Friday, November 13, 2009

सदाबहार गीत और मन के भाव

कुछ गीत ऐसे होते हैं जिन्हें आप पहली बार सुन ले फ़िर बरसों तलक वे आपके वजूद का एक हिस्सा बन जाते हैं ।
इन्हे तो मैं, सदाबहार गीत ही कहूंगी ।
~~~~ जरूरी नहीं के वे खुशीयों के गीत हों ! शादी - ब्याह पर गाये जानेवाले , मंगल - गीत हों !
......ये गीत इतने पुरअसर क्यूं हैं , इनके कई कारण होंगें ........
सबसे मुख्य बस यही के ये , आपके दिल को , छू जाते हैं ।
जैसे कोई , आप की बात , आपके दिल से चुराकर, जग जाहीर कर रहा हो ।
बेहद खूबसूरत अल्फाज़ और सुर और ताल को पैंजनियों में बांधकर ,
ह्रदय वीणा के तार को झंकृत कर ने के लिए , कोई , गा रहा हो
...............प्यार भी हो, इबादत भी हो और भरपूर एहसास भी शामिल हों ये कुछ ऐसे गीत हैं
ऐसे गीत आज याद आ रहे हैं .................
तो सोचा आपके संग इन्हे साझा करुँ ..............
सुनिए ये मेरी पसंद का पहला गीत
: " जागो मोहन प्यारे "
( राग : भैरव )
( क्लीक करें )
http://www.youtube.com/watch?v=vN_5GcfiRDI
जब जब कवि ने , अपने मन को आडम्बर हीन किया , अपने आपे को , समष्टी व सृष्टी से एकाकार किया ,
तब तब उसकी कविता ने शाश्वत सत्य को उजागर किया .........
जिसे हर रूह ने महसूस किया
ऐसेही लफ्ज़ , फ़िर उसके कलाम से गूंजे हैं ....
और उसकी कविता ने उन्हें तब तब , आकार दिया ।
" सांझ होते ही जाने छा गयी कैसी उदासी ?
क्या फ़िर किसी की याद आयी,
विरह व्याकुल प्रवासी ? "
( शब्द : स्वपंनरेंद्र शर्मा : काव्य पुस्तक " प्यासा निर्झर " से )
विरह की घनीभूत संध्या ने फ़िर प्रश्न किया,
" क्या तुमको भी कभी, आता है, हमारा ध्यान ?
पकड़ कर आँचल तुम्हारा , खींचता, क्या कभी सुनसान ? "
( शब्द : स्वपंनरेंद्र शर्मा : काव्य पुस्तक, " प्रवासी के गीत " से )

ना जाने " प्यार , प्रेम, मुहोब्बात , इश्क " को हम अजीब निगाहों से क्यूं देखते हैं ?
अरे कभी तो हमें ये मज़ाक सा भी लगता है और कभी वो बन जाता है, एक गोसीप का विषय भी !
इसे मापने का कोई पैमाना भी तो नहीं होता ना !!
इसी कारण से, हम अभी तक इस रहस्य को सुलझा नही पाये ..हम नही जान पाते के ,
...........
" कोई किसी से क्यूं प्यार करता है ? " या, " ये प्यार या प्रेम क्या बला है ? "
इसके पीछे क्या राज़ है, ये भी हम नहीं जानतेहमेशा देखा जाता है के, इंसान, प्यार का ,
सम्मान का , अपनेपन का भूखा होता है ।
कोई प्यार के २ बोल बोले, इज्ज़त से पेश आए तो , सामनेवाला , खुश हो जाता है ।

फ़िर हम क्यों , कभी कभी इतने विरक्त और रूखे रूखे से हो जाते हैं के ,
ऐसे फूलों से नाज़ुक एहसास का भी मखौल उडाते हैं ? .........
या अगर प्यार को देखें , महसूसें , तब भी , उस पे विश्वास नही करते ।

बचपन से माँ का प्यार जिसे नसीब होता है, वह इस दुलार का आदी हो जाता है । पर व्यस्क होते होते, हम , एक उदासी की चादर को ओढ़ लेते हैं ताकि हमें कोई , दिल तोड़कर , दुखी ना कर पाये । यह हमारा अभेध्य किला बन जाता है जहाँ किसी और के एहसास का प्रवेश , धीरे धीरे , निशिध्ध कर दिया जाता है और हम हो जाते हैं, एकाकी , अकेले............उदास और चिडचिडे , या दुनिया दारी की भाषा में , कहे तो , हम वयस्क हो जाते हैं । बड़े हो जाते हैं
वो तो भला हो , माँ का, और पिता का, जो अपना प्रेम , उजागर तो करते हैं ।
किसी ने सच ही कहा के,
" जब ईश्वर हर जगह उपस्थित नही हो पाते तब, माँ को ( या पिता को ) अपनी जगह भेज देते हैं "
ऐसी ममतामयी माता ( या पिता का ) का कोमल स्पर्श , शिशु , इन पवित्र एहसास से ही तो समझता है !
जहाँ वाणी मौन हो जाती है, वहाँ , भाव जन्म ले लेते हैं ।
प्रेम , वात्सल्य, माया ही सही,परन्तु, हैं ये वाक् विलास के परे की भावना ।
मनुष्य जन्म मिला और प्रेम भाव से , नाता जुडा , यही तो हमारे अस्तित्त्व का प्रथम चरण है ।
वैराग्य और त्याग , समाधि और साधना भी इन्ही चरणों से आगे बढ़तीं हैं ।
ठाकुर श्री रामकृष्ण परमहंस देव भी माँ महाकाली के प्रति प्रेम भाव में आकंठ डूब गए थे ।
तब, माता ने ही कृपा कर , अनासक्ति की खडग से , इस प्रेम डोर को काट कर , उन्हें मुक्त किया था ताकि ,
उनकी साधना दूसरे चरण में प्रवेश कर पाये ...........
वे तो , परमहंस थे और हम, हैं , साधारण इंसान ! .......

हमारे मन को अभी कई कई बार तपना बाकी है । तभी तो हम, आगे बढ़ पायेंगे .............
पहले, ममता, वात्सल्य और अपनेपन का पाठ तो सीखें
......जहाँ प्रकाश ही प्रकाश है ...........उस ह्रदय और उस में उत्पन्न होतीं प्रेम की भावना को तो समझें ......
अगर आप के मन कीवाड बंद हैं , आपने उन पर , कठोर मनोभावों के ताले भी जड़ रखे हैं तब आप क्या मह्सूस करेंगें के ये कोमल, नाज़ुक भाव क्या होते हैं ? कैसे होते हैं ?
जीर्ण - शीर्ण , इमारत से आपके व्यक्तित्त्व में , कोई द्वार , प्रेम के लिए भी , खोले रखना होगा .
जहाँ से ' प्रेम जैसा कोमल भाव ' प्रवेश तो करे ..
........अन्यथा , कठोरतर होते भाव , कठोरतर होता जीवन , हमें , बाँध कर व्यथित ही करेगा ।
जीवन ऐसे नही बीत पाता ।
जहाँ प्रेम का निर्मल मधुर निर्झर न हो , वह स्थान कदापि गुलज़ार न हो पायेगा ।

ईश्वर आराधना, आत्म - साधना तो उसके बाद की बातें हैं ।
इस आत्मा को , व्यक्ति वाद को पोषित करे ऐसे अहम् को, हम , पहले , आत्मसात कर ले,
ईश्वर तभी मुस्कुरायेंगें .....
न आप या मैं, सब से विलक्षण , व्यक्ति, इस धरा पर प्रकट हुए हैं , नाही , हमारा वजूद ,
कोई अभूतपूर्व घटना है जो , पहले कभी न हुई हो !

~ हाँ हर व्यक्ति की जीवन - यात्रा अवश्य , अनूठी और अनजानी है ।
उसे हम अलिप्त भाव से देखें ।
मानो , इस नैया को खेनेवाली शक्ति हम नही , कोई अज्ञात है।
हमारा प्रयास यही हो, के हम, हमारी इस नन्ही नैया को , मंझधार में खेते हुए ,
सुरक्षित रखें और उसे खेते हुए , साहिल तक ले आयें ।
केवट जब श्री राम का चमत्कारी अस्तित्त्व जान गया तब ही , उसकी नैया , भी पार लगी थी !

फ़िल्म तक्षक से : गीत : स्वर संयोजन : ऐ आर । रहमान शब्द हैं ,
खामोश रात , सहमी हवा,
तनहा तनहा दिल अपना
और दूर कहीं , रोशन हुआ , एक चेहरा
ये सच है या सपना ?
सच , ये जीवन भी सच है या कोई सपना ?
चेहरा कोई भी हो, आपके ध्यान का केन्द्र बिन्दु , ईश्वर की कोई - सी भी प्रतिमा हो, या आपके प्रियतम की प्रतिकृति ही क्यों न हो ? स्वर - ताल के पर , फडफडा कर , उड़ने दीजिये , आपके दिल के पखेरू को ...........
http://www.youtube.com/watch?v=kVO-EEpksgc
स्वर साम्राज्ञी सुश्री लता मगेश्कर : एक दूजे के लिए

" सोला बरस की बाली उमर को सलाम
अय प्यार तेरी पहेली नज़र को सलाम

मिलते रहे यहाँ हम यह है यहाँ लिखा
इस लिखावट की ज़र - -ज़बर को सलाम
साहिल की रेत पर यूँ लहरा उठा यह दिल
सागर में उठने वाली हर लहर को सलाम
इन मस्त गहरी गहरी आंखों की झील में
जिस ने हमें डुबोया उस भंवर को सलाम
घूँघट को तोड़ कर जो सर से सरक गई
ऐसी निगोडी धानी चुनर को सलाम

उल्फत के दुश्मनों ने कोशिश हज़ार की
फिर भी नही झुकी जो उस नज़र को सलाम "

लताजी ने इन पंक्तियों को , ऐसे गाया है के वे
दिल को गहराई तलक छू जातीं हैं
http://www.youtube.com/watch?v=gJ13EOg0kbM
स्वर साम्राज्ञी सु श्री लता मगेश्कर : फ़िल्म गंगा जमुना
http://www.youtube.com/watch?v=t4LL2w6Ahhg

लताजी ने इन पंक्तियों को , ऐसे गाया है के हर प्रेमी ह्रदय के बिछोह को घनीभूत करतीं हुई , एक अन बूझी प्यास और पीडा को स्वर देते हुए , हमें, इस गीत की स्वर लहरी, घनी विरह भावना से एकाकार कर देतीं हैं । .
.........प्रेमी ह्रदय की प्यास हो या आत्मा के हंस की टेर हो , ' चल बुलाता है तुझे फ़िर मान सर , हंस उड़ जा ...हंस उड़ जा ....'
और अंत में गज़लों के बेजोड़ गायक जगजीत सिंह जी के स्वर में ये ग़ज़ल के जादूगरी के सुनहरे जाल में , आपको , छोड़ कर , चलते हुए ..............
ये गीत भी सुनवा दूँ जो मुझे बहुत पसंद है ..........
अच्छा ही है , इन्टरनेट का ज़माना आ गया है , अब कौन हाथों से ख़त लिखता है और कौन यूँ मायूस होकर , सोचता भी है , के हाथों से लिखे ,
इन , प्रेम - पत्रों का क्या हश्र होगा !!! ...........खैर !
' रस ' से ही जीवन सरस रहता है .....................................
.नीरस जीवन, मरूभूमि सम दारूण होता है ।
आइये, जीवन में रस भर कर, उसे समरस करें ......................
' असतो माँ सत ...
तमसो मा , ज्योतिर य........
मृत्योर्मा अमृतं य.......'
और सुनिए ,
" तेरी खुश्बू में बसे ख़त ,
मैं , जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए ख़त ,
मैं , जलाता कैसे ?
तेरे हाथों के लिखे ख़त ,
मैं , जलाता कैसे ,
तेरे ख़त, आज मैं ,
गंगा मैं बहा आया हूँ
आग बहेते हुए पानी में लगा आया हूँ ...


http://www.youtube.com/watch?v=YLwFRdjVXSM
चलिए ................अब आज्ञा ,
मेरी बातों को सुनने का शुक्रिया .!.
...........आपके दिन सुहाने हों ...
जीवन यात्रा सुखद हो, आपके संग किसी के प्यार की निर्मल धारा भी बहती रहे
...........इस आशा के साथ, आज यहीं , विदा लेते हुए,
स्नेह सहित,
- लावण्या

28 comments:

  1. आनन्द आ गया..बहुत सुन्दर कोमल पोस्ट!!

    ReplyDelete
  2. ताजा हवा के एक झोंके समान

    ReplyDelete
  3. गीतों की इस लड़ी में बस उलझ कर ही रह गए बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
    आभार ..!!

    ReplyDelete
  4. जागो मोहन प्‍यारे से अच्‍छा प्रभात गीत कोई नहीं बना । हां एक गीत जो रवीन्‍द्र जैन साहब ने बनाया था किसी प्रेमदान नाम की फिल्‍म के लिये पंछियों के शोर से, वो भी मुझे अच्‍छा लगता है किन्‍तु जोगो मोहन प्‍यारे की तो बात ही अलग है । तक्षक का गीत तो आज ही सुना और आपकी पंसद की दाद दे रहा हूं । इसलिये भी कि आप केवल पुरातन में ही नहीं उलझी हैं बल्कि जो आज भी सुंदर रचा जा रहा है उसको भी सराह रही हैं । सोलह बरस की ये गीत तो ऐसा है जो हर युग में जिंदा रहेगा । भले ही हम कितने ही आधुनिक हो जाएं भले ही प्रेम की परिभाषाएं बदल जाएं लेकिन ये गीत नहीं बदलेगा । और अंत में जगजीत संिह साहब का तेरी खुश्‍बू में बसे खत, ये नज्‍म पूरी यात्रा है । यात्रा जिसमें प्रेम शिद्दत के साथ धड़कता हैं । आपकी पारखी नजरों को प्रणाम ।

    ReplyDelete
  5. दो हंसों का जोड़ा के बारे में एक घटना । बात तब की है जब मेरे पूज्‍य नानाजी का स्‍वर्गवास हो चुका था । लगभग एक साल बाद नानीजी हमारे यहां आईं हुई थी । और यूं ही मैं अपने टेप पर गीत सुन रहा था । अचानक ये गीत आ गया । और नानीजी फूट फूट कर रो पड़ीं । मैंने दोड़ कर टेप बंद कर दिया । मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि नानी जी को क्‍या हो गया । किन्‍तु बाद में समझ आया कि वो गीत था जिसने उनको रुला दिया । आज भी नानीजी के सामने वो गीत बजाते हुए डरता हूं । हां उनको ज्‍योति कलश छलके और लौ लगाती बहुत पसंद हैं ।

    ReplyDelete
  6. भाई श्री महफूज़ अली जी,
    समीर भाई ,
    मनोज भाई साहब ,
    वाणी जी ,
    आप सभी का शुक्रिया --
    यहां आकर , मेरी बातों को सुना
    और आपके मन का कहा
    - मुझे खुशी हुई !
    भाई श्री पंकज जी ,
    आपने सारे (मेरे पसंदीदा )गीत,
    पहले भी सुने होंगें - शायद !
    ( तक्षक फिल्म के गीत के अलावा :) --
    आपने स विस्तार सारी बातें बतलाईं
    हैं .......
    जिन्हें पढ़कर , खुशी हुई --
    " लौ लगाती " और "ज्योति कलश "
    मन को शांति देनेवाले गीत हैं --
    और भी कई गीत हैं जो मुझे बहुत पसंद हैं
    -- उन पर , फिर कभी --
    सादर - स स्नेह,
    - लावण्या

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुती। गीत तो चाहे बहुत बार सुने थे मगर आपने जो प्रेम की परिभाशा दी है उस के कारण ये और भी सुन्दर लगने लगे हैं लाजवाब प्रस्तुती है शुभकामनायें और धन्यवाद्

    ReplyDelete
  8. सच कहा आपने कुछ गीत बेहद दिल के करीब होते है ..जैसे खामोशी फिल्म का गाना वो शाम कुछ अजीब थी....मुझे बेहद पसंद है .....ओर मेहंदी हसन का गया हुआ "रंजिश ही सही.."ओर हाँ आपकी ओर मेरी पसंद तक्षक के गाने में मिलती है ...

    ReplyDelete
  9. आप का लेख पढ कर ओर मधुर गत सुन कर हमारा आज की सुबह सफ़ल हो गई, मन प्र्सन्न हो गया.्बहुत सुंदर

    धन्यवाद

    ReplyDelete
  10. कुछ गीत पहली बार सुनते ही पसंद आ जाते हैं और फिर जो बात दिल को छू लेती है, वो पूरी जिंदगी याद तो रहती ही है.

    ReplyDelete
  11. सोचने लगा दीदी, आपके इस पोस्ट को पढ़कर कि हमारा क्या बनता जो ये गीत न होते हमारे साथ...!

    ReplyDelete
  12. MAN KO CHOO GAYEE AAPKI POST .. BAHOOT MADHUR GEETON KE ZIKR KE SAATH .. AAPKA LIKHNA AUR KI RUMAANI KAR GAYA DIL KO ....

    ReplyDelete
  13. ये सभी गीत मानव प्रेम, भक्ति और सौंदर्य रस की अभिव्यक्ति के बढिया नमूने हैं.

    ReplyDelete
  14. सुरीली संगीतमय पोस्ट |ये अमर गीत हमारी जिदगी का स्पन्दन बन गये है |
    एक गीत है शायद संत ज्ञानेश्वर फिल्म से है लताजी का गाया हुआ है
    क्या सुनने को मिल सकता है ?
    भोर भये नित सूरज उगे
    साँझ पडे ढल जाये
    ऐसे ही मेरी आस बंधे
    और बंध बंध कर मिट जाय
    खबर मोरी ना लीन्हो रे
    बहुत दिन बीते ..बीते रे बहुत दिन बीते ........

    ReplyDelete
  15. Lavanya Di

    Wonderful post with great links.
    Certain songs become immortal and can never be forgotten.
    Thanx & Rgds.

    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

    ReplyDelete
  16. गीतों भरी बेहतरीन पोस्ट के लिए आभार दीदी साहब और जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं...
    जय हिंद...

    ReplyDelete
  17. लावण्या जी को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई..

    ReplyDelete
  18. लावण्या जी, आप को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं|

    ReplyDelete
  19. बहुत सुन्दर सुरीली पोस्ट!
    ये सभी गीत मुझे भी बेहद पसंद है.
    लावण्या दी,जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं...

    ReplyDelete
  20. लावण्या दी को जन्म-दिन खूब-खूब सारी शुभकामनायें!...ईश्वर आपकी मुस्कान यूं ही कायम रखे हमेशा हमेशा..!

    ReplyDelete
  21. लावण्या दी,
    हमेशा की तरह एक ताजा हवा के झोंके सी,हजारों फूलों की खुशबू लिए,खिले गुलशन सी खूबसूरत पोस्ट...आपके और ब्लॉग जगत के आभारी है वर्ना हमारी किस्मत में आपके प्रयासों की जानकारी कहाँ मिलती

    ReplyDelete
  22. मन को आनंदित करने वाला आलेख.

    ReplyDelete
  23. Lavanya Di

    Many Many Happy Returns of the Day.

    Happy Birth Day.

    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

    ReplyDelete
  24. सु श्री निर्मला जी ,
    डा. अनुराग भाई ,
    राज भाटिया जी ,
    अभिषेक भाई ,
    गौतम भाई ,
    दिगंबर जी ,
    दिलीप भाई ,
    शोभना बहन,
    हर्षद भाई ( अटलांटा से ) ,
    श्री दीपक " मशाल ' जी,
    भाई श्री रजनीश परिहार जी,
    भाई श्री शिवम् जी ,
    सौ. अल्पना बहन,
    प्रकाश पाखी जी,
    भाई श्री पंकज जी,
    आप सभी की स्नेहपूर्ण टिप्पणी
    तथा यहां समाय देने के लिए
    आपका ह्रदय से आभार ............
    आते रहियेगा ...
    ऐसा ही स्नेह बनाए रखियेगा ..........
    बहुत बहुत आभार व स्नेह आप सभीको

    - लावण्या

    ReplyDelete
  25. "jag ujiyaara chaaye...."
    sach...ye geet sun kr mn ko ajab sa sukoon haasil hotaa hai...hr baar....
    aapka ehsaan hai hm sb pr jo aise aise nayaab geet sunvaati haiN aap hameiN...
    ek geet...
    "jyoti kalash chhalke..."
    kaheeN sun paaooNga kayaa....?!?
    aur wo...
    "haaye jiyaa roye...."
    (film--milan,,mu-hansrajbehal wali)
    please...meri darkhwaast note farmaa leiN...phir kabhi sahee....

    abhivaadan .

    ReplyDelete
  26. इतना सारा लगातार कैसे सोचती रहती हैं आप .. मुझसे तो पढते हुए एक गीत के आगे नही बढा जा रहा था .. कैसा होता है यह सब .. गीत वही होते है लेकिन हरेक की ज़िन्दगी मे वे अलग अलग सन्दर्भ के साथ उपस्थित होते है .. त्तेरे खत आज मै गंगा मे बहा आया हू के साथ हर किसीको अलग अलग नदी तो याद आती होगी ..शायद किसीको कोई पोखर .. और फिर शाम यही सोचते हुए उदासी लेकर आती हो .. पंडित जी की यह कविता बार बार पढने का मन कर रहा है " सांझ होते ही न जाने छा गयी कैसी उदासी ?
    क्या फ़िर किसी की याद आयी,
    ओ विरह व्याकुल प्रवासी ? "
    अच्छा लगा यह सफर .. चलती रहें ..।

    ReplyDelete