलन व विश्व रामायण सम्मेलन जैसे अँतराष्ट्रीय अधिवेशनोँमेँ भाग लेतीँ रहीँ ~~हैद्राबाग आकाशवाणी स्टेशन से त्यागपत्र देकर अपने पति डा. जयरमन जी के साथ अमेरीका आ गईँ जहाँ डा. साहब ने भारतीय विध्या भवन की शाखा को न्यू योर्क मेँ स्थापित कर भारतीय साँस्कृतिक गतिविधियोँ की नीँव डाली जो अमेरीका के विभिन्न शहेरोँ मेँ भारतीय सँस्कृति, दर्शन, धर्म, सँगीत आदि का प्रचार व प्रसार करने मेँ मुख्य भूमिका अदा करने मेँ रत है और तुलसी जी का इन सारी गतिविधियोँ मेँ अनन्य हिस्सा रहा है.वे एक कुशल अध्यापिका व श्रेष्ठ वक्ता भी रहीँ . सँगीत व कविता उनके दो सशक्त पक्ष थे. कुँवर चँद्र प्रकाश सिँह के शब्दोँ मेँ " वे आलवारोँ और कम्बन के तामिलनाडु की अँतरात्मा थीँ और दक्षिण भारत के हिन्दी काव्य की "कोकिला" थीँ "
मरणोपराँत : "हिन्दी का चँदन " कविता सँग्रह प्रकाशित हुआ है. प्रस्तुत है इस सँग्रह की प्रथम कविता :

"हिन्दी का चँदन "
मैँने हिन्दी का चँदन धरा है भाल पर

दूर से देखो मुझेभाल पर दमकते इस तिलक मेँ शोला भरा है !

साहस मत करो ,पास आने का !
उसकी गरिमा को तोलने का-हाँ, यह चँदन नहीँ है शीतल
प्रखर फासफरस -सा है विस्फोताकौर अति उज्ज्वलछूओगे ,
तो जल जाओगेइसे मिटाने का दँभ मत करोयः
ऐसे भाल पर शोभित चन्दन है

जिसकी आभा मेँ कन्याकुमारी की कमनीयता का,यौवन है, तप पावन है

अटल द्राविड की " भिन्नी " पर अँकित बिन्दी है यह
द्राविड का सुहाग अचल है इसका मत उपहास करो

इसमें सौरभ का मार्दव नही है हुँकार भरकर दहाडता शार्दूल है

येमैँने हिन्दी के मुक्तामल से,निज उस को सजाया है, सँवरा है
पानी कितना है इसमेँ,यह परखनेवाले, तुम नहीँ हो !

मोल मुक्ता का वह क्या जानेजो गोताखोर नही है ?ठहरो! सुनो, मेरी बात

-मैँने लिया है इस मुक्ता को,उस आत्मा की धडकन के सँग ही

,जहाँ मेरी तमिळ जननी अँत: सलिला है, कलकण्ठी है

इस मुक्ता को तोलने का मत करो अभियान

यह चढती नहीँ नही तराजू पर इसे उसी कण्ठ पर पाओगेजिसमेँ भारत माँ की विजय के गान को,प्रतिपल मुखरित पाओगे

-वह मेरी तूलिका हिन्दी की है जिसे चलाता तमिल का चेतन कर है

इसे छीनने का मत करो अभियान प्राणोँ की शक्ति समग्र सहेज कर मैँने इसे अपनाया है इसमेँ घुल गया है, मेरा आत्म सम्मान

यह तुम्हारी तलवार की वार से, गिरेगी कहाँ ?

चढकर सूली के मँच पर भी,
अरुनामय ह्रदय मेरा -अँकित करेगा हिन्दी के अक्षर

हाँ - अ -क्षर हिन्दी के अक्षर

हिन्दी को मैँने अपनी रग रग मेँ पाया है

-जरा रहो सावधान !

हिन्दी के ही सँग मेरे उगय -अस्त की,

तटिनी बहती है - अम्लान !
हिंदी मेरी जाह्नवी धारा है -ऋतँभरा है !


श्री तुलसी जी की पुण्य -स्मृति मेँ - साभार कविता सँग्रह " प्रवासिनी के बोल " अमेरीका की हिन्दी कवियत्रियोँ की सँचित कवितावली से साभार --

लेखिका : लावण्या
[ मेरा एक कोना - एक भारत, अमेरीका के मध्य मेँ ]

विश्व हिन्दी सम्मेलन से : ~~~~

युवा कवि रिपुदमन प्रचौरी, मैँ ( लावण्या ) तथा श्री अनुप भार्गव जी
http://anoopkeepasand.blogspot.com/
http://anoopbhargava.blogspot.com/
http://www.anubhuti-hindi.org/kavyacharcha/as/unicode.htm

हमारे कवि शिरोमणि श्री राकेश खँडेलवाल जी से रुबरु मुलाकात हुई - वो भी सँयुक्त राष्ट्र सँघ के मुख्य द्वार पर उनकी पत्नी के साथ, जो केसरी रंग के परिधान मेँ हैँ --


ये महिला बडी विदुषी हैँ -- रशियन,सँस्कृत, मराठी, हिन्दी, अँग्रेज़ी,बँगला, गुजराती इत्यादी भाषाएँ जानतीँ हैँइस तरह के कयी सारे,लोग, स्त्रियाँ एवँ पुरुष, दोनोँ की उपस्थिति से सम्मेलन शोभायमान था --( in purple dress is that, lady )


जम्मू/कश्मीर के महाराजा श्री कर्ण सिँह जी उनकी पत्नी के साथ बैठे हुये
उनहीँ के द्वारा तैयार की गई एक बहुत बडी पुस्तक 'नटराज ' जो मैँने खरीदी थी उसपे हस्ताक्षर करते हुए -( मेरे साथ मेरे पति दीपक भी खडे हैँ) -


और आप लोगोँ ने जो सुझाव दिया है कि अन्य चित्रोँ के साथ नाम भी दे दूँ -- तो चित्र मेँ जितने व्यक्ति हैँ उन सारे लोगोँ के नाम मुझे ज्ञात नहीँ --

Tuesday, July 17, 2007

न्यूयार्क, सँयुक्त राज्य अमेरीका से, (Gulzar saab )-गुलजार साहब



महिला कवियत्रियोँ का समुदाय - मँच पर


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८वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन -- कुछ झलकियाँ --





सँयुक्त राष्ट्र सँघ के महासचिव श्रीयुत्` बान की मून्` ने कुछ हिन्दी वाक्योँ को,जब अपने लहजे से बोल कर सुनाया तब, सभागार मेँ बैठे,
दूर देशोँ से आये श्रोताओँ के समक्ष अपने हिन्दी के प्रति सजग प्रेम का उदाहरण देते हुए सभी का मन मोह लिया था -
-अँतराष्ट्रीय आँठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन बहुत से अवरोध,
प्रति अवरोधोँ के साथ शुरु हुआ
पर सँयुक्त राष्ट्र सँघ के मुख्य प्रवेश द्वार पर, लहरा रही
हरी,नीली, पीली , लाल, सुफेद व धानी साडीयोँ की आभा ने
प्राँगण को भारतीय रुप रँग मेँ डूबो कर ,
न्यू योर्क के इस भव्य स्मारक के साथ,
हम भारतीय,
हिन्दी भाषा बोलने वालोँ के मन मेँ,
एक अनोखा अपनापन निर्मित करते हुए,
एक नई उर्जा , एक नयी उमँग भर दी थी.
बाहर एक, बँदूक की नली को मोड कर,
महात्मा गाँधी के "अहिँसा " के सँदेश को प्रतपादित करती,
प्रतिमा को देखकर, फिर ये विचार आ रहा था कि, विश्व मेँ अहिँसा का प्रचार व प्रसार हो तथा शाँति का सँदेश फैल कर २१ वीँ सदी के समग्र मानव जाति के लिये, एक "शाश्वत सर्वोदय " का सँदेश लाये और वह 'अमर सँदेश ' हमारी "हिंदी भाषा " मेँ ही हो !
आखिरकार, अपनी तस्वीर दीखलाकर, या प्रवासी अतिथि, पासपोर्ट दीखला कर, अपने निजी सामान का निरिक्षण करवा कर, सभागार मेँ दाखिल हुए
-व स्थान ग्रहण किया --
- भारत के प्रधान मँत्री मनमोहन जी ने
द्रश्य -श्रव्य माध्यम द्वारा
अपना सँदेश, श्रोताओँ तक पहुँचाया -
विदेश मेँ बसे भारतीय साहित्य को भी शैक्षणिक पाठ्य क्रम मेँ मान्यता दीलवाने की घोषणा का, सहर्ष स्वागत किया गया.
मेरे युवा कवि साथीयोँ का,
आँखोँ देखा विवरण भी यहाँ के २ लिन्कोँ पर अवश्य पढेँ -
- रोचक लगेगा -
-मैँने भी मेरी कविता सुनायी - गुलज़ार साहब के सामने! :-)
अन्य महानुभावोँ के सम्मुख !!
जिसे ऊँचे स्वर मेँ पढते हुए,
सुखद अनुभूति हुई -
- "कोटि कोटि कँठोँ से गूँजे, जय माँ! जय जय भारती"
के घोष से,
भारत का गौरव "भाषा भारती , माँ भारती" के प्रति मेरा प्रणाम, गणमान्य अतिथि समुदाय तक पहुँचा जिसकी मुझे खुशी है-
लावण्या

इसे भी आप,अवश्य देखेँ -- http://www.abhivyakti-hindi.org/vhs2008/vhs3.htm

अवश्य देखेँ -- http://www.vishwahindi.com/newsletter/14_july_newsletter.pdf

ब्लोग जगत के सभी साथीयोँ को नमस्कार ! --- ८ वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन

न्यू जर्सी रेडियो कार्यक्रम की उदघोशिका श्रीमती जासमींन जयवंत ,उस्ताद नासिर अहमद साहब , मैं [ लावन्या] श्रीमती सजनी भार्गव के साथ
ब्लोग जगत के सभी साथीयोँ को नमस्कार !मैँ हाल ही मे लौटी हूँ -- अष्टम - ८ वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन समाप्त हुआ . मेरा पिछला बयान , उस्ताद सज्जाद साहब के सदाबहार नगमोँ एवं उनकी कला पर था और इत्तिफाक देखिये, तीसरी और अँतिम शाम, उनके बेटे जो स्वयँ सुप्रसिध्ध मेन्डोलीन वादक हैँ उस्ताद नासिर अहमद साहब , उनसे मुलाकात हो गयी - ( --वे सुफेद कुर्ता पाजामा पहने हुए हैँ )--
गज़ल गायक श्री पँकज उधास जी के बगल मेँ नासिर भाई बैठे हुए थे, इतनी जिँदा सँगत दे रहे थे कि बार बार घ्यान उनकी ओर जाता रहा - प्रोग्राम मेँ उन्हे खूब तालियाँ भी मिलीँ और जब पँकज भाई ने उनका परिचय दिया तो एक सुखद आश्चर्य हुआ ! अरे! अभी तो इनके पिताजी का जिक्र किया था और मिलना भी हो गया --
तो देखिये --उस्ताद नासिर साहब को --

Sunday, July 8, 2007

सँगीत निर्देशक: सज्जाद हुसैन साहब के सुहाने गीत सुनिये

कलाम लिखा है कमर जलालाबादी साहब ने
स्वर दीये हैँ : मन्ना डे, सादत खाँ , मोहम्मद रफी साहब ने
इस गीत की बँदीश, गीत सँयोजन बेहद अनोखा है
.सँगीत शुरु होता है.

..रुकता है और मानो दरिया की मौज,
ज्वार -भाटा मेँ,
आगे पीछे हिलोर लेती हो इस तरह,
फिर बोल उभरते हैँ.

गायकी इतनी उम्दा है मानो गायक इबादत कर रहेँ होँ -
- सुनिये ..


फिल्म: हलचल
कलाकार: लता मँगेशकर
सँगीत निर्देशक: सज्जाद हुसैन
"ऐय दिलरुबा ...नज़रेँ मिला."
.. जाँ निसार अखतर सा'ब के शबनमी अल्फाज़
" भूल जा एय दिल, मुहब्बत का फ़साना"
bhool jaa ae dil muhabbat ka fasaana
Lata Mangeshkar [+]
Sajjad Hussain
लफ्ज़ दिये हैँ इस बेहतरीन गाने को शायर शम्स अज़ीमाबादी सा'ब ने
Khel
" ये हवा ये रात ये चाँदनी .."
तलत साहब को १७ बार गाना पडा था तब कहीँ जाकर गाना फाइनल हुआ था सज्जाद हुसैन साहब, कला के पूजारी थे. जब तक उनके जहन के मुताबिक गाना न सुनायी दे, वे उसे जनता के सामने कैसे ले आने को कैसे राज़ी होते? कला के सूरमा थे सज्जाद साहब. मौसीकी के उस्ताद और सँगीत की दीवानगी इस हद्द तक कि अपने काम के जुनून के सामने किसी को ठहरने न देते थे वे -- मेन्डोलीन का बाजा उनके हाथ मे आ जाये तब उसमे से मानो फरिश्तोँ की आवाज़े , बाहर आने लगतीँ थीँ.जैसे रविशँकर जी का सितार दुनिया मेँ अलग जादू बिखरता है ठीक सज्जाद साहब का मेन्डोलीन वाध्य भी मानो ज़िँदा हो जाता था !
सँगदील का यही गीत -
- मदन मोहन जी के एक गीत मेँ भी दीखलायी दिया , फिल्म थी "आखिरी दाव" गीत के बोल हैँ : "तुझे क्या सुनाऊँ मैँ दिलरुबा "
जिसको सुनकर सज्जाद साहब ने मदन मोहन जी से पूछा था, कि "तुमने मेरा गाना , मेरी धुन को क्योँ चुराया ?
सँगीत निर्देशकोँ के प्र -पितामह श्री अनिल बिस्वास जी का कहना था कि, "सज्जाद ही एक ऐसा सँगीत देनेवाला है हिन्दी फिल्मोँ मेँ जो बेजोड है - उसका कोयी सानी नहीँ -फिर आगे कहा कि "हम सभी कहीँ ना कहीँ से या किसी ना किसी बात से प्ररणा लेते हैँ तर्ज़ बनाने के लिये पर, सज्जाद का सँगीत कहीँ से नहीँ आया - सिवाय खुद सज्जाद के अपने आपे से !"
सज्जाद साहब के सँगीत का सफर शुरु हुआ था फिल्म दोस्त से जिस के लिये सज्जाद सा'ब मियाँ अली बख्श साहब के सहायक सँगीत निर्देशक की हैसियत से काम कर रहे थे. गायिका बेगम नूरजहाँ का गीत था दोस्त के लिये,
" बदनाम मुहब्बत कौन करे, दिल को रुसवा कौन करे " जो सँगीत के प्रेमी श्रोता, आज भी सुन के, याद करके आँहेँ भरते हैँ
जुलाई २१ ७९ साल की अपनी अनोखी सँगीत यात्रा खतम कर सज्जाद साहब सदा के लिये इस दुनिया को खामोश छोड कर उस पार, चले गये. पर उनके नगमोँ के जलवे आज भी बेशकिमती हीरोँ से बेसाखता दमक रहे हैँ !











Saturday, July 7, 2007

...ज़िँदगी ख्वाब है..चेप्टर -- - १० -- कथा की - अँतिम कडी (एक रात शालू का फोन आया ..........)

घर: रोहित और शालिनी का:~~
एक रात शालू का फोन आया ................
" राजश्री जाग रही थी हालाँकि रात के १२.३० बज रहे थे.
वो सोना चाहती थी परँतु, अपना काम निपटाते,
उसे इतनी देरी हो गई थी
- फोन की घँटी ने रात मे सन्नाटे को चीर कर
बजना शुरु किया तो
राजश्री, हडबडाकर, फोन की ओर लपकी..
."हेल्लो, कौन ? " उसने प्रश्न किया -
सामने से शालू की धीमी आवाज़ ने उसे चौँका दिया
" भाभी,...एक बुरे समाचार दे रही हूँ !
हमने अपने रोहित को खो दिया ! "
"क्या मतलब तुम्हारा ? "
राजश्री ने लगभग गभराहट मिश्रित,
भय के आवेग को रोकते हुअ, चिल्लाते हुए पूछा,
" we lost him bhabhi ..about an hour ago "
" राजश्री नो फिर रुँआसे स्वर से पूछा ,
"शालू, तुम क्या कह रही हो बेटे ? "
" भाभी, रोहित हमारे बीच अब नही रहे !
एकाध घँटे पहले ...अँतिम साँस ली..! "
अब शालिनी भी सुबक रही थी जिस की आवाज़ से,
राजश्री के दीमाग ने वो बात समझी,
जो उसका मन, अब भी मानने से इन्कार कर रहा था
और जब ये बात वो समझी तो वो भी रोने लगी --
उसे सूझा नही वो शालिनी से क्या कहे ?
नहीँ ..नहीं....
रोहित का मुस्कुराता चेहारा,
आँखोँ के सामने था,
रोहीत की आवाज़, "भाभी जी, कैसी हैँ आप ? "
उसके खास अँदाज़ मे कहने की आदत,
बार बार राजश्री के जहन मे घूम रहे थे.
अब तो राजश्री की रुलाई छूट पडी .
.ऐसे समाचार जब भी आते हैँ,
इन्सान बिलकुल हतप्रभ: हो जाता है.
अगर आप के तालुकात्त ,
किसी व्यक्ति से घनिष्ट होँ, मधुर होँ
तब सीधे ह्रदय पर चोट हो जाती है.
यही तो है, मनुजता का अहसास !
हम दुनिया मे रहते हैँ पर, सारे सँबँध,
रिश्तोँ पर कायम हैँ
जो सीधा दिल से जुडे रहते हैँ
भावनाएँ ना होँ
तो क्या इन्सान , इन्सान रह पायेगा ?
अगर हमारा ह्रदय द्रवित न हो,
किसी स्वजन के वियोग से,
तो क्या हममे मानवता बची रहेगी ?
नहीँ ना !
ऐसा कौन होगा जो
अपने मित्र या परिवार के सदस्य के बिछोह मे रोया न हो ?
ये आँसू हमारे मनुष्वत्त्व की असली पहचान है !
कभी कभार, अन्य भावनाएँ, मनुज, छिपा भी लेता है.
किसी पर प्रेम या आसक्ति की भावनाएँ दबी रह सकतीँ हैँ -
- वर्षोँ तक !
पाप या कुकर्म की प्रेरणा ,
या ईर्ष्या, जलन, डाह की झहीरीली फुँकार,
दबी, सुप्त नागोँ के फण सी, या, कटुता नागफणी के दँश सी,
भयानक होते हुए भी, द्रष्टिगोचर नही हो पातीँ.
आँखोँ से मनुष्य देखता है इस माया रुपी विश्व को !
फिर भी,
इसी नयन के मूँदते,
ये सँसार स्वप्न मेँ परिणीत हो जाता है
और इन्सान सोचता है ..
.......: सच ! ये ज़िँदगी ..ख्वाब ही तो है ! .
.." मैँ कौन हूँ ? एक शरीर ?
भौतिक सुखोँ की लिप्सा मे प्रयत्नशील,
जीवन निर्वाह मेँ कार्यरत, एक जीव ?
तो जैवी कौन ?
आत्मा का सत्य क्या है ?
क्योँ है आत्मा ?
किसने देखा है परमात्मा को ?
आकाश के उपर है स्वर्ग ?
जन्नत ?
जिसके ख्वाब, हर इन्सान
आँखे खोलके और बँद करके देखता रहता है?
सूफी सँतोँ ने, दरवेशोँ ने, मौला के लिये,
न जाने कितनी बार, पुकार कीँ,.......
साधु सँतोँने, योगीयोँने,
ना जाने कितने तरीकोँ से,
उस एक "सत्य " को खोजा.
..हर इन्सान की यात्रा
इसी तरह, चलती रही है
जिस के ज़ोर पर, ये फानी दुनिया कायम है !
ये तो दार्शनिकता की बातेँ हैँ
जो हम अपने आपको साँत्वना देने के लिये गढते हैँ.
सत्य फिर भी हमेशा सत्य रहता है.
अपने आप मेँ पूर्ण !
पूर्णता से निकला, पूर्ण को जनम देता
फिर भी जो रहता है, पूर्ण का पूर्ण !
रहस्यपूर्ण !
जिस पर से पर्दा, यदा कदा हटा है.
बिरले व्यक्तियोँ की तपस्या से
,मसीहा के आगमन से,उनके अनुभव से ,
वे हमे राह बता कर चले गये हैँपर,
आम ,साधारण इन्सान कि अक्ल मे,
ये सारी बात कहाँ आतीँ हैँ ?
आज राजश्री और शालिनी बस २ दुखी ह्रदय से भरे इन्सान थे !
बस ! इससे अधिक कुछ नही!
"भाभी, आप के लिये इन्तज़ाम हो रहा है.
.आप और प्रकाश भाई आ जाइये.
.रोहित से मिलने नही आओगे?"
राजश्री को लगा कि वह, सात समुद्रोँ की दूरी पाटकर,
नन्ही सी कन्या को कलेजे से लगा ले ! काश !
वे लोग पास मे होते.....
आमने -सामने -
- कितनी सँयत थी शालिनी इस वक्त भी !
" हाँ बेटे हम लोग आ रहे हैँ .
.तुम से मिलने..मेरी बहादुर बिटिया है तू !"
राजश्री ने कहा और फिर दोनोँ रोहित की बातेँ, याद करने लगे -
प्रकाश और राजश्री रोहित के घर गये - पर वहाँ रोहित नहीँ था. उसकी तस्वीर थी फूलोँ के सुगँधित हार से ढकी हुई-मुस्कुराता हुआ चेहरा -वही हिम्मती अँदाज़, स्वप्न साकार करने की क्षमता लिये एक आधुनिक दीर्घद्रष्टा की छवि मे जा कर , उनका मित्र छिप गया था और मानोँ उनसे कह रहा था, " आप लोग नही आये ना मुझसे मिलने ? अब आये हो जब मैँ नहीँ रहा !'तब राजश्री और प्रकाश को शालू ने बतलाया कि, दीदी प्रियँका ने रोहित का चेक -अप किया था - पूरे शरीर का ! रोहित ने कहा कि उसे सर दर्द रहने लगा था - हो सकता है, अत्याधिक काम की व्यस्तता के कारण ही ये हो! पर, दीदी डाक्टर जो थीँ ! ब्रैन स्केन करके ही मानीँ और पता चला कि उनके प्यारे छोटे भाई को ब्रेन का कन्सर था जो काफी बढ गया था. बातोँ बातोँ मे, शालिनी तक भी ये राज़ पहुँचा तो शालिनी ने जिद्द पकड ली कि वो रोहित की सेवा -सुष्रुषा से ज्यादह रोहित का सान्निध्य चाहती है और शादी क्रना चाहती है ! रोहित ने उसे बहुत समझाया पर शालू ने एक ना मानी -- इसी के फलस्वरुप दोनोँ की शादी हुई थी जिस के कारण झवर भाईसा नाराज़ हुए थे चूँकि रोहित, प्रियँका दीदी और शालिनी के अलावा किसी को ये बात का पता उन तीनोँ ने लगने न दिया था. उसके बाद के ३ वर्ष स्वप्न से बीते.अँतिम दिनोँ मेँ रोहित ने, बँबई के,एक अस्पताल का जीर्णोध्धार करवाने के लिये १० करोड रुपये की धनराशि खर्च की थी -उसके वकील रात दिन रोहित की इन अँतिम इच्छा रुपी योजनाओँ को कार्यान्वित करने मे व्यस्त थे.
रोहित ने, लँदन और अमेरीका के, म्युजियमोँ को दान किया. ब्रज के १० हज़ार बच्चोँ के लिये,दोपहर के भोजन के लिये धनराशि जमा करवायी और शालू ने ही बतलाया कि अँतिम समय मे उस के विचार तीव्रता से आ, जा रहे थे
- कभी वह बोलता," गाँधी जी "
- फिर बेहोश हो जाता -
फिर कहता," मेरी स्कूल "
- फिर होश खो देता , फिर शालू से कहता,
"तुम वचन दो कि मेरी हर योजना को बँद नही होने दोगी
-उन्हे पूरा करोगी !"
शालू ने कहा, "मैँ वचन देती हूँ , मेरे रोहित ! -"
और आखिर शालू ने अपना हाथ छुडा लिया था
जिसे रोहित ने कस कर पकड रखा था
- शालू अस्पताल के पलँग के पैताने खडी हो
तो रोहित ने उसकी ओर देखते हुए, प्राण त्याग दिये !
नैन दीप की ज्योति, महा ज्योति मे विलीन हो गयी
-उसकी भव्य अँतिम यात्रा मे कैसे फूल रहेँगे कितने बडे, ये भी सारा रोहित ने तै किया था , वो भी शालिनी नेपूरा किया. और कई सारी घर मे खिँची चित्र विथी देखते हुए, आज भी प्रकाश और राजश्री, मानने के लिये तैयार नही कि उनका हँसमुख, बहादुर और स्फूर्तिला दोस्त, रोहित सशरीर उनके साथ नही रहा
-क्या यही है ज़िँदगी ?थोडी हँसी, थोडी खुशी, कुछ नगमे, कुछ वादे .....
....और......और ...आप बत्तायेँ ?
क्या है ज़िँदगी ? .
....मैँ तो यही कहूँगी, कि,...
.....ज़िँदगी ........ख्वाब है !....
...उसके अलावा, और कुछ नही........
(- ये कथा मेरे परम मित्र को समर्पित है जिसकी याद आज भी आँसू से आँखेँ भिगो देतीँ हैँ ,,अगर आत्मा है, तो मेरे मित्र की आत्मा को चिर शाँति मिले परमात्मा का सामीप्य मिले यही मेरी प्रार्थना है .
..ईश्वर, स्वीकारियेगा !
इति -
- लावण्या



...ज़िँदगी ख्वाब है..चेप्टर -- ९ * सपनों का संसार *

*सपनोँ का सन्सार*
अंतर मनसे उपजी मधुरारागिनीयों सा,
होता है दम्पतियोँ का सुभग सँसार ,
परस्पर, प्रीत,सदा सत्कार, होसाकार,
कुल वैभव से सिँचित, सुसँस्कार !
तब होता नहीँ, दूषित जीवन का,
कोई भी, लघु - गुरु, व्यवहार...
नहीँ उठती दारुण व्यथा हृदयमें,
बँधते हैँ प्राणोँ से तब प्राण !
कौन देता नाम शिशु को ?
कौन भरता सौरभ भँडार ?
कौन सीखलाता रीत जगत की ?
कौन पढाता, दुर्गम ये पाठ ?
माता और, पिता दोनोँ हैँ,
एक यान के दो आधार,
जिससे चलता रहता है,
जीवन का ये कारोबार !
सभी व्यवस्था पूर्ण रही तो,
स्वर्ग ना होगा क्या सँसार ?
ये धरती है इँसानोँ की,
नहीँ दिव्य, सारे उपचार!
एक दिया,सौ दीप जलाये,
प्रण लो, करो,आज,पुकार!
बदलेँगेँ हम, बदलेगा जग,
नहीँ रहेँगे, हम लाचार!
कोरी बातोँ से नहीँ सजेगा,
ये अपने सपनोँका सँसार!
तो चलिये ...
फिर एक बार, रोहित दवे और मिसिज़ शालिनी दवे की दुनिया की ओर चलेँ..

रोहित ने शालिनी से देर -सबेर शादी की, पर मानोँ , दुनिया के सारे आनँद एक साथ अपनी नन्ही सी, सिमटी -सी, उनकी प्यार के दायरे मेँ उलझी , उलझी -सी दुनिया मेँ समेटने की होड लगा दी थी उसने -- सारी दुनिया की खुशी एक तरफ रह गयी और रोहित , शालिनी की खुशीयोँ का पलडा,सब से भारी हो चला था..
..
प्रकाश और राजश्री, ई -मेल से, अपने दोस्त, रोहित के, सतत, सँपर्क मेँ, रहने लगे थे.शालिनी भी खुश रहने लगी थी. वे दोनोँ डावोस शहर, स्वीटज़रलैन्ड "गणमान्य" , कोदोबारा ऐवोर्ड मिला था ,उसे लेने, साथ साथ गये थे और वहाँ आल्प्स पर्वत शृँखला के कईदर्शनीय स्थलोँ की सैर कर आये. उनके ई -पत्र मेँ भी, सुखद यात्रा विवरण उनकी खुशीयों की तरहछलका बिखरा,झलक रहा था ! राजश्री सबसे ज्यादह प्रसन्न थी !
बार बार कहती ," देखा !मैँ न कहती थी कि शालू ही रोहित के लिये बिलकुल सही है ! पर अफसोस ! हमारी बात , मानता ही कौन है ? "
तो प्रकाश हँस कर कह देता, " मैँ ने सारी बातेँ मानीँ हैँ आपकी, महारानी साहिबा ! पर हम तो अब भी, आपकी कृपा के पात्र नहीँ बने ! "
"अरे, जाओ जाओ ...आप जैसा झूठोँ का सरदार और कोयी नहीँ ! " कहकर राजश्री भी मुस्कुराने लगती -
-फिर, रोहित ने फोन किया और बहुत आग्रह करके कहा कि, " आप दोनोँ यहाँ हमारे मेहमान बन कर आइये - "
रोहित ने अपने वृध्ध माता, पिता, दीदी डा. प्रियँका, का पूरा परिवार, सभी को अपने नये घर के उद्`घाटन के अवसर पर न्योता भेजा था और सभी की हवाई यात्रा के टीकट भी साथ भेजे थे ..सो उनके परिवार के इस खुशी के मौके पर, रोहित, राजश्री और परिवार को भी स -परिवार आमँत्रित कर रहा था -
- प्रकाशने आभार प्रकट करते हुए कहा, " इस बार नहीँ आ पायेँगे हम लोग ..पर हमारा आना उधार रहा ! जल्दी ही आयेँगे और तुमसे मिलेँगे भी -- "
उसके बाद कुछ माह बीते ही नहीँ थे कि फिर रोहित का फोन आ गया - कहने लगा," मैँ और शालिनी, अटलान्टिक महासागर मेँ, वैभवशाली सुविधा से सजी [Cruise ]- "क्रूज़ "की यात्रा पे जाने का प्लान बना रहे हैँ -- आप लोग भी आ जाइये हमारे साथ - -- इन्फोसीस के नारायण मूर्ति जी भी साथ होँगेँ -- हम साथ साथ समय बीतायेँगे -- बडा मज़ा आयेगा -- आ जाओ -- "
इस बार भी प्रकाश को मनाही करनी पडी -- अरे ! रोहित उदारह्रदय से बुला रहा था पर ऐसे दोस्त के पैसे से घूमने जाना क्या ठीक होता है ? नहीँ जी ..
उसने राजश्री से कहा, " हम भी जायेँगे ..पर इस साल मुझे काम बहुत है, अभी तो छुट्टी नहीँ ले सकुँगा -- "
फिर सुना शालिनी और रोहित पूरे १ महीने तक क्रूज़ लेकर, बहामा, कैरेबीयन, वर्जीन आइलैन्ड, वेस्ट इन्डीज़ के छोटे छोटे द्वीपोँ की सैर करते रहे ~
~मानोँ पीछले कुछ सालोँ के कडुवे अनुभवो को , मन से निकालने का भरसक प्रयास जारी था
-- शालिनी के मृदु व्यवहार से रोहित रीना के साथ गुजारे ३ वर्षोँ के कटु अनुभव मानोँ भूलने की प्रक्रिया मेँ व्यस्त था .
उनकी खुशी और जीवने के बारे मेँ सुनकर प्रकाश ,
राजश्री भी बहोत खुश रहने लगे थे -
- झवर भाई सा , वसुँधरा दीदी इत्यादी से भी, हर हफ्ते, उनकी बातेँ होने लगीँ थीँ, सभी यही कहते,चलो, देर आये दुरुस्त आये ! खुश रहेँ दोनोँ , और क्या !
2 साल बाद:
एक रात शालू का फोन आया ................
क्रमश: ~~