Wednesday, April 30, 2008

बूँद और समुद्र ~~ सन्दर्भ


बूँद और समुद्र
[ कविता ~~ पहली ]
रिश्ते ~~ नाते ,
सगे सम्बन्धी
पास ~~ पडौस
गली मोहोल्ला और
घर गृहस्थी
दूर की बस्ती ,
महलों की हस्ती ,
देश ~~ विदेश ,
भेस परिवेश !
ग्रह ~ उप ग्रह ,
तारिकाएँ , निहारिकायें ,
अनगिनती चेहरे ,
जाने ~ पहचाने ,
या , कुछ अनजाने ,
और ~~~ मैं !!

~ सन्दर्भ ~
[ कविता - दूसरी ]
ज्योति का जो दीप से ,
मोती का जो सीप से ,
वही रिश्ता , मेरा , तुम से !
प्रणय का जो मीत से ,
स्वरों का जो गीत से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !
गुलाब का जो इत्र से ,
तूलिका का जो चित्र से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !
सागर का जो नैय्या से ,
पीपल का जो छैय्याँ से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !
पुष्प का जो पराग से ,
कुमकुम का जो सुहाग से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !
नेह का जो नयन से ,
डाह का जो जलन से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !
दीनता का शरण से ,
काल का जो मरण से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !

Tuesday, April 29, 2008

मधु माँग ना मेरे मधुर मीत

मधु माँग ना मेरे मधुर मीत

मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )

मैँने भी मधु के गीत रचे, मेरे मन की मधुशाला मेँ

यदि होँ मेरे कुछ गीत बचे, तो उन गीतोँ के कारण ही,

कुछ और निभा ले प्रीत ~ रीत !

मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )

मधु कहाँ , यहाँ गँगा - जल है !

प्रभु के चरणोँ मे रखने को ,

जीवन का पका हुआ फल है !

मन हार चुका मधुसदन को,

मैँ भूल चुका मधु भरे गीत !

मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )

वह गुपचुप प्रेम भरीँ बातेँ, (२)

यह मुरझाया मन भूल चुका

वन कुँजोँ की गुँजित रातेँ (२)

मधु कलषोँ के छलकाने की

हो गयी , मधुर बेला व्यतीत !

मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )

रचना : [ स्व पँ. नरेन्द्र शर्मा ]


Monday, April 28, 2008

नैना दीवाने , इक नहीं माने :सुरैया जी द्वारा गाया हुआ ये अफसर फिल्म का गीत

नैना दीवाने सुरैया जी द्वारा गाया हुआ ये अफसर फिल्म का गीत है जिसके शब्द लिखे, मेरे पापा पँडित नरेन्द्र शर्मा ने और सँगीत बध्ध किया दादा सचिन देव बर्मन जी ने -
गीत के बोल हैँ :~~~

" नैना दीवाने एक नहीँ माने, करे मनमानी माने ना

हुए हैँ पराये मन हार आये,

मन का मरम जाने ना माने ना माने ना नैना दीवाने

जाना ना जाना मन ही ना जाना

चितवन का मन बनता निशाना

कैसा निशाना कैसा निशाना ,

मन ही पहचाने ना , माने ना माने ना नैना दीवाने

जीवन बेली करे अठखेली महके मन के बकुल

प्रीति फूल फूले झूला झूले, चहके बन बुलबुल,

महके मन के बकुल

मन क्या जाने, क्या होगा कल धार समय की बहती पलपल,

जीवन चँचल जीवन चँचल, दिन जाके फिर आने ना

माने ना माने ना नैना दीवाने "

श्री एस. डी. बर्मन दा के विषिष्ट जालघर पर श्री ऋतू चंद्र ने इस गीत की समीक्षा बखूबी दर्शायी है - पढिये उन्हीँ के शब्दोँ मेँ : ~~ ( Read the Soundtrack Review of Afsar )

Also Hear this Song clips

http://www.sdburman.net/website/Feature_of_the_month/Features/SuraiyaSachinda.htm

Lyrics: Pandit Narendra Sharma

Pandit Narendra Sharma, was one of those few poets who traced his roots to world of Hindi literature. He, along with Bharat Vyas and Kavi Pradeep brought a flavour of pure Hindi into film lyrics. Hindi film lyrics traditionally have had a strong influence of classical and progressive Urdu poetry (thanks to stalwarts like Sahir Ludhianvi, Kaifi Azmi, Majrooh Sultanputi, Shakeel Badayuni and not to forget Chacha Ghalib!) on one side and folk based dialects of Hindi like Avadhi, Braj Bhasha, Bhojpuri etc. on the other. It is not very common to see pure literary Hindi make an appearance in this arena. It was Pandit Sharma and Bharat Vyas who were responsible in a big way for introducing this shade to the rich tapestry of film lyrics .Afsar was a rare collaboration between the greats... SD Burman and Pandit Narendra Sharma and ofcourse...Suraiya. The result is sheer magic. Panditji brings a rare literary sensitivity to the songs of Afsar. In this song Naina Deewane, the poet comes up with very pretty lyrics that ooze with the Shringar Ras.The most striking and pleasant part for me is Panditji's play with alliteration. In the mukhda he plays around with the m and n sounds with the ease of a veteran. To sampleNain Deewaane, ik nahin maane , kare man maani maane nahue yeh paraye man haar aaye, man ka marham jaane na, maane na maane na .....When it comes to the stanzas he again does some charming play with a hint homonysms in

"Jaana na jaana man hi na jaana "

Or the very pretty play with rhymes (and alliteration) "Jeevan beli kare atakheli, mehke man ke bakul priti phool phoole jhoola jhoole, chekhe ban bulbul "

Year of Release : 1950

Music : Sachin Dev Burman

Trivia : This song is adapted from Rabindranath Tagore's Shei din dujone. Hear the original at http://www.musicindiaonline.com/music/s/?q


Afsar, released in 1950, was the first film from the Navketan banner & It marked the beginning of Dada's association with the Film Company which lasted right uptil 'Chupa Rustom' in 1973


Availability : The soundtrack of अफसर has not been released commercially


This song, however, makes an appearance in most Suraiya collections


नैना दीवाने , इक नहीं माने


- ऋतू चंद्र


(Play music with the page)


( Click here to hear the song ;-) )


Sunday, April 27, 2008

कोकिला ओ कोकिला


कोकिला ओ कोकिला
ऋतु वसंत ने पहने गहने- झूम रहीं वल्लरियाँ
मधु गंध उड़ रही चहुँ दिशी बहे मीठे जल की निर्झरियाँ
आ गया आ गया वसंत , कूक उठी है कोकिला शतदल-शतदल खिली कमलिनी
मधुकर से है गुंजित नलिनी ,
केसर का ले अंगराग,नाच रही चंचल तितली ,
रति - अनंग का गीत प्रस्फुटीत,
कूक उठी है कोकिला।

झूल रहीं बाला उपवन मेंबजती पग में किँकिणीयाँ,
चपल चाल से , मृदुल ताल से, हँसती खिलती हैं कलियाँ
नाच रहा जग नाच रहा में मन , झूम उठी है कोकिला।

13 - Udd Jaa Re Kaaga.mp33564K Play Download

Saturday, April 26, 2008

लता जी के गाए २ विस्मृत गीत :

लता जी के गाए २ विस्मृत गीत : लता मंगेशकर जी करीब १९४५ , ग्रामोफोन कंपनी इंडिया Ltd (HMV) ने 'प्राइवेट ' गीत , कई गायकों के, उनकी (subsidiary) / अन्तर्निहित 'कोलंबिया ' लेबल से जारी किए --जिसका, " बाघ के सिर वाला " लोगो था। ये वो समय था जब , हिन्दी फिल्मों का संगीत ज्यादा मशहूर हो चला ता बनिस्बत नाटक / रंगमंचीय संयोजन इत्यादी के - और नाटकीय गीतों की रचना में कमी आने लगी थी । ये रेकॉर्ड १० " व्यास की गोल डिस्क पर , बनाए जाते थे जो १ मिनट में ७८ बार घुमाते हुए (rp.m.) हुए ३ मिनट तक बज कर , ख़त्म हो जाते थे। एक ऐसी ही बहुत पुरानी रेकॉर्ड, जिसका ८०३५ क्रमांक है -- जिस को गाया है , कुमारी लता मंगेशकर ने :'तुम चन्दा मैं बनू चकोर 'और'नार नवेली रीत न जाने '.रेकॉर्ड नम्बर GE ८०४८ लगता है , प्रायवेट रेकॉर्ड है जिसकी बहुत ही कम मूल प्रतियाँ बनाईं गयीं थीं : मतलब = 'Made to Order'। जिसमें यही दो गीत हैं ' प्राणोँ मेँ अमृत घोल 'और'मैं तुम्हारे ही स्वरोंमें '.रेकॉर्ड का लेबल है : 'हिन्दुस्तानी ' और दोनों गीत डांस - बेले 'भगवान बुध्ध ' नामक शीर्षक के लिए बनाए गए थे :निर्माता है , श्री . शान्तिकुमार चित्रे .लेबल पर दूसरे नाम हैं -संगीत : श्री . हरेंद्रनाथ नंदी व सँयोजक : आचार्य सीताराम चतुर्वेदी .शायद इन दोनो गीतोँ की सँरचना गीत / नृत्य / इस नृत्य नाटिका मेँ इस्तेमाल की गयीँ . ये बात भी अज्ञात है कि क्या इन गीतोँ को व्यापारीय तौर पर आगे बेचा भी गया था या नही ? कि सिर्फ कलाकारोँ और इस नृत्य नाटिका से जुडे हुए कलाकारोँ के बीच ही इस रीकोर्ड को वितरित किया गया था ? ये प्रश्न भी , उत्तर के बिना आज भी, वैसे ही उपस्थित हैँ परँतु, एक बात १०० % फीसदी पक्की है कि दोनोँ ही गीत बहुत ही कर्णप्रिय व मधुर हैँ जिन्हेँ लता जी ने उस समय गाया म जब वे हिन्दी फिल्म उध्योग मेँ अपने पैर जमा रहीँ थीँ और उन्हेँ तब तक वो सफलता की मँज़िल हासिल नही हुई थी जो उन्होँने, बरसात : ( १९४८ ), जैसी फिल्म की सफलता के बाद हासिल कर ली थी।
" भगवान बुध्ध " नृत्य नाटिका के इन २ गीतोँ मेँ लता जी का स्वर, एक ,ताज़गी एक कमाल की सादगी लिये हुए भी निहायत पवित्र और क्लासीकल सँगीत के समीप हो ऐसा लगता हैदोनोँ ही गीत स्लो टेम्पो मेँ गाये गये हैँ और शाँत व भक्ति भाव लिये मूड मेँ गाये गये हैँ। ये बात भी पता नहीँ कि क्या लता जी ने भी इस नृत्य नाटिका मेँ काम किया था या नहीँ ? अगर आप मेँ से किसी को भगवान बुध्ध नाटिका के बारे मेँ कोई भी जानकारी हो तब अवश्य आगे आयेँ और बतलाने का कष्ट करियेगा -अबा दोनों गीतों के शब्द -गीत -- १ -मैं तुम्हारे ही स्वरोंमें ,गीत अपने गा रही हूँऔर अपनी कल्पना में ,मैं तुम्हे , उलझा रही हूँ ...जा रहे पल पल विफल ये ,सल नही मेरे ह्रदय मेंतुम जहाँ गति देखते हो ,मूर्च्छना है मंद लय मेंस्वर भरे आसावरी के,किंतु दीपक गा रही हूँ .....तुम कहाँ ओ चल दिए ,मुझको अटल सन्देश देकरले लिया पथ कष्टमय ,विश्राम का आदेश दे करपर तुम्हारे नाम से ही ,मैं ह्रदय बहला रही हूँ ....गीता - २ -प्राणोँ मेँ अमृत घोल , रि बोल , रि बोलमंद मंद मलायानील डोले ,विमल कमल के बन हिंडोलेसुधा उन्डेले जाओ सुधाकर ,जग जीवन अनमोल , रि बोल ....मैं चातक तू स्वाति का घन ,अर्पण है मेरा तन मन धनअपनी करुनके सगर्में ,मेरी करुना घोल , रि बोल ....२मानस की लहरों मेँ पला ,हंस बिनता मुक्ता मालाव्याध फसाने चला जाल मेँ ,अपने हाथों खोल , रि बोल ...
- सुरेश चँदावरकर
Re: Lataji 's AALAAP --- & then soft sign off -- lends the song a signaturea " chaap " ~~~ which is HERS & hers only !!& Sree Raj Kapoor saab was the greatest fan of Didi's Alaaps.In Modern times Yash Chopraji has used Didi;s alaaps for Yash Raj Banner DVD, Films & at many places in his numerous movies as if to lend them a touch of Ambrosic, immortality.My Lata Didi : ~~~She is what she comes across in her singing--- a BEAUTIFUL FEMALE, inside & OUT , an honest & sincere kalakaar , a komal hriday walee NARI-- & above all this , a GREAT human being ---Maa SARASWATI has chosen her to be HER OWN VOICE ---I BOW DOWN to the LIGHT , THE SOUND that emenates from DIDI as a PRASAD of MAA ---Re: aleep --- I was once present when Didi was singing SSS 's song" Sunee jo unke aane ki aahat gareeb khana sajaya humne"& Raj saab was strictly instructed by Lataji[ via some one ] not to ENTER her recording space ;-))Raj saab , a very mischievious fellow , put just half of his leg inside as he came , near to REQUEST DIDI' please kuch aalaap jod dijiye na Lataji ees Gana mei " ......& Didi fumed & said under her breath , " alaap hee alaap se poori record bhur doongi -- fir aise hee gana ko release ker dijiyega " ....& we all burst out laughing ....This is a page from my Memories :BY Lavanya

Friday, April 25, 2008

सौगात

सौगात
जिस दिन
से चला था मैँ, वृँदावन की सघन घनी , कुँज~ गलियोँ से ,

राधे, सुनो, तुम मेरी मुरलिया फ़िर , ना बजी !

किसी ने तान वँशी की फ़िर ना सुनी !
वँशी की तान सुरीली, तुम सी ही सुकुमार ,

सुमधुर कली सी , मेरे अँतर मे,घुली - मिली सी ,

निज प्राणोँ के कम्पन सी , अधर- रस से पली पली सी !

तुम ने रथ रोका -- अहा ! राधिके ! धूल भरी ब्रज की सीमा पर ,

अश्रु रहित नयनोँ मे थीपीडा कितनी सदियोँ की !

सागर के मन्थन से निपजी , भाव माधुरी,

सौंप दिये सारे बीते क्षण, वह मधु - चँद्र - रजनी,

यमुना जल कण , सजनी ! भाव सुकोमल सारे अपने ,

भूत , भव के सारे वे सपने, नीर छ्लकते हलके हलके ,

सावन की बूँदोँ का प्यासा , अन्तर मन चातक पछताता ,

स्वाति बूँद तुम अँबर पर , गिरीं सीप मेँ, मोती बन!
मुक्ता बन मुस्कातीँ अविरल, , सागर मँथन सा मथता मन !

बरसता जल जैसे अम्बर सेमिल जाता द्रिग अँचल पर !

सौँप चला उपहार प्रणय कामेरी मुरलिया, मेरा मन!

तुम पथ पर निस्पँन्द खडी,तुम्हे देखता रहा मौन शशि,

मेरी आराध्या, प्राणप्रिये, मन मोहन मैँ, तुम मेरी सखी ! आज चला वृँदावन से --- नही सजेगी मुरली कर पे -
अब सुदर्शन चक्र होगा हाथोँ पे , मोर पँख की भेँट तुम्हारी,
सदा रहेगी मेरे मस्तक पे!
--लावण्या

Thursday, April 24, 2008

हर बार जिंदगी , जीत गयी!

किस ने किया , किस का इंतज़ार ?
क्या पेड़ ने , फल फूल का ?
फल ने किया क्या बीज का ?
बीज ने फ़िर किया पेड़ का ?
हर बार जिंदगी , जीत गयी !

प्रेमी ने पाई परछाईँ ,
अपने मस्ताने यौव्वन की ,
प्रिया की कजरारी आंखों में ,
शिशु मुस्कान चमकती - सी ,
और ,उस बार भी जिंदगी जीत गयी !

हर पल परिवर्तित परिदृश्यों में ,
उगते रवि के फ़िर ढलने में ,
चन्दा के चंचल चलने में ,
भूपाली के उठते स्पंदन में ,
रात - यमन तरंगों में ,
हर बार जिंदगी जीत गयी !

साधक की विशुद्ध साधना में ,
तापस की अटल तपस्या में ,
मौनी की मौन अवस्था में ,
नि: सीम की निशब्द क्रियाओं में
मुखरित , हर बार जिंदगी जीत गयी !
~~~~~~~~~~~ * ~~~~~~~~~~~* ~~~~~~~~~~~~~~
[ लावण्या ]

मेरे गीत बडे हरियाले : . पँ. नरेन्द्र शर्मा

मेरे गीत बडे हरियाले,
मैने अपने गीत,
सघन वन अन्तराल से
खोज निकाले
मैँने इन्हे जलधि मे खोजा,
जहाँ द्रवित होता फिरोज़ा
मन का मधु वितरित करने को,
गीत बने मरकत के प्याले !
कनक - वेनु, नभ नील रागिनी,
बनी रही वँशी सुहागिनी
-सात रँध्र की सीढी पर चढ,
गीत बने हारिल मतवाले !

देवदारु की हरित शिखर पर
अन्तिम नीड बनायेँगे स्वर,
शुभ्र हिमालय की छाया मेँ,
लय हो जायेँगे, लय वाले !

[ स्व. पँ. नरेन्द्र शर्मा ]

सुनिए ये गीत : "तुम आशा, विश्वास हमारे "

Tum Asha Vishwas Hamare

गायिका : : Lata

शब्द : Narendra Sharma

Tuesday, April 22, 2008

उच्चैश्रवा: Pegasus


समुद्र मंथन से निकले थे तुम
पंख फड़फडा़,उड़ चले स्वर्ग की ओर.
हे,श्वेत अश्व,नुकीले नैन नक्श लिये,
विध्युत तरँगो पर विराजित चिर किशोर!
मखमली श्वेत व्याल, सिहर कर उडे...
श्वेत चँवर सी पूँछ, हवा मेँ फहराते ..
लाँघ कर प्राची दिश का ओर छोर !
उच्चैश्रवा: तुम उड़ चले स्वर्ग की ओर !
इन्द्र सारथि मातलि,चकित हो, देख रहे
अपलक,नभ की ओर, स्वर्ग-गंगा,
मंदाकिनी में कूद पडे़,बिखराते,स्वर्ण-जल की हिलोर!
उच्चैश्रवा: तेज-पुंज, उड़ चले स्वर्ग की ओर!
दसों दिशा हुईँ उद्भभासित रश्मि से,
नँदनवन, झिलमिलाया उगा स्वर्ण भोर !
प्राची दिश मेँ, तुरँग का ,रह गया शोर!

अब भी दीख जाते हो तुम, नभ पर,
तारक समूह मेँ स्थिर खडे, अटल,
साधक हो वरदानदायी विजयी हो
आकाश गंगा के तारों से लिपे पुते,
रत्न जटीत,उद्दात, विचरते चहुँ ओर!
उच्चैश्रवा: तुम उड चले स्वर्ग की ओर!


-- लावण्या


Monday, April 21, 2008

न्यू ओर्लीन्स : REPORT FROM THE FRONT LINES : दीनेश राय द्वीवेदी जी का आग्रह था कि मैँ अमरीकी जीवन शैली से जुडी बातोँ पर लिखूँ (कैटरिना हरिकेन )

दीनेश राय द्वीवेदी जी का आग्रह था कि मैँ अमरीकी जीवन शैली से जुडी बातोँ पर लिखूँ ! अत: प्रस्तुत है , एक पन्ना यहां हुए एक हादसे से - न्यू ओर्लीन्स के समुद्री तूफान ने जब , पूरे शहर को डुबो दीया था और तबाही का आलम हर तरफ़ फैला हुआ था , लोग बाग़ , अपने घरों से बेघर हो गए थे, कईयों ने जान गंवाई ..ऐसी तबाही , अमरीकी प्रजातंत्र के लिए भी एक चुनौती बनकर , सामने आयी जब् फेमा जैसी संस्थाएं भी , मदद देने देर से पहुँची थी -
ऐसे माहौल में, कई बहादुर व दीलेर डाक्टरों ने सेवा प्रदान की और अपनी खुद की जान की परवाह किए बगैर, एमर्जन्सी को देखते हुए , कई घंटों तक , सेवा प्रदान की थी
उसी का यह् वाक़या है -- पढिये ,
( डाक्टर हेमंत वान्कावाला , मेरा भतीजा है ईमर्जन्सी रूम में सेवा देता है और ख़ुद हवाई जहाज भी उडाता है ) --
REPORT FROM THE FRONT LINES : This one comes to us straight from the New Orleans airport from Dr. Hemant Vankawala, an emergency physician from Plano, courtesy of his friends in the Denton County Medical Society. He asks that medical personnel not come to the disaster site but prepare to help out up here in Dallas, where the real medical attention the victims need will be delivered. I'm informed that medical people should register here. Dr. Vankawala's full report, with minimal editing, follows:
" greetings from the new orleans airport for those of you who dont know i am a member of the texas-4 disaster medical assistence team (DMAT). we are a part of FEMA. i joined a couple of months ago and my team was activated 11 days ago. for the past 8 days i have been living and working at the new orleans airport delivering medical care to the katrina hurricane survirors. let me start by saying that i am safe and after a very rough first week am now better rested and fed out team was the first to arrive at the airport and set up our field hospital. we watched our population grow from 30 dmat personal taking care of 6 patients and 2 security guards well to around 10,000 people in the first 15 hours. these people had had no food or water or security for several days and were tired, furstrated, sick, wet, and heart broken. people were brought in by trucks, busses, ambulances, school busses, cars, and helicopters we recieved patients from hospitals, schools, homes, the entire remaining population of new orleans funneled through our doors. our little civilian team along with a couple of other dmat teams set up and ran THE biggest evacuation this country has ever seen the numbers are absolutely staggering in hind sight it seems silly that a bunch of civilian yahoo's came in and took over the airport and had it up and running exceeding its normal operating load of passengers with an untrained skeleton crew and generator partial power. but we did what we had to do and i think we did it well our team has been working the flight line off loading helo's. overnight we turned new orleans airport into the busiest helicopter base in the entire world. at any given time there were at least 8-10 helo's off loading on the tarmac, filled with 10-40 survivors at a time, with 10 circling to land, it was a non-stop never ending process 24 hour a day operation. the cnn footage does not even begin to do it justice. the roar of rotar blades, the smell of jet A and the thousands of eyes looking at us for answers, for hope. our busiest day we off loaded just under 15,000 patients by air and ground. at that time we had about 30 medical providers and 100 ancillary staff. ALL we could do was provide the barest ammount of comfort care. we watched many, many people die. we practiced medical traige at its most basic, black tagging the sickest people and culling them from the masses so that they could die in a separate area. i can not even begin to describe to transformation in my own sensibilities from my normal practice of medicine to the reality of the operation here. we were SO short on wheel chairs and litters we had to stack patients in airport chairs and lay them on the floor. they remained there for hours too tired to be frightened, too weak to be care about their urine and stool soaked clothing, to desperate to even ask what was going to happend next. imaging trading your single patient-use latex gloves for a pair of thick leather work gloves that never came off your hands and you can begin to imagin what it was like. we did not practice medicine there was nothing sexy or glamerous or routine about what we did we moved hundreds of patients an hour, thousands of patients a day off the flight line and into the terminal and baggage area patients were loaded onto baggage carts and trucked to the baggage area, like, well, baggage. and there was no time to talk, no time to cry, no time to think, because they kept on comming. our only salvation was when the bureaucratic washington machine was able to ramp up and stream line the exodus of patients out of here our team work a couple of shifts in the medical tent as well. imagine people so despeate, so sick, so like the 5-10 "true" emergencies you may get on a shift comming through the door non stop that is all that you take care of. no imagine having not beds, no O2, no nothing except some nitro, aspirin and all the good intentions in the world. we did everything from delivering babies to simply providing morphine and a blanket to septic and critical patients and allowing them to die. during the days that it took for that exodus to occur, we filled the airport to its bursting point. there was a time when there were 16,000 angry, tired, frustrated people here, there were stabbings, rapes, and people on the verge of mobbing. the flight line, lined with 2 parallel rows of dauphins, sea kings, hueys, chinooks and every other kind of helocopter imanigable, was a dangerous place. but we were muchmore frightened when ever we entered the sea of displaced humanity that had filled every nook and cranny of the airport. only now that the thousands of survivors had been evacuated, and the floors soaked in bleach, the putrid air allowed to exchange for fresh, the number or soldiers allowed to outnumber the patients, that we feel safe i have meet so many people while down here. people who were at ground zero at 9-11, people who have done tusanmi relief, tours in iraq and every one of them has said this is the worst thing they have ever seen. its unaminous and these are some battle worn veterans of every kind of disaster you can imagine. watching the new reports trickle back to us has been frustrating and heart breaking. there is NOTHING anyone could have done to prepare for this. it was TOO huge, even now its so big its almost impossible to comprehend. the leaders needed to see first hand the damage but did not because their safety could be guarenteed. its a war zone in new orleans. it is covered in raw sewage with no infrastructure. every engineer i have spoken with believes that most of the city will have to be plowed into fields and that rebuilding what is left will take decades. it will NEVER be the same. never. ever. for those of you who want to help the next step is to help those who arrive in your local area. the only real medcial care these survivors will recieve is once they land in safe, clean area far from here. for the 50,000 people we ran through this airport over the last couple of days, if they were able to survive and make it somewhere else, their care will begin only when providers in dallas and houston and chicago and baton rouge (etc) volunteer at the shelters and provide care. and yes there are many, many more on their way many of the sickest simply died while here at the airport, many have been stressed beyond measure and will die shortly even though they were evacuated. if you are not medcial then go the shelters, hold hands, give hugs and prayers. if nothing else it will remind you how much you have and how grateful we all should be. these people have nothing. not only have they lost their material posessions and homes, many have lost their children, spouses, parents, arms, legs, vision, everything that is important. talk to these survivors, hear their stories and what they have been through, look into their eyes you will never think of america the same way you will never look at your family the same way you will never look at your home the same way and i promise it will forever change the way you practice medicine many, many stories to tell when i get back looking forward to seeing you all again we are VERY safe down here (now thank god)
and we shall be home soon hemant vankawala

Sunday, April 20, 2008

ऋतु ~~ संहार !


ऋतु ~~ संहार ! ( प्रथम ~~ पुष्प ) ~ [ रस शिरोमणि महाकवि कालिदास की अमर लेखनी को .......बारम्बार , प्रणाम करते हुए : ~~~ सादर , समर्पित ]

ना रहे वसन्त में कोई संत !

आयीं रम्भा , मेनका उर्वशी , तिलोत्तमा

कलि कलि ने मानो ली अंगडाई ,

लद गए तड़ाग कवल दल से ,

मत्त भ्रमर के गुंजन वन - वन !

यह प्रकृति का वसंत - पर्व !

शुक पीक , आम्र मंजरी की गंध ,

प्रकृति का जादू टोना बांटे कोयलिया ।

विश्वामित्र की अडिग तपस्या टूटी ,

रति नाथ मधुप , मधु बरसावे

कुसुम धनुष करी शर संधान -

कंदर्प , मदन बाण चलावे !

नभ पर दिवाकर का रचा वितान

नर - नारी , जीव - ब्रह्म , मिलन युति ,

प्रमाद में गुंफित , रस प्रसाद पावें !

हुई तपस्या भंग , भ्रिंगी , भैरव की ,

शिव - शिवा , समन्वय ~ संधि , तब ,

कुमार सम्भव , दैत्य नशावन् आवें !

~~ वासवदता उवाच्च : ~~~

( द्वितीय ~~ पुष्प )

हां ये सखी कैसा वसंत !

न हो मिलन कामिनी ~ कंत !

दूर पिया , मेरा मन सूना नभ छाए सप्त ~ रंग !

नयन दीप आस का काजल ,सभीत मृगी के स्वप्न भंग !

- दोनों कविताएँ : - लावण्या द्वारा लिखित

Saturday, April 19, 2008

सूनी साँझ ...कुछ यूं बिताई हमने ......[ Flashback ]

http://www.youtube.com/watch?v=eQXXOQc1nFk

सूनी साँझ ...कुछ यूं बिताई हमने ...... [ Flashback ]

गौरी कुंड से कुछ मिटटी लेकर हाथों में ,
एक अकेली साँझ को , सोच रहीं माँ पारबती ,
" कब आयेंगे घर , मेरे , शिव ~ सुंदर ? "
केशर मिश्रित उबटन लेकर हाथों में तब, खूब उसे मल मल कर
उतारा फ़िर अपने अंग से खेल - खेल में॥
बना दी आकृति एक बालक की और हलके से ,
फूंक दिए प्राण अपनी सांसों के ....और कहा ,
" ऊ हो ... ये मेरा पुत्र , विनायक है ! "
सूनी साँझ कहाँ फ़िर रहती सूनी सूनी ?
हुआ आगमन , श्री गणेश का जग में !
पारबती के प्यारे पुत्र तब आए जग में !
शिवजी लौट रहे थे छोड़ कैलाश और तपस्या
द्वार के पहरेदार बन खड़े हो गए बाल गणेश ,
माता के बन के रक्षक !
" फ़िर आगे क्या हुआ माँ ? कहो न ..."।
पूछने लगी बिटिया मेरी , मुझसे !
एक सूनी साँझ के समय , सुन रही थी वह,
मुझसे यह कथा पुरानी और मैं , उसे करती जा रही थी तैयार ~
रात्रि - भोज के पहले , ये भी करना था !
बस , अब , आते ही होंगें , मेहमान !

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-- लावण्या

Thursday, April 17, 2008

चीर हरण की पूर्व भूमिका ~


द्वारिका में सांझ हुई थी ! कृष्ण , झूल रहे, झूले पे ,
हाथ , सरोता लिए रुका था - मन , राधा में , लीन हुआ था !
वृन्दावन की कुञ्ज गलिन में , यमुना तट पे , मौन खड़ा था !अन्यमनस्क , मन के तारों से , तभी , एक स्वर

हो गया झंकृत ! दबी हुई सिसकी थी क्या वह ?

आह ! लहू की बूँद , उभरी , कटी , अंगुली , वन - मालिन की !
सुभद्रा , रुक्मिणी , भामा , दौडीं , ये क्या हो गया !
द्रौपदी , निकट खड़ी चकित थीं !
सहसा , फाड़ दिया आँचल पट , बाँध दिया घाव कृष्णा ने झट पट ( द्रौपदी का , दूसरा नाम , " कृष्णा " है )
-द्वारिका धीश तब सहज मुस्काये -
" पाँचाली ! यह प्रीत तुम्हारी ! मैं , ऋणी, तुम्हारे बन्धन का ! "
यह नौ सो निन्यानबे धागे , बने चीर पंचाली के , आगे ,
हस्तिनापुर की राज्य - सभा में ,
द्रौपदी की लज्जा के पहरेदार बने !

कहते हैं श्री हरी सदा :
" पत्रं पुष्पं फलं , तोयम , माय भक्त्या प्रयाच्चाती इअदहम भक्त्य्पर्हत्म्श्नामी प्रयात्मनाह ": ई २६ ई
"यात्कारोशी यद्शानासी यज्जुहोशी दादासी यात इयात्त्पस्यासी कौंतैये ! तत्कुरुश्व मदर्पनाम " ई २७ ई
( Meaning of the above Sanskrit shloka फ्रॉम
Shrimad Bhagvad Geeta )
" जो भी मुझे प्रेम से देता , फूल , पर्ण याकि फल - जल ,
मैं , उसे , स्वीकारता हूँ !
जो भी तुम भोगते या दे देते ,याकि, जप तप , करते ,
मुझ को वह तर्पण मिलता है ! "
[ यह भगवत गीता का अमर सन्देश और सार है !
]

Wednesday, April 16, 2008

हिंदी से है तुम्हें प्यार ? ~~ 'अमेरिका की धरती से'

श्री अनूप व श्रीमती रजनी भार्गव
श्रीमती रेणू राजवंशी गुप्ता
साथ मुस्कुराते हुए युवा कवि श्री अभिनव शुक्ला

प्रस्तुत है -" सृजनगाथा " के पाठकों के लिए

http://www.srijangatha.com/2008-09/april/usa%20ki%20dharti%20se%20-%20lshahji.htm

'अमेरिका की धरती से' नामक कॉलम - संपादक

आजकल "ब्लॉग लेखन" एक स्वतंत्र तथा सशक्त विधा के रूप में मीडिया के केन्द्र में छाया हुआ है। इसमें पत्रिकाओं, समाचार पत्र, पुस्तक, घटनाक्रमों पर निजी विचारों आदि को सम्मिलित कर सकते हैं । ब्लॉगों की उपस्थिति से विश्व-स्तर पर जो कुछ घटता है उसे तुरंत जाना जा सकता है । श्रवण पर विश्वास करने वाले यूट्यूब देखते हैं । यूट्यूब की बात छिड़ी है तो आइये देखिये कवि श्री गोपाल दास नीरज जी को काव्य-पाठ करते हुए । ऐसा कौन होगा जो नीरज को गुनगुनाते हुए इधर से झट से न जाना चाहेगा !

एक अमेरिकन डायरी और .....
"ब्लॉग लेखन" क्या है ? ये शायद आप भली भांति जानते होंगें । अमरीका से लिखा जा रहा यह ब्लॉग है -

"अमेरिकन डायरी" अमेरिकन डायरी को रचती हैं रजनी भार्गव । यह अमेरिका की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से कुछ खट्टी, कुछ मीठी, कुछ तीखी अनुभूतियों का पुलिन्दा है ।

घर बैठे अमेरिका जीवन, मौसम और भी बहुत कुछ का रोचक जानकारियों के लिए यह एक नयी शुरूआत है ।
रेणू
होने का मतलब
भारत से दूर बसे प्रवासियों ने हिन्दी साहित्य के प्रति अपनी श्रद्धा को सदा रेखांकित किया है । अपने संस्कारों से गद्य व पद्य में उसे स्वर दिया है । चलिए, आज ऐसी ही एक कवियत्री तथा लेखिका श्रीमती रेणू राजवंशी गुप्ता जी से आपकी मुलाक़ात करवाते हैं .


श्रीमती रेणू राजवंशी गुप्ता हिन्दी साहित्य जगत् की सक्षम लेखिका, कवियत्री होने के साथ साथ, भारतीय संस्कृति तथा हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार के लिए भी अथक परिश्रम करतीं हैं। उन्होंने घर पर ही, छोटे बच्चों के लिये हिन्दी शिक्षा केन्द्र खोल रखा है जहाँ अन्य महिलाएँ भी आ कर इस महत्वपूर्ण यज्ञ में हाथ बटाती हैं । उनकी कविता की पुस्तक है - प्रवासी स्वर । "कौन कितना निकट" तथा "जीवन लीला" दो कहानी संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं । अंजना संधीर द्वारा संपादित काव्य-कृति प्रवासिनी के बोल में रेणू जी की ४ कवितायें समादृत हैं । ज्ञातव्य हो कि यह संग्रह अमेरिका में महिला साहित्यकारों की कविताओं का चर्चित संग्रह भी है ।

रेणू जी मूलतः कोटा राजस्थान की हैं । एमए. अंग्रेज़ी, बी. ए. संस्कृत ओनर्स से करने के बाद उन्होंने अनेक वर्षों तक कम्प्यूटर साइंस का अध्यापन किया । बड़े और व्यस्ततम् व्यवसाय से जुड़े रहने पर भी वे अपने आवास पर कवि गोष्ठियों, साहित्यिक विमर्शों का आयोजन करती रहती हैं । कई बार हम सोचते हैं कि अमेरिका जैसे तेज़ गति वाले समाज में ऐसे कैसे संभव हो सकता है पर सच तो यह है कि रेणू जी जैसे लगनशील रचनाकार अपने लेखन और स्वाध्याय से आंतरिक जीवन को गतिशील बनाए रखते हैं यहीं से जीवन मूल्यों की खोज भी शुरू होती है । यही खोज मनुष्य को जीवन शक्ति से लबरेज़ कर देता है । यही तो कहना है रेणू जी का ।

अप्रैल में भारत से ३ कवि अमरीका पधार रहे हैं । और रेणू जी इस कार्यक्रम की तैयारियों में अभी से जुट गयीं हैं । इसी सिलसिले में उन्होंने मुझे पिछले दिनों फ़ोन किया । रात्रि भोज का आमंत्रण भी । श्री हरी बाबू बिन्दल भी पहले से विराजमान थे । हरी बाबू, कुछ अर्सा पहले लम्बी बीमारी से उबर कर भारत से फ़िर अमरीका आये थे । चेहरे में थकान साफ़-साफ़ पढ़ी जा सकती थी फिर भी उन्होंने अपनी ३ कवितायें तन्मयता के साथ सुनायीं । बिंदल जी से यह भी सुखद ख़बर मिली कि उनके समधी यानी जिंदल साह'ब हमारे शहर (सीन्सीनाटी)के हिंदू मन्दिर के लिए १०० एकड की ज़मीन की व्यवस्था में किस तरह सफलता अर्जित कर चुके हैं । भारतीय समाज के लोग इस मंदिर के लिए पर्याप्त जगह ख़रीदना चाहते थे । जिंदल साब उसे प्राप्त करने के लिए कितनी कठिन परिस्थितियों से गुज़रे थे जिनके बारे में, उन्होंने हमें विस्तार से बताया । यह समधी की संघर्षगाथा मात्र नहीं भारतीयों के स्वप्नों की फलीभूत होने की विजयगाथा भी थी । कुल मिलाकार संध्या बहुत रोचक रही ।

कविता में नारी, नारी में कविता
बात ही बात में कविता और नारी पर चर्चा होने लगी । रेणू जी का कहना था - "नारी समाज का अलंकार है । कविता साहित्य का अलंकार है। दोनों ही सौन्दर्य, लालित्य, लावण्य, रस और मर्यादा के बिम्ब हैं। कवि, मनीषियों ने कविताओं में नारी चरित्र के विभिन्न पक्षों को उभारा है। नारी कविता की शुरू से ही कथानक रही है। एक उर्दू शायर ने ग़ज़ल और कविता में अंतर करते हुए कहा है कि - "ग़ज़ल में प्रूष बोलता है और कविता में नारी बोलती है" तो, नारी कविता से अछूती कैसे रह सकती है ?

कवियत्रियों की समृद्ध परंपरा है हमारी भाषा में । भाषा का चमत्कार ही कहिए कि उसने नारी को काव्य के क्षेत्र में भी आदि को अग्रेषित किया है । वैदिक काल की गार्गी, मैत्रेयी से लेकर भक्ति काल की मीरा बाई तक और कविता के स्वर्णयुग की महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान से लेकर आधुनिक युगकी अनेक कवियित्रियों ने साहित्य जगत् को मनोरम बनाया है । नारी ने कविता के माध्यम से एक ओर अपने परिवेश के संघर्ष, विसंगतियों और सामाजिक बंधनों को बखूबी समाज के सामने रखा है तो दूसरी और श्रृंगार, ममता, वात्सल्य, करुणा, वीरता और सहनशीलता आदि भावों को शाश्वत माना है ।
हिंदी से है तुम्हें प्यार ?
चलते-चलते रेणू जी की कुछ काव्य-पंक्तियाँ जिसमें वे इसी भाव को विन्यस्त करती हैं -
यदि हिन्दी से है तुम्हें प्यार,
तो हेल्लो की जगह करो, हाथ जोड़ कर नमस्कार !
जाओ किसी दर्शनीय स्थल,
सर्वभाषाओं के मध्य खोजना हिन्दी का नाम,
न हो तो, अवश्य करना अधिकारियों से दरकार
ख़रीदना हो कोई भारतीय साज़-सामान,
ढूँढना हिन्दी में लेबल हिन्दी में नाम,
रखना दूकानदार के सामने अपने विचार,
यदि हिन्दी से है तुम्हें प्यार,

जो हिन्दी की रोटी खाते,
हिन्दी के प्रयोग से कतराते,
हिन्दी फ़िल्मों में करोड़ों कमाते,
हिन्दी बोलने में शर्माते,
एसे लोगों के विरूद्द खोलना है हमें अभियानद्वार
यदि हिन्दी से है तुम्हें प्यार !

रेणू जी का पता है -


रेणू "राजवंशी " गुप्ता,


६०७० एग्लेट ड्राइव, वेस्ट चेस्टर, ओहायो


४५०६९ यू. एस ए.
-- लावण्या

Tuesday, April 15, 2008

सर रिचर्ड ऐतेन्बरो - Amazing Rare things

http://www.royalcollection.org.uk/microsites/amazingrarethings/

The Queen's Gallery, Buckingham Palace, London -

१४ मार्च - २८ सेप्टेम्बर २००८

१५ वीं सदी से १८ वीं तक कुदरत से लिए गए विविध जीव, इस , प्रदर्शनी में शामिल किए गए हैं। ब्रिटिश निर्माता , निर्देशक सर रिचर्ड ऐटेन्बरो , इस प्रदर्शनी के बारे में, आप को काफी बातें , बतालातें हैं ।

अफ्रीका, एशिया तथा अमरीकी भूखंडों में पाये जाने वाले नये जीवों को सचित्र

क्रमबध्ध संजोने का महत्त्वपूर्ण कार्य ५ कालाकारों ने बखूबी किया है -

जिनके नाम हैं -

Leonardo da Vinci,

the collector Cassiano dal Pozzo,

Wenceslaus Hollar,

Alexander Marshal,

Maria Sibylla Merian एंड

Mark Catesby

http://www.royalcollection.org.uk/microsites/amazingrarethings/discovery.asp

http://www.royalcollection.org.uk/default.asp?action=article&ID=३२२

बकीन्घम पेलेस http://www।royalcollection.org.uk/default.asp?action=article&ID=30

Monday, April 14, 2008

" न हम होगे " न तुम होगे "

ROME (AFP) - A pair of 6,000-year-old skeletons found by Italian archaeologists in a dying embrace will not be separated, team leader Elena Menotti has told AFP."We will do everything possible to preserve the bodies in the exact position of their grave,""There's no question of breaking their embrace."The skeletons were found last week during digging in an industrial zone near the northern city of Mantua and the find will be displayed at the city's archaeological museum.While scientists are still puzzling over how the pair died and why they were buried in this way, Menotti said their embrace was "testimony to a great feeling of love that has transcended time."For regardless of why they were buried in each other's arms, there had to have been feelings between them."

एक समाचार ने 'मुहब्बत " लफ्ज़ पर फिर एक बार सारा ध्यान केँद्रीत कर दीया !

-क्या कुछ नहीँ लिखा या कहा गया है इस एक शब्द पर ! अरे ॥ ढाई आखर है ना "प्रेम " का ! "प्यार" का भी एक से ज्यादा ही पडता है गिनती मेँ हिसाब-पर " इश्क " किसी हिसाब से बँधा है कहीँ ?

ये सुना होगा , कि," हीज़ाबे मुहोब्बत, हम उसको थे कहते, ना वो बोलते थे , न हम बोलते थे "या फिर ये कि," मोहोब्बत की किस्मत बनाने से पहले, ज़माने के मालिक, तू रोया तो होगा "उफ्फ~क्या और कहेँ ????कल एक बेशकिमती तोहफा डाक से आया ! श्रीमान राधेक़ाँत दवे जी ने व श्रीमती कुसुम दवे जी ने एक सँगीत ओडीयो टेप भेजी

नाम था " हुस्न -ए - जाँ : ~

सँगीत निर्देशक हैँ मुज़फ्फर अली -गीतोँ को गा रहीँ थीँ छाया गाँगुली -१) " यारो मुझे मुआफ रखो" ( मीर )

२) खूनेज करिश्मा नाज़ सितम ( नज़ीर अकबराबादी )

३) जब फागुन रँग ( नज़ीर)

४) पिया ब्याज प्याला ( कुतुब शाह) *( छाया व इकबाल सिद्दीकी )

५) निठुरे निठुरे॥अँगना बुहारुँ पहन के कँगना * (ज़रीना बेगम )और अँत का गीत था

६) न तुम होँगेँ न हम होँगेँ ॥" ( नज़ीर) * ( रोली सरन और नवेद सिद्दीकी )

अँतिम गीत, बडी, सहजता से आरँभ हुआ ~

~शब्द / अलफाज़् यूँ घुल रहे थे मानोँ, ज़िन्दगी की हुबहु तस्वीर उभर रही हो !~माशूका कह रही थी कि, ' आज हँस कर बोसा ले लो, प्यार से गले मिलो, चुहल करने के लिये, लतीफे सुनने सुनाने के लिये, आज का वक्त है, तो,। ॥मुहब्बत से पेश आओ हम से आकर मिलो, फिर न जाने, क्या हो ?-

" न तुम होगे न हम होगे "

गीत कुछ इस तरह से दीलोदीमाग मेँ बसने लगा कि पता भी न चला कब आँखेँ नम हुईँ , न जाने कब दबी सिसकीयाँ रह रह कर, मन मसोस कर, गहरे, कहीँ धधकते ज्वालामुखी की तरह, रुह को झकझोर कर सँगीत के साथ साथ, एकाकार हो गईँ !

ये नज़ीर का कलाम था कि, सब कुछ ले डूबा !

मेरे जीवन के दाम्पत्य के क्षण, ३३ सालोँ का लँबा सफर, उससे पहले, १६ /१७ साल की आयु मेँ , अपने जीवन साथी से , पहली बार मिलना, उससे पहले, एक ही गुजराती स्कूल मेँ कक्षा १ से , उन्हेँ देखना, साथ साथ, बडे होना, बचपन की देहलीज को पार कर, वयस्क होना, फिर, परिवार के सभी से जान पहचान , एक दूसरे के घर पर , भोजन करना, गप्पे लडाना, शादी ब्याह, २ सँतानोँ के अभिभावक बनना ~पुत्री सौ. सिँदुर का ब्याह, फिर सोपान की मँगेतर मोनिका से मिलना और उनकी शादी .....

~ ज़िँदगी, पलक झपकाती, किसी, तिलस्मी दुनिया से उतरी 'नाज़्नीन परी सी , मुस्कुराती, शरारत से, आँखेँ मुँद कर, हल्के से,माथा चूमकर, कह रही है," बता मैँ कौन हूँ ?" -

- इतना ही दील से निकला,

" तू मेरी सहेली है....रुह की परछाईँ है " -

-- लावण्या





Tuesday, April 1, 2008

माँ



माँ
यह दोनो कविता मुझे प्रिय है ! " माँ "
की ममतामयी लहर जब कविता के रूप मे बहती है तब आधुनिक काल हो या प्राचीन हिन्दी भाषा की अमृत गँगा , यूँ ही , प्रवाहित होती हुई , जन साधारण के ह्र्दय , को भावना के आवेग , मे बहा ले जाती है.
सूरदास जी कान्हा कि अद्भूत लीला का बखान कर रहे है --

http://www.anubhuti-hindi.org/1purane_ank/2004/07_01_04.htmlhttp://www.अनुभूति

क़ान्हा य़शोदा मैया से शिकायात करते है अपने बडे भैया की, शरारत की !
" मैया मोही दाऊ बहुत खिजायो ...
ग़ोरे नन्द जसोदा गोरी ,

तुम कत श्यामल गात , चुटकी दै दै हसत बाल सब सीख देत बलबीर !"
नयनो के सामने पूरा दृश्य उजागर है।

शरारती बालाक की मनोहारी छवि, ममता से लिपटी बोली, मधुर मधुर नुपूर की छनकती किँकिणी समान प्रतीत होती है।

मोहन के मुख को गुस्से से लाल हुआ देख माँ यशुमती , प्रेम - वश रीझ उठतीँ हैँ -- कहती है ,
" सुनहु कान्हा बलभद्र , जनमत ही को धूर्त ,

सुर श्याम मोहे गो - धन कि सौ , हौ माता तू , पुत ! "
अब जब् माँ ने कह दिया कि ,

" मै और तुम एक दूजे के हैँ .. तुम , मेरे बेटे हो ! अपने बदमाश बडे भाई कि बात ना सुनो " एक माँ ही ये ममता समझ सकती है।

मुझे इस छवि ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है।

प्राचीन हिन्दी भाषा, यही से , चलकर आज २१ वी सदी तक आ गई है।

परन्तु मा के प्रति प्रेम - वात्स्ल्य आज भी कुछ ऐसी ही रीत से कविता या दोहो मे कहा गया --

सरदार कल्याण सिन्घ के दोहे भी मर्म कि बात कह रहे है ---

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/mamtamayi/kalyankedohe.हतं

" बच्चे से पुछो जरा , सबसे अचछा कौन ?

उनगली उठे उधर जिधर , माँ , बैठी हो मौन !"
और उस से भी बडी बात इस राज कि बात बताते हुए लिखते ये कहना कि ---
" करना मा को खुश अगर , कहते लोग तमाम ,

रोशनआ अपने काम से, करो पिता का नाम !"
कितनी बडी सीख दे दी है यहा कल्याण जी ने --

- भारत की हर माँ , यही चाहती आयी है कि पाल पोस कर बालक को इस लायक बना दे कि वो बुलन्दीयो को छु ले - ऐसे काम करे , कि जिससे माँ के सुहाग कि लाली सूरज की रोशनी सी जगमागने लगे --

- सपूत हो तब माँ छाया बनी रहती है , दीपक कि बाती बन कर जलती खपती रहती है , अपनी ग्रुहस्थी मे व्यस्त रहती है, किसी अपेक्षा के बिना प्रयास करती है कि, वो आगामी पीढी को सक्षम बनाये --

आज हम जो यहा तक आये है उस के पीछे ऐसी , भारत की कितनी माताओ का परिश्रम , नीव मे पडे फौलाद और इस्पात कि सद्रश्य है।

इसलिये मुझे नयी प्रणाली , नयी पीढी के लिये लिखे गये ये दोहे बहुत प्रभावित कर गये ! है दोहे छोटे छोटे मगर बात समझो तो बडी बात कहते है -

आशा है कि आप सभी को इन से प्रेरणा व सम्बल मिलेगा जैसा मुझ को प्राप्त हुआ है.
भविष्य से आशा और भारतीया वांग्मय से, ममता का अमर - सन्देशा !
सूरदास जी व सरदार कल्याण सिन्घजी दोनो ही हमारे लिये सेतु रच गये है ....
. रास्ता आगे हमे चलते चलते पार करना है !
ईति शुभम

अनुभूति से :~~

http://www.anubhuti-hindi.org/1purane_ank/2004/07_01_04.htmlhttp://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/mamtamayi/kalyankedohe.htm

- लावण्या