
मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )
मैँने भी मधु के गीत रचे, मेरे मन की मधुशाला मेँ
यदि होँ मेरे कुछ गीत बचे, तो उन गीतोँ के कारण ही,
कुछ और निभा ले प्रीत ~ रीत !
मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )
मधु कहाँ , यहाँ गँगा - जल है !
प्रभु के चरणोँ मे रखने को ,
जीवन का पका हुआ फल है !
मन हार चुका मधुसदन को,
मैँ भूल चुका मधु भरे गीत !
मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )
वह गुपचुप प्रेम भरीँ बातेँ, (२)
यह मुरझाया मन भूल चुका
वन कुँजोँ की गुँजित रातेँ (२)
मधु कलषोँ के छलकाने की
हो गयी , मधुर बेला व्यतीत !
मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )
रचना : [ स्व पँ. नरेन्द्र शर्मा ]
बहुत सुन्दर कविता है परन्तु मधु मन में होता है ना कि उम्र में !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
पापा जी की यह रचना पढ़वाने के लिए बहुत आभार. आनन्द आया इतनी उम्दा रचना पढ़कर.
ReplyDeleteघुघूती जी ,
ReplyDeleteये कविता मराठी के कवि श्री भा. र. ताम्बे की मूल कृति का पापा जी ने अनुवाद किया था और दूर्दर्शन के कार्यक्रम मेँ प्रसिध्ध सँगीतकार श्री सुधीर फडके जी ने गाया था ...शायद कवि ने ऊम्र के उस पडाव की बात सोची होगी जब मधु ,युवावस्था के प्रणय व उन्माद के बदले ( मन मेँ जो होता है ) वह गँगा जल के समान पवित्रता मेँ तब्दील हो जाता है ..तपिश का स्थान शाँत निर्मलता ग्रहण कर लेती है ..मन को ऊम्र का असर इस तरह होता है ..जीवन की हर अवस्था मेँ उम्र से , किसी मेँ बदलाव आता है तो किसी के मन मेँ ना भी आता हो ..
लावण्या जी, दूरदर्शन पे श्री सुधीर फडके जी ने यह गीत गाया था.... मैने सुना है.... मैं बहुत सालोसे ऊस कार्यक्रम के व्हिडिओ की खोज मे हुं I
Deleteसमीर भाई ,
ReplyDeleteआपको कविता पसँद आयी ..
मुझे खुशी हुई .
- लावण्या
बहुत सुंदर. पढ़वाने का शुक्रिया.
ReplyDeleteसुंदर कविता वाकई....
ReplyDeleteसुन्दर कविता हम तक पहुंचाने के लिये धन्यवाद.
ReplyDeleteऐसे गुन के आगर पिता को क्यो न अपनाऊ हाँ मैं भी पोस्ट डालने वाली हूँ अपने इस पिता पर ..
ReplyDeleteसुन्दर कविता -अनुवाद ...
पंडित जी की इतनी भाव पूर्ण कविता पढ़ कर कृतार्थ हो गया. कैसे विलक्षण कवि थे वे. आप को बहुत बहुत धन्यवाद उनकी रचना पढ़वाने का.
ReplyDeleteनीरज
अत्यंत सुन्दर और गेय रचना। धन्यवाद प्रस्तुति के लिये।
ReplyDeleteमीत जी, अनुराग भाई, इला जी, आप सभी के मेरे जाल घर पे आने का और इस कविता को पसँद करने लिये आपका आभार !
ReplyDeleteआभा जी ,
ReplyDeleteआप के भी पिता हैँ मेरे पापा जी !
उन के बारे मेँ लिखेँ तब मुझे अवश्य सूचित करियेगा ..
आप का भी बहुत बहुत आभार -
लावण्या शाह (आपकी बहन)
नीरज जी ,
ReplyDeleteआप के स्नेह के प्रति और कविता को पसँद करने के लिये आप का भी बहुत बहुत आभार !
- लावण्या
ये कविता सच मेँ गेय है -
ReplyDelete- इस को पसँद करने के लिये आप का भी बहुत बहुत आभार...ज्ञान भाई सा'ब !
-- लावण्या
इसका ऑडिओ उपलब्ध होगा तो नेट पर पोस्ट किजिएगा
ReplyDeleteसुधीर फडकेजी ने गाई हुई यह अजरामर हिंदी कविता सून नेकी मनस्वी ईच्या है. कोई मदत करे तो आभारी हुंगा.
ReplyDeleteMy whatsApp and cell no is 9420495121
Thanks,
Sudhanshu.