Wednesday, August 6, 2008

पहला सबक


और सबसे पहले , खुदा ने ....
बनाये आदम और होव्वा
अरे यह कौन गोलाकार - सा ,
उलझा हुआ इस वृक्ष से ?
ये कौन छल्ले की तरह लटका हुआ है , एक डाल से ?

दिशाओं का कोलाहल अब कुछ श्रांत है , वीरान भी ,

वो नर - मादा , प्रथम स्त्री - पुरूष का युगल ,

पेड़ की घनी छाँव के नीचे जो खड़ा था , वहां ,

कुछ क्षणों तक, क्लांत , भय - भीत सा था ,

वह, चुप चाप, नज़रें नीचे कीये, अब, जा चुका है !

नील गगन , स्वर्णिम उषा के ओर -छोर से ,

थक कर , खड़ा है ,बाट जोहता इतिहास की !

कब शुरू होगी कहानी ? सोच रही प्रकृति!

खुदा का हर करिश्मा , जादू बाँट रहा है !

सूखी रह गयी हर टहनी उस पेड़ की

और - सर्प ,छल्ले सा बन , जा लटका ,

पेड़ की टहनी से !

बनाये थे खुदा ने , स्त्री और पुरूष को !

स्त्री के हाथ में , एक फल भी था सजाया -

पुरूष को दिया वह फल, जब स्त्री ने ,

डंख मारा सर्प ने , उस , अमृत फल को !

दंश था वह प्रतीति का , सभानता का -

अकुला उठे थे दोनों , लजाते हुए , देखते रहे,

अपने आप को आदम और हव्वा, वो पहले !

और दुनिया बसाने, फ़िर, वे चल दीये !

और सर्प , पेड़ में जा लिप्त हुआ ,

पत्ते जहर हो गए , मानव इतिहास का यह ,

प्रथम परिचय : प्रथम परिश्रुति

इतिहास की यवनिका के आरम्भ में ,
यूँ , बाइबल धरम --ग्रन्थ का ,
पहला सबक बना !
[- लावण्या ]

9 comments:

  1. बहुत उम्दा प्रस्तुति, आभार.

    ReplyDelete
  2. कथा कि सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  3. वाकई.. बहुत सुंदर लिखा है आपने

    ReplyDelete
  4. अद्भुत लिखा है आपने.
    बहुत ही उम्दा.

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुन्दर लिखा हे आप ने धन्यवाद

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर. शब्दों का अद्भुत उपयोग.

    ReplyDelete
  7. sundar bhi , shaityik sabak bhi..

    ReplyDelete
  8. स्वाति जी, शिव भाई, राज भाई साहब, बाल कीशन जी, मीत जी, कुश भाई, दिनेश भाई जी, समीर भाई व अनिता जी, आप सभी का यहाँ आनेका शुक्रिया और आपकी बात यहाँ रखने के लिये आभारी हूँ -
    - लावण्या

    ReplyDelete