Thursday, February 18, 2010

वसंत समये प्राप्ते , काक काक पिक: पिक :

हे ब्लॉग जगत के साथी , मित्रों ,
आप पर सदा विद्यादायिनी माँ सरस्वती देवी की कृपा रहे ।
बासंती ऋतु , यहां तो फिलहाल आ नहीं पायी
परंतु , बासंती मन , श्वेत्वस्रावृता सरस्वती देवी को प्रणाम कर , शीघ्र बसंत आगमन की प्रार्थना तो कर ही सकता है ...
हे माँ, आपके श्वेत धवल वस्त्रों की आभा , गगन से उतर कर , चतुर्दिक ,
परदेस की धरा पर , हिमपात के रूप में बिखर , मेरे मन में ,
आशा का संचार कर रहीं हैं ।
ऋग्वेद में आप ही पध्य रूपा हैं, यजुर्वेद में आप ही गध्य स्वरूपा हैं
और सामवेद में आप संगीत लहरी बन अवतरित हैं ।
बसंत पंचमी के आह्लादकारी सुखद दिवस में , आप पीले फूलों की पुष्प माल से शोभित हो , अपने मंगलकारी स्वरूप में दीखलाई देती हैं ।
मैं , आपकी कृपाकांक्षिणी ,
आपको बारम्बार प्रणाम करती हूँ
काक कृष्ण पिक: कृष्ण को भेद पिक काकयो
वसंत समये प्राप्ते , काक काक पिक: पिक :
( पूजा थाली और जी हां , ये नोट डॉलर का है ! :)
सुनिए ,
http://www.youtube.com/watch?v=j5t8kzbJVf4&NR=1&feature=fvwp
ॐ भूर्भुवः स्वः।
तत्सवितुर्वरेण्यम्, भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥
ऋग्‍वेद ३ .६ .२ .१० ; यजुर्वेद ३ .३५ , २२ .९ , ३ 0.२ , ३ ६ .३ ; सामवेद १३ .४ .३
भावार्थ: उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।
"May we attain that excellent glory of Savitar the god:
So may he stimulate our prayers।"
—The Hymns of the Rigveda (१८९६ ), Ralph T.H. Griffith
संस्कृत:
या कुंदेंदु तुषारहार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता
या वीणावर दण्डमंडितकरा, या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभ्रृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा
हिंदी अनुवाद:
जो कुंद फूल, चंद्रमा और वर्फ के हार के समान श्वेत हैं,
जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं
जिनके हाथ, श्रेष्ठ वीणा से सुशोभित हैं,
जो श्वेत कमल पर आसन ग्रहण करती हैं
ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदिदेव, जिनकी सदैव स्तुति करते हैं
हे माँ भगवती सरस्वती, आप मेरी सारी (मानसिक) जड़ता को हरें
या देवी सर्वभूतेशु विद्यारूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
*******************************************
मेरी अन्तरंग मित्र , परम विदुषी डाक्टर मृदुल कीर्ति जी ने यह सुन्दर कविता से वास्तव में बसंत का स्वागत गान लिख दिया है
आप भी पढ़ें ...
स स्नेह,
- लावण्या
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हे ऋतु राज! स्वागतम गान,
षड ऋतुओं का ओढ़ ओढना
प्रकृति देती है कुछ ज्ञान
काल पतझरी, आज बसन्ती
सृष्टि क्रम यूं ही गतिमान
हे ऋतुराज ! स्वागतम गान.
धरनी की बासंती चूनर,
रवि किरणों की गोट लगी,
झरनें झांझरिया झनकाते ,
प्रकृति अब सौंदर्य पगी.
ले अनंत का शुभ संदेशा ,
उदित प्रफुल्लित है दिनमान .
हे ऋतुराज! स्वागतम गान.

मृदुल



मृदुल कीर्ति
www.kavitakosh.org/mridul



उनकी अप्रतिम रचनाएं माँ सरस्वती का प्रसाद सम हैं जिन्हें वे असीम परोपकार कर , सर्वजनहिताय बाँट देतीं हैं
रेखांकित रचना: श्रीमदभगवदगीता का ब्रजभाषा में मृदुल कीर्ति द्वारा काव्यानुवाद


~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
प्रस्तुत हैं , कुछ अमूल्य साहित्यिक कृतियों से , शब्द -भाव रुपी , लघु-चित्र
श्री कृष्ण उवाच : भगवद` गीता से
[ १ ]
पवन की गति में,
गन्ने की मिठास में,
धृत, ज्यूं दुग्ध में,
रस ज्यों फलों में
सुगंध ज्यों पुष्प में,
मैं, समाया, हर जीव में !

सूफी नज़्म : रूमी की
[ 2 ]
वो लहर जो अनाम सी
या, खुदा ए पाक सी
तोड़ कर जो बह चली
जिस्म के मर्तबान सी ,
टूट बिखरी हर कीरच में,
नूरे रोशनी , उस एक की ,
रवानी बहते दरिया की
डूबता , जा कर , सब , उसी में -


ऋग्वेद ऋचा: 'उषा'
[ ३ ]
स्वर्णिम रंग रक्तिम झीने
उषा के अरुणिम भाल पे
आभा आलोक का पटल
देवदूती , अप्सरा चित्र सम
खचित , दीव्य ग्रन्थ माला
हैं , द्रष्ट , दीशा आकाश में !

क्षुद्रक रचित "मृच्छकटिकम से"
[ ४ ]
कदम्ब पुष्प, मेघ जल से स्नात
स्खलित जिससे एक जल कण,
बह चला नर्म ग्रीवा मार्ग से,
सर्र ...सर्र ...सर र र ...
सुन्दरी के गुंथे केश पाश से,
अभिषेक है क्या किसी ऐसे
कुंवर का, उत्तराधिकारी जो
किसी महान राजवंश का?
*********************************

स्वर्ण ~ मृग मरीचिका
देख लिया मृग नयनी ने मृग
सफल हुई, माया मारीच की
स्वर्ण मृग भागे, पंचवटी के आगे,
राघव, लघु भ्राता, चकित, निहारें !
कहे जानकी, "आर्य ! मृग , स्वर्णिम ,
स्वामिन` करें आखेट , इस मृग का !"
बोले तब राम, "सुनो जानकी, यह माया
खेल रही बन मृगया , यह् भ्रम है !"
धनुष डोर कस, खड़े हैं , लक्ष्मण,
" आज्ञा प्रभू ! दे दूं क्या मुक्ति ?"
देख रहे अनुज को राघव,
स्नेहिल नयन से , मृदु बोले,
" जानकी , का आग्रह है,
मुझको ही जाना है भाई ,
तुम्हे सौप सुरक्षा, हूँ निश्चिंत !"
"जो आज्ञा .." कर बध्ध झुकाते शीश
लक्ष्मण को छोड़, चले राम रघुराई ..
आगे आगे, माया मृग भागे,
पीछे पीछे, मायापति, हैं जाते,
विधि विडंबना, विचित्र घटी ,
जीव के पीछे ईश्वर हैं जाते ...
शर संधान, छूटा ज्यों तीर ,
गूँज उठी कपटी पुकार वन में,
" लक्ष्मण ! हत हुआ मैं ! " ये कैसा स्वर ?
श्री राम का स्वर मृग दोहराता ..
लक्ष्मण चकित, जानकी सभीत ,
"देवरजी, दौडो , वे घायल हुए क्या?"
कह माँ जानकी , उठ खडी हुईं उद्विग्न
"माता ! यह् संभव नहीं हैं वे अजेय !"
प्रणाम करते लखन लाल हुए सम्मुख
"जाओ...लालजी , ना देर करो -
नाथ पुकारते, न अब देर करो"
कहें जानकी बारम्बार, चिंतित हो
लेकर ठंडी सांस, सौंप सब अब
विधि के रे हाथ, चल पड़े लखन,
खींची 'लक्ष्मण-रेखा' कुटी के द्वार
"माँ यह् सीमा सुरक्षित क्षेत्र की !
ना करना पार , चाहे कुछ भी हो जाए"
कह, चल पड़े लखन लाल जी उदास ,
"ठीक है, शीघ्र जाओ , वहीं जहां से
मेरे स्वामी का स्वर है आया"
सुन सीता की आर्त पुकार, चले
लक्ष्मण, लिए संग धनुष बाण
राक्षस मारीच मुक्ति पा रहा,
प्रभू दर्शन का सुफल जय गा रहा,
क्षमा प्रभू ! धन्य हुआ ..मैं नराधम
स्वयं ईश्वर शर से मेरा अंत हुआ !"
प्रभू राम हँसे, थी यह् लीला भी उनकी ही
प्रभू अयन, रामायण का यह् भी द्रश्य था
दिखे तभी लघु भ्राता आते हुए मार्ग पे ,
जान गए जानकी नाथ, आगे क्या होगा ,
नहीं रहेंगी जानकी, पंचवटी में , जब् ,
लौट कर जाऊंगा, दारुण व्यथा सभर,
रावण-वध के महा यग्न की प्रथम
आहूति , सीता मिलेंगी अग्नि कुंड से ..
- - लावण्या
http://words.sushilkumar.net/2009/09/blog-post_06.html

22 comments:

  1. बहुत सुंदर लगा आप का लेख, बसंत तो हमारे यहां भी अभी कोसो दुर है, चारो ओर बर्फ़ ही बर्फ़ आज थोडा मोसम गर्म हुआ है, आप के ग्याहरा डालर देख कर चेहरे पर मुस्कान आ गई, क्योकि हम भी जब कोई पुजा पाठ करते है तो ११,२१,३१.... ऎसे ही संख्या की € रखते है, यानि हम कही भी रहे, इस संख्या को नही भूल सकते.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  2. आप की पोस्टों में बहुत विविध सामग्री होती है। उर्दू ग़ज़लों की तरह। मेरे सामने के पार्क में वसंत में कोयलें खूब कूकती हैं लेकिन अभी उन की कूक सुनाई नहीं दी। शायद वसंत में देरी है।

    ReplyDelete
  3. या कुंदेंदु तुषारहार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता
    या वीणावर दण्डमंडितकरा, या श्वेतपद्मासना
    या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभ्रृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
    सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा...

    मम्मा... मुझ पर माँ सरस्वती की कृपा हमेशा बनी रहे.... आपसे यही आशीर्वाद चाहता हूँ....

    माँ...यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी....

    अभी पिछली पोस्ट भी ही पढ़ रहा हूँ....

    ReplyDelete
  4. बहुत ही उम्दा व लाजवाब पोस्ट लगी , आपने एक ही पोस्ट में बहुत कुछ समेट लिया ।

    ReplyDelete
  5. लाजवाब पोस्ट , तारीफ को शब्द कम पड़ते है .....आपके लेखन पर नत मस्तक हुए जाते है !
    आभार
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

    ReplyDelete
  6. आपकी सतरंगी पोस्ट का जवाब नहीं !

    ReplyDelete
  7. अदभुत सुन्दर ब्लाग है आप का और कविता उससे भी सुन्दर

    ReplyDelete
  8. आपकी पोस्ट तारीफे काबिल होती है..बहुत बढ़िया प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  9. बहुत मन से लिखती हैं आप -बसंत ,मां सरस्वती और इतनी अभिव्यक्तियाँ
    मां सरस्वती आपकी वाणी और अभिव्यक्ति को उत्तरोत्तर तेजस्विता प्रदान करती रहें ऐसे ही
    बहुत आभार

    ReplyDelete
  10. बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
    वसंत इधर आने से कतराता क्यूं है?

    ReplyDelete
  11. बेहतरीन लगी यह पोस्ट.

    ReplyDelete
  12. बहुत सुन्दर सार्थक पोस्ट। मा शारदे की कृपा सब पर बनी रहे। आपके लेखन को शत शत नमन ।

    ReplyDelete
  13. आपने तो खजाना दे दिया है....कई दिन लगेंगे देखने-सुनने में..अभी तो आपके परिश्रम को साधुवाद और पोस्ट के लिए आभार ही व्यक्त कर सकता हूँ.

    ReplyDelete
  14. आपकी पोस्ट बहुत अच्छी रचनाओं के साथ है,माँ सरस्वती आपको भी
    ज्ञान से परिपूर्ण करे।विद्या और विवेक से नवीन सृजन करे ।

    ReplyDelete
  15. इन्द्रधनुषी छटा बिखरी पड़ी है...आपकी इस पोस्ट पर...सभी रचनाएं...मन मोह लेने वाली हैं...मुंबई में तो वसंत चारो तरफ दिख रहा है...आम के मंज़र भी नज़र आते हैं...और शीतल बयार भी...ऐसे मौसम का आनंद, आपकी ये पंक्तियाँ दुगुना कर गयीं..

    आज यहाँ आकर पता चला कि' मुकाम्बिका देवी' सरस्वती देवी का ही एक नाम है....पतिदेव के ऑफिस से एक मित्र उस मंदिर में दर्शनार्थ गए थे और एक छोटी सी मूर्ति भेंटस्वरूप लेकर आए..मैंने मंदिर में रख दी और 'मुकाम्बिका देवी' कहकर ही उनकी पूजा करती थी....आज आपने बताया कि ये तो अपनी अराध्य सरस्वती माँ हैं...शुक्रिया

    ReplyDelete
  16. ओह, मां सरस्वती के कोई प्रसिद्ध मन्दिर उत्तर भारत में नहीं!
    Case of misplaced priority of North Indians!

    ReplyDelete
  17. माँ सरस्वती की प्रसिद्ध मूर्ति धार में भोजशाला में थी, जो कि विवादित है, और उस मूर्ति को अंग्रेज अपने साथ ले गये लंदन, जो कि आज वहाँ संग्रहालय की शोभा बड़ा रही है, क्योंकि माँ सरस्वती की मूर्ति में हीरे जवाहरात जड़े हुए थे, सरकार केवल प्रयासरत है पर कुछ कर नहीं रही है। माँ सरस्वती का वास माना जाता है भोजशाला, धार में।

    ReplyDelete
  18. EK AESE BADHIYA POST JISSE KHOOSHBOO CHHAN-CHHAN KAR AA
    RAHEE HAI.ANUPAM POST KE LIYE
    AAPKO DHERON BADHAAEEYAN.

    ReplyDelete
  19. Abhaar prakat karti hoon itna pyara blog hai aapka. Aur anand is baat ka hai ki Late Panditji ki hastlikhit sacnned copy aapne blog par uplabdh karai hai. Anant abhar...

    ReplyDelete
  20. सुन्दर पोस्ट !

    आप के लिए नव वर्ष 2067 मंगलमय हो !

    माँ आप क़ी मनोकामना पूरी करे !

    ReplyDelete
  21. Jagat janani sharde...Karun main teri Vandana...

    ReplyDelete