Friday, February 8, 2008

ही इझ नो मोर ! ११ फरवरी पापा की पुण्य तिथि --

(ये चित्रों का कोलाज़ मेरी दीदी श्री लता मंगेशकर जी ने बना कर भेजा है सभी चित्र लता दीदी ने ही खींचे हैं )
११ फरवरी करीब आ रही है और पापा जी की फिर याद, बार बार् , मन को मसोस जाती है -१९८९ की काल रात्रि थी ९ बजे थे और हम चारोँ, मैँ,मँझली, बडी बहन वासवी, मुझसे छोटी बाँधवीहमारे पति, (सबसे छोटा परितोष पूना गया था ) और अम्मा पापा जी के इन्टेन्सीव वोर्ड मेँ, खडे थे , जब्, अम्मा , पापा जी के,पैरोँ को सहला रहीँ थीँ और पापा अनवरत "प्रभु ...प्रभु " कुछ रुक रुक कर बोल रहे थे।
हल्की लकीर मुस्कान की भी थी उनके पान से रँगे होँठेँ पर ..
.हाँ पान, जो आखिरी बार टहलते हुएशाम के करीब ४.३० बजे , उसे, रास्ता पार करके, नुक्कड की दुकान से लाये थे -
अम्मा
से कहा था,'सुशीला , तुम चाय बनादो , मैँ तुम्हारे लिये पान ले आता हूँ "
पिछले ७ दिनोँसे, पापा ने, अपना भोजन नहीवत्` कर दिया था -
सिर्फ सँतरा मुसम्बी का जुसही पीते थे !
वो
भी दिन मेँ बस २ बार , शाम ढलने से पहले ! अम्मा भी परेशान थीँ -मुझसे ३ दिन पूरे हुए तब शिकायत भी की थी, " लावणी पापा न जाने क्यूँ सिर्फ जूस ही पी रहे हैँ और बेटे, फल भी खत्म् हो गये हैँ !"
मैँने फौरन बात काटते हुए कहा,
"अम्मा, मैँ हमारे महराज जी को अभीभेजती हूँ ..कुछ तो मेरे पास हैँ उनका जूस पीला देना और वे और बाज़ार से लेते आयेँगेँ मैँ समझा दूँगीँ "
'खैर ! बात आई गई हो गई ..
पापा
निर्माता निर्देशक श्री बी. आर. चोपडा जी की "महाभारत " टी.वी.सीरीझ के निर्माण से जुडे हुए थे और सारी प्रक्रिया मेँ आकँठ डूबे हुए थे॥
रोजाना मीटीँग्स्, सुबह ९ बजे से तैयार , निकलते और शाम देरी से लौटते !
फल
भिजवाने के दूसरे दिन, मैं, शाम को अम्मा पापा जी के घर पहुँच गई
-देखा , पापा चाय सामने रखे,गुमसुम से पालथी लगाये, डाइनीँग टेबल की क्रीम नर्म चमड़े से बनी कुर्सी पर बैठे हैँ
-ये बिलकुल साधु सँतोँ जैसा उनका पोज रहताथा सूती मलमल की , धोती, उनके पैरोँसे लिपटी रहती थी,वो पैर जो हमेशा चलते रहे ..काम का बोझ सरलता से उठाये ॥
अम्मा किचन से आयीँ और छोटी स्टील और ताँबे की कडाही मेँ
गेहूँ का शीरा तभी बना के लाईं थीं -
जिसे १ निवाले जितना पापा ने मुझे दिया , खुद खाया और बस्! खत्म हो गया !!
-अम्मा को नहीँ दिया गया !
शायद वो मेरे "परम योगी" पिता का अँतिम प्रसाद था ॥
३ दिन गुजरे इस बात को और पान लेकर पापा लौटे तब तक उन्हेँ बैचेन देख अम्मा ने मुझे फोन किया मैँ चप्पलेँ पैरोँ मेँ डालकर भागी ॥
पता नही क्या सोचकर रुपयोँका बँडल भी पर्स मेँ जल्दी से डाल दिया ! मुझसे छोटी बाँधवी अपने पति दीलिप के सँग डाक्टर को लेकर आ पहुँची
-पापा ने बडी विनम्रता से उठकर सब का स्वागत नमस्ते से किया परँतु उन्हेँ दिल का सीवीयर दौरा पडा है ऐसा डाक्टर ने कहा तब हम सभी, कुछ घबडाये
-तुरँत कार मेँ अस्पताल जाने को निकले ॥
अम्मा पीछे की सीट पे मेरे साथ बैठीँ थीँ और पापा जी ने अम्मा का हाथ अपने सीने से लगा रख था और वे "प्रभु " प्रभु " बोल रहे थे !
मैँने सोचा, अगर मामला सीरीयस होता तब वे अवश्य "राम राम" बोलते ॥
गाँधी बापू की तरह !! ॥
मेरे पापा जी को कुछ नही होनेका ..वे स्वस्थ हो जायेँग़े ..
.अरे, परितोष को , उसकी ज़िद्द पे ही, कितने प्रेम से, पीठ सहला कर
नयी गाडी लाने भेजा था उन्होँने !
परितोष कहता, "पापा आप भी नयी कार मेँ काम पर जाया करिये ना, सभी जाते हैँ !" और पापा मुस्कुरा के रह जाते ॥
वे तो अक्सर, दूरदर्शन, आकाशवाणी,अन्य शैक्षिकणिक सँस्थानोँ के आमंत्रणों पर, ट्रैन, बस या अक्सर पैदल ही मीलोँ बम्बई मेँ घुम आत थे !
इतनी
सहजता से, मानोँ ये कोई मुशिकल काम ही नहीँ !!
और
पापा के असँख्य प्रसँशक, मित्र, सहकर्मी, बडे बडे कलाकार, साहित्यकारोँ का
घर पर ताँता लगा रहता -
ऐसे
पापा अस्पताल पहुँचे तब हार्ट स्पेशीयालीस्ट१ घम्टे विलम्ब से आये !
:-(और, अम्म नो हाथ फेरा तो पापा ने उनकी ओर देखा और आहिस्ता से आँखेँ मूँद लीँ ! बस्स ! क्या हुआ इसका किसी को भान न था :-((॥
एक मेरे पति दीपक के सिवा ..
उसने
अम्मा को प्यार से कहा,
" चलिये अब घर जाकर थोडा, सुस्ता लेँ अम्मा आप भी थक गयीँ होँगीँ "
और अम्मा अनमने ढँग से बाहर आयीँ और दीपक उन्हेँ बाँद्रा से, खार के घर ले गये. हम तब भी वहीँ खडे थे पापा को घेरे हुए ...
और
एकदूजे से कह रहे थे ,आज मैँ रात पापा के पास रहूँगी , कल तुम रहना "
--पापा जी की , नर्म हथेली सहलाते वक्त , उन्होँने मुझे ढाढस बँधाया था,
" बेटा, सब ठीक हो जायेगा" जैसे वे हमेशा कहा करते थे ॥
पर ,अम्मा के जाते ही हम पर मानोँ सारा आकाश टूट पडा और धरती खिसक गयी जब नर्स ने रुँआसे स्वर से कहा" ही इझ नो मोर "...

32 comments:

  1. आप के प्रिय पापा जी को हमारी भी भावभीनी श्रदांजलि....आप के ही क्यों, बहन, वह तो सारे हिंदोस्तान की आंख के तारे थे।

    ReplyDelete
  2. पापा का जाना। शायद सब से अधिक रिक्तता उत्पन्न करता है। आप के शब्दचित्र ने आंखें गीली कर दीं। श्रद्धेय पंडित जी को मेरी और से श्रद्धांजलि। सब जाते हैं। पर कोई भी नहीं जाता। सब यहीं मौजूद रहते हैं। जैसे आप अपने पापा और माता जी की पुनर्जन्म हैं।

    ReplyDelete
  3. touching - मुझे इसके लिये हिन्दी का शब्द समझ में नहीं आया।

    ReplyDelete
  4. But whoever said "He's no more" ? Did he ever, even for a moment, leave you alone ? Parents never leave you alone. Watch my words and see for yourself if they hold good for eternity.

    ReplyDelete
  5. Lavanyaji
    Very heart warming,tears bringing,emotionally written,filled with love......have no words to describe.
    Our sincere "Shradhdhdnjali" to Papaji who will always remain in our memories.
    Thanx & Rgds.

    ReplyDelete
  6. Didi,aapkey bhaav boond ban hamaari aankhon me tair gaye...Meet ne badi acchhi baat kahi...

    ReplyDelete
  7. दी आप की पोस्ट ने मुझे मेरे पिता की याद दिला दी और आखें बरबस बह रही हैं मेरे पिता ने भी मर्त्यु से कुछ महीने पहले खाना छोड़ दिया था, हम भी समझ न पाए थे और दवाइयों की गर्मी की वजह से ऐसा है मान रहे थे।
    पंडित जी को भाव भीनी श्रद्धांजली। हम आप के दुख में सहभागी है।

    ReplyDelete
  8. पण्डित जी को मेरा नमन। आपने पूरे मनोयोग से यह मार्मिक प्रसंग लिखा है कि सब आंखों के सामने दीखने लगा।
    महान व्यक्ति परिदृष्य में भौतिक रूप में सदा नहीं रहते, पर उनकी प्रेरणादायक स्मृति हमें ऊर्जा देती रहती है। आपने यह पोस्ट लिख कर उस स्मृति को जगृत किया; उसके लिये धन्यवाद।

    ReplyDelete
  9. AAp ki hridayme aapke antarman me abhibhi vo zinda hai.

    ReplyDelete
  10. IF THERE HAS BEEN A SINGLE BIGGEST LOSS IN MY LIFE SO FAR - IT IS PAPA'S DEMISE. NOTHING HAS LEFT ME SO DEVASTATED UNTILL DATE. THIS FEELING IS YET SO FRESH,THAT HE LIVES WITHIN ME FOR EVER.

    AMBARISH

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर लगी आपकी भावभीनी श्रद्धान्जलि।

    ReplyDelete
  12. "ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना
    ये घाट ये, ये वाट कहीं भूल न जाना ।"
    गीतकार शैलेन्द्र के ये शब्द मुकेश जी के दर्द भरे स्वर में ढलकर मानों जीवन के अटूट सत्य को उदघाटित करते हैं। मां अक्सर इसे सुनकर विचलित हो जाती। तब मेरी समझ में ज्यादा नहीं आता था, लेकिन आज समझ सकता हूं..
    बीते हुये पल हमारी स्मृतियों में सांस लेने लगते हैं..और एक बार फिर हम अतीत की अंगुलियों को पकडकर चलने लगते हैं..बालसुलभ उत्सुकता प्रश्न कर बैठती है..

    " अब के बिछडे न जाने कब मिलेंगे.." (कवि - पंडित नरेन्द्र शर्मा)
    लेकिन उत्तर में स्वर के स्थान पर सुनाई देता है ...असीम मौन..आत्मा को कचोटती हुई..

    पापा की पुण्य स्मृति को शत-शत नमन...

    - अमरेन्द्र कुमार

    ReplyDelete
  13. ज्योति कलश तो छलक रहा है, अविरल निशि-दिन सांझ सकारे
    वे तो आदरपूर्न बसे हैं मन में
    बन कर गीत, हमारे
    यादों की भीनी पुरवाई, कभी
    न धूमिल होने देगी
    भाषा के जो हस्ताक्षर, वे
    कर कर गये समय के द्वारे

    ReplyDelete
  14. मेरे पापा जी को कुछ नही होनेका ..वे स्वस्थ हो जायेँग़े ..


    हाँ यही तो लगता रहता है और वो हमसे बहुत दूर चले जाते हैं..पता नही ईश्वर हमारा विश्वास क्यों तोड़ देता है...!

    ReplyDelete
  15. बस यही अंतर है, लोग चले जाते हैं और समय की चादर का आवरण उनकी यादों तक को ढांप लेती है। किन्तु, महान व्यक्तियों के अस्तित्व और व्यक्तित्व के अमरत्व के सामने काल हार कर हथियार डाल देता है। वे सदैव जीवित रहते हैं।
    श्रद्धेय पंडित जी आज भी उनके गीतों, कविताओं, सिने-जगत और टी.वी. में अमूल्य योगदान, अतीत के संस्मरणों और साहित्य में जीवित हैं, कल भी रहेंगे।
    आज फिल्मों में स्तरीय गीतों के अभाव में श्रद्धेय पंडित जी की रिक्तता बहुत ही महसूस होती है।
    उनकी पुण्य-तिथि पर मेरी ओर से श्रद्धाञ्जलि।

    ReplyDelete
  16. लावण्या जी - पंडित जी के शब्द जन्म जन्मांतर तक रहेंगे - आपकी स्मृति भी - उनकी स्मृति को प्रणाम/ नमन - सादर -मनीष

    ReplyDelete
  17. आपकी श्रद्धा व सौहार्द्र के लिए सच्चे ह्रदय से आभारी हूम प्रवीण भाई साहब !

    ReplyDelete
  18. दिनेश भाई साहब
    आपने मेरे मनोभावों को सही रूप से पहचाना है और आप सहभागी हुए हैं
    जिसके लिए मैं कृतार्थ हूँ --

    ReplyDelete
  19. "touching " is the correct word to convey what you meant Unmukt ji --
    &
    I thank you -
    sincerely,
    L

    ReplyDelete
  20. Mit ji ,
    How True is what you say ~~
    Once a Parent , will always occupy the same ROLE for a child. No matter what the respective age they reach.
    I thank you for your kind & true words.
    Sincerely,
    L

    ReplyDelete
  21. Harshad bhai,
    I humbly thank you for your heartfelt response.
    *
    Also accept your "Shradhdhanjali "
    I know our love & remembrances will reach him.
    warm rgds,
    L

    ReplyDelete
  22. Parul,
    Ye ansoo bhee na jane kahan se aate hain hai na ?
    Man, atma, aankhein, yaadein, aansoo ke sambhandh ko koi nahee jaan paya hai na ?
    sneh sahit,L

    ReplyDelete
  23. अनिता जी,
    हमारे अग्रज कितने सच्चे और अच्छे इंसान थे इसका आभास
    उनके जाने के बाद ही तीव्रतर होता है -
    - आपकी सहानुभूति के लिए
    सच्चे ह्रदय से आभार --

    स्नेह,

    लावण्या

    ReplyDelete
  24. ज्ञान भाईसाहब,

    सूर्य का उजाला रोशनी ही देगा

    पापा भी 'ज्योति कलश' ही थे उनके जाने से इस बेटी के ह्रदय में अन्धकार फैला था उसे उन्हींके सीखाये पथ पर चल , स्मरति दीपो से प्रकाशित करने का प्रयास जारी है -

    warm rgds,
    L

    ReplyDelete
  25. Thank you BHARAT ji --
    much appreciate your kind words
    & accept your BLESSINGS , humbly,
    warm Rgds,
    L

    ReplyDelete
  26. My dear brother Ambarish,
    How can we ever come out of the deep despair we felt at the departure of Papaji & my Raju Mama
    your Father who was the most jovial , kind & loving individual that i ever met in my life !!
    Their spirit lives within us, illuminating our lives.
    I'm grateful for that.
    with love
    from your Badi bahen,
    L

    ReplyDelete
  27. बहुत बहुत धन्यवाद लक्ष्मी भाई साहब !

    ReplyDelete
  28. कविवर राकेशा जी,
    आपके काव्य हस्ताक्षर एक कवि के लिए सच्ची श्रध्धान्जली बने हैं
    आपका बहुत बहुत आभार की आप आए --

    सादर स- स्नेह,

    लावण्या

    ReplyDelete
  29. कंचन जी ,
    जानेवाले चले जाते हैं परमात्मा की शरण में और जो रह जाते हैं उनकी व्यथा कभी कम नही होती -- यही तो मानवता की सच्ची देन है

    स स्नेह,

    लावण्या

    ReplyDelete
  30. अमरेन्द्र जी,
    आपके श्रद्धा विगलित शब्दों के लिए
    आपकी सच्चे ह्रदय से आभारी हूँ
    स स्नेह,
    लावण्या

    ReplyDelete
  31. आदरणीय महावीर जी ,
    आपके प्रति आदर भाव इतना ज्यादा है कि
    आपके शब्दों को पढ़कर ऐसा ही लगा मानो आप, मैं और पापा जी एक दूसरों के समक्ष
    बातें कर रहे हैं
    जहाँ भौगोलिक दूरियां, काल के स्तर ,
    व्योम सभी मानो मिट गए हैं --
    शायद यही वः रहस्य है जो,
    हम मनुष्य अवस्था में ,
    पराशक्ति की दया से
    अनुभव कर पाते हैं -
    आपके श्रद्धा मिश्रित शब्दों के लिए
    आपकी सच्चे ह्रदय से आभारी हूँ

    स स्नेह,

    लावण्या

    ReplyDelete
  32. मनीष भाई ,

    आप का मेरे जाल घर पर रुकना,
    मेरी यादों के साझीदार होना और मेरी भावना को समझना और पापाजी के प्रति आपकी भावभीनी श्रद्धा के लिए, किन शब्दों में आपका धन्यवाद दूँ ?
    स स्नेह,
    लावण्या

    ReplyDelete