Sunday, April 12, 2009

ये देस है या परदेस है !


आरती करते हुए दम्पति .......यहां भी महावीर जयंती श्रध्धा व उत्साह से संपन्न हुई है ...जैन सेंटर के कार्यकारिणी समिति के सदस्य , हाथों में हाथ मिलाकर समूह गान गाते हुए और जिनके श्रम से ये पर्व सफल रहा ...
बच्चों ने भी उत्साह से प्रार्थना तथा गीत गाये ।
" महावीर तुम्हारे चरणों में, श्रध्धा के कुसुम चढाये हम ,
उनके आदर्शों को अपना , जीवन की ज्योत जगाये हम "
प्राणी प्राणी सह मैत्री हो, ईर्ष्या, मत्सर, अभिमान न हो ,
कहनी , करनी, इकसार बने, तुलसी तेरा पथ पायें हम "
सबसे पहले महावीर जन्मकथा पर एक चलचित्र बतलाया गया जिसमे प्रमुख स्वर हरीश भिमानी का था । ( animated ) माता त्रिशला देवी तथा नव जात वर्धमान राज कुमार को देखा तब सारे जैन समुदाय में हर्ष की लहर दौड़ने लगी और सभी भाव विभोर हो गए !
जैन सेण्टर में शनिवार और रविवार को दोनों दिन महावीर स्वामी की जयंती मनायी गयी और हम भी इसी के लिए तैयार होकर गए ...
ऐसे अवसर भारत भूमि से दूर रहकर मनाते हुए भारत की याद भी आती है और भारतीय समाज के उत्साह तथा श्रध्धा , भक्ति भाव को देख कर ये आशा भी मनमे बनी रहती है के हमारी परम्पराएं तथा संस्कृति का लोप नही होगा --
वर्तमान पीढी को परिश्रम करना होगा ताकि आगे आनेवाली नसल भी इनसे परिचित हो ...
कभी परिसर में आरती के समय , आसपास देखते हुए , हाथो को जोड़े हुए नर नारी देख हम ये भी भूल जाते हैं के ये देस है या परदेस है !
वही भक्ति भाव यहाँ भी , है ! जैसा भारत में देखा करती थी --
ऐसे अवसरों पर भारतीय परिधान पहनकर , मन प्रसन्न हो जाता है --
परिवेश अवश्य अलग है , पर उत्साह और उमंग भरा मन,
यहाँ रहते हुए भी , हर स्थिति में जीना सीख लेता है !
ऋषभ स्तुति : ( श्रमण सागर रचित )
ऋषभाय नम : पहले मानव ,
पहले नेता,पहले अर्ह इँद्रिय जेता,
पुरुषोत्तम स्वाँत - सुखाय नम:
ऋषभाय नम : ऋषभाय नम :
इसका स्तवन श्रमणी जी ने भाव पूर्ण स्वर में गाकर , वातावरण को पवित्र व मंगल किया । भगवान् आदीनाथ जी की प्रतिमा का भव्य शृँगार किया गया है ।
(जैसा चित्र में दर्शित है । )
जैन धर्म में देरावासी , स्थानकवासी तथा दीगम्बर व श्वेताम्बर मतावलंबी ,
विविधता में एकता बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं ।
धरम चाहे कोई भी हो, सदा से ही , कई अलग खेमे बन ही जाते हैं ।
चाहे वह इस्लाम हो या ईसाई धर्म हो या हिन्दू या बौध्ध !
यही हाल जैन धर्म माननेवालों का भी हुआ है ।
और जो नही मानते , वे , हरेक धर्म के इस क्लेश को देख कहते हैं,
" देखो, ये सही रास्ता ही नही "
....आस्तिक भी हैं और नास्तिक भी ॥
इंसान जितने , उतने ही अलग पंथ !
...अलग सम्प्रदाय, अलग रीति रिवाज ...
कब होगी एकता ? .......शायद ............कभी नही ..........
लाल फूलों की पत्तियों से सुंदर रंगोली श्वेत मार्बल पर बनायी गयी थी
और उस पे दीप जगमगा रहे थे ......जो बहुत सुंदर लगे ...
और इस रंगोली के सामने एक रजत से निर्मित संदूक है ये दान पेटी है ।
जहाँ श्रद्धालु भक्त , अपनी अपनी श्रध्धा के अनुरूप डॉलर - दान करते हैं। :-)
जैन धर्म में चावल से स्वस्तिक या अर्ध चन्द्र की आकृति बना कर भी
यहाँ श्रावक जन रखते हैं ।
मैंने , जैन धर्म के बारे में , मेरे विवाह के बाद ही , इतना भी , ज्ञान प्राप्त किया ।
मेरे पति दीपक जैन कुटुंब से हैं तथा उनकी कुल देवी अम्बा माँ हैं ।
जिनकी गोत्र पूजा , दशहरे के दिन की जाती थी और प्रसाद में खिचडी और गेहूं का कंसार , कुल देवी अम्बा मैया को ३ बार जल की धारावाही कर,
कुमकुम तथा अक्षत का टिका लगाने के बाद ,
घर के बड़े के बाद हरेक सदस्य , पैर छूकर , माताके समक्ष,
नत मस्तक होकर , किया करता था ।
जिस की सारी विधि , मेरी सास जी " तारा बा " करवातीं थीं ।
रसोई के बाद , चौका धुलवा लिया जाताथा और फ़िर अगले दिन तक ,
रसोई में, माँ के लिए दीपक जलता रहता था ।
हमने कभी प्रश्न नही किया , ना ही पूछने की कोशिश ही की के
" क्यूं , अम्बा माँ , जैन धर्म में भी शामिल हैं ? "
जब के , जैन देरासर में अकसर , मैंने ,
' चक्रेश्वरी देवी ' और " लक्ष्मी जी " की प्रतिमा को ही , देखा है --
सास जी ने ही परम पवित्र , नवकार मन्त्र भी सिखलाया था ।
जिसे याद करने में, कोई कठिनाई नही हुई और शीघ्र कंठस्थ हो गया था ।
आप भी शायद जानते होंगें " नवकार मंत्र " के बारे में ,
ये जैन धर्म का पवित्र मंत्र है।
आप भी सुनिए ....आवाज़ है श्री लता जी की ...
http://www.getalyric.com/listen/68ZuPGbZgAo/navkar_mantra
२,५०० वर्ष पूर्व जिस जैन धर्म ने भारत भूमि में अपनी जड़े विकसित की थीं , आज उस पावन धर्म - वृक्ष की शाखाएं , दूर सूदूर ओहायो प्रांत , उत्तर अमरीका गणराज्य के एक शहर में फल फूल रही है ...इतिहास के एस पन्ने को पढ़ना चाहें तब यहाँ क्लीक करीए ...
आज यहीं , आप से आज्ञा लेती हूँ ........आप की श्रध्धा जिस किसी धरम से प्रेरित हो या आप नास्तिक हों , खुश रहीये और ब्लोगींग करते रहीये ...और हाँ, आपके विचार और टिप्पणी भी बेहद महत्वपूर्ण है जिससे अवश्य अवगत कराएँ .....आभार !
- लावण्या

21 comments:

  1. भारत वासी जहाँ जहाँ भी जाते हैं अपनी आस्था को अपने साथ ही रखते हैं. लैटिन अमरीकन देशों को छोड़ दें तो हर वो जगह जहाँ भारतीय बस्तियां हैं, उनके आस्था के केंद्र भी पल्लवित होते हैं. आपके यहाँ महावीर जयंती मनाई गयी यह जान कर परम हर्ष हुआ. आभार.

    ReplyDelete
  2. परदेस में अपने देस की बहुत याद आती होगी। ये रीति‍ रीवाज ही हैं जो हर जगह अपने लोगों के बीच होने का अहसास बनाए रखती होगी। आपने इस परंपरा को शब्‍दों में सही संजोया।

    ReplyDelete
  3. अपने देश को आप वहां अपने पास बचाए हुए हैं ....तसवीरें देख कर अच्छा लगा

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  4. दीदी साहब आपकी हर पोस्‍ट कुछ न कुछ जानकरी से भरी होती है । आज की पोस्‍ट देखकर ये ठंडक हुई कि वहां विदेश में भी भारतीय संस्‍‍कृति की पताका कुछ लोग थामे हैं । आपको उस नारंगी सफेद साड़ी में देखकर लता जी की याद आ गई वे भी इसी प्रकार की साड़ी पहनती हैं । उनके घुटनों का आपरेशन हुआ है क्‍या आपको पता है कि उनका स्‍वास्‍थ्‍य अब कैसा है । क्‍या लता जी अब बिल्‍कुल गाना नहीं गायेंगीं ।

    ReplyDelete
  5. पूरी पोस्ट देख पढ कर ऐसा लग रहा है कि यहीं भारत के किसी शहर मे ये कार्यक्रम देख रहे हैं.

    बहुत आभार आपका इस सांस्कृतिक जानकारी से भरे आलेख के लिये. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  6. लगभग सभी प्रमुख धर्म संपूर्ण विश्व में पहुँच गए हैं। एक नयी विश्व संस्कृति विकसित हो!

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर जानकारी .हमारी संस्कृति जैसी संस्कृति और कहाँ.

    ReplyDelete
  8. बहुत अच्‍छा लगा यह जानकर कि आपके यहाँ महावीर जयंती इतनी श्रद्धा से मनाई गयी ... अपनी सभ्‍यता और संस्‍कृति भूलने की चीज होती है भला ?

    ReplyDelete
  9. पँकज भाई, नमस्ते -
    सबसे पहले ये बता दूँ कि आजकल मैण आपकी भेजी "ईस्ट इँडिया कँपनी" पुस्तक पढ रही हूँ
    बहुत दिपचस्प लग रही है और हर कथा मेँ कोई ना कोई सामयिक मुद्दा गुँथा गया है ..
    पूरी पढने के बाद उसी पर पोस्ट लिखूँगी ....और
    ये नारँगी / सुफेद साडी हमारी लता दीदी ने ही मुझे उपहार स्वरुप भेजी है :)
    मेरी बात नहीँ हुई उनसे परँतु जहाँ तक जानती हूँ , धीरे धीरे स्वास्थ्य लाभ हो रहा है - और गायन
    के बारे मेँ तो अगर ह्र्दयनाथ भाई या यश चोपडा जी कोई दीदी के मन को भा जाये ऐसा प्रोजेक्ट लायेँ
    तब शायद दीदी राजी हो जायेँ और हमेँ पुन: उस अलौकिक स्वर गँगा मेँ डूबने का आनँद मिले !
    धन्यवाद आपकी टीप्पणी के लिये ..
    स स्नेह,
    - लावण्या

    ReplyDelete
  10. लावण्या जी,
    आपके हर लेख की तरह जैन धर्म की जानकारियों से भरा यह लेख भी बहुत अच्छा लगा. भारतीय आप्रवासियों ने देश से बाहर जाकर ऐसी बहुत सी परम्पराओं को जीवित रखा है जो कि अपने उद्गम स्थल में ही लोप-प्राय हो गयी हैं,

    जैन धर्म और सनातन धर्म तो आपस में ऐसे गुंथे हुए हैं कि यह कह पाना कठिन है कि कौन सी परम्पराएं जैन मूल की हैं. मूर्ती-पूजा भी ऐसा ही एक उदाहरण है.

    जैन दर्शन और योग दर्शन में अनेकों समानताएं हैं. यम्, नियम, अहिंसा, सत्य, अस्तेय आदि पर योग और जैन दर्शन में अत्यधिक जोर दिया गया है.

    जैन समुदाय तेईसवें तीर्थंकर भनवान नेमीनाथ को भगवान् कृष्ण का बड़ा भाई मानते हैं. हरिवंश पुराण की मान्यता जैनों में भी उतनी ही है जितनी हिन्दुओं में. अनेकों जैन आचार्य ब्राह्मण परिवारों में जन्मे हैं.

    विदेश में रहकर भारतीय परम्पराओं की जानकारी देते रहने के लिए धन्यवाद.

    ReplyDelete
  11. कभी कभी ऐसा लगता है की आध्यात्म के शेत्र में आपकी विशेष रूचि है ओर मंदिरों को जितने गौर से आप देखती है काबिले तारीफ़ है.....अच्छा लगा इश्वर के कितने ही रूप गढ़ ले महत्वपूर्ण यही है की हम उसमे यकीन करे....

    ReplyDelete
  12. भारतीय संस्कृति की छाप लिए आपकी एक और पोस्ट ! स्मृतियों को लिए हुए पिछली पोस्ट भी बड़ी पसंद आई.

    ReplyDelete
  13. ओह, इतना सांस्कृतिक विविधता और रिच-नेस तो भारत में भी नहीं देखने को मिलती। यहां तो कब संस्कृति होती है और कब वह भदेस हो जाती है - पता ही नहीं चलता।

    ReplyDelete
  14. जैन धर्म और महावीर जयंती के आयोजन की सुरुचिपूर्ण परम्परा को जानना अच्छा लगा !

    ReplyDelete
  15. नमस्ते लावण्या दी,

    इतनी सारी जानकारी के लिये धन्यवाद। आपकी तस्वीर अच्छी आयी है।
    एक और तथ्य जोड दूं इस आलेख में कि वैशाली (बिहार) जहां पर भगवान महावीर जी का जन्म हुआ था वहां से कुछ ही दूरी पर भगवान बुद्ध ने अपना शरीर त्याग किया था। यह जानकर अब विश्वास नहीं होता कि उस भू-खंड पर दो ऐसे व्यक्तित्त्व कभी विचरे थे।

    दिनेश जी एवं ज्ञानदत्त जी,
    मेरी पुस्तक "चूडीवाला और अन्य कहानियां " इन जगहों पर उपलब्ध हैं -
    http://www.flipkart.com/chudiwala-aur-anya-kahaniyan-hindi/0143102613-xow3f49r4b

    http://shopping.indiatimes.com/i/f/t/Coodiwala_Shreshtha_Kahaniya-pid-1733135-ctl-20375432-cat-968964-pc--&bid=&prc=&sid=&q=Penguin+Hindi&%27n%27%27n%27%27n%27%27n%27%27n%27%27n%27%27n%27%27n%27%27n%27%27n%27%27n%27

    पुस्तक पर अपने विचार प्रेषित करेंगे। इसी आशा के साथ,

    सादर,

    अमरेन्द्र

    ReplyDelete
  16. मुझे ऐसा लगता है कि हम अपने देश से दूर मगर हमेशा दिल से उस के बहुत करीब रहते हैं..उतना शायद देश में रहते हुए नहीं हो पाते![शायद]
    मनभावन तस्वीरें और विवरण.
    भारतियों की ख़ास बात ही यही है..हम adapt कर लेते हैं खुद को ,दूसरे वातावरण में मगर अपनी संस्कृति को नहीं भूलते.

    ReplyDelete
  17. मन्त्र सुनकर आपके भक्ति-रस का अहसास हुआ । प्रणाम।

    ReplyDelete
  18. nice u people are still taking care of your faith. I think indians in abroad are more sincere about their culture than the indians in India.. good wishes. nice blog..

    ReplyDelete
  19. लावण्यम्` दीदी,
    जय जिनेन्द्र।
    आपके ब्लोग पर गया तो यह देख मन प्रसन्नता से भर ऊठा कि भारत से दुर सात समन्दर पार तो कोई अपना है जो अपने देश कि धार्मिक विरासत को सम्भाले हुऐ है। खासकर आपने जैन धर्म के अन्तिम २४ वे, तीर्थन्कर भगवान महावीर कि जयंती मनायी गयी ।
    आपने बडे ही आत्मियता से जैन धर्म के इस विशेष आयोजन कि जानकारी प्रदान कि इसलिए मै प्रसन्न हू और आपके इस योगदान के लिऐ मै आपका अभिवादन करता हू।
    ............................................................
    " महावीर तुम्हारे चरणों में, श्रध्धा के कुसुम चढाये हम ,
    उनके आदर्शों को अपना , जीवन की ज्योत जगाये हम "
    प्राणी प्राणी सह मैत्री हो, ईर्ष्या, मत्सर, अभिमान न हो ,
    कहनी , करनी, इकसार बने, तुलसी तेरा पथ पायें हम "
    उपरोक्त अह्र्त वदना प्रतिदिन साय ७:३० को तेरापन्थ धर्म सघ के साधु साध्वीयो एवम श्रमण-श्रमणीयो, श्रावक गण सामुहिक रुप से गाते है। इसमे तुलसी शब्द का परिचय है तेरापन्थ धर्म सध के नवम आचार्य श्री तुलसी से है।
    .........................................................

    ऋषभ स्तुति : ( श्रमण सागर रचित )
    ऋषभाय नम : पहले मानव ,
    पहले नेता,पहले अर्ह इँद्रिय जेता,
    पुरुषोत्तम स्वाँत - सुखाय नम:
    ऋषभाय नम : ऋषभाय नम :
    ऋषभ स्तुति के रचिता मुनी श्रमण सागर तेरापन्थ धर्म सघ महान सन्त है जो राजस्थान के सिरियारी मे चातुर्मास हेतु पधारे हुऐ है। हम प्रति मास सुद १३ को सिरियारी भिक्षु समाधि स्थल दर्शन करने जाते है तभी मुनी सागरमलजी स्वामी अर्थात श्रमण सागर
    के दर्शन करते है। बहुत ही त्रिलोकि सन्त है।
    ..............................................................
    " इसका स्तवन श्रमणी जी ने भाव पूर्ण स्वर में गाकर , वातावरण को पवित्र व मंगल किया।"

    श्रमण-श्रमणी, नवम आचार्य श्री तुलसी कि देन है। उन्होने सोचा पॉचमहाव्रत धारी साधु साध्वी जो पैदल यात्रा ही करते है एसे मे जैन धर्म के बारे मे विदेशो मे कैसे पहुचाया जाऐ तो उन्होने यह चारमहाव्रत से दिक्षित कि गई श्रेणि को श्रमण-श्रमणी कहते है जो वाहन का उपयोग कर सकते है। यह सभी हायर एज्यूकेटेड होते है, सभी भाषाओ का ज्ञान होता है। श्रमणी श्रेणि कि मुख्या है डॉक्टर मगलप्रज्ञाजी जो जैन विश्वभारती लाडनु(राज) कि कुलपति है। जैन विश्वभारती लाडनु भी आचार्य श्री तुलसी एवम वर्तमान आचार्य महाप्रज्ञजी कि देन है दुनिया मे एक मात्र जैनो का यह विश्व विधालय है। जहॉ सैकडो देश- विदेश के छात्र्- छात्राऐ, सभी जैन साधु साध्विया यहा अध्यन रत्त है।
    तेरापन्थ धर्म सघ मुर्ति पुजा मे विश्वास नही करता है। इसके बारे मे फिर कभी बात करेगे।
    दीपकभाईसाहब को मेरा जयजिनेन्द्र कहना ।
    विशेष लताजी कि आवाज मै नवकार सुनी बहुत ही सुन्दर्।
    आपकि इस पोस्ट कि "हे प्रभु" पर लिन्क करने कि इजाजत चाहुगा आपसे।
    कोई गलती हुई हो तो क्षमा करे।

    ReplyDelete
  20. इस वर्ष विदेशो मे निम्न्नलिखित चातुर्मासो कि घोषणा आचार्य महाप्रज्ञजी ने मर्यादामोहत्सव बिदासर
    (बिदासर संजय बेंगाणी जी का पेतृक गॉव है) से कि।

    Samani Param Pragya
    Samani Sangh Pragya
    Orlando
    ...............................
    Samani Akshay Pragya
    Samani Vinay Pragya
    Houston
    ..................................
    Samani Mudit Pragya
    Samani Shukal Pragya
    New Jersey
    ...........................
    Samani Prasanna Pragya
    Samani Rohit Pragya
    London
    .........................
    Samani Charitra Pragya
    amani Unnat Pragya
    Miami
    ..............................
    Samani Sharda Pragya
    Samani Manju Pragya
    Kathmandu
    .............................

    ReplyDelete
  21. lavanya ji ,

    ye lekh padhkar man ko bahut sakun pahuncha hai . dil me is bat ki khushi hai ki bharatwasi kahin bhi ho ,apne dehs ki parampara ko nahi bhoolte hai ..

    aapko is lekh ke liye badhai .


    विजय
    http://poemsofvijay.blogspot.com

    ReplyDelete