


जब काली रात बहुत गहराती है, तब सच कहूँ, याद तुम्हारी आती है !
जब काले मेघोँ के ताँडव से,सृष्टि डर डर जाती है,
तब नन्हीँ बूँदोँ मेँ, सारे,अँतर की प्यास छलकाती है.
जब थक कर, विहँगोँ की टोली, साँध्य गगन मे खो जाती है,
तब नीड मेँ दुबके पँछी -सी, याद, मुझे अक्स्रर अकुलाती है!
जब भीनी रजनीगँधा की लता, खुदब~ खुद बिछ जाती है,
तब रात भर, माटी के दामन से, मिलकर, याद, मुझे तडपाती है !
जब हौलेसे सागर पर , माँझी की कश्ती गाती है,
तब पतवार के सँग कोई, याद दिल चीर जाती है!
जब पर्बत के मँदिर पर,घँटियाँ नाद गुँजातीँ हैँ
जब पर्बत के मँदिर पर,घँटियाँ नाद गुँजातीँ हैँ
तब मनके दर्पण पर पावन माँ की छवि दीख जाती है!
जब कोहरे से लदी घाटीयाँ,कुछ पल ओझल हो जातीँ हैं
जब कोहरे से लदी घाटीयाँ,कुछ पल ओझल हो जातीँ हैं
तब तुम्हेँ खोजते मेरे नयनोँ के किरन पाखी मेँ समातीँ हैं
वह याद रहा,यह याद रहा, कुछ भी तो ना भूला मन!
मेघ मल्हार गाते झरनोँ से जीत गया बैरी सावन!
हर याद सँजोँ कर रख लीँ हैँ मन मेँ,
याद रह गईँ, दूर चला मन! ये कैसा प्यारा बँधन!
--- लावण्या
--- लावण्या
बहुत ही सुंदर. अनुपम. बधाई.
ReplyDeleteशुक्रया समीर भाई ! :)
ReplyDeleteस - स्नेह
लावण्या
"जब काली रात बहुत गहराती है,...... याद तुम्हारी आती है !"
ReplyDeletebahut sahi kaha hai. :)
"वह याद रहा,यह याद रहा, कुछ भी तो ना भूला मन!
ReplyDeleteमेघ मल्हार गाते झरनोँ से जीत गया बैरी सावन!"
मन मयूर नृत्य कर उठा।
Rajesh Roshan sahab,
ReplyDeleteAapko kavita je bhaav sahi lage!
Shukriya !
Rgds,
L
शुक्रया विकास भाई !
ReplyDeleteRgds,
L
बहुत अच्छी रचना है, कहीं खो जाने को विवश करती है। इस सुन्दर रचना के लिये आपको ढेर सारी बधाई।
ReplyDeleteआपकी कविता में विरह की चरम अवस्था का संगीत है । एकबारगी पाठक का मन व्याकुल हो उठता है । पर इस व्याकुलता में प्रियतम के प्रति रागात्मकता का कंटीला लगाव भी है । बिम्ब सभी रमणीय हैं । शब्द इतने शहदीले हैं कि वे स्वयं में एक छंद का आभास दिलाते हैं । बहुत-बहुत बधाई इस गीत के लिए । हम ऐसे गीतों के सहारे ही समकालीन कविता जो शुष्क हो चुकी है पाठकों की दिशा पुनः काव्य की ओर मोड़ सकते हैं । रसविभोर हो उठा मैं । अतः पुनः आभार
ReplyDeleteभावना जी,
ReplyDeleteआप का आगमन और प्रोत्साहन पाकर लिखने का उत्साह बकरार रहता है
धन्यवाद !
स - स्नेह
लावण्या
जयप्रकाश जी ,
ReplyDeleteआप ने अपनी व्यस्तता के बीच समय निकाल कर यहाँ टिप्पणी दी और कविता के भावोँ को पहचान कर पसँद किया
उसके लिये आपको स स्नेह आभार लिख रही हूँ ..
--लावण्या