Thursday, July 17, 2008

वक्त क्या है ?



वक्त क्या है ? बँटा हुआ सच , की माया - जाल ?

भूत , भविष्य या वर्तमान ?

फ्रीज़ - फ्रेम में बंद लम्हे , फोटो इमाजिज़ , स्लाईड शो है ?

पद्म पत्र पर लेटे, बाल मुकुंद , शेष शायी नारायण ,

क्षीर सागर पर , उल्काएं ब्रह्माण्ड में , तिरोहित व्योम पार सृष्टि सर्जन , नटराज नर्तन फ़िर समाधी कैलाश पर !

बन चले , राम रघुराई , संग जानकी माई और साथ ,

लक्ष्मण जैसा भाई ! रावण - वध !

मिस्सर में उठते पिरामिड, शिला ढोती पीठ !

हम्मु रब्बी का नियामक शिला लेख , अस्स्यिरिया में !

चीन में बारूद , कागज की इजाद , इस्तेमाल , फानूस सुंदर

सिन्धु घाटी सभ्यता की नींव और अचानक मिट जाना!

यह वक्त बीता , आए समुद्र गुप्त, चंद्र गुप्त, अशोक , पाणिनि , भव- भूति , वराह मिहिर , आर्य भट्ट और चाणक्य !

शक , कुषाण हूण, तैमुर लँग, चौल राज , चालुक्य ,पाँड्य राज, सात वाहन, मदुरई , मीनाक्षी, बसे मन्दिर नगर , खजुराहो , अजंता !

मुगल आए , इन्द्र प्रस्थ को देहली, ये अब नया नाम दिया !

ताज महल , मोती मस्जिद , कुतुब मीनार , सिकरी बुलुंद दरवाजा

सामने आए !

उन्हें देखते , सलाम करते अब गोरे आ घुसे भारत की भूमि पर ! औद्योगिक क्रांति ने मोडी दिशा पस्स्चात्य सभ्यता की और लड़ मरे , फ्रांसीसी , इटालियन , जर्मन , स्पेनिश , डच , ब्रितानवी यहूदी से , आपस में ..... देखता रहा इन युद्धों को मध्य एशिया , पूर्वी एशिया तथा रूस और चीन !

बसा अम्रीका भू खंड , तब युरोप के ही अंश से औरबहुत आगे बढ़ा ! चाँद पर जा पहुँचा आदमी , भूत कल अब आज का वर्त मान ,

बीसवी सदी बना ! दो दो महा - युद्ध आए और चले गए ,

दौड़ती रहीं मशीन हर उप - खंड पे , अनु संधान , बम विस्फोट से नर , पूर्ण नर -संहारक है अब बना !

क्या होगा भविष्य , मानव जाति का ,मानव निर्मित सभ्यता का ?

सोचें अगर हम, इस २१ वीं सदी के आरम्भ में तब क्या कहें ? मोबाइल , वायर लेस तकनीक , DVD, सी डी, TV , कंप्यूटर , मल्टाइ मीडिया , ट्रांसपोर्टेशन , क्वाँटम फिजिक्स , विज्ञान की देन , सुविधाएं अति आधुनिक युग की हैं देन !

और आगे फैला है , महा - सागर , आनेवाले भावी इतिहास का ,

जो है अनिस्चित्त ! "वसुधैव कुटुम्बकम्` यथार्थ "

दुनिया एक छोटा गोला है ~~ " नील ग्रह , पृथ्वी !

येही , विशाल व्योम के मध्य में , एक हमारा घर है !

बड़ा सुंदर है ~~

क्या हम इसे नाश्ता होने देँगेँ?

या स्वर्ग स्थापित करेंगे , धरा पर ?

यह आगे की शेष कथा , क्या होगी ?

ये आनेवाला वक्त ही लिखेगा , नई कविता !

जो सोच रहें हैं आज , ये हमारी बस प्रार्थना ये दुआये ,

वक्त के नाम हैं !

14 comments:

  1. धड़ी की सुई की तरह अनवरत जीवन जो आप नेयहाँ बताया और आगे चलता रहेगा ... ऐसे ही इतिहास , पुराण ...

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  2. वकत से कोन जीता हे ??
    बहुत सुन्दर हे आप की इस कविता के भाव

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  3. क्या हम इसे नाश्ता होने देँगेँ?
    बहुत मामूली लगता है, बहुत कठिन प्रश्न?

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  4. भारी भरकम किन्तु श्रेष्ठ काव्य!

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  5. बात तो ठीक है, पर करें क्या ?

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  6. घड़ी के माध्यम से जीवनयात्रा का सुंदर चित्रण, और सुंदर हैं कविता के भाव. धन्यवाद्

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  7. सुंदरतम प्रयास..
    बहुत ही भावपूर्ण रचना..

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  8. वक़्त की डोर जो सम्हाले रखेंगे
    वही ज़िंदगी का स्वाद चखेंगे....
    =========================
    आपकी यह प्रस्तुति
    आपके संस्कृति-बोध का
    सार्थक हस्तक्षेप है.
    आभार
    डा.चन्द्रकुमार जैन

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  9. कभी लिखा था ,आज फ़िर दोहरा रहा हूँ......

    सोचता था की दौड़ के पकड़ लूँगा
    वक़्त है के मगर ठहरता नही

    आपकी अभिव्यक्ति बेहद सुंदर है......बेहद......

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  10. यह तो कठिन सवाल है - वक्त क्या है?
    एक अनन्तता है। आदमी अनन्तता से घबरा जाता है - सो उसे समय में बांटता है! भूत-वर्तमान-भविष्य में!

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  11. वक़्त सुनते ही दिमाग में बलराज साहनी पर फिल्माया गया गान याद आता है: वक़्त के दिन और रात....

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  12. wakt ka bada achcha vihleshan kiya hai...wakt kya hai pata nahi par wakt se achcha marham koi nahi..

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