Wednesday, March 18, 2009

मेरे स्वप्न, सच हो जाए ...ऐसा हो ...

भारत की महिला : शक्ति का स्वरूप : एक माँ
देवी भगवती की आरती करते हुए एक ससुर तथा दामाद - ये यहां अमरीका में भी हमारे प्राचीन संस्कारों को भक्ति भाव से निभाते हैं - रीति रिवाज , व्रत उत्सव, त्यौहार मनाते हैं । जिस देवी माँ की आराधना करते हैं, उसीका स्वरूप , 'स्त्री ' है - उसे भी सम्मान देने पर ही यह सारे धर्म , कर्म व्यवहार तथा परम्पराएं , सही कहलाएंगी ...
और ये नीचे के चित्र में , मुस्कुराती नव वधु अपने भविष्य के सुनहरे सपने देखती हुई , स्वर्णाभूषणों से , सुसज्जित , अपने जीवन के अर्ध विराम बिन्दु पर , एक क्षण के लिए ठहरी हुई है ........
भारत के ग्राम्य जीवन को समीप से कभी देखा ही नहीं !
ये शायद मेरा ही दुर्भाग्य है ॥
सिर्फ़ चित्रों में देखती हूँ ये द्रश्य और रम्यता लिए,
मन को स्वप्निल जगत में खींच लेता है -
यथार्थ शायद कठिन हो - स्वप्न मृदुल पंख पर गति करते हैं ।
आशा यही है भारत के हर कोने में , हर बेटी ,
हमेशा खुश रहे और पूरे संसार को अपनी मुस्कराहट से जग मग कर दे !


http://www.sambhali-trust.org/aboutus/index.html
जोधपुर , भारत में " संभाली " संस्था की स्थापना हुई ।
११ कन्याओं से शुरू हुई ये एक नन्ही पहल आज सफल हो गयी है ।
एक तरफ़ कन्या के मार्ग में , इतनी मुश्किलें हैं और कहीं ऐसा भी है जब कोई दूसरी कन्या , इन संभाली संस्था की कन्याओं की हम उम्र , बहुत बढिया स्कूल में पढ़ती है, माता और पापा की आंखों का तारा है
और हर सुख सुविधा , खिलौने और आराम उस के नसीब में है -
उदाहरणार्थ :
मेरी सहेली मारिया की बिटिया ,
" अल्मास ", अलास्का यात्रा के दौरान
हेलिकोप्टर में बैठ कर कितनी प्रसन्न है !
बड़ी होकर वह , इसे हवा में उड़ा कर ले भी जाए, ...
क्या पता ?
हम आशा करें ,
" बिटिया, आसमान की ऊंचाईयां छू लेना । "
भीष्म पितामह ने , महाभारत , में धर्मात्मा युधिष्टिर से कहा था , जिस समाज में ,स्त्री का सन्मान नहीं होता ,
वह समाज शनै ; शनै; नष्ट हो जाता है ! “
महाभारत का १८ दिवस चलने वाला, अति भयंकर समर भी
स्त्री के अपमान के कारण ही हुआ --
द्युत क्रीडा में हारे थे इन्द्रप्रस्थ नरेश युधिष्ठिर परन्तु सहना आया महारानी के माथे ! द्रौपदी की लाज लुटने को उद्यत दुशाशन थक कर हार गया था और ईश्वर श्री कृष्ण ने लज्जा की रक्षा की !

रामायण , में लंका युध्ध भी सती सीता देवी के , रावण द्वारा अपहरण तथा श्री रामचंद्र का रावण का संहार कर , सीता जी को पुनः अयोध्या ले चलने के लिए , किया गया धर्म युध्ध था ।
चाणक्य ने भी कहा है , " आपात्तकालीन स्थिति में भी स्त्री को संरक्षण देना हरेक राष्ट्र का कर्तव्य है । सेना तथा राष्ट्र प्रमुख को स्वयं खतरे से बाहर निकल कर, पहले स्त्री समुदाय को सुरक्षित स्थान पर ,
स्थानांतरित करना आवश्यक है।
कई बार आधुनिक समाज में ये प्रश्न भी आता है के
एक तरफ़ हम समानता का नारा लगाते हैं जबके दूसरी तरफ़ ,
स्त्री सुरक्षा , स्त्री सम्मान रक्षा की बातें भी करते हैं !
ऐसा क्यों ?
आप , अपने ही परिवार की, किसी भी महिला से पूछिए ,
" क्या स्त्री उत्पीडन समाप्त हो गया है ?
क्या वे सर्वथा सुरक्षित महसूस करतीं हैं अपने आपको ?
हरेक स्थिति में ? "
आपकी राय, उनके जवाब को सुनने के बाद ही तय कीजियेगा --
अगर , स्त्री सुरक्षा तथा स्त्री की उन्नति के पक्ष धर हैं आप ,
तब इन बातों पर ध्यान दीजियेगा --
समाज में बदलाव लाने के लिए, ये भी करना जरुरी है ।

१) आज के माहौल मेँ स्त्री का कार्य क्षेत्र विस्तृत हुआ है व्यापार वाणिज्य से लेकर, डाक्टरी, अध्यापन तथा सरकारी कार्यालयोँ मेँ भी आपका आमना सामना तथाकार्य स्त्री के सँग पहले से ज्यादा होना
आज आम बात हो गयी है -
स्त्री और पुरुष सोचते भी अलग तरीके से हैँ -
अलग तथ्योँ को अहम मानते हैँ ।
उनके ये अलग मनोवैज्ञानिक द्रष्टिकोण कार्य स्थल पर
अलग सँभावनाएँ भी लाते हैँ ये स्वाभाविक प्रक्रिया है
दोनोँ ही अमूल्य योगदान देते हैँ
जिसका सदुउपयोग करना चाहीये ।
अगर आप के सँग महिला कर्मचारी कार्य कर रहीँ हैँ
तब आप इतना तो कीजिये, उनहेँ भी
अपनी बात कहने का मौका देँ और उनके सुझाव भी सुनिये

२ ) आपके अपने घरोँ मेँ जो स्त्री हैँ
उनकी बातेँ भी सुनिये,
उनकी सलाह पर गौर करेँ वे भी आपकी हितैषी हैँ ।
उनकी कल्पनाओँ को पँख देँ
- उडान भरने के लिये खुला आकाश देँ !
स्त्री के बिना "घर " अधूरा है !
माँ, बहन और बेटीयाँ, भी घर का अहम हिस्सा हैँ ।

३ ).भारत वर्ष उन्नति के पथ पर अग्रसर है -
किँतु, कन्या भृण हत्या, कन्या को अशिक्षित रखना,
दहेज के लिये कन्या का शोषण,
ये बीभत्स सत्य , भारत वर्ष के सर्वोदय के सूर्य को
अँधेरोँ के काले बादलोँ से ढँके हुए हैँ
भले ही कई कन्याओँ ने बहुत से क्षेत्रोँ मेँ
आगे बढकर नाम कमाया है
एक बडा वर्ग आज भी पिछडा ही रह गया है
- उन्हेँ भी सहकार की जरुरत है ...
राष्ट्र या समाज का उत्थान या प्रगति ,
उसीके आधे हिस्से को पिछडा रखने से कदापि सँभव नहीँ ।
जिस भारत वर्ष को हम सभी सीना तान कर बहुत गर्व से
" भारत माता " पुकारते हैँ उसी भारत वर्ष मेँ
कन्या को जन्म से पहले ही समाप्त कर देना
कितना धृणित मानसिकता दर्शाता है -
और कन्या और स्त्री के साथ जुडी हर समस्या मेँ
सँपूर्ण राष्ट्र भी भागीदार है,
और इस सहकार को निभाना हरेक का कर्तव्य है
ये भी एक बहुत बडा सच है
- स्वामी विवेकानँद जी ने भी कहा था कि
"जिस राष्ट्र की कन्या सबल तथा सक्षम है वही राष्ट्र उन्नति के पथ पर अग्रसर है ! "
- लावण्या










24 comments:

  1. अपने बहुत महत्वपूर्ण बातें कही हैं -विचारऔर अनुपालन योग्य !

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  2. स्त्री को इसी तरह ग्लोरीफाई कर के उस का शोषण भी किया है और यह प्रक्रिया जारी है। आज ही लोकल पेपर में खबर है कि एक महिला उलेमा शाहाना नूरी ने मजलिस में यह संदेश दिया कि औरतों को इस्लाम सम्मान देता है इसलिए उन्हें पर्दे मही रहना चाहिए, औरत अगर शर्म और हया करे तो उसे पूरा सम्मान मिलेगा। इस तरह सम्मान पाने के लिए औरत अपने को गुलाम की स्थिति में ले आए। औरत को ग्लोरिफाई कर के उस को शोषित और गुलाम बना देने की साजिशें सदियों से जारी हैं। स्त्री को ग्लोरिफिकेशन के स्थान पर समानता के व्यवहार की आवश्यकता है।

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  3. इस सुन्दर और चिंतन को चलायमान करते आलेख के लिए आभार.

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  4. ठीक कहा, 'जिस समाज में ,स्त्री का सन्मान नहीं होता वह समाज शनैः, शनैः नष्ट हो जाता है।'

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  5. आपसे सौ प्रतिशत सहमत. निजी रुप से मैं उस समाज,मित्र या परिवार के साथ संबंध ही नही रखता जहां नारी के साथ अभद्रता का व्यवहार होता हो.

    ये भी सही उदाहरण दिया कि जिस समाज मे नारी का सम्मान नही होता वो समाज खत्म हो जाते हैं. मेरा यह कहना है कि जिन परिवारों में नारी को सताया गया है वो परिवार भी खत्म हो गये हैं.

    नारी आखिर एक मुख्य धुरी है उसको कमजोर करके आप गाडी को नही चला सकते.

    यकीन करिये अब बहुत जल्दी बदलाव आयेगा. मैं आशान्वित हूं.

    बहुत शुभकामनाएं इस लेख के लिये.

    रामराम.

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  6. नारी समानता तब संभव है जब नारी को अलग दृष्टि से न देखा जाए.नारी को महिमामंडित करने की भी जरूरत नहीं है, लेडीज फर्स्ट भी नहीं. सब सामान्य रूप से चलने दीजिये. नारी देवी भी नहीं है और न ही वैश्या है.उसके अलग अलग रूप माँ , बहन,पत्नी,मित्र आदि के हैं.ठीक वैसे ही जैसे पुरुष के पिता, भाई,पति,मित्र आदि के हैं.

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  7. Very thoghtful article.
    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

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  8. लावण्या जी
    आपके लेख इतनी आशावादी इतने पोसिटिव होते हैं की मन में कहीं निराशा पनपने नहीं पाती. आपकी भाषा और सुघड़ लेखनी का कमाल पूरे लेख को
    अंत तक पढने को विवश करता है. आपका कहना उचित है जब जब समाज में नारी का पतन होता है, ये समाज बिखरता है, पतन की और जाता है. समाज में जहां नारी को अबला के रूप में देखते हैं, वहां नारी शक्ति भी है.....और अगर वास्तिविक जीवन में देखा जाए तो शायद नारी ही है जिसका योगदान इंसान के भविष्य की लिए, इस पृथ्वी के चिरंतन प्रवाह के लिए ज्याद आवश्यक है.
    आपको बधाई है इतने सुन्दर और स्वस्थ लेखन के लिए

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  9. समाज रीती रिवाज धर्म ये बड़ी सूझ बूझ से बुने ताने बाने है स्त्री के लिए ....ओर वो इन जालो में ही उलझ कर रह जाती है ..अफ़सोस उनमे से कई उसे भी नहीं पहचानती ..वैसे भारत में स्त्री शोषण में दुर्भग्य से ५० प्रतिशत हाथ दूसरी स्त्रियों का ही होता है .

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  10. नव वधु और उसके गहने - बहुत सुन्दर! अप्रतिम!

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  11. संपूर्ण रूप से सहमती.

    नारी का सन्मान जहां नही होगा वहां अगली पीढी बद से बदतर होती जायेगी.

    नारी को भी नारी का सन्मान कभी कभी ज़रूरी है.

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  12. लावण्या जी बिलकुल सही लिखा आप ने ...
    नारी का सन्मान जहां नही होगा वहां अगली पीढी बद से बदतर होती जायेगी.
    क्योकि एक नारी ही इस समाज को बनाती है,ैसी लिये तो हमारे समाज मै नारी , पुरुष से पहले आती है... जेसे सीता राम, राधे श्याम.... ओर जिस घर के बच्चे महान बनते है उस मे नारी का योगदान ज्यादा होता है.
    आप का धन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये

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  13. हर बार की तरह सुन्दर प्रस्तुति !
    इधर बहुत दिनों की अनुपस्थिति रही. आपकी होली और काफ़ी वाली पोस्ट बहुत पसंद आई. काफ़ी से जुडी हर बात अपने को पसंद है :-)

    विवाद वाली बात जानकार बहुत बुरा लगा. इससे जुडी और भी कई पोस्ट अन्य ब्लोग्स पर भी पढने को मिल रही है...

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  14. इस चुनाव में आप कहां है? आपके प्रवचनों की बहोत जरूरत है। कहीं से पर्चा दाखिल कीजिए न। वो जो लिंक आपने भेजा था नहीं मिला।

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  15. बहुत अच्‍छी पोस्‍ट है ... नारी के प्रति आज के समाज में एक ओर जहां सकारात्‍मक परिवर्तन दिखाई पड रहा है ... वहीं दूसरी ओर नकारात्‍मक भी ... स्थिति चिंताजनक ही है अभी तक ... और पता नहीं कितने दिनों तक रहेगी।

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  16. ढेर सारे चित्र, ढेर सारे विचार।

    प्रेरणा के लिए आभार।

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  17. एक ब्लॉग में कितना कुछ समेत रखा है आपने... बधाई...

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  18. ...........सच तो यह है कि सब कुछ तो आपने कह दिया........और सब कुछ बहुत गहरे उतर गया........अब मैं कुछ कह नहीं सकता........मैं अभी आपके कहे में ही जज्ब हूँ.......!!

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  19. आपने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान खींचा है ।स् सामाजिक उत्सवों में स्त्री को देवी कह कर सजा धजा कर कोने में बिठाने वाले ये अपने ही लोग उस से घर में नोकर से भी बदतर सलूक करते हैं । जरूरत है समानता की और इसमें नारी और पुरुष दोनों को पहल करनी होगी कि वे कमसे कम अपने घरों में यह समानता स्थापित करें ।

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  20. आप ने बहुत अच्‍छा लिखा है, लावण्‍या दी। हमेशा की तरह सदविचारपूर्ण और प्रेरणादायी लेखन। हमारी संस्‍कृति में नारी को शक्तिस्‍वरूपा माना गया है और हम शक्ति के रूप में देवी की आराधना भी करते हैं। भारतीय इतिहास और पुराकथाओं में नारी शक्ति के अप्रतिम उदाहरण मिलते हैं। संस्‍कृति व परंपराओं के प्रति आस्‍था के विघटन से कुरीतियां जरूर फैली हैं, लेकिन हमें पूरी आशा है कि एक दिन कुरीतियां दूर होंगी और स्‍वप्‍न सच होगा।

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  21. behad उम्दा और लाजवाब विचार...स्वागत है!!
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    गणेश शंकर ‘विद्यार्थी‘ की पुण्य तिथि पर मेरा आलेख ''शब्द सृजन की ओर'' पर पढें - गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का अद्भुत ‘प्रताप’ , और अपनी राय से अवगत कराएँ !!

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  22. Nice Pictures...नव संवत्सर २०६६ विक्रमी और नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनायें

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  23. आप सभी की टीप्पणियोँ का शुक्रिया

    -लावण्या

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