Tuesday, March 23, 2010

" एक समय की बात है ..."/ श्री कृष्‍ण बिहारी ‘नूर’ संस्‍मरण / एक ग़ज़ल


हमारे इलाके में , अब बसंत के आगमन की तैयारी है  हवाएं अब भी अंतिम ठण्ड को समेटे, सूर्य के ताप से ,गर्माहट हासिल करने का प्रयत्न कर रहीं हैं मार्च महीने के अंतिम दिन शेष हैं और बाग़ में घास हरी होने लगी है बर्फ अब शायद गिरे या ना गिरेकोइ भरोसा नहीं पंछी बागों में नये पत्तों की बाट जोहने लगे हैं सुना है भारत में भीषण गर्मी पड़ रही है ..हां हां मौसम है !वह तो  आये और जाए  !
आजकल अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समीति की त्रैमासिक पत्रिका " विश्वा " के आगामी अंक
 " कथा - कहानी  विशेषांक " का सम्पादन कार्य, सुश्री रेनू राजवंशी के स स्नेह आग्रह करने पर,
 मैंने करने का वादा किया और उसी के काम को आज पूरा करने पर हर्ष और उत्सुकता है ..
और आशा कर रही हूँ कि , मेरे प्रयास को पाठक पसंद करेंगें
सम्पादकीय : कथा कहानी विशेषांक " विश्वा " के लिए 
शीर्षक : " एक समय की बात है ..." 
-------------------------------------------------
ब्रायन बोयड की हार्वड पुस्तक प्रकाशन से छपी पुस्तक में वे कहानी के उद`गम व विकास की व्याख्या करते, ये प्रश्न उभारते हैं के जिस कथा - कहानी का मानव जीवन के विकास या संवर्धन में कोइ खास महत्त्व नहीं रहा , फिर भी, उस प्रक्रिया को, प्राचीन काल से २१ वीं सदी के आरम्भ तक, मानव समाज क्यों अपने साथ लेकर चला ?
कथा - कहानी की गणना कला के क्षेत्र में क्यों कर हुई ?क्यों इसकी गिनती ' कला के क्षेत्र में की जाती रही है ? क्या ऐसा तो नहीं कि , कहानी कहना, गढ़ना और वास्तविक घटना या कल्पित रूपरेखा से बुनी हुई कथा ~ कहानियां, हर युग में , गढ़ना , यह प्रक्रिया मानव सुलभ इस कारण हुई कि , यह हमारे अस्तित्त्व के लिए, सामाजिक 
विकास के लिए उपयोगी ही नहीं वरन हमारे मानवीय मूल्यों के विकास 
में भी महात्वपूर्ण रूप से , सहायक सिध्ध हुईं हैं ?
 कहानी , एक तरीके से देखें तो, हमारे मनुष्यत्व का पर्याय है।  कथाएँ हमारे समाज का दर्पण भी हैं !
हमारी शौर्य गाथाएं , नदीयों की तरह , समय की धारा को बांधकर बहती हुईं , 
सदा - अविरल बहती , मानव मंदाकिनी स्वरूप हैं और हमारी आकांक्षाओं की , हमारे 
स्वप्नों की और कई बार, स्वप्न भंग होने की भी साक्षी रही है। 
वाल्मिकी , व्यास , होमर, कालिदास , भवभूति , तुलसीदास , शेक्सपीयर, दोस्तोवस्की, चेखोव, बर्नार्ड शो परिकथा लेख़क एंडरसन, चार्ल्स दीकंस, ओ हेनरी, मोपांसा , काफ्का, कीप्लिंग , शरत चन्द्र, हों या प्रेमचंद या अमृत लाल नागर , उन जैसे कथाकार , आज भी क्यूं भौगोलिक दूरियों को पाट कर , सर्व जन के सर्व प्रिय हैं ?
मनुष्य की क्रियाशीलता  ऊर्जा बुध्धि तथा चिंतन मनन के फलस्वरूप, कथा-कहानियां उभरतीं हैं और कई समाज में धर्म का आधार, सामाजिक व्यवहार का दस्तावेज और हमारे 
इतिहास का लेखा जोखा भी समाये हुए ,आधुनिक युग तक चल कर , हमारे साथ ऐसे जुडी हुई हैं। मा
नों वे जीवन का अभिन्न अंग ही क्यों ना हों !
बाईबल ने कहा " सर्व प्रथम शब्द उभरा और वही ईश्वर स्वरूप है !
" ऋग्वेद ने कहा, " सृष्टी के पहले सत नहीं था असत भी नहीं था "
" ऊं " के मंगलकारी , प्रणव नाद से ही सृष्टी प्रतिपादित हुई .........
माली , आफ्रीका के मान्दिनका लोग " मंगला " नामक एक सर्वशक्तिशाली पुरुष से कथा आरम्भ करते हैं। तो सईबीरीया के " मानसी " लोग पृथ्वी माता के आरम्भ की गाथा सुनाते हैं। मांगोल प्रजा " उदान " नामक लामा से सृष्टि के आरम्भ को जोड़ते हैं। कई कथाओं का आरंभ इनहीं शब्दों में हुआ है" एक समय की बात है ..."
दादी नानी की गोद में सोते हुए, चंद्रमा की शीतल छैंया से स्वप्निल होते वातावरण में , अन्धकार से ग्रसित होते आकाश में, दूर टिमटिमाते तारकों के साथ सुनी सुनाई कहानियां 
हर शिशु मन में,सदा के लिए घरौंदा बना लेतीं हैं। ऐसे नीड़ बन जाते हैं जहां जीवन के हर 
कालखंड में, मन पाखी सी चिडीया ,नित नये दाने जमा करती है। 
ये हमारे अस्तित्त्व का दुर्लभ धन है
जिसे आज पाश्चात्य देशों में , टीवी के पात्र " डोरा " मीकी " सुपर मेन " जैसे काल्पनिक पात्र बने 
पूरा कर रहे हैंसच कहूं तो , भारत की " अमर चित्र कथाएँ "  " चन्दा मामा " और ' पराग, नंदन ' 
को सच बताईये, आज तक, कौन भूल पाया है ?
एक कविता पढी थी उसका अनुवाद प्रस्तुत है : ~~
" मैं नहीं जानती के इंसान के शब्द आकाश तक पहुँचते हैं या नहीं
मैं ये भी नहीं जानती के ईश्वर मेरे शब्द सुन रहे हैं या नहीं ,
मैं ये भी नहीं जानती कि मेरी मनोकामनाएं , पूरी होंगीं या नहीं
मैं ये भी नहीं जानती भविष्य में क्या क्या संभव होगा
सिर्फ इतना कहती हूँ , मेरे बच्चों, के जो भी होगा,
वह, तुम्हारे लिए, खुशियों की सौगातें लेकर आयेगा '
कितनी प्यारी बात कही है किसी अनाम माँ ने ............
यही कथा का विस्तार है और उद गम और प्रस्थान बिन्दु भी ..........
आज " विश्वा " का कथा कहानी विशेषांक आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए ,
यही प्रार्थना मेरे मन में गूँज रही है और आपके लिए कुछ कहानियां तथा कविताओं को
प्रस्तुत कर रही हूँ 
सौ. रेणु राजवंशी " गुप्ता के स्नेहभरे आग्रह को मान देते हुए मैंने, ये जिम्मेदारी सम्हाली है 
वर्तनी की त्रुटियां या अशुध्धियाँ रह गयीं हों तब कृपया माफ़ करें। 
और उत्तर अमरीका में रचनाशील , सहित्य जगत के साथी , मित्रों की रचनाओं का खुले मन से स्वागत करें ये मेरी, आप सभी से , विनम्र प्रार्थना है 
आगामी अंकों में , हम कई कवि व लेखकों की कृतियाँ आप के समक्ष प्रस्तुत करेंगें ...
इस अंक से हम स्थायी स्तम्भ " अमर युगल पात्र " [ लेखिका : लावण्या शाह द्वारा ]
आरम्भ कर रहे हैं 
ऋषि वसिष्ठ तथा अरूंधती की कथा के साथ ...
आशा है आप को ये प्रयास पसंद आयेगा इस अंक में जिन साहित्यकारों की कृतियाँ शामिल हैं उनका धन्यवाद
आप सभी का सहयोग व साथ , भविष्य में यूं ही बना रहेगा ये आशा है
तथा आप के परिजनों के लिए व आपके लिए
मंगल कामना सहित अब आज्ञा लेती हूँ .
सादर, स - स्नेह ,
- लावण्या
विश्वा के एक पुराने अंक से यह संस्मरण मिला है जो आप तक पहुंचा रही हूँ और एक बहुत पुरानी फिल्म से एक ग़ज़ल मिलीआप देखिये दोनों रचनाएं आपको भी अवश्य पसंद आयेंगी

श्री कृष्‍ण बिहारी ‘नूर’ संस्‍मरण
श्रीकृष्‍ण बिहारी ‘नूर’ मूलतः लखनऊ के निवासी थे !
गजल, शायरी एवं कविता से संबंध रखनेवाले सभी सहृदयों में नूर की शायरी का विशेष स्‍थान रहा है।
सभी प्रसिद्ध गायकों ने आपकी गजलों को सुरबद्ध किया है।
मेरी उनसे भेंट कोलंबस ओहायो में हुई थी ! हमारे मित्र श्री बिपिंद्र जिंदल ने नूर के सम्‍मान में एक कवि-सम्‍मेलन का आयोजन किया था।
उर्दू बोलनेवालों को हिंदी समझने में और हिंदीवालों को उर्दू समझने में उलझन होती है।
हम भी यही उलझन लेकर सौ मील ड्राइव करके गए उर्दू की शायरी हमें कितनी समझ में आएगी।
जैसे ही काव्‍य-संध्‍या आरंभ हुई, कई शायरों एवं गीतकारों ने काव्‍य पाठ किया...वातावरण सहज होता गया।
श्री कृष्‍ण बिहारी ‘नूर’ सामने मंच पर बैठे ऐसे लग रहे कि या तो नींद में हैं, या नशे में हैं या कहीं खोए हुए हैं।
एक और विकल्‍प था...मानो नूर ईश्‍वर-ध्‍यान में मग्‍न हों...।
हिंदू-दर्शन एवं आध्‍यात्‍म का नवीन स्‍वरूप श्री नूर की शायरी में दिखाई देता है।
उन्‍होंने अद्वैत का इतना सरल एवं सहज रूपांतर अपनी गजलों में कर दिया है कि विश्‍वास ही नहीं होता है...जैसे...
‘जो मौत से डरा नहीं...मौत उसकी मित्र हो गई।’
अपनी शायरी से पहले उन्‍होंने दो बातें कीं...प्रथम : हमें नहीं पता है कि हमारी शायरी में कितने हिंदी के शब्‍द हैं और उर्दू के शब्‍द हैं।
आपके पास पेन-कागज तो होगी ही—श्रोता ही लिखकर मुझे बताएँ कि कितने शब्‍द उर्दू के हैं और कितने शब्‍द हिंदी के हैं !
वास्‍तव में उनकी शायरी जितनी गहरी थी, भाषा उतनी ही सरल थी।
द्वितीय : ‘नूर’ ने श्रोताओं से आग्रह किया कि उनकी शायरी सुनते वे सांसारिक संबंधों से ऊपर उठें।
नूर ने हँसते हुए कहा कि आप सरला, निर्मला, कमला का ध्‍यान नहीं करें !
अपनी सोच को आध्‍यात्‍म के स्‍तर पर उठाएँ...!
यहाँ हम श्री नूर की आध्‍यात्‍मिक दृ‌ष्‍टि से अत्‍यंत प्रभावकारी एवं गूढ़ रचनाएँ दे रहे हैं।
आशा है कि पाठक भी उसे उतनी गंभीरता से पढ़ेंगे एवं लाभान्‍वित होंगे।
चार वर्ष पूर्व श्री कृष्‍ण बिहारी ‘नूर’ की एक दुर्घटना में मृत्‍यु हो गई थी।
Aag hai, pani hai mitti hai hawa hai mujh mein - Krishn Biharo Noor.mp3
3212K Play Download


कविता :

जन्‍म-जन्‍म का चक्‍कर एक अजीब चक्‍कर है;
कश्‍तियाँ हैं ख्‍वाबों की नींद का समंदर है।

बेनियाज1 सुख-दुःख से रह के जी न पाऊँगा;
सुख मेरी तमन्‍ना है, दुःख मेरा मुकद्दर है।

कितनी जानलेवा है बे-तअल्‍लुकी उसकी;
आज हाथ में उसके फूल है न पत्‍थर है।

उससे अपना गम कहकर किस कदर हूँ शर्मिंदा;
मैं तो एक कतरा हूँ और वह समंदर है।

तुझसे मिलने की ख्‍वाहिश मरने भी नहीं देती;
आरजू कोई भी हो रास्‍ते का पत्‍थर है।
जिंदगी उसे पा ले सोचना है बेमानी;
मैं हदों के अंदर हूँ वह हदों से बाहर है।

घर की खस्‍ताहाली को जो छुपा ले दामन में;
‘नूर’ ऐसी तारीकी2 रोशनी से बेहतर है।

देना है तो निगाह को ऐसी रसाई3 दे;
मैं देखूँ आईना तो मुझे तू दिखाई दे।

काश ! ऐसा तालमेल सुकूत-ओ-सदा4 में हो;
उसको पुकारूँ मैं तो उसी को सुनाई दे।

ऐ काश ! उस मुकाम पे पहुँचा दे उसका प्‍यार;
वो कामयाब होने पे मुझको बधाई दे।

मुजरिम है सोच-सोच, गुनहगार साँस-साँस;
कोई सफाई दे तो कहाँ तक सफाई दे।

हर आने-जानेवाले से बातें तेरी सुनूँ;
ये भीख है बहुत मुझे दर की गदाई दे।

या ये बता कि क्‍या है मेरा मकसद-ए-हयात;
या जिंदगी की कैद से मुझको रिहाई दे।

कुछ एहतराम अपनी अना5 का भी ‘नूर’ कर;
यूँ बात-बात पर न किसी की दुहाई दे।

उसी की एक अदा छीनकर सताऊँ उसे;
उसे मैं देखूँ मगर मैं नजर न आऊँ उसे।

जुदाई की हो घड़ी या मिलन की वेला हो;
बहाना हाथ लगे तो गले लगाऊँ उसे।

यहाँ पे भी तो उसी के करम का हूँ मोहताज;
किसी गजल में ढले वो तो गुनगुनाऊँ उसे।

अजीब तरह की शर्तें लगाई हैं उसने;
मैं अपने आप को छोड़ूँ कहीं तो पाऊँ उसे।

इबादत उसकी करूँ और कुछ तलब न करूँ;
वो आजमाए मुझे मैं न आजमाऊँ उसे।

न आरजू है कोई और न कोई मकसद-ए-जीस्‍त6;
हयात जितनी बची है कहाँ खपाऊँ उसे।

कहाँ की हार मुहब्‍बत में और कैसी जीत;
मैं रूठ जाऊँ कभी खुद, कभी मनाऊँ उसे।

किसी सवाल का उसके कोई जवाब न दूँ;
मिले वो अब के तो उलझन में छोड़ आऊँ उसे।

मजा तो जब है कि मेरी कमी उसे भी खले;
कभी मैं बिछड़ूँ तो ऐ ‘नूर’ याद आऊँ उसे।

आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझमें;
और फिर मानना पड़ता है खुदा है मुझमें।

अब तो ले-दे वही शख्‍स बचा है मुझमें;
मुझको मुझसे जो अलग करके छुपा है मुझमें।

मेरा ये हाल उधड़ती हुई परतें जैसे;
वो बड़ी देर से कुछ ढूँढ़ रहा है मुझमें।

जितने मौसम हैं वो सब जैसे कहीं मिल जाएँ;
इन दिनों कैसे बताऊँ जो फजा है मुझमें।

वो ही महसूस करेगा जो मुखातिब7 होगा;
ऐसे अनदेखे उजाले की सदा है मुझमें।

नश्‍शा-ए-मय की तरह समझा था कुरबत उसकी;
वो तो मानिंद-ए-लहू दौड़ रहा है मुझमें।

आईना ये तो बताता है मैं क्‍या हूँ लेकिन;
आईना इस पे है खामोश कि क्‍या है मुझमें।

टोक देता है कदम जब भी गलत उठता है;
ऐसा लगता है कोई मुझसे बड़ा है मुझमें।

अब तो बस जान ही देने की है बारी ऐ ‘नूर’;
मैं कहाँ तक करूँ साबित कि वफा है मुझमें।

1. निःस्‍पृह, 2. अंधकार, 3. पहुँच, 4. ध्‍वनि और आवाज, 5. अहम, 6. जीवन का उद्देश्‍य,
7. जिससे बात की जाए, 8. आवाज, 9. यह इजाफत गलत है, मगर मुझे ये ऐब अच्‍छा लगा, जिसकी मुआफी।


श्री अनूप भार्गव जी ने " नूर " सा'ब की आवाज़ में ग़ज़ल भेजी है ..उनके पास वोईस फाइल के कई बेशकीमती लिनक्स हैं
सो, उनके , बेशकीमती खजाने से एक मोती आज यहां प्रस्तुत है -- बहुत आभार अनूप भाई आपका ! :

Aag hai, pani hai mitti hai hawa hai mujh mein - Krishn Biharo Noor.mp3
3212K Play Download
और एक बहुत पुरानी फिल्म (पोस्ट मेंन (१९३८ ) से मिली ,
 एक ग़ज़ल

हौसला  आशीक  को  चाहिए  दिल  लगाने  के  लिए  
क्यूंकि   ये माशूक  होते  है  सतांने  के  लिए   
रहम  कर  दिल  में  ज़रा  इन्साफ  लाने  के  लिए  -२ 
हम  फ़क़त  तेरे  लिए
हम फ़क़त तेरे लिए और तू ज़माने के लिए
कोशिशे  कराते  हो  क्यूँ  मेरे  मिटाने  के  लिए  -2 
फिर  मिलेगे , फीर  मिलेंगे  कब  तुम्हे  ये  नाज़  उठाने  के  लिए  
 वो  उधार  खजर -बा -काफ  है  आज़माने  के  लिए  -२ 
 हम  इधर  है  हम  इधर  है  शौक़  में  गरदन  कटाने  के  लिए 
 कटाने  के  लिए 
 हौसला  आशिक को  चाहिए  दिल  लगाने  के  लिए 
SingerMusic ByLyricistMovie / AlbumActorCategory
हौसला आशिक को चाहिए दिल लगाने केलिएअकबर खान दुर्रानीपेशावरीअनिल बिस्वास
जिया सरहदीपोस्ट मेंन (१९३८ )बिब्बो , हरीश ,कुमार , माया बनर्जी , संकट









28 comments:

  1. विश्वा के संपादन हेतु बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ. आपके संपादन से निखार आ जायेगा.

    नूर साहब की यह बेहतरीन गज़ल पढ़वाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार!!

    ReplyDelete
  2. लावण्या दीदी,
    प्रणाम,
    सबसे पहले तो बर्फ से मुक्ति और वसंत ऋतु के आगमन की बधाई...जी भर के इसका आनंद उठाइए..
    फिर 'विश्वा' पत्रिका का सम्पादन आप करेंगी यह भी एक पर्व है हम सबके लिए...आपका वरदहस्त मिल रहा है पत्रिका को तो निश्चय ही और निखर कर आएगी...इसकी भी बधाई और बहुत सारी शुभकामनायें...
    जो दो ग़ज़लें उद्धृत की हैं आपने श्री कृष्‍ण बिहारी ‘नूर’ जी के संस्मरण में, अनमोल हैं....हृदय बाग़-बाग़ हुआ है पढ़ कर...
    आपकी पोस्ट तो वैसे भी हमारे लिए ईश्वर का प्रसाद ही होता है दीदी...और मैं सिर्फ कहने के लिए नहीं कहती हूँ...हृदय से महसूस करती हूँ...पहले कहने की हिम्मत नहीं कर पाई कभी ..आज कह दिया है...
    आपका बहुत बहुत आभार..

    ReplyDelete
  3. आज रामनवमी है. इस शुभ दिन आपके द्वारा विश्व के संपादन का समाचार सुखद रहा. नूर साहब की ग़ज़ल के लिए आभार.

    ReplyDelete
  4. अघा गया। शुभकामनाएँ।
    आप का ब्लॉग सुरुचिपूर्ण सृजन का एक दमकता उदाहरण है।
    गद्य के जिस स्वरूप का मैं अभिलाषी रहा हूँ वह इस पोस्ट में 'एक समय की बात है ...' से आगे दिखता है - सरल, अर्थपरक, प्रवाहशील और आत्मीय।
    आभार ।

    ReplyDelete
  5. मैं भी यही कहना चाहूँगी-

    " मैं नहीं जानती के इंसान के शब्द आकाश तक पहुँचते हैं या नहीं
    मैं ये भी नहीं जानती के ईश्वर मेरे शब्द सुन रहे हैं या नहीं ,
    मैं ये भी नहीं जानती कि मेरी मनोकामनाएं , पूरी होंगीं या नहीं

    मैं ये भी नहीं जानती भविष्य में क्या क्या संभव होगा
    सिर्फ इतना कहती हूँ , के जो भी होगा,
    वह, तुम्हारे लिए, खुशियों की सौगातें लेकर आयेगा '
    साथ में ढेर सारी बधाई

    ReplyDelete
  6. आपको अपने लक्ष्य में सफलता मिले।
    नूर साहब की रचना पसंद आई...

    ReplyDelete
  7. लावण्या जी,

    बहुत अच्छी रचनाएं. नूर साहब की गज़ल पढ़वाने के लिए आभार. विश्वा के सम्पादन के लिए बधाई.

    रूपसिंह चन्देल

    ReplyDelete
  8. लावण्या जी:
    नूर साहब को सुनने का अवसर मुझे भी एक बार मिला था । बहुत तन्मयता से सुनाते थे । आदरणीय कुँअर बेचैन जी उन्हें अपना गुरु मानते हैं और उन के कई रोचक किस्से उन के पास हैं ।
    नूर साहब की यह गज़ल ’आग है , पानी है...’ मेरे पास उन की स्वयं की आवाज़ में है । आप को अलग से भेज रहा हूँ यदि उसे अपने ब्लौग पर लगाना चाहें तो ...

    सादर स्नेह के साथ

    ReplyDelete
  9. लावण्या जी!
    वन्दे मातरम. राम नवमी की शुभ कामनाएँ.
    नूर को पढ़कर आनंद मिला. वे पल आँखों के सामने फिर साकार होने लागे जब लखनऊ में श्री देवकीनन्दन 'शांत' (नूर के शागिर्द, जानदार गजलगो, सेवानिवृत्त अभियंता) के निवास पर मेरे कविता सन्ग्रह 'लोकतंत्र का मकबरा का विमोचन नूर साहब ने अपने कर-कमलों से कर मुझ पर नजरें-इनायत की थी. उनकी शायरी तो लाजवाब थी ही हिन्दी कविता कि जितनी सूक्ष्म विवेचना उन्होंने की थी वह भूली नहीं जा सकती. मुझ नाचीज़ को उनका इतना प्यार मिला कि मैं धन्य हो गया. आश्चर्य हुआ कि उन्होंने हिन्दी की कविताओं को न केवल पूरी रुचे से सुना, उन पर यथा स्थान दाद दी, नए रचनाकारों की हौसला अफजाई की औए सुधर के तरीके भी बताये. आपका आभार आपने उन पलों को फिर जीने का मौका दिया.

    ReplyDelete
  10. दीदी आपकी ये पोस्ट ज़िन्दगी के कितने ही खूबसूरत रंग समेटे हुए है....पढ़ कर आनंद आ गया...बसंत के आगमन और उसके बाद विश्वा के संपादक बनने पर हार्दिक बधाई...आप की रहनुमाई उसे जरूर बुलंदियों पर ले जाएगी...नूर साहब की लाजवाब ग़ज़लें पढवाने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया और इतनी पुरानी फिल्म की ग़ज़ल भी पढवाने का शुक्रिया...

    नीरज

    ReplyDelete
  11. आपके सम्पादन में विश्वा मं सौन्दर्य और उत्कृष्टता प्रचुर होगी, इसका पूरा विश्वास है। आपको बहुत बहुत शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  12. दीदी साहब आपके संपादन में निकली इस पत्रिका के अंक को पढ़ने के लिये काफी उत्‍सुकता हो रही है कि किस प्रकार का होगा ये अंक । आपने संपादकीय बहुत ही प्रभावशाली तरीके से लिखा है । विशेषकर मंगला और मानसी वाली बात तो बहुत ही रुचिकर लगी । ये जानकारी मेरे लिये तो हैरत में डालने वाली थी । आपके संपादन में निकली इस पत्रिका का पीडीएफ अंक क्‍या पढ़ने को मिल सकता है । एक समय की बात है को शी
    र्षक बना कर आपने जो सम्‍पादकीय लिखा है वो पढ़ने के लिये बाध्‍य कर रहा है ।

    ReplyDelete
  13. लावण्यदीदी
    प्रणाम !
    अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समीति की त्रैमासिक पत्रिका " विश्वा " के आगामी अंक
    " कथा - कहानी विशेषांक " का सम्पादन कार्य, आपके शुभ हाथो होने जा रहा है किती वडी एवं ख़ुशी कि बात है.
    मुझे उम्मीद है आप सक्षम है कुशल सम्पादन के लिए -मगल भावना !
    नूर को पढ़कर आनंद मिला.
    राम नवमी की शुभ कामनाएँ.

    जैन ब्लोगर परिवार aggregator

    हे! प्रभु यह तेरापन्थ

    ReplyDelete
  14. आपके श्रम को नमन!
    रामनवमी की हार्दिक शुभाकमनाएँ!

    ReplyDelete
  15. बहुत बढ़िया पोस्ट. नूर जी के बारे में जानकारी का और गज़ल पढ़वाने का धन्यवाद. मुझे तो उर्दू और हिन्दी में कोई फर्क नज़र नहीं आता है जब तक की उसमें प्रचलन से बहार के कठिन शब्द ज़बरदस्ती न डाले जाएँ.

    विश्वा के कथा विशेषांक के सम्पादन के लिए बधाई. सम्पादकीय का प्री-रिलीज़ पढ़ना अच्छा लगा.

    ReplyDelete
  16. कहानी और शब्दों के उद्भव से लेकर उनके काल और देश से ऊपर होने की बात से लेकर, नूर जी का परिचय और रचना सब पसंद आये. अद्भुत पोस्ट !

    ReplyDelete
  17. अद्भुत संकलन लिए हुए है पोस्ट ,आपको बहुत धन्यवाद इतनी बेहतरीन प्रस्तुति हेतु.

    ReplyDelete
  18. बहुत सुंदर लगा आज का लेख ओर नूर साहब की गज़ल पढ़वाने के लिए आप का धन्यवाद

    ReplyDelete
  19. दीदी, आप हमेशा ही कमाल करतीं है, और ना मालूम कहां से मोती खोज कर लाती हैं, और उस खज़ाने से हमें मालामाल करती हैं.

    सुना है नूर साहब से किसी नें कृष्ण की कविता में इस्लाम की तारीफ़ करने को कहा था जो उन्होने नें ’इस लाम’ से काफ़िया मिला कर शेर कह दिया था. आपको वह शेर याद है?

    ReplyDelete
  20. बहुत बढ़िया सामग्री संकलित की है। बधाई।

    ReplyDelete
  21. आपके सम्पादन में "विश्वा" और भी निखरेगी ऐसी आशा है और शुभकामना भी। कहानी पर केन्द्रित आपका सम्पादकीय अभिभूत करता है। अभिव्यक्ति की आपकी शैली अनोखी और मौलिक है। वर्तनी सम्बंधी अशुद्धियां ठीक करके भी एक रचना को पढा जा सकता है इसके लिये क्षमा मांगना बहुत आवश्यक नहीं लगता। एक प्रसंग मुझे याद आ रहा है - कहीं पढा या सुना था कि किसी प्रकाशक या सम्पादक ने अज्ञेय जी से उनके लेखन में हुई अशुद्धियों के सम्बंध में शिकायत की तो उनका (अज्ञेय जी) कहना था कि आपका काम फिर क्या है ! कहने का अर्थ है कि लेखक और सम्पादक एक दूसरे के पूरक हैं। अशुद्धियां ठीक की जा सकती हैं लेकिन लिखने के लिये लेखक वाला हौसला चाहिये जो भाषाविद में हो आवश्यक नहीं।

    सादर,

    अमरेन्द्र

    ReplyDelete
  22. लावण्या जी,
    अच्छा संकलन है.

    कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
    http://qatraqatra.yatishjain.com/

    ReplyDelete
  23. हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया ...आप का अपनी व्यस्तता में यहां आकर मेरे लिखे को पढ़ना और मेरे आग्रह पर टिप्पणी भी रखते जाना ये मेरे लिए एक बहुत बड़ा संबल है .भविष्य में , लिखते रहना , हिन्दी साहित्य जगत से जुड़े रहना ये मेरे लिए अपार गौरव की बात है
    हमारी हिन्दी विश्व के लिए अमृत दायिनी बने ये मेरी सच्चे ह्रदय से की हई प्रार्थना है - पुन: पुन: आभार
    स स्नेह, सादर,
    - लावण्या

    ReplyDelete
  24. Lavanya Di
    Always getting something new on your blog gives immense pleasure to the heart.Many many BADHAIYAN.
    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

    ReplyDelete
  25. Mere liye to yahan ek khazaneka pitara khul gaya!Aur kya kahun? Ab padhna chalu hoga....

    ReplyDelete
  26. आज तो लाटरी लग गयी हो मानो ये पोस्ट पढ़ कर ऐसा लगा. दीदी, एक और बहुत बढ़िया पोस्ट के लिए बधाइयाँ.

    नूर का नूर सलामत रहेगा दुनिया में,
    पोस्ट को पढके तो हमको भी यकीं होता है.

    ReplyDelete
  27. आपके ब्लॉग पर तस्वीरें हमेशा ही लुभाती रही है ...

    @ मैं ये भी नहीं जानती भविष्य में क्या क्या संभव होगा
    सिर्फ इतना कहती हूँ , मेरे बच्चों, के जो भी होगा,
    वह, तुम्हारे लिए, खुशियों की सौगातें लेकर आयेगा '

    कितनी प्यारी बात कही है किसी अनाम माँ ने .........

    हर मां यही कहती है ...हर युग में ...काल में ...

    विश्वा के संपादन के लिए बहुत बधाई और शुभकामनायें ...

    आपके ब्लॉग पर एक साथ इतना मसाला होता है ... कई दिनों की खुराक मिल जाती है ...

    ReplyDelete
  28. विश्वा के संपादन के लिए बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete