Monday, March 18, 2024

शिव ~ पार्वती ( अमर युगल पात्र ) ( भाग - १ )

ॐ ' ागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तये जगत पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वर। ' भावार्थः -- अहं विशिष्ट-शब्दार्थयोः सम्यक्-ज्ञानार्थं शब्दार्थौ एवं नित्य-सम्मिश्र संसारस्य मातापितरौ शिवा-शिवौ भक्त्या नमस्करोमि ॥ हम प्रणाम करते हैं जगत के माता व पिता, पार्वती व परमेश्वर को,
ो शब्द व अर्थके समुचित ज्ञान के लिए जो सदैव संयुक्त रहते हैं उसी की भाँति सदैव संयुक्त रूप में विध्यमान हैं। शिव शंकर, भोलेनाथ और देवी पार्वती भारत के प्राचीनतम आराध्य देवताओं में अग्रणी हैं। भोलेनाथ शिव, शंकर परम पिता हैं तथा उनकी पत्नी जगज्जननी शिवा ब्रह्माण्ड की माता हैं। ३,००० वर्ष पहले सिंधु घाटी के अवशेषों से त्रिशीर्षएवं विवस्त्र योगेश्वर शिव स्वरूप प्रतिमा उत्खनन से प्राप्त हुई है। असंख्य पुरातन सभ्यताओं के अवशेषों में, गर्भधारिणी माता के अवशेष स्वरूप भी प्राप्त हुए हैं। अतः हम कह सकते हैं कि शिव - शिवा स्वरूप ऐतिहासिक काल से भी प्राचीन होना चाहिए। पश्चिम एशिया के हिटाइट प्रजा तथा बेबीलोनिया के ' तेशब ' देवता तथा भारतीय ' शिव ' में साम्य है। उनकी पत्नी ' माँ ' स्वरूपिणी देवी' शिवा ' सिंह पर सवार हैं व उनके संग मधुमक्खी चित्रित की हुई दिखलाई देती है। इसी तरह सुमेरिया के ' नेर्यल ' देव के लिए लिखे गए सूक्तों में एवं ' शुक्ल यजुर्वेद ' में प्राप्त ' शत्रुंजय - सूक्त ' में काफी समानता है। शिव ~ शिवा का संपृक्त स्वरूप - ' अर्धनारीश्वर ' कहलाता है। चित्र:Ardhnarishwar.jpg दक्षिण भारत में संगम साहित्य के जनक ऋषि अगस्त्य जी को, कृपावश समस्त ज्ञान, शिव जी ने ही दिया था। अपने योगबल के प्रताप से पाषाण से निर्मित हाथियों की प्रस्तर प्रतिमाओं को शिवजी ने ईख ( गन्ना ) खिलाया था। शिव ने कदंबवन में मधुरपुरा का निर्माण किया। मत्स्य कन्या से विवाह की रोचक कथा शिवजी के संग जुडी हुई है। दक्षिण भारत में अनेकानेक महर्षियों को वेदज्ञान देनेवाले शिवशंकर को दक्षिण भारत में ' दक्षिणामूर्ति ' कहते हैं। योगाचार्य पतंजलि ऋषि को शिवजी ने कृपा कर ' नटेश्वर ' स्वरूप से नृत्य कर दिखलाया था। नंदीकेश्वर शिव को अतः ' नटराज ' भी कहते हैं। नर्तन करते हुए शिव नृत्य को तांडव कहते हैं जिस के दो स्वरूप हैं। पहला उनके क्रोध का परिचायक, प्रलयकारी रौद्र तांडव तथा दूसरा आनंद प्रदान करने वाला आनंद तांडव स्वरूप नटराज कहलाता है। आनन्द तांडव से ही सृष्टि अस्तित्व में आती है तथा उनके रौद्र तांडव में सृष्टि का विलय हो जाता है। शिव का नटराज स्वरूप भी उनके अन्य स्वरूपों की ही भांति मनमोहक तथा उसकी अनेक व्याख्याएँ हैं। ॥ क्रीं आनंद ताण्डवाय नमः ॥ देवी पार्वती ने उग्र ताण्डव नर्तन करते रूद्र को शाँत रास का नृत्य ' लास्य ' कर शाँत किया था। लास्य नृत्य देवी की प्रसन्नता, सौंदर्य तथा लावण्य का प्रतिनिधत्व करता हुआ नृत्य है। एक बार अपनी पत्नी पर मुग्ध होकर शिव ने पार्वती का सप्त सिंधु जल से अभिषेक करते हुए पार्वती का मन बहलाया था। महादेव शिवजी के असंख्य नाम हैं ~ अशनि , शिवशंकर, रूद्र ,भोलेनाथ, शूलपाणि , हर , उमापति, वृषभध्वज, पार्वतीपति ,गंगाधर , गिरीश, विश्वेशर अर्धनारीश्वर, शम्भो, महेश, शशांक ,महेश्वर ,देवेश ,भवानीपति, महादेव ,औढरदानी, योगेश्वर ईश्वर, ईशान ,भोला भण्डारी स्कन्द जनक , गणेशपिता, किरात ,ज्योतिर्लिंग ,साम्ब , सदाशिव, दिगंबर , शशिधर ,सुरसरीधर ,प्रलयंकर ,नटेश्वर ,अविनाश ,निरंजन ,पशुपति, विश्वनाथ,दिनकर ,त्रिपुरारी ओंकारा , त्रिभुवननाथ ,अहिभूषण धारी ,महाकाल, त्रयम्बक , सोमनाथ, नागेश, केदार ,धुश्मेश ,रामेश्वर वैध्य्नाथ ,भीमशंकर ,त्रिनेत्र बभ्रुवाहन, मेरुधर, नीलकण्ठ,श्रीकण्ठ , जलाष इत्यादि सृष्टि के अंत में प्रलय होता है। रूद्र रूपी शिव समस्त सृष्टि का संहार करते हैं तब उन्हें प्रलयंकर कहते हैं। त्रिमूर्ति ब्रह्मा सृजन के देव हैं विष्णु स्थिति के संयोजक जीव के कर्ता धर्ता हैं।तथा शिव तत्त्व प्रलय एवं पुनर्जन्म का संगम माना गया है। शिव स्वरूप एवं शिव महिमा भारतभूमि पर अनेक सदियों से विध्यमान है। मोहनजोदड़ो के ध्वँसावशेषों के उत्खनन से ' ध्यानस्थ शिव प्रतिमा' , नंदी बैल की प्राचीन प्रतिमाएं , प्राप्त हुईं हैं। जिनके आधार पर कह सकते हैं कि, शिव पूजन प्रणाली विश्व की अत्याधिक प्राचीन प्रथा है। विश्व में जन्म लेनेवाली प्रत्येक वास्तु, नाशवंत है। विनाश लीला के स्वामी शिव हैं ! वे आदिदेव हैं। व्याधि जनित उत्पात के देवता रूद्र कहलाते हैं। उसी उत्पात के शमनकारी कल्याणकारी स्वरूप को ' शिवम् ' कहते हैं। रूद्र देवता के अष्ट - स्वरूप हैं। कई पुराणों में एकादश स्वरूप का वर्णन प्राप्य है। रूद्र उत्पति से जोड़े असंख्य आख्यान भी मिलते हैं। जिनमें से यह प्रख्यात है कि ब्रह्माजी प्रजापति पर अप्रसन्न हुए तब ब्रह्माजी की भृकुटि से ' रूद्र ' उत्पन्न हुए। अतएव वे ब्रह्माजी के क्रोध का प्रतीक हैं। सर्प व नागों के आभूषण धारी शिवजी को ' नागेश ' भी कहते हैं। शिवजी के अद्भुत सुगठित, स्फटिक सम श्वेत कांतिपूर्ण मुखमंडल तथा शुभ्र सुडौल देहयष्टि ी उपासना अनेक संस्कृत स्तुति एवं श्लोकों में प्राप्य हैं। गौर वर्ण के शिवजी के मस्तक पर स्वर्णिम केशराशि से बंधे जटाजूट से, जिस पर चन्द्रमा विराजित हैं वही चंद्रशेखर शिव जी विलक्षण दिखलाई देते हैं। शाँत प्रशांत तेजोमय मुखमण्डल पर अर्धनिमीलित नेत्रों से समस्त ब्रह्माण्ड व सृष्टि के हर जीव के प्रति करुणा स्नेह निर्झर बहता है। शिवजी की दो भौंहों के मध्य में तीसरा नेत्र,अधिकांश बंद रहता है जो अर्ध चंद्र सा प्रतीत होता है। किन्तु यदाकदा उद्दीप्त होकर खुलता है उदाहरणार्थ मदनभस्म प्रकरण ! अपने योगस्थ सुडौल अंगों पर शिवजी भस्म लगाए रहते हैं ,मृगचर्मधारी, बाघम्बर के आसान पर विराजित शिवजी ध्यानमुद्रा में समाधिस्थ रहते हैं। हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में कैलाश पर्वत शिवजी का डेरा है।अतः वे कैलाशपति हैं। मूँज पर्वत पर भी शिवजी का निवास है। प्राचील काल से रूद्र देवता अनार्यों द्वारा पूजित रहे।अनार्य शिव रूद्र को मद्यमाँस भक्षक,भूत वेष्टित, अत्यंत क्रूरकर्मा, तामस देवता स्वरूप पूजते थे। वैदिक काल में भी उनकी पूजा हुई।तदनंतर त्रिशूलधारी शिव की उपासना ने लिंगोपासना का स्वरूप भी ग्रहण किया। काशी विश्वनाथ उज्जैयनी नगर के लिंग स्वरूप शिव आज २१ वीं सदी में उसी समर्पण सहित विधिविधान द्वारा पूजित हैं। सर्वत्र शिव त्रिशूलधारी, वृषभवाहनासीन. शिव पुरण के अनुसार समुद्र मंथन हुआ था तब अमृत के साथ समुद्र में से विष भी निकला। समस्त सृष्टि को हलाहल विष के प्रभाव से रक्षित करने हेतु आदिदेव भगवान शिव ने, अत्यंत भयंकर हलाहल विष पी लिया। विष पान कर शिवजी का शरीर विष के प्रभाव से अत्याधिक गर्म होने लगा।चन्द्रमा शीतल होता है। शिवजी के शरीर को शीतलता मिले इस कारण शिवजी ने समुद्र मंथन से निकले रत्न, चंद्रमा को अपने शीश पर जटाओं में धारण कर लिया। तभी से चन्द्रमा शिव के मस्तक पर विराजमान हैं।एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार चन्द्र का विवाह प्रजापति दक्ष की २७ नक्षत्र कन्याओं से संपन्न हुआ। परन्तु चन्द्र का स्नेह एक रोहिणी नामक पत्नी पर विशेष था। अतः अन्य कन्याओं ने दक्ष से जाकर चन्द्रमा के पक्षपात भरे बर्ताव की बात कह दी। दक्ष ने क्रोध में आकर चन्द्रमा को क्षय होने का श्राप दे दिया। इस श्राप के कारण चन्द्र क्षय रोग से ग्रसित होने लगे। उनकी कलाएं क्षीण होना प्रारंभ हो गईं इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए चन्द्रमा ने भगवान शिव की तपस्या सोमनाथ क्षेत्र में की थी । ~ लावण्या

Monday, July 31, 2023

" ओ जंगल के हिरने ~~

बन का हिरना ~~ : पं. नरेंद्र शर्मा ~~
" ओ जंगल के हिरने ~~ "
किसी नगर का एक नवयुवक उस हिरण के जंगल से, बांसुरी बनाने के लिए एक बांस की पौरी काट लाता है। वह हिरन उसी बाँस की पौरी के स्वर पर मर मिटने, शहर चला आता है।"           कविता प्रस्तुत है ~ 
" एक था हिरना, एक थी हिरनी!
हिरना था वह प्रेमी पागल,
फिरता था नित जंगल जंगल;
बतलाऊँ हिरनी कैसी थी?
बड़ी खिलाड़िन नटखट चंचल!
दूर दूर फिरती रहती थी,
जैसे फिरती फिरे फिरकनी!
एक था हिरना, एक थी हिरनी!

देखी धरती-सूखी गीली,
ऊँची नीची औ पथरीली,
(छाँह न तिनके की)—रेतीली!
देखे हरे-भरे वन-पर्वत,
देखीं झीलें नीली नीली!

साँझ-सुबह देखीं बनी-ठनी,
देखी सुंदर रात चाँदनी,
अँधियारे में हीर की कनी!
देखा दिन का जलता भाला,
और रात—चंदन कीं टहनी!

देखे कहीं कूकते मोर
(प्रेमी को प्यारा वह शोर!)
नाच रहे सुख से निशि-भोर,
नाच नाच कर पास बुलाते
मेघ रहे अग-जग को बोर!

आई गई और फिर आई,
हिरनी फिर भी हाथ न आई,
हिरने की चकफेरी आई!
मिली न वह सोने की हिरनी,
देशदुनी की ख़ाक छनाई!

आया एक सामने दलदल,
फँसी जहाँ जा हिरनी चंचल
दुख से, प्यारी आँखें छलछल!
हिरना प्यारा, दुख़ का मारा,
दूर पड़ा था गिर मुँह के बल!

थे हिरना के व्याकुल प्राण,
जैसे चुभें व्याध के बाण!
हिरनी कहती-सुनो सुजान!
दूर दूर भागी फिरती थी
तुमको अपना हिरना जान!

बन में आया शेर शिकारी,
भूख बुझाने का अधिकारी,
कहता था—अब मेरी बारी!
देख हिरन-हिरनी की जोड़ी
हँसी क्रूर आँखें हत्यारी!

देख शेर के मन में आया,
मैंने इनको खूब मिलाया;
बहुत मृगी ने खेल खिलाया,
(जिए दूर, मिल गये मौत में)
हिरने ने हिरनी को पाया!

एक था हिरना, एक थी हिरनी!
                                             हिरना था वह प्रेमी पागल,
फिरता था नित जंगल जंगल;
बतलाऊँ हिरनी कैसी थी?
बड़ी खिलाड़िन नटखट चंचल!
दूर दूर फिरती रहती थी,
जैसे फिरती फिरे फिरकनी!
एक था हिरना, एक थी हिरनी!
Spotted Deer Couple | @ Tholpetty Wildlife Sanctuary | Anindya Sankar Dey |  Flickr
 
  यह लोक कथा को उद्घाटित करती हुई अनोखी शैली में लिखी हुई कविता है।
ऐसी कई कविताएं व गीत मेरे पूज्य पापाजी पंडित नरेंद्र शर्मा की लेखनी से उभर कर हिंदी साहित्य को अपना अनमोल मोती से गुंथा कंठहार दे गए हैं।

फिल्म : मुनीम जी से यह गीत कविवर शैलेन्द्र की लेखनी से, स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर दीदी जी द्वारा यह गीत घायल हिरनिया ~~ https://www.youtube.com/watch?v=xs5njRr1mCo
                   
  ~~~    रामायण से  हिरन की कथा ~~
   प्राचीन काल में, त्रेता युग में, सरयू नदी के किनारे, शिकार की घात में छिप कर बैठे महाराज दशरथ जी को ऐसा स्वर आभास हुआ कि, कोइ वन प्राणी, शायद कोइ हिरन, नदी का जल पी रहा है। किन्तु यह " डब ~ डब " ध्वनि करता  स्वर,
मातृ~ पितृ भक्त श्रवण जी द्वारा हो रहा था। मातृ पितृ भक्त  श्रवण कुमार अपने वृद्ध माता पिता को भारत वर्ष के विभिन्न तीर्थ स्थानों की पैदल चल कर यात्रा करवा रहे थे। अपने वृद्ध, थके हुए  माता पिता को नदी किनारे बैठाल कर श्रवण कुमार नदी से जल भरने के लिए ,हाथ में कांसे का लोटा लिए सरयू नदी किनारे आगे बढे। जैसे ही उन्होंने जल भरने के लिए लोटे को नदी के जल में डुबोया तो जल भरने के प्रयास में, उस लोटे से " डब ~ डब"  ध्वनि आयी। अपने प्यासे एवं अंध माता, पिता को कावड़ में बिठला कर नगर - ग्राम प्रांतों में तीर्थाटन कर रहे श्रवण कुमार जल भरने में निमग्न थे।  तृषा (प्यास ) से थके~ हारे माता, पिता को नदी किनारे बिठला कर, श्रवण कुमार कल कल कर बहती नदी देख, जल लेने आ पहुंचे थे। संध्या का समय था। सूर्य देवता क्षिताजाकाश में, विलीन हो रहे थे। रात्रि का अन्धकार आगे बढ़ रहा था। संभल कर पग धरते  हुए श्रवण कुमार नदी  धारा तक आये थे। कांसेकी छोटी गगरिया आगे बढ़ा कर वे जल  भरने लगे। लुटिया से ' डब ~ डब ' स्वर उभरा। तब अचानक, दशरथ राजा जो आखेट खेलने के लिए शर संधान कसर बैठे थे उनहोंने शब्द विधि बाण चला दिया ! तीर ठीक श्रवण कुमार की छाती में गड गया ! हृदय में घुसकर रक्त का प्यासा बाण, श्रवण कुमार के प्राण लेने लगा। श्रवण कुमार ने चीत्कार किया तो राजा दशरथ भय मिश्रित आश्चर्य से चौंके ! मन से भाव उठा, " अरे, यह तो मनुष्य का स्वर है, हे प्रभु ! यह कैसा अनर्थ मुझ से अनजाने में हो गया ! " वे उसी दिशा में दौड़े जिधर से चीत्कार का स्वर उठा था। अपने हो बाण से घायल श्रवण कुमार को राजा दशरथ ने कोमल हाथों से उठा लिया। श्रवण कुमार ने भर्राये गले से कहा, ' हे राजन मेरे तृषार्त , वृद्ध माता पिता उस दिशा में मेरी राह देख रहे हैं ,आप उन्हें कृपया जल पीला दें " इतना कहते ही श्रवण कुमार के प्राण पखेरू उड़ गए ! ~~ यह श्री रामचंद्र जी के जन्म के पूर्व घटित हुई रामायण की पूर्व पीठिका सम कथा है। 
         मेरी एक कविता,  हिरनी  और हिरन  की प्रेम कथा पर आधारित है। इस कविता ~ कथा में दो पात्र हैं, नायक बंसी व बंसी की  प्रेयसी राधा! दोनों का वार्तालाप  कविता ~ कहानी द्वारा हो रहा है।
Deer Couple | Animals kissing, Animals, Cute animals
 
 " एक था हिरना , एक थी हिरनी, 
आप सुनाऊँ कहानी इनकी
जंगल जंगल साथ घूमते 
 इन में प्यार बहुत था 
 सो  वे मुख  भी थे चूमते,
एक था हिरना , एक थी हिरनी  ~ 
एक दिन एक शिकारी आया 
खींच कर उस ने तीर चलाया
राधा : हाय .......  
मार दिया हिरनी को उस ने
हाय बेचारा हिरन पछताया ! 
एक था हिरना , एक थी हिरनी  ~ 
राधा :  "बन्सी फ़िर क्या हुआ ?"
बंसी :  खाल खेंच कर उस निर्मम ने 
सुँदर सा एक मृदङ्ग बनाया ~ 
खूब बजाता ~~  नाच कराता
भिलणी को वह नाच कराता 
एक था हिरना , एक थी हिरनी  ~ 
राधा : "  बंसी आगे क्या हुआ ? "
बंसी : रोज़ सांझ को हिरण बेचारा 
सुन कर थाप, खींचा  आता था ~
राधा :"बंसी आगे क्या हुआ ? "
बंसी : रोज़ शाम को हिरन बेचारा सुनकर थाप 
खींचा चला आता था ! "
राधा : " हाय....... बंसी "
बंसी : ढलता सूरज रोज़ देखता
बार बार वह याद करता अपनी हिरणी को ! 
एक था हिरना , एक थी हिरनी ~
आह लगी हिरनी की आखिर,
गिर पड़ी नाचते भीलनी एक दिन ! 
परबत घाटी नदियाँ गूँज उठे थे ~ 
जंगल भर में खामोशी छायी "
राधा :" हाय......  च्च च्च "
बंसी : रह गए दोनों अब अकेले 
दोनों घायल, दुःख को झेलें,
गूंजती रह गयी थाप मृदंग की !
एक था हिरना , एक थी हिरनी, 
एक थी हिरनी , एक था हिरना " 
**********************************************
                                    ~~ लावण्या दीपक शाह

Monday, July 3, 2023

आकाशवाणी के भीष्म पितामह मेरे पापा स्वर्गीय पँडित नरेन्द्र शर्मा : स्मृतियों के सुनहरे रुपहले पंख

 आकाशवाणी के भीष्म पितामह मेरे पापा स्वर्गीय पँडित नरेन्द्र शर्मा


स्टुडियो मेँ चिँतन की मुद्रा मेँ पँडित नरेन्द्र शर्मा ~
**************************************
जब हम छोटे थे तब पता नहीँ था कि मेरे पापा जो हमेँ इतना प्यार करते थे,
वे एक असाधारण प्रतिभाशाली व्यक्ति हैँ, जिन्होँने अपने कीर्तिमान, स्वयं  बनाये और वही पापा जी, हमेँ अपनी नरम हथेलियोँ से, ताली बजाकर, जिस वक्त स्वरचित  गीत सुनाया करते थे तब हमें स्वर्गीय आनंद मिला करता था। हमारे पापा, श्री कृष्ण पर लिखा सुमधुर गीत गाया करते थे तो हम बच्चे आस पड़ौस के अन्य बाल गोपालों के संग उठ खड़े होते और नाचने लगते ! हमेँ नृत्य करता देख, पूज्य पापा जी हलके से  मुस्कुराते और उनके सधे  हुए, मीठे स्वर से यह सुन्दर कृष्ण गीत गाय करते थे ~~ 
"राधा नाचे कृष्ण नाचे,
नाचे गोपी जन !
मन मेरा बन गया सखी री, सुँदर वृँदावन !
राधा नाचे कृष्ण नाचे, नाचे गोपी जन!
मन मेरा बन गया सखी री, सुंदर वृंदावन
कान्हा की नन्ही उंगली पर नाचे गोवर्धन
राधा नाचे कृष्ण नाचे, नाचे गोपी जन!
मन मेरा बन गया सखी री सुंदर वृँदावन।

श्याम सांवरे, राधा गोरी, जैसे बादल बिजली!

जोड़ी जुगल लिए गोपी दल, कुञ्ज गलिन से निकली~
खड़े कदम्ब की छाँह, बाँह  में बाँ  भरे मोहन!
राधा नाचे कृष्ण नाचे, नाचे गोपी जन !

वही द्वारिकाधीश सखी री, वही नन्द के नंदन!
एक हाथ में मुरली सोहे, दूजे चक्र सुदर्शन!
कान्हा की नन्ही उंगली पर नाचे गोवर्धन!
राधा नाचे कृष्ण नाचे, नाचे गोपी जन


जमुना जल में लहरें नाचें , लहरों पर शशि छाया!
मुरली पर अंगुलियां नाचे , उंगलियों पर माया!
नाचे गैय्याँ , छम छम छैय्याँ , नाच रहा मधुबन!
राधा नाचे कृष्ण नाचे , नाचे गोपी जन!
मन मेरा बन गया सखी री सुंदर वृंदावन

~ पंडित नरेंद्र शर्मा

 आज स्मृतियों के सुनहरे रुपहले पंखों के सहारे मैं, शैशव की इंद्रधनुषी आभा को पार करते हुए अपने बचपन के घर के उस कमरे में पहुँच रही हूँ जहां उस गीत को पापा जी जब गाया करते थे, तब शायद मेरी ऊम्र ४ या ५ बरस की रही होगी.... चित्र ~ वासवी ६ वर्ष की व मैं, लावण्या, ४ वर्ष की

पापा जी आकाशवाणी, विविध भारती के भीष्म पितामह बने कार्यक्रमोँ की रुपरेखा तैयार करने मेँ स्टुडियो मेँ १८, १९ घँटोँ से ज्यादह, अपने साथीयोँ के साथ काम किया करते थे। १९५६ से १९७१ तक वे आकाशवाणी से सँलग्न रहे।

याद आता है जब भी पापा जी कुछ लिख रहे होते माने साहित्य सृजन में संलग्न रहते, तब हमारी प्यारी अम्मा, सुशीला जी, हमेँ डाँटती और कहतीं, ~
" शोर मत मचाओ शाँत रहो और  अपना होम वर्क करो " 

बचपन के दिनों में, हमारी हिम्मत न होती कि हम पापा जी के सामने  कभी रेडियो चलाते ..हाँ अम्मा,पापा जी बाहर जाते ही, हम बच्चे,  रेडियो सीलोन से प्रसारित "बीनाका गीतमाला " रेडियो स्टेशन लगा लेते और खुश होते थे जब यह धमाकेदार गाना उस पर बजता था और घर पर अम्मा पापाजी की उपस्थिति नहीं हुआ करती थी तो हमारा जोश उमड़ घुमड़ पड़ता था ~~ रफ़ी सा'ब का स्वर

" तीन कनस्तर पीट पीट कर गला फाड कर चिल्लाना,
यार मेरे मत बुरा मान ये गाना है ना बजाना है ...तीन कनस्तर .." ;-)

मुझे याद है कि, हम तीनों बहनें अपनी हथेलियां आगे फैला लेते और हाथ मिलाकर तालियां बजाने लगते थे जब 'तीन कनस्तर' शब्द सुनाई पड़ता था।

जैसा रेडियोनामा का लोगो है बिलकुल वैसा रेडियो हमारे घर पे भी था।
पूज्य पापाजी व अम्मा का घर ~~

घर के फर्श की टाइल्ज़ का रँग एकदम टमाटर के लाल रँग जैसा चटख था जिस पे सुफेद और काले छीँटे थे वैसा रँग आजतक किसी घर के फ़र्श का मैँने देखा नहीँ और जितना शोख लाल रँग उस घर की जमीन का था वैसा ही लाल चटख प्यार की ऊष्मा से लबरेज़ माहौल खुशनुमा प्यार से भरा, छलकता हुआ  माहौल भी पापाजी और अम्मा के उस घर में सदैव कायम रहता था। हमारे पापा अम्म्मा के घर के दरवाज़े सभी के लिये दिन रात, खुले रहते थे। भारत वर्ष की बडी बडी नामचीन  हस्तियाँ, वहाँ मेहमान बन कर पधारा कर पधारा करते थे। जैसे यूसीफ अंकल याने मशहूर साइन कलाकार श्री दिलीप कुमार साहब। उन्होंने एक बेशकिमती पर्शीयन कारपेट जो गहरे मैरून रंग की थी उसे तोहफे मेँ दी थी। वही दीवाने खास यानी कि, ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाया करते। वह ड्रॉइंग रूम पूज्य पापा जी का अध्ययन कक्ष था। वहीं उनकी खरीदी हुई असंख्य दुर्लभ पुस्तकें थीं। जिन्हें हमारी अम्मा झाड़ पोंछ कर, व्यवस्थित रखा करतीं। साथ विशुध्ध भारतीय ढँग की बैठक भी सजाया करती थीँ मेरी अम्मा ! तीन बड़े ब,ड़े रुई से भरे गद्दों को करीने से लगाया जाता उन पर बीचों बीच, एक बड़ा सा गोलाकार मृदङ्गाकार तकिया और आस पास दो उसी आकार के लम्ब गोल गाव तकियेरखे रहते।
चित्र : शास्त्रीय गायक श्री सुरेंद्र सिंह सचदेव जी डोगरी भाषीय कवयित्री पद्मा सचदेव जी के पति व पं. नरेंद्र शर्मा तखत के पास बैठे बतियाते हुए ~

          भारतीय  क्रिकेट टीम के Selector & C.C.I President मेरे पूज्य दादा
श्री श्री राज सिँह जी "डुँगरपुर "  कुँवर सा'ब भी आया करते थे।  पूज्य दादा ने मुझे, एक वर्षगाँठ पर, उपहार में, हथेली जितना छोटा सा एक ट्राँज़िस्टर रेडियो मेरी साल गिरह पे दिया था और कहा था, " Talents ! You must listen to my Expert comments during the Test match " ;-) ( वे मुझे टेलेन्ट्ज़ ही बुलाते थे और उलाहना देते थे  कि मुझ मेँ बहुत सारे गुण तो हैँ परँतु मैँ उनका सद्`उपयोग नहीँ किया करती :-)
    सं. १९७० में भारत सरकार ने अन्य दो, तकनीकी विशेषज्ञ व दो ईँजीनीयरोँ के साथ, पापा जी पंडित नरेंद्र शर्मा जी को जापान और अमरीका की यात्रा पे भेजा।
       विविध भारती रेडियो प्रोग्राम " आकाशवाणी" के अंतर्गत सुचारु रूप से चल रहा था। करोड़ों श्रोता अपने मनपसंद व अत्यंत लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम विविध भारती के विविध बहुआयामी कार्यक्रम जैसे चित्रहार, स्वर संगम, झरोखा, हवा महल, काब्य संध्या उत्यादि जैसे कार्यक्रमों का नामकरण किया तथा उनकी विशिष्ट रुपरेखा भी बनायी थी जो श्रोता वर्ग में अत्यंत लोकप्रिय हो चलीं थीं।  भारत के कोने कोने से करोड़ों श्रोतागण जुड़ चुके थे।

अब सँचार माध्यम क्रान्ति के तहत, रेडियो, जो श्रव्य प्रधान माध्यम था, उस के साथ साथ सँचार क्रान्ति पटल पर अब दृश्य + श्रव्य प्रधान माध्यम  टेलेविज़न के रूप में  जनता के समक्ष उभर रहा था। भारत सरकार का टेलीवीज़न के बारे मेँ जानकारी हासिल करना आवश्यक हो गया था।
चित्र ~ महानगर लॉस एंजिलिस, कैलिफोर्निया प्रांत अमरीकी भूखंड के पश्चिमी किनारे पर पं. नरेंद्र शर्मा शिप में
चित्र : अमरीकी टेलीविज़न स्टूडियो सी बी. एस. में भारतीय सरकार के प्रतिनिधि पंडित नरेंद्र शर्मा


इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology)

Ministry of Electronics and Information Technology - Wikipedia

जापन यात्रा के दौरान वहाँ के  रेडियो कार्यक्रम संस्थान वालोँ ने एक बड़ा सुँदर ट्राँज़ीस्टर रेडियो जिसे व्यक्ति अपने संग ले कर कहीं भी ले जा सकता है और जो एक ही जगह पर सहित रेडियो के बजाय इस नाते अलग प्रकार की सुविधा प्रदान करता है वैसा नई ईजाद का ट्रांज़िस्टर रेडियो पूज्य पापा जी को गीफ्ट मेँ तोहफे में दिया था।  मुझ से बड़ी मेरी बडी बहन (अब स्व. वासवी मोदी) और मैं मँझली लावण्या, जब हम, उच्च शिक्षा ग्रहण करते हुए विश्व विद्यालय माने  कोलेज मेँ आ पहुंचे,  तब तक, वासवी उसी ट्रांज़िस्टर से दिन भर गाने सुना करती थी। मेरी आदत प्रिय वासवी से कुछ अलग है। मैँ जब भी रेडियो से या टेलेविज़न या किसी भी माध्यम से कोइ गीत सुनती हूँ  तब मैं  कोई अन्य काम नहीँ करती ! क्योंकि मेरा पूरा ध्यान गीत के बोल, सँगीत, उतार चढाव पे केन्द्रित रहता है और इसी कारण मुझे लाखोँ गीतोँ के बोल अक्सर याद रहते हैँ ..!!
       हमारे पूज्य पापा जी व हमारी प्यारी अम्मा के घर का रहन सहन बहुत ही सादा हुआ करता था। घर भर में फैली शाँति इतनी असीम हुआ करती थी कि, आप मान नहीँ ही सकते कि, बँबई जैसे महानगर व भीडभाड भरे उस विशाल जनसंख्या से दिनरात अविरल, अनवरत चल रहे उस बड़े शहर के एक भूभाग में, एक उपनगर खार के एक छोटे से घर मेँ आप बैठे हैँ और शोर शराबे से दूर सुकून पा रहे हैं। शायद  यह  मेरी अम्मा की मेहनत व प्रेम का दर्पण था जो मँदिर जैसे उस पवित्र आवास के आसपास के वातावरण को,  ऐसी ऊर्जा दिया करता था। चन्दन, चमेली की सुगंध से महकती अगरबत्ती पूज्य पापाजी के अध्ययन खण्ड में सुवासित रहती घर के आसपास बगिया थी। उस  बाग़ में, अम्मा के  अथक परिश्रम से उपजे असंख्य सुगन्धि मनोरम पुष्प जैसे जुई, जाई, चमेली, मोगरा, गुलाब व गेंदा इत्यादि खिले रहते। ईमली,अमरुद, नारिकेल जैसे फलों से लदे  पेड़ों से मुस्कुराते हुए उस बाग के सुगँधित फूलोँ से अम्मा घर के विभिन्न कक्ष सुसज्जित किया करतीं थीं। वह घर सदा महकता रहता थाबी और इसी घरके साथ, भारत के सुप्रसिध्ध रेडियो प्रोग्राम आकाशवाणी के सभी कार्यक्रमोँ के नाम, उनकी रुपरेखा व अन्य सारी बारिकियोँ को अँजाम देनेवाले पण्डित नरेन्द्र शर्मा,रेडियो के जनक या भीष्म पितामह की यादेँ जुडीँ हुईँ हैँ मेरे लिये, जो आज भी वैसी ही फूलोँ की तरह महकतीँ हुईँ, तरोताज़ा हैँ ~~~~
-- लावण्या



Sunday, April 30, 2023

' परदेस : चुनौतियां एवं संभावनाएं ' संयुक्त गणराज्य अमेरिका से २१ सितम्बर, २०२१


संशोधित व्याख्यान : २१ सितम्बर, २०२१

उपस्थित गणमान्य सभी को  संयुक्त गणराज्य अमेरिका से ~~
 

सादर नमस्ते 🙏
 ' परदेस :  चुनौतियां एवं संभावनाएं ' जैसे भौगोलिक एवं सामाजिक विषय पर 
विश्व के " सुपर पावर " अमेरिकी  सन्दर्भ से मेरे विनम्र विचार प्रस्तुत हैं। 

अमेरिका भूखंड का भौगोलिक स्थान

Orthographic map of the U.S. in North America
 
पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध पर कनाडा और मेक्सिको के मध्य में अमेरिका भूखंड स्थित है।   
 
प्रत्येक व्यक्ति विश्व के किस देश में जन्म लेता है, किस समाज में निवास करता है और वयस्क होने पर वह व्यक्ति कौन से क्षेत्र मेम और क्या कार्य करता है, तदनुसार  जीवन निर्वाह के आयाम निर्धारित होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति, अपने देश का महत्वपूर्ण नागरिक  है। व्यक्ति, समाज एवं देश इन तीनों के संयोग से ही स्वस्थ समाज निर्माण कार्य संभव होता है। व्यक्ति कहीं भी रहे, जीवन में चुनौतियां आएंगी और संभावनाएं भी उसी प्रकार जीवन के उत्तर चढ़ावों के संग संग अवश्य उपस्थित होती रहेंगीं।
भारतीयता ने हमें  महामंत्र दिया
' वसुधैव कुटुंबकम '
" अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम ॥ (महोपनिषद्, अध्याय ४, श्लोक ७१) "
अर्थ - यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की सोच  छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों के लिए, सम्पूर्ण धरती और विश्व एक  परिवार है।  यह मंत्र  हमें सिखाता है कि, सम्पूर्ण विश्व,  मनुष्य का बृहद परिवार है। इस समन्वयकारी, शांति व सौहार्दपूर्ण संदेश के विपरीत सदियों से, सत्ता व धरा के अधिग्रहण के लिए , विभिन्न कौमों में विभिन्न देशों की भूमि के अधिग्रहण के लिए खूंखार और खूनी लड़ाईयां लड़ीं गईं हैं। हम यह कदापि न भूलें कि जिस अन्न के बिना मनुष्य जीवित नहीं रहता, वह अन्न, धरती माता का प्रसाद है। वीरभोग्या वसुंधरा ' कृतज्ञता '  रूपी  सद्गुण से ही हरी भरी रहती है। हमारे वन, वृक्ष एवं हरियाली, धरती माता की उर्वरता के सजग प्रहरी हैं।

अब भारत
से अमेरिका आये भारतीय प्रवासी की परिसतिहिति से हम परिचित हो लें ~ अमेरिका आये भारतीय प्रवासी को अमेरिका में 'इमिग्रंट या फॉरेन बोर्न 'कहते हैं। मतलब वह  व्यक्ति जिन्होंने  अमेरिकी धरा पर जन्म नहीं लिया बल्कि जो परदेस से अमेरिका आये हैं और इस कारण  वे  ' इमिग्रंट ' हैं ।
भारत में  उसी व्यक्ति को 'नॉन रेजिडेंट इंडियन या NRI ' कहते हैं। मतलब, वह भारतीय व्यक्ति, जो  अब भारत में नहीं बल्कि परदेस का निवासी है।  
सन् १९४६ - year - 1946  में पारित हुए ' Luce–Celler Act ' के बाद 100, सौ, भारतीय मूल के लोग प्रतिवर्ष, अमेरिका में स्थायी हो सकते हैं यह प्रावधान अमेरिकी सरकार द्वारा पारित किया गया था।
      सन २०२०  की सरकारी जनगणना के आधार पर 4 . 8   मिलियन भारतीय मूल के अमेरिकी निवासी भारतीयों का विशाल आंकड़ा  दर्ज हुआ है। इक्कीसवीं शताब्दी के आरम्भ में, आज अमेरिका के सभी ५२ प्रांतों में, भारतीय मूल के लोग बसे हुए हैं। 
भारतीय मूल के लोगों के स्थानांतरण पर जो रिसर्च हुई है उस के अनुसार,
 प्रवासी भारतीय, तीन विशिष्ट लहरों में अमेरिका आये। 
पहली लहर ~ सन् १९६५ ~  सबसे पहले, Immigration and Nationality Act के पास होने के बाद अमेरिका में स्थायी रूप से रहने आये वे भारतीय मूल के व्यक्ति, उच्च शिक्षा प्राप्त वर्ग से थे।  जैसे वैज्ञानिक, डाक्टर और इंजीनियर इत्यादि ।
दूसरी लहर ~ सन  १९८० : अब,  स्थायी हुए भारतीय प्रवासी के रिश्तेदार, या उनके परिवार से संबंधित भारतीय प्रवासी अमेरिका आ कर बसने लगे थे।
तीसरी लहर ~ सन १९९० तक  कंप्यूटर का आविष्कार हो चुका था। विश्व के समक्ष Y2K - समस्या उपस्थित हुई थी। उस वक्त एक आशंका थी कि, ३१  दिसंबर सन १९९९की रात्रि के १२ बजे के बाद, पूरी दुनिया के कंप्यूटर काम करना बंद कर देंगे। दुनिया भर के कमप्‍यूटर जिस प्रोग्राम पर काम कर रहे थे उसमें ३१  दिसंबर सं १९९९  के बाद की कोई तारीख थी ही नहीं !  लिहाजा कम्प्यूटर द्वारा इसको बदल पाना लगभग असंभव माना जा रहा था। इस समस्या से सबसे बड़ा नुकसान बैंकिंग, साइबर सिक्योरिटी को होने की आशंका जताई जा रही थी। इस वायटू के संकट को 'मिलियन बग 'भी कहा गया, क्योंकि दुनियाभर के कम्प्यूटर में तारीख को लेकर 'बग' या व्यवधान होने की आशंका थी। दुनियाभर की सरकारों ने इस समस्या से निपटने के लिए अरबों डॉलर खर्च किए। आई.ए.एस. इन्फोटेक ने इस समस्या के समाधान के लिए एक ब्ल्यू  चिप सूची तैयार की। दुनिया की अधिकतर कंपनियों ने इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए भारत की सॉफ्टवेयर कंपनियों की मदद ली थी और समस्या से छुटकारा दिलाकर भारतीय विशेषज्ञों ने दुनिया की एक विकट समस्या को सुलझाया । उस अर्से में  100,000 हंड्रेड थाउजेंड =१ लाख  computer specialists, अमेरिका H-1B visa program के अंतर्गत अमरीका आये। वे अपने 'स्किल' माने  कौशल के कारण अमरीका आये। अपने विषय में निष्णात, इन पढ़े लिखे भारतीयों को, अन्य देशों से, अमेरिका आये, इमिग्रैंट के तौर पर, जो आये हुए थे, वे  अधिकाँश भारतीय कुशल आगंतुकों के मुकाबले में, कम शिक्षित या उच्च शिक्षा विहीन थे। अपने कंप्यूटर क्षेत्र कौशल के कारण, अन्य देशों से आये आगंतुकों  के मुकाबले, भारतीय इमिग्रैंट को अधिक सफलता मिली। कहते हैं व्यक्ति  सफलता की सीढ़ियां, धीरे धीरे, एक एक पग ऊपर बढ़ाते हुए, सीढ़ियां चढ़ते हुए, वे ऊपर सफलता के शिखर की ओर आहिस्ता आहिस्ता, ऊंचे उठते हैं। किन्तु  उच्च शिक्षित भारतीय प्रवासी, अपने विषय में निपुण थे। वे, सीढ़ियां नहीं चढ़े बल्कि वे तेज गति से सफलता के शिखर की तरफ बढे और सफलता के शिखर पर जा पहुंचे !  
प्रश्न : ' ग्रीन - कार्ड ' क्या है ? या lawful permanent residence (LPR status =is  also known as getting a green card)
 
उत्तर : जब भारतीय व्यक्ति कुछ समय के लिए अमेरिका में स्थायी रूप से रहने लगता है तब अमेरिकी प्रशासन द्वारा उन्हें जिस कार्यक्षेत्र में वे कार्यरत हैं उस जॉब के जरिए व्यक्ति को  ' ग्रीन - कार्ड ' दिया जाता है जिस के कारण उस व्यक्ति को  अमेरिका में निवास करने की सुविधा प्राप्त हो जाती है।

भारतीय मूल के लोग या तो विद्यार्थी के रूप में अमेरिका आते हैं या उनकी शिक्षा पर आधारित कार्यक्षेत्र में कार्यकर्ता के रूप में उनका अमेरिका आगमन संभव होता है।  
यदि आप विद्यार्थी हैं, तब सबसे पहले आप सावधानी पूर्वक अपने पासपोर्ट तैयार करें। अमेरिका के किस विद्यालय में आप पढ़ाई करना चाहते हैं, उस का निर्णय लें  व उक्त विद्यालय द्वारा आप के बारे में वे कौन से प्रश्न पूछते हैं उन विषयों की जानकारियां एकत्रित करें तथा उन के द्वारा पूछे गए, आप से सम्बंधित किन विषयों के बारे में यह प्रश्न हैं, उनके उत्तर एकत्रित करें। विविध जानकारी एकत्रित कर लें।
उस के बाद ही, आप आगे बढ़ें।  सुविधा के लिए निम्न  लिंक प्रस्तुत है ~ लिंक ~
 
चित्र - अमरीका में अमरीकी गणतंत्र दिवस जुलाई ४ के दिन कुछ भारतीय मित्र एकत्रित 

अमेरिकी सरकारी नीतियों में प्रत्येक चुनाव परिणामों के बाद जो सत्तारूढ़ दल होते हैं उनकी विचारधारा के अनुरूप, सामाजिक एवं न्यायिक क्षेत्रों में बदलाव आते हैं।
         अमेरिका विविध क्षेत्रों में रिसर्च और नवीन आविष्कारों पर अत्यधिक खर्च करता है।
उन  कार्यक्षेत्रों में, तथा स्वास्थ्य से जुडी व अन्य  उपचार सेवा जैसे  क्षेत्रों में हमेशा काम मिलता  रहता है तथा आगे के समय में, भविष्य में भी मिलता ही रहेगा। इसी कारण,
' हेल्थ एन्ड ह्यूमन सर्विसेज़ ' इन 'जॉब सेक्टर को ' रिसेशन प्रूफ वर्क सेक्टर ' कहा जाता है मतलब इन कार्यक्षेत्रों में आगामी लम्बे समय तक कार्यकर्ताओं की मांग बानी रहेगी और इन में unemployment या मंदी नहीं आएगी । ऐसा वित्त वाणिज्य प्रबंधन निष्णात की धारणा हैं।
विषय : Dignity of Labor :अमेरिका में किसी भी क्षेत्र में कार्यरत सभी कार्यकर्ता को, सम्मान भरी  दृष्टि से देखा जाता है।
प्रश्न : " हाई -पे - स्केल की संभावना " किस क्षेत्र में है ?
उत्तर :
यदि आप डॉक्टर, इंजीनियर, नर्सिंग या आईटी जैसे कार्य क्षेत्रों से जुड़े हों तब उच्च वेतन स्तर की संभावना रहती है।

अमेरिका या परदेस आये उच्च शिक्षित व्यक्ति के स्वदेश माने भारतवर्ष को छोड़ देने पर, भारत की क्षति हुई हो ऐसा महसूस होता है। इस प्रक्रिया को  ' ब्रेन - ड्रेन ' कहते हैं।
किन्तु, कई अमेरिका में निवास कर रहे भारतीय मूल के लोगों को, भारत वर्ष के लिए डॉलरों से सहायता भेजने के उदाहरण भी अक्सर चर्चित हुए हैं। जब अमरीका डॉलर कमानेवाले इमिग्रैंट भारतीय , भारत देश को अपने कमाई से धन - राशि भेज देते हैं तब इसे "रेमिटेंस " कहते हैं। वर्ल्ड बैंक द्वारा की रिसर्च के अनुसार, विविध बैंक कार्य प्रणाली द्वारा, पिछले एकाध वर्ष  में - $83.1 billion डॉलर  की धनराशि भारत पहुँची है।  
कई बार इन्हीं इमिग्रैंट व्यक्ति द्वारा महत्वपूर्ण तकनीकी सहायता भारत वर्ष को उपलब्ध हुई है। जब ऐसा होता है तब इसे ' ब्रेन - गेन ' या ' ब्रेन - सर्कुलेशन ' कहते हैं तथा इस  पद्धति का थाईलैंड जैसे देश ने सफल प्रयोग किया है।

अमेरिकी आज विश्व का सिरमौर देश है। विविध प्रकार के छोटे मोटे, कामकाज  आज भी आम जनता के लिए उपलब्ध  हैं।  
                 भारत से आये कई व्यक्ति जो अधिक पढ़े लिखे न थे, उन्होंने होटल और मोटेल बिज़नेस में जिस कुशलता से जीवन निर्वाह के रास्ते अपनाये वे  'अमेरिकी सक्सेस स्टोरी ' के उदाहरण  हैं । वैसे ही ' गैस - स्टेशन '  के साथ लगे ' कन्वीनियंस  स्टोर ' जैसे - ९ - ११ जैसे स्टोर, इसे भी कई भारतीय कर्म वीरों ने अपना 'अमेरिकी ड्रीम ' बना कर, जीवन में, अपने लिए , अपने परिवार के लिए सफलता प्राप्ति का स्वप्न  साकार किया है। उनके जीवन में  जो चुनौतियां आईं, उन्हें इन वीर एवं कर्मठ भारत पुत्रों ने, 'संभावना ' में बदल दिया और सफलता प्राप्ति हासिल की है।

आज के अमेरिका में रोज के जीवन की ऐसी  स्थिति है कि अमेरिकी भूखंड के सभी प्रांतों में भारतीयों को रोज के खानपान के विपुल साधन सुलभ हैं व सर्वत्र उपलब्ध हैं। 

संयुक्त गणराज्य  अमेरिका, व्यक्ति स्वातंत्र्य का प्रबल हिमायती है। किन्तु अमेरिकी जीवन शैली  ' एंग्लो सेक्सन ' माने ख्रिस्ती धर्म की आधारशिला पर पनप कर, आबाद हुई  और टिकी हुई  है। अतः उसी धर्म का सम्पूर्ण अमरीका में वर्चस्व- सा  है। यह  बात भी यहां रहनेवाले के लिए शीघ्र ही, सुस्पष्ट हो जाती है। वैसे अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता तो है किन्तु यहाँ अमेरिका का अपना 'कल्चर'  है, सामाजिक रहन सहन है  जो सर्वत्र दिखलाई पड़ता है।
        भारतीय मूल के लोग, अपने धार्मिक एवं पारिवारिक उत्सव एवं त्योहारों को भारतीय  जन, निजी तौर , अपने परिवार एवं मित्रों के संग मिलजुल करमनाते हैं।
जीवन यापन की आपाधापी में, भारत माता के बालक, दुनिया के सात समंदर पार कर के, विभिन्न प्रदेशों में जा बसे हैँ ! परन्तु भारतीय जन जहां कहीं भी रहते  हों वे,
अपने त्योहारों को मनाते समय, अपनी जननी जन्मभूमि - भारत भूमि से सीधा संबंध स्थापित कर लेते हैँ। कई प्रमुख अमेरिकी शहरों में भारतीयों ने अनेक दर्शनीय मंदिर, व कम्युनिटी सेंटर बनाये गए हैं। यहां विशेष त्यौहार, उत्सव मनाये जाते हैं कई विशिष्ट सेवाएं भी उपलब्ध हैं
जैसे वृद्ध भारतीयों के लिए स्वास्थ्य या मनोरंजन से जुडी गतिविधियां।

अमेरिकी  राष्ट्र व समाज व प्रजा - राष्ट्रीय स्तर पर, १० विशिष्ट दिवसों को छुट्टी मनाते हैं।
१ - जनवरी १ - नया साल
२ - जनवरी १८ - अश्वेत लोकनायक मार्टिन ल्युथर किंग स्मृति दिवस
३ - फरवरी १५ - प्रेसिडेंट दिवस 
४ - मई ३१ - मेमोरियल दिवस - अमेरिकी सैन्य कर्मियों को सम्मान और शोक मनाने
५ - जून १८ - १९ - अमेरिका में अफ्रीकी-अमेरिकी दासों की मुक्ति के उपलक्ष्य में
६ - जुलाई ४ - संयुक्त गणराज्य अमेरिका का  स्वतंत्रता दिवस
 ७ - सितम्बर  ६ - श्रमिक मान दिवस - लेबर डे
८ - अक्टूबर - ११ - कोलम्बस दिवस
९ - नवम्बर ११ - वेटरन्स डे - सैन्य दिग्गजों को सम्मानित करने के लिए
१० - नवम्बर २५ - थैंक्सगिविंग  डे - कृतज्ञता ज्ञापन दिवस
११ - दिसम्बर २५ - क्रिसमस -माने - बड़े दिन या - नाताल की छुट्टी
१२ - दिसम्बर ३१ - साल का अंतिम दिन

प्रत्येक व्यक्ति के लिए निज उन्नति और व्यक्तित्व विकास की डोर, व्यक्ति के अपने हाथों में होती है और प्रत्येक व्यक्ति के जीवन निर्वाह के संसाधनों का सफलता का पैमाना, उस व्यक्ति की कुशलता किस क्षेत्र में है इस पर अधिकांश निर्धारित है।

भारतीय मूल के प्रवासी भारतीय या इमिग्रैंट अधिकांश उच्च शिक्षित हैं तथा सभी देश से आये अन्य लोगों में सबसे संपन्न होने में सफल हुए  हैं।

जीवन स्वयं एक चुनौती है। यदि आप अपना देश छोड़ कर, अपना जीवन परदेस में बिताना चाहते हैं तब हर प्रकार के नवीन अनुभव से सीखने के लिए तैयार रहना आवश्यक है।
नए देश में जो भी अनुभव हों उन्हें हिम्मत और साहस के साथ स्वीकारना चाहिए।
तब संभावनाओं के द्वार प्रशस्त हो जाते हैं और आगे बढ़ने की राह दिखाई देती है।
उस नयी  राह पर चल कर सफलता हासिल की जा सकती है।

अमेरिका भूखंड पर न्यूयॉर्क, शिकागो, सान - फ्रांसिस्को, डलास, वॉशिंग्टन,सानोज़े,
लॉस - एंजिलिस, ह्युस्टन ,अटलैंटा, फ़िलाडेल्फ़िया इन महानगरों में भारतीयों की बस्ती सर्वाधिक संख्या में है।  प्रस्तुत हैं ,अमेरिकी जीवन शैली की झांकी इन कहानियों  में ~
१)
लिंक ~
वीकेंड डिनर पार्टी / सप्ताहांत में शाम की दावत
https://www.lavanyashah.com/2013/05/blog-post.html
 २)
लिंक : ३ ऐवरेज अमेरिकन टीनएजर्स की कहानी :
Ronnie रौनी , Raj राज़ और Radha राधा ~
https://www.lavanyashah.com/2018/02/ronnie-raj-radha.html

चुनौती : एक गंभीर मुद्दा है भेदभाव का सामना करना ~ अमेरिका में आये कई भारतीयों को इस गंभीर समस्या - ' डिस्क्रिमिनेशन ' मतलब 'भेदभाव' का  सामना करना पड़ता है प्रस्तुत है, कार्नेगी संस्था द्वारा किया भेदभाव के बारे में किया गया सर्वे  ~ लिंक ~
https://www.youtube.com/watch?v=BT_o2PZ_t68&t=168s


अमेरिका में  भारतीयों के प्रति ' हिंसा ' के कठिन हादसों की करुण कथाएं भी घटी हैं।
वायोलन्स के किस्से स्कूल, कॉलेज, पोस्ट ऑफिस तथा अन्य किसी भी स्थान पर, कहीं भी, घट सकते हैं। निजी हथियार रखना यह अमेरिकी मूलभूत हक्क में से दूसरे स्थान पर अमरीकी नागरिको को मिला मूलभूत  हक्क है। अतः यहां अमरीका में रहते हुए प्रत्येक भारतीय इमिग्रैंट को  सावधान रहना भी आवश्यक होता है।   

कोविड महामारी से वैश्विक परिस्थितियों में अत्यंत भीषण सामाजिक एवं अन्य सभी क्षेत्रों में पहले कभी ना हुए हो, ऐसे बदलाव  उपस्थित हुए हैं। जिन के कारण डॉक्टर, वैज्ञानिक शोधकर्ता, विशेषज्ञ सभी त्रस्त हैं। अभी इस महामारी से उभरने के आसार नज़र नहीं आते। अत: सभी को सुरक्षित रहने के हर संभव प्रयास करते हुए आत्म  सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित रखना होगा। 
ईश्वर से प्रार्थना है कि विश्व में सुख शांति हो स्वास्थ्य लाभ हो !
' सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। ' 
अमरीकी गणराज्य, ओहायो प्रांत के सिनसिनाटी शहर से मैं, लावण्या शाह 
अब आप से आज्ञा लेती हूँ। जय हिन्द *  वन्दे मातरम् 🙏
~लावण्या