

मेरे कुछ ख्याल भी यहाँ कह देती हूँ ,सुनिए
" किस्मत का नही दोष बावरे , दोष नही भगवान का !
दुःख देना इन्सान को जग में , काम रहा इंसान का ! "
[ पंडित नरेन्द्र शर्मा के फिल्मी गीत की पंक्तियाँ ] और
सच
" सुख - दुख में मानव को ,सुख ही प्रिय है ~
पर , सुख क्या है ?
सुख भिन्न और सुख भोग भिन्न
सुख भोग , क्षणिक इन्द्रिय नर्तन ,
सुख अमर , चिरन्तन , आत्म - जन्य ! "
[ सुकवि सुमित्रा नंदन पन्त जी की काव्य पंक्तियाँ ]
मेरी लिखी कविता से भी ,
" हो रे मन की भूमि पर ,
दुःख का हल , गड़वा कर , जब कोई धीरे धीरे से
चलता है, चलता है !
दुःख की बरखा से सींच सींच कर ,
सुख की उजली फसल को ,
अकसर बाँट दिया जाता है !
( गम और खुशी का अनुभव ही जिंदगानी का सफर करवाता है
जब दोनों ही हाल में , दिल को सम्हालना आ जाए ,
तब तो क्या कहने !! ;-)
- लावण्या
दुःख की बरखा से सींच सींच कर ,
ReplyDeleteसुख की उजली फसल को ,
अकसर बाँट दिया जाता है !
एकदम सही कहा आपने.
जब कोई धीरे धीरे से चलता है, चलता है ! दुःख की बरखा से सींच सींच कर ,सुख की उजली फसल को ,अकसर बाँट दिया जाता है !
ReplyDeleteसुख दुःख के रंग आपके इन विचारों के संग ,बहुत अच्छे लगे
सच में इन्सान ही इन्सान के दुख का कारण है!
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने.
ReplyDeleteसुख भिन्न और सुख भोग भिन्न
ReplyDeleteसुख भोग , क्षणिक इन्द्रिय नर्तन
bahut sundar kavit. badhaai.
दुःख की बरखा से सींच सींच कर ,
ReplyDeleteसुख की उजली फसल को ,
अकसर बाँट दिया जाता है !
बेहद उम्दा।
लावण्या जी आप के यहां हर बार की तरह से एक अच्छा ओर नेक गयाण (शिक्षा)फ़िर से मिला, धन्यवाद एक अच्छे लेख के लिये
ReplyDeleteभोजन का स्वाद खट्टे मीठे में है तो जीवन का आनन्द सुख दुख दोनो से है... जीवन दर्शन का परिचय देती हुई रचना...
ReplyDeletesahi
ReplyDeleteकहते है की दुःख भी इन्सान की परीक्षा के लिए होता है ओर सुख भी जो दोनों में समान रहना सीख ले वो जीवन का अर्थ समझ जाता है.....
ReplyDeleteलेखन के साथ तस्वीरें भी खुबसूरत.
ReplyDeletesukh aur dukh dono hi zaroori hain...dukh ke bina sukh ki oi ahmiyat nahi hain...achcha likha aapne.
ReplyDeletesundar sanyojan, touching...
ReplyDelete