Tuesday, April 29, 2008

मधु माँग ना मेरे मधुर मीत

मधु माँग ना मेरे मधुर मीत

मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )

मैँने भी मधु के गीत रचे, मेरे मन की मधुशाला मेँ

यदि होँ मेरे कुछ गीत बचे, तो उन गीतोँ के कारण ही,

कुछ और निभा ले प्रीत ~ रीत !

मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )

मधु कहाँ , यहाँ गँगा - जल है !

प्रभु के चरणोँ मे रखने को ,

जीवन का पका हुआ फल है !

मन हार चुका मधुसदन को,

मैँ भूल चुका मधु भरे गीत !

मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )

वह गुपचुप प्रेम भरीँ बातेँ, (२)

यह मुरझाया मन भूल चुका

वन कुँजोँ की गुँजित रातेँ (२)

मधु कलषोँ के छलकाने की

हो गयी , मधुर बेला व्यतीत !

मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )

रचना : [ स्व पँ. नरेन्द्र शर्मा ]


17 comments:

  1. बहुत सुन्दर कविता है परन्तु मधु मन में होता है ना कि उम्र में !
    घुघूती बासूती

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  2. पापा जी की यह रचना पढ़वाने के लिए बहुत आभार. आनन्द आया इतनी उम्दा रचना पढ़कर.

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  3. घुघूती जी ,
    ये कविता मराठी के कवि श्री भा. र. ताम्बे की मूल कृति का पापा जी ने अनुवाद किया था और दूर्दर्शन के कार्यक्रम मेँ प्रसिध्ध सँगीतकार श्री सुधीर फडके जी ने गाया था ...शायद कवि ने ऊम्र के उस पडाव की बात सोची होगी जब मधु ,युवावस्था के प्रणय व उन्माद के बदले ( मन मेँ जो होता है ) वह गँगा जल के समान पवित्रता मेँ तब्दील हो जाता है ..तपिश का स्थान शाँत निर्मलता ग्रहण कर लेती है ..मन को ऊम्र का असर इस तरह होता है ..जीवन की हर अवस्था मेँ उम्र से , किसी मेँ बदलाव आता है तो किसी के मन मेँ ना भी आता हो ..

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    1. लावण्या जी, दूरदर्शन पे श्री सुधीर फडके जी ने यह गीत गाया था.... मैने सुना है.... मैं बहुत सालोसे ऊस कार्यक्रम के व्हिडिओ की खोज मे हुं I

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  4. समीर भाई ,
    आपको कविता पसँद आयी ..
    मुझे खुशी हुई .
    - लावण्या

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  5. बहुत सुंदर. पढ़वाने का शुक्रिया.

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  6. सुंदर कविता वाकई....

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  7. सुन्दर कविता हम तक पहुंचाने के लिये धन्यवाद.

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  8. ऐसे गुन के आगर पिता को क्यो न अपनाऊ हाँ मैं भी पोस्ट डालने वाली हूँ अपने इस पिता पर ..
    सुन्दर कविता -अनुवाद ...

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  9. पंडित जी की इतनी भाव पूर्ण कविता पढ़ कर कृतार्थ हो गया. कैसे विलक्षण कवि थे वे. आप को बहुत बहुत धन्यवाद उनकी रचना पढ़वाने का.
    नीरज

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  10. अत्यंत सुन्दर और गेय रचना। धन्यवाद प्रस्तुति के लिये।

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  11. मीत जी, अनुराग भाई, इला जी, आप सभी के मेरे जाल घर पे आने का और इस कविता को पसँद करने लिये आपका आभार !

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  12. आभा जी ,
    आप के भी पिता हैँ मेरे पापा जी !
    उन के बारे मेँ लिखेँ तब मुझे अवश्य सूचित करियेगा ..
    आप का भी बहुत बहुत आभार -
    लावण्या शाह (आपकी बहन)

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  13. नीरज जी ,
    आप के स्नेह के प्रति और कविता को पसँद करने के लिये आप का भी बहुत बहुत आभार !
    - लावण्या

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  14. ये कविता सच मेँ गेय है -
    - इस को पसँद करने के लिये आप का भी बहुत बहुत आभार...ज्ञान भाई सा'ब !
    -- लावण्या

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  15. इसका ऑडिओ उपलब्ध होगा तो नेट पर पोस्ट किजिएगा

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  16. सुधीर फडकेजी ने गाई हुई यह अजरामर हिंदी कविता सून नेकी मनस्वी ईच्या है. कोई मदत करे तो आभारी हुंगा.
    My whatsApp and cell no is 9420495121
    Thanks,
    Sudhanshu.

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