Thursday, April 17, 2008

चीर हरण की पूर्व भूमिका ~


द्वारिका में सांझ हुई थी ! कृष्ण , झूल रहे, झूले पे ,
हाथ , सरोता लिए रुका था - मन , राधा में , लीन हुआ था !
वृन्दावन की कुञ्ज गलिन में , यमुना तट पे , मौन खड़ा था !अन्यमनस्क , मन के तारों से , तभी , एक स्वर

हो गया झंकृत ! दबी हुई सिसकी थी क्या वह ?

आह ! लहू की बूँद , उभरी , कटी , अंगुली , वन - मालिन की !
सुभद्रा , रुक्मिणी , भामा , दौडीं , ये क्या हो गया !
द्रौपदी , निकट खड़ी चकित थीं !
सहसा , फाड़ दिया आँचल पट , बाँध दिया घाव कृष्णा ने झट पट ( द्रौपदी का , दूसरा नाम , " कृष्णा " है )
-द्वारिका धीश तब सहज मुस्काये -
" पाँचाली ! यह प्रीत तुम्हारी ! मैं , ऋणी, तुम्हारे बन्धन का ! "
यह नौ सो निन्यानबे धागे , बने चीर पंचाली के , आगे ,
हस्तिनापुर की राज्य - सभा में ,
द्रौपदी की लज्जा के पहरेदार बने !

कहते हैं श्री हरी सदा :
" पत्रं पुष्पं फलं , तोयम , माय भक्त्या प्रयाच्चाती इअदहम भक्त्य्पर्हत्म्श्नामी प्रयात्मनाह ": ई २६ ई
"यात्कारोशी यद्शानासी यज्जुहोशी दादासी यात इयात्त्पस्यासी कौंतैये ! तत्कुरुश्व मदर्पनाम " ई २७ ई
( Meaning of the above Sanskrit shloka फ्रॉम
Shrimad Bhagvad Geeta )
" जो भी मुझे प्रेम से देता , फूल , पर्ण याकि फल - जल ,
मैं , उसे , स्वीकारता हूँ !
जो भी तुम भोगते या दे देते ,याकि, जप तप , करते ,
मुझ को वह तर्पण मिलता है ! "
[ यह भगवत गीता का अमर सन्देश और सार है !
]

15 comments:

  1. घाव पर मरहम लगाने दौड़े सबसे पहले वही सुकर्म में शीर्ष पर है।

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  2. सच में पांचाली के चरित्र में मानव की दुर्बलतायें हैं - पर कृष्ण प्रेम तो अद्भुत है। और यही हमें बताता है कि अपनी कमियों के बावजूद हम भी कृष्ण को प्रिय हो सकते हैं।

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  3. बहुत अच्छी लाइने हैं...
    श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव !
    कृष्ण का चरित्र का तो अतुलनीय है ही...

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  4. बहुत सुंदर पंक्तियाँ और चित्र भी तो कितने सालोने--आभार दीदी

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  5. अच्छा लिखा है.

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  7. Lavanya Didi

    Very nice write up. Shreeji's picture is Manohari.

    Thanx & Rgds.

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  8. कृष्ण पूर्ण पुरुषित्तम यूण ही नहीँ कहलाते ..
    हर आत्मा के वही स्वामी हैँ .
    पाँचाली की दुर्बलताएँ भी इतिहास के आध्याय रच गयीँ हैँ
    जिनसे आज भी सीख ली जा सकतीँ हैँ -

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  9. अभिषेक भाई ,
    कृष्णँसमर्पयामि इति !

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  10. Thank you Harshad bhai
    for visiting my BLOG &
    for your kind comment.

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  11. कँचन ये श्री कृष्ण का प्रसाद ही समझो -

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