Tuesday, October 22, 2013

देवी पार्वती

।। ॐ।।  
देवी पार्वती 
या देवी सर्वभूतेषू, मातृ रूपेण सँस्थिता
देवी पार्वती,  हिमनरेश हिमवान तथा मेनावती की पुत्री हैं। वे भगवान शंकर की पत्नी हैं। 
उनके कई नाम पुरानों में वर्णित हैं जैसे उमा, गौरी, अम्बिका, भवानी आदि । 
 हिमवान के घर एक सुन्दर कन्या ' पार्वती '  के जन्म के  समाचार सुनकर देवर्षि नारद हिमालय  के घर आये थे।
 हिमनरेश के पूछने पर देवर्षि नारद ने पार्वती के विषय में  बतलाया कि,
' तुम्हारी कन्या सभी सुलक्षणों से सम्पन्न है तथा इसका विवाह भगवान शंकर से होगा। 
किन्तु महादेव शिव शंकर जी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये  पुत्री पार्वती  को घोर तपस्या करनी पड़ेगी । ' 
देवी पार्वती की  पूर्व जन्म की कथा : 
पार्वती पूर्वजन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं।  तथा उस जन्म में भी वे भगवान शंकर की ही पत्नी थीं । 
     एक बार सती ने देखा कि  आकाश मार्ग से  देवी देवता , गंधर्व , अनेक ऋषि  और अप्सराएं  ये सब कहीं जा रहे थे। 
 देवी सती ने पूछा 
' आप सब कहाँ प्रस्थान कर  रहे हैं ? ' 
एक देव पत्नी ने कहा 
 ' माँ सती , आपके पिता दक्ष ने आपके घर , महान यज्ञ का आयोजन किया है।  '
यह सुनकर सती की इच्छा हो आयी कि वे भी सम्मिलित हों और सती ने  अपने पति  शंकर भगवान् से पूछ लिया 
' हे नाथ ! क्या मैं अपने पिता के घर जाऊं ? ' 
शंकर जी ने कहा  
' निमंत्रण  न आया हो उस स्थान पे बिना बुलाये पहुंचना उचित नहीं परन्तु जैसा तुम सही समझो वही करो । '
सती चली गईं परन्तु मैके में , माँ बापू के घर , एक उनकी माँ को छोड़,  किसी ने प्यार से सती देवी का स्वागत न किया।  
सती को  मन ही मन इस से बहुत दुःख हुआ और बुरा लगा। 
यज्ञ आरम्भ हुआ तो हरेक देवता का नाम लेकर उनका स्वागत किया गया और यज्ञ भाग अलग रखा गया 
परन्तु शंकर जी का  नाम नहीं लिया गया। 
     अब ,  सती  माता ने अपने परम पवित्र,  पतिदेव का ऐसा अपमान होता हुआ देखा तो सती क्रोधित हो गईं। 
 अपने शरीर से  सती ने , तप ज्वाला प्रकट कर ली और स्वयं को योगाग्नि में भस्म कर दिया । 
उसके कुछ वर्ष पश्चात ,  हिमनरेश हिमवान के घर , सती ही पार्वती बन कर अवतरित हुईं |

पार्वती को भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये वन में तपस्या करने चली गईं। 
अनेक वर्षों तक कठोर उपवास करके घोर तपस्या की।  पार्वती ने तपस्या करते हुए एक पान खा कर
 दिन बिताये.  जब वह एक पर्ण भी खाना छोड़ दिया तब वे ' अपर्णा ' कहलाईं।  
भगवान शंकर ने पार्वती के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेने के लिये सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा। 
उन्होंने पार्वती के पास जाकर उसे यह समझाने के अनेक प्रयत्न किये कि,
'  शिव जी औघड़, अमंगल वेषधारी और जटाधारी हैं और वे तुम्हारे लिये उपयुक्त वर नहीं हैं। 
उनके साथ विवाह करके तुम्हें सुख की प्राप्ति नहीं होगी। तुम उनका ध्यान छोड़ दो। '
किन्तु पार्वती अपने विचारों में दृढ़ रहीं। उनकी दृढ़ता को देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुये और उन्हें 
सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद देकर शिव जी के पास वापस आ गये। 
सप्तऋषियों से पार्वती के अपने प्रति दृढ़ प्रेम का वृत्तान्त सुन कर भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न हुये।
सप्तऋषियों ने शिव जी और पार्वती के विवाह का लग्न मुहूर्त आदि निश्चित कर दिया। 
वैरागी भगवान शिव ने उनसे विवाह करना स्वीकार किया।
निश्चित दिन शिव जी बारात ले कर हिमालय के घर आये। वे बैल पर सवार थे। 
उनके एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में डमरू था। उनकी बारात में समस्त देवताओं के साथ उनके गण भूत, प्रेत, पिशाच आदि भी थे।
 सारे बाराती नाच गा रहे थे। सारे संसार को प्रसन्न करने वाली भगवान शिव की बारात अत्यंत मन मोहक थी।
 इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह हो गया और पार्वती को साथ ले कर शिव जी अपने धाम कैलाश पर्वत पर सुख पूर्वक रहने लगे। 
शंकर पार्वती एक दूजे के पूरक हैं और उनका संपृक्त स्वरूप ' अर्धनारीश्वर ' कहलाता है।  
 शिव परिवार के अन्य सदस्य हैं - ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय। कालिदास ने संस्कृत ग्रन्थ ' कुमार संभव ' में 
शिव पार्वती विवाह और कार्तिकेय या षन्मुख के जन्म की कथा लिखी है।  
पार्वती जी ने अपने छोटे पुत्र गणेश का सृजन किया था और श्री गणेश की 
हर पूजा विधि में सबसे पहले पूजा की जाती है। वे माता के लाडले बेटे हैं।  
माता भवानी का सिंह और शंकर भगवान् का नंदी बैल , कार्तिकेय का वाहन  मोर और गणेश जी का चूहा ये  भी परिवार के सदस्य हैं। 

      तुलसी दास जी की लिखा पवित्र ग्रन्थ ' राम चरित मानस ' और वाल्मिकी ऋषि कृत रामायण दोनों में वर्णन है कि ,  माता पार्वती ने राजकुमारी जनक दुलारी  सीता जी को श्री राम पति रूप में अवश्य मिलेंगें ऐसे आशीर्वाद, दिए थे। 
सीता जी माता पार्वती की स्तुति इन शब्दों में की थी 
जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥ 
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥
भावार्थ:- हे श्रेष्ठ पर्वतों के राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती! आपकी जय हो, जय हो,
 हे महादेवजी के मुख रूपी चन्द्रमा की (ओर टकटकी लगाकर देखने वाली) चकोरी! आपकी जय हो, 
हे हाथी के मुख वाले गणेशजी और छह मुख वाले स्वामिकार्तिकजी की माता!
 हे जगज्जननी! हे बिजली की सी कान्तियुक्त शरीर वाली! आपकी जय हो! 
बाबा तुलसी दास जी ने ' पार्वती मंगल ' में शिव जी का पार्वती जी से पाणिग्रहण संस्कार का रोचक वर्णन लिखा है।
 इस का पाठ अत्यंत मंगलकारी है।  
 सुनु सिय सत्य असीस हमारी पूजहूँ  मनकामना तुम्हारी ' 
ये आशीर्वाद माँ पार्वती सीता जी को देते हुए मानस में कहतीं हैं।  
 इसी तरह विदर्भ की राजकुमारी रुक्मिणी को भी पार्वती देवी ने आशीर्वाद दिए थे कि , 
' श्री कृष्ण तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगें। ' 
कुंवारी कन्याओं द्वारा माता पार्वती की पूजा करना और प्रेम और आदर देनेवाला पति मांगना ऐसे  व्रत और पूजन अनुष्ठान भारत में प्राचीन काल से आज तक अखंड रीत से चले आ रहे हैं।   
पार्वती देवी के प्रिय शिव शंकर या भोले नाथ सृष्टि के आदि देव हैं। परम पिता हैं और माता पार्वती जगत जननी समस्त संसार की माता स्वरूप हैं। 
राम चरित मानस का शुभ आरम्भ  शिव पार्वती , दोनों की स्तुति , पूजा से हुआ है।  
' वागर्थाविव समपृक्तो वागर्थ प्रति पतत्ये जगत पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरो।।  
करवा चौथ के पवित्र मंगलमय तथा सर्वथा निस्वार्थ स्नेह के प्रतीक रूप पूजा व्रत के पावन अवसर पर 
हर पत्नी अपने सात फेरों से पति रूप में पाए अपने साथी के लिए भूखी रह कर, निर्जला व्रत रख ,
 माँ पार्वती से हाथ जोड़कर प्रार्थना करतीं हैं कि ,
 ' हे माता आप की जय हो ! आप की कृपा हो ! 
माँ , मेरे पति को लम्बी आयु दें उन्हें सुखी और स्वस्थ रखें और हमारे परिवार में सुख- शान्ति  और संतोष रहे ।  ' 
दुर्गा - पूजा 
सजा आरती सात सुहागिन तेरे दर्शन को आतीं 
माता तेरी पूजा कर के वे  भक्ति निर्मल हैं  पातीं 
दीपक कुम कुम अक्षत लेकर तेरी महिमा गातीं 
माँ दुर्गा तेरे दरसन कर के , वर सुहाग का पातीं 
वे तेरी महिमा शीश नवां करकर गातीं 
हाथ जोड़ कर शिशु नवातीं , धीरे से हैं गातीं ,
' माँ ! मेरा बालक भी तेरा " ~~ 
ऐसा तुझको हैं समझातीं :-) 
फिर फिर वे तेरी महिमा गातीं 
' तेरी रचना भू मंडल है ! '
ऐसे गीत गरबे में हैं गातीं '  
 माता तुझसे कितनी ही सौगातें 
 है , भीख मांग ले जातीं
माँ सजा आरती , सात सुहागिन 
तेरे दर्शन को आतीं 
मंदिर जा कर शीश नवां कर 
 ये तेरी महिमा हैं गातीं !  - लावण्या 

Thursday, May 30, 2013

वीकेंड डीनर पार्टी / सप्ताहांत में शाम की दावत


ॐ 
' अरी सुनती हो ? वीकेन्ड ( सप्ताहांत )  मेमोरियल दिवस आ रहा है। ४ दिन की छुट्टी है। ' 
 ६०  वर्षीया सरिता जी ने अपनी बेटी अंजू से कुछ उत्साह भरे स्वर में सूचित करते हुए कहा तो अंजू अपने बालों पे ब्रश फेरते हुए मुडी ! ड्रेसिंग टेबल के बड़े अंडे के आकार के विशाल शीशे के सामने  जो उसका ड्रेसिंग टेबल था वहां उस शीशे के सामने रखे छोटे से वेलवेट से बने गद्दीदार  छोटे मुड्ढेनुमा सीट पर बैठे हुए वह पीछे की ओर घूम गयी और मुस्कुराई ! 
' अरे वाह माँ ! आपको तो अब सब याद  रहता है !  ' 
 फिर अंजू आगे बोली ,
 ' हाँ माँ ..सभी की छुट्टी है और हमारे यहाँ पार्टी भी तो है ! करीब ६० लोगों का खाना और दावत ! 
आप की सहेली  दिव्या जी पटेल भी आ रहीं हैं। आपका मन लगेगा। ' अंजू ने कहा। 
' हाँ , दिव्या बेन से मिल कर पूरे गुजराती समाज की बातें सुनतीं रहती हूँ। कितनी तरक्की कर गये हैं ये लोग सच! 
बड़े मेहनती होते  हैं पटेल कौम के लोग  ! दिव्या बेन और धनजी भाई जब यहाँ आये थे तब उन्होंने कड़ी मेहनत  की थी। मोटेल का सारा काम किया करते थे वे लोग ! सारे  कमरे तैयार करना , बाथरूम साफ़ करना , सारी चद्दरों की तौलियों और तकीये के गिलाफों को धोना फिर हर आनेवाले किरायेदार के लिए नये सिरे से कमरा तैयार करना कोइ मजाक नहीं ! बाबा रे ! कड़ी मेहनत है !  धनजी भाई दिन रात मोटेल की ऑफिस  डेस्क पर बैठे हुए  मिलते। वहीं  पे सारा हिसाब देखते थे। ये सारा काम उन दोनों ने मिलकर किया और साथ, साथ बच्चे भी बड़े किये। बेटा सुधीर का ब्याह गुजरात जाकर किया और बेटी कुमुद को इसी शहर के भाईलाल भाई पटेल के घर ब्याह कर  बिदा किया ! सच पटेलों की कौम में सब एक दुसरे की बहुत मदद करते हैं। हाँ , औरों की मदद भी करते ही हैं।'   सरिता जी ने आगे जोड़ते हुए कहा,  ' पता है ,  दिव्या जी एक बार बतला रहीं थीं कि ,  उनके पुरखे गुजरात के खेडा जिला के नडीयाद शहर से हैं।  दिव्या बेन '  कितना मीठा ' जय श्री कृष्ण ' कहतीं हैं, हैं  ना !  
' सरिता जी उत्साह से  भर कर आगे कहने लगीं , 
'  वे , जब भारत में थीं तब रोज ही डाकोर के कृष्ण मंदिर में दर्शन करने  जाया करतीं थीं ! बड़ी कृष्ण -  भक्त  हैं दिव्या बेन। पता है अंजू  , डाकोर के कृष्ण मंदिर  में  किशन महाराज  के ' रणछोड राय स्वरूप ' की पूजा होती है। बड़ा पुराना मंदिर है वहां डाकोर में! ' 
इतना कहकर  सरिता जी, अपनी हम उम्र सहेली  दिव्या जी की बतलाई  बातों में खो गईं। 
फिर उठ कर खिड़की के पास जा खडी हो गईं। फिर अचानक बोलीं , 
' अरी अंजू , आज तुम्हारा घास काटनेवाला आया ही नहीं ! तुमने कहा था न , कि वह दोपहर को आयेगा। मैं राह देखती रही ... पर आज तो कोइ आया ही नही। ' 
                 अमरीकी घरों के आसपास की हरियाली बसंत आगमन के साथ ही चारों दिशाओं में हरीतिमा बिखेरती फ़ैल रही थी। हरेक सुन्दर सजीले घर के आसपास की जमीन में विशाल घास के लोन बिछे हुए थे। एक आधुनिक फैले हुए , २000  एकड़ के रेसीडनशियल सब -डिवीजन में,  अंजू और सत्येन्द्र श्रीवास्तव का घर भी था। 
सरिता जी के  दामाद , सत्येन पेशे से इंजीनीयर थे और वे दामाद से अधिक पुत्र की तरह व्यवहार किया करते थे। अंजू सोफ्टवेर डीज़ाईनार थी। दोनों मिलकर अच्छी कमाई कर लेते थे। खर्च करने में भी दोनों साथ मिलकर निर्णय लिया करते थे। उन्होंने घर के आस पास उगी हुई घास काटने का कोंट्रेक, बाहर एक कर्मचारी को दे रखा था।
यूं भी भारतीय परिवार , अमरीकी समाज के अन्य नागरिकों  मुकाबले में , कम ही शारीरिक परिश्रम वाले कार्य किया करते हैं। ये बात भी हरेक भारतीय को, अमरीकी समाज में लम्बे समय से रहने के बाद पता लग ही जाया करती है।
      घर साफ़ करने के लिए भी हर १५ दिन में,  ठीक सोमवार को मुस्कुराती हुई कन्या  ' एरिका '  और  उसका दोस्त ' यूरी '  ,  एकाध नई लडकी को काम में मदद के लिए , लेकर ,  मुस्कुराते हुए  श्रीवास्तव परिवार के सुन्दर और विशाल घर पर आ पहुँचते थे। वे दोनों ईस्ट यूरोप से यहाँ अमरीका आये थे और अमरीका में सफाई का काम किया करते थे। वे लोग कुछ साल पुरानी गाडी में ही यहाँ तक आया करते। दोनों ने पढाई,  शायद स्कुल की ११ वीं कक्षा तक ही पूरी की थी। यूरी और एरिका का काम था बाथरूम की सफाई करना। पूरे घर के कालीनों पर वेक्यूम क्लीनर से नही के बराबर का - कचरा उठाना और हल्की सी धुल झटकना - डस्टिंग करना - यह भी इनके जिम्मे था। घर इतना बड़ा था कि सफाई करते ४ घंटे का समय तो अवश्य लग ही जाता था। जिसके उन्हें हर घंटे के हिसाब से डालर २५ मिलते थे। और हाँ, उस पे टेक्स भी तो नहीं देना पड़ता था। अन्यथा हर अमरीकी नागरिक खुशी से अपने हिस्से आया टेक्स भर ही देता था। चूँकि टेक्स का पैसा सरकार भी रास्तों को सुन्दर और स्वच्छ रखने से लेकर, स्कुल ,  आप जहां रहते हों उसी इलाके के स्कुल के लिए और अच्छे अस्पताल जैसी कई सुविधा  और अपने नागरिकों की सेवा के लिए खूब इस्तेमाल किया करती थी। हर शहर के साफ़ , सुन्दर और सरल रास्तों के पास, बाग़ और खेल के मैदानों के पास लिखा रहता था ' आपका टेक्स आपके लिए कार्यरत है '  
              यहाँ अमरीका में अक्सर सारे घर बंद रहते। गर्मियों में भी और सर्दीयों भी !  बड़े घरों में सेन्ट्रल एयर कंडीश्नींग माने पूरा घर वातानुकूलित होने से ,  हर घर की खिडकियों को अक्सर बंद ही रखा जाता। घर में रहनेवाले , गराज में खडीं लम्बी आरामदेह , वातानुकूलित गाडीयों पे सवार हो,  काम के लिए सुबह सवेरे निकल लेते और शाम ६ बजे तक लौट आते। गेरेज में अक्सर हर सुखी भारतीय परिवार के घर पर दुसरा फ्रीज भी रखा मिल जाता। ग्रोसरी , खाने पीने की चीजें यहीं लाकर रख दीं जातीं। हाथ पोंछने के कागज़ के रूमालों का पुलिंदा , बाथ रूम टिश्यु के बड़े पैकेज, लौंड्री डिटर्जन्ट के लिए प्रयुक्त  साबुन से भरे प्लास्टिक के बड़े बड़े थैले और दूध भी सुफेद प्लास्टिक की बड़ी २ गेलन की शीशी नुमा बरनी दूध की अतिरिक्त प्लास्टिक की सुफेद शीशी  सी  बाहर के इस दुसरे फ्रीज में जमा रहतीं।   
           अक्सर दिन के समय में , अंजू के घर पर सरिता जी और उनके ४३ साल से  विवाहीत श्रीमान देवेश्वर दयाल जी ही रह जाते। छोटा समीर ३ साल का होने आ रहा था। वो भी इनके पास ही दिनभर रहता। वे बिटिया और दामाद के पास, हर साल भारत से आया करते और कुछ माह बिताते। अंजू, सरिता जी और अपने पापा के आगमन से निश्चिंत हो , समीर को २ महीने तक बड़ा करने के बाद फिर अपनी जॉब पर जाने लगी थी। उसी दो महीने तक सत्येन्द्र के पिता जी और माता जी भी भारत से अपने धेवते को लाड दुलार करने आ पहुंचे थे। 
उस समय घर भरा पूरा लगता ! दोनों समधी जोड़ों ने समीर के आगमन के समय,  सराहा दिया था  और उनमें आपस में शिष्टाचार पूर्ण  सौहार्द्र और अनौपचारिकता,  अमरीका में एक साथ , इस तरह रहने से ही पनपी थी। 
अमरीका में क्या बेटी और क्या दामाद का घर ! ये तो परदेस ठहरा !
 यहाँ हर भारतीय परिवार अपने परिवेश और अपने आपसी संबंधों के सहारे ही नव निर्माण की कठिन परीक्षा पास कर पाता है। आपस में भारतीय मित्र , पूछते की बच्चे के जन्म के समय कौन आ रहा है भारत से ?
 अगर उत्तर मिलता कि , किसी की माँ या सास ! तो खुशी होती अन्यथा हम उमर सहेलियाँ भारतीय और अमरीकन और पडौस के  लोग भी अगर मित्रता  होती तो सहायता करते।
 अंजू और सत्येन उनके अमरीकी और भारतीय तथा अन्य सभी मित्रों के लिए , एक उदाहरण से थे। दोनों तरफ के माँ बाबूजी और अम्मा पिताजी यहाँ तक आ कर उन्हें सहायता क रहे थे ये सभी के लिए आनंद का विषय था। 

  अंजू और सत्येन  की ७ साल की बड़ी बिटिया '  मिली '  और  ३ साल के ' समीर ' को सरिता जी ने ही तो बड़े जतन से , लाड प्यार से पाला पोसा था। दादी जी भी खूब लाड करतीं रहीं परन्तु ३ माह पूरे होने से पहले वे बड़े दादा जी के संग भारत चली गईं थीं। नाना जी और नानी जी को आग्रह पूर्वक रोक लिया गया था।  आज इतने बड़े हुए अपने नातिनों को देख दोनों फूले नहीं समाते थे। 
 मिली बिटिया को स्कुल ले जाने के लिए ,  पीले रंग की  लम्बी सी स्कूल बस सुबह सुबह आ जाया करती थी उसे बस पर सरिता जी ही चढ़ा कर लौटतीं तब तक देवेश्वर जी सुबह की चाय पीकर , लम्बे बारामदे में घूम रहे होते  और अब तो छोटा समीर भी बस अब प्री - स्कुल में दाखिला लेने ही वाला था। 
     घास काटने वाले के ना आने की बात माँ से सुनकर  , अंजू  मुस्कुराई  और कहा 
' माँ , तुम हो यहाँ तो हमे कितनी सुविधा है। घर की हर बात पे तुम्हारी नजर रहती है! चिंता न करो ! वो आ जाएगा ..आज नहीं तो कल ..हाँ मैं, सत्येन से कहूँगी वे टेक्स मेसेज कर लेंगें और पूछ लेंगें। ' 
         घास काटने के लिए अक्सर मेक्सिकन आदमी आया करता था जो अपने टेम्पो के पीछे मशीन लाद  कर आता। काम करना और हरेक काम करने वालों का उचित आदर करना भी  समाज के शिष्टाचार का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ हरेक व्यक्ति अपना निजी काम स्वयं करता है। अगर आप सक्षम हैं तब किसी और से भी अगर काम करवाते हैं तब उसे भी बड़े  सम्मान से ही देखा जाता है। 
 अब अंजू ने माँ से पूछा  ' चलें माँ ? ' 
और ओफीस के कपड़े उतार  के गुलाबी  टी शर्ट बदल कर, नीचे जाने के लिए वह  उठ खडी हुई। फिर सीढीयों के पास रूक कर पूछा 
' चाय बनाऊँ माँ  ? अदरख और इलायची वाली ? पापा से भी पूछ लेती हूँ। ' 
 ' हाँ ' ,  सरिता जी ने खिड़की के सामने खड़े हुए  ही संक्षिप्त सा जवाब दिया। 
 कुछ देर पश्चात , गर्म चाय के मग लेकर तीनों ड्राईंग रूम के आरामदेह सोफों पे बैठ गये। 
सरिता जी ने पूछ लिया 'अंजू  बेटा , कुछ तैयारी करनी है क्या ? बता दे ...' 
' ऊँह  नही माँ ...खाना तो आ ही रहा है ..इंडिया स्टार रेस्तोरां  से ..
वही लोग आकर सजा देंगें। समोसा चाट भी बनायेंगें मानविंदर जी ..
वही हैं आज शाम की दावत के केटरर ..वे भी  रुकेंगें ..गरम खाना खिलायेंगे हम सब को ! 
कुल्फी और उनका फेमस , गज्जरेला ! गाजर हलवा भी फ्रेश बना रहे हैं। 
मैने खास रिक्वेस्ट की है तो  मेंगो कुल्फी भी बनायेंगें आज शाम की दावत के लिए ! '
         अंजू अब  धडा धड शाम की दावत के विभिन्न आईटम का मेन्यू बतलाने लगी। आगे बोली , 
' हाँ एपीटाइजर के लिए , टमाटर साल्सा, कोर्न  चिप्स और गर्म चीज़ की मशीन मैं शाम को ऑन कर दूंगी। 
सुपर मार्केट से कटे फलों की फ़्रूट - ट्रे भी सत्येन ला रहे हैं। '
            फिर मुस्कुराकर जोड़ा ' एक सरप्राईज़ भी है ! मेरी सहेली आशी और सुचेत चड्ढा की २५ वीं सिल्वर जुबली है।  उनकी मैरेज एनीवर्सरी भी है ना इसी सन्डे को ! तो उनके लिए डबल चोकलेट  केक भी लायेंगे सत्येन ! ' अंजू ने अपने माता पिता को आगाह करते हुए बतला दिया। 
  ' तब तो समझो सारा काम हो ही गया '  सरिता जी ने आश्वस्त हो, मुस्कुराते हुए कहा। 
 ' माँ आज की शाम के लिए एक्स्ट्रा बेबी सीटर भी आ रहीं हैं। जूली है ना हमारे पडौसवाली लडकी वो तो आ ही गयी है। खेल रहे हैं तीनों ' मिली '  के कमरे में ' अंजू ने बतलाया। 
          मिली का अपना अलग कमरा था। जिसे ' टिंकर बेल ' नामक परी की साज सज्जा से संवारा गया था और वह कमरा हल्के गुलाबी रंग का था। नन्हे समीर के कमरे में  ' वीनी ध पू ' की सजावट थी। हालांकि बच्चे सोते तो अपने कमरों में थे पर कई बार सुबह उठ कर,  या तो सरिता जी या अंजू के कमरे में आ जाया करते थे। सुबह घर के सारे सदस्य काम के लिए निकलने की तैयारी करने में बड़े और मिली को, स्कुल के लिए तैयार किया जाता। 
अंजू सुबह ५ बजे उठ जाया करती थी और दिन भर खूब काम किया करती थी। 
            अंजू और सत्येन्द्र का घर काफी बड़ा था। नीचे लीवींग रूम या परिवार के लिए एक साथ बैठ कर टीवी देखने का कमरा अलग, फॉर्मल ड्राईंग रूम अलग, बड़ा सा कीचन घर के मध्य भाग में और उसी के बाहर दो सीढियां थी जो  ऊपर ४ बड़े शयन कक्ष थे वहां पहुंचतीं थीं । घुमावदार सीढियां ऊपर तक आतीं और एक के बाद एक कमरे जहां एकदम आखिर वाला कमरा सरिता जी और देवेश्वर जी के लिए सुरक्षित था। 
जब वे भारत लौट जाते तब भी उनकी सुविधा लिए सजाई हरेक चीज़ वैसी ही रखी रहतीं।  
कोइ किसी भी चीज को छेड़ता न था। उनके लिए एक छोटा टीवी भी था कमरे में ।  
२ दराज वाली  मेज  बिस्तर के दोनों तरफ  सटी  हुईं थीं।  जिस पे लेम्प और टेलीफोन रखे हुए थे।  
घड़ी , फूलदानी और शीशे से सजी कपड़ों के रखने की ड्रेसर पलंग के सामने थी  और कमरे से बाहर निकलते ही गुसलखाना भी था !  
        अंजू और सत्येन्द्र का सोने का कमरा सबसे बड़ा था और वहां बाथरूम कमरे के भीतर ही था और वोक इन क्लोजेट  माने कपड़ों के लिए  जगह थी जो बहोत  विशाल थी। नीचे तहखाना भी पूरा कार्पेट  से सजा , वहां भी सोने के कमरे, बाथरूम , पार्टी के लिए लंबा  कमरा और बच्चों की फ़ौज बाहर शीत ऋतु  के प्रकोप से बचे हुए भीतर खेल सके इतनी बड़ी जगह थी। असंख्य  खिलौने और एक बड़ा टीवी यहाँ बेज्मेन्ट में भी था।       अत्यंत  आरामदेह और विशाल  घर था !  शायद ८ हजार स्क्वेर फुट में फैला हुआ था ऐसा इक बार अंजू ने ही बातों बातों में बतलाया था। सारे कमरे, आराम और सुख प्रधान साज सज्जा से लैस थे !   
     अंजू ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा ,
' माँ  जूली की और २ सहेलियाँ भी शाम ६ बजे आ जायेंगीं। जितने बच्चे आयेंगें ना मेहमानों के संग , उन के साथ ये लोग रहेंगें तो बड़े भी एन्जॉय कर पायेंगें।  ' अंजू ने आगे बतलाया। 
        अमरीका में बेबी सीटींग का काम अक्सर आसपास रहनेवाली बड़ी लडकियाँ ही किया करतीं हैं। उसी तरह  मिली और समीर की बेबी सीटर ,  १४  वर्षीया सुनहरे बालोंवाली , नीली  आसमानी आंखोंवाली ' जूली '  का घर भी उन के घर से,  तीसरे घर वाला, नजदीक ही था। जूली के पिता उच्च पद पर आसीन पुलिस अधिकारी थे और कई बार पुलिस को मिलनेवाली  ख़ास गाडी  जो काली और पीली धारियोंवाली होतीं हैं , उनके घर के ड्राईव - वे पर खडी हुई  देखने को मिल जाया करती थी। जूली के पिता के कमरबंद पर लटकी हुई बन्दूक भी सरिता जी ने  कई बार देखी थी। 
           सरिता जी के पतिदेव श्रीमान देवेश्वर जी ने चाय समाप्त करते हुए अपना मग उठा लिया और रसोई के सिंक में पानी छोड़ कर साफ़ करके , मग को ,  सीधे डीश वोशर में सम्हाल के रख दिया। उन्हें भी यहाँ की आदत हो चुकी थी। अमरीका में लोग अपने अपने बर्तन इस्तेमाल करते और इसी तरह डिश वोशीन्ग मशीन में लगा देते ! जब मशीन भर जाती तब मशीन में इस्तेमाल होनेवाली ख़ास साबुन की टिकिया या लिक्वीड प्रवाही साबुन को मशीन के बाहरी दरवाजे में बने खाने में भरने के बाद , मशीन  बंद किया जाता और मशीन की सेटिंग में नार्मल वोश साईकल लगाकर सारे बर्तन एक साथ धुल जाया करते। 
         यहाँ ऐसे छोटे बड़े घर के कार्य मशीन ही करतीं हैं। कपड़े धोने का साबुन अलग, बर्तनों का अलग ! नहाने के के लिए नाना प्रकार के द्रव्य !  प्रवाही, जेल, साबुन और टिकिया, स्नान के बाद ठण्ड में त्वचा मुलायम रखने का लोशन भीअलग। हरेक उत्पाद  में सुगंध! बाथरूम की शीशे की नन्ही बेसीन के पास लगी अलमारी में सरिता जी का नारियल का पेरेशूट ब्रांड का तेल भी रखा हुआ था और दन्त मंजन भी ! 
             घर के हर कमरे में सुगंध बिखेरने के लिए सुगंधी मोम के गट्टे के आकार की सेंटेड केंडल भी शाम को अंजू जला दिया करती थी। सत्येन को चन्दन की अगरबत्तियां जलाना पसंद था। 
        एक बड़े से ॐ के सामने , हर शाम चन्दनी सुगंध का धुंआ उठता और सत्येन को अपना बचपन याद आ जाता। अपने जीवन में कितना कठिन संघर्ष किया था सत्येन्द्र ने और उसके  बाबूजी ज्ञानेंद्र श्रीवास्तव और अम्मा सुजाता जी ने भी बड़े जतन से गृहस्थ जीवन बिताते हुए  अपने सारे उत्तर दायित्त्व सफलता पूर्वक निभाये थे।
        यमुना किनारे बसे , पश्चिम उत्तर प्रदेशी इलाके के इटावा में रूई की खेती बाडी बंद हुई तो क्या हुआ पर बाबूजी के घी का व्यापार उनकी सूझ बुझ से चल निकला था। सत्येन्द्र श्रीवास्तव पढाई में सदा अव्वल ही आये और अपना पूरा ध्यान पढाई पे रखते हुए आई . आई . टी .  कानपुर से इन्जीन्यरींग अच्छे नम्बरों से  पास करने के बाद अपना भाग्य आजमाने सत्येन्द्र,  बाबूजी और अम्मा के पैर छूकर , उत्तर अमरीका चले  आये थे। 
                    अमरीका के मध्य में आयोवा प्रांत में  आकर सत्येन्द्र स्थायी हो गये। आयोवा भी इटावा की तरह  खेती प्रधान प्रांत है। आयोवा की राजधानी  का उच्चारण अंग्रेज़ी में डी मोइन '- किया जाता है परन्तु उसे  ' Des - moins ' लिखा जाता है। वहीं विश्व शान्ति में नोबल पुरस्कार प्राप्त नार्मन बोर्लो द्वारा स्थापित विश्व खाध्य पारितोषिक संस्था भी है। नार्मन बार्लो हरित क्रान्ति के जनक कहलाते हैं। संस्था द्वारा ,  डालर एक हजार के खर्च से तैयार होनेवाली ट्रोफी , जिसे  शिल्पकार डेरीक उह्ल्मेन ने तैयार की थी वह हर वर्ष पारितोषिक स्वरूप दी जाती  थी।  विश्व का गोला ,  जिस पर एक पत्ते के रूप में खाद्यान्न बना हुआ था ,  जिससे विश्व भर के प्राणीयों को पोषण मिलता है यही इस इनाम स्वरूप दिए जानेवाली ट्रोफी का रूप था जिसे बड़े जतन से  गढा गया था। 
सत्येन्द्र श्रीवास्तव वर्ल्ड फ़ूड प्राईज़ संस्था में वरिष्ठ कर्मचारी थे। तगड़ा वेतन प्राप्त करनेवाले  इस संस्था के वे  सीनीयर कार्यकर्ता थे। श्रीमती अंजू सत्येन्द्र  श्रीवास्तव आयोवा प्रांतीय सरकारी कर वसूली कार्यालय के कम्प्युटर विभाग में कार्यरत थीं। भारतीय इसी तरह अमरीका के हर प्रांत में , विशिष्ट संस्थाओं में कार्यरत हैं और सफल हैं। 
आयोवा प्रांत : अमरीका के हरेक प्रांत का अपना ध्वज है। इस प्रदेश को ' होक आय स्टेट ' कहते हैं। आयोवा प्रांत का प्रिय फूल जंगली गुलाब है। गोल्ड फिंच या हिन्दी में कहें तो सोने का सिक्का नामक पंछी ,  इस आयोवा स्टेट का चहेता पंछी है। ' ओक ' का पेड़  यहाँ का चयनित हुआ प्रांत का प्रिय वृक्ष है। 
सत्येन्द्र और अंजू अब कई वर्षों से यहीं बस गये हैं  और उनकी संतान अब इसी प्रांत में जन्मीं,  यहीं का नागरिक अधिकार पा कर , पल बढ़ रही है। अब तो कई सारे भारतीय परिवार  आयोवा प्रांत में आ कर बस गये थे और आबाद थे। अब अन्य प्रान्तों की तरह ,  भारतीय मंदिर, गुरुद्वारा और  रेस्तोरां सभी  आयोवा में भी स्थापित हो चुके थे। सरिता जी मंदिर भी जातीं और किसी रविवार वे , गुरूद्वारे भी चली जातीं। 
      वहीं पर आगंतुक प्रवासी भारतीय युवा पीढी के  माता पिताओं से भी जो अपने अपने बाल बच्चों से मिलने आये हुए होते थे , वे , कहीं न कहीं, भारतीय दुकानों में खरीदी करते वक्त या त्यौहार के दिन या  विविध उत्सव पर मिल ही  जाया करतीं थीं।  अब यहाँ रहनेवाले भारतीयों के लिए , भारत से दूर अमरीकी धरा पर , एक छोटा भारत का कोना आबाद था। कार्य क्षेत्र में अमरीका का वातावरण तो होता ही था परन्तु  घर के  रहन सहन में , अब भी भारतीयता का पुट होते हुए , आधुनिक अमरीकी सुख सुविधा और रहन सहन से ओत प्रोत भारतीय परिवारों में भी बदलाव आ ही गया था।  
     अमरीकी समाज की तरह हर उत्सव, शादी ब्याह, नाम करण , मुंडन , वैवाहिक वर्ष गाँठ , जन्म दिन ,  इत्यादी सभी मनाने का रिवाज अब सप्ताहांत माने वीकेंड में यानि ,  शुक्र , शनि  रवि वाले दिनों में ही अक्सर हुआ करता। इसी उत्सव में जुड़ गये थे बच्चों के ११ वीं पास करने के ग्रेज्युएशन दिवस का समारोह या १६ वर्ष पूरे करने की स्वीट सीकस्टीन की पार्टी भी ! इन सारे दिनों में अपना ख़ास स्थान बनानेवालीं  केन्द्रीय छुट्टियाँ या  फेडरल होलीडे वाली ४ दिन की लम्बी छुट्टियां साल में बड़े पहले से ही विविध यात्रा और प्रवास या पारिवारिक समारोह का रूप ले लेतीं थीं। असल में  अमरीका में राष्ट्रीय छुट्टियां बहोत कम होतीं हैं। 
                सब से ख़ास होती है,  बड़े दिन की या नाताल  या क्रिसमस की दीसंबर २५ की छुट्टी ! जिसका हरेक अमरीकी नागरिक को बेसब्री से इंतज़ार रहता है। यह पारिवारिक, धार्मिक और सामाजिक तीनों का सम्मिश्रित त्यौहार है। परिवार के हर सदस्य के लिए तोहफे देने का और  लेने का इस दिन  रिवाज है। फिर  साथ मिलजुल कर भोजन करना।  खाना और  चर्च में पूजा और पादरी का भाषण (  जिसे मॉस कहते हैं ) सुनने जाना,  ये भी  इस नाताल के बड़े दिन अक्सर किया जाता है। उसके बाद के ४ दिन भी ऑफिस या दोस्तों के घरों पर दावतों में या प्रवास में बिताये जाते हैं तब तक तो दीसंबर का आख़िरी दिन पूरा होने को और नये साल के दिन का आगमन हो जाता है। 
      जनवरी १ नये साल की छुट्टी पूरे अमरीका के लिए साल भर की कड़ी मेहनत  के बाद आराम करने और मौज मस्ती से भरी छुट्टी बिताने का दिन होता है। टीवी पे खेल देखना, रोज़ डे परेड का सीधा प्रसारण और खूब वाईन , बीयर और व्हीस्की , वोडका , रम जैसे ड्रींक के साथ अमरीकी खाध्य पदार्थ हेमबर्गर, पीत्ज़ा , चिप्स वगैरह का खाना - ये सब दिन भर चलता  रहता है।  
         साल के मध्य में , मई २७,  मेमोरियल दिवस की छुट्टी आती है जो उत्तर अमरीका में ग्रीष्म ऋतु के आगमन का प्रतीक है। अमरीका में , तारीख लिखते वक्त पहले महीना - फिर दिन और अंत में साल लिखने का रिवाज़ है। 
जब कि , भारत में पहले दिन, बीच में महीना और अंत में साल  लिखते हैं। 
यहाँ  जुलाई ४ अमरीकी स्वतंत्रता दिवस कहलाता है।
 सितम्बर २,  लेबर डे , फोल माने पतझड़ ऋतु के आरम्भ की धोषणा करता है। 
 फिर वेटरन्स डे ९ सितम्बर को पुराने सैनिकों की सेवाओं के प्रति आभार प्रदर्शन का राष्ट्रीय त्यौहार है और द्वीतीय विश्व युध्ध , वियतनाम और ईराक की लड़ाईयों में जिन योध्धाओ ने सेवाएं प्रदान कीं हैं उनके लिए  समर्पित दिन का त्यौहार है।  
उसके बाद आता है नवम्बर २८ का थेंक्स गीवींग डे या  कृतज्ञता ज्ञापन दिवस ! बस यही मुख्य केन्द्रीय सरकार मान्य त्यौहार  हैं जिसे अमरीकी सरकार मनाती है। अब इस श्रृंखला में अश्वेत लोगों के मसीहा माननीय  मार्टिन ल्युथर किंग दिवस भी कहीं कहीं बेंक होलीडे की तरह मनाया जाने लगा है।         
            आज अंजू और सत्येन्द्र के यहाँ मेमोरियल डे के लम्बे सप्ताहांत वाले वीकेंड में शनिवार को शाम की दावत का आयोजन हुआ है। भारतीय परिवार के छोटे और कुछ  बड़े बच्चों समेत कुल  ६० लोग  शनिवार की संध्या की दावत के लिए अंजू के घर पर आ पहुंचे हैं । अमरीकी समाज में अपने अपने कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त कर उसी के अनुरूप नई , लम्बी चमचमाती गाड़ियां खरीद कर अंजू और सत्येन्द्र के मित्र वर्ग के लोग ,  अंजू के घर के सामने , गोलाकार रास्ते के सामने जिसे ' कल डी सेक '  कहते हैं वहां अपनी अपनी शानदार गाड़ियां पार्क करते हुए 
' नमस्ते ' ,'  पैरी पैणा जी ' , कहते हुए,  एक के बाद एक आ रहे हैं।  
 मालिक और मालकिन अब गाड़ियां  पार्क करने के बाद, घर के  भीतर जा चुके थे। सभी के हाथों में फूलों के पुष्प गुच्छ या रंगबिरंगी गिफ्ट बैग भी हैं जो वे अंजू और सत्येन्द्र के परिवार के लिए स्नेह के प्रतीक स्वरूप लाये हैं।  
          सरिता जी और देवेश्वर जी घर के पिछवाड़े में लोन पर रखी, कुर्सियों पे विराजित थे। कुछ उन्हीं की उम्र के भी वहां बैठे फलों का रस गिलास को पेपर नेपकिन से थामे चुस्की लेते पी रहे थे। युवा पीढी की युवतियां अंजू के साथ लगी हुईं थीं और खाने पीने की चीजों को, दुसरे अतिथियों तक पहुंचाने का काम कर रहीं थीं। बच्चा पार्टी बेसमेन्ट माने घर के तहखाने में, बिछे कालीन जो सुघड़ व सुन्दर है वहां  एक  हिस्से में  खेल रहे हैं। मिली और   और जूली और उसकी २ साथिन बेबी सीटर लड़कियाँ सब के साथ तरह तरह के खेल में मग्न थीं। 
 
      ' अंजू  नाईस पार्टी ! ' प्रिया सुन्दराजन जो दक्षिण भारतीय थी उसने मुंह में २ काजू के निवाले रखते हुए कहा। 
' थैंक्स प्रिया। हाऊ हैव यू बीन ? व्हाट आर यू बीज़ी विथ ? ' अंजू ने प्रश्न किया। 
( ' धन्यवाद ! कैसी हो ? किस कार्य में व्यस्त हो ? '  ) यही  कहा था अंजू ने प्रिया से ! 
 'ओह रिसर्च नेवर स्टॉप्स यू नो '  प्रिया ने उत्तर दिया। 
प्रिया का कार्यक्षेत्र संशोधन था उसने यही कहा  कि , ( यह काम कभी रूकता नहीं ! )
           खेती से जुड़े संशोधन संस्थान में कार्यरत प्रिया  वरदराजन ने यही उत्तर दिया।
 ' ट्र्यू '  -  (' सत्य है !' )  अंजू ने हामी भरी ! 
अब  आशी भी वहीं  गयी थी और पूछने लगी
 ' अगले सन्डे गुरूद्वारे आ रही हो ना अंजू ? '
 ' हाँ आ जाऊंगी ...मम्मा को लेकर ' अंजू ने कहा। 
' पक्का ? ' 
' हाँ हाँ पक्का ! ' अंजू ने मुस्कुराकर वादा किया और समोसे की चाट से सजी हुईं बड़ी ट्रे को उठाये जहां पुरुष मेहमान बातों में और वाईन बोटलों से सजे काउंटर के इर्द गिर्द खड़े थे वहां पहुँच कर उसने तश्तरियां उन्हें थमाने का काम शुरू किया। 
      ' पटेल सर ! क्या कहते हो , कैसी चल रही है आपकी ' कम्फर्ट इन ' ? 
आशी के पतिदेव सुचेत चड्ढा ने दादी जी दिव्या के पुत्र सुधीर पटेल से सवाल किया। 
' श्री कृष्ण की कृपा है दोस्त ! '  सुधीर ने जवाब दिया।
 फिर सुधीर पटेल ने सुचेत से पूछा ,
' आप सुनाओ क्या हालचाल है ? आपके गेस स्टेशन का धंधा तो रोकडे का धंदा है! 
पेट्रोल पम्प का बिजनेस अच्छा ही होगा। दाम तो खूब ऊंचा गया है। '  
' रब्ब राखा ! गुरूजी की मेहर ! ' सुचेत ने मूंछों पे हाथ फेरते कहा। 
 बंगाली बाबू शोमेन  चटर्जी भी मुस्कुराते हुए समोसा चाट की खट्टी  - मीठी चटनी के चटखारे लेते हुए बोले 
' सब भालो है ! आमी एकाऊँटिंग देखबे ना ..
टेक्स रिटर्न फाईल करोछे ते दिन सब भालो बिजनेस खुल जाबे ! ' 
मिसेज चेटर्जी लतिका अपने पति शोमेन  को कोहनी मारते हुए काजल लगी बड़ी बड़ी  आँखों से उसे घूरती हुईं बोलीं ' सोमेन की तुमी ! टेक्स इज़ नेवर फन ! ' ( टेक्स कभी आनन्द दायक नहीं होता ) 
तिका ने कांथा की कढाई से सजी सुन्दर हरी रेशमी साडी बंगाली ढंग से बांधी हुई थी और वह देवदास की पारो सी ही सुन्दर लग रही थी।  
' ओय भाबी , सच्च दस्या ' सुचेत ने मेज पे हाथ ठोंकते हुए जोर से कहा और पूछा 
 ' त्वाडी स्कुल कैसी है ? '  
 क्यूंकि लतिका चेटर्जी एक  लोकल स्कुल में मेथ्स की, कक्षा ४ और ५ के बच्चों की टीचर थीं । 
' हेडेक होबे सुचेत ..कभी कभी फन ! '  .
लतिका ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया। उसके दोनों बेटे प्रोबीर और सुबीर भी उसी स्कुल में पढ़ते थे और मिस्टर और मिसेज चेटर्जी भी दो गली पार के मकान में उसी सब डिवीज़न में  रहते थे। 
       ' अब ये बताओ चेटर्जी बाबू , कौन से स्टोक खरीदना ? ' सुचेत ने पूछा। 
तब  तो सभी का ध्यान वहीं केन्द्रीत हो गया। अमरीका में स्थायी हुए , भारतीय सफल कार्यकताओं का ये भी एक बहुत बड़ा और महत्त्वपूर्ण विषय है।
 कौन से स्टोक में कड़ी मेहनत  से कमाई गयी अपनी संपत्ति का हिस्सा लगाया जाए ये चिंता,
 सभी भारतीयों के मन में ख़ास  बसी रहती है। 
अब तो  वहां उपस्थित  हरेक ने अपने अपने विचारों के अनुसार स्टोक के नाम गिनवाना शुरू किया।
 कोइ बोला ' सिस्को सीस्टम '  प्योर गोल्ड '  ! 
किसी ने कहा जी. ई . माने ' जनरल  इलेक्ट्रिक  ! '
 तो दुसरा बोला ' ऐप्पल में डालो पैसा ' ..
तीसरे ने 'सुझाया ' माईक्रो सोफ्ट ' भी लेना यार बील गेट्स को भूलना नहीं !' 
अंजू धीरे से मुस्कुराती हुई वहां से खिसक ली। ये सत्येन्द्र का विषय था। वही देखभाल किया करते थे। 
         महिला मण्डल में  साड़ी , गहनों और बच्चों की बातें प्रधान थीं। '
  भारतीय अमरीका में रहें या ईंग्लैंड में या और कहीं ..भारतीय स्वभाव नहीं बदलता ! ' अंजू ने सोचा ! 
' अंजू , शैल्टर पे चलोगी ना ?'   शैल्टर माने वह संस्था जहां निराश्रित और  गरीब व भूखे लोगों को भोजन करवाने का जिम्मा भारतीय कौम के कुछ सदस्य हर माह के किसी भी एक इतवार को ले कर किया करते थे। 
उसी को लेकर आशी ने प्रश्न किया था। अंजू ने भी हामी भरते स्वीकार किया और कहा ,
 ' हाँ पक्का , बता देना कौन से दिन चलना है ..आ जाऊंगी। '
 भारतीय लोग अमरीकी नागरिक हैं और कई तरह के सेवा के कार्य भी किया करते हैं।
 शायद अमरीका में आकर बसे,  विश्व के हरेक देश के लोगों  के बीच में रहते हुए 
 भारतीय कौम के लोग,  अमरीका में  प्रादेशिक भेदभाव भूल कर,  
अपने को एकजुट करने में उतने ही सफल हुए हैं जितने अपनी नौकरी और काम धंधे में सफल हो पाए हैं।
 ये भी एक सोचनेवाली बात है। 
     अब  अंजू  बाहर लोन की ओर बढी तो देखा  सरिता जी से,  चेटर्जी दम्पति की माता जी  जो मिस्टर  चेटर्जी की  माता जी थीं और उनका नाम शर्मिष्ठा चेटर्जी था,  वे दिव्या पटेल और सरिता जी से बतिया रहीं थीं
 और बांग्ला मिश्रित अंग्रेज़ी , हिन्दी में दोनों को प्राणायाम की विधि, बड़े स्नेह से सने मीठे स्वर में समझा रहीं थीं। 
  अंजू ने सत्येन्द्र को आवाज़ दी और बुलाकर पूछा  ' अब , केक कटवाया जाये ?  '
 सत्येन्द्र ने अंजू से आँख मिलाते हुए मुस्कुराकर हामी भरी और कहा
 ' बच्चा पार्टी को बेजमेंट से ऊपर बुला लो अंजू  ! मैं केक लेकर  अभी आया ..' 
कुछ मिनटों में  शादी की २५ वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में , मिस्टर  और मिसेज चड्ढा के शुभ हस्त से
डबल  चोकलेट का  केक काटा गया तो  बच्चों ने खूब तालियाँ बजायीं ! 
सभी बड़ों ने आगे बढ़कर उन्हें  आशीर्वाद दीये। 
तब चड्ढा दंपत्ति ने अदब से कमर तक झुककर वहां उपस्थित हर एक  बजुर्गों के बारी बारी से पैर छूए ! 
 तो बच्चे ये क्रिया देखने लगे ! वे  देख रहे थे और युवा पीढी भी देख रही थी। 
वे सभी  शायद भारतीय परम्पराओं की जड़ों को अमरीका की नई धरा पर फिर उगता हुआ महसूस कर रहे थे। बड़ों की आँखों में उमड़ी ममता छलक आयी थी !  दूर छूटी भारत की मिट्टी की सोंधी खुशबु का झोंका आयोवा प्रान्त की धरती पे , सरसराता हुआ सभी के मन को सहलाता हुआ निकल गया था।  
        बुजुर्ग वर्ग सोच रहा था कि ,  उन्हें अपने जीवन  की संध्या में , खिलते  हुए नये पुष्प की अभिलाषा  स्वरूप धेवते और नाती नातिन का प्यार  ही शायद इतनी दूर, अपने  वतन से दूर, सात  समंदर पार , अमरीका की धरा तक खींच लाया था। 
      ' मूल से ब्याज धन अधिक प्यारा लगता है न दिव्या बेन  ' सरिता जी ने धीमे स्वर में कहा। 
जिसे सुनकर दिव्या पटेल भी आशय समझ गयीं और सरिता जी का हाथ थामे हुए, 
 घर के भीतर ले चलीं और कहा
 ' व्हाला  सरिता बेन , ( प्यारी सरिता बहन )  हम लोग नसीबदार हैं। 
हमारे बच्चे इतने अच्छे हैं। हमारे पैर छूते हैं! इज्जत देते हैं !  
वो भी देखो न , अमेरिका में सफल होकर भी परम्परा को,  रीत रिवाज़ को भूल्या नथी! 
रणछोड़ राय सुखी करे बधा ने ' ( श्रीकृष्ण सब को सुखी रखें ) ! 
 दिव्या बेन ने गुजराती में बात ख़त्म करते हुए कहा तो सरिता जी से मुस्कुराए बिना रहा न गया। 
 उन्होंने दिव्या बेन का हाथ अपनी हथेली में कस कर पकड़ते हुए कहा, 
' इस बार डाकोर मंदिर के दर्शन करने हम लोग भी आप जब नडीयाद जायेंगीं तब आ जायेंगें।
क्यों जी , आप क्या कहते हैं ? '  अपने पतिदेव को वार्तालाप में शामिल करते हुए सरिता जी ने प्रश्न किया । 
' हाँ तुम्हारी इच्छा है तो चले चलेंगें ..दिव्या बेन और धनजी भाई पटेल जब वहां होंगें तब अवश्य जायेंगें। ' 
देवेश्वर जी ने जब ये कहा तो दिव्या बेन और उनके पति धनजीभाई पटेल भी प्रसन्न हो गये।
 ' हा हा , देव भाई .. आवोने एक वार अमारे आँगणे ..तमने डाकोर ना गोटा, ने पेंडा नो भोग जमाड़शुं '  
 धनजी भाई ने डाकोर के सुप्रसिध्ध  पेडों और भजियों का जिक्र करते हुए भावभीना निमंत्रण सामने रख दिया। 
' कहाँ  की तैयारी है बा ? ' 
वहां आ पहुंचे सत्येन्द्र ने दिव्या बेन पटेल से प्रश्न किया तो  धनजी भाई पटेल ने कहा ,
' अब तो वानप्रस्थ आ गया ना ..तो वन में कुञ्ज बिहारी लाल की जय जय कार करने, 
जात्रा पे जाने का कार्यक्रम करते हैं बेटा ! '  
उनकी बात सुनकर चारों बुजुर्ग मुस्कुराने लगे ..
' पर बा , आप लोगों  के धेवते , नाती आपके बगैर सूने हो जायेंगें !  
अगर आप लोग गये तो यहाँ ऐसी रौनक थोड़े ना रहेगी! ' सत्येन्द्र ने कहा। 
अंजू और अन्य कई सारे मेहमान भी वहां आकर खड़े हो गये और बात सुनने लगे थे । 
'  बेटा ! रौनक तो बच्चों से होती है हम बुढ़ों से नहीं ! ' दिव्या बा ने उत्तर दिया। 
' तुम लोग इस परदेश में भी इतना काम करते हो और हमारी सम्भाळ राखते हो ये कृष्ण कनैया लाल की जै बोलनेवाली बात है बेटा ! आजकल तो घरड़ा - घर  ,  बुजुर्गों के लिए बनाये आश्रय घर में बुढापा बीताते हैं लोग ! हमने बहुत पुण्य किया है जो तुम्हारे जैसे  इतने अच्छे बच्चे हमे मिले। भगवान तुम्हें सदा सुखी  रखे ! '
 दिव्या बा ने आँसू पोंछते हुए अपनी सूती साडी का गुजराती शैली से पहना हुआ पल्ला आँखों से लगा लिया तो उनके बेटे सुधीर पटेल ने आकर पानी का गिलास दिव्या बा के हाथों में थमाया और बा को गले से लगा लिया। 
फिर सुधीर पटेल ने  कहा 
 ' मेरी  बा ने  एक बार  सुनाया था - सुनो , 
'  पीपळ पान खरंत ,
  हस्ती कुपळिया , 
  मुझ वीती ,
   तुझ वीतशे , 
  धीरी बापुड़ीया  ! ' 
 केम खरूं कहूँ छूं ने बा ? '  ( क्यों सच कह  रहा हूँ ना माँ ?  )
 फिर मुड़ कर  सुधीर ने अपनी माँ दिव्या बा की ओर देखा। 
फिर सभी को संबोधित करते हुए  दोहे का अर्थ समझाते हुए कहा 
 ' पीपल के  पके  हुए पान को  गिरते देख कर ,
  नई  उगी हुईं  कोंपल हंसने लगी ! 
 तो पुराने पत्तों ने कहा 
'  हमें मुरझाया हुआ देख तुम नादाँन कच्चे पान, हंसो नहीं ! 
  जो आज मुझ पे बीत रही है , वह कल तुम पे बीतेगी ! 
  आशय ये है कि ,  एक दिन  तुम सब भी बूढ़े हो जाओगे '
 ये बड़ी पुराणी  गुजराती कविता है जिसे बा ने  एक बार मुझे समझाया था। 
               सुचेत , आशी,  सत्येन्द्र , अंजू, लतिका , मिस्टर चेटर्जी , सुधीर और कई सारी आँखें आते हुए भविष्य की पदचाप इस अमरीकी संध्या के डूबते सूरज के मंद पड़ते प्रकाश के साथ देख रहीं थीं और सुन रहीं थीं इस शाश्वत सत्य को !
        इस क्षण, समय के दरिया  से उठती निशब्द लहर के स्वर , अपने आनेवाले भविष्य को,
 अपने गुज़रे हुए कल के साथ जोड़ रही थी। संध्या का समय संधि काल का क्षण है। उसी तरह जैसे युवा अवस्था , मनुष्य  जीवन के शैशव और वृध्धावस्था की वय संधि का पड़ाव है। यौवन का दंभ क्षण मात्र के लिए होता है। 
         वर्तमान में खड़े वे सब  देख रहे थे उस कल को जो सुनिश्चित था की वह अवश्य आयेगा। 
वे समझ रहे थे कि आज वर्तमान में खड़े उन सभी के साथ एक सुद्रढ़ सहारा भी था।  जो उस आनेवाले दिनों के प्रकाश को और अधिक उज्जवल करने में सक्षम था और वह था बड़ों का आशीर्वाद और सत्कर्म की  प्रेरणा !  भारतीय परम्पराओं का पाथेय आज उनके साथ था।  
सप्ताहांत की दावत यादगार रही ! 
इस सुहानी शाम की दावत में,  माँ के प्रेम से सींचा और पुत्र द्वारा  प्रेम से परोसा गया सबसे लजीज व्यंजन  शाश्वत सत्य, साक्षात्कार का पावन क्षण ही वास्तव में शाम की दावत का सर्वथा अप्रतिम और अनूठा उपहार था।  

 - लावण्या

Monday, April 22, 2013

A Daughter remembers : ' Jyoti ~ Kalash '

 
A Daughter remembers : ' Jyoti ~ Kalash '


                   Like a  child that  climbs out of the womb of Earth and stands in awe witnessing the glorious golden Sun rays, sparkling on the highest peak of  majestic  Everest and remains transfixed that is the feeling flooding my tiny heart as I sit and write and remember my father , late poet Pandit Narendra Sharma. 
             His contribution is immense. It is spread over six decades on all the modern mass media communication avenues like Books, Films, Radio, Television and now the WWW Internet via YouTube, Face book etc.
          For me , i confess that  my Papa  was our  family's ' Jyoti ~ Kalash ' !  He remains  life  giving , illuminating SUN energizing and inspiring me inspite of lifes' pitfalls. I hope, his immortal  poems and songs will inspires us all today and forever.So, 

  I dedicate the song  ' Jyoti - Kalash Chalke' in his fond memory. 
 We all know him for his Hindi Songs but he was also an expert astrologer,  Ayurvedic healer, as well as human  encyclopedia on Indian History , Culture and Philosophy. 
Many children were given unique names like Vihaan ( Dawn ) , Yuti ( Union ) Lavanya ( Grace = me :)  Kunjam ( Cuckoo ) , Sopan ( chapter or ascent = My Son )
             Some Rare names given by him include ' Vividh - Bharti, ' Manjusha, Bela Ke Phool, Hawa Mahal , Gajra, etc for AIR , the name Dilip Kumar to Yusuf khan & NAVKETAN for Dev Anand's Film Production co. 

           A gifted child ' Narendra ' was born on February 28th , 1913 in village Jahangirpur,  Tehsil , Khurja of district Bulandshahar U.P. in a Bharadwaj Brahmin family. He lost his father Purna Lal Sharma when he was merely 4 years old and was  raised lovingly by Uncle Ganpat Tau ji &  Ma Ganga Devi.
            A child prodigy ' Narendra ' named thus by an uncle (a fan of Tagore) entered straight into class  7 th and was a top student in his class and favorite of Teachers.  
            Passing intermediate from Khurja, he  joined Allahabad university and did his Masters in English lit. & Education. 
            The Sangam city of Allahabad introduced the budding poet to giants of Hindi literature like Niralaji , Mahadevi, Pant, Bachchan, Kedar Nath , Shamsher &  many others.  Narendra's book of poems ' Shool - Phool ' was released @ age 20. Teaching other students  and doing editorial duties ( he  was sub editor of  Abhyudaya Hindi Daily Newspaper. ) he completed his studies. 
                After graduating He taught English & Hindi poetry @ Benaras Hindu University.Then joined AICC @ Allahabad as Hindi Secretary to Pandit Jawaharlal Nehru & joined All India Congress Committee as Hindi Adhikari Feb 1955           
                      
             Narendra Sharma' poems written in his youth , depicting love and longing and splandour of Nature steadily turned patriotic  as India reached its'  tryst with Destiny. 
                       During AICC work he was imprisoned on direct ordinance of Viceroy and jailed without trial by the British. The patriot had august company of Menon, kriplani  etc in Devli Detention Camp &  Rajasthan &  Pune Jails. He did fast unto Death for 14 days &  was force fed in order to keep him alive &  released early. 
                               Mother Ganga Devi remained hungry for 1 week  and awaitied her son's arrival at home. 
Novelist  Shri  Bhagwati Charan Verma ( Chitralekha fame ) arrived and asked the patriot to come away with him to the Film city of Bombay to join Bombay Talkies under Devika Rani. Thus began the journey of a young man born near the Ganga to go towards the Arabian Sea where destiny introduced him to Susheela Godiwala.  ( his wife to be from a Gujrati family.)  They  got married on may 12th 1947. Their home @ Shivaji park Matunga was a hub of artistic and creative activity with the likes of  Flutist Panna Lal Ghosh, Poet Pant,  Legendry music director Anil Biswas,  Shayar Dr Safdar Aah sitapuri,  The up & coming director Ramand  Sagar,  established Director Producer Chetan Anand & his younger sibling Vijay Anand,  A New actor & star  Dilip Kumar , Novelist Shri Amrit Lal Nagar etc as regular Guests. 

Narendra Sharma's poetry blossomed along with his many Film songs as years rolled on. The Progressive Patriotic tone eventually  embraced the core values of humanity and emerged  and paraphrased words from Indian philosophy with fascinating use of  many rarely used meters in his later poems.  
              So much so that his fellow poets said ' The Goddess of Poetry Mata Saraswati turned shy as a  young maiden stood up  from her White Lotus seat and took on the robes of Mother India and the poems of Narendra  became heavy with the age old wisdom of the vedas and became  extremely difficult ' 
                                   Narendra Sharma confessed in a foreword  from his Book ' Pyasa - Nirjhar ' [ Thirsty Brook ] 
' my earlier poems were the krishna paksh ( waning Moon cycle ) and my later poems are the transition towards Shukla Paksha ( Waxing Moon ) Shukla paksha refers to the bright lunar fortnight or waxing moon in the Hindu calendar. [Shukla (Sanskritशुक्ल) is Sanskrit word for color white]  
                  A Saint Poet in the tradition of our Bhakt Kavi Tulsi, Narsimh Mehta &  Tukaram .
poet 
Narendra Sharma remained young at heart till his last breath.
१९६० मे प्रकाशित "द्रौपदी: कवि अपनी खँडकाव्य की भूमिका में  स्वीकार  करता है कि "
राष्ट्रीय चेतना के निर्माण मे पुराण कथाओँ का बडा हाथ होता है। भारतीय जन मानस पर इनका गहरा प्रभाव है।
सुधार, प्रगति या आधुनिकता के नाम पर अचेतन जनमानस और पुराण कथाओँ से आज का काव्य अछूता , असँपृक्त रहे , यह उचित नहीँ। '
                        Narendra Sharma understood the changing social scene and  the changing modern mind.
Thus he &  Mr Pai were first to introduce Ramayan &  Mahabharat ,via  Indrajaal comic strip for children.
         Singer Late Shri MUKESH ji recorded Ram Charit Manas under his supervision for HMV. Among many other private albums  are  ' Prem, Bhakti, Mukti' , Ram Shyam Gu Gaan ' & others. 
                     
19 Books of Poems  like  among them are -
most famous ' Prawasee Ke Geet ' ( songs of a Traveler ) '
Hans - Mala, ( garland of Swan )   ' Rakt - chandan ( on Gandhiji ) ,
 Agni - Shasya ( child of Fire )  Kadlee - Van,  Draupadi , Uttar Jai, Bahut Raat Gaye etc &
 short stories  like Arti ki Thali , Kadvi Mithee Baatein &   innumerable Radio plays, Essays, Film songs, Dance Ballets ( for Sachin Shankar : Mermaid & Fishermen )  etc remain in 16 volume
Entire work of Pandit Narendra Sharma's ' Rachnawali '  
               
 Here , Janab Rifat Sarosh sahab writes about how Vividh Bharti came into being. Linkhttp://radionamaa.blogspot.com/2007/11/blog-post_29.html
             
 His Guidance for Durga Sapt Shatee ' sung by Anuradha Paudwal , Concepts like MAHABHARAT T.V series  & title songs like ' Satyam Shivam Sunderam ' &'  Atha Shree Mahabharat Katha'   his speeches to graduating students @ IIT Powai , Mumbai on Indian alphabets, OM symbol &  many others  Essays on topics like History of Hindi Film Music & ' Hindi Sahitya ka itihas '  etc remain with us. Do please see this link : 

Geet Ka Safar : Sahitya se Film tak 
:

For film : ' Meera Dubbing of Tamil Lyrics into Hindi was accomplished by Narendra Sharma  for Nightingale Shri Subhalaxmi ji.  She says  : 
 T. Sadashivam 
M. S. Subbulaxmi
SAVANT :
" The name Pandit Narendra Sharma is dear to us for nearly half a century. When a few years ago, someone suggested that Smt. Subbulaxmi should sing the Hindi renderings of the Tamil song of the Maha Kavi Subramanyam Bharti, we , spontaneously thought of Pandit Narendra Sharma to translate a few songs of poet Bharti into Hindi." 
 During the production of my " Meera " in which Smt. Subbulaxmi was featured as Bhakta Meera, Shri Narendra Sharma's association was of immense help to us. While we admired him as a great poet and a " Savant " in Hindi Literature we admired him as he was just simple and lovable. His fragile image with a beauty and friendly smile present all the time on his face could never be forgotten.


MS Subbulaxmiji sang the "Mangal - Geetam " when my mother Smt. Susheela Narendra Sharma entered as a newly married bride and Sri Amrutlal Nagarji's wife Pratibhaji made Susheela stand on huge brass platter, filled with Kumkum filled water and she stepped like a ' Laxmi ' entering a home.
Suraiyaji , the famous songstress also sang songs to welcome the Bride ! 
Other Guests in Baraat were famous Cine - stars like Sri Ashok Kumar, Dilip Kumar, music director Sri Anil Biswas, Bansuree vadak Sri Panna Lal Ghosh, director brothers Sri Chetan Ananda &  Vijay Anand ,
 The famous Chhayawadi poet Sri Sumitra Nandan Pantji , Sri Ramananda Sagar ji , Urdu poet Safdar " Aah " sahab amd many other from Bombay Talkies and Hindi literrarry & Film circle. 

Art fraternity, also was represented in large number as my mother Susheela was a Fine Arts graduate from Haldenker 's Institute .
 
Their wedding card had an Easel shaped like a Lotus Leaf &  a PEN was inserted in the middle in form of a brush !
  Remembers  Swar Samragnee Su Shri Lata Mangeshkar Didi ji,  in an article : 
From an article :
"I was deeply touched when Ustad Ali Akbar Khan requested me to sing the title song of Aandhiyan penned by renowned lyricist, Narendra Sharma. I cried after recording the title song, ' Aye kisi ki shaadmani,'  which he composed so well with minimum number of instruments emphasizing on my voice and delivery during the mukhdas and antaras. I did not charge producer Dev Anand a single penny for the song."

Link -
                    The Innugural song for ASIAD Games @ New Delhi, ' Swagatam Shubh Swagatam ' , The Innugural song for Vividh Bharti composed by Pandit Ravi Shankar ,  " Nach Re Mayura '  composed by Anil Biswas & sung by Manna Dey , Two of legendry Subhrahmaniyam Bharti's poems ,' Swasti ~ Shri ' & ' Jaynaad ' &  Kannada poet Shivruddrappa's poem ' Purush sukta ' in Hindi  as ' Nav Bharat Purush ' ,  ' Surdas A Minstrel of Shri Krishna ' ,  Tagore's poem ' Shei din dujone '   transformed as ,  Nain Deewaane, ik nahin maane , kare man maani maane na ' in Suraiya's lilting sweet voice and Marathee Kavi Shri Tambe's poem in Hindi emerged as '  Madhu mang na mere madhur meet ' sung by Shri Sudhir Phadke for Doordarshan in a LIVE telecast from Mumbai. etc are among the many gems that glitter on. 
            Our Family Home : &  My Memories: 

family
पँडित नरेन्द्र शर्मा, श्रीमती सुशीला शर्मा तथा २ बहनेँ वासवी (गोद मेँ है शौनक छोटा सा और पुत्र मौलिक) बाँधवी (बच्चे- कुँजम, दीपम ) लावण्या (बच्चे -सिँदुर व सोपान) और भाई परितोष घर के बारामदे मेँ
आज याद करूँ तब ये क्षण भी स्मृति मेँ कौँध - कौँध जाते हैँ.



(अ) हम बच्चे दोपहरी मेँ जब सारे बडे सो रहे थे। पडोस के माणिक दादा के घर से कच्चे पक्के आम तोड करकिलकारीयाँ भर रहे थे कि,अचानक पापाजी वहाँ आ पहुँचे। गरज कर कहा,"अरे! यह आम पूछे बिना क्योँ तोडे जाओजाकर माफी माँगो और फल लौटा दो"एक तो चोरी करते पकडे गए और उपर से माफी माँगनी पडी ! परन्तु इस घटना के बाद, हम बच्चे अपने और पराये की वस्तु  का भेद आज तक भूल नही पाए। यही उनकी शिक्षा थी। 
(ब) मेरी उम्र होगी कोई ८ या ९ साल की पापाजी नेकवि शिरोमणि कवि कालिदास की कृति"मेघदूत" से पढनेको कहा। सँस्कृत कठिन थी परँतुजहाँ कहीँ मैँ लडखडातीवे मेरा उच्चारण शुध्ध कर देते। आजपूजा करते समयहर श्लोक के साथ ये पल याद आते हैँ। 
(क)   सिँदूर के जन्म के बाद जब भी रात को उठतीपापामेरे पास सहारा देतेमिल जाते।  मुझसे कहते, "बेटामैँ हूँयहाँ" आज मेरी बिटिया की प्रसूती के बाद,यही वात्सल्य उँडेलते समय,पापाजी की निस्छलप्रेम मय वाणी औरस्पर्श का अनुभव हो जाता है। जीवन अत्ततित के गर्भ से उदित होकर,भविष्य को सँजोता आगे बढ रहा है। 

Late Poet Dr. Hariwans Rai ' Bachchan ji 's tribute on 60 th Birthday of his friend :
योँ तो नरेन्द्र जी इन चालीस वर्षोँ मेँ हमारी हिन्दी कविता जितने सोपानोँ से होकर निकली है, उन सब पर बराबर पाँव रखते हुए चले हैं .   शायद प्रारम्भिक छायावादी, उसके बाद जीवन के सँपर्क माँसलता लेते हुए ऐसी कविताएँ, प्रगतिशील कविताएँ, दार्शनिक कविताएँ, सब सोपानोँ मेँ इनकी अपनी छाप है. ...मैँ आपसे यह कहना चाहता हूँ कि प्रेमानुभूति के कवि के रुप मेँ नरेँद्रजी मेँ जितनी सूक्षमताएँ हैँ और जितना उद्`बोधन है , मैँ कोई एक्जाज़्रेशन ( अतिशयोक्ति ) नहीँ कर रहा हूँ वह आपको हिन्दी के किसी कवि मेँ नहीँ मिलेँगीँ उस समय को जब मैँ याद करता हूँ , तो मुझे ऐसा लगता है , भाषाओँ से हमारी कविता ने एक ऐसी भूमि छूई थी और एक ऐसा साहस दिखलाया था, जो साहस छायावादी कवियोँ मेँ नहीँ है ! वह जीवन से निकट अनुभूतियोँ से ऊपर उठकर ऊपर चला जाता था, यानी उसको छिपाने के लिये , छिपाने के लिये तो नहँ, कमसे कम शायद वह परम्परा नहीँ थी ! इस वास्ते उस भूमि को वे छूते ही नहीँ थे , लेकिन जन नरेन्द्र आये, तो उन्होँने जीवन की ऐसी अनुभूतियोँ को वाणी दी, जिनको छूने का साहस, जिनको कहने का साहस, लोगोँमेँ नहीँ था. यह केवल अभिव्यक्ति नहीँ थी, यह केवल प्रेषण नहीँ था, यह उद्`बोधन यानी जिन अनुभूतोयोँ से कवि गुजरा था, उहेँ औरोँ से अनुभूत करा देना था ! नरेन्द्र जी की कविताएँ प्रकृति - सँबँधी भी हैँ ..एक बात मेँ मुझे नरेन्द्रजी से ईर्ष्या थी, वह यह कि जब मैँ केवल गीत ही लिख सका, ये खँडकाव्य भी लिखते रहे और कथाकाव्य मेँ भी इनकी रुचि प्रारम्भ से रही है. मैँ अपनी शुभकामनाएँ इनको देता हूँ , आशीर्वाद देता हूँ और उनसे स्वयम्` , ब्राह्मण ठहरे, आशीर्वाद चाहता हूँ कि भई, मुझे भी ऐसी उम्र दो कि तुम्हारा वैभव और तुम्हारी उन्नति देखता रहूँ !( पँडित नरेन्द्र शर्मा की " षष्ठिपूर्ति " के अवसर पर डा. हरिवँश राय बच्चन के भाषण से साभार उद्`धृत )Link : http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/narendrasharma/index.htm
http://www.lavanyashah.com/2007/11/blog-post_28.html'Ganga Behti ho kyun ?  ' written by Pandit Narendra Sharma was sung by the  son Assam Late Shri Bhupen Hazarika ji .

FLASH BACK :
Janab Sadiq ali  writes, ' I greatly cherish my brief but intimate association with Narendra Sharma. He was with me in the A.I.C.C. Secretariat at Allahabad in the late thirties. http://antarman-antarman.blogspot.com/2006/12/some-flash-back.html

२ कविताएँ : 

चलो हम दोनों चलें वहां
भरे जंगल के बीचो बीच,
न कोई आया गया जहां,
चलो हम दोनों चलें वहां।
जहां दिन भर महुआ पर झूल,
रात को चू पड़ते हैं फूल,
बांस के झुरमुट में चुपचाप,
जहां सोये नदियों के कूल 


हरे जंगल के बीचो बीच,
न कोई आया गया जहां,
चलो हम दोनों चलें वहां।

विहंग मृग का ही जहां निवास,
जहां अपने धरती आकाश,
प्रकृति का हो हर कोई दास,
न हो पर इसका कुछ आभास,
भरे जंगल  के बीचो बीच,
न कोई आया गया जहां,
चलो हम दोनों चलें वहां।
आषाढ़ 
~~~~~~
पकी जामुन के रँग की पाग
बाँधता आया लो आषाढ़!
अधखुली उसकी आँखों में
झूमता सुधि मद का संसार,
शिथिल-कर सकते नहीं संभाल
खुले लम्बे साफे का भार,
कभी बँधती, खुल पड़ती पाग,
झूमता डगमग पग आषाढ़

सिन्धु शैय्या पर सोई बाल
जिसे आया वह सोती छोड़,
आह, प्रति पग 'अब उसकी याद
खींचती पीछे को, जी तोड़

लगी उड़ने आँधी में पाग
झूमता ड़गमग पग आषाढ़!
हर्ष विस्मय से आँखें फाड़
देखती कृषक सुतायें जाग,
नाचने लगे रोर सुन मोर
लगी भुझने जंगल की आग
हाँथ से छुट खुल पड़ती पाग,
झूमता डगमग पग आषाढ़!

ज़री का पल्ला उड़ उड़ आज
कभी हिल झिलमिल नभ केबीच,
बन गया विद्युत द्युति, आलोक
सूर्य शशि उडु के उर से खींच!
कौंध नभ का उर उड़ती पाग,
झूमता डगमग पग आषाढ़!

उड़ गयी सहसा सिर से पाग-
छा गये नभ में घन घनघोर!
छुट गई सहसा कर से पाग-
बढा आँधी पानी का जोर!

लिपट लो गई मुझी से पाग,
झूमता डगमग पग आषाढ़!
रचनाकार:
- पंडित नरेंद्र शर्मा
Pandit Narendra Sharma passed away on Feb. 11th 1989. 
in an article Snehal B. Oza writes :
' Today is Pandit Narendra Sharma's  death  anniversary. 
 Poet  par excellence,  as  he  was,  who wrote gems like 'Baandh Priti Phul
Dor', 'Aise Hain Sukh Sapan Hamaare' ,  
'Man  Mor  Hua  Matwala',
'Nain  Diwaane  Ik  Nahi Maane',
'Jyoti Kalash Chhalke', 
"Panchhi Aur Pardesi Dono Nahi Kisi Ke Meet' etc.etc. 
 He belonged to a  class  of  poets  to  have  blessed  the  film industry  that  included besides  him at the top there people like Kedar Sharma, Pradeep, Sarawati Kumar "Deepak",  Pt.  Bharat Vyas,  Pt.  B  C  Madhur,  Pt. Indra and others, carving a way of their own, using "shudhdh hindi".
I believe,  what  Panditji  has achieved  is  matched  by  very few. 
To reach at the bottom of an ordinary man's heart with such a clear and high class quality  in poetry 
shows class of a maestro.'
I thank ALLwho stop by here for this opportunity to share my thoughts for reading my humble Tribute 
- लावण्या