
बहुत कम ऐसा होता है जब् आप कोइ कविता पढ़ें और आप को , बखूबी हंसी के साथ साथ, करुना का भाव भी मन में आए !॥
ये कविता जब् मैंने पढी कविता - कोश में, जिसका कार्य भाई श्री ललित कुमार ने , शुरू किया जो आज , कई और लोगों की सहायता से , तैयार हो रहा है अगर आपने कविता - कोश न देखा हो तो मेरी आपसे नम्र इल्तजा है , आप अवश्य देखें इस साइट को ! यहां बहुत सारी कविता और कवि आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं --
आज , ये कविता आपके साथ शेर कर रही हूँ जो मुझे बहुत पसंद आयी और मन को छू गयी
चोर का गमछा छूट गया
जहां से बक्सा उठाया था उसने,
वहीं-एक चौकोर शून्य के पास
गेंडुरियाया-सा पड़ा चोर का गमछा
जो उसके मुंह ढंकने के आता काम
कि असूर्यम्पश्या वधुएं जब, उचित ही, गुम हो गई हैं इतिहास में
चोरों ने बमुश्किल बचा रखी है मर्यादा
अपनी ताड़ती निगाह नीची किए
देखते, आंखों को मैलानेवाले
उस गर्दखोरे अंगोछे मेंगन्ध है उसके जिस्म की
जिसे सूंघ/पुलिस के सुंघिनिया कुत्ते शायद उसे ढूंढ निकालें
दसियों की भीड़ में, हमें तो
उसमें बस एक कामगार के पसीने की गन्ध मिलती है
खटमिट्ठी
हम तो उसे सूंघ/केवल एक भूख को
बेसंभाल भूख को
ढूंढ़ निकाल सकते हैं दसियों की भीड़ में
रचनाकार: ज्ञानेन्द्रपति
"कविता कोश " से लिया गया
पता : www।kavitakosh।org
hamse bantne ke liye shukriya.....
ReplyDeleteवाह चोर को भी कामगार की सज्ञां दी गई अच्छा लगा...
ReplyDeleteआभार इसे प्रस्तुत करने के लिए.
ReplyDeleteचोरी करने के लिये भी तो मेहनत करनी पडती हे ना. धन्यवाद
ReplyDeleteलावण्याजी
ReplyDeleteअसूर्यम्पश्या वधु.... समझांनेका कष्ट कीजियेगा
-हर्षद जाँगला
एट्लांटा युएसए
अरे वाह ..हर्षद भाई , आज आप भी हिन्दी मेँ लिख रहे हैँ !! :-)
ReplyDeletethis is good --
" असूर्यम्पश्या वधु"....
इसका अर्थ होता है "ऐसी स्त्रीयाँ जिन्हेँ सूर्य की किरणेँ भी छू नही सकतीँ होँ " माने जो पर्दानशीन होँ और आम लोगोँ की नज़रोँ से हमेशा दूर रहतीँ होँ -
- लावण्या
अच्छा लग चोर का महिमामण्डन!
ReplyDeleteअनुराग भाई, सुनीता जी, समीर भाई, राज भाई, ज्ञान भाई साहब्,
ReplyDeleteआप सभी का आभार जो आप्ने यहाँ आकर कविता को पढा -
और अपने विचार रखे.
मेरे खयाल से ये कविता चोर क्यूँ बना एक इन्सान , उस के बारे मेँ है
उसकी भूख,
लाचारी, विवशता और अपने सँजोग से चोरी जैसे काम से पेट भरने
की क्रिया और उस पे, समाज के न्यायाधीश व पुलिस के चोर के गमछे
को सुँघाकर कुत्तोँ से पकडवाने के प्रति कवि ने ध्यान खीँचा है --
सादर, स - स्नेह,
-- लावण्या