tag:blogger.com,1999:blog-4559075607109953498.post7524460567121213448..comments2023-11-09T10:02:07.593-05:00Comments on लावण्यम्` ~अन्तर्मन्`: सौगातलावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`http://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-4559075607109953498.post-44455023429935549472008-04-28T08:31:00.000-04:002008-04-28T08:31:00.000-04:00दिनेश भाई साहब, ज्ञान भाई साहब,धन्यवाद आप का जो आप...दिनेश भाई साहब, ज्ञान भाई साहब,<BR/>धन्यवाद आप का जो आप ने मेरे प्रयास को सराहा !<BR/>स्नेह ,<BR/>- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4559075607109953498.post-48719382001626378492008-04-25T22:23:00.000-04:002008-04-25T22:23:00.000-04:00बहुत सुन्दर और बहुत अनूठे अन्दाज में। धन्यवाद प्रस...बहुत सुन्दर और बहुत अनूठे अन्दाज में। धन्यवाद प्रस्तुति के लिये।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4559075607109953498.post-5557519502866712012008-04-25T15:13:00.000-04:002008-04-25T15:13:00.000-04:00बेचारे कृष्ण। जिन हाथों में मुरली रहती थी। वह खाली...बेचारे कृष्ण। जिन हाथों में मुरली रहती थी। वह खाली नहीं। एक हाथ से वह बजती नहीं। दूसरा पकड़ लिया सुदर्शन ने। अपनी व्यथा ही कह सकते थे राधिका से। आपने खूब लिखा है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4559075607109953498.post-8772023728052213552008-04-25T12:46:00.000-04:002008-04-25T12:46:00.000-04:00" ऐ मुरली अधराधर की , अधरा न धरुँगी, मोर पखा सर ऊप..." ऐ मुरली अधराधर की , अधरा न धरुँगी,<BR/> मोर पखा सर ऊपर राखिहौँ,<BR/> मूँज की माल गले पहिरौँगीँ "<BR/> "रसखान जी" <BR/> भी ऐसा ही कह गये थे !!<BR/>श्रेध्धेय दुलाब जी को नमन ! <BR/>-- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4559075607109953498.post-32434742703247245292008-04-25T10:54:00.001-04:002008-04-25T10:54:00.001-04:00This comment has been removed by the author.राकेश खंडेलवालhttps://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4559075607109953498.post-11165861826413934172008-04-25T10:54:00.000-04:002008-04-25T10:54:00.000-04:00आपकी रचना पढ़ कर आदरणीय गुलाबजी की कुछ पंक्तियां या...आपकी रचना पढ़ कर आदरणीय गुलाबजी की कुछ पंक्तियां याद आ गईं<BR/><BR/>मुरली कैसे अधर धरूँ<BR/>जो मुरली सबके मन बसती<BR/>जिससे थी तब सुधा बरसती<BR/>आज वही नागिन सी डँसती<BR/>छूते जिसे डरूँराकेश खंडेलवालhttps://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.com