Tuesday, July 15, 2008

सुख ~ दुःख

दुःख
सुख
मेरे कुछ ख्याल भी यहाँ कह देती हूँ ,सुनिए
" किस्मत का नही दोष बावरे , दोष नही भगवान का !
दुःख देना इन्सान को जग में , काम रहा इंसान का ! "

[ पंडित नरेन्द्र शर्मा के फिल्मी गीत की पंक्तियाँ ] और

सच
" सुख - दुख में मानव को ,सुख ही प्रिय है ~
पर , सुख क्या है ?
सुख भिन्न और सुख भोग भिन्न
सुख भोग , क्षणिक इन्द्रिय नर्तन ,
सुख अमर , चिरन्तन , आत्म - जन्य ! "
[ सुकवि सुमित्रा नंदन पन्त जी की काव्य पंक्तियाँ ]
मेरी लिखी कविता से भी ,
" हो रे मन की भूमि पर ,
दुःख का हल , गड़वा कर , जब कोई धीरे धीरे से
चलता है, चलता है !
दुःख की बरखा से सींच सींच कर ,
सुख की उजली फसल को ,
अकसर बाँट दिया जाता है !

( गम और खुशी का अनुभव ही जिंदगानी का सफर करवाता है
जब दोनों ही हाल में , दिल को सम्हालना आ जाए ,
तब तो क्या कहने !! ;-)

- लावण्या

13 comments:

  1. दुःख की बरखा से सींच सींच कर ,
    सुख की उजली फसल को ,
    अकसर बाँट दिया जाता है !
    एकदम सही कहा आपने.

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  2. जब कोई धीरे धीरे से चलता है, चलता है ! दुःख की बरखा से सींच सींच कर ,सुख की उजली फसल को ,अकसर बाँट दिया जाता है !

    सुख दुःख के रंग आपके इन विचारों के संग ,बहुत अच्छे लगे

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  3. सच में इन्सान ही इन्सान के दुख का कारण है!

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  4. बिल्कुल सही कहा आपने.

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  5. सुख भिन्न और सुख भोग भिन्न
    सुख भोग , क्षणिक इन्द्रिय नर्तन
    bahut sundar kavit. badhaai.

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  6. दुःख की बरखा से सींच सींच कर ,
    सुख की उजली फसल को ,
    अकसर बाँट दिया जाता है !

    बेहद उम्दा।

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  7. लावण्या जी आप के यहां हर बार की तरह से एक अच्छा ओर नेक गयाण (शिक्षा)फ़िर से मिला, धन्यवाद एक अच्छे लेख के लिये

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  8. भोजन का स्वाद खट्टे मीठे में है तो जीवन का आनन्द सुख दुख दोनो से है... जीवन दर्शन का परिचय देती हुई रचना...

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  9. कहते है की दुःख भी इन्सान की परीक्षा के लिए होता है ओर सुख भी जो दोनों में समान रहना सीख ले वो जीवन का अर्थ समझ जाता है.....

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  10. लेखन के साथ तस्वीरें भी खुबसूरत.

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  11. sukh aur dukh dono hi zaroori hain...dukh ke bina sukh ki oi ahmiyat nahi hain...achcha likha aapne.

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