Thursday, August 9, 2012

प्रीत की अलपनाएं सजी हैं प्रिये

प्रीत की अलपनाएं सजी हैं प्रिये
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ
मौन हो तुम , कहूंगा तुम्हें बार बार
आ भी जाओ प्रिये आभी जाओ
थे मूंदें नयन में जो सपने पले
वे सपने मैंने औ' तुमने बुने
सजा आरती साँसों की ओ प्रिये
वे पल छीन जो मैंने औ तुमने गिने
सुख हो या दुःख वे हमने पल जिए
अब ना दूरी रहे सफर पूरा ये कटे
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ
नील नभ तारक सी जगमगाती
हरी दूब सी सिहर लहराती
सिंदूरी संध्या सी हो लजाती
शुक्र चन्द्र युति झिलमिलाती
धानी चुनरिया सरसराती हुई
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ
नव रंग नव रस नव उमंग लिए
प्रीत की अलपनाएं सजी हैं प्रिये
कल्पना सी सजी अलपनाएं हैं
प्रीत के हर रंग हैं तुम्हारे प्रिये
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ

- लावण्या

8 comments:

  1. नव रंग नव रस नव उमंग लिए
    प्रीत की अलपनाएं सजी हैं प्रिये
    कल्पना सी सजी अलपनाएं हैं
    प्रीत के हर रंग हैं तुम्हारे प्रिये
    आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ

    बहुत खूब !!

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  2. चिरन्तन प्रीति -चिर पुरातन चिर नवीन !

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  3. बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
    जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ
    मेरे ब्लॉग

    जीवन विचार
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  4. प्रीत की अलपनाओं का सुन्दरतम चित्रण..

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  5. बहुत ही सरस और आत्म मुग्ध करने वाली कविता . बहुत बहुत शुभ कामनाएं


    शिवे प्रकाश मिश्र

    http://shivemishra.blogspot.com

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  6. आलोकिक ... जीवन में प्रेम के रंगों को सार्थक करती रचना ...

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  7. bhot pyari dil ko chhu lene vali kavita hai..aapki

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