
हम पंछी एक डाल के :
आहा देखिये कित्ते मजे से सारे पंछी, एक ही डाल पे बैठे हैं !!!
हिन्दी ब्लॉग जगत के लिखनेवाले भी इसी तरह , एक डाल पे बैठे हुए हैं ..अपनी अपनी बोली , गीत, ग़ज़ल, कहानी, व्यंग्य , कविता, साक्षात्कार इत्यादी लिख रहे हैं, अपनी बात रख रहे हैं ...
ये फ़िल्म बचपन में देखी थी ...
उसका ये गीत हम बच्चे खूब मौज में , साथ मिलकर गाया करते थे .......
काफी तलाश की वेब पे ...पर सिर्फ़ ये गीत ही मिला ...
संगीत : मोहम्मद रफी , आशा भोसले
संगीत निर्देशक : N Dutta गीतकार : P L Santoshi
कलाकार : Murad, David, Romi, Jagdeep, Satish Vyas, Mohan Choti, Roop Kumar
गीत के बोल हैं ; ~~
जिस घर के लोगों को सुबह झगड़ते देखा है
शाम हुई कि घर वही उजड़ते देखा है
अरे बनती नहीं है बात झगड़े से कभी यारोंअरे बनती बात को बिगड़ते देखा है अरे हम पंछी ( एक डाल के ) - २ -
संग संग डोलें जी संग-संग डोलेंबोली अपनी-अपनी बोलें जी बोलें जी बोलें जी
कोरस : संग-संग डोलें ... दिन के झगड़े दिन को भूलें रात को सपनों में हम झूलेंधरती बिछौना नीली चदरिया मीठी नींदें सो लें जी सो लें जी सो लें
कोरस : संग-संग डोलें ...
सच है. ब्लॉगजगत ऐसा ही तो है. बड़ी प्यारी तस्वीर है चिड़ियों की.आभार.
ReplyDeleteयह तो सर्वदा होते देखा है। लोग मिलते-बिछुड़ते-झगड़ते-मिलते हैं।
ReplyDeleteपर इतना सुन्दर चित्र कहां से पाय जी!
सुन्दर बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteLavanyaji
ReplyDeleteI remember having seen this film in schooldays. I used to have this song full in my memory.
Great write up.
Thanx & Rgds.
बहुत सुंदर.. आपकी सोच और तस्वीर दोनो को नमन
ReplyDeletesach mein itni sundar tasveer hai...kitne pyare lag rahe hain sab panchi ek saath ek daal par...agar akele akele baithey hote to utna anand nahin aata--
ReplyDeleteshayad Sameer ji ki kal ki post par yah sandesh sab ke liye aaya hai--
जिस घर के लोगों को सुबह झगड़ते देखा है
शाम हुई कि घर वही उजड़ते देखा है
अरे बनती नहीं है बात झगड़े से कभी यारोंअरे बनती बात को बिगड़ते देखा है अरे हम पंछी ( एक डाल के ) -
is sandesh ko sab ko samjhna chaheeye--
-blog ki duniya mein aman-shanti,sukh -chain bana rahe.
aisee dua karte hain--
aur--
lavnaya Di aap sachchee subh chintak hain..koi shaq nahin ....
दी, वो गाना याद आया-- ओ पंछी प्यारे सांझ सकारे बोले तू कौन सी बोली बता रे--- बहुत प्यारा चित्र है :)
ReplyDeletesoooooooooooooooo cute !
ReplyDeleteबहुत ही प्यारा और सुंदर चित्र है। और आपका संदेश जरुर सभी तक पहुंचेगा।
खूबसूरत चित्र और गीत दोनों... अनायास ही शिव मंगल सिंह 'सुमन' की एक कविता याद आ गई...
ReplyDeleteहम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध ना गा पाएंगे.
कनक तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएंगे.
vah vah......ishvar aapki manokaamna puri kare....
ReplyDeleteआप सभी का सहर्ष धन्यवाद ! पारुल ने इतना मधुर गीत याद करवाया, पर ऐसे काम नहीँ चलेगा जी ..
ReplyDeleteअब, वही गाना पूरा गा के सुनाना पडेगा जी ..
और अभिषेक भाई , कितनी सुण्दर और सच्ची काव्य पँक्तियाँ सुनवायीँ आपने ..
कवि श्री सिव मँगल सिँह सुमन मेरे पापा जी के करीबी दोस्त रहे ..उन्हेँ भी नमन !
हाँ, अल्पना जी, समीर भाई जैसे, हँसमुख , ज़िण्दादील और नेक इन्सान को कोयी ऐसी
बुरी टिप्पणी करता है तो हम सभी को दुख होता है ..काश, अनुराग भाई जैसा कह रहे हैँ, मेरी आशाएँ फले,
ज्ञाअन भाई साहब, ममता जी, समीर भाई व अनूप जी आप सभी को ये चित्र पसँद आया .वैसे मुझे भी ये देखते ही भा गया --
Thank you Harshad bhai, I guess we have many shared & similer memories of our growing up years of Songs as well as Mumbai city !! :)
और सेव कर लिया और ये गीत भी याद आ गया था -
स स्नेह,
- लावण्या
आप से ऐसी ही बातों की उम्मीद रखती हूँ,
ReplyDelete....।मेरी भी दी पारूल की तरह ,प्रणाम
;) bahut sahi sundar
ReplyDeleteशुक्रिया आभा जी
ReplyDeleteतथा
महेक जी --
आप आयीँ तो मुझे, अच्छा लगा !
स स्नेह्,
-लवण्या