Monday, September 27, 2010

विश्वव्यापी चक्रवात के मध्य में , समन्वय और सुख शांति की खोज !

  • "ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम
    पूर्णात पूर्णमुदच्यते ,
    पूर्णस्य पूर्णमादाय
    पूर्णमेवावशिष्यते ."

    विश्वव्यापी चक्रवात के मध्य में , समन्वय और सुख शांति की खोज !
२१ वीं सदी के आरम्भ का काल है और आम
इंसान
का जीवन आजकल तेज रफ़्तार से भागा जा रहा है जहां नित नये अनुभव होते हैं और तकनीकी माध्यमों के जरिए या कहें विश्वव्यापी वेब के जरिए , अब पूरा विश्व मानों संचार - सूचना की हलचल से आंदोलित हुआ, करीब आ गया है और सूचना, समाचार और अभिगम ये सारे
आज बड़ी तेजी से घूम रहे हैं .. ये एक आम अनुभव हो चला है .
व्यक्ति , समाज , विश्व , समाचार, विचार -- > हर तरफ बस, तेजी है ..
चक्रवात से इस उफान के मध्य , इस मंथन के आवेग के मध्य में , व्यक्ति ,
अपनी तटस्थता साधे रखना चाहता है ... ये भी एक विरोधाभासी सत्य है !
भारतीय मन , सदा, वि
रो
धाभासों के मध्य भी , द्वंद्व + उद्वेलन के रहते ,
समन्वय और सुख शांति की खोज में संलग्न रहा है ...
भारत का सनातन धर्म , हमारा सम्पूर्ण वांग्मय, हमारी विचारधारा ,
सदा ही अंतर्मुखी रही है ...
इसे कई विभूतियों ने बाह्य से आंतरिक की ओर चलनेवाली इस यात्रा को , आत्मा से परमात्मा की ओर आमुख , करवाती प्रक्रिया को , हमारी इस मनोदशा को, कई प्रबुध्ध, चैतन्य आन्दोलनों के स्वरों ने , सदियों से सहेज रखा है और संवारा है ....
हमारी इस अंतर्मुखी यात्रा को , मार्गदर्शन देते हुए गुरु परंपरा ने इस आत्मिक आन्दोलनों को बढ़ावा दिया है . प्राचीन ऋषि मुनि से लेकर, भारत के संत महात्मा तथा संत - कवि, सभी ने अपना अपना अभूतपूर्व योगदान इस अदभुत यात्रा में दिया है और इस तथ्य का स्वयं इतिहास साक्षी रहा है ...
भारतीय स्वतंत्रता के साथ और उसके पूर्व भी भारतीय संत परम्परा के संवाहक ज्योति पुरुषों ने भारत से दूर यात्राएं की थीं जिनमे प्रमुख नाम याद आ रहा है स्वामी विवेकानंद जी का !
स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो नगर में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासम्मेलन में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था । भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानंद की वक्तृता के कारण ही पँहुचा। वे श्री रामकृष्ण परमहंस जी के सुयोग्य शिष्य थे। उन्होंने अपने गुरू श्री रामकृष्ण परमहंस के नाम से रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। विवेकानन्द में, अपने मत से पूरे विश्व को हिला देने की शक्ति थी । उन्होंने दुनिया भर में सनातन धर्म का डंका बजाया।
जिनके शिकागो अन्तराष्ट्रीय धार्मिक सभा में दीये भाषण ने अमरीका के पढ़े लिखे व्यक्तियों को चौंका कर , भारतीय धर्म के प्रति देखने को बाध्य कर दिया था .
कुछ ऐसे भी विरले व्यक्ति हुए हैं जो पले बड़े विदेश में परंतु जैसे ही भारतीय भूमि पर उनके कदम पड़े , भारतीय माटी के चमत्कार ने , उनको पूर्ण चैतन्य से जोड़ कर ऊर्ध्वगामी , उन्नति के पथ पर ,चलने का प्रसाद दिया
ऐसे ही अनुभव रहे श्रीअरविन्द के !
श्री अरविंदो का जन्म 15 अगस्त 1872 को कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता के.ड़ी जी नास्तिक थे और चाहते थे कि उनका बेटा पाश्च्यात संसकृति में पले बढ़े। इसलिए उन्होंने सात वर्ष की आयु में अरबिंदो को इंग्लैंड भेज दिया। अरबिंदो ने इंग्लैंड में सफलता पूर्वक अपनी शिक्षा पूरी की और अपने पिता के कहने पर वहाँ होने वाली भार्तीय सिविल सेवा की परीक्षा मे हिस्सा लिया लेकिन ये घुड़सवारी परीक्षण में असफल हो गए और 1893 में वापिस भारत आ गए। यहां आ कर उन्होंने बड़ौदा स्टेट सर्विस ज्वाइन कर ली, जहां ये अगले 15 वषों तक विभिन्न पदों पर कार्य करते रहे। इस दौरान इनमे भार्तीय संसकृति, राष्ट्रवाद और योग के प्रति प्यार व सम्मान का भाव जागृत हुआ। इन्होंने कुछ उपनिषदों का अनुवाद किया तथा गीता व दो अन्य महाकाव्य कालीदास और भवभूति पर भी कार्य किया। 1906 में ये कलकत्ता से बढ़ौदा आ गए और यहां नैशनल कॉलेज के प्रधानाचार्य बन गए। ये लगातार योग व ध्यान का अभ्यास करते रहे।
इनको क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण एक साल की जेल हो गई। जेल के दौरान ही इन्होंने भगवान कृष्ण की व्यापक अदृश्य शक्ति को अनुभव किया। जेल से रिहा होने के बाद ये पांडेचेरी चले गए जहां इन्होंने अपने जीवन का ज़्यादातर समय विभिन्न तरह की साधना के विस्तार में लगाया। इन्होंने कई किताबे लिखीं। जीवन के अंतिम समय में मां ने इनकी बहुत सहायता की जो कि मूल रूप से फ्रांस की थीं। 5 दिसंबर 1950 को अरबिंदो इस संसार को छोड़ कर चले गए।
उनके बाद आये स्वामी भक्तिवेदांत - (1896 – 1977)
जिन्होंने श्री कृष्ण संकीर्तन की अलख अमरीका में जगाई और " इस्कोन " नामक बहुत बड़ी संस्था की नींव रखी जिसने बड़े ही भव्य मंदिर , दुनियाभर में बनाए हैं
रजनीश भी अमरीका आये.............
Osho on Consciousness and Energy
और उनके आश्रम में फैले व्याभिचार जैसे नशीले पदार्थों का सेवन मुक्त यौन आचरण वगैरह बातों ने उन्हें मीडीया की सुर्ख़ियों के केंद्र में रखा -
तद्पश्चात आये - योगानंद जी !
उन के महत्वपूर्ण कार्य ने , क्रिया - योग प्रणाली को अमरीकी प्रजा में स्थापित किया
सन १८९३, ५ जनवरी गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में मुकुंद लाल घोष के नाम से जन्मे बालक ने आद्यात्मिक प्रगति के सोपान सरलता व तीव्र गति से पार किये १७ वर्ष की युवावस्था में श्री श्री युक्तेश्वर्गिरी के चरणों में शरण लेते ही , लहरी महाशय की प्रणाली के प्रखर आचार्य गुरु युक्तेश्वर जी की कृपा से महाअवतार बाबाजी
जिन्होंने " क्रिया योग पध्धति का सूत्रपात किया और जगत के अनेक व्यक्ति को मुक्ति मार्ग की ओर अग्रसर होने का प्रसाद दिया उन्ही यशस्वी परम्परा के श्री योगानंद संवाहक बने
जो आज भी असंख्य देसी एवं परदेसी शिष्यों द्वारा , एक व्यवस्थित संस्था के रूप में चल रही सफल संस्था है --

महर्षि महेश योगी

महर्षि महेश योगी

महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गाँव में हुआ था। [१] उनका मूल नाम महेश प्रसाद वर्मा था। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की उपाधि अर्जित की। उन्होने तेरह वर्ष तक ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के सानिध्य में शिक्षा ग्रहण की। महर्षि महेश योगी ने शंकराचार्य की मौजूदगी में रामेश्वरम में 10 हजार बाल ब्रह्मचारियों को आध्यात्मिक योग और साधना की दीक्षा दी। हिमालय क्षेत्र में दो वर्ष का मौन व्रत करने के बाद सन् 1955 में उन्होने टीएम तकनीक की शिक्षा देना आरम्भ की। सन् 1957 में उनने टीएम आन्दोलन आरम्भ किया और इसके लिये विश्व के विभिन्न भागों का भ्रमण किया। महर्षि महेश योगी द्वारा चलाया गए आंदोलन ने उस समय जोर पकड़ा जब रॉक ग्रुप 'बीटल्स' ने 1968 में उनके आश्रम का दौरा किया। इसके बाद गुरुजी का ट्रेसडेंशल मेडिटेशन पूरी पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय हुआ। [२] उनके शिष्यों में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी से लेकर आध्यात्मिक गुरू दीपक चोपड़ा तक शामिल रहे।[

स्वामी मुक्तानंद जी , यू एस . ए . माने उत्तर अमरीका में सन १९७० में आये और सिद्ध योग धाम को प्रतिष्ठित किया सन १९७६ तक , सिद्ध योग की अस्सी = ८० शाखाएं ध्यान व योग सीखातीं हुईं जम गयीं थीं और ५ आश्रम भी बन गये थे जहां हजारों की संख्या में अमरीकी मेंबर बने थे --
सन १९७४ से १९७६ तक सिध्ध योग ध्यान संस्था एक फाऊंडेशन का स्वरूप ले चुकी थी --
आज मुक्तानंद जी की पट्ट शिष्या गुरुमायी चिद्विलासनान्द जो भारत में जन्मी महिला हैं
वही दक्षिण फाल्स बर्ग , न्यू योर्क प्रांत में सिद्ध आश्रम का संचालन करतीं हैं

आज आपको स्वामी मुक्तानंद जी के समीप ले चलते हुए, हर्ष हो रहा है
शायद, आप ने इनका नाम , आज से पहले भी सुन रखा हो !
आपको परम आदरणीय गुरु जी के शिष्य बनाने का मेरा कोइ आशय नहीं है ...
महज , इन के बारे में , कुछ पल अपने मन की पूर्व अवधारणाओं को एक ओर हटाकर ,
इन के जीवन पर द्रष्टि डालें यही मेरा , विनम्र अनुरोध है ...-
[ आजकल कई धर्गुरुओं के प्रति अंध श्रध्धा व आश्रम में पाखण्ड के चर्चे भी मीडीया में अकसर चर्चा में रहते हैं ...
हरेक व्यक्ति अपनी सोच समझ के अनुसार ही अपना जीवन जीता है
अत: किसी को धर्मांध , धर्मभीरु या पोंगापंथी बनाना ऐसा कोइ आशय इस लेख का नहीं है ]
तो आईये और मिलिए बाबा नित्यानंद जी से ..... वे , मुक्तानंद जी के गुरु थे ....
अगर आप इस गुरु परम्परा के बारे में सुनना चाहें तो आगे पढीये ..
चित्र में , हैं स्वामी चिन्मयानन्द जी , जिनके अनेकों आश्रम तथा संस्थाएं आज जगत के हर देश में बसी हुई हैं ,वे यहां भक्ति भाव से बड़े बाबा , परमहंस नित्यानंद जी के दर्शन करते हुए ,बाबा के चरण छूते हुए दीखलाई दे रहे हैं '.
महायोगी नित्यानंद जी पर अधिक जानकारी इस लिंक पर प्राप्त करीए
परम आदरणीय गुरु श्री नित्यानंद जी ने गणेशपुरी आश्रम में
अगस्त ८ , १९६१ के दिन , महासमाधि ली थी और उनका सन्देश है कि ,
निर्मल भक्ति ही ईश्वर प्राप्ति का सबसे सरल रास्ता है ........
चित्र में पवित्र शिव लिंग भीमेश्वर मंदिर , गणेशपुरी आश्रम मुम्बई के समीप

बाबा नित्यानंद जी की वाणी :

" ना कस्ते विद्यते देवो ना पाषाणे ना कर्दमे
भावेसू वर्तते देवास -तस्माद -भावं ना संत्यजेत "
ईश्वर नाही पत्थरों में हैं ना ही मिट्टी में ..ना काष्ट में ..
ईश्वर तो भक्त के भक्ति भाव में बसते हैं
इस कारण , भक्ति को अपनाओ अपने ईश्वर के प्रति श्रध्धा और भक्ति ,
विश्वास को कभी त्यागो नहीं
प्रेम, भक्ति और दृढ आस्था अपने ईष्ट के प्रति तथा गुरु के लिए ही अनेक आद्यात्मिक जागृति के सोपान पार करवा कर हर इंसान में बसी आत्म शक्ति को चैतन्य से परब्रह्म की ओर अग्रसर करने में सहायक होती है ..
भक्ति और भाव , श्रध्धा और विश्वास ही गूढ़ और अद्रश्य परमतत्त्व को उजागर करती है और तब ईश्वर स्वयं भक्त के समीप आ पहुँचते हैं और मुक्ति का मार्ग बस, उसी के आगेहै परम आदरणीय महायोगी नित्यानंद जी के एक शिष्य मुक्तानंद जी जग प्रसिध्ध हुए हैं
और वे अपने परम श्रध्धेय गुरु भगवान् नित्यानंद जी के लिए कहा करते थे कि,
" गुरुदेव, जन्म सिद्ध विभूति हैं ...."
[ photo ]


स्वामी मुक्तानंद जी
मेरा परम सौभाग्य रहा है कि मैंने मुक्तानंद जी के दर्शन कीये हैं - स्वामी मुक्तानंद जी के अमरीका प्रवास के बाद , बंबई हवाई स्थल पर स्वागत हुआ था अपार वदेशी शिष्यों तथा कई भारतीय भक्तों ने बाबा की वापसी को उत्सव की तरह मनाया था -बाबा स्वयं , एक ऊंचे आसन से उतरकर , समुदाय में खड़े लोगों के बीच विचरण करने लगे थे - मेरे नजदीक से जब् वे गुजरे तब उन्होंने हलके से माथे पर हाथ रखते हुए कहा, ' माँ, आ गया तुम ! " और आगे बढ़ गये थे ..पर मेरा अपना अनुभव है कि उस सहज स्पर्श के बाद ,कई पलों तक मेरा सर चकराने लगा था और मैं एक स्तम्भ को पकड़ कर ही संतुलन बनाए , वहां स्थिर खडी हो पायी थी . . ना मैं पने आपको कोइ साधिका समझती हूँ ना मैं किसी योग - प्रणाली से सीधा सम्बन्ध रखती हूँ परंतु भारतीय योग परम्परा तथा नाथ व सिध्ध प्रथा के सभी गुरु व उनसे सम्बंधित विभूतियाँ, भारत के अन्य सभी संत - कवि जैसे ज्ञानेश्वर महाराज, नरसिंह मेहता, तुकाराम, नामदेव, संत मीरां ,सूरदास, नानक देव, कबीर , बाबा तुलसीदास , रैदास , रमण महर्षि परमहंस रामकृष्ण तथा अरविंदो से लेकर प्राचीन आदिकवि वाल्मीकि व शुकदेव व्यास जैसे सभी के प्रति, मेरे ह्रदय में अपार श्रध्धा व सन्मान की भावना है ....
मेरी श्रध्धा और मेरा विश्वास ईश्वर के प्रति अडीग व अचल है और इस सरल भक्ति भाव के बीज मेरे पिता स्व. पण्डित नरेद्र शर्मा के समस्त जीवन को देखने से , उनकी बातों को यथामति समझने के प्रयासों से तथा उनके बतलाये हुए रास्तों पर यथासंभव चलने के बाद , परिमार्जित व प्रबल होती गयी मेरी भावना के कारण हीआज मैं जिस मनोभूमि में हूँ, वहां ईश्वर कृपा ईश्वर भक्ति मुझे हर सुगम या कठिन परिस्थिती के मध्य भी संबल प्रदान करती है
गुरुमायी चिद्विलासनान्द

अन्य गुरु जैसे मोरारी बापू स्वामी श्री रामदेव जी

श्री श्री रविशंकर जी दलाई लामा तथा दीपक चोपरा भी सनातन धर्म के आख्याता व गुरु के रूप में पूजनीय व प्रसिध्धहैं
मोरारी बापू

सद्गुरू श्री श्री रविशंकर जी
स्वामी रामदेव
दलाई लामा


- लावण्या

Saturday, September 11, 2010

सूनी साँझ ...कुछ यूँ बिताई , हमने ...



सूनी साँझ ...कुछ यूँ बिताई , हमने ......
[ Flashback ] 
" गौरी कुण्ड की कुछ मिटटी लेकर , हाथों में ,
एक अकेली साँझ को , सोच रहीं माँ पारबती ,
कब आयेंगे घर , मेरे , शिव ~ सुंदर ?
केशर मिश्रित उबटन लेकर हाथों में
तब खूब उसे मल - मल कर उतारा
फिर अपने अंग से खेल खेल में ...
बना दी आकृति एक बालक की और हलके से ,
फूंक दिए प्राण अपनी सांसों के और कहा ,
" देखो यह मेरा पुत्र विनायक है ! "
सूनी साँझ कहाँ फिर रहती सूनी सूनी ?
हुआ आगमन , श्री गणेश का जग में !
पारबती के प्यारे पुत्र तब आये जग में
शिवजी लौट रहे थे , छोड़ कैलाश और तपस्या
द्वार के पहरेदार बन खड़े हो गये बाल गणेश !
माता के बन गये वह रक्षक ! "

" फिर आगे क्या हुआ माँ ? कहो न ...".
पूछ रही थी बिटिया , मेरी , मुझसे !
एक सूनी साँझ के समय , जब्
वह सुन रही थी यह कथा , मुझसे
है कथा पुरानी और नयी कन्या है वो
और मैं, कर रही थी उस को , तैयार !
रात्रि - भोज के पहले , ये भी तो करना था ,
बस , अब , आते ही होंगें , आमंत्रित मेहमान ! 
[- लावण्या ]

ई - मेल, ब्लॉग , फेस बुक, ट्वीटर ये सारे विश्व के हर देश में बसे लोग , संपर्क व सम्प्रेषण के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। स्वर साम्राज्ञी सुश्री लतादीदीजी भी आजकल अपनी बात कहने लगीं हैं उन्होंने गणेश चतुर्थी पर ये सन्देश प्रसारित किया है आप भी पढीये 
" नमस्कार . आज गणेश चतुर्थी है। आप सभी को इस पवित्र गणपति त्यौहार की बहुत बहुत शुभकामनाएं
अभी -अभी, हर साल की तरह , हमारे घर श्री गणेशजी पधारे हैं
अब १० दिन तक सारा घर और वातावरण ख़ुशी का होगा आनंदमय और प्रसन्न होगा। हमारे घर यह परंपरा बहुत पुरानी है और इसे मेरे बाबा , मास्टर दीनानाथजी ने शुरू किया है और हम इसे आगे चला रहे हैं तब से हमने गणेशजी को घर लाना शुरू किया है
मेरे बाबा एक देश भक्त थे और उन पर लोकमान्य तिलकजी का काफी प्रभाव था , इसलिएबाबा ने घर पे गणेश उत्सव शुरू किया। मैं , आज , आपको मेरी गई हुई गणपति की पारंपारीक आरती , जो मराठी में है ,
सुनाती हूँ और इस का विडियो भी आप देख सकते हैं

Wednesday, September 1, 2010

स्त्री सशक्तिकरण और द ग्लास सीलिंग’ = "शीशे की छत " [ कोर्पोरेट कल्चर ]

"शीशे की छत ? " ये क्या है जी ।।।?

हाँ , हाँ शायद आपके ज़हन में भी शायद, फ़िल्म ‘वक़्त’ का मशहूर डायलोग, जिसे कलाकार राजकुमार साहब ने बड़ी अदा से कहा था -

' चिनॉय सेठ, जिनके मकान शीशे के होते हैं, वो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते ! " कौंध गया हो ! अजी, याद आया क्या ?

अजी, शीशे के मकान हम ने भी बहुत देखे हैं पर आज के कोर्पोरेट व्यावसायिक जग में 'शीशे की छत' शब्द एक प्रसिद्ध मुहावरा बना हुआ है जिसे अँगरेज़ी में, 'glass ceiling ' कहते हैं । व्यापार, व्यवसाय कोर्पोरेशन में, अमेरीका या इंग्लैंड जैसे पाश्चात्य देश हों या एशिया के जापान या चीन या हमारा भारत भी, अकसर बड़ी-बड़ी इंटरनेशनल कम्पनियों के सर्वोच्च स्थान पर, हमेशा पुरुषों को पदासीन हुआ ही हम देखते हैं । महिलाओं या स्त्रियों को ऐसी सब से ऊँची और शक्तिशाली कुर्सी पर विराजमान हुआ हम कम ही देखते हैं ।

तो ये हुआ एक तरह से पारदर्शी छत का होना जिसे महिलाएँ बहुत कम तोड़ पायी हैं । भले ही किसी महिला में अन्य पुरुषों की तरह सारी विशेषताएँ, सारी कार्य कुशलता, कार्य दक्षता हो, पर कंपनी के सर्विच्च स्थान सीईओ के पद पर हमेशा पुरुषों का चुनाव करके उन्हें उस पद पर आसीन किया जाता है । ये एक तरह से सेक्सीज़म या रेसीज़म का प्रारूप है । ये एक तरह से ऊपरी चढ़ाई को रोकने का कृत्रिम प्रयास है, जो पारदर्शी नहीं है चूँकि ऐसी कोई प्रणाली या अधिनियम, कंपनी में कहीं लिखित रूप से मौज़ूद नहीं होते । एक व्यक्ति की प्रगति में बाह्य रूप से, शिक्षा, या किसी कार्य के पूर्व अनुभव की कमी होना जैसे बाह्य कारण होते हैं , जो प्रगति या आपकी नौकरी में आगे बढ़ने में रुकावट या अवरोध उत्पन्न कर सकते हैं ।

अमरीकी गणतंत्र ने सन 1964 में संविधान पारित किया जिसके तहत सामाजिक स्वतंत्रता से सम्बंधित क़ानूनन तौर पर, व्यक्ति का स्त्री या पुरुष होना, व्यक्ति की कार्य क्षमता या प्रगति में आड़े आना निरापद होगा । यह तथ्य ठोस रूप से सामने रखा गया था, जिससे प्रयाप्त कार्य कुशलता तथा सही कार्य प्रणाली के अनुभवों के बाद महिलाएँ भी सही प्रगति के पथ पर आगे बढ़ पायें और सर्वोच्च स्थान पर अपना पद ग्रहण कर पाएँ। इस क़ानून के तहत यही प्रयास किया गया था, उसी पर भार रखा गया था ।

अमरीकी स्टोक कम्पनी सम्बंधित पत्रिका 'वोल स्ट्रीट जर्नल ' में , सन 1986 के मार्च 24 तारीख के अंक में क़ेरोल हाय्मोवीट्ज़ [ Carol Himowitz ] और टीमोथी स्तेल्हार्द्ज़ [ Timothee Steilhardz ] ने सबसे पहली बार एक नया तथा पहले कभी जिसे प्रयोग ना किया गया हो ऐसा शब्द

’द ग्लास सीलिंग’ अपने आलेख में प्रस्तुत करते हुए स्त्रियों की प्रगति में अदृश्य व पारदर्शक व्यवधान होने की बात को उजागर करते हुए यह कोर्पोरेशन में होनेवाले वाकये को खुलकर समझाते हुए ये नया नाम दिया था जिसे मीडिया तथा जनता ने तुरंत अपना लिया और आम भाषा में ' ग्लास सीलिंग ' मुहावरा या शब्द , स्त्री सशक्तिकरण के मुद्दों के साथ सदा के लिए जुड़ गया ।

फिर ग्लास सीलिंग मुहावरे के मशहूर हो जाने पर इस पर संशोधन भी हुए । संशोधनों के बाद यह भी पता चला है कि सन 1984 में 'एड्वीक' पत्रिका के एक आलेख में, गे ब्र्यायनट ने सबसे प्रथम ग्लास सीलिंग मुहावरे का प्रयोग किया था । अब तो खोज विस्तृत होने लगी और पता चला कि, 1979 में ह्यूलीट पेकार्ड कंपनी में कार्यरत केथरिन लाव्रेंस और मेरीएन श्र्च्रेइबेर नामक दो महिलाओं ने इसी मुहावरे को समझाते हुए कहा था कि, बाहरी तौर पर महिलाओं की प्रगति भले सुचारू रूप से चलती हुई दिखलाई दे परंतु इस प्रगति के अवरोध में अदृश्य, पारदर्शक अवरोध खड़े किये जाते हैं, जो महिला कर्मचारी के प्रगति, प्रमोशन और सर्वोच्च पद पर आसीन होने के मार्ग में बाधाएँ व रुकावट उत्पन्न करते हुए हर स्थान पर हर प्रगति के रास्तों पर अवरोध उत्पन्न करने के लिए रखे जाते हैं ।

ग्लास सीलिंग से और भी कई नाम उत्पन्न हुए हैं --

  1. बैमबू सीलिंग - एशियन-अमेरिकेन महिलाओं के सर्वोच्च स्थान ग्रहण करने में किये गये अवरोधों के लिए प्रयुक्त मुहावरा बन गया है जिसके तहत मैनेजर या एक्स्सीक्युट पोजीशन के लिए अकसर ये बहाना बनाया जाता है कि इनमें लीडर बनने की क्षमता नहीं है या यह भी मिथ्या कारण बतलाया जाता है कि, इनमे आपसी बातचीत माने अच्छे कम्यूनीकेशन के गुण नहीं हैं । भले ही एशियन कर्मचारी महिलाओं में अन्य सारे गुण मौजूद हों जो उन्हें टॉप पोजीशन पर ले जाने में सहायक हों - तब ये उदाहरण देते हुए बैमबू सीलिंग शब्द प्रयुक्त किया जाता है-
  2. ग्लास एलेवेटर - ( या ग्लास एस्कलेटर ) जब पुरुष कर्मचारियों को प्रगति के सोपान आसानी से पार करने में कोर्पोरेशन कल्चर में हर सुविधा और गति प्रदान कर सहायता मिलती देखी जाती है और मेनेजर की पोस्ट पर पुरुषों को बैठाल दिया जाता हो ख़ास तौर से उन कार्य क्षेत्रों में, जहाँ महिला कार्यकर्ताओं का वर्चस्व और बहुसंख्या में उपस्थित होना आम बात हो । उदाहरणार्थ- नर्सिंग ।
  3. ग्लास क्लिफ्फ़ - ऐसी जगह पर आपको पदासीन किया जाए जहाँ आपके उस क्षेत्र में असफल होने के चांस ज़्य़ादादा हैं और कार्य भार अत्यधिक और मुश्किल किस्म का हो ऐसी कंपनी की चाल को ग्लास क्लिफ्फ़ मुहावरे का नाम दिया जाता है ।
  4. सेल्यूलोईड सीलिंग - होलीवूड चलचित्र निर्माण की अमरीकी जग विख्यात संस्था में भी हर सर्वोच्च संस्था या कार्यक्षेत्र में आप पुरुषों को ही पदासीन देखते हैं इस सत्य को लोज़ेन नामक व्यक्ति ने सन 2002 में सेल्यूलोईड सीलिंग के नाम से प्रचलित करते हुए यह नाम दिया था ।

अमरीका में ऐसे एकल परिवारों की संख्या में वृद्धि हो रही है जहाँ परिवार का ' मुखिया' = माने हेड ऑफ़ द फ़ेमेली ' एक स्त्री पात्र है सन 1970 से ऐसे परिवारों की संख्या में निरंतर बढ़ावा हो रहा है और ऐसे परिवार अमरीका में बड़ी तादाद में हैं परंतु वे अकसर ग़रीबी की रेखा के नीचे रहते हैं -

ज़्य़ादादातर, ऐसे स्त्री मुखिया वाले एकल परिवार की महिलाएँ तलाकशुदा होतीं हैं या इनमें से कई बिन ब्याही माएँ हैं । सन` 2000 की जन गणना के आँकड़ों के अनुसार 11 प्रतिशत परिवार अमरीका में ग़रीबी की हालत में जी रहे हैं । जबकि 28 प्रतिशत एकल मुखिया स्त्री वाले परिवार ग़रीबी की हालत में जीने को बाध्य हैं । बिनब्याही माँ अकसर कच्ची या कम उम्र में माता बनी हैं । पढाई शिक्षा सिर्फ़ स्कूल तक सीमित होते ना उनके पास कोई डिग्री है ना कोइ ऐसा हुनर है जिस के तहत उन्हें अच्छा रोज़गार प्राप्त हो सके इस कारण ऐसी महिलाओं को नौकरी या पेशा भी ऐसा ही मिल पाता है जो उन्हें कम आय ही प्राप्त करवाता है । बच्चों की परवरिश के लिए भगौड़े पति या जिनके साथ उनका शारीरिक सम्बन्ध रहा वे व्यक्ति बच्चे की आवश्यकता पूर्ति के लिए पैसा नहीं देते या तो बहुत कम हिस्सा अपनी सीमित आय में से दे पाते हैं । बच्चे के लिए प्राप्य ऐसी धनराशि को चाईल्ड सपोर्ट कहते हैं । अमेरीका में

' तलाक' ही धन की समस्या या इकॉनोमिक दीवालियेपन का एक प्रमुख कारण है ।

आईये आगे हम ऐसी महिला का उदाहरण देखते चलें । जिन्होंने ना ही ग्लास या सीलिंग शीशे की छत को तोड़ दिया बल्कि शानदार तरीक़े से कोर्पोरेट जगत में अपनी साख भी ऊँची की है । सफलतम महिलाओं की ऐसी सूची में, प्रमुख नाम इन्द्रा नूयी का है ये इन्द्रा नूयी जी भारतीय मूल की महिला हैं और अन्तरराष्ट्रीय पेप्सीको कंपनी की सर्वोच्च पद पर आसीन हैं माने सीईओ हैं ।

यह बेहतरीन कार्य श्रीमती इन्द्रा नूयी जी ने ना सिर्फ़ भारत में किया बल्कि अंतर्राष्टीय स्तर पर कर दिखलाया है जो वाक़ई क़ाबिले तारीफ़ है । आज इन्द्रा नूयी, जिनका जन्म स्थान चेन्नई है अमरीकी कोर्पोरेट जगत में, शायद सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची के प्रमुख नामों में अपनी गिनती करवा सकतीं हैं । वे इतनी प्रसिध्ध व कामयाब हैं । सी ई ओ माने चीफ़ एक्ज्यूक्युटिव ऑफ़िसर । इस पद पर आने से पहले इन्द्रा नूयी चीफ़ फ़ायनेंसर ऑफ़िसर यानी - सीईओ थीं और पेप्सी को इनटरनॅशनल कंपनी में किये कई सारे बदलावों का फ़ैसला लेकर उन फ़ैसलों से कंपनी को सफलता के रास्ते पर आगे बढ़ने में इन्द्रा नूयी का हाथ था जिससे उन्हें कंपनी के सर्वोच्च पद पर आसीन करने का मार्ग प्रशस्त हुआ । उन्होंने कंपनी को मज़बूत किया और सफलता के एक के बाद मुकाम भी जीत कर आगे बढ़तीं गयीं तब उनकी यह सफलता अमरीकी कोर्पोरेट जगत के लिए कोइ आश्चर्य का विषय ना रहा -

मिसिज इन्द्रा नूयीइन्द्रा  नूयी

कार्य कुशलता : इन्द्रा नूयी ने $ 33 बीलीयन का व्यापार कर रही कंपनी पेप्सी को। में ठन्डे पेय के साथ साथ कई तरह के खाद्यान्न नाश्तों में प्रयोग किये जाने वाले तैयार खाने के पैकज फ़ूड को भी बेचना शुरू किया । इन्द्रा नूयी ने सी ई ओ का पदभार सम्हालने के साथ-साथ कई दर्जन व्यापार बढाने के नये नुस्ख़े आजमाए । जैसे युमी ब्रांड इंक । कई रेस्तरां पेप्सी पेय को तैयार कर भरने की काँच की शीशियाँ मशीन से तैयार करनेवाले बोत्लींग प्लांट ( पी.बी.जी) = पेप्सी बोट्लींग ग्रुप और क्वेकर ओट्ज़ तथा गेतोरेड जैसे पहले से जमे हुए व्यापारों को पेप्सी में मिलाकर पेप्सी को और ज़्य़ादा व्यापक विस्तार दिया है । ट्रोपीकाना तैयार ओरेंज जूस कंपनी को $ 3.3 बीलीयन डालर में ख़रीद कर पेप्सी में मिलाने से पेप्सी कंपनी को अमरीका का सबसे मनपसंद और अधिक बिकनेवाला ओरेंज जूस का व्यापार भी मिला - ये भी एक अत्यंत सफल प्रयास रहा । इन्द्रा नूयी भी आम महिलाओं की तरह सुशिक्षित परिवार से हैं परंतु इन्द्रा की अप्रत्याशित सफलता, उनकी कोर्पोरेट कल्चर में ऊँचे तक पहुँच पाने के कारण विश्व में प्रसिद्धि पा गयी !

मद्रास या चेन्नई शहर दक्षिण भारत में मद्रास क्रीस्चीयन कोलेज से इन्द्रा नूयी ने बेचलर डीग्री हासिल करने के बाद, आईआईटी से मास्टर डिग्री बिजनेस ऐडमिनीस्ट्रेशन में प्राप्त की थी।

23 कर्ष की उम्र में, वे अमरीका पहुँचीं सुप्रसिध्ध येल विश्वविद्यालय से , पब्लिक और प्राइवेट मेनेजमेंट में मास्टर की डीग्री हासिल की और बोस्टन कंसलटिंग कंपनी में काम शुरू किया बाद में, मोटोरोला कंपनी में कार्य किया जहाँ इन्द्रा नूयी ,

व्यवस्था संस्थापक व प्रणाली निर्देशिका = डाईरेक्टर ऑफ़ स्ट्रेटेजी और प्लानिंग के पद पर थीं ।

सन 1994 में इन्द्रा नूयी ने पेप्सी को कंपनी में कार्यभार सम्भाला । इन्द्रा नूयी , भारत को प्रगति के पथ पर देख कर प्रसन्नता अनुभव करतीं हैं और उनकी बागडोर सम्हाली कंपनी " पेप्सी को " के लिए भी , आनेवाले समय में, भारत में विस्तृत व्यापारी सफलता का अनुमान करतीं हैं और आगामी वर्षों में $ 300 मिलियन या $ 500 मिलियन तक कि धनराशि इस व्यापार में जोड़ने की, संभावित - भावि योजना है जिसमे, 60 % प्रतिशत पेय व्यापार और 40 % नाश्तों में पैकज फ़ूड में किया जाएगा पंजाब प्रांत के साथ 15 वर्ष पूर्व $ 700 मिलियन से व्यापार शुरू किया गया था और वह भी और ज़्य़ादा बढ़ने की सभावना है ।

भारत में शिक्षा प्राप्त भारत में पली इन्द्रा नूयी आज पेप्सी पेय में कीट नाशक दवाईयों के अंश पाए जाने पर भारत में जो क्रोध और पेप्सी कंपनी के विरोध में रोष है उसे इन्द्रा पेप्सी की कर्णधार होने से किस तरह निपटेंगी। ये भी भविष्य ही बतलायेगा । इन्द्रा नूयी ने स्वीकार किया है कि, भारत में पेप्सी कंपनी को, व्यापार करने में, बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है । उनका कहना है कि, पेप्सी कंपनी को चीन में इतनी मुशिकलें नहीं आयीं ।

अब कुछ नये क़ानून भारत सरकार द्वारा - खाद्य पदार्थों के लिए भी रचे गये हैं और इन्द्रा नूयी ने इन क़ायदों का स्वागत किया है उनका कहना है कि, ऐसे क़ानून ना बिकनेवाले सिर्फ़ पेय पदार्थों के लिए लागू किये जाने चाहियें बलके हर प्रकार की खाद्य सामग्री में क्या क्या डाला गया है । वह स्पष्ट किया जाना चाहिये और हर पैकेज्ड फ़ूड पर भी । इसी तरह के कड़े क़ानून लागू किये जाने ज़रूरी हैं --

इन्द्रा नूयी का कहना है कि पेप्सी कंपनी भरसक प्रयास करती है कि सारे पदार्थ स्वच्छ और खाने लायक और पीने लायक हों ! फिर भी कीटनाशक दवाई के कण पेप्सी की शीशी में पाए गये जिनका उन्हें बहुत ज़्य़ादा दुःख व खेद है ।

चलिए, इन्द्रा नूयी आगे क्या करतीं हैं । उसकी पड़ताल मीडिया भी अवश्य करती रहेगी और आम जनता को अवगत भी करवाती रहेगी उस पर हमे पूरा यक़ीन है ।

अब हम भारत में सफलता के नये मापदंड स्थापित करनेवाली एक महिला से मिलें जिन्होंने कोर्पोरेट कल्चर में ‘शीशे की छत या ग्लास सीलिंग’को तोड़ दिखलाया है ।

चन्दा कोचरचंदा कोचर

मिलिए, अब चन्दा कोचर से !

चंदा कोचर - आईसीआई बैंक की वरिष्ठ अधिकारी हैं । यह पद उन्होंने बस कुछेक साल पहले ही सम्हाला है । अत: पिछले 14 महीने चन्दा कोचर के लिए मानों कड़ी परीक्षा के रहे हैं । परतु उन्होंने अपना लोहा मनवा लिया है साथ-साथ कंपनी के सर्वोच्च पद पर आसीन होकर कार्य क्षमता का सफल उदाहरण भी उपस्थित किया है ।

ICIE आई सी आई सी बैंक के अधिकार में , उनकी अन्य शाखाओं में भी चन्दा कोचर के निर्णायक संशोधनों का प्रभाव पडा है ।

आम लोगों के ख़रीद करने की आदत को बैंक किस तरह सूहुलियत देती है उसकी प्रणाली से जुड़े मुद्दों से चन्दा कोचर ने बैंक के कार्य में मानो हर दिशा में क्रान्ति लाकर खडी कर दी है । बैंक खातों से सम्बंधित लोगों को कई क्षेत्रों में ऋण देने से बैंक का व्यापार और मुनाफ़ा कई गुना बढ़ा है । इससे 60 प्रतिशत क्रेडिट कार्ड द्वारा प्रचारित व्यापार में भी वृध्धि हुई है । आज विश्व में व्यापार विनिमय क्षेत्रों में मंदी की हवा बह रही है जिसका असर बैन्किंग के क्षेत्र पर भी हुआ है । ऐसी अनिश्चितता से भरे वातावरण में चन्दा कोचर ने बैन्किंग को सुरक्षित क्षेत्र में स्थायी करने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है । आई सी आई बैंक की बागडोर सम्हालने के बाद चंदा कोचर ने 5 वर्षीय योजना रेखांकित की और उसी के अनुरूप कार्य प्रणाली को भी लागू किया है और अगर विश्व में पुन: तेज़ी का वातावरण आता है तब चंदा कोचर के नेतृत्व में उनका बैंक सफलता की हवाओं के सहारे अवश्य नये कीर्तिमान स्थापित करेगा इस बात में कोई संशय नहीं होना चाहिए


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