Sunday, January 24, 2010

ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

जीवन की अंधियारी

रात हो उजारी!

धरती पर धरो चरण

तिमिर-तम हारी

परम व्योमचारी!

चरण धरो, दीपंकर,

जाए कट तिमिर-पाश!

दिशि-दिशि में चरण धूलि

छाए बन कर-प्रकाश!

आओ, नक्षत्र-पुरुष,

गगन-वन-विहारी

परम व्योमचारी!

आओ तुम, दीपों को

निरावरण करे निशा!

चरणों में स्वर्ण-हास

बिखरा दे दिशा-दिशा!

पा कर आलोक,

मृत्यु-लोक हो सुखारी

नयन हों पुजारी!

स्व. पंडित नरेंद्र शर्मा -

मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम
ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
तेरे उर में शायित गांधी, 'बुद्ध औ' राम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

हिमगिरि-सा उन्नत तव मस्तक,
तेरे चरण चूमता सागर,
श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ
वाणी में है गीता का स्वर।
ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम।
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

हरे-भरे हैं खेत सुहाने,
फल-फूलों से युत वन-उपवन,
तेरे अंदर भरा हुआ है
खनिजों का कितना व्यापक धन।
मुक्त-हस्त तू बाँट रही है सुख-संपत्ति, धन-धाम।
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

प्रेम-दया का इष्ट लिए तू,
सत्य-अहिंसा तेरा संयम,
नयी चेतना, नयी स्फूर्ति-युत
तुझमें चिर विकास का है क्रम।
चिर नवीन तू, ज़रा-मरण से -
मुक्त, सबल उद्दाम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

एक हाथ में न्याय-पताका,
ज्ञान-द्वीप दूसरे हाथ में,
जग का रूप बदल दे हे माँ,
कोटि-कोटि हम आज साथ में।
गूँज उठे जय-हिंद नाद से -
सकल नगर औ' ग्राम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

--भगवती चरण वर्मा

भगवती चरण वर्मा का जन्म ३० अगस्त १९०३ को उन्नाव जिले (उ. प्र.) के शफीपुर गाँव में हुआ था । वर्माजी ने इलाहाबाद से बी.ए., एल. एल. बी. की डिग्री प्राप्त की और प्रारम्भ में कविता लेखन किया । फिर उपन्यासकार के नाते विख्यात । १९३३ के करीब प्रतापगढ़ के राजा साहब भदरी के साथ रहे । १९३६ के लगभग फिल्म कारपोरेशन, कलकत्ता, में कार्य । कुछ दिनों ‘विचार’ नामक साप्ताहिक का प्रकाशन-संपादन, इसके बाद बंबई में फिल्म-कथालेखन तथा दैनिक ‘नवजीवन’ का सम्पादन, फिर आकाशवाणी के कई केंन्दों में कार्य । बाद में, १९५७ से मृत्यु-पर्यंत स्वतंत्न साहित्यकार के रूप में लेखन ।

‘चित्रलेखा’ उपन्यास पर दो बार फिल्म-निर्माण और ‘भूले-बिसरे चित्र’ साहित्य अकादमी से सम्मानित । पद्मभूषण तथा राज्यसभा की मानद सदस्यता प्राप्त ।

निघन : ५ अक्तूबर, १९८

समय की धारा में बहते बहते
हम आज यहां तक आये हैं -
बीती सदीयों के आँचल से कुछ
आशा के फूल , चुराकर लाये हैं

हो मंगलमय प्रभात पृथ्वी पर
मिटे कलह का कटु उन्माद ,
वसुंधरा हो हरी - भरी , नित,
चमके खुशहाली का प्रात !
- लावण्या

Sung By : Bhupen Hajarika

विस्तार है अपार.. प्रजा दोनो पार.. करे हाहाकार...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्ल्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार गंगा की धार,
निर्बल जन को, सबल संग्रामी, गमग्रोग्रामी,बनाती नहीं हो क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?

अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिन जन,
अज्ञ विहिन नेत्र विहिन दिक` मौन हो क्यूँ ?
व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,
व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोड़ती न क्यूँ ?
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीं हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?

अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिनजन,
अज्ञ विहिननेत्र विहिन दिक` मौन हो कयूँ ?
व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,
व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोडती न क्यूँ ?

विस्तार है अपार.. प्रजा दोनो पार.. करे हाहाकार...
निशब्द सदा , ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
कविता : स्व. पंडित नरेन्द्र शर्मा

२६ जनवरी आते ही , भारतीय गणतंत्र दिवस की याद

उभर आती है .......भारत आबाद रहे, भारतीय जन गण मन खुशहाल रह

यही शुभकामना है ..साथ प्रस्तुत है देश प्रेम से रंगी रचनाएं ..
आनंद लीजिये और हमारी मात्रु भूमि को शत शत वंदन कीजिए...............
- लावण्या



20 comments:

  1. कल कल निनादी इस काव्य सरणी /संगम के लिए बहुत आभार !

    ReplyDelete
  2. मान गए आप की दृष्टि को !
    अन्न संस्कार करती महिला का रोते (?) बच्चे की तरफ हाथ बढ़ाना बहुत कुछ कह गया।
    ज़िराक्स का ऐड भी महासंघ या पुनर्एकीकरण का स्वप्न देखते लोगों को बहुत भाएगा।
    कविताएँ और गीतों का संकलन तो अद्भुत रहा। आप के ब्लॉग पर आने से मन सुसंस्कारित हो जाता है। आभार।

    ReplyDelete
  3. क्या तारीफ करें इस पोस्ट की...शब्द नहीं हैं..बस आभार.

    ReplyDelete
  4. निरावरण करे निशा!

    चरणों में स्वर्ण-हास

    बिखरा दे दिशा-दिशा!

    पा कर आलोक,

    मृत्यु-लोक हो सुखारी...
    अद्भुत.

    ReplyDelete
  5. सुन्दर प्रस्तुति । गिरिजेश राव जी से सहमत हूँ एक सुखद सी अनुभूति होती है आपके ब्लाग पर आ कर धन्यवाद और शुभकामनायें गण्तन्त्र दिवस की बधाई

    ReplyDelete
  6. मम्मा.... आपने निःशब्द कर दिया..... बहुत सुंदर रचनाएँ.....


    जय हिंद......

    ReplyDelete
  7. धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिये।

    ReplyDelete
  8. लावण्या दी,
    आपने गणतंत्र दिवस तिरंगे के समान तोहफा दिया है,परम पूजनीय पंडित नरेंद्र शर्मा साहब और परम पूजनीय भगवतीचरण वर्मा साहब के साथ आपकी ओजमयी पंक्तियाँ तिरंगे सी लगी...आपको गणतंत्र दिवस कि शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  9. शानदार प्रस्तुति। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर इस से बड़ा तोहफा नहीं हो सकता।

    ReplyDelete
  10. बहुत सुंदर लगी आप की यह पोस्ट
    आप को गणतंत्र दिवस की मंगलमय कामना

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर प्रस्‍तुति .. गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete
  12. हो मंगलमय प्रभात पृथ्वी पर
    मिटे कलह का कटु उन्माद ,
    वसुंधरा हो हरी - भरी , नित,
    चमके खुशहाली का प्रात !
    .............सुंदर मंगलकामना.
    ..उत्कृष्ठ गीतों से सजे इस स्मरणीय पोस्ट के लिए आभार.

    ReplyDelete
  13. गाने के चयन में मज़ा आ गया दीदी.मगर सुन नहीं पा रहा हूं?

    भारतीय गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें!!

    ReplyDelete
  14. Lavanya Di

    Wonderful and excellent!

    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

    ReplyDelete
  15. बहुत बढ़िया!

    नया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान ।
    सारे जग से न्यारा अपना , है गणतंत्र महान ॥

    गणतन्त्र-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  16. लावण्या जी,
    आपको भी गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं. सभी गीत एक से बढ़कर एक रहे. प्रस्तुति के लिए आभार. जैसा कि गिरिजेश ने कहा, चित्र ने मेरा भी ध्यान खींचा.

    ReplyDelete
  17. आपने तो एक भारत वहां भी बसा रखा है .......शुभकामनायें गण्तन्त्र दिवस की बधाई

    ReplyDelete
  18. bahut hi grmamyi post .aur dono chitr hi asli bharat hai .nariyo ke chehro par jeevan ke sare bhav jinme atmvishvas,santosh, mamtv ,krmthta ki spshst chamak hai .

    ReplyDelete
  19. चित्रलेखा मेरी पसंदीदा पुस्तकों में से है. और गंगा तुम बहती हो क्यूँ वाले गीत के बारे में तो कुछ कहने की जरूरत ही नहीं.

    ReplyDelete
  20. GANGA BAHATI HO ......KIYU !

    THE SARCASTIC TONE OF AN HUMAN BEING SAYS IT ALL ABOUT HIS DESPAIR AND HELPLESSNESS TO DO SOME THING 4 THE POORS AND THE MASSES AS A WHOLE !

    AND BELIEVE THIS ,PANDIT JI HAD DONE M.A IN ENGLISH !
    AND YET ,HE WAS MORE THAN A MASTER IN HINDI PROSE OR POETRY !

    HE AND HIS CREATIONS SEEMS TO BE ALWAYS AHEAD OF TIME !

    AND ,LASTLY,IN INDIA,SADLY ONE STILL WISH TO GANGA BAHATI HO KIU............!

    ReplyDelete