
सिनेमा की शुरुआत भारत में सन १८९६ , जुलाई की ७ तारीख को हुई :
१८९८ , हीरालाल सेन जी ने Classic Theatre की कलकता में, स्थापना की --
हरिश्चंद्र सखाराम भटवाडीकर १८९७ में , F.B. Thanewala , J.F. Madan ने कलकता में , १९०४ में , Manek Sethna ने Touring Cinema Co.
पुन्डलिक , बनाके , और ये , N.G. Chitre और R.G. Torney की
पहली फ़िल्म थी और राजा हरिश्चंद्र १९१३ में बनी,
पहली सम्पूर्ण हिन्दी फ़िल्म थी इस तरह हिन्दी फ़िल्म संसार की यात्रा आरंभ हुई ।
१९३१ में बनी , आलम आरा पहली स्वर या आवाज़ से युक्त फ़िल्म थी।
और,
बोम्बे टाकीज़ लिमिटेड की स्थापना सन १९३४, बंबई में हुई !
उस वक्त जब् भारत आजाद भी नही हुआ था।
हिमांशु राय तथा , देविका रानी ने , फ ऐ दिन्शाव , सिर फिरोज़े सेठना
Franz Osten और निरंजन पाल के साथ मिलकर इस की नींव रखी थी।
१९४७ में भारत की आज़ादी के बाद , ऐसे गीत , चित्रपट तथा साहित्य की आवश्यकता हुई जिससे , भारत के युवा वर्ग को और आम जनता को, देश - प्रेम और स्वाभिमान तथा देश के प्रति गौरव की भावना जन्मे और विकसित हो ....
" इंसान क्या इंसान क्या जो ठोकर नसीब की न सह सके,
इंसान क्या , इंसान क्या , इंसान क्या " इसी भावना को उभारता हुआ गीत है जो फ़िल्म " हमारी बात " के लिए लिखा गया था।
अब फ़िल्म हमारी बात की ओर चलें :~~
उस वक्त , बोम्बे टाकीज़ , सुप्रसिध्ध अदाकारा श्रीमती देविका रानी की कम्पनी थी।
हिमांशु राय जी का , तब तक , देहांत हो चुका था --
साल था :१९४३ इस फ़िल्म की मुख्य भुमिका स्वयं देविका रानी निभा रहीं थीं साथ थे जयराज जी , सुरैया अरुण कुमार !
पारुल घोष , अनिल बिस्वास , नरेन्द्र शर्मा ने गीतों पे काम किया था :
अनिल दा ने इस गीत को अपनी बहन पारुल के संग गाया है - पन्ना लाल घोष बांसुरी वादक थे , पारुल उन्हीं की पत्नी थीं ! पन्ना बाबू ने १९ वें रस्ते पर बहुत सारी जमीन खरीदी थी , जिसका एक टुकडा , पापा जी ने लिया और एक ऐक्टर जयराज जी ने खरीदा और तभी से हम लोग पडौसी हो गए ! जयराज जी का घर जल्दी बना , हम थोड़े साल बाद आए , खार के उपनगर में रहने के लिए , आज जयराज जी नहीं हैं, उनके घर के स्थान पे, ६ मंजिला इमारत बन गयी है जहां बांसुरी वादक हरी प्रसाद चौरसिया जी रहते हैं --
जीवन बहता जा रहा है ---
और ये शब्द आज भी सोलहों आने सच लगते हैं --
" इंसान क्या इंसान क्या जो ठोकरेँ नसीब की न सह सके, इंसान क्या , इंसान क्या , इंसान क्या "
इंसान क्या जो गर्दिशों के बीच खुश ना रह सके ,
इंसान क्या इंसान क्या जो ठोकरेँ नसीब की न सह सके,
इंसान क्या , इंसान क्या , इंसान क्या ...
मैं किश्ती क्यूँ न छोड़ दूँ , बलाओँ के मुकाबिले, तूफानों के मुकाबिले \-२
वो किश्ती क्या जो आँधियों के साए में ना रह सके \-२ इंसान क्या .....
दोनों \: इंसान क्या जो ठोकरे नसीब की न सह सके , इंसान क्या
पारुल \: बच बच के चलने वाले की है ज़िंदगी क्या ज़िंदगी
दोनों \: है ज़िंदगी , क्या ज़िंदगी ) \-२
पारुल \: दरिया \-ऐ \-ज़िंदगी में जो न मौज बन के बह सके \-२
दोनों \: न मौज बन के बह सके \-४
दरिया \-ऐ \-जिंदगी में जो न मौज बन के बह सके \- २
इंसान क्या इंसान क्या जो ठोकरेँ नसीब की न सह सके .... इंसान क्या ...
नीचे के दुर्लभ चित्र नंबर १ और २ में, बोम्बे टाकीज़ की ओफीस में , चल रही ,
मीटिंग का द्रश्य देख सकते हैं -- ध्यान से देखने पर , कलाकार राज कपूर साहब व दिलीप कुमार भी दिख जायेंगें और , पीठ किए हुए चश्मा पहने खड़े हैं , वे हैं , फ़िल्म के लिए , गीत व कविता रचनेवाले नरेन्द्र शर्मा ! -- मेरे पापा --

तथा पीछे की पंक्ति में, अनिल दा व पापा भी हैं -- ( अ मीटिंग इन प्रोग्रेस )

इस पुरानी फ़िल्म के साथ जुड़े हैं कुछ , नाम जैसे , पारुल घोष - अनिल बिस्वास और नये हीरो , दिलीप कुमार ! जिनकी ये सबसे पहली फ़िल्म थी। यहीं से उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ था।
अनिल दा ' ने तब तक, बसंत , रोटी , हमारी बात , किस्मत , पहली नज़र ,मिलन इनके लिए भी संगीत दिया था। ज्वार भाटा भी इसी की एक कड़ी रही ।
राग कल्याण का इस फ़िल्म के गीतों में बखूबी प्रयोग किया गया है जो अनिल दा के बाद आए अन्य संगीतकारों ने अनिल दा की तरह कभी नहीं किया था।
अनिल दा कलकता से , बंबई आए और साथ आयीं उनकी बहन पारुल घोष !
पारुल जी की आवाज़ बहुत नाज़ुक थी और बंगाल की माटी की सौंधी सुगंध लिए थी - ज्वार भाटा के २ गीत इस तरह हैं -
'प्रभू चरणों में दीप जलाओ ' और, " मोरे आँगन में छिटकी चांदनी ~~
फ़िल्म में थीं मृदुला , शमीम , आगा जान , दिलीप कुमार , अरुण कुमार , विक्रम कपूर -गायिका : पारुल घोष संगीत : अनिल बिस्वास : गीत रचना : नरेन्द्र शर्मा : निर्देशका थे : अमिय चक्रवर्ती।
बोल हैं : ~~~
"मोरे आँगन में छिटकी चान्दनी , घर आ जा सजन ,
छेडी कोयल ने प्रीत की रागिनी , मीठी , अगनी मोरे अंग जला _ऐ ,
प्रीत की ज्वाला सही न जा _ऐ,
कुम्हला _ऐ पीया बिन कामिनी _गई सजन संग नींद निगोडी,
तडपत नित नैनंन की जोड़ी , मैं बनी तेरी बैरागिनी"
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प्रभू चरणों में , दीप जलाओ -
पारुल घोष शायद अमीर बाई ? तथा कोरस का गाया हुआ
तथा अनिलदा का भजन है ! बंगला कीर्तन स्टाइल में , रचा हुआ ये भजन ,
प्रथम २ पंक्तियों में , अमीर बाई ने गाया है ...
कोरस :प्रभू चरणों में दीप जलाओ , मन मन्दिर उजियाला हो ,
करेँ कृपा जो कृष्ण चन्द्र तो क्यूँ न दूर , अँधियाला हो ?
ह्रदय कमल का सिँहासन बने कृष्ण का वृँदावन,
जीवन अपना उसे सौंप दो जो जग का रखवाला है ,
मन मन्दिर का रखवाला है .....
नैना प्रेम - चातक और सखि, चन्दा नन्द किशोर हो
इन से देख जगत को , बसे जहा नंदलाला हो
गिरिधर के चरणों में आ , राधेश्याम नाम गुन गा
कोरस : राधेश्याम राधेश्याम राधेश्याम राधेश्याम
पारुल : गिरिधर के चरणों में आ ,
मालिक मेरा , बन्सीवाला , मेरा मन ब्रजवाला हो ~
अब फ़िल्म हमारी बात की ओर चलें जहां से बात शुरू हुई थी :~~
दूसरा गीत है ,
" सूखी बगिया हरी हुई _अब , सूखी बगिया हरी हुई _
घन श्याम बदरिया छाई _रि, श्याम बदरिया छाई _
डाल डाल नव पल्लव झूले , बीती बातो को मन भूले ,
जीवन की रीती नदिया माने _ तरंग लहराये , श्याम बदरिया छाई _
बहता जल नैना रुत , नये फूल फल
नये गुलों के गालों पर नन्ही शबनम मुसकाई _ रि ,
घन श्याम बदरिया छाई _रि,
************************************************************- लावण्या
बहुत सी रोचक जानकारी और दुर्लभ तस्वीरें दिखलाने का आभार.
ReplyDeleteA wonderful journey of Indian Cinema... great and rare pics !
ReplyDeleteसिनेमा जगत की अन्तरन्ग जानकारी और चित्र देख कर मन प्रसन्न हुआ।
ReplyDeleterochak jankari.aap se kaise sampark kiya ja sakta hai.is mailid par likhen to chavanni ko khushi hogi.
ReplyDeletechavannichap@gmail.com
सिनेमा मेरा प्रिय विषय है.. और आपकी दी हुई जानकारी ने मान मो लिया.. बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत रोचक, और चित्र तो वाकई दुर्लभ हैं. आपका बहुत बहुत aabhar.
ReplyDeleteपंडित नरेन्द्र शर्मा जी जिनका हाथ थामे खड़े हैं वे महान रशियन पेंटर स्वेतोस्लाव रोरिक (Svetoslav Roerich) हैं. हिमांशु राय की मृत्यु के बाद सन् १९४५ में देविका रानी ने इनसे विवाह किया था. रोरिक की एक पेंटिंग सन् १९९८ में वडोदरा के संग्रहालय में देखने की याद है. नीले रंग का क्या ही शानदार प्रयोग था. अब तक आंखों के सामने है.
भारत सरकार रोरिक पर एक डाक टिकिट जारी कर चुकी है. यहाँ देख सकते हैं.
रोचक जानकारी और दुर्लभ तस्वीरें दिखलाने का शुक्रिया.आपके पास वाकई खजाना है...
ReplyDeleteबहुत सी रोचक जानकारी और दुर्लभ तस्वीरें दिखलाने का आभार.
ReplyDeleteआपने तो रजतपट के सुनहरी दौर की वह छवियाँ दिखला दी लावण्या बेन जब कलात्मकता अपनी पराकाष्ठा पर थी. ये सारे लोग मनोरंजन उद्योग के शुभंकर (icons)थे.पापाजी किस बलन के इंसान थे वह इन चित्रों से महसूस हुआ. और हमारे अज़ीज़ अनिल दा जैसे खरी धुनें बनाते थे वैसे ही चोखे
ReplyDeleteमनुष्य थे.इन सब को निहारना और उस दौर के संस्मरण और गीत का रसपान करना जैसे किसी तीर्थ यात्रा का पुण्य कमाने जैसा है.घोस्ट बस्टर के ज़रिये डॉ.रोरिक की जानकारी महत्वपूर्ण है.उन्हें भी धन्यवाद.और आपको तो है ही लावण्याबेन.