Monday, September 29, 2008

माता स्वरूप देवी की महिमा

सती
नवरात्र : गरबा व दाँडिया नृत्य के लिये अब देस -विदेस मेँ प्रख्यात है
माता पार्वती , उमा , महेश्वरी, दुर्गा , कालिका, शिवा , महिसासुरमर्दिनी , सती , कात्यायनी, अम्बिका, भवानी, अम्बा , गौरी , कल्याणी, विंध्यवासिनी, चामुन्डी,
वाराही , भैरवी, काली, ज्वालामुखी, बगलामुखी, धूम्रेश्वरी, वैष्णोदेवी ,
जगधात्री, जगदम्बिके, श्री, जगन्मयी, परमेश्वरी, त्रिपुरसुन्दरी ,जगात्सारा, जगादान्द्कारिणी, जगाद्विघंदासिनी ,भावंता, साध्वी, दुख्दारिद्र्य्नाशिनी,
चतुर्वर्ग्प्रदा, विधात्री, पुर्णेँदुवदना, निलावाणी, पार्वती ,
सर्वमँगला,सर्वसम्पत्प्रदा,शिवपूज्या,शिवप्रिता, सर्वविध्यामयी,कोमलाँगी,विधात्री,नीलमेघवर्णा,विप्रचित्ता,मदोन्मत्ता,मातँगी
देवी खडगहस्ता, भयँकरी,पद्`मा, कालरात्रि, शिवरुपिणी, स्वधा, स्वाहा, शारदेन्दुसुमनप्रभा, शरद्`ज्योत्सना, मुक्त्केशी, नँदा, गायत्री , सावित्री,
लक्ष्मीअलँकार सँयुक्ता, व्याघ्रचर्मावृत्ता, मध्या, महापरा,
पवित्रा, परमा, महामाया, महोदया
इत्यादी देवी भगवती के कई नाम हैँ
समस्त भारत मेँ देवी के शक्ति पीठ हैँ
१) कामरूप पीठ
२) काशिका पीठ
३) नैपल्पिथ
४) रौद्र -पर्वत
५) कश्मीर पीठ
६) कान्यकुब्ज पीठ
७) पूर्णागिरी पीठ
८) अर्बुदाचल पीठ
९) अमृत केश्वर पीठ
१०) कैलास पीठ
११) शिव पीठ
१२ ) केदार पीठ
१३ ) भृगु पीठ
१४ ) कामकोटी पीठ
१५ ) चंद्रपुर पीठ
१६ ) ज्वालामुखी
१७ ) उज्जयिनी पीठ इत्यादी
और हर प्राँत मेँ देवी के विविध स्वरुप की पूजा होती है और कई शहर देवी के स्वरुप की आराधना के केन्द्र हैँ।
शाक्त पूजा की अधिष्ठात्री दुर्गा देवी पूरे बँगाल की आराध्या
काली कलकत्ते वाली " काली " भी हैँ और गुजरात की अँबा माँ भी हैँ
पँजाब की जालन्धरी देवी भी वही हैँ
तो विन्ध्य गुफा की विन्ध्यवासिनी भी वही
माता रानी हैँ जो जम्मू मेँ वैष्णोदेवी कहलातीँ हैँ
और त्रिकुट पर्बत पर माँ का डेरा है ॥
आसाम मेँ ताँत्रिक पूजन मेँ कामाख्या मँदिर बेजोड है ॥
तो दक्षिण मेँ वे कामाक्षी के मँदिर मेँ विराजमान हैँ
और चामुण्डी परबत पर भी वही हैँ शैलपुत्री के रुप मेँ
वे पर्बताधिराज हिमालय की पुत्री पारबती कहलातीँ हैँ
तो भारत के शिखर से पग नखतक आकर,
कन्याकुमारी की कन्या के रुप मेँ भी वही पूजी जातीँ हैँ ॥
महाराष्ट्र की गणपति की मैया गौरी भी वही हैँ
और गुजरात के गरबे और रास के नृत्य ९ दिवस और रात्रि को
माताम्बिके का आह्वान करते हैँ ..
शिवाजी की वीर भवानी रण मेँ युध्ध विजय दीलवानेवाली वही हैँ --
गुजरात में, माँ खोडीयार स्वरूप से माता पूजी जातीं हैं ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते !!
**********************
या देवी सर्वभूतेषु
मातृ रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै
नमो नमः
***************
दुर्गा - पूजा
सजा आरती सात सुहागिन , तेरे दर्शन को आतीं ,
माता तेरी पूजा , अर्चना कर , भक्ति निर्मल पातीं !
दीपक , कुम कुम, अक्षत ले कर , तेरी महिमा गातीं
माँ दुर्गा तेरे दरसन कर के , वर , सुहाग का पातीं !
वह तेरी महिमा शीश नवां के गातीं !
हाथ जुडा के बाल नवातीँ, धीरे से हैं गातीं ,
" माँ ! मेरा बालक भी तेरा " ~~~
ऐसा , तुझको हैं समझातीँ
फ़िर फ़िर तेरी महिमा गातीं ~~
तेरी रचना , भू -मंडल है ऐसे गीत गरबे में गातीं....
माता ! तुझसे कितनी सौगातें , भीख मांग ले जातीं !!
माँ ! सजा आरती , सात सुहागिन ,तेरे दर्शन को आतीं
मन्दिर जा कर , शीश नवा कर ,ये तेरी महिमा गातीं
- लावण्या

Saturday, September 27, 2008

आ इए...स्वर साम्राज्ञी, सुश्री लता मंगेशकर जी , दीदी को साल गिरह की बधाई दें, (चित्रमय झांकी)

दीदी के घर का मुख्य कमरा जहाँ अकसर अतिथियों का स्वागत होता है ~~ परदों के आगे एक लम्बी बेल्कनी है ..जहा मुम्बई शहर का मुख्य रास्ता अपार वाहनों की भीड़ से भरा , शोर करता सदा अति व्यस्त रहता है ...भीतर, कई मुलाकाती , इंतज़ार करते हैं , एक झलक पाने के लिए एक महिला की , जो यूँ , तो बेहद शर्मीली हैं पर हैं एक बहुत बड़ी हस्ती !! जो अकसर , सुफेद साडी में ही दीखाई देतीं हैं !
सादगी भरा रूप लिए ये " भारत - रत्न " कहलानेवाली , महिला , गरिमापूर्ण जीवन जीते हुए २८ सितम्बर के दिन अपनी उमर के ७९ वर्ष पुरे करेंगीं !
ईश्वर, उन्हें स्वस्थ और सदा प्रसन्न रखें यही कामना है ...
उनसे यही कहती हूँ, " शतं जीवेंन ` शरद : दीदी " : साल गिरह मुबारक हो ! "

अमेरीकी भूतपूर्व राष्ट्रपति श्रीमान बिल क्लिंटन तथा सीनेटर हिलैरी क्लिंटन के साथ अपनी एक परदेस यात्रा के दौरान दीदी की तस्वीर :

और नीचे , दीदी सन्मान की ट्राफी थामे मुस्कुरातीं हुईं दीखाई दे रहीं हैं ..लम्बी लम्बी, घुटनों से भी आगे जातीं २ चोटियाँ , साडी के पल्लू ढँकी हुईं , माथे पे बिंदिया, हाथों में हीरों के कंगन, कानों में हीरों के टोप्स , हीरे की अंगूठी, ज़रीदार जामुनी बॉर्डर लिए, श्वेत चंदेरी साडी धारण किए हुए दीदी , जब भी दीखलाई देतीं हैं तब तब लगता है मानो दीदी इस उम्र में भी भारतीयता की जीती जागती मिसाल ही आपके सामने हाज़िर हो गयी हो !!

वे ऐसी ही भली लगतीं हैं ! और आपको फोटो से पता नही चलेगा पर दीदी को इतर का बेहद शौक है, और उनका सबसे प्रिय इतर है, " पेरिस " जिसे " इसा लारान " कम्पनी , फ्रांस में बनाती है ..शायद यही एक दीदी का निजी शौक है ..और हॉबी में फोटोग्राफी , कभी कभार एकदम लज़ीज़ रवे का सीरा या खीर बना लेना :) , घूमना , प्रकृति प्रेम और श्रेष्ठ साहित्य , संगीत, चित्रकला रंगमंच के लिए आदर व अनुराग , सही और खरा खरा बोलना, हर अच्छे और सच्चे इंसान के लिए आदर भाव रखना , स्वाभिमान और अपने हक्कों की इज्जत करना , जिसके कारण दीदी ने , महिला गायिकाओं को पुरूष प्रधान , फ़िल्म इंडस्ट्री में , अपनी अलग पहचान बनाने की लड़ाई में , ऊंचा मकाम दिलवाया और स्पष्टवक्ता होने से , कईयों को उनकी कही किसी बात का बुरा भी लगा होगा !!

पर आज इसी से दीदी को लोग "स्वयं` सिध्धा " नारियों की श्रेणी में , स्वाभिमान से खडा हुआ देखते हैं। भारत को ही नही पूरे मानव समुदाय को प्रेरणा मिले ऐसी दीदी की जीवन यात्रा रही है -

- आज दीदी जो भी हैं, ख़ुद के बलबूते पर हैं, कड़ी मेहनत से हर मुश्किल का सामना करते हुए, आज भी दीदी अपने भारत से असीम प्रेम करतीं हैं और अपने भरे पूरे परिवार के बीच , उन्हें मार्गदर्शन और प्यार देते हुए, समस्त गतिविधियों पर पैनी नज़र रखे हुए हैं। समाज की हर बदलती हुई बात का उन्हें पता रहता है।

दीदी के स्वर्गवासी पिताजी मास्टर दीनानाथ मंगेशकर जी ने अपनी सबसे बड़ी बिटिया को संगीत का जो नन्हा बिरवा , सौंपा था आज उस अमर बेली की शाखाएं , पुरे विश्व में , फ़ैली हुई हैं ...
दीदी का स्वर कोई ऐसा द्वीप या भूखंड नही है जहाँ , सुनाई ना देती हो ```
जहाँ कहीं एक भी भारतीय रहता होगा, वहाँ एक नन्हा भारतीय दिल धड़कता होगा और उस दिल में से लता दीदी की आवाज़ गूंजती होगी .....
" वंदे मातरम` ....सुजलाम सुफलाम् मलयज शीतलाम , शस्य श्यामला मातरम` ...वंदे ....मातरम` " ( फ़िल्म: आनंद मठ , कवि : श्री बंकिमचन्द्र जी )
http://www.youtube.com/watch?v=xj1Iy4nRMkc

http://www.youtube.com/watch?v=wMeB56ExX1Y&feature=related

http://www.youtube.com/watch?v=NCMy3a1BgGk&feature=related

http://www.youtube.com/watch?v=FxRpmgqtcaM&feature=related

हेमा मालिनी जैसी सुँदर सिने तारिकाओं की खूबसूरत आवाज़ है हमारी दीदी : ~

~ सुनिए, दीदी ने कहा भी था हेमा जी के लिए एक बार के इस लड़की की आत्मा पवित्र है ! और ये संगीत निर्देशक श्री अनिल बिस्वास जी पर लिखा दीदी का श्रध्धांजलि संदेश है - क्लीक करें --

और दीदी अपनी बहने उषाजी , मीना खाडिलकर के साथ बहुत खुश हैं -- ये दीदी का हस्त लिखित पात्र है जो मेरी प्रथम काव्य पुस्तक , " फ़िर गा उठा प्रवासी " का आशीर्वाद रुपी , पहला पन्ना बना हुआ मुझे स्नेह देता रहता है .....
१ तस्वीर : आज भी यादों को आबाद किए हुए , सुरों की कोकीला के लिए , मेरे ह्रदय से सदा ही , प्रेम की गंगा बहाती , बहती रहती है ....जब जब बीते हुए लम्हों को जीती हूँ ...आपकी आवाज़ को सदा अपने पास पाती हूँ .....
एक किशोर अवस्था का श्वेत श्याम चित्र जो आज भी मेरे पास सुरक्षित है --

क्या इस कन्या के मन में आशाएं ना होंगीं ? दूसरों की तरह, एक भरीपूरी जिंदगी जीने की ? पर दीदी का बड़प्पन यही है , जो उनके आराध्य श्री कृष्ण जी ने दिया, उसे मस्तक से लगाया और ईश्वर कृपा मानकर, अपनी जिम्मेदारियों को हंसी खुशी निभाया।

मानवता का यही सच्चा धरम है ...यही परिभाषा है सम्पूर्ण मनुष्य जीवन की।

स्त्री हो या पुरूष, अपने जीवन को , उसूलों के साथ जीते हुए, जो जीवन संग्राम में लड़ते हुए जीत जाता है विजय श्री का तिलक उसी के भाल पर दमकता हुआ , समस्त संसार को दीखलाई पड़ता है !


जुग जुग जियो , मेरी लाडली बड़ी दीदी !

आप सदा स्वस्थ व खुश रहें और मनमोहक गीतों से सृष्टि को संवारतीं रहें .................................बहुत बधाई हो !
आपकी बहन लावण्या के चरण स्पर्श !

Thursday, September 25, 2008

μ - पोस्ट!



माइक्रो पोस्ट !!
ज्ञान जी के " मानसिक हलचल " पर देखा और ये बहुत बढ़िया लगा ..चलिए ..

" ॐ !! "
( इत्ता ही आज ॥ ;-) ये पूर्ण शब्द है और ब्रह्म भी है !!

Tuesday, September 23, 2008

सिकाडा क्या है ?

सिकाडा क्या है ? ~~ लैटिन शब्द " सिकाडा " से ही इस नाम की उत्पति हुई है !
प्राचीन रोम मेँ इनकी बहुत भारी संख्या थी -
जापान में इन्हे "सेमी " कहते हैं ! और फ्रांस में इन्हे "सिगले ' कहते हैं जबकि , स्पेन में उन्हें " सिगरा " कहते हैं !
उत्तर अमरीका में १०० प्रकार के सिकाडा पाये जाते हैं और विश्वभर में करीब २००० जितनी प्रजाति सिकाडा की देखी गयी है ।-
पोम्पोनीया इम्प्रोटोरीया सबसे विशाल आकार के सिकाडा हैं जो मलेशिया में पाये जाते हैं ! - ये प्रायः सभी भूखंड पर पाये जाते हैं सिवाय एक , अँटार्टीका के !!
टीबीकन वाल्कारी प्रजाति के सिकाडा सबसे ज्यादा शोर मचाते , १०८.० डेसीबल तक इनकी आवाज़ उठती है और उनकी बोली सबसे ज्यादा तीव्र होती है ऐसा फ्लोरीडा की जीव जँतु शाखा अध्ययन विभाग का कहना है ~~
ऑडियो Magicicada Audio
An MP3 sound file of the emergence in Princeton (1।5MB, MP3). Cicadas for your iPod!


अमरीका में मेगी टीबीकन सिकाडा प्रजाति वार्षिक और १३ या १७ वर्ष में , उत्पन्न होती हुई पाई जाती है - जिनकी संख्या लाखों की तादाद में होती है और पहले नवजात जन्मे सिकाडा सुफेद रंग के होते हैं , पेड़ से धरा पर गिरने के बाद वे पेड़ की जड़ से पोषण पाते हैं -
अगर जड़ मिल जाए तब सिकाडा १, २, या १३ , १७ साल तक दबे रहते हैं और सुशुप्त अवस्था में जीते हैं ! जागृत अवस्था में , दुबारा ग्रीश काल में बाहर आए सिकाडा को निम्फ कहते हैं ।
पहले नाज़ुक पर लिए उनकी देह शीघ्र ही कड़ी हो जाती है -
जिसके बाद पुनः एक बार , उनका जीवन चक्र , आरम्भ होता है ।
जिंदगी का नृत्य फ़िर शुरू हो जाता है !

ग्रीक कविता आनार्क्रोनीता में इस के लिए लिखा गया की,
" तुम हर मनुष्य को ग्रीष्म के दूत प्रतीत होते हो, अपनी मीठी तान से , जन जन को सम्मोहित करते हो , हमें तुम्हारी पहचान है , हर कवि और दिव्य देवता अपोलो भी तुम्हे चाहते हैं "

थ्युकायडीडीस जो खुद पुरातन ऐथेन्स गणराज्य का नागरिक था उसने प्लेटो से कई पीढियाँ पहले , सिकाडा के गुण गाते हुए कहा था कि,
" मेरे देशवासी सिकाडा की प्रतिकृति के आकार के स्वृणाभूषण बनवाकर अपने सुनहरे केशोँ मेँ सजा कर शोभा वृध्धि कर अपने आप को धन्य मानते थे ! "

सिकाडा , मनुष्य को काटते नही , ना डंख देते हैं इसलिएउन्हें अन्य
कीट पतंग या जंतु की तरह , तंग करनेवाले या बहुत परेशानी वाली बात ,
नही समझा जाता !

आइये, मिसिज सिकाडा से मिलें :) ~
~ ये अपने जीवन काल में ४०० से ६०० अंडे देती हैं !
और हाँ ये बेहद शर्मीली भी हैं ! आप सोचेंगें , ये भला , कैसे ?
तब , सुनिए , जनाब, ये हर १७ वर्ष में एक बार ही, अपना जीवन जीती हैं !
ख़ास तौर से इनकी प्रजाति जिसका नाम हैं
मेगी सिकाडा !!
ये वर्ग क्ष या X , या समयचक्र आधीन सिकाडा की श्रेणी में हैं
और कई हर १३, या १७ साल में जीवित होतीं हैं !
अब मिलते हैं सिकाडा महाशय से !
सिकाडा नर , उनके पेट पर ड्रम जैसा आकार होता है उसीसे जो ध्वनि उत्पन्न करते हैं उससे उन्हें पहचाना जाता है।
ये ३ प्रकार की बोली बोलते हैं
१ ) डर से चेतावनी देती आवाज़,
२ ) दूसरे नर सिकाडा बंधुओं को हेल्लो कहनेवाली आवाज़ और
३ ) सुंदर मादा या होनेवाली मिसिज सिकाडा जी को लोभाने की कोशिश में , मधुर पुकार !!

अब ये गीत अगर , नारी सिकाडा जी को भा गया तब वे , बड़ी अदा से , नजाकत से अपने पंख झपकातीँ हैं ठीक उसी वक्त जब, पुरूष सिकाडा जी का गीत समाप्त होता है !
और ये दोस्ती का संदेश मिलते ही, मिस्टर नर सिकाडा आ पहुँचते हैं !
और गीत सुहाग रात तक जारी रहता है ~~
ना ना आप मुस्कुराइए नहीं ! :)
बेचारे वर की दशा आगे क्या होती है वो भी सुन लीजिये ...
सुहाग रात का अंत, बेचारे मिस्टर सिकाडा जी की मौत से होती है ! :-((
अब बेचारी , मिसिज़ सिकाडा जी, पेड़ की पतली दुबली टहनी खोजकर , अपने नवजात शिशु, अंडे , वहीं पर , एक छिद्र बनाकर रख देतीं हैं !
पेड़ से रिस्ता द्रव्य , नवजात अंडे से शिशु बनते सिकाडा को पोषण देता है --
और वे भी चल देतीं हैं अपने बिछुडे प्राण प्रिय पतिदेव से मिलने स्वर्ग लोक में !
दोनों प्रेमी युगल मौत को गले लगाते हैं !
है ना असली लैला मजनू,शिरी फरहाद और रोमियो जूलियट वाली प्रेम कहानी !!
प्राचीन ग्रीस, चीन, मलेशिया, बर्मा, लैटिन अमरीका और कोंगों में लोग इन सिकाडा को खाते भी हैं ! :-(
चीन में सिकाडा से दवाई भी बनाई जाती है - क्लीक करें --
Ancient Greece, China, Malaysia, Burma, Latin America , Congo
सिकाडा से फलों की पैदावार बहुत अच्छी होती है - जमीन से उनका बाहर आना, जमीन के लिए बहुत लाभकारी है - और उनकी देह से बहुत ज्यादा मात्रा में , नायट्रोजन जमीन में पहुँच कर असीम गुणवत्ता वाला खाद , नैसर्गिक क्रिया से पहुंचाने का काम करता है ।

आशा है ये प्राकृतिक जीव से मिलकर आपको भी खुशी हुई होगी ~~
श्री अशोक पांडे जी आप को खेती बाडी से जुडी जानकारी रहती है , शायद भारत में भी आपने सिकाडा की प्रजाति को देखा हो !

मेरे शहर में , ४ जुलाई तक , सिकाडा लाखों की तादाद में दीखाई देते हैं और फ़िर , समर का इंतज़ार रहता है अगले साल फ़िर सिकाडा की आवाज़ , निरंतर आती रहती है और बता जाती है की लो जी , गर्मियां लौट आईं हैं !!
सिकाडा की आवाज़ से अच्छे फल प्राप्ति की आशा बांधती है और साथ ही , इस प्रकृति की गोद में हर जीव का एक निश्चित स्थान है , महिमा है,
उसका भान होता है -

मनुष्य अकेला नही है इस धरा पर !

हम कई तरह के जीव हैं, और हमारे धर्म ने हरेक जीवित प्राणी की अवस्था से ऊपर उठ कर , मनुष्य शरीर प्राप्ति को , देखा है और कहा है , " जब मनुष्य देह मिले, अपना जीवन, उत्सर्ग पर ले जाओ ...ये देह , मुश्किल से मिलती है , उसे , व्यर्थ में ही, जाया ना करो ....चौरासी लाख के फेरे के बाद ही मुक्ति है !

जानकारी , थोड़ी और भी यहाँ है सिकाडा के बारे में : ~~~

http://www.cicadamania.com/cicadas/2008/06/07/the-indian-hill-ladies-cicada-society/
.“Locusts”
Cicadas belong to the order Hemiptera, suborder Homoptera and family Cicadidae। Leafhoppers, spittle bugs and jumping plant lice are close relatives of the cicada। Hemiptera are different from other insects in that both the nymph and adult forms have a beak, which they use to suck fluids called xylem from plants. This is how they both eat and drink....

Sunday, September 21, 2008

आज २२ सितम्बर है और् सँजय भाई की सालगिरह है!

हेप्पी बर्थ डे...टू....यू .... हेप्पी बर्थ डे...टू....यू .... हेप्पी बर्थ डे...संजय भाई .... हेप्पी बर्थ डे...टू....यू .... आज संजय भाई को सालगिरह पर , बहुत बहुत बधाई !! :)

जोग लिखी संजय पटेल की / श्रोता बिरादरी और http://surpeti.blogspot.com/ के सर्जक हैं वे !
और संजय भाई सुपुत्र हैं , आदरणीय श्री नरहरि पटेल जी के !!
जिनका जाल घर है , मालवी जाजम......बोलोगा तो बचेगी मालवी
जो कहते हैं , ( बहुत विनम्रता से ) ,
( नरहरी जी के शब्द )
" मालवा की सरज़मीन का एक साधारण बाशिंदा जिसे अपने मालवा से बेहद मोहब्बत है , मालवी लोक संस्कृति, संगीत, काव्य के साथ प्रसारण, रंगमंच, लेखन और सामाजिक हलचलों से जुडा हूं " ...सच ये है दोस्तों ,
एक असाधारण कला प्रेमी .......सज्जन पिताजी की संतान हैं संजय भाई !

आहा.... कुश भाई ने , कॉफी विद कुश वाले ही , जी हाँ और "कुश की कलम", नेस्बी , के रचियता , उन्होँने अपनी, बढिया कोफी भी भेजी है .. है ना खुशबु , असल कोलंबियन कोफी की ? और उपर ढेर सारा झाग ...आहा !

ये लीजिये...फरारी कार के आकार की चोकलेट भी आ गयी !! :-))
शुध्ध शाकाहारी, केले के पत्ते पे सजा सुस्वादु भोजन भी तैयार है !!

आहा !! क्या कहने ...... छप्पन भोग हाज़िर हैं !! फरसान , मिष्ठान , चटनी, पापड, अचार, रायता, दाल, सब्जी , पूडी , श्रीखंड सभी है !! ॥

दावत में आप सभी शामिल हो जाइए और जोर से कहीये,
" आप जियो , हजारों साल, ओ संजय भाई और साल के दिन हों पचास हज़ार ..."
संजय भाई , आप मुझे आपकी बड़ी बहन कह कर बुलाते हैं !
आपका स्नेह , कुबूल करते हुए, आपकी " मोटी बेन " ( बड़ी बहन )
आपको अनेकों शुभकामनाएं और आशीर्वाद भेज रही है ॥
आज २२ सितम्बर के दिन, "लावण्यम` ~~ अंतर्मन` " जाल घर पर ,
आपकी सालगिरह का उत्सव है !!
~~ आप सभी , को सपरीवार, निमंत्रण है !! ..... आ रहे हैं ना आप सब ? :)
Enjoy the Celebrations Folks !!
& listen to these Ever green song ~~~
http://www।youtube.com/watch?v=L4dCwRVWjKc&feature=related
http://www.youtube.com/watch?v=LuHBt5FPedA
- लावण्या

Friday, September 19, 2008

संगीत कल्पतरु : স্বামী বিবেকানন্দ, Shami Bibekānondo

वीणावादिनी माँ सरस्वती संगीत कल्पतरु स्वामी विवेकानंद जी
स्वामी जी
( Sand storm ) please click

आज हम याद कर रहे हैं भारत के वीर संत और महापुरुष विवेकानंद जी को !

३९ वर्ष के अल्प जीवन काल में जो उन्होंने पाया उससे कहीं अधिक समस्त मानव समाज के लिए मुक्त हस्त से वितरित करनेवाले स्वामी विवेकान्द जी का जीवन काल रहा १८६३ से १९०२ तक !

स्वामी जी के जीवन के कई महत्वपूर्ण मकाम और उनकी उपलब्धियां , जग विख्यात हैं - जैसे , शिकागो शेहेर में उनका दिया संभाषण :

प्रस्तुत हैं उन्हींके शब्द :

" Sisters and Brothers of America,
It fills my heart with joy unspeakable to rise in response to the warm and cordial welcome which you have given us। I thank you in the name of the most ancient order of monks in the world; I thank you in the name of the mother of religions, and I thank you in the name of millions and millions of Hindu people of all classes and sects।
My thanks, also, to some of the speakers on this platform who, referring to the delegates from the Orient, have told you that these men from far-off nations may well claim the honor of bearing to different lands the idea of toleration! I am proud to belong to a religion which has taught the world both tolerance and universal acceptance। We believe not only in universal toleration, but we accept all religions as true। I am proud to belong to a nation which has sheltered the persecuted and the refugees of all religions and all nations of the earth। I am proud to tell you that we have gathered in our bosom the purest remnant of the Israelites, who came to Southern India and took refuge with us in the very year in which their holy temple was shattered to pieces by Roman tyranny। I am proud to belong to the religion which has sheltered and is still fostering the remnant of the grand Zoroastrian nation। I will quote to you, brethren, a few lines from a hymn which I remember to have repeated from my earliest boyhood, which is every day repeated by millions of human beings: ॥

"As the different streams having their sources in different paths which men take through different tendencies, various though they appear, crooked or straight, all lead to Thee।"

" आकाशत्पतितम्` तोयम्` यथा गछ्छति सागरम्` ,

सर्वदेव नमस्कार्, केशवम्` प्रति गच्छति "

( ये श्लोक, मेरे नित्य पाठ का एक भाग है :)

The present convention, which is one of the most august assemblies ever held, is in itself a vindication, a declaration to the world of the wonderful doctrine preached in the Gita: "Whosoever comes to Me, through whatsoever form, I reach him; all men are struggling through paths which in the end lead to me." Sectarianism, bigotry, and its horrible descendant, fanaticism, have long possessed this beautiful earth। They have filled the earth with violence, drenched it often and often with human blood, destroyed civilization and sent whole nations to despair. Had it not been for these horrible demons, human society would be far more advanced than it is now. But their time is come; and I fervently hope that the bell that tolled this morning in honor of this convention may be the death-knell of all fanaticism, of all persecutions with the sword or with the pen, and of all uncharitable feelings between persons wending their way to the same goal."

..श्री .प्रकाश जी बरडे अपनी शोधके दौरान स्वामी विवेकानंद जी के बारे में तथ्य इकट्ठा कर रहे थे । पण्डित रामकृष्ण बुआ वजे ( १८५८ - १९४३ ) जो ग्वालियर घराने के महान गायक हैं उनके बारे में , सामग्री एकत्रित करते समय विवेकानद जी के बारे में भी ये बातें प्रकाश में आयीं !

स्वामी विवेकानंद जी का मूल नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था । उनकी छोटी सी पर अत्यन्त उज्जवल जीवनी में संगीत प्रेम व संगीत के प्रति लगन को कई बार अनदेखा या कम महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है।

विवेकानंद जी कहते हैं कि, " उनकी नज़रों में संगीत कला का सर्वोच्च पद है और जो संगीत साधना करते हैं वह सबसे उत्तम आराधना है।"

नरेन्द्र नाथ दत्त को कला व संगीत के प्रति प्रेम विरासत में प्राप्त हुआ था।

पिताश्री विश्वनाथ दत्त से उन्हें ध्रुपद व धमार जो भारत संगीत प्रणाली का पुराना अंग है उसका शिक्षण प्राप्त हुआ था और उनकी माताजी भुवनेश्वरी देवी जी से " कृष्ण - लीला " जैसे लोक संगीत का ज्ञान प्राप्त हुआ जिसमें अकसर, बाल गोपाल की लीला का गान हुआ करता था।
विवेकानंद जी के समकालीन रहे स्वामी अभेदानंद जी व श्यामानंद जी का कहना है कि , नरेन्द्र नाथ जी को बेनी गुप्ता जी से , अहमद खान साहब से और बड़े धुन्नी खान साहब से भी तालीम हासिल हुई थी।

धरती से समांतर पकड कर , बजाई जानेवाली पखवाज बजाना भी नरेन्द्र नाथ जी ने सीखा था इसे वे, धरती पर बैठ कर बजाते थे और २० वर्ष कि आयु तक आते आते, वे ध्रुपद गायकी में महारत हासिल कर चुके थे। उनके पखवाज वादन को काफी लोकप्रियता प्राप्त थी और कोलकता के संगीत जलसों में उनकी पूछ थी - विवेकानंद जी वक्तृत्व कौशल में पारंगत थे ही साथ साथ , नाट्य कला में भी कुशल थे।

श्री त्रिलोक नाथ सान्याल जी के लिखे नाटक , " नव - वृन्दावन " में , स्वामी अभेदानंद जी का पात्र बखूबी निभाते हुए उन्होंने भगवे , सन्यासी के वस्त्र धारण किए थे शायद ये , आगामी परिस्थितीयों की अग्रिम सूचना ही बने क्यूंकि इस नाटिका में संन्यासी का पात्र निभाते हुए नरेन्द्र नाथ को उनके भविष्य को संवारने वाले, पवित्रात्मा और विलक्षण संत श्री रामकृष्ण परमहंस जी ने , देख लिया था ...भविष्य में नरेंद्र नाथ ने स्वामी जी से , दीक्षा ली और नरेंद्र नाथ से स्वामी विवेकानंद में रूपांतरित हो गए...ये कथा भी रोमांचक और बेहद आकर्षक है।

स्वामी विवेकानद के लिए भगवा वस्त्र और वैराग्य , स्वामी ठाकुर की कृपा से ही आया था !

नरेन्द्र नाथ दत्त शिमला पल्ली दत्त पारा , में रहते थे जो पूर्व और पश्चिम की मिलीजुली संस्कृति अपनाए हुए , घर परिवारों से आबाद हुआ कलकता शहर का , प्रसिध्ध इलाका था। इस इलाके से थोड़ी दूरी पर , टेगोर पारा था जहाँ बंगाल के यशस्वी पुत्र , कविवर रवींद्र नाथ टेगोर रहते थे जिनके अगणित गीत , कलकता के घर घर में गाये जाते थे। उन्हीं का एक गीत , " गगनेर थाले " राग जयजयवंती में ( जो रात्रि का राग हैं) , ढला हुआ श्री नरेंद्र नाथ ने संगीत बध्ध किया था अविस्मरणीय बना उनकी संगीत प्रतिभा को शाश्वत कर गया -

रबिन्द्र नाथ टगोर , स्वयं दक्ष सतीत नियोजक थे "रबिन्द्र संगीत " की नई विधा कविवर रविन्द्र नाथ की देन हैं जो दक्षिण भारतीय , कर्नाटकी संगीत, पाश्चात्य संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत का मिला जुला स्वरूप और आज भी सुगम बांग्ला संगीत की तरह प्रसिध्ध है जिसका आज देश विदेश में प्रचलन है ।

पण्डित रामकृष्ण बुआ वजे , स्वामी विवेकानंद जी के बरेली आश्रम में अपनी नेपाल यात्रा के बाद रुके थे। वजे जी, स्वामीजी के अतिथि थे ... रोज़ संध्या समय दोनों , एक साथ गायन करते और वहाँ उपस्थित सभी को स्वर्गीय आनंद मिलता था ।

स्वामीजी प्रात काल अपने दोनों तानपुरों को मिलाते और अहीर भैरव की रागिनी ख़ास तौर से मियाँ तानसेन की बनाई ध्रुपद बंदिश बजाकर , आश्रम्वासीयों को जगाते ! ये पण्डित रामकृष्ण बुआ वजे जी ने उनकी पुस्तक संगीत कला पक्ष में अपने अविस्मरनीय अनुभव दर्ज कीये हुए हैं।

१८७९ , नरेन्द्र ने Presidency College, Calcutta / ( click to read )
प्रेसीडँसी कॉलेज ,कलकत्ता , में , दाखिला लिया
१ साल बाद , आध्यात्म विषय सीखने के लिए नरेंद्र Scottish Church College, Calcutta से जुड़े जिसके प्रिंसिपल साहब रेवरंड वीलीयम हेस्टी ने नरेंद्र के प्रश्न पूछने पर कि, " क्या आपने भगवान् / ईश्वर को देखा हैं ? " ये कहा कि, " इसका उत्तर देनेवाले स्वामी रामकृष्ण परमहंस हैँ ! दक्षिणेश्वर , काली मन्दिर जा कर उन्हींसे पूछो !"
स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी से नरेंद्र नाथ दत्त की मुलाक़ात ने , नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बना दिया जिसकी कथा अद्भुत और विलक्षण है जिसे सुनकर , किसी भी अविश्वासी का ईश्वर में दृढ विश्वास हो जाए !
परन्तु, इस बदलाव के सामने , विवेकानंदजी के
संगीत अनुदान को गौण बना दिया है पूरे विश्व ने !
स्वामी विवेकानन्द जी पर गीत सुनिये :
और
गिरे हुए मानव समुदाय को , फ़िर उठाना, सनातन धर्म को पुनः प्रतिष्ठित करना और विदेश में , योग एवं धर्म को नई पहचान देकर स्थापित करना ये सारे अतिमहत्त्वपूर्ण कार्य , स्वामीजी ने किए हैं और २० वर्ष की उमर में " संगीत कल्पतरु " नामक किताब भी उन्होंने लिखी थी । प्रकाशक श्री बैष्णव चरण जी ने प्रथम मुद्रण के समय लिखा हुआ लेखक का नाम " नरेन्द्र नाथ दत्त" आगामी संस्करणों से , चुपचाप हटा दिया है ! नए संशोधित पुस्तक का नाम, " सचित्र विश्व संगीत " प्रकाशक ने अपने नाम से छपवाया ! शायद , नरेन्द्र नाथ के आग्रह पे , ही ये किया गया हो जो , सीमित व्यक्तित्व को बहुत पीछे छोड़ कर , समस्त मानव समाज के हो चुके थे और एक प्रतिभा संपन्न नवयुवक से , महायोगी स्वामी विवेकानंद में परिवर्तित हो कर, परम पद को प्राप्त हो गए थे !
विवेकानंद जी ने श्री रामाकृष्ण मिशन व मठ की स्थापना की !
जिसका मूल मन्त्र है :
आत्मनॊ मोक्षार्थम् जगद्धिताय च
" विश्व का उद्धार व आत्मा की मुक्ति "
( उपरोक्त जानकारी अंग्रेजी में थी जिसे आज हिन्दी भाषा में अनुदित करते हुए ,
और आप सब के साथ साझा करते हुए , प्रसन्नता हो रही है -
- जो , श्री महेश वासवडा जी के सौजन्य से प्राप्त हुई है ।
वे अमरीका के डल्लास नगर में रहते हैं और भावनगर की स्कूल के भूतपूर्व अधिपति रहे हैं )
- लावण्या




Tuesday, September 16, 2008

प्रार्थना गीत

जय गणेश
याद आते हैं भारत के किसान और झूले पर मस्त स्त्रियाँ
हे ईश्वर , भारत को हमेशा हंसता मुस्कुराता रखना
अब सुनिए ये गीत - प्रार्थना के गीत ही हैं ये

जो समर में हो गए अमर
http://www.raaga.com/getclip.asp?id=999999098043
वंदे मातरम्
http://www.youtube.com/watch?v=TT7EhwHjmuc&feature=related
http://www.youtube.com/watch?v=RFnucgQn-ls&feature=related
बंग भूमि का भारत के प्रति नमन :
http://www.youtube.com/watch?v=0F-NpPehPlI&feature=related

Monday, September 15, 2008

कुदरत

ये कुदरत का नज़ारा है ॥
आसमान पर नीले , घने बादलों के बीच से , प्रकाश की किरण रंगीन बन कर इन्द्रधनुष रच देती है जिसके सात रंग मन को मोह लेते हैं। जामुनी, गुलाबी, नीला, हरा, पीला, केसरी, और लाल ये सात मुख्य रंग मिलकर इन्द्रधनुष कहलाता है ।
७ रंग, ७ सुर , दोनों की महिमा निराली है -
सा रे गा माँ प् ध नी सा ये सप्त सुर की सरगम हर राग रागिनी के उतार और विस्तार का आधार बन कर , गीत को मुखरित कराते हैं।
अब याद कीजिये, आपको कौन सा गीत सबसे ज्यादा पसंद है ?
हाँ हाँ, आप आराम से सोचिये, शायद कोई रूमानी गीत की तर्ज़ याद आ जाए, या कोई रूहानी संगीत की स्वर लहरी आपके दिल के तारों को झंकार रही हो .............शायद कोई भजन या आरती आपको याद आ रही हो ....कोई ग़ज़ल ...गुनगुना रही हो

दूसरा नज़ारा है विविध प्रकार के फूल : अनगिनती हैं फूलों के नाम , रूप रंग और आकार।
हरेक अपनी विविधता और सुन्दरता के बल पर गुलशन को सुहाना बनाने में अपना योगदान देता है -
सोचिये आपको कौन सा फूल सबसे अधिक पसंद है और क्यों ? --
किसी भी एक फूल के बारे में आप सोचेंगे और उसका नाम लेना चाहे पर तभी आपके मन में, दुसरा खूबसूरत फूल खिल कर मुस्कुराने लगेगा।
और कुदरत के साथ जुडी हुई एक और ज़िंदा चीज़ है - विविध प्रकार के प्राणी -- जैसे की मोर, अपने पंखों को खोल कर नाचता हुआ ...बरखा ऋतु में , इस की पुकार बेध कर आर - पार चली जाती है ऐसी विकलता होती है इस मूक प्राणी की --
आज , मैं, फूल, इन्द्रधनुष और मोर और गीत संगीत को क्यों याद कर रही हूँ ? बता दूँ ?
इस का कारण है, कि आज मैंने कई जाल घर देखे,
हर तरफ़, दुखद बातें पढ़ पढ़ कर सोच रही हूँ, क्या मानव जीवन में सुन्दरता, कोमलता क्या नष्ट हो गयी है ?
दुःख ही दुःख है ?
हर तरफ़ , विषाद और मायूसी छाई हुई है ..
.देहली में हुए बम विस्फोट की बातें पढ़कर मन अशांत है !
- क्या कारण है ऐसी क्रूरता का ?
ये कौन हैं जो मासूम बच्चों का खून बहाकर खुश होते हैं और ये साबित करते हैं के वे अपने धर्म का पालन कर रहे हैं ?
किसी भी धर्म के माननेवाले इतने राक्षस कैसे हो जाते हैं की गरीब, अनजान और स्त्री और बच्चों की मौत भी उन पर कोई असर नहीं करती ?
सुना है, कुदरत अपना हिसाब रखती है । व हर तरह के रिश्तों से उपर है खुदा की बनाई हुई ये कुदरत \
- चाँद तारे , सूरज, फूल पौधे, अनाज, नदी, परबत, आसमान , पंछी और जानवर
किसी मज़हब के नहीं उनसे परे हैं -- कुदरत भी आज सोच रही होगी ,
इंसान मेरे बस में नहीं रहा अब !
हे ....इंसानियत को भूलनेवाले इंसान,
अब तू , कुदरत के कहर से डर --------------------------
- लावण्या

Thursday, September 11, 2008

" महायोगी बाबा गोरख नाथ "


ना कोई बारू , ना कोई बँदर, चेत मछँदर,

आप तरावो आप समँदर, चेत मछँदर

निरखे तु वो तो है निँदर, चेत मछँदर चेत !

धूनी धाखे है अँदर, चेत मछँदर

कामरूपिणी देखे दुनिया देखे रूप अपार

सुपना जग लागे अति प्यारा चेत मछँदर !

सूने शिखर के आगे आगे शिखर आपनो,

छोड छटकते काल कँदर , चेत मछँदर !

साँस अरु उसाँस चला कर देखो आगे,

अहालक आया जगँदर, चेत मछँदर !

देख दीखावा, सब है, धूर की ढेरी,

ढलता सूरज, ढलता चँदा, चेत मछँदर !

चढो चाखडी, पवन पाँवडी,जय गिरनारी,

क्या है मेरु, क्या है मँदर, चेत मछँदर !

गोरख आया ! आँगन आँगन अलख जगाया, गोरख आया!

जागो हे जननी के जाये, गोरख आया !

भीतर आके धूम मचाया, गोरख आया !

आदशबाद मृदँग बजाया, गोरख आया !

जटाजूट जागी झटकाया, गोरख आया !

नजर सधी अरु, बिखरी माया, गोरख आया !

नाभि कँवरकी खुली पाँखुरी, धीरे, धीरे,

भोर भई, भैरव सूर गाया, गोरख आया !

एक घरी मेँ रुकी साँस ते अटक्य चरखो,

करम धरमकी सिमटी काया, गोरख आया !

गगन घटामेँ एक कडाको, बिजुरी हुलसी,

घिर आयी गिरनारी छाया, गोरख आया !

लगी लै, लैलीन हुए, सब खो गई खलकत,

बिन माँगे मुक्ताफल पाया, गोरख आया !

"बिनु गुरु पन्थ न पाईए भूलै से जो भेँट,

जोगी सिध्ध होइ तब, जब गोरख से हौँ भेँट!"

(-- पद्मावत )

बाबा गोरखनाथ महायोगी हैँ- !

८४ सिध्धोँ मेँ जिनकी गणना है, उनका जन्म सँभवत, विक्रमकी पहली शती मेँ या कि, ९वीँ या ११ वीँ शताब्दि मेँ माना जाता है। दर्शन के क्षेत्र मेँ वेद व्यास, वेदान्त रहस्य के उद्घाटन मेँ, आचार्य शँकर, योग के क्षेत्र मेँ पतँजलि तो गोरखनाथ ने हठयोग व सत्यमय शिव स्वरूप का बोध सिध्ध किया ।

कहा जाता है कि, मत्स्येन्द्रनाथ ने एक बार अवध देश मेँ एक गरीब ब्राह्मणी को पुत्र - प्राप्ति का आशिष दिया और भभूति दी !

जिसे उस स्त्री ने, गोबर के ढेरे मेँ छिपा दीया !--

१२ वर्ष बाद उसे आमँत्रित करके, एक तेज -पूर्ण बालक को गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने जीवन दान दीया और बालक का " गोरख नाथ " नाम रखा और उसे अपना शिष्य बानाया !

- आगे चलकर कुण्डलिनी शक्ति को शिव मेँ स्थापित करके, मन, वायु या बिन्दु मेँ से किसी एक को भी वश करने पर सिध्धियाँ मिलने लगतीँ हैँ यह गोरखनाथ ने साबित किया।

उन्होंने हठयोग से, ज्ञान, कर्म व भक्ति, यज्ञ, जप व तप के समन्वय से भारतीय अध्यात्मजीवनको समृध्ध किया।--

गोरखनाथ से ही राँझा ने, झेलम नदी के किनारे , योग की दीक्षा ली थी ।

झेलम नदी की मँझधार मेँ हीर व राँझा डूब कर अद्रश्य हो गये थे !

मेवाड के बापा रावल को गोरखनाथ ने एक तलवार भेँट की थी जिसके बल से ही जीत कर, चितौड राज्य की स्थापना हुई थी !

गोरखनाथ जी की लिखी हुइ पुस्तकेँ हैँ , गोरक्ष गीता, गोरक्ष सहस्त्र नाम, गोरक्ष कल्प, गोरक्ष~ सँहिता, ज्ञानामृतयोग, नाडीशास्त्र, प्रदीपिका, श्रीनाथसूस्त्र,हठयोग, योगमार्तण्ड, प्राणसाँकली, १५ तिथि, दयाबोध इत्यादी ---

गोरख वाणी :

" पवन ही जोग, पवन ही भोग,पवन इ हरै, छतीसौ रोग,

या पवन कोई जाणे भव्, सो आपे करता, आपे दैव!

" ग्यान सरीखा गिरु ना मिलिया, चित्त सरीखा चेला,

मन सरीखा मेलु ना मिलिया, ताथै, गोरख फिरै, अकेला !"

कायागढ भीतर नव लख खाई, दसवेँ द्वार अवधू ताली लाई !

कायागढ भीतर देव देहुरा कासी, सहज सुभाइ मिले अवनासी !

बदन्त गोरखनाथ सुणौ, नर लोइ, कायागढ जीतेगा बिरला नर कोई ! "

-- सँकलन कर्ता : लावण्या

Wednesday, September 10, 2008

आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?

जब प्रेमी युगल के गुंथे हुए कंकाल मिले थे ......
तब , उनके दीव्य प्रेम की झांकी हो गयी थी !
पुरातत्व विद भी विस्मय से स्तब्ध थे !
और खामोश थे इस प्रेम की परम अनुभूति को देख कर ...जैसे आज भी दुनिया भर के सैलानी , ताज महल को देख , बेगम मुमताज़ महल के लिए बनाए प्रेम के दीव्य स्मारक ताज को चांदनी रात में देखते हैं और महसूस करते हैं और
~~ बादशाह शाहजहान के विरह की गहराई को महसूस करते हैं
जो रीस रीस कर , पिघलता है संगमरमरी दीवारों से , किसी बिछुडे स्वजन की याद की तरह , लावा बना , आंसूओ में फिसलता , चाँदनी के साए में ढलता !
चाँद .................नज़र आता है, प्यार की इबादत में खामोश खडा , आज भी पुकारता हुआ ..उस प्रेमी युगल को .....
ऐसी ही मासूमियत , प्यार भरा समर्पण और वियोग की आतुरता महसूस कीजिये ............. इस कविता मेँ.........शब्द हैं ...
" आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे? "
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
आज से दो प्रेम योगी, अब वियोगी ही रहेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
सत्य हो यदि, कल्प की भी कल्पना कर, धीर बांधूँ,

किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लिये, यह योग साधूँ!
जानता हूँ, अब न हम तुम मिल सकेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
आयेगा मधुमास फिर भी, आयेगी श्यामल घटा घिर,
आँख भर कर देख लो अब, मैं न आऊँगा कभी फिर!
प्राण तन से बिछुड़ कर कैसे रहेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
अब न रोना, व्यर्थ होगा, हर घड़ी आँसू बहाना,
आज से अपने वियोगी, हृदय को हँसना सिखाना,
अब न हँसने के लिये, हम तुम मिलेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
आज से हम तुम गिनेंगे एक ही नभ के सितारे
दूर होंगे पर सदा को, ज्यों नदी के दो किनारे
सिन्धु तट भी न दो जो मिल सकेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?


तट नदी के, भग्न उर के, दो विभागों के सदृश हैं,

चीर जिनको, विश्व की गति बह रही है, वे विवश है!

आज अथइति पर न पथ में, मिल सकेंगे!

आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?


यदि मुझे उस पार का भी मिलन का विश्वास होता,

सच कहूँगा, न मैं असहाय या निरुपाय होता,

किन्तु क्या अब स्वप्न में भी मिल सकेंगे?

आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?


आज तक हुआ सच स्वप्न, जिसने स्वप्न देखा?

कल्पना के मृदुल कर से मिटी किसकी भाग्यरेखा?

अब कहाँ सम्भव कि हम फिर मिल सकेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?


आह! अन्तिम रात वह, बैठी रहीं तुम पास मेरे,

शीश कांधे पर धरे, घन कुन्तलों से गात घेरे,

क्षीण स्वर में कहा था, "अब कब मिलेंगे?"
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?


"कब मिलेंगे", पूछ्ता मैं, विश्व से जब विरह कातर,

"कब मिलेंगे", गूँजते प्रतिध्वनिनिनादित व्योम सागर,
"कब मिलेंगे", प्रश्न उत्तर "कब मिलेंगे"!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
- पं. नरेन्द्र शर्मा

Monday, September 8, 2008

ऐरोनोटीकल डीवीज़न अमरीकी वायु सेना के पहले बनी एक व्यवस्था ~

अब देखिये , म्युझियम मेँ आज भी १०० + वर्षोँ से सहेजकर रखा हुआ वही कपडा जिसको पहली सफल उडान मेँ लगे विमान मेँ राईट बँधुओँ ने इस्तेमाल किया था -
कृपया क्लिक करेँ और पढेँ ....
सन १९०३ ...सुफेद मसलिन का कपडा १२७ १/२ घन फुट का ..इस का उपयोग दूसरे विश्व युध्ध में भी किया गया था । श्रीमती आइवोनेट वाईट ने अमरीकी सरकार को इसे हमेशा सुरक्षित रखने के लिए दिया था -
ऐरोनोटीकल डीवीज़न अमरीकी वायु सेना के पहले बनी एक व्यवस्था थी ~
प्रथम व द्वीतीय विश्व युध्ध तक आते आते, बहादुर ज़ाँबाज़ विमान चालककोँ का दस्ता अमरीकी वायु सेना का हिस्सा बन चुके थे और अमरीकी भूखँड से युरोपीय मित्र उड्डयन स्थलोँ से जर्मनी के विरुध्ध, उडान भरते थे ऐसा ही एक विमान जिसे चालकने अपने सँदेश से रँगा है और पूरे विमान को हल्का गुलाबी रँग दिया है क्रमांक है - २४ ! सामने कांच की दीर्घा है जहांसे पायलट नीचे देखता था।
म्यूज़ियम का मुख्य खंड जहाँ ग्रीक देवता , इकारुस की अति विशालकाय प्रतिमा है --
रेफरेन्सेस & इन्फोर्मेशन अबाउट इकारुस :

Icarus' father, Daedalus, a talented craftsman, attempted to escape from his exile in Crete, where he and his son were imprisoned at the hands of King Minos, the king for whom he had built the Labyrinth to imprison the Minotaur। ....

Daedalus, the master craftsman, was exiled because he gave Minos' Daughter, Ariadne, a clew of string in order to help Theseus survive the Labyrinth।

Daedalus fashioned a pair of wax wings for himself and his son। Before they took off from the island, Daedalus warned his son not to fly too close to the sun, nor too close to the sea। ....

.Overcome by the sublime feeling that flying gave him, Icarus soared through the sky joyfully, but in the process he came too close to the sun, which melted his wings। ...

Icarus kept flapping his wings but soon realized that he had no feathers left and that he was only flapping his bare armsAnd so, Icarus fell into the sea in the area which bears his name, the Icarian Sea near Icaria, an island southwest of Samos.


Hellenistic writers who provided philosophical underpinnings to the myth also preferred more realistic variants, in which the escape from Crete was actually by boat, provided by Pasiphaë, for which Daedalus invented the first sails, to outstrip Minos' pursuing galleys, and that Icarus fell overboard en route to Sicily and drowned। ॥

Heracles erected a tomb for him

Kid Icarus" is the name of a 1986-released Nintendo

In the classic Sega Genesis game, Toejam and Earl, one of the presents that you receive in the game is a pair of Icarus wings। They allow you to fly around the level for a short time।

ICARUS College, an Australian Melbourne-based education and training institution specialising in UMAT preparation, is named after the mythological character।

In the 2002 James Bond movie Die Another Day, the revolutionary light-reflecting satellite that is said to be the world's "second sun" is named Icarus।


Sunday, September 7, 2008

" काश ! मैँ भी बादलोँ को छू सकता ! "

आप सभी से अनुरोध है कि आप इन चित्रोँ पे क्लिक कीजिये
ताकि जो सूचना लिखी हुई है उसे आप बडे अक्षरोँ मेँ पढ पायँगेँ ~~~
जब भी मानव पॅँछियोँ को खुले आसमान मेँ उडता देखता,
उसे भी ऐसा लगता, कि,
" काश ! मैँ भी बादलोँ को छू सकता ! "
अरे ये गीत भी याद होगा आपको,
" पँछी बनूँ उडती फिरुँ मस्त गगन मेँ,
आज मैँ आज़ाद हूँ, दुनिया के चमन मेँ "
जी हाँ बिलकुल ऐसा ही अँदाज़ !
ये भूतल पर बसे, धरती से जुडे हरेक इन्सान के मन मेँ
कभी ना कभी, कहीँ ना कहीँ आनेवाला विचार था -
जिसे आधुनिक युग मेँ सबसे पहली बार बलुन से जुडी एक टोकरीनुमा यान मेँ बैठकर आसमान मेँ ऊँचे उडकर सम्पन्न किया गया।
मेरे प्राँत के एक छोटे से शहर मेँ !
डेटन नाम है इस कस्बे का !
जहाँ 'राईट बँधुओँ ने सर्व प्रथम विमान की सफल उडान भरकर
मानव को मुक्त गगन मेँ विचरने के लिये प्रेरित करता सफल प्रयोग किया था।
- समय था २० वीँ सदी का आरँभ -
सन्` १९०० एक नवीन समय शताब्दि लेकर पृथ्वी पर आया।
जहाँ मानव के मशीनी युग ने आसमान छूने की पहल की थी -
गत सप्ताह मेरे जीजाजी बकुल मोदी बँबई से मुझे मिलने आये तो उनके साथ हमने भी , इस राईट बँधुओँ के म्युझियम की सैर की -
ये चित्र आज देखिये , दूसरे कई सारे चित्र , आगे दीखाते हुए
आपको भी सैलानी बनाते हुए ले चलेँगेँ ....
आशा है आपको भी ये जानकारियाँ रोचक लगेँगीँ !
टीप्पणी अवश्य करियेगा और आपके सुझाव भी रखियेगा .
॥अग्रिम धन्यवाद के साथ, अभी इतनी बातेँ करते हुए...आज्ञा .....
- लावण्या

सन्` १९००

१९०१,

१९०२ ....

( अभी अभी ब्लोगवाणी पर देखा तो मेरी पोस्ट के साथवाली पोस्ट का शीर्षक है " आजकल पाँव ज़मीँ पर, नहीँ पडते मेरे " और मेरी पोस्ट का शीर्षक है, " काश मैँ भी बादलोँ को छू सकता !! है ना मज़ेदार इत्तेफाक !! )

:-))

-- लावण्या