Friday, August 31, 2007

विश्व में दिन रात हलचल होती रहतीं हैं....इसके लिंक देखिये




ये चित्र सोनार पेनल का है जिससे ऊर्जा प्राप्ति हो रही है

विश्व में दिन रात हलचल होती रहती हैं.

हरेक क्षण यहाँ कोई न कोई , नई घटना , या कोई हादसा होता रहता है ..इसके लिंक देखिये

http://www.globalincidentmap.com/home.php

और जहाँ निशान बना हुआ है वहाँ क्लिक करिये तो समाचार विस्तार से देखे जा सकते हैं

२ कलाकार २ गीत / आप बताएं की आप को इन २ कलाकारों के कौन से गीत प्रिय हैं ?




मधुबाला और राज कपूर ये दो कलाकार अपनी हसीं शख्शियत के लिए जग प्रसिध्ध हो गए हैं

मुझे ये दो गीत याद आते हैं जब जब मैं इन दो कलाकारों को याद करती हूं तब ..

१ ) आइये महेरबान ..जिस गीत में मधु की मस्ती खिली हुई है... अपने शबाब पर है ..

और

राज कपूर जीं का ये गीत "जपु जपु जपु जपु जपु जपु रे ...जप रे प्रीत की माला ..फ़िल्म शारदा से

आप बताएं की आप को इन २ कलाकारों के कौन से गीत प्रिय हैं ?

Thursday, August 30, 2007

फटा ट्वीड का कोट और कलिका गुलाब की





तुम्हेँ याद है क्या उस दिन की
नए कोट के बटन होल मेँ,
हँसकर प्रिये, लगा दी थी जब
वह गुलाब की लाल कली ?

फिर कुछ शरमा कर, साहस कर,
बोली थीँ तुम, " इसको योँ ही
खेल समझ कर फेँक न देना,
है यह प्रेम -भेँट पहली ! "

कुसुम कली वह कब की सूखी,
फटा ट्वीड का नया कोट भी,
किन्तु बसी है सुरभि ह्रदय मेँ,
जो उस कलिका से निकली !


( फरवरी १९३७, रचना प्रवासी के गीत काव्य सँग्रह से : नरेन्द्र शर्मा )

Wednesday, August 29, 2007

अँतिम भाग - ४ डा. अमरनाथ दुबे का आलेख -



ग्रामीण सँस्कृति का चित्रण राष्ट्रीय धारा का अँग माना जाता है. गोधूली मे घर लौटते ढोरोँ का यह चित्र कितना सहज, पर कितना मार्मिक है -- " हो रही साँझ, आ रहे ढोर,
हैँ रँभा रहीँ गायेँ भैँसेँ
जँगल से घर को लौट रही
गोधूली वेला मे धरती "
कृषि - भूमि पर श्रमरत कृषक गोरी का यह चित्र देखिये -
" सिर धरे कलेऊ की रोटी, लेकर के मट्ठा की मटकी,
घर से जँगल की ओर चली होगी बटिया पर पग धरती,
कर काम खेत मे स्वस्थ हुई होगी तलाब मे उतर नहा,
दे न्यार बैल को , फेर हाथ, कर प्यार बनी माता धरती "
*****************************************
किस से कम है यह पली धूल मेँ, सोना धूल भरी धरती ?

तू तू मैँ मैँ तथा व्यक्तिगत स्वार्थ राष्ट्र को खोखला बना देते हैँ कवि उससे दुखी है -
" आज हिल रही राष्ट्र की नीँव, व्यक्ति का स्वार्थ न टस से मस,
राष्ट्र के सिवा सभी स्वाधीन, व्यक्ति - स्वातँत्रय अहम के वश ! "
कवि फिर भी देश को ललकारता है -- " ध्यान करो निज बल का मन मेँ,
भारत पवन कुमार,
एक बार फिर उठो गगन मे ,
कनक भूधराकार !"
शर्मा जी ने राष्ट्रीय चेतना के साथ कभी खिलवाड नहीँ किया. यध्यपि उनकी कुछ कविताएँ साम्यवाद , लाल निशान, तथा रुस के महापुरुषोँ से सँबँधित अवश्य हैँ पर वास्तव मे उनकी आत्मा भारतीय परिवेश तथा भारतीय जनजीवन से अपना सँबँध कभी भी तोड नहीँ सकी. उन्होने अपने काव्य मेँ राष्ट्रीय चेतना के श्रेष्ठतम आयामोँ की कल्पना की है, यही कवि के भावी भारत का सपना है, जिसके केन्द्र मेँ गाँधी जी स्वयम्` हैँ : ~
" आधा सोया, आधा जागा,
देख रहा था सपना,
भावी के विराट दर्पण मेँ ,
देखा भारत अपना ,
गाँधी जिसका ज्योति - बीज, उस विश्व वृक्ष की छाया,
सितादर्ष लोहित यथार्थ यह नहीँ सुरासुर माया -
************************************************************************************
डा. अमरनाथ दुबे के आलेख को प्रस्तुत किया है पुस्तक " सृजन और सँवेदना - नरेन्द्र शर्मा " से लावण्या ने

Saturday, August 25, 2007

छायावाद की दीप शिखा स्वरुप सुप्रसिध्ध, कविश्रेष्ठ सुमित्रा नँदन पँत जी-- भाग -- ३

छायावाद की दीप शिखा स्वरुप सुप्रसिध्ध, कविश्रेष्ठ सुमित्रा नँदन पँत जी ( दादा जी ) युवा कवि नरेन्द्र शर्मा पर अनुज वत स्नेह करते थे.यह पुरानी छवि है - अवसर था कवि श्री नरेन्द्र शर्मा के ब्याह का ~ बँबई शहर मेँ सन् १९४७ ............
और.......
[ गुगल पे सर्च करने पर यही एक छवि हिन्दी के मूर्धन्य एवँ लब्ध प्रतिषिठत कवि श्री सुमित्रा नँदन पँत जी की मिली जो हिन्दी भाषी वर्ग की उदासीनता व ऐसे सँत कवि की उपेक्षा काएक और उदाहरण है ]:-(


श्री सुमित्रा नँदन पँत ने लिखा है --

" वह ( नरेन्द्र ) क्रान्तिकारियोँ की वर्दी पहन कर एक दो वर्ष के लिए शायद देवली कैँप मे भी नजरबँद रहा, हहाँ के कठोर अनुशासन की पाषाण -शिला से उसके कवि के भीतर "कामिनी " नामक खँड - काव्य का मर्म मधुर प्रणय स्त्रोत फूटा तथा उसने "मिट्टी और फूल " शीर्षक अपने काव्यसँग्रह की रचना की."बैरक " से कविता मे जेल मे रहते हुए भी कवि का प्रकृति के प्रति व्यक्त आकर्षण द्रष्टव्य है.

कवि का " साँझ " का यह चित्र

ग्राम - प्राँत को कितनी शांति प्रदान करता है --

" बछडे सा बिछुडा था दिन भर जो ग्राम -प्राँत,

श्याम धेनु सँध्या के आते ही हुआ शाँत "

*******************

' माता भूमि पुत्रोहँ पृथिव्याँ ' राष्ट्रीय चेतना की सबसे बडी कसौटी है. धरती माता सबसे महान होती है. स्वर्ग से भी ! इसीलिये कहा गया है - " जननी जन्मभूमिस्च स्वर्गादपि गरीयसी " -- कवि " कामिनी " कविता मे इसी धरती माता के लिए आशीर्वाद माँगता है.

" धरित्री पुत्री तुम्हारी हे अमित आलोक,

जन्मदा मेरी वही है, स्वर्ण गर्भा कोख !"

कवि की "सुवीरा " काव्य सँग्रह मे ऐसे अनेक प्रसँग आये हैँ जहाँ भारत के उद्दाम वर्णन मे देशप्रेम मुखर हुआ है एक उदाहरण प्रस्तुत है -

" धर्म भूमि यह, कर्मभूमि यह, ज्योतिर्मय की मर्मभूमि यह,चार पदार्ठोँ से परिपूरित , धरती कँचन थाल है "

नील लहरोँ के पार लगी है चीन देश मे आग, जाग रे हिन्दुस्तानी जाग

उन दिनोँ बहुत लोकप्रिय हुई थी.

वही कवि अपने १९६० मे प्रकाशित "द्रौपदी:" खँडकाव्य की भूमिका मे स्वाकार करता है कि "राष्ट्रीय चेतना के निर्माण मे पुराण कथाओँ का बडा हाथ होता है. भारतीय जन मानस पर इनका गहरा प्रभाव है. सुधार, प्रगति या आधुनिकता के नाम पर अचेतन जनमानस और पुराण कथाओँ से आज का काव्य अछूता , असँपृक्त रहे , यह उचित नहीँ : "

" विश्व को वामन पगोँ से नापने की कामना है "

कवि के लिये गाँधी जी राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक रहे हैँ अत: उनके काव्य मे गाँधी दर्शन अथवा गाँधी प्रशस्ति प्रचुर मात्रा मे मिलती है. " रक्त -छँदन " की सभी रचनाएँ गाँधी जी के बलिदान से सँबँध हैँ किन्तु अन्य बलिगानियोँ की कवि ने उपेक्षा नहीँ की है. ग्राम जहाँगीरपुर से प्रयाग , काशी होता हुआ कवि बम्बई के सागर तट पर आ बसता है, पर, कृषि प्रधान गाँव की धरती से उसका नाता अटूट बना रहता है. गाँव की धरती का ये शब्द चित्र देखिये -

"-" पक रही फसल, लद रहे चना से बूट पडी है हरी मटर "

क्रमश:


भाग -- २राष्ट्रीय चेतना के गीत ~ शब्द : " युग की सँध्या कृषक वधू सी किसका पँथ निहार रही ?"

आज देश की समस्याएँ कृषक - बाला की लटोँ जैसी उलझ गई हैँ :
" युग की सँध्या कृषक वधू सी किसका पँथ निहार रही ?
उलझी हुई समस्याओँ की,बिखरी लटेँ सँवार रही "

युग का रावण मानव - सभ्यता की सीता को बँदी बनाये है ~

" क्या न मानव सभ्यता ही भूमिजा पावन ?

क्या न इसको कैद मेँ डाले हुए रावण ?"

लेकिन कवि हताश नही है, क्यो कि उसे राम के पुल बाँध कर रावण को समाप्त करने की कथा ज्ञात है वह मानता है कि यह सभ्यता की सीता का परीक्षाकाल है

" क्या न बँधता जा रहा पर सेतु रामेशवर ?

स्वर्ण लँका और अणु के अस्त्र की माया
दर्पमति लँकेश फिर सब विश्व पर छाया ?"

************

चिर पुनीता है हमारी सभ्यता सीता

न उसका भी परीक्षाकाल है बीता !

( अग्निसश्य काव्य ~ सँग्रह से )

यह पराधीन भारत की व्यथा -कथा है , किन्तु वह कल आनेवाली स्वतँत्रता के प्रति आश्वस्त है. " केँचुल छोडी " शीर्षक कविता मे कवि ने अपनी इसी आस्था को अभिव्यक्ति दी है""

शेष नाग ने केँचुल छोडी धरती ने काया पलटी
नाश और निर्माण चरण युग नाच रही है नियति नटी "

अपनी इस शीर्षक रचना मे जो १५ अगस्त, १९४७ को लिखी गई थी, कवि ने इस नवोदित स्वतँत्रता का बडे हर्षोल्लास से स्वागत किया है. उसने इस नये राष्ट्र की प्रगति के प्रति आस्था प्रगट की है ~

" तिमिर क्रोड फोड भानु भासमान रे

नवविहान, नवनिशान, भारती नई !

अब न जन रहे विपन्न, ग्रास - ह्रास के,

नृत्य करे ओस -पुष्प अश्रु - हास के,

आज देश माँगता पवित्र एक वर
दास फिर न बने कभी पुत्र दास के "

किन्तु दो वर्षोँ के विभाजन की विभीषिका और दो वर्षोँ के शासन ने उसे बहुत निराश कर दिया फिर भी वह हारा नहीँ

" आज के दुख मे निहित है कल सुखोँ का साज, क्योँ न आशा हो मुझे इस देश के प्रति आज ? राज अपनोँ का बनेगा, क्या न अपना राज ? "

सन्` १९५० की यह कविता है. भारत के गणतँत्र की घोषणा तथा नेहरु के भारत निर्माण की कल्पना के साथ इस राष्ट्र को तटस्थ राष्ट्र घोषित करने पर कवि खीझ उठा था और १९४८ मे इस सँवेदनशील कवि ने क्रान्ति के अपने स्वर को वाणी दी -

- " कौन है मध्यस्थ ? कौन तटस्थ ? केवल कल्पना है !

वाम दक्षिण पक्ष, बीचोबीच कोरी कल्पना है ,

पेच पहलू हैँ बहुत पर सत्य भी प्रत्यक्ष है यह,

मध्य मार्ग, विशाल से, लघु रेख बनता जा रहा है !"

कवि का स्वर मानवतावादी है वह देश की सच्ची प्रगति चाहता है

- वह किसी भी दल से, सँतुष्ट नही है अत: वह प्रार्थना करता है -

मुझे मुक्ति दो, आज अगति से, खँडित कर भूधर जडता के, पाश खोल दो, परवशता के, सीमाओँ को प्रहसित कर अब, पथ सँवार दो, सहज सुमति से ***********

दुर्बलता मे शक्ति प्रगट हो, अल्प पूर्ण हो जायेँ अति से !

***********

क्रमश:


नरेन्द्र शर्मा के काव्योँ मेँ राष्ट्रीय चेतना :डा. अमरनाथ दुबे- -- भाग -- १

ऐतिहासिक युग मे मौर्य काल मे आसेतु हिमालय सम्पूर्ण भारत को एक राष्ट्र के रुप मे सँगठित करने का प्रयत्न सँस्कृत भाषा के माध्यम से हुआ था. इसके पूर्व भी वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रँथोँ के अतिरिक्त कालिदास, जयदेव, आदि के ग्रँथोँ मेँ भी हमेँ साँस्कृतिक एकता के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना के दर्शन होते हैँ. महाकवि तुलसीदास ने तो अनेक स्थानोँ पर इसका वर्णन किया
" भलि भारत भारत भूमि भलो कुल जन्म, समाज सरीर भलो लहि के "
तो दूसरे स्थान पर कहते हैँ
--" धन्य देश सो जहँ सुरसरी, धन्य नारि पतिव्रत अनुचरी, धन्य सो भूप नीति जो करईँ, धन्य सो द्विज निज धर्म न टरईँ "
भूमि, जन, एवँ सँस्कृति के समन्वय से राष्ट्र निर्मित होता है. इनमे से एक के प्रति भी यदि उपेक्षा का भाव रहा तो वह, प्रवृत्ति राष्ट्र के लिये घातक बन जाती है.राष्ट्रीय चतना के उदय की पृष्ठभूमि मे यही तीनोँ तत्त्व काम करते हैँ -
चाहे जन मानस मे हो अथवा साहित्य मे !
राष्ट्रीय चेतना के अँकुर साहित्य मेँ प्राय:
लोकगीतोँ के माध्यमोँ उभर कर आते हैँ


तुलसी ने इस चेतना के प्रतीक के रुप मे "राम -राज्य " की कल्पना की थी. इसके लगभग १०० वर्ष बाद समर्थ गुरु रामदास ने भी महाराज शिवाजी जैसे राष्ट्रपुरुष के द्वारा ' हिन्दू पद पादशाही " का उद्`घोष करवाया. हिन्दी साहित्य का मध्यकाल मुख्यत: भक्ति आँदोलन , हमारे साँस्कृतिक जीवन के पुनर्निर्माण एवँ राष्ट्रीय जीवन को एक नया परिवेश देते हुए उसे सुसँगठित करने का अभिनव प्रयास माना जा सकता है. गाँधी जी का अँग्रेजोँ के विरुध्ध सत्य और अहिँसा का आँदोलन स्वतँत्रता सँग्राम के इतिहास मे इसी चेतना धारा की अगली परिणीती मानी जायेगी, जिसका प्रवाह - पथ भारतेन्दु हरिस्चँद्र , प्रेमचँद , प्रसाद, निराला आदि के साहित्य से स्पष्ट परिलक्षित होता है. राष्ट्रीय चेतना के इसी प्रवाह ने आगे चलकर जन आँदोलन का रुप लिया और सन्` १८८५ के कोँग्रेस की स्थापना इसकी चरम परिणति बनी.

गाँधीयुग को हमारी राष्ट्रीय चतना का स्वर्ण युग माना जाना चाहिए
महात्मा गाँधी ने न केवल भारतीय राजनीति को प्रभावित किया अपितु, साहित्य को भी एक नई दिशा दी, उसे सत्याग्रह अहिँसा आत्मोसर्ग तथा आत्मानुशीलता की चेतना से अभीभूत किया.

माखनलाल चतुर्वेदी की कविता

" चाह नहीँ मैँ सुरबाला के गहनो मे गूँथा जाऊँ "

उसी चेतना की परिणति है, प्रसाद के नाटकोँ मेँ, निराला की गीतिका मेँ !स्वतँत्रता प्राप्ति के बाद हमारे युग की राष्ट्रीय चेतना ने एक नया परिवेश धारण कर लिया है.आलोचक डा. रामरतन भटनागर के अनुसार "पिछले ५० वर्षोँ मेँ हमारा राष्ट्रीय काव्य राजनीति काव्य मे बदल गया है और उसने विभिन्न राजनैतिक दलोँ से अपनी साँठ गाँठ बैठा ली है.आर्थिक विषमताओँ और सामाजिक उत्पीडन ने उनके स्वर को बराबर खँडित किया है "

पँडित नरेन्द्र शर्मा के काव्य मे हमे एक बहुमुखी राष्ट्रीय राष्ट्र चेतना के दर्शन होते हैँ उसमे एक उदीयमान राष्ट्र की वेदना, भावुकता , तेज, उनके उत्सर्ग एवँ त्याग की अदम्य लालसा अत्यँत सशक्त स्वरोँ मेँ मुखरित हुई है.उसमेँ देश की पीडा बडे ही सशक्त स्वरोँ मे मूर्तिमान हुई है.शर्मा जी की रचनाओँ मे देश भक्ति, राष्ट्र गौरव, समकालिन राजनीति के साथ ही साथ ग्राम जीवन और प्रकृति को भी महत्त्व दिया गया है -

उन्होँने "कदली वन " काव्य -सँग्रह की "देश मेरे " शीर्षक कविता मे कहा है "दीर्घ जीवी देश मेरे, तू, विषद वट वृक्ष है "

डा. हरिवँशराय बच्चन जी, श्री सुमित्रा नँदन पँत जी व श्री नरेन्द्र शर्मा
( इलाहाबाद मेँ ली गई एक पुरानी श्याम /श्वेत छवि
)
नरेन्द्र शर्मा को छायावादी कवियोँ के अतिरिक्त्त छायावादोत्तर कवि बच्चन,अँचल आदि के साथ भी रखा जा सकता है.ये उत्तर छायावादी कवि अपने चतुर्दिक जीवन - जगत के प्रति पूर्ण सँवेदित हैँ ये सभी सद्` गृहस्थ हैँ

-पँ नरेन्द्र शर्मा के काव्य मेँ राष्ट्रीय चेतना का उदय इनके कवि कर्म के रुप मे ही हुआ है.सन्` १९४२ के आँदोलन के बाद शर्माजी की रचनाओँ देशभक्ति तथा जन जीवन के प्रति लगाव विशेष रुप से दिखाई देता है देश मे नित्यप्रति होते नैतिकता के ह्रास से दुखी होते हैँ

" अहँकार के साथ बुध्धि की जब से हुई सगाई है

हीन विवेक हुआ मानव - मन, नैतिकता बिसराई है "

क्रमश: : ~~

Sunday, August 19, 2007

उन्मुक्त जी की इच्छा थी कि नाग देवता पर फिल्माये गये नृत्य देखेँ जायेँ -तो लीजिये ..ये रहे लिन्क

शेष नाग की शैया पर लेटे हुए महा विष्णु की प्राचीन प्रतिमा
शिवलिँगम्`
नागिन फिल्म के गीत मन मेँ गूँज रहे हैँ - " मन डोले मेरा तन डोले रे मेरे दिल का गया करार रे ये कौन बजाये बाँसुरिया "
http://www.youtube.com/watch?v=Uz4vSIgJ7MM
और श्रीदेवी की छवि मन पटल पर उपस्थित हो गयी -- नगीना मेँ नीली , हरी आँखोँ के लेन्स लगाये , सँपेरे बने अमरीश पुरी को गुस्से से फूँफकारती हुई, डराती हुई लहराती हुई , नाचते हुए, लता जी के स्वर मेँ गाती हुई जादूभरी नागिन " मैँ तेरी दुशमन, तू दुशमन है मेरा, मैँ नागिन तू सँपेरा ..आ आ "
http://www.youtube.com/watch?v=fOFogcZIT4I&mode=related&search=
और भी एक अद्भुत नृत्य है - श्रीदेवी और जया प्रदा दोनोँ साथ नाच रहीँ हैँ मँदिर मेँ और जीतेन्द्र गा रहे हैँ " हे नाग राजा तुम आ जाओ " -
http://www.youtube.com/watch?v=0A7H7l_Pt5o

Saturday, August 18, 2007

उमा भारती जी , नाग पँचमी के अवसर पर पूजा करते हुए बहुत प्रसन्न हुईँ -

  • नाग पँचमी के अवसर पर भारत के उज्जैन शहर के मँदिर मेँ भगवान शिव और पार्वती जी की प्रतिमा पर शेष नाग छत्र किये हुए हैँ
    जिसकी अत्याधिक महिमा है जिसकी पूजा उमा भारती जी पूजा-करते हुए बहुत प्रसन्न हुईँ - तो सोचा नाग विषय पर कुछ लिखा जाये
  • नागिन फिल्म के गीत मन मेँ गूँज रहे हैँ - " मन डोले मेरा तन डोले रे मेरे दिल का गया करार रे ये कौन बजाये बाँसुरिया "
  • और श्रीदेवी की छवि मन पटल पर उपस्थित हो गयी -- नगीना मेँ नीली , हरी आँखोँ के लेन्स लगाये , सँपेरे बने अमरीश पुरी को गुस्से से फूँफकारती हुई, डराती हुई
    लहराती हुई , नाचते हुए, लता जी के स्वर मेँ गाती हुई जादूभरी नागिन " मैँ तेरी दुशमन, तू दुशमन है मेरा, मैँ नागिन तू सँपेरा ..आ आ "
  • और भी एक अद्भुत नृत्य है - श्रीदेवी और जया प्रदा दोनोँ साथ नाच रहीँ हैँ मँदिर मेँ और जीतेन्द्र गा रहे हैँ " हे नाग राजा तुम आ जाओ " -
    नाग पूर्वजोँ को भी कहा गया है कि सँपत्ति व सँतति के प्रति बहुत मोह या लोभ के कारण नाग योनि मेँ पैदा होकर वे रखवाली करते हैँ -
    गाईड फिल्म मेँ वहीदा जी का भी एक रोमाँचक सर्प नृत्य दीखलाया गया था -- नाग लोक पाताल लोक है जिसकी राजधानी भोगावती कहलाती है
  • तो आइये, नाग देवताओँ को प्रणाम करेँ --
  • नाग सारे कश्यप ऋषि की सँतान हैँ - और कद्रू और वनिता जो गरिद की माता थीम वे कश्यप जी की पत्नीयाँ थीँ
  • Anantha: अनन्त शेष नाग जिस पर महाविष्णु दुग्ध सागर मेँ शयन करते हैँ
  • Balarama: बलराम: श्री कृष्ण के बडे भाई, रेवती के पुत्र जो शेष नाग के अवतार हैँ
  • Karkotaka: कर्कोटक- जों आबोहवा के नियँत्रक हैँ
  • Padmavati: पद्मावती: राजा धरणेन्द्र की नाग साथिन
  • Takshaka: तक्षक :नागोँ के राजा
  • Ulupi: Arjuna : की पत्नी : नाग वँश की राज महाभारत से (epic Mahabharata.)
  • Vasuki: वासुकी : नागोँ के राजा जिन्होँने देवोँ की अमृत लाने मेँ सहायता की (devas ) Ocean of Milk.

[edit] Where nāga live

  • Bhoga-vita: भोगावती : पाताल की राजधानी
  • Lake Manosarowar: मानसरोवर : नाग भूमि
  • Mount Sumeru : सुमेरु पर्बत
  • Nagaland : भारत का नागालैन्ड प्राँत
  • Naggar: नग्गर ग्राम : हिमालय की घाटी मेँ बसा Himalayas, तिब्बत
  • Nagpur: नागपुर शहर, भारत (Nagpur is derived from Nāgapuram, )
  • Pacific Ocean: (Cambodian myth)
  • Pātāla: (or Nagaloka) the seventh of the "nether" dimensions or realms.
  • Sheshna's well: in Benares, India, said to be an entrance to Patala.

Thursday, August 16, 2007

८ वां विश्व हिंदी सम्मेलन + मेरी एक कविता पाठ का लिंक ~ (श्री अनुप भार्गव जीं के सौजन्य से )

Soon this link will be put on the official page also
at :http://www.vishwahindi.com/videos.htm
http://lavanyam-antarman.blogspot.com/2007/08/blog-post_16.html











Click Here to Launch in external player

"कोटी कोटी कंठों से गूंजे, जय माँ, जय जय भारती "
ये शब्द हैं कविता के

विश्व हिंदी सम्मेलन में , कविता पाठ का लिंक

(श्री अनुप भार्गव जीं के सौजन्य से )

" फिर गा उठा प्रवासी "

मेरी हिंदी कविता की किताब छप के तैयार है :~~

इसी पुस्तक से मेरी एक कविता सुनाने का मौका मिला

जिस किताब का मुख पृष्ठ

,मेरे , गुनी , युवा कालाकार साथी ,
श्री विजेंद्र विज ने तैयार किया है :~~

Vij विज

http://vijendrasvij.com/

http://artwanted.com/vijen

http://vijendrasvij.blogspot.com/

जिनकी हाल ही में शादी हुई है,
सौभाग्यवती बेटी संगीता मनराल के साथ


Wednesday, August 15, 2007

करें उपयोग हिंदी का हरदम, आओ , ऐसा ऐलान करें --





भारत जन , भारत वासी या प्रवासी

सब के अरमानों के सपने जो दर्शाती'

गर्व भरी अविजीत , जो कल्याणी
वह भाषा भारती , ही, मेरी वाणी
-संस्कृति की वाहिका वही बहती

जग के नित नित नए प्रेदेशों में
भास्वर हैं स्वर वेदों के जिनसे
वह गौरावशालिनी, वेद वाणी सी

नित नमन करें , हम शीश नवां कर
या की उस का सन्मान करे
करें उपयोग हिंदी का हरदम,

आओ , ऐसा ऐलान करें --


६१ वीं साल गिरह भारत की आजादी की आए
तब तक भारतीय होने का गौरव अनुभव इस तरह से करिये,


कि ये ना पूछें कि


" भारत देश, आपके लिए क्या कर रहा है? "
अपने आप से पूछिये कि


" आप भारत माता के गौरव के लिए क्या कर रहे हैं ?"


-- लावण्य

Sunday, August 12, 2007

आप का स्वागत है - "मुक्ति " -- मेँ -भारत की ६० वीँ आज़ादी के पर्व पर सुदूर अमरीका मेँ भारत की आज़ादी का जश्न इस प्रकार मनाया जायेगा -



सुदूर अमरीका मेँ भारत की आज़ादी का जश्न इस प्रकार मनाया जायेगा -

( What: 60th India Independence Day Celebrations

When: Sunday, August 19th, Jai Hind!

MUKTI @ 9.45 am to noon

Where: Fountain Square, Downtown Cincinnati )
The Indian Association's of Greater Cincinnati are organizing the 60th Anniversary of the Independence of India Celebration. We are kindly requesting you to attend this event and make it a grand success. We also encourage you to decorate kid"s strollers and bicycles and bring them along for the Parade. Prizes will be awarded to the Best Decorated stroller and bike and Best Dressed Traditional outfit. Traditional Indian Dress should be worn and bring along both Indian and American flags, if available. Snacks and Drinks will be provided. (also bring along any Indian musical instrument (table, manjira's etc) for the parade.) The event is free and open to all.
Program Agenda:
9: 45 AM - Grand Parade

10:30 AM - Flag Hoisting, Speeches by Chief Guest and Community Leaders

11:00 AM - Colorful Cultural Program
Sponsoring Organizations

अग्रणी = बांग्ला ऐसोशीयेशन AGRANI (Bengali Association)

अँकुर = गुजराती ऐसोशीयेशन ANKUR (Gujarati Association)

AIABG =ऐशियाई हिन्दुस्तानी /अमीरीकन व्यापार मँडल

(Asian Indian American Business Group)

GCTS = बृहत तमिल सँघम्`

(Greater Cincinnati Tamil Sangam)

HSGC = सीनसीनाटी का बृहत हिन्दु ऐसोशीयेशन

(Hindu Association of Greater Cincinnati)

तरँगिणी = तेलेगु ऐसोशीयेशन ( TARANGINI -Telugu Association)

त्रिवेणी = मराठी ऐसोशीयेशन ( TRIVENI - Marathi Association)

भारत से दूर हर भारतीय को सनातन धर्म से जोडकर रखने वाली कडी से बन गये हैँ भारतीय लोगोँ के कठिन प्रयास के बाद बने हिँदु मँदिर हमारे शहर सीनसीनाटी मेँ १०० एकड क्षेत्रफल के बाग के एक कोने मेँ हिन्दु आस्था का प्रतीक जो मँदिर है उसकी सेवाओँ व जानकारी के ये लिन्क्स हैं






भारतिय मनिषा / भारतीय मानस क्या है ? ( श्री प्रेम कपूर की यादेँ - उन्हीँ की ज़बानी )


यादें : प्रेम कपूर
लँदन - पार्टी की गहमा गहमी - कई एक भारतीय हैँ मित्र परिचय करा रहे हैँ " आप निर्माता हैँ  ' कृष्ण पर फिल्म बना रहे हैँ '  अँग्रेज़ी और हिन्दी मेँ - " कृष्ण " मेरे आराध्य !
फिल्म् के सँबँध मेँ अधिक जानने का कौतुहल  छिपा नहीँ पाता। मेरे हर प्रश्न का उत्तर उनसे बहुत सँक्षिप्त मेँ मिलता है। 
मेरे अधिक खोदने पर अपने स्थूलकाय शरीर को सँभालते हुए बोलीँ , " आपके जो भी सवाल हैँ उनका उत्तर भारत आने पर आपको हमारे पँडित जी, शर्मा जी देँगेँ, इसकी ज़िम्मेदारी उन्हीँ पर है और व्यवसाय का कँट्रोल मेरे हाथ मेँ है  " कह कर, पार्टी के माहौल मेँ गुल हो जातीँ हैँ। 
भारत : सन्` '८३, जून की नौ तारीख ! मैँ पँडित जी से मिलने आया हूँ। 
 उनका घर, उनका कमरा और पँडित जी खुद बिलकुल नहीँ बदले।
एक लँबे अँतराल की कडी जुड गयी है।  जब बँबई मेँ पहली बार, इस घर मेँ, उनके यहाँ आमँत्रित था, वह सन्` '६८ की गर्मियोँ वाली सुबह थी। 
 मैँ इलाहाबाद पर फिल्म बना रहा था। 
 पँत, फिराक गोरखपुरी, बच्चन जी, की फिल्मिँग कर आया था। 
 पँडित नरेन्द्र शर्मा जी के घर, कैमरा, लाइट के साथ, एक बार ही आना हुआ था। इसके पहले सन्` '५४ मेँ , बँबई आया था और चेँबूर मेँ, आर. के. स्टुडियो जाने के लिये, कुर्ला स्टेशन पर खडा था। तब वहाँ उस प्लेटर्फोर्म से इँजनवाली गाडी, चेँबूर जाती थी, शायद, एक घँटे के अँतराल से !
  चक्क खुली धोती, खादी का कुर्ता और जवाहर जाकेट , रोलगोल्ड फ्रेम का चश्मा। हम लोग साथ खडे हैँ।  मित्र ने परिचय कराया " पँडित नरेन्द्र शर्मा ! "
आगे मैँने मित्र को बोलने नहीँ दिया। जरुरत ही नहीँ थी।
 पर जब फिल्म "त्रिवेणी" बना रहा था, उस समय मैँ, "धर्मयुग " मेँ था।
तब मैँने फोन पे कहा था, " फिल्म बनेगी जुरुर, कब और कैसे ये कह नहीँ सकता।  जब तक बन नहीँ जाती, सारा कुछ गुप चुप रखना है --यहाँ तक की भारती जी को भी नहीँ मालूम कि मैँ फिल्म बना रहा हूँ। आप मेरी बात को सीक्रेट रखेँ और फिल्म मेँ आपकी एक कविता इलाहाबाद पर चाहिये.'
प्रयाग !
[ यह श्रद्धेय पंडित नरेन्द्र शर्मा की एक दुर्लभ कविता है जो मैंने 'सरस्वती हीरक-जयन्ती विशेषांक १९००-१९५९' से साभार ली है।
- लक्ष्मीनारायण गुप्त ]

मैं बन्दी बन्दी मधुप, और यह गुंजित मम सनेहानुराग
संगम की गोदी में पोषित शोभित तू शतदल प्रयाग
विधि की बाहें गंगा-यमुना तेरे सुवक्ष पर कंठहार,
-लहराती आतीं गिरि-पथ से, लहरों में भर शोभा अपार !
देखा करता हूँ गंगा में उगता गुलाब-सा अरुण प्रात :
यमुना की नीली लहरों में नहला तन ऊठती नित्य रात!
गंगा-यमुना की लहरों में कण-कण में मणि
नयानाभिराम बिखारा देती है साँझ 
हुए नारंगी रँग की शान्त शाम !

तेरे प्रसाद के लिए, तीर्थ ! आते थे दानी हर्ष
जहाँ पल्लव के रुचिर किरीट पहन 
आता अब भी ऋतुराज वहाँ !

कर दैन्य-दुःख-हेमन्त-अन्त - वैभव से भर सब शुष्क - वृन्तहर
साल हर्ष के ही समान सुख-हर्ष-पुष्प लाता वसन्त !

स्वर्णिम मयूर-से नृत्य करते उपवन में गोल्ड मोहर ,
कुहुका करती पिक छिप छिप कर तरुओं में रत प्रत्येक प्रहर 
भर जाती मीठी सौरभ-से कड़वे नीमों की डाल डाल
लद जाते चल दल पर असंख्य नवदल प्रवाल के जाल लाल
मधु आया' , कहते हँस प्रसून, पल्लव  
'हाँ' कह कह हिल जाते आलिंगन भर,

मधु-गंध-भरी बहती समीर जब दिन आते !
शुची स्वच्छ और चौड़ी सड़कों के हरे-भरे तेरे घर में

सब को सुख से भर देता है ऋतुपति पल भर के अन्तर में !
मधु  के दिन पर कितने दिन के ! -

- आतप में तप जल जाता सबतू सिखलाता,
कैसे केवल पल भर का है जग का वैभव
इस स्वर्ण-परीक्षा से दीक्षा ले ज्ञानी बन मन-नीरजात,
शीतल हो जाता, आती है जब सावन की मुख-सरस रात

जब रहा-सहा दुख धुल जाता, मन शुभ्र शरद्-सा खिल जाता
यों दीपमिलिका में आलोकित कर पथ विमल शरद् आता

ऋतुओं का पहिया इसी तरह घूमा करता प्रतिवर्ष यहाँ,
तेरे प्रसाद के लिए तीर्थ !

आते थे दानी हर्ष जहाँ !
खुसरू का बाग सिखाता है, है धूप-छाँह-सी यह माया,
वृक्षों के नीचे लिख जाती है यों ही नित चंचल छाया !
वह दुर्ग !--जहाँ उस शान्ति-स्तम्भ में मूर्तिमान अब तक अशोक,
था गर्व कभी, पर आज जगाता है उर उर में क्षोभ-शोक !
तू सीख त्याग, तू सीख प्रेम, तू नियम-नेम ले अज्ञानी-
-क्या पत्थर पर अब तक अंकित यह दया-द्रवित कोमल वाणी?

--जिसमें बोले होंगे गद्गद वे शान्ति-स्नेह के अभिलाषी--
दृग भर भर शोकाकुल अशोक; सम्राट्, भिक्षु औ' संन्यासी !
उस पत्थर अंकित है क्या ? क्या त्याग, शान्ति, तप की वाणी ?
जिससे सीखें जीवन-संयम, सर्वत्र-शान्ति सब अज्ञानी !
सन्देश शान्ति का ही होगा, पर अब जो कुछ वह लाचारी-

-बन्दी बल-हीन गुलामों की जड़मूक बेबसी बेचारी !
दुख भी हलका हो जाता है अब देख देख परिवर्तन-क्रम,
फिर कभी सोचने लगता हूँ यह जीवन सुख-दुख का संगम !
बेबसी सदा की नहीं, सदा की नहीं गुलामी भी मेरी, हे काल क्रूर, सुन ! 
कभी नहीं क्या करवट बदलेगी तेरी ?

यह जीवन चंचल छाया है, बदला करता प्रतिपल करवट,
मेरे प्रयाग की छाया में पर, अब तक जीवित अक्षयवट ! -
-क्या इसके अजर-पत्र पर चढ़ जीवन जीतेगा महाप्रलय ?
कह, जीवन में क्षमता है यदि तो तम से हो प्रकाश निर्भय !
मैं भी फिर नित निर्भय खोजूँ शाश्वत प्रकाश अक्षय जीवन,
निर्भय गाऊँ, मैं शान्त करूँ इस मृत्युभित जग का क्रन्दन !
है नये जन्म का नाम मृत्यु, है नई शक्ति का नाम ह्रास,

--है आदि अन्त का, अन्त आदि का यों सब दिन क्रम-बद्ध ग्रास !
प्यारे प्रयाग ! तेरे उर में ही था यह अन्तर-स्वर निकला 
था कंठ खुला, काँटा निकला, स्वर शुद्ध हुआ, कवि-हृदय मिला !
कवि-हृदय मिला, मन-मुकुल खिला, 
अर्पित है जो श्री चरणों में,पर हो न सकेगा अभिनन्दन 
मेरे इन कृत्रिम वर्णों में !ये कृत्रिम, तू सत्-पृकृति-रूप, 
हे पूर्ण-पुरातन तीर्थराज

क्षमता दे, जिससे कर पाऊँ तेरा अनन्त गुण-गान आज
दे शुभाशीस, हे पुण्यधाम !वाणी कल्याणी हो प्रकाम-
-स्वीकृत हो अब श्री चरणों में बन्दी का यह अन्तिम प्रणाम !
तेरे चरणों में शीश धरे आये होंगे कितने नरेंद्र,
कितने ही आये, चले गये, कुछ दिन रह अभिमानी महेन्द्र !
मैं भी नरेन्द्र, पर इन्द्र नहीं, तेरा बन्दी हूँ, तीर्थराज !
क्षमता दे जिससे कर पाऊँ तेरा अन्न्त गुण-गान आज !!..
नरेन्द्र शर्मा...१९३६
"उस शूटीँग के बाद फिल्म का प्रदर्शन ! उन्हेँ वह अच्छा लगा था लेकिन जम कर कभी बैठना नहीँ हुआ। 
" वे भी बात करना चाहते हैँ " निर्माता ने बताया पँडित जी से आप जरुर मिलिये - मिलने गया, तो बातोँ का जो सैलाब उमडा, तो लगा, उसे रीकोर्ड करना जरुरी है।  कहा, कल फिर आऊँगा और टेपरीकोर्डर के साथ !
 गलती हो गयी आज टेपरीकोर्डर नहीँ लाया !  जाने क्योँ वे राजी हो गये!
मैँ अगले दिन टेप के साथ उनके पास बैठा हूँ  ~
  लग रहा है, हम कितना कम जानते हैँ  ! मैँ, इस छोटी सी अवधि मेँ वह सारा जी लेना चाहता हूँ , जो उन्होँने स्वतँत्रता आँदोलन मेँ जिया था और उसके बाद, बँबई मेँ रहते, फिल्मोँ मेँ गीत लिखते -लिखते ! बात विचार कृष्ण तक सीमित नहीँ रही।
 मेरा खोजी मन, जीवन के कुल -कुँजोँ का पता चाहता है। 
उस दिन के बाद, जब भी समय मिलता है, मैँ, उनके पास जाता हूँ -

पँडित जी के न रहने की बात, रेडियो पर सुनी है - धक्क्` से रह गया हूँ !
देश, उन जैसोँ की कद्र नहीँ कर सका !  भारतीय मानस पर वे ऐनसाइक्लोपीडिया से कम नहीँ ! उस दिन की रेकार्डीँग के बाद मैँने उनसे लगातार कहा है कि, उनका इतना गहन चिँतन, उस सबको, किसी तरह, घरोहर के रुप मेँ सुरक्शित रखना चाहिये।  यह सब कैसे हो ? वे मुस्करा के टाल जाते हैँ। 
जानते हैँ देश जिस लीक पर चल रहा है, उसमेँ अब, यह सब नहीँ होता -

टेप खोजकर निकालता हूँ - उसे सुनता हूँ -
 पँडित जी की आज के जमाने पर टिप्पणी -
 राज, कवि और देश के सँबँध मेँ
- मेरे प्रश्न करने पर, कि " इतनी गहराई के स्तर पर, कैसे वे, चिँतन के स्तर पर उतर सकते हैँ ?
उन्होंने कहा, " "स्वतँत्रता आँदोलन - मैँ कवि तो था ही - कवि होने के नाते, आई हैड ए कमिटमेँट टू सोसायटी - बट आई वोज़ फाइटीँग तू जनरेट इनफ अनर्जी तू सर्व सोसायटी -आई डीस्कवर्ड माई ओन सोलीट्यूड ! क्यूँकि व्होट वन गीव्ज़ तू सोसायटी, इट्`स ओनली फ्रोम वन्स्` सोलीट्यूड !
अगर हम सोयेँ नहीँ अच्छी नीँद से, तो हम जाग करके कुछ नहीँ कर सकते।
 सोना जो है, सोलीट्यूड का एक रुप है।
 ये जो कहा है कि, मैन एज ए सोशीयल ऐनीमल। तो ' ही'  ओर 'शी '
 इस आल्सो ए चाइल्ड ओफ - सोलीट्यूड टू ! सोलीट्यूड हसबँड और वाईफ भी चाहते हैँ।  एक डबल बेड मेँ सोये हैँ - वे सोते हैँ तो अपनी - अपनी नीँद सोते हैँ और उस समय वे पूर्ण बीइँग हैँ। 
वह सोलीट्यूड मुझे मिला -  इलाहाबाद से मैँ यहाँ आ गया।
 बँबई , फिल्मोँ मेँ बाँबे टाकिज़ मेँ उनके साथ पूरा वक्त, सँबँध तो था नहीँ , पोएट तो मैँ था - सो, विचार भी करता था - फ्रीडम -फाइटर भी रह चुका था तो मुझे यहाँ पर, एकाँत मिला ," जैसे बँद अँधेरे कमरे मेँ, आदमी, बैठे -बैठे,  धीरे, धीरे, वहाँ रखी हुई चीजोँ को देखने लगता है, मन के अँधेरे कोने मेँ कहीँ बैठ करके, उसे, मन के अँधेरे भवन मे भी चीजेँ देखनी शुरु की - धीरे - धीरे समझ मेँ आने लगा कि, जो हमारे वेद मेँ है, वही हमारे "लोक -गीत " मेँ है -

हमारे यहाँ तीन चीजेँ कही गयीँ हैँ  --
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैँ
-राम जी को , आदेश दे रहे हैँ  - वसिष्ठ जी " कि , कर्म करो ! " लोकमत यानि कि जो लोक का मत है, उसके अनुसार काम करो।
 साधु का मतलब, साधु, सन्यासी, वैरागी नहीँ  !
 साधु का मतलब है - शिष्टजन -
समाज - में जो सँस्कृत, अच्छे लोग हैँ जो हमारे समाज का जो नेतृत्व कर रहे हैँ, उन लोगोँ का जो मत है, वैसा करो और नृप जो राजा की नीति, वेदोँ से लेकर, आज तक श्रुति, स्मृति मेँ चली आ रही है, उस नित्य और उन तीनोँ मेँ, नियम का निचोड है, वैसा नियम मानेँ वेदोँ का  है  जो हमारे हाईवेज़ हैँ कलचर के और बाइवेज़ हैँ कालचक्र के और जो रुट एक्स्पोसेस हैँ सबको अपने भीतर सँबोधित करके, मत निस्चय करने का सौभाग्य तुम्हेँ मिला है "

हमारे यहाँ राजा - नेता की क्या कहेँ , किसी की भी कोई प्राइवेट लाइफ नहीँ है - पब्लिक लाइफ है - बच्चा पैदा होता है, उत्सव !
नामकरण = उत्सव !
 पढने जाता है - उत्सव !
कामकाज करता है - मान लेँ वही, रिटायर होकर, वानप्रस्थ मेँ जाता है,
वह भी उसकी पब्लिक लाइफ है  !
उसकी प्राइवेट लाइफ तो होती नहीँ  !
सन्यासी की तो एकदम नहीँ  !
 हमारे यहाँ, एवरी मिनिट, एवरी डे, HE  ओर SHE  इज़ अकाउन्टेबल टू पिपल्`, ओन दी अर्थ एँड गोड अबव ! ये हमारे यहाँ का कल्चर है "

- और मैँ सोच रहा हूँ, हम यह सारा कितना कम जानते हैँ !
इस आपाधपी मेँ किसे फुरसत है, पीछे मुडकर देखने की और कृष्ण पर जो कुछ उन्होँने कहा, वह एकदम नया द्रष्टिकोण है ....वह फिर कभी ....!!-

- लेखक : श्री प्रेम कपूर की - यादेँ



Thursday, August 9, 2007

कवि श्री इन्दीवर की यादें ~` उन्हीँ के शब्दोँ में ,( गीतकार शैलेन्द्रजी, साहिर लुधयानवी



बडे अरमानो से रखा है बलम तेरी कसम [#N8161]
चँदन सा बदन, चँचल चितवन [#271]
छोड दे सारी दुनिया किसी के लिये [#N8235]
दर्पन को देखा, तुने जब जब किया सिँगार [#541]
दिल ऐसा किसीने मेरा तोडा [#N8046]
दिल को देखो चहरा ना देखो [#716]
दुल्हन चली हो पहन चली तीन रँग की चोली [#740]
है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मैँ गीत वहाँ के गाता हूँ [#862]
हम थे जिनके सहारे , वो हुए ना हमारे [#395]
हमने अपना सबकुछ खोया प्यार तेरा पाने को [#914]
हमने तुझको प्यार किया है जितना कौन करेगा उतना [#128]
हर कोई चाहता है एक मुठ्ठी आसमान [#715]
होँठोँ से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो [#94]
जाती हूँ मैँ, जल्दी है क्या [#N9126]
जब कोई बात बिगड जाये जब कोई मुश्किल पड जाये [#878]
मेरे देस की धरती सोना ओगले उगले हीरे मोती [#462]
मिले ना फूल तो, काँटोँ से दोस्ती कर ली [#155]
नफरत करनेवालोँ के सीने मेँ प्यार भर दूँ [#1003]
ओ नदिया चले चले रे धारा [#1142]
ओह रे ताल मिले नदी के जल मेँ [#104]
पल भर के लिये कोई हमेँ प्यार कर ले, झूठा ही सही [#353]
रुप तेरा ऐसा दर्पन मेँ ना समाये [#405]
सवेरे का सूरज तुम्हारे लिये है [#945]
ज़िँदगी का सफर है ये कैसा सफर [#488]
इन सारे गीतोँ की खूबी ये है कि उन्हेँ सुनते समय हमेँ भी साथ गुनगुनाने को मन करता है. शब्द सरल हैँ आम जीवन से जुडे से, रोज की बोल चाल की भाषा से लिये हुए तभी ऐसा महसूस होता है मानोँ कोई अपने मन की बात ही कह रहा है पर कवि एक कलाकार है.
खास तौर से फिल्मोँ के लिये लिखे गये गीत हमारे सुख दुख के साथी होते हैँ.
जब कभी दिल रोया तो कोई गीत याद आया. जब जब खुशी आयी तब भी फिल्म का गीत उसी के अनुरुप याद आया है ऐसा अक्सर हुआ है .
आइये, तो ऐसे एक से एक बेहतरीन और सुरीले गीतोँ के कवि श्री इन्दीवर जी को, उन्हीँ के शब्दोँ द्वारा याद कर लेँ .
साहित्य को लोकप्रिय बनाने मेँ हरीवँश राय बच्चन जितना ही नरेन्द्र जी का योगदानरहा है.जहाँ तक फिल्म क्षेत्र, आकाशवाणी और दूरदर्शन का सवाल है, नरेन्द्र जी ने हिन्दी साहित्य को लोकप्रिय बनाने मेँ अभूतपूर्व योगदान दिया है.साहित्य के सँबँध मेँ गीतकार शैलेन्द्रजी की एक बात अक्सर याद आती है. मैँ उन्हेँ उर्दू के महान शायरोँ के जब शेर सुनाया करता था , तो वे मुझे डा. हरिवँश राय बच्चन और पँडित नरेन्द्र शर्मा की किताबोँ से चुने हुए कुछ गीत, जो उन्हेँ जबानी याद थे, अक्सर सुनाया करते और कहते, " इन्दीवर, तुमने इनको नहीँ पढा !" मैँ कहता, " मैँने इन्हेँ पढा है और मुझे ये सब बहुत पसँद भी हैँ " जो कवितायेँ शैलेन्द्र जी ने पँडित नरेन्द्र शर्मा की सुनायी, वे मुझे पहले भी याद थीँ और आज तक याद हैँ .
नरेन्द्र जी के "प्रवासी के गीत " नामक गीत सँग्रह मेँ -
" आज के बिछुडे न जाने कब मिलेँगे आज से हमतुम गिनेँगे एक ही नभ के सितारे पर सदा को दूर होँगे ज्योँ नदी के दो किनारे सिन्धु तट पर भी न हो दो मिल सकेँगे.. आज के बिछुडे न जाने ...."
पँडित नरेन्द्र शर्मा जी के गीतोँ की जब ये पँक्तियाँ साहिर लुधयानवी ने सुनी तो वे बाजिद हो गये कि उन्हेँ उसी रोज नरेन्द्र जी के घर ले जाया जाये ! मैँ , नरेन्द्र जी से बिना समय लिये, साहिर लुधियानवी को अपने साथ, उन्हेँ मिलाने,अपने साथ, उनके घर ले गया ! मैँ तो उनके पाँव छूता ही था, और साहिर लुधियानवी ने भी उनके पाँव छूए ! बातचीत के दौरान, साहिर ने जो मुझे इकबाल का पर्शियन शेर सुनाया था, मैँने किसी बात पर, उदाहरण के तौर पर, उसे सुनाया. उसी दौरान, हिन्दी के महान साहित्यकार नरेन्द्र जी ने जैसे कि वे पर्शियन के महान साहित्यकार भी होँ, ये शेर, सुनाया --
कज अजा आई तये चीनी शिकस्त खूब शुद, असबाबे खुद बीनी शिकस्त
इससे जाहिर होता है कि उनको उर्दू के लिटेरेचर के साथ पर्शीयन लिटेरचर का भी ज्ञान था. सँस्कृति और साहित्य का तो उनके लिखे और देख रेख मेँ बने, "महाभारत " नामक धारावाहिक से पता चल ही जाता है.उनके ज्योतिष ज्ञान की लता जी भी कायल थीँ, यहाँ एक बात कहना जरुरी है. आधुनिक मार्क्सवादी साहित्य से प्रेरित नवयुवक साहित्यकारोँ के नरेन्द्र जी अपनी तरुण अवस्था से ही मार्गदर्शक रहे हैँ अगर मेरा कोई साहित्यिक रुप या स्थान है तो उसका श्रेय नरेन्द्र जी को ही जाता है. उन्होँने ही आकाशवाणी बँबई से अखिल भारतीय स्तर के कवि सम्म्मेलन मेँ , जिसमेँ महान साहित्यकार और कवि भाग लेते हैँ , नविदित साहित्यकारोँ को उत्साहित किया और उन्हेँ कविता पाठ के अवसर , साहित्यिक कवि सम्मेलनोँ मेँ दिलवाये.
नरेन्द्र जी ने आकाशवाणी द्वारा हिन्दी की अपार सेवा की - फिल्म क्षेत्र मेँ हिन्दी के प्रसिध्ध साहित्यकार श्री भगवती चरण वर्मा, जो उस समय बँबे टाकिज़ मेँ थे, उन्हेँ गीत लिखने के लिये बँबई ले आये. फिल्म "हमारी बात " के गीत आज तक लोकप्रिय हैँ --
१) मैँ उनकी बन जाऊँ रे,
आयेँ वो चँदा के रथ मेँ
मैँ मन ही मन अँग लगाऊँ
दूर खडी शरमाऊँ ..मैँ उनकी .
.आज सोलह सिँगार करूंगी,
ए री सखी मैँ पी को वरुंगी
,भोले मन के अरमानोँ की
जयमाला पहनाऊँ ..दूर खडी शरमाऊँ "
२) इन्सान क्या ? जो ठोकरेँ नसीब की न सह सके
वो कश्ती क्या जो साथ मेँ तूफान मेँ न रह सके ?
३ ) ऐ बादे सबा इठलाती न आ
मेरा गुँचाए दिल तो टूट गया
और अभी हाल ही मेँ रिलिज़ हुई राजकपूर की फिल्म ," सत्यम शिवम सुँदरम" के ये दो गीत साहित्य की अमूल्य निधि हैँ
" यशोमती मैया से बोले नँदलाला, राधा क्यूँ गोरी, मैँ क्योँ काला ?"
और,
" ईश्वर सत्य है सत्य ही शिव है,शिव ही सँदर है जागो, उठ कर देखो,जीवन ज्योत उजागर ...है ..सत्यम शिवम सुँदरम "
भारतीय दर्शन मेँ जो स्थान बडे बडे त्यागी, तपस्वी और ऋषियोँ का है, वही स्थान नरेन्द्र शर्मा जी का हिन्दी और हिन्दुस्तान के साहित्य और अदबपसँद लोगोँ के दिलोँ मेँ हैो कोई भी उनसे मिला,
उनकी छाप, ह्रदय मेँ लिये रहा.
पँडित नरेन्द्र शर्मा ,
साहित्यकारोँ के ह्रदय मेँ हमेशा ध्रुव तारे की तरह अटल रहेँगे.
-- लेखक : स्व. इन्दीवर जी

Wednesday, August 8, 2007

" माथे पर सिँदूरी सूरज " ~~ गीत रचना : इन्दीवर






ये गीत फिल्म: सुहाग रात से है - जो मुझे बहुत प्रिय है -- 
बोल हैँ " गँगा मैया मेँ जबतक ये पानी रहे ..
मेरे सजना तेरी ज़िँदगानी रहे ..
ज़िँदगानी रहे ..हैया हो गँगा मैया .." 
माँझी गीतोँ से स्वर लिये यह गीत भारतीय नारी के मनोभाव का आइना सा लगता है मुझे !

भारतीय पतिव्रता नारी भले ही आधुनिक नहीँ अति आधुनिक हो जाये तब भी कहीँ दिल के भीतर यही भावना दबी दबी रहती है।  
जब मुझसे विदेशी ( अमेरीकन ) पूछते हैँ कि,
"  आप भारत की स्त्रियाँ  अपने भाल पर  ये लाल टीका क्यूँ लगातीँ हैँ ? " 
तो मेरा जवाब रहता है,
" मैँ जब बिँदीया लगाती हूँ तब मन ही मन ईश्वर से ये प्रार्थना भी करती हूँ कि प्रभु मेरे पति को लँबी ऊम्र देँ ! ये टीका,उसी के लियेमैँ मेरे भाल पर सजाती हूँ!"कुमकुम,बिँदिया, सिँदुर, टीका , तिलक,सौभाग्य चिन्ह, चाँदलो ( गुजराती मेँ ) 
ये पारे और गँधक के मिश्रण से बनाया जाता है। पारा शिव या पुरुषतत्व  का प्रतीक है  और गँधक रसायन,  स्त्री और पार्वती का प्रतीक है।  शिव और शिवा के मेल से ही विवाह सँपन्न होकर, स्त्री और पुरुष का सम्पृक्त दँपत्ति या युगल स्वरूप बनता है। " चँदन सा बदन चँचल चितवन  " इस गीत मेँ भी सुनिये ~~ इस गीत में सिन्दूर को 
" माथे पर सिँदूरी सूरज " की उपमा दी गयी है। 


निर्माता :  सर्वोदय पिक्चर्स डायरेक्टर : गोविँद सरैया 
सँगीत : कल्याण जी आनँद जी गीत रचना : इन्दीवर


सरस्वतीचंद्र गुजरात की पृष्ठभूमि पर लिखा गया सुप्रसिध्ध उपन्यास है जिसे हिन्दी फिल्म बनाकर समस्त भारतीयोँ के सामने गुजरात के प्रेमी युगल की कथा को परोसा गया था जिसके गीत लिखे थे कवि श्री इन्दीवर जी ने ! वे अक्सर हमारे घर १९ व रास्ते खार पर आया करते थे। 


सरस्वतीचँद्र गोवर्धन राम त्रिपाठी जी का अपने समय से बहुत पहले का दृष्टिकोण लिये उपन्यास था जो १८८१ से १९०१ के मध्य मेँ उजागर हुआ। 
 कुमुद से ब्याह न करने का निश्चय  कर, अमीर सरस्वतीचँद्र  मिलते हैँ और अपनी होनेवाली मँगेतर से प्यार करने लगते हैँ।  परँतु नियति को ये मँजूर न था। 
 कुमुद ( नूतन ) की शादी एक बिगडे पियक्कड रईसजादे से हो जाती है और नूतन की ज़िँदगी दुखोँ से भर जाती है। वह  आत्महत्या की कोशिश करती है परँतु कुछ साध्वियाँ कुमुद को  बचाकर अपने आश्रम मेँ ले जातीँ हैँ  जहाँ उसकी मुलाकात दुबारा, सरस्वतीचँद्र से हो जाती है। 
 परिवार के ये कहने पर कि, ' कुमुद अब दूसरी शादी कर लो ' ( चूँकि उसके शराबी पति का देहाँत हो चुका है ) कुमुद परिवार का आग्रह ठुकरा कर , समाज सेवा की ओर मुड जाती है। 

ये काफी गँभीर कथानक है चित्रपट का ! जिसे देखने मेँ धीरज रखनी पडती है पर सुँदर गीतोँ से पूरी फिल्म दर्शक को अंत तक बाँधे रखती है। 

" छोड दे सारी दुनिया किसी के लिये ..
ये मुनासिब नहीँ आदमी के लिये ..
प्यार से भी ज़ुरुरी कयी काम हैँ 
प्यार सबकुछ नहीँ आदमी के लिये .."
यह  गीत भी इन्दीवर जी की कलम से निकला हुआ एक बेहतरीन गीत है .
अगले भाग मेँ इन्दीवर जी का लिखा सँस्मरण मेरे पूज्य पापा जी के जाने के लिये बाद छपी पुस्तक " शेष ~ अशेष " से लिया हुआ आप के लिये पेश करुँगी..
तब तक ..के लिये, थोडा सा..इँतज़ार ..