Monday, September 15, 2008

कुदरत

ये कुदरत का नज़ारा है ॥
आसमान पर नीले , घने बादलों के बीच से , प्रकाश की किरण रंगीन बन कर इन्द्रधनुष रच देती है जिसके सात रंग मन को मोह लेते हैं। जामुनी, गुलाबी, नीला, हरा, पीला, केसरी, और लाल ये सात मुख्य रंग मिलकर इन्द्रधनुष कहलाता है ।
७ रंग, ७ सुर , दोनों की महिमा निराली है -
सा रे गा माँ प् ध नी सा ये सप्त सुर की सरगम हर राग रागिनी के उतार और विस्तार का आधार बन कर , गीत को मुखरित कराते हैं।
अब याद कीजिये, आपको कौन सा गीत सबसे ज्यादा पसंद है ?
हाँ हाँ, आप आराम से सोचिये, शायद कोई रूमानी गीत की तर्ज़ याद आ जाए, या कोई रूहानी संगीत की स्वर लहरी आपके दिल के तारों को झंकार रही हो .............शायद कोई भजन या आरती आपको याद आ रही हो ....कोई ग़ज़ल ...गुनगुना रही हो

दूसरा नज़ारा है विविध प्रकार के फूल : अनगिनती हैं फूलों के नाम , रूप रंग और आकार।
हरेक अपनी विविधता और सुन्दरता के बल पर गुलशन को सुहाना बनाने में अपना योगदान देता है -
सोचिये आपको कौन सा फूल सबसे अधिक पसंद है और क्यों ? --
किसी भी एक फूल के बारे में आप सोचेंगे और उसका नाम लेना चाहे पर तभी आपके मन में, दुसरा खूबसूरत फूल खिल कर मुस्कुराने लगेगा।
और कुदरत के साथ जुडी हुई एक और ज़िंदा चीज़ है - विविध प्रकार के प्राणी -- जैसे की मोर, अपने पंखों को खोल कर नाचता हुआ ...बरखा ऋतु में , इस की पुकार बेध कर आर - पार चली जाती है ऐसी विकलता होती है इस मूक प्राणी की --
आज , मैं, फूल, इन्द्रधनुष और मोर और गीत संगीत को क्यों याद कर रही हूँ ? बता दूँ ?
इस का कारण है, कि आज मैंने कई जाल घर देखे,
हर तरफ़, दुखद बातें पढ़ पढ़ कर सोच रही हूँ, क्या मानव जीवन में सुन्दरता, कोमलता क्या नष्ट हो गयी है ?
दुःख ही दुःख है ?
हर तरफ़ , विषाद और मायूसी छाई हुई है ..
.देहली में हुए बम विस्फोट की बातें पढ़कर मन अशांत है !
- क्या कारण है ऐसी क्रूरता का ?
ये कौन हैं जो मासूम बच्चों का खून बहाकर खुश होते हैं और ये साबित करते हैं के वे अपने धर्म का पालन कर रहे हैं ?
किसी भी धर्म के माननेवाले इतने राक्षस कैसे हो जाते हैं की गरीब, अनजान और स्त्री और बच्चों की मौत भी उन पर कोई असर नहीं करती ?
सुना है, कुदरत अपना हिसाब रखती है । व हर तरह के रिश्तों से उपर है खुदा की बनाई हुई ये कुदरत \
- चाँद तारे , सूरज, फूल पौधे, अनाज, नदी, परबत, आसमान , पंछी और जानवर
किसी मज़हब के नहीं उनसे परे हैं -- कुदरत भी आज सोच रही होगी ,
इंसान मेरे बस में नहीं रहा अब !
हे ....इंसानियत को भूलनेवाले इंसान,
अब तू , कुदरत के कहर से डर --------------------------
- लावण्या

19 comments:

  1. काश...इंसान इंसानियत को हमेशा याद रख पाए...

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  2. सही है - भूले व्यथा को।
    प्रकृति निहारें।
    यह किस कवि की कल्पना का चमत्कार है!
    ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार?

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  3. "- चाँद तारे , सूरज, फूल पौधे, अनाज, नदी, परबत, आसमान , पंछी और जानवर
    किसी मज़हब के नहीं उनसे परे हैं -- कुदरत भी आज सोच रही होगी ,
    इंसान मेरे बस में नहीं रहा अब !"

    कितना सही चिंतन है आपका ! काश इंसान ईश्वर के बताए मार्ग पर चल सके ?
    प्रणाम आपको !

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  4. प्रकृति बहुत सुंदर है, दुःख मनुष्य की देन।

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  5. लावण्या जी, राक्षस तो किसी भी धर्म को नहीं मानते, वे तो धर्म का भी सिर्फ़ इस्तेमाल करते हैं. चित्र और विवरण अच्छा लगा. धन्यवाद!

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  6. आपकी भावविभोर कर देने वाली पोस्ट ने आज की सुबह को बेहतर बना दिया। ...धन्यवाद। आप बहुत सुखदायी बातें लिखती हैं।

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  7. बहुत ही खूबसूरत पोस्ट है, आपके खयालात काश हर इंसान के हों तो आज दुनिया इतनी बुरी नही होती...लेकिन अफ़सोस की ऐसा नही है...लेकिन उस में आप जैसे चंद इंसान ताजा हवा के झोंके जैसे ही तो हैं..बहुत शानदार...तस्वीर भी बेहद दिलकश

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  8. मन को सुकून देने बाली बहुत ही अच्छी बातें .. प्रणाम दी..

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  9. कुदरत का कोई जवाब नही ..कल रात ही AXN पर एक प्रोग्राम देख रहा था की अलग अलग तुफानो का ....ये संदेश है की प्रकति के साथ इंसानी छेड़ छाड़ कितनी खतरनाक है ओर आज आपने कुदरत के तोहफे दिखा दिये..

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  10. पर यह इंसान इतना नामुराद है कि पल प्रतिपल कुदरत के इस खजाने को मिटाने पर तुला हुआ है।

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  11. ऐसे समय में इन कुदरत के नजारों को देखने और समझने की बहुत जरुरत है...

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  12. सात रंग ,सप्तावरण ,सप्त ऋषि ,संगीत के सात सुर ,सात समुद्र ,सूर्य के सात घोडे -सात की संख्या से कुदरत क्या कहना चाहती है ! प्रकृति पर्यवेक्षण लोगों में विनम्रता का भाव संचारित करता है -हम जितना ही पर्कृति के दूर जा रहे हिंस्र और अमानवीय होते जा रहे हैं !आपने इस और ध्यान दिलाया -आभार !

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  13. सही लिखा आपने ..कुदरत क्या कैसे अपना प्यार लुटा देती है ..इंसान उतना ही उसको खराब कर रहा है ..सार्थक लेख

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  14. Lavanyaji
    You have expressed a wonderful philosophy of life.
    Nice presentation and pic too.

    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

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  15. bअहुत ही सुंदर चिंतन,मे कल ही अपने बच्चो कॊ बता रहा था कि भगवान की बनाई किसी भी वस्तु हे हमे कोई नुक्सान नही होता, ओर इंसान की बनाई किसी भी वस्तु से सुख कम ओर दुख ज्यादा मिलते हे.
    धन्यवाद एक अति सुन्दर पोस्ट के लिये

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  16. सचमुच भय और विषाद के इस माहौल में आपकी पोस्ट एक ताजगी लेकर आई है....सुन्दर चित्र, सुन्दर वर्णन!

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  17. बेहतरीन चिन्तन!! बेहतरीन विवरण- काश, हम समझ पाते.

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  18. आप सभीका धन्यवाद
    जो अपने व्यस्त समय मेँ से
    कुछ समय निकाल कर यहाँ आये
    और मेरी बातोँ को सुना और आपके विचारोँ से हमेँ अवगत करवाया ..
    आते रहीयेगा ..
    और इन्सानियत से प्यार करते रहीयेगा ..
    " एक दीप सौ दीप जलाये,
    मिट जाये अँधियारा "
    - लावण्या

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