Friday, May 30, 2008

कपिल - वस्तु में प्रतीक्षा

* कपिल - वस्तु में प्रतीक्षा *
पावन ज्योति पर्व में मैं ,दीप उत्सव बालती ,

अंगना के द्वारे - द्वारे, दीपक लौ, प्रकाशती !

पवित्र मंगल शुभ प्रसंग सुमन हर्षित वारती

कंचन थाल , कुम कुम ले , मैं , करती उनकी आरती !

पथ में प्रभू के नयन मेरे , ध्यान में मन लीन,

आ जाते यदि वे आज सम्मुख चरण रज उनसे , मांगती !

राहुल , धर कर हाथ तेरा , उन्ही पर तुमको , वारती

क्यों गए वो दूर हमसे ? इस का मैं उत्तर मांगती !

शरण हैं हम आपके हे गौतम , मेरे दुलारे

"बुध्ध" तुम होगे सभी के ,यशोधरा तुमको पुकारे !

8 comments:

  1. बहुत सुंदर चित्र है ....उतने ही सुंदर भाव है.....

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  2. स्त्री के पक्ष में अधिकतर प्रतीक्षा ही लिखी है!

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  3. बहुत उम्दा-चित्र और रचना दोनो.

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  4. उत्तम!
    अति उत्तम!
    यशोधरा के साथ न्याय किया आपने.

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  5. उत्तम!
    अति उत्तम!
    यशोधरा के साथ न्याय किया आपने.

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  6. बहुत सुंदर भाव पूर्ण कविता धन्यवाद

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  7. अनुराग भाई,
    ज्ञान भाई साहब्, सच कह रहे हैँ आप्,
    बाल किशन जी व महेन्द्र भाई साहब आपकी टिप्पणीयोँ के लिये आभार
    - लावण्या

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