Friday, December 4, 2009

महाभारत : और श्री बी आर चोपड़ा जी की यादें .........

रूपा गांगुली --
मेरे आराध्य श्री कृष्ण हैं -
- मेरे मन के भाव, इसी गीत में प्रकट हैं सुनियेगा .........
.http://www.youtube.com/watch?v=sqRfhMWjbn4&feature=fvw

रूपा गांगुली
श्री बी. आर. चोपड़ा जी ने दूरदर्शन पर ' महाभारत ' की कथा को, आधुनिक युग के लिए प्रस्तुत किया। इस धारावाहिक ने, अब तक दर्शक संख्या में, बने पुराने सारे रेकोर्ड तोड़ दीये। सबसे ज्यादा टीआरपी, इसी प्रग्राम को मिली है।

पूज्य पापाजी, पण्डित नरेंद्र शर्मा इस टीवी सीरीज के साथ, ' परामर्श दाता + कांसेप्ट देनेवाले तथा इस के कई गीतों के रचियता के रूप में जुड़े।
दूरदर्शन ने जब सुप्रसिध्ध निर्माता, निर्देशक, श्री बलदेव राज चोपड़ा जी को, महाभारत पर धारावाहिक बनाने का कार्य सौंपा और अनुबंधित किया तब, सबसे पहले, इस महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट के लिए, टीम तैयार करने का कार्य आरम्भ हुआ। कई महत्त्वपूर्ण बातें, एक तार में, बंधकर, सुचारू रूप से कार्य आरम्भ हो, उस के लिए, योग्य व्यक्ति की एक बृहत् टीम बनाना शुरू हुआ।
बंबई शहर, जो बोलीवुड माने भारतीय फ़िल्म निर्माण का गढ़ है वहाँ, हर तरफ़, श्री बी आर चोप्रा जी जो निर्माता थे, उनकी, जिससे भी बातें होतीं, सभी से एक सुझाव अवश्य मिलता कि, बंबई में, पण्डित नरेंद्र शर्मा रहते हैं और वे साहित्य, संस्कृति व भारतीय परम्पराओं के चलते फिरते ज्ञान कोष या विश्वकोश से हैं - उन्हें आप अपनी टीम में शामिल कर लीजिये तब आपका काम आसान हो जाएगा और सुचारू रूप से चलने लगेगा ।
बी. आर. अंकल ने ' अफ़साना, शोले, एक ही रास्ता, नया दौर, साधना, क़ानून, गुमराह, वक्त, हमराज़,  धुंध, पति, पत्नी और वो, इन्साफ का तराजू, निकाह, और बहादुर शाह ज़फर पर धारावाहिक और कमर्शियली, अत्यन्त सफल फिल्मे पहले ही बना कर, अपनी हस्ती और अपनी निर्माण संस्था को हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में, एक ऊंचा मकाम दिलवा दिया था। उनकी फ़िल्में अकसर सामाजिक प्रश्नों पर केन्द्रीत रहतीं थीं। जैसे साधना, धूल का फूल, निकाह, इन्साफ का तराजू जैसी फिल्मों की पटकथा में भी है । सुनिए, फ़िल्म : नया दौर का ये गीत, जो मुझे पसंद है
http://www.youtube.com/watch?v=eva5VGP9ASA&feature=player_embedded
http://www.youtube.com/watch?v=eva5VGP9ASA&feature=player_embedded
अब बारी थी पौराणिक कथा को नया अवतार देने की और एक दिन हमारा घर और पण्डित नरेंद्र शर्मा को खोजते हुए, उनकी लम्बी सी इम्पोर्टेड गाडी, हमारे घर के दरवाज़े के बाहर आकर  रुकी - घर पर अतिथि आए जिनसे पापा भद्रता से मिले । अभिवादन किया।  फ़िर, उन्होंने पापाजी से, कई बार और मुलाक़ात की और उन्हें, कार्य के लिए, अनुबंधित किया ।
पापा जी की उसके बाद, बी आर फिल्म्ज़ की ऑफिस में, रोजाना मीटिंग्स होने लगीं। पापा जी ने जैसे जैसे इस अति विशाल महाग्रंथ की कथा को, बतलाना शुरू किया तब यूनिट के लोगों का कहना है के ऐसा प्रतीत होने लगा मानो, हम उसी कालखंड में पहुँच कर सारा द्रश्य , पंडितजी की आंखों से घटता हुआ, देखने लगे ! " समय " ये भी एक महत्त्वपूर्ण पात्र है महाभारत कथा में .....और उसके लिए अविस्मरणीय  स्वर दिया है श्री हरीश भीमानी जी ने ....
जो समस्त कथा का सूत्रधार है ।
कभी कभी पापा जी, कथा में इतना डूब जाते के, उठ कर खड़े हो जाते या टहलते हुए, कोई कथानक को, स - विस्तार बतलाते, तमाम पेचीदगियों के साथ, महाभारत कथा के पात्रों के मनोभाव, उनके मनोमंथन या स्वभाव की बारीकियों को भी समझाते । तब, पापा की कही कोई बात व्यर्थ न जाए , इस कारण से, जैसे ही, पापाजी का बोलना आरम्भ होता, टेप रेकॉर्डर ओं कर लिया जाता ताकि, सब आराम से , सुना जा सके ---
एक बार  पापा जी ने कहा, " भीष् पितामह , हमेशा श्वेत वस्त्र धारण किया करते थे " 
बी. आर. अंकल और राही साहब जो पटकथा लिखा रहे थे वे दोनों पूछने लगे,
' आपको कैसे पता ? "
तब, पापा जी ने, बतला दिया कि, अमुक पन्ने पर इस का जिक्र है -
जब पितामह, मन ही मन प्रसन्न होते हुए बालक अर्जुन से शिकायत करते हैं,
'
वत्स, देखो तुम्हारे धूलभरे, वस्त्रों से, मेरे श्वेत वस्र, धूलि धूसरित हो जाते  हैं सब हैरान रह गए के इतनी बारीकी से कौन कथा पढता है भला ?
और राही मासूम रज़ा साहब ने इसी को, पटकथा लेखक के रूप मे, कलम बध्ध भी किया और भीष्म पितामह के किरदार को सजीव करनेवाले मुकेश खन्ना को, श्वेत वस्त्रों में ही, शुरू से अंत तक,  सुसज्जित किया गया । ये बातें भी, महाभारत के नए स्वरूप और नए अवतार के इतिहास का एक पन्ना बन गयीं राही साहब ने कहा है कि
' महाभारत ' की भूलभूलैया में , मैं, पण्डित जी की ऊंगली थामे थामे, आगे बढ़ता गया' । "
पापा जी के सुझाव पर, युधिष्ठीर को पाँच पांडवों में सबसे शांत वही थे ऐसे कलाकार को चुना गया
हाँ, द्रौपदी के किरदार के लिए रूपा गांगुली का नाम मेरी अम्मा , सुशीला नरेंद्र शर्मा ने सुझाया था और बी आर अंकल ने उन्हें कलकत्ता से, स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलवा लिया और वे चयनित हुईं ।
सीरीज़ को महाराज भरत के उत्तराधिकारी के चयन की दुविधा से आरम्भ किया गया । तब राजीव गांधी सरकार केन्द्र में थी। कई चमचों ने वरिष्ठ अधिकारियों को भड़काने के लिए कहा,' ये उत्तराधिकारीवाली बात इस में क्यों है ? इसे निकालें '
[ शायद नेहरू परिवार के लिए भी ये बात , लागू हो रही थी ]
परन्तु , पापा जी और बी आर अंकल देहली गए  और पापा ने कहा
' अगर अब आप ऐसी बातों को निकालने की कहेंगें अब आप का ही बुरा दीखेगा '
और इस संवाद को , काटा नही गया ! ये भी यादें हैं ...
फ़िर , आए शांतनु राजा और मत्स्यगंधा का प्रणय बिम्ब
यहाँ शूटिंग के बाद भी सींन, खाली खाली स लग रहा था ।
पापा जी ने कहा,
' ये गीत दे रहा हूँ , इसे इस खाली स्थान पर रखिये , अच्छा लगेगा यहाँ पर '
वो गीत था , " दिन पर दिन बीत गए " ..........
चोपरा अंकल दूसरे दिन, एक चेक लेकर आए , उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब पापाने ये कहते उसे लौटा दिया कि, ' चोपराजी, आपने मुझे जब नुबंधित किया है तब मेरा फ़र्ज़ बनता है के इस सीरीज़ की सफलता के लिए भरसक प्रयास करूं - मैं गीतकार भी हूँ आप ये जानते थे , अतः इसे रहने दीजिये " - चोपरा अंकल ने बाद में, हमें ये कहा के,
' बीसवें सदी में जीवित ऐसे संत - कवि को ,
मैं , हाथ में लौटाए हुए पैसों के चेक को थामे ,
बस, विस्मय से देखता ही रह गया ! "
उन्होंने अपनी श्रध्धान्जली अंग्रेज़ी में लिखी है जो पापा जी के असमय निधन के बाद छापी गयी पुस्तक" शेष - अशेष " में सम्मिलित है ।
वे कहते हैं, ' ये कोई रीत नहीं..हमें छोड़ कर जाने की ' और उन्होंने पापाजी को एक फ़रिश्ता - या एंजेल कहा है ।
हम परिवार के सभी, पापा जी के जाने से, टूट चुके थे ।
धारावाहिक, जारी था ।
बी. आर. अंकल का दफ्तर, मेरी ससुराल के बंगलो, के सामने ही था ।
एक दिन, शाम को टहलते हुए ,दीपक [ मेरे पति ] और मुझे, राजकमल जी , जो संगीत दे रहे थे, गली के नुक्कड़ पर ही मिल गए । बातें हुईं - पापा को सजल नयनों से वे याद करने लगे , तब दीपक ने कहा,
' अंकल , ये लावण्या ने भी कई दोहे, हाभारत सम्बंधित लिखे हैं '
उन्हें आश्चर्य हुआ और बोले,
' तब लिखे और घर में रखे हैं ? क्यों भला ?..ले आओ एक दिन, हम भी सुनेंगें ..
अगर कहीं योग्य लगें तब उसे रख लेंगें '
उनके आग्रह से, आश्वस्त हो, जब मैं, दफ्तर में पहुँची तब, ४ एपिसोड , बन कर तैयार हो रहे थे ।बी. आर. अंकल के पैर छु कर, रज़ा साहब के बगल में, जब मैं बैठी, तब पापा जी की बहुत याद आई !  आयी
प्रसंग था - १ - सुभद्रा हरण,
२ - द्रौपदी और सुभद्रा का सर्व प्रथम बार, इन्द्रप्रस्थ में द्रौपदी के अंत;पुर में मिलन और
३ - जरासंध - वध ....इत्यादी ...
पार्श्व - संगीत , दोहे अभी तलक, जोड़े नही गए थे ...सिर्फ़ रफ्फ कोपी की प्रिंट, ही तैयार थीं ...
मैंने, ये दोहे लिखकर दीये जिन्हें , महाभारत टी वी धारावाहिक में , शामिल किया गया । हाँ, मेरा नाम , कहीं शीर्षक में ना ही देखा होगा आपने ।
परन्तु, मुझे आत्म संतोष है इस बात का कि मैं अपने दिवंगत पिता के कार्य में अपने श्रध्धा सुमन रूपी, ये दोहे, पूजा के रूप में , चढ़ा सकी .........
ये एक पुत्री का पितृ - तर्पण था । आप भी देखिये ; ~~~~
- द्रौपदी द्रौपदी और सुभद्रा मिलन :
" गंगा यमुना सी मिलीं , धाराएं अनमोल ,
द्रवित हो उठीं द्रौपदी , सुनकर मीठे बोल "
और सबसे प्रथम दोहा जो सुभद्रा हरण के प्रसंग पर लिखा था उसके शब्द हैं ।१ - सुभद्रा हरण,
' बिगड़ी बात संवारना , सांवरिया की रीत ,
पार्थ सुभद्रा मिल गए , हुई प्रणय की जीत
http://www.youtube.com/watch?v=ufGYTrmb3Gc&feature=player_embedded

३ - जरासंध - वध
अभिमानी के द्वार पर, आए दींन दयाल,
स्वयं अहम् ने चुन लिया, अपने हाथों काल "

द्रौपदी चीर हरण
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
" सत असत सर्वत्र हैं , अबला सबला होय
नारायण पूरक बनें, पांचाली जब रोये "
मत रो बहना द्रौपदी , जीवन है संग्राम
धीरज धर , मन शांत कर , सुधरेंगें , बिगड़े काज "
ये दोहा भी आपने धारावाहिक में सूना होगा जो श्री कृष्ण द्रौपदी को सांत्वना देते हुए पांडवों के वनवास के समय मिलने आते हैं तब कहते हैं

कीचक वध
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
" चाहा छूना आग को गयी कीचक की जान,
द्रौपदी के अश्रू को मिला आत्म -सम्मान ! "
भीष्म पितामह जब घायल हुए उस प्रसंग पर एक दोहा लिखा था ,
जो यूँ है, [ ये सिर्फ़ डायरी में कैद है ] ,
' जानता हूँ, बाण है यह प्रिय अर्जुन का,
नहीं शिखंडी चला सकता एक भी शर ,
बींध पाये कवच मेरा किसी भी क्षण,
बहा दो संचित लहू, तुम आज सारा ...'

चलिए .......
आज इतना ही , फ़िर मिलेंगें ...
तब तक , सब के जीवन में , योगेश्वर श्री कृष्ण की कृपा, बरसती रहे
यही मंगल कामना है ...
- लावण्या








36 comments:

  1. आज जाना कि आपके रचित दोहे हम महाभारत सीरियल में पहले ही सुन चुके हैं. :)

    बहुत बेहतरीन आलेख, खूब सारी जानकारी..


    आपका बहुत आभार!!

    ReplyDelete
  2. अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  3. पंडित नरेंद्र शर्मा जी के संस्पर्श ने इस धारावहिक को जो भव्यता और गुरुता प्रदान की उससे ही यह कृति मानों अमर हो गयी -मैंने एक एक एपिसोड देखे हैं और हर बार यही लगता था की मानो कोई आधुनिक संजय कथा दृश्य प्रस्तुत कर रहा हो !

    ReplyDelete
  4. दीदी साहब आज ज्ञात हुआ कि वे दोहे आपके हैं जो हर प्रसंग पर एक असरदार तरीके से आकर पूरे प्रसंग को दर्शकों के सामने स्‍पष्‍ट कर देते थे । महाभारत भारतीय टेलीविजन के इतिहास का सबसे अद्भुत धारावाहिक है उसकी श्रेणी में जो अन्‍य धारावाहिक आते है उनमें भारत एक खोज, चाण्‍क्‍य, तमस ही हैं । आदरणीय पंडित जी ने उस धारावाहिक में प्राण फूंक दिये थे । एक बात और कहूं मुझे पूरी महाभारत में दो पात्रों का चयन सबसे सटीक लगा था रूपा गांगुली का और नीतिश भारद्वाज का । रूपा गांगुली तो मानो द्रोपदी बनने के लिये ही पैदा हुई थीं । आपके संस्‍मरण अब काफी हो गये हैं मेरे विचार में अब आप मेरी सलाह पर अमल कर सकती हैं ।

    ReplyDelete
  5. यह तो जानकारी थी कि कुछ दोहे इस सीरियल में आप के हैं यह पहली बार ही जाना कि वे कौन से हैं? महाभारत के निर्माण से संबंधित यह लघु विवरण बहुत अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  6. बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी है आपने। महाभारत के अधिकांश एपिसोड तो मैंने भी देखे हैं पर इतने खूबसूरत और मानीखेज़ दोहे आपके हैं, इसकी जानकारी कतई नहीं थी। एक बहुत ही मह्त्वपूर्ण आलेख है आपका।

    ReplyDelete
  7. नरेन्द्र शर्मा जी के गीत या एपीसोडों के मार्मिक प्रसंगों के दोहे अद्भुत प्रभाव छोड़ते थे।...
    वैसे महाभारत ने मुझे बहुत निराश किया था। मैं उसकी टीवी प्रस्तुति को ऐतिहासिक भूल मानता हूँ। लोकप्रियता पाने के चक्कर में गुड़ गोबर कर दिया गया। उसे 'चाणक्य' धारावाहिक की तरह बनाना चाहिए था - लेकिन भाषिक सरलता का ध्यान रखते हुए। यह भी सही है कि सभी लोग सब जगह सफल नहीं होते। चन्द्रप्रकाश द्विवेदी भी 'एक और महाभारत' लेकर आए थे - बहुत जल्दी विदा हो गए।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बी.आर.चोपड़ा महाभारत अनुपम कलात्मक सौन्दर्य में यथार्थ के सजीव चित्रण की अभूतपूर्व सफलता का सिद्धहस्त अवतरण है। विषयानुकूल सारगर्भित,दुर्लभ अनुभव के अद्वितीय मार्गदर्शन की खोज पर आधारित, यह धारावाहिक अद्भुत कला सामर्थ्य की अपराजित पहचान है।उसकी कला समृद्धि के दायरे में दर्शकों की आत्मसन्तुष्टि में कमी या कोई और कामना शेष होना संभव नहीं है। अगर किसी दर्शक में यह संभव है,तो वह उसकी अयोग्य व वेबुनियाद सोच का परिणाम है। ऐसे नकारात्मक उदाहरण अपने अपूर्ण व्यक्तित्व की खबर मात्र है।

      Delete
  8. आप पंडित जी की लड़की हैं यह जानकर बड़ी खुशी हुई। महाभारत से भी बढ़कर मैं उन्हें ज्योति कलश छलके के रचियता के रूप में आदर करता है। नरेन्द्र जी एक आध्यात्मिक सरिता की तरह से थे और आपमें भी उनकी छाया जरूर है।

    ReplyDelete
  9. वो दोहे आपके थे जाम कर अभिभूत हूँ। और इतना विस्तार से आपने जो पोस्ट लिखी है इसे शायद कोई इतनी खूबसूरती से नहीं लिख सकता आनन्द आ गया पढ कर और गीत ? आपकी पसंद की कायल हूँ बधाई आपको

    ReplyDelete
  10. बहुत सुंदर, ओर दोहो के बारे जान कर बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद

    ReplyDelete
  11. सुखद आश्चर्य हुआ जानकर की आपके दोहे महाभारत सीरियल में थे....बहुत सुन्दर जानकारी दी आपने!

    ReplyDelete
  12. LAVANYA JEE, ACHCHHEE YAADON KEE
    KYAA BAAT HAI! AAP JO MAHABHARAT
    SERIAL SE JUDHEE HUEE YAADON KO
    LEKHNIBADH KAR RAHEE HAIN HUM SAB
    KE LIYE YAADGAR HAIN AUR HONGEE.
    AAJ KAL " ZEE" PAR MAHABHARAT KEE
    LADIYAN AA RAHEE HAIN.MAHAKAVI PT.
    NARENDRA SHARMA JEE KE DOHE SUNTAA
    HOON TO MAIN ABHIBHOOT HO JAATAA
    HAI.
    IS SANSMARAN KE LIYE AAPKO
    DHERON BADHAAEEYAN AUR SHUBH KAMNAYEN.

    ReplyDelete
  13. AAPKE DOHON KEE BHEE KYA BAAT
    HAI! SUNDAR AUR SARAS.

    ReplyDelete
  14. अच्छा, आपका लिखा भी महाभारत धारावाहिक का अंग है। यह जान कर बहुत प्रसन्नता हुई।

    ReplyDelete
  15. बहुत अच्छा लगा यह संस्मरण पढ़कर!

    ReplyDelete
  16. दिन पर दिन बीत गये...!

    ये वो गीत था, जिसको सुनने के बाद ना जाने क्यों इसकी धुन मनोमस्तिष्क पर छा गई थी...!

    पहले रामयण और फिर महाभारत बाबूजी बड़े मन से देखते थे...! जब महाभारत में अर्जुन को मोह हुआ था, उसी समय बाबूजी का निधन हुआ...! उसके बाद महाभारत देखना बड़ा कठिन कार्य होता था और ना देखना भी...! क्योंकि हर वो काम जो बाबूजी को अच्छा लगता था वो करने का मन भी होता था और करने चलो तो मन विह्वल हो जाता था...!

    इसके बाद अभिमन्यु की मृत्यु पर सुभद्रा द्वारा कहे गये वाक्य लगभग वही थे जो माँ के मुँह से निकले थे...!

    वो घटना अब भी जैसी की तैसी आँख के सामने है...!

    और महाभारत के साथ आपसे जुड़े संदर्भ जानना वाक़ई अच्छा लगा....!

    प्रणाम...!

    ReplyDelete
  17. उन दिनों शहर थम जाता था उस वक़्त....महेंदर कपूर की आवाज आज भी कानो में गूंजती है ...रूपा गांगुली का नया केरियर महाभारत से ही शुरू हुआ था ...हम तो कर्ण के करकेटर का वेट करते थे ...के उसे ओर शब्द दे ....

    ReplyDelete
  18. आपके लिये श्रद्धा का भाव तो हमेशा रहता है, लेकिन आज ये सब पढ़कर...उफ़्फ़्फ़!

    अपनी अदनी पोस्टों पर आपके हर कमेंट संजीता को दिखा कर कहता कि जानती हो कौन हैं लावण्या दी?

    नमन दी!

    ReplyDelete
  19. Lavanya Di
    This is one of the best serials on TV.All dohas were great. It is good to know about your contribution to this great serial.
    Shat shat naman to papaji.

    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

    ReplyDelete
  20. महाभारत की यादों को आपने ताज़ा कर दिया...आँखें सजल हो गयीं...ऐसा धारावाहिक न कभी पहले बना और न कभी भविष्य में बनेगा...जिस प्रोजेक्ट के साथ पंडित जी जैसे महान आत्मा जुडी हो उसे तो शीर्ष छूना ही था...आपने दोहे कमाल के लिखें हैं लेकिन आपका नाम क्यूँ नहीं दिया ये बात समझ में आने वाली नहीं है...शायद टी.वी. या फिल्मों में ऐसा ही होता है...
    नीरज

    ReplyDelete
  21. महाभारत और चाणक्य दो ऐसे सीरियल हैं जिनका हर एपिसोड देखा है और डीवीडी पड़ी हुई है मेरे पास. आज कई नयी बातें पता चली... 'अथ श्री महाभारत कथा' और 'मैं समय हूँ' ये शब्द तो अभी भी कानों में गूंजते रहते हैं.

    ReplyDelete
  22. महाभारत की यह "इनसाईडर इन्फो" अच्छी लगी. उन पुराने दिनों में ले जाने के लिए धन्यवाद. आपकी रचनाओं के बारे में तो यही कहेंगे, "यथा पिता तथा पुत्री" आप पंडितजी का नाम इसी तरह रोशन करती रहें, इसी कामना के साथ ~ अनुराग

    ReplyDelete
  23. Mahabharat serial ne TV itihaas mein kranti laa di thi.
    Aap ki is post se bahut si nayee baten maluum hui.

    abhaar.

    ReplyDelete
  24. ये दोहे जो जनश्रुति बन गये, आपने लिखे जान कर हर्ष हुआ. आदर.

    ReplyDelete
  25. लावण्या जी

    आपकी जानकारी ने बहुत सी पुरानी यादें ताज़ा कर दीं। उन दिनों हम मुंबई के लोखण्डवाला इलाक़े में रहते थे। महाभारत सीरियल का अर्थ होता था कि हम सब टीवी के सामने चिपक कर बैठ जाते थे। आदरणीय नरेन्द्र शर्मा जी के महाभारत के साथ जुड़ने से भारत के महानतम सीरियल में साहित्य का आभास होने लगा था। उनके साथ राही मासूम रज़ा जी की क़लम ने जैसे भारत के राष्ट्रीय चरित्र की सही तस्वीर बना दी थी।
    यह मालूम नहीं था कि आपका भी इस सीरियल में योगदान था। आपकी कविताओं के बारे में मैं हमेशा कहता हूं कि उनको सही मायने में हिन्दी की कविता कहा जा सकता है। उनमें कवित्त होता है जो माडर्न कविता में नहीं पाया जाता। आपके लिखे दोहे पढ़ कर एक अलग किस्म की अनुभूति हुई।

    मुझे लगता है कि आपको महाभारत के अपनों अनुभवों और पण्डित जी की फ़िल्मी एवं साहितयिक यादों को लेकर एक पुस्तक संपादित करनी चाहिये।

    सादर

    तेजेन्द्र शर्मा

    ReplyDelete
  26. हम दोनों जब भी बीआर चोपड़ा का महाभारत देखते हैं ,इस सुभागी बेटी के पिता को याद करते हैं। आप का योगगान जान कर अच्छा लगा । रूपा गांगुली के लिए आप की माँ का भगवान रूप में आना -देखिए कौन किसको कहां से सवार जाता है कुछ पता नहीं ....बहुत बहुत आभार.

    ReplyDelete
  27. mahabharat ke jo dohe hai unhe mai hamesha gungunata rahta hu...
    ye bahut hi acche hai.

    ReplyDelete
  28. कितना दुर्भाग्य कि जिसका सृजन है, उसका नाम ही न दिया जाय

    ReplyDelete
  29. लावण्या जी आपका संक्रमण पढ़कर अच्छा लगा। पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं। सन 1988 में आपके घर पर पं नरेंद्र शर्मा से मिलने गया था। मेरे आमंत्रण पर चर्नी रोड के बिरला क्रीड़ा केंद्र सभागार में कविता पढ़ने के लिए आए और मुझे भी उनके साथ काव्य पाठ का गौरव मिला। सचमुच वे ज्ञान का भंडार थे। जो भी उनके पास बैठता वह समृद्ध होकर जाता था।

    - देवमणि पांडेय, मुम्बई

    ReplyDelete