tag:blogger.com,1999:blog-4559075607109953498.post16062472008755710..comments2023-11-09T10:02:07.593-05:00Comments on लावण्यम्` ~अन्तर्मन्`: ...ज़िँदगी ख्वाब है..चेप्टर -- ८लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`http://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-4559075607109953498.post-12156663119086226502007-07-07T22:19:00.000-04:002007-07-07T22:19:00.000-04:00सत्य जीवन मेँ निहित वे तथ्य हैँ जिन्हेँ हम मनुष्य ...सत्य जीवन मेँ निहित वे तथ्य हैँ जिन्हेँ हम मनुष्य हमेशा दिल से जोडे रखते हैँ ..भावना से हम अनुभव करते हैँ वही शाश्वत है , बाकी सब कुछ नश्वर है चूँकि उसी मेँ ईश्वर का वास है-- है ना दीव्याभ ?<BR/>आज , मेरे इस प्रयास से आप ने मेरे मित्र के व्यक्तित्त्व की छवि को निहारा है --<BR/>उसकी आत्मा के लिये , दुआ भी कीजियेगा - <BR/>स स्नेह आभार !<BR/> लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4559075607109953498.post-13356969981678208002007-07-07T22:15:00.000-04:002007-07-07T22:15:00.000-04:00आदरणीय महावीर जी,सादर नमस्कार !आपका आना , मेरे जाल...आदरणीय महावीर जी,<BR/>सादर नमस्कार !<BR/>आपका आना ,<BR/> मेरे जाल घर पर और मेरे प्रयासोँ को देखना, फिर उन्हेँ सराहना .<BR/>.मैँ कृतार्थ हो गयी कि आपको मेरे प्रयास पसँद आये हैँ -- <BR/>ये कथा <BR/>मेरे,एक मित्र को अर्पित भावाँजलि स्वरुप है -<BR/>जो हम से बिछुड जाते हैँ वे हमारी स्मृति<BR/> मेँ सदा जीवित रहते हैँ<BR/>है ना ?<BR/>सादर,स स्नेह,<BR/> -- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4559075607109953498.post-11759336551379168412007-07-07T14:25:00.000-04:002007-07-07T14:25:00.000-04:00मैडम,प्रत्येक चैप्टर अपने आप में उम्दा है सामयिक व...मैडम,<BR/>प्रत्येक चैप्टर अपने आप में उम्दा है सामयिक विषय<BR/>पर अच्छी पकड़ बनाकर लिखा भी गया है जो वास्तविकता है आज की…।Divine Indiahttps://www.blogger.com/profile/14469712797997282405noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4559075607109953498.post-70072854278862596232007-07-06T10:44:00.000-04:002007-07-06T10:44:00.000-04:00लावण्याकुछ दिनों बाद तुम्हारी इस साइट को खोला तो इ...लावण्या<BR/>कुछ दिनों बाद तुम्हारी इस साइट को खोला तो इतना गंभीर और साथ ही सत्य घटनाओं के आधार पर यह उपन्यास(?) पढ़ कर ऐसा लग रहा था कि सब सामने हो रहा हो। <BR/>Blog archive पर चेप्टरों को देने के कारण कहानी को क्रमशः पढ़ने में आसानी हो गई थी। आशा है यह उपन्यास के रूप में कागज के पन्नों में सुसज्जित कर एक पुस्तक के रूप में भी पाठकों को मिले, जिस से हर बार कंप्यूटर खोले बिना कहीं भी पार्क में, सोते समय या कहीं भी जब समय मिले तो आनंद उठा सकें।<BR/> दूसरे, एक और पोस्ट के लिए बधाई देना चाहूंगा। यूसुफ़ साहब (दिलीप कुमार) के विषय में बहुत ही सुंदर लिखा है। बार बार पढ़ने को जी करता है। उनके विषय में इतना कुछ लिखा है कि इस सामग्री को बटोरने में ना जाने कितना परिश्रम किया होगा! कुछ नायाब तस्वीरें देख कर उनकी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। एक बार फिर बधाई और धन्यवाद!<BR/>सस्नेह<BR/>महावीमहावीरhttps://www.blogger.com/profile/00859697755955147456noreply@blogger.com