Wednesday, February 3, 2010

दूसरा नोबल पुरस्कार ? इस पुरस्कार को सम्मानित करनेवाली एक भारतीय महिला हैं रुथ मनोरमा


दूसरा नोबल पुरस्कार ?

जी हां , इस पुरस्कार को सम्मानित करनेवाली एक भारतीय महिला हैं रुथ मनोरमा ।
नारी के पक्ष में हैं रुथ मनोरमा । हर प्राताडित इंसान के लिए कार्य करतीं हैं वे --
आपने शायद इनका नाम भी न सुना हो ।

परंतु इन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है और उनकी खुलकर सराहना की गयी है ।

नारी के लिए समाज में संघर्ष करना, आवश्यक भी है।

किन्तु , अबला , जब् सबला हो जाती है तब , नये पथ पर चल निकलती है ।

दूसरी अबला महिलाओं को सहारा देकर, उनके उत्थान के लिए कार्य करना , उन्हें सही दिशा में आगे ले जाना उसके बाद की अवस्था है ।
ऐसी ही एक साहसी महिला हैं रुथ मनोरमा ।





उन्होंने दलित महिला के संघर्ष को पहचाना और उन्हें आगे बढ़ने में भारत में और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी परिस्थिति से उभरने में सहायता की है ।

रुथ मनोरमा जी ११ वी भारतीय नागरिक हैं जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ है ।
$ २७५ ,००० की धन राशि , ब्राजील के नागरिक ,
चीको व्हीटेकर और उत्तर अमेरीकी नागरिक
डेनियल एल्ज्बर्ग के बीच बांटी गयी ।

अब ये दूसरा नोबल क्या है उस के बारे में जान लें .

पहले नोबल के बारे में हम , जानते ही हैं ।

क्लिक : करें और देखें : http://nobelprize.org/


इस वर्ष शांति प्रयासों के लिए अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को ये नोबल दिया गया है और भारत के कवि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टगोर को उनकी पुस्तक ' गीतांजलि ' के लिए भी साहित्य के लिए ये नोबल मिल चुका है ।

परंतु ये दूसरा नोबल क्या है ?

इसका उद्देश्य है " सही जीवन प्रणाली पुरस्कार "

ये नाम बौध्ध धर्म में सूचित आदेशानुसार है ।

यही कई धर्म में भी कहा गया है कि , ऐसे कर्म से आजीविका मिले जिससे ना तो पर्यावरण का नुक्सान हो नाही किसी अन्य जीव का !
वही सर्वोत्तम है ........... धरती का भला हो, लोक कल्याण भी हो ! वही सर्वोत्तम है ..............
जहां सदा ही संधर्षों का सामना करना पड़ता है ऐसे जीवन में , सही जीवन प्रणाली का चुनाव भी ,
अति आवश्यक है ।

आइये अब मिलते हैं एक अन्य विश्व नागरिक से, जिसके सीने में , दूसरों के दर्द के लिए अपार ममता व सहानूभूति रही । अपने , जीवन से, अपने उसूलों से जिसने , अपने जीवन की तथा कईयों के जीवन की दिशा बदलने का महान कार्य किया ।

" एक दीप सौ दीप जलाए, मिट जाए अंधियारा " ~~

दद्दा , कविवर मैथिली शरण गुप्त जी का कहना यहां सच हुआ दीखलाई दे रहा है --


जेकब वान उक्ज्हाल नामक यूरोपीयन सामूहिक पार्लियामेंट के सदस्य रहे और वे, डाक टिकट एकत्र करने का शौक भी रखते थे ।


उन्हें नोबल पुरस्कार की जानकारी थी और ये भी पता था के पश्चिम के विकसित देशों के वैज्ञानिकों को अकसर ये पुरस्कार मिलता रहा है जिससे , पश्चिम के देशों का ही लाभ ही अधिकाँश , होता आया है - आधुनिक व्यवसायी जगत के उसूलों से पनपे, उसीको परिष्कृत करते ये सम्मान , उसी पध्धति के जडमूल को सींचते रहे हैं । उन्हें , इस पूरे प्रबंधन में बड़ी भारी कमी दीखाई दी ।

विश्व शांति व उसके लिए कीये जाने वाले प्रयास, हवा, पानी, जमीन से सम्बंधित कई मसले
जिन्हें लोग , सीधे , उसी आबोहवा में जीते हुए , उसे सुरक्षित और बेहतर बनाने के प्रयास में ,
विषम परिस्थितियों में रहते हुए , जूझ रहे थे , ऐसे लोगों पर, जेकोब का ध्यान केन्द्रीत हो गया
मानवीय अधिकारों की अवहेलना, अणु विज्ञान से उपजे आधुनिक युग के भयंकर परिणाम,
हिंसा , गरीबी का प्रकोप और प्रताड़ित वर्ग की अनदेखी .........
-- अति , जिससे समाज के धनिक वर्ग में शोषण व उपभोग की बढ़ती हुई मनस्थिति और अप व्यय , धनिक वर्ग में फैलती हुई धार्मिक तथा दया भावना के प्रति उदासीनता जैसे , अति गंभीर तथ्यों पर जेकब महाशय का ध्यान केन्द्रीत हो गया था ।


- अब क्या किया जाए ?
सर्व प्रथम उन्होंने नोबल कमीटी से , इन अम्भीर मुद्दों पर कार्य कर रहे ख़ास व्यक्तियों को
पुरस्कार / सम्मान देने की सूची में शामिल करने पर सुझाव दिया --
उस नये एवार्ड की धन राशि देने की तत्परता भी दीखलाई , परंतु नोबल कमिटी ने
प्रस्ताव , अस्वीकार किया - जेकोब ने फिर भी हार न मानी ।

अपना बहुमूल्य डाक टिकटों का संग्रह जेकब ने बेच दिया और १९८० में
अपने न्यास की स्थापना कर " सही जीवन प्रणाली पुरस्कार " आरम्भ करने की घोषणा कर दी


जेकब वान उक्ज्हाल जर्मन तथा स्वीडीश नागरिक हैं अत: स्वीडन की लोकसभा में नोबल इनाम से ठीक एक दिन पहले " सही जीवन प्रणाली पुरस्कार " की घोषणा होने लगी ।


अब रुथ मनोरमा जी के पुरस्कार की बात करें ।


भारत में स्त्री संघर्ष की गाथा , सदीयों पुरानी होते हुए भी आधुनिक समाज के लिए भी उतनी ही पेचीदा है जितनी सदीयों पहले थी ।

एक तो नारी और ऊपर से अगर दलित वर्ग में जन्म हुआ हो तब समाज में संघर्ष अत्याधिक होना स्वाभाविक बन जाता है । तब अपने हित के लिए,
यह वर्ग , फैसले भी ले पाने की स्थिति में नहीं होते ।

कई सुधार तथा समाज के प्रताडित वर्ग में उत्थान के प्रयास भी इस गंभार मामलों को सुलझाने में अक्षम रहते हैं ।

बदलाव , बहुधा धीमी गति से आता है । शोषित वर्ग , कई मामलों में ,
पहले से भी ज्यादा शोषण किया जाए , ऐसी स्थिति में और नीचे गिर जाता है ।

उत्थान से जुडी कारवाही + बातें, फाइल में और मीटिंग में या , भाषण बाजी ,
नारेबाजी और कुछ आलेखों में सिमट कर , धीरे धीरे , भूला दिए जाते हैं ।

तेजी से बदल रहे समाज में , जिनकी स्थिति बिलकुल नीचले तबक्के में कैद है
उन पर , किसे समय है सोचने का ??
उन की ओर देखने का या उनके लिए ?? कोइ ठोस कार्य करने का ?

तब बदलाव आते भी बहुत विलम्ब हो जाना , ही अकसर हर मामले में देखा जाता है ।

फिर भी , बदलाव आ रहा है ...........देखिये ये लिंक :



रूथ मनोरमा ऐसी ही स्त्रियों के लिए तथा शोषित समाज के लिए संघर्षरत हैं ।


देखिये ये लिंक :

http://www.livemint.com/2009/06/26222115/If-I-were-FM--Fight-poverty.html

जीवन : जन्म : १९५२ स्थान : चेन्नई :
शिक्षा : एम्. ए. मद्रास विश्वविधालय से
विषय : समाज सेवा
शिक्षा उपरान्त रूथ मनोरमा ने मद्रास के CSO से कार्य आरम्भ किया ।

फिर अपना संगठन ' नारी की आवाज़ ' स्थापित किया ।

स्थानीय , घरों में काम करनेवाली महिलाओं को संगठित किया ।
ट्रेड यूनियन की स्थापना भी की ।
स्वयं दलित वर्ग से थीं अत: नॅशनल फेडरेशन ऑफ़ दलित वूमन भी स्थापित किया
ताकि , अपने हक्कों की लड़ाई, सही तरीकों से की जा सके ।
वे तभी से , आजीवन , संघर्ष से जुडी रहीं हैं ।
असंख्य संगठनों का निर्माण व स्थापना करतीं गयीं हैं ।

बेघर आवामों के लिए, गरीब बस्ती के लोगों के हक्क व आवास के लिए,
असंगठित हर कार्यकर्ता के लिए भी रूथ मनोरमा ने कार्य किया ।

जब् अश्वेत अमरीकी महिलाओं के जीवन की त्रासदी से उनका परिचय हुआ तब

उन्होंने ये कहा कि, " समाज कहीं का भी हो ये त्रासदी हर जगह देखी है । "

अब वे यूनाईटेड नेशंस की सभाओं में भी अपना भाषण देतीं हैं और खुलकर इन शोषित व प्रताडीत वर्ग की ओर , समाज का ध्यान केन्द्रीत कराकर , उनकी सहायता के प्रयास करतीं हैं ।

अन्य भारतीय जिन्हें ये एवार्ड पहले मिल चुका है उनमे प्रमुख नाम है बाबा आमटे का ।


और नर्मदा बचाओ आन्दोलन से जिनका नाम सुर्ख़ियों में आया है -' मेधा पाटकर '
-वे भी ये एवार्ड , प्राप्त कर चुकीं हैं ।

हर साल, " सही जीवन प्रणाली पुरस्कार " ४ गणमान्य , इंसानों को दिया जाता है ।

रूथ मनोरमा के साथ ये इनाम ब्राजील के चीको व्हीटेकर फेरेरा जिन्होंने
' विश्व सामाजिक फोरम ' की स्थापना की
डेनियल एल्ज्बर्ग अमरीकी , जो युध्ध के खिलाफ हैं और कोलंबिया में
काव्य - सभा आयोजन किया
[ the Festival Internacional de Poesia de Medellin। ]
उन्हें, ये एवार्ड , साथ साथ मिला ।


-- लावण्या




17 comments:

  1. इसे दूसरा नोबुल नहीं अपितु उस से भी ऊँचा पुरस्कार कहना उचित होगा। बहुत सी सूचनाएँ पहली बार मिलीं। आभार!

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  2. रूथ मनोरमा जी से जुडी बहुत सी जानकारिया मिली ...आभार ....!!

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  3. सच, कई जानकारियाँ पहली बार मिली. आपका आभार.

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  4. बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

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  5. रुथ मनोरमा जी को बधाई आपके जरिये ...जननी कृतार्थ हो गयी इस महान नारी के अवदानों से .
    इस जानकारीपरक पोस्ट के आपका बहुत आभार .

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  6. रूथ मनोरमा जी से जुडी बहुत सी जानकारिया मिली ...आभार .

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  7. मनोरमा जी को बहुत-बहुत बधाई , ऐसे व्यक्तित्व वाले लोग हमेशा प्रेरणादायक होते हैं ।

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  8. मम्मा... बहुत अच्छी जानकारीपूर्ण...और प्रेरणादायी पोस्ट....

    मम्मा ईज़ ग्रेट.....

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  9. राइट लाइवलीहुड पुरस्कार कई भारतीयों को मिला है ।

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  10. बहुत अच्छी जानकारियां मिलीं. साधुवाद.

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  11. यक़ीनन ऐसे लोग पुरूस्कार को गौरवान्वित करते है

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  12. ये जानकारियाँ देने के लिए आभार!

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  13. bahut sari jaankariyan mili dhanyavaad....vakai ese logon ko milne se puruskaar khud hi sammanit ho jata hai.

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  14. बहुत काम की जानकारी

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  15. अच्छी जानकारी,बहुत आभार..

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  16. इतनी बढ़िया जानकारी देने के लिए आभार।
    घुघूती बासूती

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  17. आभार इस परिचय और जानकारी के लिए !

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