Tuesday, October 13, 2009

पिछले दिनों -- क्या क्या हुआ ?

भारतीय प्रोग्राम , अकसर , हिन्दू मंदिरों में या फिर कुछ भारतीय संस्थाओं द्वारा मिलजुल कर आयोजित किये जाते हैं -

हमारे शहर में भी इसी तरह का आयोजन हुआ जहां ये कन्याएं भूमि पर बैठकर ,

शाम का भोजन खा रहीं हैं जिसे तैयार किया कुछ भारतीय माताओं ने ....

इन बच्चियोंने भारतीय और अमरीकी National Anthem गीत भी गाये --

सप्ताहांत में , आर्ट फेस्टिवल भी घूमना हुआ था -- जहां नज़र यहां भी पडी -

CANNIE COUTURE - दूकान थी कुतों के फेशन ( जिसे कुटुर भी कहते हैं ) पर आधारित --

और हंसी आयी --

कमाल है ये देश और उसकी धन कमाने की नित नयी ऊर्जा ...................

पिछले दिनों भाई श्री सुरेन्द्र नाथ तिवारी जी उनकी पत्नी सहित हमारेशहर भी पधारे -
राम चरित मानस के चुने हुए मोती पिरोकर आख्यान दिया जिसमे बाबा तुलसी के दिए सन्देश को ,
आज के समय के अनुरूप , किस तरह हम लें , उस पर उन्होंने बहुत सुन्दर सन्दर्भ देकर ,
मानस के दोहे , उद्धरण के तौर पर सुनाये,

" दैहिक दैविक भौतिक तापा , राम राज्य नहीं काहू ब्यापा

सब नर करहिं परस्पर प्रीति , चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति

अल्प मृतु नहें कवनु पीरा, सब सुन्दर सब विरूज सरीरा

नहीं दरिद्र कोऊ दुखी ना दीना , नहीं कोऊ अवध ना लक्षण हीना

सब गुनग्य पण्डित सब ज्ञानी, सब कृतज्ञ नहीं कपट सयानी "

हम भी बाबा तुलसी दास जी के अमोघ आशिष लेते हुए दीप पर्व का स्वागत करें

प्रखर कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी की काव्य पंक्तियाँ भी उन्हें कंठस्थ हैं वे भी ऊर्जापूर्ण स्वर में सुनाईं तो श्रोतागण प्रसन्न हो गए और इस चित्र में वे लेप टॉप द्वारा , प्रेजेंटेशन सेट करते हुए , दीखलाई दे रहे हैं --

भाई श्री सुरेन्द्र नाथ तिवारी जी , कई साहित्यिक प्रसंगों में हाज़िर रह चुके हैं -

- एक पुराने कवि सम्मलेन की झलक आपके लिए प्रस्तुत है --

समय : मई २५ , २००२ , शाम ७

कवि सम्मलेन हुआ था वोंग ऑडिटोरियम MIT , ( सुप्रसिध्ध संस्था के तत्वाधान में ) वहाँ प्रसिध्ध हास्य कवि श्री हुल्लड़ मोरादाबादी व आलोक भट्टाचार्य जैसे कवियों ने संगम MIT, इंटरनेशनल हिंदी असोसिएशनमें भाग लिया था --

२०० से ज्यादा न्यू जर्सी प्रांत व हार्टफोर्ड कनेतीकट जैसे दूर के प्रान्तों से लोग आये थे .

श्री सुरेन्द्र नाथ तिवारी जी , उस वक्त प्रेजिडेंट थे - " अन्तराष्ट्रीय हिन्दी समिती " के

उन्होंने अध्यक्षता की थी और मुख्य भाषण भी दिया था

जिसमे हिन्दी भाषा की स्थिति उत्तर अमरीका में क्या है उस पर अपने विचार रखे

भारतीय राष्ट्र भाषा हिन्दी को, दूसरी भाषा के तहत, अमरीकी पाठ्यक्रम के जरिए , हाई स्कूल तथा कोलेजों में स्थान मिले , चाईनीज़ या कोरीयन की तरह , इस पर ध्यान दिया जाए यह उनका आग्रह रहा

उसी कवि सम्मलेन में जो कवि पधारे उनमे एक थे श्री आलोक भट्टाचार्य जो बंगाली हैं

मूलत: वे आंध्र प्रदेश से हैं , तेलुगु , मराठी , बंगला बोल लेते हैं पर लिखते हैं हिंदी में और साहित्य अकेडमी और प्रेजिडेंट अवार्ड , कविता के लिए प्राप्त कर चुके हैं

सम्मलेन में , उन्होंने , इंडो -पाक , आगरा summit पर लिखी ये पंक्तियाँ सुनाईं थीं

ताजमहल के साये में तुम आये ,
और प्यार की बात ही नहीं कर पाए .


हुल्लड़ जी की व्यंग्यात्मक कविता पढें

" दोनों घुटने ठीक किये हैं श्रीराम ने
टेक ना देना इन्हें , पाकिस्तान के सामने

धन चाहे मत दीजिये जग के पालनहार
पर इतना तो कर दीजिये , की मिलता रहे उधार ! "

अब फ़िर एक चित्र , आर्ट फेस्टिवल से ..जो हमारे शहर की एक मुख्य सड़क पर हुआ था - चित्रकला , मूर्तिकला , फूल प्रदर्शनी के साथ , कई सारे लोग घूम रहे थे -- अपने पालतू जानवरों को भी धूपमें ,

घुमा रहे थे -- वहीं दीख गए ये महाशय जो , कुम्हार - कला में कुशल है --

मेरी यही प्रार्थना है हर देश में , हर कॉम में अमन चैन हो ---

हर जीव को पोषण मिले - - सब सुखी रहें

चाहें वे मूक प्राणी हों या हम जैसे वाचाल :)

और ये हमारे नोआ जी -- अपने सोफी के संग --
अब आपके लिए प्रस्तुत हैं दीपावली के शुभ पर्व पर २ कवितायें --
समस्त परिवार जन के लिए ,
मंगल कामना सहित


जीवन की अँधियारी रात हो उजारी!
धरती पर धरो चरण तिमिर-तमहारी
परम व्योमचारी!
चरण धरो, दीपंकर,
जाए कट तिमिर-पाश!
दिशि-दिशि में चरण धूलि
छाए बन कर-प्रकाश!

आओ, नक्षत्र-पुरुष,
गगन-वन-विहारी
परम व्योमचारी!

आओ तुम, दीपों को
निरावरण करे निशा!
चरणों में स्वर्ण-हास
बिखरा दे दिशा-दिशा!

पा कर आलोक,
मृत्यु-लोक हो सुखारी
नयन हों पुजारी!

-पंडित नरेंद्र शर्मा

दीप ज्योति नमोस्तुते


दीप शिखा की लौ कहती है,
व्यथा कथा हर घर रहती है!
कभी छुपी तो कभी मुखर हो
अश्रु-हास बन बन बहती है!
हाँ, व्यथा सखी, हर घर रहती है!

बिछुड़े स्वजन की याद कभी
निर्धन की लालसा ज्यों, थकी-थकी
हारी ममता की आँखों में नमी
बन कर, बह कर, चुप-सी रहती है!
हाँ व्यथा सखी, हर घर बहती है!

नत मस्तक, मैं दिवला बार नमूँ,
आरती माँ महा-लक्ष्मी, मैं तेरी करूँ,
आओ घर घर माँ, यही आज कहूँ,
दुखियों को सुख दो, यह बिनती करूँ,
माँ! देख दिया अब प्रज्वलित कर दूँ!

दीपावली आई फिर आँगन,
बन्दनवार रंगोली रची सुहावन!
किलकारी से गूँजा रे, प्रांगन
मिष्टान-अन्न-धृत-मेवा, मन भावन!
देख सखी यहाँ, फुलझड़ी मुस्कावन!

जीवन बीता जाता ऋतुओं के संग-संग,
हो सब को, दीपावली का अभिनंदन!
नए वर्ष की बधाई - हो, नित नव-रास!

-लावण्या




26 comments:

  1. लावण्याजी
    बहुत सुंदर पोस्ट ,विदेश में भारतीय संस्कृति की सोंधी खुशबू आपकी लेखनी से और महक उठी |
    दीपावली पर श्रधेय पंडितजी की कविता पढ़कर अबके दीपावली और प्रकाशवान हो गई |

    आरती माँ महा-लक्ष्मी, मैं तेरी करूँ,
    आओ घर घर माँ, यही आज कहूँ,

    एक नन्हा दीया अपने आपको जलाकर अंधेरे को दूर करता है |
    दीपावली मंगलमय हो |
    शुभकामनाये बधाई

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  2. लावण्या जी,

    आपके नगर की झलकियाँ देखकर मन प्रसन्न हो गया. आपकी और पंडित जी की कवितायें भी अच्छी लगीं, खासकर पंडित जी की निम्न पंक्तियों को फिर-फिर दोहराना चाहूंगा:

    जीवन की अँधियारी रात हो उजारी!
    धरती पर धरो चरण तिमिर-तमहारी

    दीपावली की शुभकामनाएं!

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  3. बड़ा अच्छा लगा पुराने सम्मेलन की झलकी, नोवा का तस्वीर, पिता जी का और आपका गीत.

    दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाएँ.

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  4. नोवा= नोआ (सॉरी टंकण की त्रुटि के लिए)

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  5. आपके साथ आपके नगर के ताजे हाल, गतिविधियां जानी, स्मृतियों के आंगन में भी घूम आए। बोनस के तौर पर नोआ की ताजी तस्वीर भी देखने को मिल गई। भतीजेराम अब बड़े हो रहे हैं...चश्मेबद्दूर।
    दीपावली की शुभकामनाएं।

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  6. आप का लेख पढ कर अच्छा लगा धन्यवाद.
    आप ओर आप के परिवार को दीपावली शुभकामनाये
    धन्यवाद

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  7. बहुत बढ़िया रोचक पोस्ट दिवाली की बहुत बहुत बधाई जी

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  8. बाबा तुलसी की ये पंक्तियाँ बचपन में रटी थी स्कूल की पुस्तक से. लक्ष्मण-परशुराम संवाद और राम-राज्य की ये पक्तियां कंठस्थ थी. और फिर हास्य कवितायें, कवी सम्मलेन हमारे कॉलेज में मेरा पसंदिद अक्र्य्क्रम हुआ करता था और फैशन शो छोड़ने को तैयार रहता था मैं इसके लिए :) और फिर शुभ सन्देश लिए दिवाली की मंगल कामनाएं ! पूरा पैकेज ही पसंद आया आज तो.
    आपको सपरिवार दिवाली की मंगल कामनाएं !

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  9. आपने तो दिए भी जला दिए .इस कम्पूटर पे......यकीनन एक खालिस भारतीय पोस्ट....

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  10. लावण्या दी,
    आपकी पोस्ट हमेशा की तरह ताजगी लिए थी.दीपावली पर आदरणीय नरेंद्र शर्मा जी की कवितायेँ पढ़ कर अभिभूत हो गया.
    दीपावली की शुभकानाएं !
    प्रकाश

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  11. आप ने तो दीवाली बाकायदा आरंभ कर दी है। बधाई!

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  12. दीपावली पर आपको और परिवार को शुभकामनायें !

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  13. DEWALEE KE SHUBH PARV PAR BAHUT
    KUCHH SANJOYA HAI AAPNE.KHANA-PEENAA BHEE CHALAA BHARTIYA REETI-
    REWAJ KE ANUSAAR.TULSEE JEE KEE
    PANKTIYA AUR TIS PAR MAHAKAVI PT.
    NARENDRA SHARMA AUR AAPKEE DIL KO
    CHHOONE WAALEE DEWAALEE PAR KAVITAYEN ,AANAND AA GAYAA HAI.
    AAPKE BLOG PAR JAB BHEE AATAA HOON,
    APNAAPAN KAA AABHAAS HOTA HAI.

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  14. प्रिय लावण्यादीवाली
    की शुभकामनाओं के साथ आपको पिताश्री की इस रचना के लिए भी बधाई हो .
    आरती माँ महा-लक्ष्मी, मैं तेरी करूँ,
    आओ घर घर माँ, यही आज कहूँ,


    यह सब के लिए एक दुआ बन कर ह्रदय में बसेगी इसी मंगल कामना के साथ

    दिवाली मुबारक हो !!!!
    बड़ी खुशनुमा याद की ताज़गी है
    वो मुरझाए फूलों को फिर से खिलाए
    दिवाली का त्यौहार सब को मुबारक
    ये त्यौहार ख़ुशियों का हर साल आए

    देवी नागरानी

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  15. दीदी सा‍हब मेरा तो हर बार आपसे एक ही निव्रदन रहता है कि आप संस्‍मरणों की पुस्‍तक लिखें । आप जब संस्‍मरण सुनाती हैं तो ऐसा लगता है कि मानो सब कुछ सामने ही हो रहा हो । सब प्रत्‍यक्ष हो जाता है आपके शब्‍दों की जादूगरी से । पंडित जी की कविता पर कुछ कह सकूं इतनी न तो बुद्धि है और न तमीज । फिर कहूंगा कि आप संस्‍मरण लिखें लिखें लिखें लिखें ।

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  16. सुन्दर रचनायें.
    दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें

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  17. दीपावली पर प्रणाम स्वीकार करें!
    हार्दिक शुभकामनाएं!

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  18. दीपावली बहुत बहुत मुबारक!
    यह पोस्ट बताती है कि कितना इन्वाल्व्ड हैं आप लोग संस्कृति से, देश के बाहर भी।
    और एक हम हैं कि प्रयागराज में रह कर भी मात्र कुरसी तोड़ रहे हैं!

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  19. सादर प्राणाम,
    देखा, सबकुछ वैसा ही तो है ...जैसा हम यहाँ ओटावा (कनाडा) में देख रहे हैं...मंदिर, पूजा, प्रसाद, अपनी पहचान को समेट कर रखने के लिए, हर त्यौहार में शामिल होना.....हर वक्त एक छोटा सा भारत संग लेकर घूमना....
    अच्छा लगा और अब हम समझे की आप इतनी अपनी क्यूँ लगीं थीं...!!!
    आभार...

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  20. नत मस्तक हूँ विदेश मे रह कर अपनी संस्कृति का दीप विदेश मे जलाये रखना । आपकी दीपावली की बहुत बहुत मंगल कामनायें ।

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  21. सुंदर पोस्ट.

    आपकी और आदरणीय पंडितजी की कविता बढियां लगी.

    आपको और परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें...

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  22. लावण्या जी,
    कवितायें अच्छी लगीं,
    आपको और परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.

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  23. देर से पहुंची हूँ पोस्ट पर चित्र और विवरण अच्छे लगे.

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  24. प्रिय लावण्या
    स्नेह से भेजी हुई यह प्रेम की चादर इस सर्द मौसम में एक गुनगुनी सी धुप सी लगी.
    तुम्हारे ब्लॉग पर आने से एक उज्वल संस्कृति से मिलना होता है जो सोच के माध्यम से मुझे तो अपनी धरती से जोड़ देती है, तुम्हारी सरल बातें, उनका ज़िक्र, उनकी रवानी तेरी सोच के साथ मुझे भी बहा ले जाती है.
    आपने इस सिलसिले को बरक़रार रहती रहो और से और कदम आगे
    नए साल की शुभकामनाओं के साथ

    देवी नागरानी

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  26. मै अनायास ही आ पहुंचा हूँ इस सुन्दर तट पर !
    सर्वप्रथम, बधाईयाँ ! अमेरिका में हिंदी का दीप जलाए रखने के लिए !
    तत्पश्चात, आभार, दीप-मालिका के सौन्दर्य का बोध कराने के लिए !
    इस वर्ष के गीत ?
    पढ़ने को मिलेंगे न ?
    शेष पुनः !
    अनिल शर्मा. भिलाई. भारत से.

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