

गायिका: सुश्री लता मंगेशकर फ़िल्म रत्न घर
संगीत : श्री सुधीर फडके शब्द: पंडित नरेन्द्र शर्मा
ये एक पुराना किंतु मधुर गीत है जिसे सुनकर जीवन का सत्य मन पे हावी होता है और हम मानते हैं की हाँ,ऐसे ही होते हैं हमारे जीवन के सपने ...बन बन कर बिखरने वाले मानों बालू के कण हों,जिनसे हम घर बनाते हैं जो हर लहर के साथ फ़िर दरिया के पानी के साथ मिल कर बिखर जाते हैं,
ऐसे हैं सुख सपन हमारे
बन बन कर मिट जाते जैसे
बालू के घर नदी किनारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
लहरें आतीं, बह बह जातीं
रेखाए बस रह रह जातीं
जाते पल को कौन पुकारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
ऐसी इन सपनों की माया
जल पर जैसे चाँद की छाया
चाँद किसी के हाथ न आया
चाहे जितना हाथ पसारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
जल पर जैसे चाँद की छाया
ReplyDeleteचाँद किसी के हाथ न आया
चाहे जितना हाथ पसारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
पंडितजी की सुंदर पंक्तियों से परिचित कराने के लिए आभार... सुंदर प्रस्तुति
Lavanyaji
ReplyDeleteI wish I could listen to this beautiful song plz....
Thanx & rgds.
सुन्दर गीत है।
ReplyDeleteसच है - जीवन के सत्य के दर्शन स्वप्न में ही होते हैं; बहुधा।
ReplyDeleteगीत सुनने में और अच्छा लगता।
अजित जी, ज्ञान भाई सा'ब, ममता जी, हर्षद भाई, आप सब का आभार --
ReplyDeleteआज, रत्नघर का गीत, नई प्रविष्टि के साथ प्रस्तुत किया है
अवश्य सुनियेगा
स स्नेह,
लावण्या