

" स्वागतम्` शुभ स्वागतम आनंद मंगल मंगलम, नित प्रियम भारत भारतं " मेरे पिताजी की यह कविता , से आप का परिचय करवाते , हुए अपार हर्ष हो रहा है ! और इसीका इंगलिश अनुवाद , सुप्रसिध्ध सिने - स्टार श्री अमिताभ बच्चनजी के स्वर में , दोहराया गया था । : http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/narendrasharma/swagatam.htm
शब्द संस्कृत वेदों की ऋचाओँ के समान प्रभावशाली हैं।
भारत पुण्य भूमि का जय गान करते हुए ..... ,
भारत पुण्य भूमि का जय गान करते हुए ..... ,
" स्वागतम शुभ स्वागतम ! आनंद मंगल मंगलम नित प्रियं भारत भारतम ! "[ कवि आनंद से पूरित सु - अवसर पर , सभी देशों के खिलाड़ियों का स्वागत करते हुए कहते हैं की " मेरे प्रिय स्वदेश में आप का स्वागत है !
" नित्य निरंतरता नवता मानवता , समता ममता सारथी साथ मनोरथ का , जो अनिवार नही थमता ! संकल्प अविजित अभिमतम ! "[ आधुनिक युग में , नित्य प्रति , लगातार , नई बातें हो रहीं हैं। मानव ममता लिए सभी को एक समान रूप से देखते हें ये कवि की महत्त्वाकाँक्षा है।
साथ कौन है ? दीर्घ संकल्पों का वाहन चालक = सारथी श्री कृष्ण रुपी ह्रदय है जो सर्वथा, गति शील है और विजयी होने का प्रण लिए समूह में एकत्रित
साथ कौन है ? दीर्घ संकल्पों का वाहन चालक = सारथी श्री कृष्ण रुपी ह्रदय है जो सर्वथा, गति शील है और विजयी होने का प्रण लिए समूह में एकत्रित
" कुसुमित नयी कामनाएं ,सुरभित नयी साधनाएँ ,
मैत्री मति क्रीडाँगण मेँ , प्रमुदित बंधू भावनाएं "
शास्वत सुविकसित अति शुभम !"
[ इस खेल के मैदान में , मैत्री भाव से खेले गए खेलों में = यानि - प्रेम मैत्री आदर विकसित हो, ये कवि की प्रार्थना है । नई इच्छाओं के सहारे, नई साधना संपन्न हो ये आशा है ! ]
और फ़िर क्या होगा ? " आनंद मंगल मंगलम , नित प्रियम भारत भारतम !"
और फ़िर क्या होगा ? " आनंद मंगल मंगलम , नित प्रियम भारत भारतम !"
भारत हमेशा प्रियकर रहेगा जहाँ सर्वदा आनद और मंगल हो ! शुभम !
-- लावण्या
अमरीकी राष्ट्रप्रमुख बिल क्लिँटन जी "ओपरा" के टेलिविजन शो के मुख्य अतिथि हैँ। देख रही हूँ ये शो ! वे कह रहे हैँ, " जो मीस लुइन्स्की के साथ हुआ वो एक पागल्पन था ... शुरु से ही .... जीवन के कई प्रसँगो मेँ होता है ..मुझे ऐसा लगा था मानोँ किसी को इस बात का पता नहीँ चलेगा ( लुइन्स्की का ) नाम मट्टी मेँ, घसीटने की कोई जरुरत नहीँ थी। मैँ आशा करता हूँ कि इस १५ मिनट की जूठी शोहरत, उनकी जिँदगी का अक्स नहीँ बनेगी और वे, आगे भी, भरीपूरी ज़िँदगी जीयेँगीँ ..अगर मेरी उनसे कहीँ मुलाकात हो गयी तो मैँ उन्हेँ "हेलो " कहकर आगे बढ जाऊँगा"
अमरीकी राष्ट्रप्रमुख बिल क्लिँटन जी "ओपरा" के टेलिविजन शो के मुख्य अतिथि हैँ। देख रही हूँ ये शो ! वे कह रहे हैँ, " जो मीस लुइन्स्की के साथ हुआ वो एक पागल्पन था ... शुरु से ही .... जीवन के कई प्रसँगो मेँ होता है ..मुझे ऐसा लगा था मानोँ किसी को इस बात का पता नहीँ चलेगा ( लुइन्स्की का ) नाम मट्टी मेँ, घसीटने की कोई जरुरत नहीँ थी। मैँ आशा करता हूँ कि इस १५ मिनट की जूठी शोहरत, उनकी जिँदगी का अक्स नहीँ बनेगी और वे, आगे भी, भरीपूरी ज़िँदगी जीयेँगीँ ..अगर मेरी उनसे कहीँ मुलाकात हो गयी तो मैँ उन्हेँ "हेलो " कहकर आगे बढ जाऊँगा"
अब देख रही हूँ टी.वी. पे ~ जनाब बील क्लिँटन जी ने अपकी किताब लिखी है जिसका लोकार्पण न्यू - योर्क महानगर मेँ हो रहा है. बील जी किताब मेँ हस्ताक्षर करते जा रहे हैँ लोगोँ की लम्बीकतार 'बार्न्ज़ एन्ड नोबल ' की बडी और आलीशान किताबोँ की दुकान के बहार भीड जमाये खडी है ! टीवी पत्रकार बतला रहे हैँ कि ये कीताब "बेस्ट सेलर " बन गई है!
अमेरीका मेँ "हीरो " कयी रँगोँ मेँ देखे जा सकते हैँ ! फ्रेन्कलीन डीलानो रुझ्वेल्ट अमरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अपँग थे। अकसर उनके पैरोँ पे एक कँबल डाले रहते ! जब रेडियो द्वारा उनके सम्भाषण प्रसारित होते और समूचा देश, मँत्रमुग्ध हो कर उनके एक एक शब्द को सुनता रहता था। उनकी मृत्यु के समय अमरीकी बहुत रोये थे और आज तक, फ्रेन्क्लीन रुझवेल्ट अमरीकी जनता के ह्र्दय मेँ बसे हुए हैँ ! उतने ही बल्कि रुझ्वेल्ट से कुछ अधिक प्रिय हैँ अमरीकी प्रजा को राष्ट्रपति जोन फ़ीट्ज़रजेलाड केनेडी! अपने राष्ट्र प्रमुख के लिए यह प्यार ~ "अन कन्डीशनल " माने किसी भी नियम या सीमा से परे है ! उसका कारण है जोन केनेडी की अचानक हुई निर्मम हत्या ! जो डलास शहर मेँ दिन- दहाडे हुई ! ऐसा समर्पित प्यार, अपने नेताओँ स, शायद अमरीकन प्रजा ही करती है। कितना दुखद है, ऐसा प्रेम हम हमारे नेताओँ से नहीँ करते !
जब मैँ भारत के गिने चुने राज्य नेताओँ के बारे मेँ सोचती हूँ तब, एक नाम उभर कर सबसे ऊपर आ जाता है -गाँधी बापु का !
भारत के महात्मा को ना ही हम आज इतनी श्रध्धा या आदर से याद करते हैँ ना ही उनकी दी हुई सीख को या बातोँ को अपनाते हैँ , हमेँ तो उनकी अच्छाईयोँ के साथ भी उनके अनेकानेक अवगुण दीखलाई देते हैँ !
क्योँ उन्होँने पाकीस्तान बनने दिया ? कायदे आज़म् जिन्ना को मनमानी करने दी थी बापु ने !! ..दलितोँ के लिये खास नहीँ किया ! ये ना किया वो ना किया - ये किया तो क्यूँ किया? हमेँ शिकायतेँ ही अक्सर होतीं रहतीं हैँ अपने समाज से, आसपास से, हर किसी से ! हम क्या बदलेँगेँ ? कुछ नहीँ जी ! ..ना खुद को ना ही किसी अन्य बातोँ को !! ..हम भारतीय इतने भोले या सीधे नहीँ ..अक्सर हममेँ, एक रुढीगत सोच है जिसे अंग्रेज़ी में कहेंगें -"Native intellegence "
जो हमे अक्सर, स्वार्थी और चालाक बनाये रखती है। जिसके असर तले अधिकाँश भारतीय लोग, वही करते हैँ जो उनके हित मेँ होता है !.. हमारा समाज ठीक वैसा है जैसा हिन्दुस्तान मेँ दीखलाई पड़ने वाला ' हाथी' होता है जिसके खाने के और चबाने के दाँत अलग होते हैँ! हम एक तो वो हैँ जो दुनिया देखती है ..और दूसरे जैसे हम भीतर से होते हैँ !
फिर भी, भारत और अमेरीका मेँ एक मूलभूत अँतर भी है ..एक अमरीकी इंसान -- बाहर की दुनिया में, माने अपना काम करते वक्त, जिसे कहेँगेँ औपचारिक मामलो मेँ, अक्सर बहुत ज्यादा सभ्यता से पेश आता है। परँतु भीतरी जीवन मेँ, आँतरिक रहन सहन मेँ, यही आदर्श छवि अक्सर इस बर्ताव से अलग भी होती हैँ। हाँ यह सब हरेक व्यक्ति पे निर्भर करता है। उसका बाह्य व आँतरिक स्वभाव या व्यवहार कैसा होगा। जबकि, भारतीयोँ के घर पर आप चले जाइये, वे अधिकाँश मामलों में आगंतुक के साथ सभ्य व मृदु व्यवहार करेँगे। भारतीय सभ्यता व रीति रिवाज़ों से आनेवाले अतिथि की भली प्रकार से आवभगत करेँगेँ। हो सकता है शायद बाहरी जीवन मेँ रीश्वत देने लेने मेँ वही व्यक्ति हीचकते ना होँ ! अमरीकी, यथासँभव, नए पहचान वालों को अपने निजी आवास या अपने घर पर बुलायेँगे ही नहीँ.! ......बाहर रेस्टारन्टमेँ ही खाना खिलाना पसँद करेँगेँ .! .....
यह भारतीय मूल के लोगों में तथा अमरीकी लोगों के व्यवहार के बारे में क़ुछ असामनताएँ हैँ जिसे एक दीर्घकालीन समय के पश्चात ही जान पाई हूँ। !
क्योँ उन्होँने पाकीस्तान बनने दिया ? कायदे आज़म् जिन्ना को मनमानी करने दी थी बापु ने !! ..दलितोँ के लिये खास नहीँ किया ! ये ना किया वो ना किया - ये किया तो क्यूँ किया? हमेँ शिकायतेँ ही अक्सर होतीं रहतीं हैँ अपने समाज से, आसपास से, हर किसी से ! हम क्या बदलेँगेँ ? कुछ नहीँ जी ! ..ना खुद को ना ही किसी अन्य बातोँ को !! ..हम भारतीय इतने भोले या सीधे नहीँ ..अक्सर हममेँ, एक रुढीगत सोच है जिसे अंग्रेज़ी में कहेंगें -"Native intellegence "
जो हमे अक्सर, स्वार्थी और चालाक बनाये रखती है। जिसके असर तले अधिकाँश भारतीय लोग, वही करते हैँ जो उनके हित मेँ होता है !.. हमारा समाज ठीक वैसा है जैसा हिन्दुस्तान मेँ दीखलाई पड़ने वाला ' हाथी' होता है जिसके खाने के और चबाने के दाँत अलग होते हैँ! हम एक तो वो हैँ जो दुनिया देखती है ..और दूसरे जैसे हम भीतर से होते हैँ !
फिर भी, भारत और अमेरीका मेँ एक मूलभूत अँतर भी है ..एक अमरीकी इंसान -- बाहर की दुनिया में, माने अपना काम करते वक्त, जिसे कहेँगेँ औपचारिक मामलो मेँ, अक्सर बहुत ज्यादा सभ्यता से पेश आता है। परँतु भीतरी जीवन मेँ, आँतरिक रहन सहन मेँ, यही आदर्श छवि अक्सर इस बर्ताव से अलग भी होती हैँ। हाँ यह सब हरेक व्यक्ति पे निर्भर करता है। उसका बाह्य व आँतरिक स्वभाव या व्यवहार कैसा होगा। जबकि, भारतीयोँ के घर पर आप चले जाइये, वे अधिकाँश मामलों में आगंतुक के साथ सभ्य व मृदु व्यवहार करेँगे। भारतीय सभ्यता व रीति रिवाज़ों से आनेवाले अतिथि की भली प्रकार से आवभगत करेँगेँ। हो सकता है शायद बाहरी जीवन मेँ रीश्वत देने लेने मेँ वही व्यक्ति हीचकते ना होँ ! अमरीकी, यथासँभव, नए पहचान वालों को अपने निजी आवास या अपने घर पर बुलायेँगे ही नहीँ.! ......बाहर रेस्टारन्टमेँ ही खाना खिलाना पसँद करेँगेँ .! .....
यह भारतीय मूल के लोगों में तथा अमरीकी लोगों के व्यवहार के बारे में क़ुछ असामनताएँ हैँ जिसे एक दीर्घकालीन समय के पश्चात ही जान पाई हूँ। !
प्राईवेट लाइफ को प्राइवेट रखना अमरीकी आदत है - और स्वभाव भी है।
२१ वीँ सदी के विश्व नागरिक बने हुए हम भारतीय मोल के लोग ना जाने आगामी समय में कैसा व्यवहार करेँगेँ ? भूतकाल से सीख लेकर्, हमारी वर्तमान की गल्तियोँ को सुधार कर, क्या हम नया और बेहतर भविष्य बनाने मेँ सफल होँगेँ या नहीं ? क्या यह दुनिया सामाजिक पतन एवं विभिन्न प्रदेशों में विनाश का सृजन करेगी ? क्या सभ्यताएँ कुमार्ग पर अग्रसर होगी ?
वैर भावना जीतेगी या विश्व बँधुत्व की भावना का कँवल खिलायेँगेँ हम ?
-- लावण्या
अच्छा लगा यह आलेख. ऐसे ही जानकारी देते रहिये, आभार.
ReplyDeleteमैं तो प्रभावित हूं कि आपके मस्तिष्क में यह सब चलता रहता है।
ReplyDeleteसुंदर आलेख. कृपया गीत का लिंक दुरुस्त कर लीजिये. ये है स्वागतम.
ReplyDeleteबहुत ही रोचक जानकारी दे रही है आप लिखती रहे ..
ReplyDeleteबहुत ही रोचक लेख है.....
ReplyDeleteपतन और उत्थान दोनों एक साथ चलते हैं। जो नेता जनता के साथ चलते हैं, उन की अगुआई करते हैं, उन की आकांक्षाओं को जीवन्त करने के लिए काम कर रहे होते हैं वे ही जनता के आदर्श होते हैं। और जब वे या उन के अनुयायी समाज के शोषक वर्गों का प्रतिनिधित्त्व करने लगते हैं तो जनता को खटकने लगते हैं। लेकिन जनता की आंकाक्षाओं को जीवन्त बनाने वाले नेता जन्म लेते ही रहेंगे।
ReplyDeleteजिस समय आपकी ये पोस्ट पढ़ रहा हूँ टी.वी. पर "लगान" चल रही है.
ReplyDelete"कचरा" वाला सीन दिखाया जारहा है.
सोचिये दिमाग मे क्या क्या चल रहा होगा?
बहुत ही प्रेरक और जानकारी युक्त.
आपकी टिप्पणीयोँ के लिये आभार
ReplyDelete- लावण्या
Thank you so much Ghost Buster ji ..
Rgds,
L