Tuesday, June 24, 2008

सत रंग चुनर नव रंग पाग ! माया ~~

वर्षा मँगल
सत रंग चुनर नव रंग राग
मधुर मिलन त्यौहार गगन में ,
मेघ सजल , बिजली में आग .............
सत रंग चुनर , नव रंग पाग !
पावस ऋतू नारी , नर सावन ,
रस रिम झिम , संगीत सुहावन ,

सारस के जोड़े , सरवर में , सुनते रहते , बादल राग !
सत रंग चुनर , नव रंग राग !

उपवन उपवन , कान्त - कामिनी , गगन गुंजाये , मेघ दामिनी ,
पत्ती पत्ती पर हरियाली , फूल फूल पर , प्रेम - पराग !

सत रंग चुनर , नव रंग राग .....
पवन चलाये , बाण , बूँद के , सहती धरती , आँख मूँद के -
बेलों से अठखेली करते , मोर ~ मुकुट , पहने , बन ~ बाग़ !
सत रंग चुनर नव रंग पाग !

माया
माया दिखाती पहले धूप रूप की , दिखाती फ़िर मट मैली काया !
दुहरी झलक दिखा कर अपनी मोह - मुक्त कर देती माया !

असम्भाव्य भावी की आशा , पूर्ति चरम शास्वत आपूर्ति की ,
ललक कलक में झलक दिखाती अनासक्त आसक्तिमुर्ति की !

अंत सत्य को सुगम बनातू हरी की अगम अछूती छाया !

मन में हरी , रसना पर षड- रस , अधर धरे मुस्कान सुहानी !

हरी तक उसे नचाती लाती, हरी की जिसने बात न मानी !

शकुन दिखा कर अँध तनय को , हरी - माया ने खेल दिखाया !

संग्न्याहत हो या अनात्मारत आत्म मुग्ध या आत्म प्रपंचक ,

पहुँचाया है हर झूठे को , माया ने झूठे के घर तक !

लगन लगा कर , मोह मगन को , मृग लाल , जल निधि पार कराया !

अंहकार को निराधार कर , निरंकार के सम्मुख लाती !

गिरिजापति का मान बढ़ाने रति के पति को भस्म कराती !

नेह लगाया यदि माया से , निज को खो , हरी - हर को पाया !

अपनी समझ लिए हर कोई , करता रहता तेरी - मेरी !

वोह अनेक जन मन विलासिनी एक मात्र श्री हरी की चेरी !

मैंने इस सहस्ररूपा को , राममयी कह शीश झुकाया !

( रचियता : स्व पंडित नरेन्द्र शर्मा )

28 comments:

  1. पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की रचना पढवाने का शुक्रिया।
    और हाँ, फोटो बहुत ही प्यारे हैं।

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  2. लावण्या बेन ,
    विविध भारती के लोकप्रिय कार्यक्रम रंगतरंग में महेन्द्र कपूर के स्वर में न जाने कितनी बार मैंने सत रंग चुनर नव रंग पाग सुना था. ग़ज़लों और फ़्यूज़न के आलम में हिन्दी गीतों की हत्या हो गई है. पूज्य पापाजी,रमानाथ अवस्थी,वीरेन्द्र मिश्र,मधुकर राजस्थानी,उध्दवकुमार और नीरज के न जाने कितने गीत रंगतरंग की श्री-शोभा हुआ करते थे. आकाशवाणी के स्वर्णिम काम में हिन्दी गीतों की जो छटा बिखरी है उसकी महक अखण्ड है.

    सतरंग चुनर ..राग जगसम्मोहिनी पर आधारित कम्पोज़िशन लगती है . इसी राग को भारत रत्न पं.रविशंकरजी ने फ़िल्म अनुराधा में इस्तेमाल किया था बंदिश थी..हाय रे वो दिन क्यूँ ना आए....

    लावण्या बेन इस गीत को प्रकाशित कर आपने मेरे किशोर संजय को ज़िन्दा किया आज इस सांझ बेला मे.

    अशेष प्रणाम...पापाजी और उनकी इस रचना को.

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  3. हमेशा की तरह जीतने सुंदर शब्द उतनी ही मोहक तस्वीरे.. बधाई स्वीकार करे

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  4. अनुराधा फ़िल्म के गीत और सतरंग चुनर के कंपोज़िशन का राग जनसम्मोहिनी पढ़ा जाए..जगसम्मोहिनी नहीं...त्रुटीपूर्ण टायपिंग के लिये खेद है मुझे.

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  5. बहुत सुंदर दोनों रचनाये ..शुक्रिया इनको पढ़वाने का

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  6. सँजय भाई,
    जी हाँ महेन्द्र कपूर जी के स्वर मेँ गाया यह गीत मुझे बहुत प्रिय है ! शब्द कितने चित्रमय हैँ है ना ?
    काश उसका ओडीयो भी लगा पाती :(
    "जनसम्मोहिनी राग" सचमुच सम्मोहित करनेवाला है -
    "हाये रे वो दिन क्यूँ ना आये "
    भी लतादी का सुमधुर गीत है..
    जो इतने सालोँ के बाद भी उतना ही प्यारा लगता है
    ..यही सँगीत के मर्मज्ञ रविशँकर जी जैसोँ का जादू है जो सर चढकर बोलता है !
    आपकी सुँदर टीप्प्पणी का
    बहुत बहुत आभार !
    आज ही "सत रँग चूनर " गीत को "कविता कोश" मेँ मैँने रखा है -

    http://hi.literature.wikia.com/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE

    - लावण्या

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  7. महामँत्री जी ,
    आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद -
    - लावण्या

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  8. कुश जी व रँजू जी, आपको रचनाएँ पसँद आयीँ और चित्र भी उसके लिये आप दोनोँ का आभार -
    Do see Kavita Kosh & many other beautiful poems from the List of Poets & their poems -

    http://hi.literature.wikia.com/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80

    -- लावण्या

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  9. उपवन उपवन , कान्त - कामिनी , गगन गुंजाये , मेघ दामिनी ,
    पत्ती पत्ती पर हरियाली , फूल फूल पर , प्रेम - पराग !
    सत रंग चुनर , नव रंग राग .....
    पवन चलाये , बाण , बूँद के , सहती धरती , आँख मूँद के -
    बेलों से अठखेली करते , मोर ~ मुकुट , पहने , बन ~ बाग़ !
    सत रंग चुनर नव रंग पाग !

    wah bahut hi khubsurat rachana hai ,lovely pics to.

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  10. kitni sundar rachnaayen hain dono...aur pics bhi utne hi sundar hain....

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  11. शुक्रिया जी :)
    महेक जी
    और
    पल्लवी जी ,
    -लावण्या

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  12. उनकी लेखनी में कुछ अलग ही बात है लावण्या जी.....शुक्रिया पढ़वाने के लिए....चित्र भी खूबसूरत है....

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  13. शुक्रिया पढ़वाने के लिए,बधाई.

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  14. इतनी सुन्दर कविताएँ पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
    घुघूती बासूती

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  15. प्रकृति और जीवन का सौन्दर्य निखर आया है पहली रचना में।
    दूसरी रचना पहली रचना के उद्गम को विस्मृत कर विलासिता में मगन व्यक्ति की आँखे खोल सत्य को उद्घाटित कर रही है।
    यहाँ गीता का निर्लिप्त भोग भी स्मरण होने लगता है। रूप और अर्तवस्तु को इतने संश्लिष्ट रूप में सहजता से प्रस्तुत कर देना ही पंडित जी के काव्य की यही तो महानता थी।

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  16. Lavanyaji
    Both poems are so good that gives us the richness of Papaji's words in this powerful language.
    Shat shat pranams to him and Abhaar aapka for presenting such beautiful creations.
    Paag is Pagdi, am I right?

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  17. bahut hi sundar aur mohak nav rang..bahut bhaya.

    लगन लगा कर , मोह मगन को , मृग लाल , जल निधि पार कराया !

    अंहकार को निराधार कर , निरंकार के सम्मुख लाती !

    गिरिजापति का मान बढ़ाने रति के पति को भस्म कराती !

    नेह लगाया यदि माया से , निज को खो , हरी - हर को पाया !

    pandit narendra ji ki rachna padhwayee -us ke liye dhnywaad.
    kavita kosh ke link ka address bhi note kar liya hai--

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  18. कमाल का लेखन है... धन्यवाद इन रचनाओं के लिए... ज्यादातर फिल्मी गीत ही सुने हैं हमने पंडित जी के. ऐसी रचनाएँ आपके ब्लॉग से मिल रही हैं... धन्यवाद.

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  19. ''उपवन उपवन , कान्त - कामिनी , गगन गुंजाये , मेघ दामिनी ,
    पत्ती पत्ती पर हरियाली , फूल फूल पर , प्रेम - पराग !
    सत रंग चुनर , नव रंग राग .....
    पवन चलाये , बाण , बूँद के , सहती धरती , आँख मूँद के -
    बेलों से अठखेली करते , मोर ~ मुकुट , पहने , बन ~ बाग़ !
    सत रंग चुनर नव रंग पाग !
    ''

    इन दिनों हमारे यहां अमूमन हर रोज बारिश हो जा रही है। ऐसे सुहाने समय में इतनी सुंदर पंक्तियां वर्षा ऋतु की मनोहारी छटा को मानो जीवंत कर दे रही हैं।

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  20. बहुत सुंदर रचनाएँ...पढ़कर बहुत प्रसन्नता हुई.

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  21. didi sablog sab kah gaye mai kya kahuun? :)))))))))))) bahut aabhaar

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  22. माया दिखाती पहले धूप रूप की , दिखाती फ़िर मट मैली काया !
    दुहरी झलक दिखा कर अपनी मोह - मुक्त कर देती माया !
    बहुत खूबसूरत ...प्रकृति में मानवीकरण मन को मोह लेता है...

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  23. डा. अनुराग भाई,
    महेँद्र भाई साहब,
    घुघूती जी,
    दिनेश भाई जी,
    हर्षद भाई,
    अल्पना जी,
    अभिषेक भाई,
    डा. अमर कुमार जी,
    अशोक भाई साहब,
    शिव भाई,
    पारुल
    और
    मीनाक्षी जी ,
    आप सभी की टिप्पणीयाँ पढकर
    मन प्रसन्न है कि आप आये , कविता का रसास्वादान किया और अपने अपने विचार यहाँ रखे
    - आप सभी को स स्नेह,
    धन्यवाद -
    लिखना सफल हो गया आज ...
    - लावण्या

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  24. पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की रचना पढवाने का शुक्रिया।

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  25. देर से देखा, और आज तो पोस्ट से भी प्रभावित हूं; टिप्पणियों से भी!

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  26. श्रध्धा जी
    और
    ज्ञान भाई साहब,
    आप दोनोँ का भी आभार -
    कविताओँ को इतना सुँदर प्रतिसाद मिला है ये देखकर सारी मेहन सफल हुई ऐसा लग रहा है -
    - लावण्या

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