
बीते दुख भरी निशा , प्रात : हो प्रतीत,
जन जन के भग्न ह्र्दय, होँ पुनः पुनीत
स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष !
भेद कर तिमिराँचल फैले आलोकवरण,
भावी का स्वप्न जिये, हो धरा सुरभित
भावी का स्वप्न जिये, हो धरा सुरभित
स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष !
कोटी जन मनोकामना, हो पुनः विस्तिर्ण,
निर्मल मन शीतल हो , प्रेमानँद प्रमुदित
स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष !
ज्योति कण फहरा दो, सुख स्वर्णिम बिखरा दो,
है भावना पुनीत, सदा कृपा करेँ ईश
स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष !
*****
- लावण्या
राष्ट्रकवि श्रध्धेय दीनकर जी की डायरी से सँस्मरण :
अक्तूबर २००८ विश्वा अँतराष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका उत्तर अमरीकी हिन्दी सँस्था मेँ प्रकाशित दीनकर जी एवँ आचार्य हज़ारी प्रसाद जन्म शताब्दी विशेषाँक से
गणितज्ञ समझते हैँ कि देश और काल , ये बिँदुओँ और क्षणोँसे बने हैँ, किँतु उनका गुण सातत्य है, जो केवल अनुभव किया जा सकता है।
देश की अपेक्षा काल अधिक सूक्ष्म है देश की धारणा फिर भी स्थूल लगती है क्योँकि देश बाहर है काल की धारणा सूक्ष्म है क्योँकि वह मानसिक है समय की सीधी और त्वरित अनुभूति जो मन मेँ होती है, वह
भीतरी अनुभूति है।
एक सामाजिक या सार्वजनिक काल है, जो उस काल से भिन्न है,
जिसका अनुभव हमेँ मन के भीतर होता है,
आगस्टीनने कहा था,
" समय क्या है यह मैँ जानता हूँ, किँतु, कोई समझाने को कहे,
तो कहूँगा, मुझे मालूम नहीँ है "
काल का हमारा दैनिक ज्ञान लचीला है
सुख उसे छोटा बनाता है, दुख उसे लँबा कर देता है
कभी एक घँटा पचास घँटोँ के बराबर होता है, कभी एक घँटा क्षण भर मेँ खतम हो जाता है ।
बाहर की घडी और भीतर की घडी बराबर एक साथ नहीँ चलती ।
हमारे मन की अवस्था काल को छोटा या बडा बना देती है ।-
काल की अनुभूति हमेँ सतत प्रवाह के रुप मेँ होती है । लेकिन
भौतिकी काल के सातत्य से काम नहीँ लेती, वह उसे बिँदुओँ मेँ बाँटती है
सँभव है, देश और काल , भौतिकी मेँ दोनोँ कभी परमाणु निर्मित घोषित कर दिये जायँ । मगर हमारा मन काल के सातत्य को ही मानता है ।
काल की तुलना नदी और समुद्र से
- समुद्र बाहरी काल, नदी भीतरी काल -
नदी हमारे भीतर है समुद्र हमारे चारोँ ओर
रहस्यवादी अनुभूति जिस लोक को छूती है, उसमेँ काल नहीँ है ,वह कालातीत है
इलियट ने कहा था,
" काल से ही काल पर विजय होती है "
और
तुलसीदास का दोहा,
" पल निमेष परमानु जुग बरस कलप सर चँड,
भजसि न मन तेहि राम कहँ काल जासु कोदँड !
२९ नवँबर , १९७२ पटना
श्री अरविँद मानते थे कि कवि मनीषी नहीँ होता है ।
लोजिकल थिँकर नहीँ होता है ।
उसका ज्ञान विचारोँ मेँ नहीँ, आत्मा मेँ बसता है कवि वह वीर है, जो समर मेँ गरजता है, वह माता है, जो अपने बेटे के लिये रोती है, वह वृक्ष है, जो तूफान से काँपता है, वह पुष्प है जो सूर्य के प्रकाश मेँ हँसता है।
इन सारी स्थितियोँ को कवि अक्ल से नहीँ समझता, आत्मा से अनुभव करता है । इसीलिये, बुध्धि से लिखी गयी कविताएँ उन कविताओँ से हीन होतीँ हैँ जो सीधे, आत्मा से निकलती है।
- दिनकर
लावण्या जी, आपको, परिजनों और मित्रों को नव वर्ष की अनंत मंगल-कामनाएं!
ReplyDeleteआप और आपके परिवार को नव वर्ष की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपको भी लावण्या जी नववर्ष नए उत्साहों .नए सद्विचारों और उपलब्धियों की सौगात लाये !
ReplyDeleteबहुत खूब....शुक्रिया आपका
ReplyDeleteनव वर्ष की आप को भी शुभकामनाएं
नीरज
आपको परिवार एवम इष्ट मित्रजनों सहित नये साल की घणी रामराम !
ReplyDeleteनया साल बहुत मुबारक हो मैम...
ReplyDeleteऔर इस अद्भुत रचना की प्रस्तुती के लिये दिल से धन्यवाद
नये वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं...!
ReplyDeleteऔर धन्यवाद इस अंश को बाँटने का..!
इस सुंदर रचना से नव वर्ष के स्वागत के लिए आभार. नव वर्ष आपके और आपके परिवार के लिए मंगलमय हो.
ReplyDeletehttp://mallar.wordpress.com
स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष !
ReplyDeleteआभार लावण्यादी।
आपको और सभी परिजनों को नववर्ष की अनंत शुभकामनाएं....
दिन कर जी की सुंदर रचना से आप ने नये साल की शुरुआत करवाई, बहुत सुंदर रचना है आप की.
ReplyDeleteनव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!नया साल आप सब के जीवन मै खुब खुशियां ले कर आये,ओर पुरे विश्चव मै शातिं ले कर आये.
धन्यवाद
नया साल 2009 आप सभी के लिए
ReplyDeleteसुखदायक
धनवर्धक
स्वास्थ्वर्धक
मंगलमय
और प्रगतिशील हो
यही हमारी भगवान से प्रार्थना है
Regard
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteनववर्षाभिनन्दन!
आपको, आपके परिवार और मित्रों को नव वर्ष की मंगलकामनायें
ReplyDeleteनया साल...नया जोश...नई सोच...नई उमंग...नए सपने...आइये इसी सदभावना से नए साल का स्वागत करें !!! नव वर्ष-२००९ की ढेरों मुबारकवाद !!!
ReplyDeleteआप को भी नव वर्ष की शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआगस्टीनने का बहुत सुंदर Quote लिखा है आप ने.
Lavanya Di
ReplyDeleteWonderful beginning of the year with a wonderful blog.
Happy New Year to you and all the members of your family.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
आपको और पूरे परिवार को बहुत बहुत शुभकामनायें आने वाले साल के लिये लावण्य दी।
ReplyDeleteमानोशी
लावण्या जी, आपको, परिजनों और मित्रों को नव वर्ष की अनंत मंगल-कामनाएं!
ReplyDeleteशुक्रिया इस अद्भुत रचना की प्रस्तुती के लिये!
ReplyDeleteआप कॊ ओर आप के परिवार को भी हम सब की ओर से नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
लावण्या दी, आपकी कविता और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की डायरी के संस्मरण दोनों आशा और सत्प्रेरणा का संचार करनेवाले हैं। नव वर्ष आपके और आपके परिजनों के लिए सुख, समृद्धि और सफलताओं से भरा-पूरा हो, हमारी भी मंगलकामना है।
ReplyDeleteलावण्या जी, आपको, परिजनों और मित्रों को नव वर्ष की अनंत मंगल-कामनाएं!
ReplyDeleteआप और आपके परिवार को नव वर्ष की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteस्वागत २००९, और आपको नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें.
ReplyDeleteदीदी, एक बात कहूं, आप की लेखनी में जो स्निग्धता है, जो तरलता है, उसमें बह जाता है ये मन , और सोचता है,
ये दिल मांगे मोअर...
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें. नोवा की तस्वीर वाली पोस्ट भी बहुत अच्छी लगी.
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी जापानी हाइकू के बारे में जो कुदरत के बारे में कहे जाते है . चित्र बेहद सुंदर है . जानकारीपूर्ण आलेख के लिए आभार.
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति पर मेरे उदगार:-
ReplyDeleteबचपन के पलों की मधुर याद बाकी है,
भीगी पलकों में बंद ख्वाब बाकी है।
संकलित संजोये सनेह-सिक्त चित्रों में,
अतीत की सुधियों का गुणा-भाग बाकी है।
शैलेन्द्र जी के चिर-जीवंत गीतों में,
लता जी के स्वर का मधुर आलाप बाकी है।
प्रतिभाशाली ख्यातिप्राप्त गीतकार पिता से,
बेटी लावण्या का अनुराग बाकी है।
कमल ahutee@gmail.com
ख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई
ReplyDeletehttp://madan-saxena.blogspot.in/
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