Tuesday, January 12, 2010

दिल हुआ आशनां !

दिल हुआ आशनां !
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बुझते चरागों से उठता धुआं , कह गया अफ़साने, ....रात के !
कि , इन गलियों में, कोई आकर, चला गया था !
रात भी थमने लगी थी, सुनके मेरी दास्ताँ ,
चाँद भी थमने लगा था, देखकर उठता धुंआ !
बात वीराने में की थी, लजा कर दी थी सदा,
आप भी आये नहीं थे, दिल हुआ था, आशनां !
रात की बातों का कोई गम नहीं
दिल तो है प्यासा, कहें क्या आपसे,
अब...हम भी तो हैं हम नहीं
रूई के नर्म फाहों जैसे मेरे अहसास
और तु, मिट्टी के इतर की शीशी -
समाती है खुशबु सारे कायनात की ,
बिखर जाती है खयालातों में , मेरे

तुझ से मिलने का मौसम, बिछुड़ने के पल भी ,
हसीं ख़्वाबों में , लिपटी तारों की बारात
वह हल्की सी बारिश , हल्का धुंधलका भी
कोहरे से भरी , तेरे काजल में डूबी सी रात

बहारें आयेंगीं, मुझे फिर ले जायेंगीं
उन मस्त अमिया के बागों में चुपचाप,
आँख मिचौनी खेला करते थे हम तम,
आँखों में हंसतीं थी , हर मुबारक रात

तेरा देर से आना, आकर , चले जाना,
वादों और कसमों के लम्बे सिलसिले
और मुकर जाना , हर वादे पे , रूठना
क्यूं करतीं थीं झूठे बहाने, हर रात ?
रात को
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रातको शबनम झरेगी
जब् महकते गेसूओं पे,
थर्थारायेगी बाँहें तुम्हारी
कांप कर वीराने में

कब हम तम एक साथ
झुक कर खिडकियों से
देखेंगें अश्कों को बहते ?
सूखते -- एक दूजे के चेहरों पे ?
कोइ
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रश्क होने लगा है हमें , अश्कों की सौगातों के लिए,
नाम महफ़िल में आया आपका, हमारे खो जाने के लिए
भीग जायेगी हीना हथेली पे, रंग और निखरेगा अभी
कहतें हैं माटी से मिल उठती है घटा , बरसने के लिए

क्यूं पूछा था , उसने , मुझसे , रुकूं या मैं चलूँ ?
दिल लेके चल देते हैं जो , मिलके बिछुड़ने के लिए
कितनी दूर तलक चला था मेरा साया , अनजाने में,
लौट आया है कोइ मेहमान बन दिल में समाने के लिए


- लावण्या

35 comments:

  1. लावण्या जी

    बहुत सुन्दर कविताएं.

    बधाई

    चन्देल

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  2. यह पंक्तियां तो मेरी अपनी मनस्थिति बयान कर गईं:
    बहारें आयेंगीं, मुझे फिर ले जायेंगीं
    उन मस्त अमिया के बागों में चुपचाप,
    आँख मिचौनी खेला करते थे हम तम,
    आँखों में हंसतीं थी , हर मुबारक रात


    आप की बहुमुखी प्रतिभा अनुकरणीय है लावण्या जी।
    It connects with our feelings beautifully!

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  3. आप भी आये नहीं थे, दिल हुआ था, आशनां ...
    शानदार हैं सभी लाइनें और चित्र तो नयनाभिराम हैं ही.

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  4. रूई के नर्म फाहों जैसे मेरे अहसास
    और तुम, मिट्टी के इतर की शीशी -
    समाती है खुशबु सारे कायनात की ,
    बिखर जाती है खयालातों में , मेरे
    ---
    आप भी आये नहीं थे, दिल हुआ था, आशनां !
    रात की बातों का कोई गम नहीं
    दिल तो है प्यासा, कहें क्या आपसे,
    ---
    बहुत खूबसूरत अशआर हैं ।
    मीना कुमारी जी की याद दिलाते हैं ।
    बहुत बहुत बधाई ...

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  5. क्यूं न पूछा था , उसने , मुझसे , रुकूं या मैं चलूँ ?
    दिल लेके चल देते हैं जो , मिलके बिछुड़ने के लिए
    कितनी दूर तलक चला था मेरा साया , अनजाने में,
    लौट आया है कोइ मेहमान बन दिल में समाने के लिए
    वाह लावण्या जी अति सुन्दर ,बहुत सुन्दर पंक्तिया और सुन्दरतम चित्र भी ,ये पंक्तिया तो दिल को छू गयी .धन्यवाद इस सुन्दर पोस्ट के लिए

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  6. क्यूं न पूछा था , उसने , मुझसे , रुकूं या मैं चलूँ ?
    दिल लेके चल देते हैं जो , मिलके बिछुड़ने के लिए
    कितनी दूर तलक चला था मेरा साया , अनजाने में,
    लौट आया है कोइ मेहमान बन दिल में समाने के लिए


    अति नयनाभिराम चित्रों के साथ नायाब रचना. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  7. मम्मा.... बहुत सुंदर चित्रों के साथ ........ बहुत सुंदर रचनाएँ.....

    रश्क होने लगा है हमें , अश्कों की सौगातों के लिए,
    नाम महफ़िल में आया आपका, हमारे खो जाने के लिए
    भीग जायेगी हीना हथेली पे, रंग और निखरेगा अभी
    कहतें हैं माटी से मिल उठती है घटा , बरसने के लिए


    इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया......

    आपको लोहड़ी की बहुत बहुत शुभकामनाएं......

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  8. दिल तो है प्यासा, कहें क्या आपसे
    ........प्यासी रही मिलके उनसे , प्यास को ही मैंने पूजा
    ..........................................................
    रूई के नर्म फाहों जैसे मेरे अहसास
    और तुम, मिट्टी के इतर की शीशी -
    समाती है खुशबु सारे कायनात की ,
    बिखर जाती है खयालातों में , मेरे
    .......कितना मुश्किल है ये बताना !
    ........................................................
    छंद-छंद एहसास मोम की तरह पिघलते हुए , शमा की तरह रोशन

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  9. लावण्या जी, मेरे लिये आप का यह नया रूप अद्भुत है। मैं आजतक आपको संस्कृतनिष्ठ हिन्दी की कविता के साथ ही जोड़ कर चलता था। मगर इतनी प्यारी नज़में! सच में सुबह के 4.44 पर क्लिक करने का कर्म किया तो फल नायाब मिला।

    तेजेन्द्र शर्मा
    लंदन

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  10. रूई के नर्म फाहों जैसे मेरे अहसास
    और तुम, मिट्टी के इतर की शीशी -
    समाती है खुशबु सारे कायनात की ,
    बिखर जाती है खयालातों में , मेरे
    आपको व आपके परिवार को लोहडी की शुभकामनायें

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  11. एक से बढ़कर एक सुंदर और शानदार रचनायें

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  12. अरे वाह क्या बात है , हर एक पंक्ति लाजवाब लगी । आपको लोहडी की बधाई

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  13. गजब ढ़ा रही हैं , लावण्या जी ! आज कल देश में एक गीत चल रहा है देश में, गुलज़ार का -' उम्र कब की बरस के सुफेद हो गयी , काली बदरी जवानी की ढलती नहीं ' |

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  14. नयनाभिराम चित्र और अप्रतिम रचनाएँ....कैसे नज़र हटायें...??
    लावण्या दी कमाल कर दिया अपने आज...जो दिल कहना छह रहा है उसके लिए शब्द नहीं मिल रहे...उसके लिए शब्द रचित ही नहीं हुए...वाह..
    नीरज

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  15. दीदी साहब प्रणाम आपकी ये सार कविताएं दर्द की कविताएं हैं । मुकेश जी का गीत हैं सबसे मधुर वे गीत जिन्‍हें हम दर्द के सुर में गाते हैं याद आ गया । बहारें आयेंगीं फिर मुझे ले जाएंगीं उन मस्‍त अमियां के बागों में । फिर एक नज्‍म याद आ गयी आम के बाग़ों में जब बरसात होगी पुरखरोश । थरथरायेगी बांहें तुम्‍हारी कांप के वीराने में । दीदी साहब कविताएं बहुत ही संवेदना के साथ लिखी गईं हैं । और बहुत ही अच्‍छी भावभूमि ली है आपने तुझसे मिलने के मौसम या तेरे काजल में डूबी सी रात । बहुत ही अच्‍छे शब्‍दों का चयन किया है आपने ।

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  16. नायिका की विरह की वेदना और प्रियतम के साथ बिताए लम्हों का एहसास वैसे तो बस महसूस ही किया जा सकता है लेकिन आपने इस एहसास को शब्दों में बखूबी ढाला है। बधाई स्वीकार करें।
    पंकज

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  17. इताना अच्छा चित्र ... और उस पर से दिल छूती रचना। वास्तविकता और फैंटेसी के बीच डोलने के लिए पाठक को स्पेस देने की कलात्मक युक्ति इसकी विशिष्टता है।

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  18. यादों की गलियों में घुमती-गुनगुनाती सी एक बेहतरीन नज्म को पढ़वाने का बहुत शुक्रिया लावण्यादी।
    अपनी और भी नज्में पढ़वाइये....

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  19. बहुत सुंदर कवितये, सुंदर चित्रो के लिये आप का धन्याद

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  20. देर से आया....फिर भी इनाम पाया. क्या जबरदस्त और दिल को छूती रचनाएँ हैं..ओह!!

    रूई के नर्म फाहों जैसे मेरे अहसास
    और तुम, मिट्टी के इतर की शीशी -
    समाती है खुशबु सारे कायनात की ,
    बिखर जाती है खयालातों में , मेरे

    -सीधे घुल गई!!बहुत सुन्दर और कोमल!! बधाई.

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  21. कि , इन गलियों में, कोई आकर, चला गया था !
    एहसास का यह तूफान और भावों की प्रबलता --
    वाह क्या कहने

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  22. लावण्या जी बहुत ही सुंदर रचनाये और चित्र तो चार चांद लगा रहे हैं कविताओं में

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  23. SUNDAR KAVITAAYEN MEETHE- MEETHE
    ANGOORON KAA GUCHCHHA LAGEE HAIN.
    KAVITAAON MEIN KAHIN GEET KEE
    JHALAK HAI AUR KAHIN GAZAL KEE.
    CHITRON NE TO CHAAR CHAAND LAGAA
    DIYE HAIN.BADHAAEE AAPKO.

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  24. सुबह पढ़ा था इन को। समयाभाव में कुछ न लिख पाया। रचनाएँ बहुत सुंदर हैं। कभी पुराने सपनों में ले जाती हैं। कभी नए सपने जगाती हैं।

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  25. मन को लुभाती सरस रचनाएँ..

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  26. कोमल मानवीय अनुभूतियों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्तियाँ ! वाह !

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  27. आज आपकी बहुमुखी काव्य-प्रतिभा का कमाल देखा. यह सारी नज़्में बार बार पढ़ी और हर दफ़ा पहले से ज्यादा लुत्फ़ आया. नायाब नज़्में हैं. हर मिस्रा दिल को छूता हुआ लगा.
    बहुत ही ख़ूबसूरत ख़यालात हैं:

    रात की बातों का कोई गम नहीं
    दिल तो है प्यासा, कहें क्या आपसे,
    अब...हम भी तो हैं हम नहीं

    तुझ से मिलने का मौसम, बिछुड़ने के पल भी ,
    हसीं ख़्वाबों में , लिपटी तारों की बारात
    वह हल्की सी बारिश , हल्का धुंधलका भी
    कोहरे से भरी , तेरे काजल में डूबी सी रात

    रात की बातों का कोई गम नहीं
    दिल तो है प्यासा, कहें क्या आपसे,
    अब...हम भी तो हैं हम नहीं


    रश्क होने लगा है हमें , अश्कों की सौगातों के लिए,
    नाम महफ़िल में आया आपका, हमारे खो जाने के लिए

    आपको एक मशवरा देना चाहता हूँ. हो सके तो प्राण शर्मा जी या पंकज सुबीर जी से संपर्क करें जिससे ग़ज़ल के नियमों से अवगत हो सकें. आपके लिए यह मुश्किल नहीं होगा, मुझे इस बात का यक़ीन है. कुछ ही दिनों के बाद आपकी ग़ज़लों की डिमांड इतनी हो जायेगी कि आप ख़ुद ही विस्मित हो जायेंगी.
    महावीर शर्मा

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  28. रूई के नर्म फाहों जैसे मेरे अहसास
    और तुम, मिट्टी के इतर की शीशी -
    समाती है खुशबु सारे कायनात की ,
    बिखर जाती है खयालातों में , मेरे
    आपकी रचनाएँ बहुत मन भायी हैं...

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  29. अच्छा लगा जब ज्ञान जी जैसे अकावित लोग कनेक्ट हो रहे है ....आपका ये नया रूप नए साल में ...

    .बर्फ कुछ कम हुई के नहीं !

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  30. वाह .......एक साथ इतनी सारी खूबसूरत नज्में .....अब तक कहाँ छुपा रखीं थी .....??

    औए तस्वीरें तो माशाल्लाह दिल चीरती हैं .....बस कमाल ही कमाल है .....!!

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  31. क्या आप अपनी कविताओं को स्वर और संगीत में पिरवाकर प्रस्तूत नहीं करवा सकती ओडियो सीडी के रूपमें ?बाकी मूझसे इस विषयमें ज्यादा ज्ञानी लोगोनें बहोत सुन्दर टिपणीयाँ लिख़ी है ।

    पियुष महेता ।
    सुरत-395001.

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  32. प्रेम और विरह के मनमोहक शब्दों से सजी-निखरी कवितायें दीदी...

    मिट्टी के इतर की शीशी वाला इमेज कुछ इतना भाया है दी कि मन कर रहा है चुरा लूं।

    अब जा रहा हूं उधर गुरुजी के ब्लौग पर आपकी दूसरी कविता का लुत्फ़ उठाने

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  33. लावण्या जी,
    देर से आया हूँ, सभी कविताएं बहुत सुन्दर हैं.

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  34. सुन्दर कवितायें और सुन्दर चित्र। बधाई।

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  35. लावण्या जी,
    कवितायें बहुत लुभावनी हैं और चित्र भी।

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