Sunday, July 18, 2010

मिलिए , हिन्दी ब्लॉग लेखन जगत के पाणिनि, ' शब्द शिल्पी ' से ~~ हिन्दी ब्लागिंग यानी इंडिया !

श्री अजित वडनेरकर जी ~[ भोपाल, INDIA ] बीते 25 वर्षों पत्रकारिता। प्रिंट व टीवी दोनों माध्यमों में कार्य।
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" शब्दों का सफर" : शब्दों की व्यत्पुत्ति व अर्थ घनता , भाषा और साहित्य की इमारत के, ऐसे ठोस पहलू हैं , कि , जिन्हें हम मजबूत
आधार शिला या नींव के पत्थर ही कहेंगें -
जिस तरह भाषा व्याकरण के संबध में ' पाणिनि ' का नाम सर्वोपरी है उसी तरह , आज, इस पुस्तक के जरिए , मिलिए हिन्दी ब्लॉग लेखन जगत के पाणिनि से ~~
नाम है श्री अजित वडनेरकर जी ~~
जी हां, इस पुस्तक से , आपको , शब्दों की उत्पत्ति , प्रस्थान , ऊपयोग व अन्य तथ्यों का ज्ञान होगा
बारीक विश्लेषण करते हुए, विषय की रोचकता व सामग्री की पठनीयता पर पकड़ बनाए रखना ( जो एक अच्छे लेखन प्रतिभा का कला पक्ष है ) , इन रोचक तथ्यों से व सारे समीकरणों को कुशलता से बांधे हुए , प्रस्तुत करना
यही चमत्कार प्रस्तुत किया है श्री अजित जी ने !
हिन्दी साहित्य की नयी विधा ' हिन्दी ब्लॉग लेखन ' में,
अपना यशस्वी स्थान कायम करने में सफल हुए
' शब्द शिल्पी ' से , इस पुस्तक के द्वारा , आप का परिचय होगा और साक्षात्कार होगा ' शब्दों के सफ़र से !
इस पुस्तक को पढते हुए , ' शब्द ' महज शब्द ना रहेंगें
किन्तु, वे जीवित होकर , आपके संग चलते हुए , कभी मिस्र या कभी मेसोपोटमेया की घाटियों को पार करते हुए, एक बार फिर, भारत भूमि तक , चल कर, आपके हमसफ़र बनेंगें ....ये भाई श्री अजित वडनेरकर की लेखन शैली का कमाल , उनकी पुस्तक पढ़ते हुए , मेरी तरह, आप भी महसूस करेंगें इस बात का मुझे पूरा विश्वास है
भाई श्री अजित वडनेरकर जी, ताऊम्र साहित्य की सेवा करते रहे हैं - आज उनकी मेहनत से संशोधित की गयी छानबीन , शब्द साधना या शब्द - यात्रा , ' शब्दों का सफ़र ' के पन्नों का ( जो उनका निजी सफल हिन्दी ब्लॉग है ,)
पुस्तक रूप में प्रतिष्ठित होने का सुअवसर आया है
मेरी अनंत शुभकामनाएं व स्नेहभरा प्रोत्साहन इस नूतन शब्द यात्रा के नये स्वरूप के साथ है
भाई अजित जी व ' शब्दों का सफ़र ' का स्वागत है .
स स्नेह,
- लावण्या शाह
यु. एस. ए. [
My E mail : Lavnis@gmail.com ]

How Words evolved & how far they have traveled thus far is the Subject matter of this

wonderful HINDI BLOG --

The Writer & Owner is a Journalist working in Print & T.V Media since past 24 years

a man with a keen intellect , Mr AJIT WADNERKER -- residing in BHOPAL, Madhya Pradesh, INDIA

This is his compelete Prifle


Being a Journalist, he has a Special column also on a HINDI BLOGGER , writing about His or Her Life

called " BAKAL KHUD = meaning " as I pen about myself " & I too have contributed towards this Series --

the current post is,


He also introduced a musical BLOGGER :

Dr Radhika Umdeker BUDHKER who is among the 10 people on this plaanet who play an ancient musical instrument

named : VICHITR VEENA -- she wants to establish this in modern times & plays Classical melody on this stringed instrument

which is more then 5, 000 years old ! She has a Ph.D in MUsicology & she is a wife & a Mother & proud Mother of her

lovely daughter Aarohi : ~~
see the Baby girl all dressed up for her school Fancy dress competition where she won the the first Prize !!


Her Profile Is here :


& her BLOGS are Veena Pani : & AAROHI

वीणापाणी : आरोही
________________________________________________________________
अजित भाई के ब्लॉग से एक बढ़िया प्रयास " बकलमखुद " के जरिए कई हिन्दी ब्लॉग जगत के साथियों के बारे में जानकारियाँ हासिल हुईं हैं - उन्हीं में से मेरी कड़ी दे रही हूँ

http://shabdavali.blogspot.com/2008/03/9.html

हिन्दी ब्लागिंग यानी इंडिया ! [बकलमखुद-10]

बकलमखुद के इस तीसरे पड़ाव और दसवें सोपान में मिलते हैं लावण्या शाह से ।

लावण्या जी का ब्लाग लावण्यम् अंतर्मन विविधता से भरपूर है और एक प्रवासी भारतीय के स्वदेश से लगाव और संस्कृति प्रेम इसकी हर प्रस्तुति में झलकता है।

देखते हैं सिलसिले की अंतिम कड़ी।
अमरीका के समाज को इस दौरान काफी नज़दीक से देखने का,राजनीति, कानून,व्यवस्था को समझने का भरपूर अवसर मिला। मेरी सोच विस्तार पाने लगी । अपने आप से अलग होकर तटस्थता से हर पहलू को परखने की आदत हुई। इस तरह मैं अपने गुण-दोषों को भी देख पाई और जो कमिंयां नज़र आईं उन्हें प्रयत्न करके सुधारने की कोशिश भी की। जीवन किसी शांत मगर वेगवान नदी की तरह आगे बढ़ता रहा। बच्चे भी बडे हो गये और उनके ब्याह हुए। बिटिया ने अमरीकन पति ब्रायन का चुनाव किया। तब समझ पाई कि इन्सान अच्छे और बुरे हर देस मे हर कौम मे होते हैं किसी के माथे पे लिखा नही होता कि वह कैसा होगा !

बच्चों की शादियां और यूं बढ़ा कुनबा : अनुभव से ही हम असलियत जानते हैंऔर संसार तो परस्पर के प्रेम व आदर पर ही टिका रहता है। यह सब मैं इसलिए लिख रही हूं क्योंकि हमें अपने अमरीकी समधी भी ले लोग ही मिले। आमतौर पर भारतीय संस्कारों में पगा परिवार विदेशियों को संस्कारों के मामले में गठजोड़ बिठा पाने के नाकाबिल ही महसूस करता है इसीलिए हमारा अनुभव महत्वपूर्ण है। हमारे बेटे सोपान का ब्याह हुआ सौ.मोनिका देव के साथ और हिन्दू जाट परिवार से नाता जुडा। मेरे अनुभवों को समृद्ध करने नाति नोआ जी का भी जन्म हो गया जो आज मुझे नानी पुकारता है और उसकी भोली मुस्कान में मेरे अपने बच्चों का शैशव झलकता है। हाँ, इन सारी घटनाओँ के बीच, कविता लेखन, ब्लोग , काव्य पाठ, कवि सम्मेलन,ब्याह,व्रत त्योहार,रसोई,दुनिया की सैर,यह भी चलता रहा है।
कम्प्यूटर से दोस्ती और नेट पर घुमक्कड़ी : मेरा पुत्र सोपान ही पहले कम्प्यूटर सीखा था और कम्प्यूटर घर पर आया तब मैंने उसका विरोध भी किया था कि इसकी क्या जरुरत है। फिर एक दिन सोपान ने मुझे ईमेल करना सिखाया और कुछ महत्वपूर्ण बातें बताईं तब तो मेरे आश्चर्य ने हर्षातिरेक का स्थान ले लिया। हिन्दी की वेब साईट जैसेकाव्यालय पर कई उम्दा हिन्दी रचनाएँ पढीं । अभिव्यक्ति , अनुभूति तथा बोलोजी में मेरी कविताएं कहानियां भी छपने लगीँ तब आनंद और उत्साह द्विगुणित हो गया।ये ब्लोग क्या बला है भाई ! एक बार हिन्दी की पहली वेब साइटों पर भी सर्फ करते हुए पहुँची तो कुछ अलग अंदाज़ के जालस्थलों से साबका पड़ा। अचरज़ हुआ कि ये क्या है भई ? ये ब्लोग क्या बला है ? जानना शुरु किया । हमारा तकनीकी ज्ञान तो बिल्कुल ज़ीरो है यानी ००००१% ! तो समझ में तो आया नहीं कुछ कि ये क्या है परंतु याद है किसी ब्लोग पर यात्रा विवरण पढा था और जीतू चौधरी जी का ब्लोग देखा था। कहीं एकाध गाना भी सुना था ! अभिव्यक्ति पर कृत्यापत्रिका की संपादक रति सक्सेना का आलेख पढा - सावधान ! ब्लोगिये आ रहे हैं । उसी में पढ़ा कि मानोशी तथा प्रत्यक्षा भी ब्लोग-लेखन करती हैं। ऐसा पढा और मैं उनकी साहित्यिक प्रतिभा के संपर्क में आई। इस बीच भाई अनूप भार्गव और राकेश खंडेलवाल जी के ई-कविता ग्रुप से भी परिचय हो गया था।
अपना भी ब्लाग बना एक अफ़साना एक रात घर का काम निपटा कर यूँ ही कुछ पढते हुए ब्लोग की तरफ ध्यान आकर्षित हुआ और पढकर खुद ब खुद अंग्रेज़ी में मैने अपना ब्लोग अन्तर्मन आरँभ कर दिया ।

समीरलाल जी ने (उडनतश्तरी फेम) कहा ,

" लावण्यादी,

आपका ब्लोग पसंद आया परंतु हिन्दी में लिखिये ना ? "

मैने कहा, 'अभी सीख रही हूँ। सीखते ही, कोशिश करती हूं । तभी होली के अवसर पर हिन्दी ब्लाग अन्तर्मन पर एक व्यंग पढ़ा- होली पर मेरा चिट्ठा भी चोरी !! उनका इशारा हमारे ब्लाग के नाम अंतर्मन को लेकर था। अब हम इतनी ज्यादा सर्फिंग तो नहीं कर पाए थे कि अपने ब्लाग के लिए ऐसा कोई नाम सोचते जो किसी और ने नहीं लिया हुआ था। बहरहाल उनकी बात तो सही थी। मैंने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा आप का नाम पहले है सो, मैं ही बदलाव करती हूँ । इस तरह मेरा ब्लोग लावण्यम् - अंतर्मन् रख कर एक नया अध्याय शुरु किया।

हिन्दी की ब्लाग दुनिया ही भारत है ~~
समीर भाई ने ब्लोगवाणी, नारद, तथा चिट्ठाजगत में नाम लगवाने में मेरी सहायता की जिसके लिये उनकी बहुत बहुत आभारी हूँ। हाँ,
अनिताकुमारजी की तरह कभी चेट किया नही ! समयाभाव ही शायद कारण हो ! संपर्कसूत्रों में ईमेल ही ज्यादा इस्तेमाल किया है और उसी ओर त्वरित गति से संवादों का आदान-प्रदान होता रहता है । मेरी गतिविधियां साथी ब्लागरों के उत्साहवर्धन से धीरे-धीरे बढ़ती रहीं हैं। इनदिनों मैं चोखेर बाली रेडियोनामा पर भी लिखती हूं। साँस्कृतिक, सामाजिक परिवेश से जुडी बातों के बारे में लिखना और पढना दोनों बातों को पसंद करती हूं और उसी से जुडी बातें साझा भी करती हूँ। यात्रा विवरण भी प्रिय हैं और भारतीय ग्रामीण परिवेश के बारे में अक्सर खोज कर पढ़ती हूं। चूँकि ग्राम्य जीवन जिया ही नही कभी ! और यहाँ अमरीका में भारत की याद आती है । घर की याद आती है सो ब्लोग विश्व एक तरीके से भारत का पर्याय सा बन चुका है। यानी आप कह सकते हैं कि यहां सुदूर अमरीका में मेरे लिए इंडिया का दूसरा नाम है हिन्दी ब्लागिंग!

है न मज़ेदार ! पर मेरे लिए सचमुच यह बहुत सुखद है।

शुक्रिया हिन्दी ब्लागजगत का ...मिलते रहेंगे... आधुनिक उपकरणोँ की सहायता से गृहकार्य में आसानी रहती है। पति दीपक जी व अन्य सभी का सहकार-स्नेह भी बल देता रहा है। बस्स, ऐसी ही साधारण सी है मेरे जीवन की यात्रा । हिन्दी ब्लोग जगत के साथियों से परिचय तथा उनके विचार जानकर पढकर। बहुत कुछ नया सीखा और देखा है। अत: आप सभी को भी स्नेह धन्यवाद कहना चाहती हूँ ...अगर आपके मन में कोई प्रश्न हो तब अवश्य पूछें। सही सही उत्तर देने का वादा करते , अब आज्ञा बहुत स्नेह के साथ...[समाप्त ]

Next Chapter ..............

हां, हमने ब्रायन को सहर्ष स्वीकार किया...[बकलमखुद-11]

http://shabdavali.blogspot.com/2008/03/11.html

और अब गर्मी का मौसम यहां अपने पूरे जोर पर है ... दक्षिण के प्रान्तों में पारा १०२ * तक पहुँच रहा है और हमारे शहर में भी ९०* तक का तापमान दर्ज हो रहा है .. एक गीत " गर्मी के दिनों पर "आपसे विदा लेते हुए प्रस्तुत है

स -- स्नेह,

- लावण्या

आहा...लो, आई गर्मी

गर्मी के दिन दुई चार हो भैया,

गर्मी के दिन, दुई -चार !
आते हैँ, फिर जाते हैँ,
यूँ ही,
गर्मी के दिन दुई चार !
करेँ खुदाया खैर हो भैया,
गर्मी के दिन दुई चार ..

आता जाडा,खूब ठिठुरता,
कँपकँपी बदन मेँ,
ओढ, रजाई गुजरता
काँपे, हम दिन रैन
हैँ ये मौसम के खेल..
हो भैया, फिर, आते हैँ,
गर्मी के दिन, दुई चार !

बरखा रानी, झमझम आतीँ,
नदियाँ,पोखर,छलका जातीँ
काले मेघा, बरस बरस कर
कर देते, मालामाल
यूँ बीतता सावन भादो
कहाँ गये बताओ भैया,
गर्मी के दिन,दुई चार?

काले जामुन, आम रसीले,
बेर,अचार,छाछ,शरबत,
चलता पँखा घर्र घर्र कर,
सब गर्मी से बदहाल,
छुट्टी मेँ बच्चे करेँ धमाल
यूँ बीते हैँ रे,भैया,
गरमी के दिन दुई चार!

रम्मी,कैरम,ताश के पत्ते,
रानी राजा, सत्ती, अट्ठे,
जीजा, जीजी,'हा हा'हँसते,
कूलरवाले कमरे मेँ,
फैमेली फन का इँतजाम
बीते चैनभरे दिन यूँ,
गरमी के दिन दुई चार !

सीझन ब्याह का,आये दुल्हेराजा
बैन्ड बाजे गाजे,शहनाई
आरती करे दुलहिन की मम्मी,
तरबतर नाचेँ, सँग बाराती,
आइस्क्रीम खायेँ ,दादी, नानी,
उत्सव से जगमग- लकदक,
गरमी के दिन, दुई चार !

हो भैया,
आते हैँ, फिर जाते हैँ,
यूँ ही,
गर्मी के दिन, दुई -चार !
करेँ खुदाया खैर हो भैया,
गर्मी के दिन दुई चार
स -- स्नेह,
- लावण्या


Monday, July 12, 2010

" सृजन-गाथा " के सफल सम्पादक , भाई श्री जयप्रकाश मानस से मिलिए

दर्पण के सामने
http://www.srijangatha.com/
परिचय नाम :जयप्रकाश मानस (जयप्रकाश रथ - मूल नाम)जन्म :2 अक्टूबर, 1965शिक्षा :एम.ए. (भाषा विज्ञान), एम.एस.सी (आई.टी.)संप्रति :प्रकाशित कृतियाँकविता संग्रह : तभी होती है सुबह, होना ही चाहिए आँगन
ललित निबन्ध: दोपहर मेँ गाँव (पुरस्कृत)

बाल गीत:

  1. चलो चलें अब झील पर
  2. सब बोले दिन निकला
  3. एक बनेंगे नेक बनेंगे
  4. मिलकर दीप जलायें

नव साक्षरोपयोगी:

  1. यह बहुत पुरानी बात है
  2. छत्तीसगढ़ के सखा

लोक साहित्य:

लोक वीथी:

  1. छत्तीसगढ़ की लोक कथायें (10 भाग)
  2. हमारे लोकगीत

भाषा एवं मूल्यांकन :

  1. छत्तीसगढ़ी: दो करोड़ लोगों की भाषा
  2. बगर गया वसंत (बाल कवि श्री वसंत पर एकाग्र)

छत्तीसगढ़ी:

कलादास के कलाकारी (छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रथम व्यंग्य संग्रह)

शीघ्र प्रकाश्य:

  1. हिन्दी ललित निबन्ध
  2. हिन्दी कविता में घर
सम्पादनः

संपादन:

  1. विहंग (20 सदी की हिन्दी कविता में पक्षी)
  2. महत्व: डॉ. बलदेव (समीक्षक)
  3. महत्व: स्वराज प्रसाद त्रिवेदी (पत्रकार)

पत्रिका संपादन एवं सहयोग:

  1. बाल पत्रिका, बाल बोध (मासिक) के 12 अंकों का संपादन
  2. लघुपत्रिका प्रथम पंक्ति (मासिक) के 2 अंकों का संपादन
  3. लघुपत्रिका पहचान: यात्रा (त्रैमासिक) में संपादन सहयोग
  4. लघुपत्रिका छत्तीसगढ़: परिक्रमा (त्रैमासिक) में संपादन सहयोग
  5. अनुवाद पत्रिका सद्-भावना दर्पण (त्रैमासिक) में संपादन सहयोग
  6. लघुपत्रिका सृजन:गाथा (वार्षिक एवं अब त्रैमासिक) का संपादन

अंतरजाल पत्रिका:

  1. सृजन:सम्मान का सम्पादन
  2. कृषि आधारित पत्रिका काश्तकार को तकनीकी सहयोग
  3. सृजनगाथा (मासिक) का प्रकाशन व सम्पादन
एलबम:आडियो एलबम : तोला बंदौं (छत्तीसगढ़ी) , जय माँ चन्द्रसैनी (उड़िया)
वीडियो एलबम : घर:घर माँ हावय दुर्गा (छत्तीसगढ़ी)
पुरस्कार एवं सम्मान:कादम्बिनी पुरस्कार (टाईम्स ऑफ़ इण्डिया), बिसाहू दास मंहत पुरस्कार, अस्मिता पुरस्कार, अंबेडकर फैलोशिप(दिल्ली), अंबिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण एवं अन्य तीन सम्मान विशेष:

ललित निबन्ध संग्रह 'दोपहर में गाँव' पर रविशंकर वि.वि. रायपुर से लघु शोध
देश में ललित निबन्ध पर केन्द्रित प्रथम अ. भा. संगोष्ठी का आयोजन
आकाशवाणी रायपुर से शैक्षिक कार्यक्रम का 2 वर्ष तक साप्ताहिक प्रसारण
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन, नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय लेखन कार्यशाला में
प्रतिभागी
राजीव गाँधी शिक्षा मिशन, मध्यप्रदेश में 2 वर्ष तक राज्य स्त्रोत पर्सन का
कार्य
देश की प्रमुख सांस्कृतिक संगठन, सृजन;सम्मान का संस्थापक महासचिव: 1995 से
चयन मंडल में संयोजन:

एक लाख से अधिक राशि वाले 30 प्रतिष्ठित एवं अखिल भारतीय साहित्यिक पुरस्कारों के चयन मंडल का संयोजक

शासकीय चाकरी:

परियोजना निदेशक, संपूर्ण साक्षरता अभियान, जिला रायपुर
परियोजना निदेशक, राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन, जिला रायपुर
उप संचालक, शिक्षा, जिला रायगढ़
सचिव, छत्तीसगढ़ संस्कृत बोर्ड, छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर
सचिव, छ्त्तीसगढ़ी भाषा परिषद, छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर
विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी छ.ग. हिन्दी ग्रंथ अकादमी, रायपुर्
संपादक, अंजोर, (शिक्षा विभाग की त्रैमासिक पत्रिका)

http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/J/JayprakashManas/jamun_ka_ped_Nibandh.htm

हिन्दी चिट्ठाकारी के लिए जयप्रकाश मानस पुरस्कृत

(श्री जय प्रकाश मानस)

सृजन-गाथा के चिट्ठाकार श्री जयप्रकाश मानस को उनकी हिन्दी चिट्ठाकारिता के लिए माता सुंदरी फ़ाउंडेशन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.

विस्तृत समाचार यहाँ देखें.

श्री जयप्रकाश मानस जी को ढेरों बधाईयाँ व शुभकामनाएँ.

* , जी , सफल व सशक्त सम्पादक हैं
और अंतरजालीय , साहित्यिक व सांस्कृतिक हर गतिविधि पर
उनकी आँख रहती है .......
पारखी नज़रों से, भाई जयप्रकाश जी , कई कार्यक्षेत्रों के बारे में ,
सुरुचिपूर्ण पत्रिका के माध्यम से , एक विशाल हिन्दी भाषीय क्षेत्र को साहित्य विषयक समाचार से , अवगत करवाते रहे हैं --

* मुझे जयप्रकाश जी के निबंधों ने, भाषा लालित्य ने तथा उनके लेखन में स्पष्ट , परिपक्व भारतीय सुगंध लिए सूझ - बुझ ने , आकृष्ट किया था जब् सर्व प्रथम, मैंने उनका लिखा कुछ नेट पर पढ़ा था -

देखें एक बानगी - निबंध है -

महिष को निहारते हुए


*हिन्दी भाषा से सम्बंधित हर ब्लॉग, पत्रिका , बेब मेगेज़ीन पर
आप जयप्रकाश जी का लिखा हुआ देख पायेंगें ....

जय प्रकाशजी का
लिखा --
खास तौर से यह

: " शब्द - चित्र " : मेरे मन को छू गया था ---
" दादीमाँ भीड़ को चीरती हुई मेरे सम्मुख आ खड़ी हुई ।

उसके हाथ में थाल है ।
थाल में एक दीपक, कुछ दूर्वा, कुछ सुपाड़ी,

कुछ हल्दी गाँठें, सिंदूर, चंदन, पाँच हरे-हरे पान के पत्र और एक बीड़ा पान ।

मुझे लगा, जैसे दादी के काँपते हाथों में समूची संस्कृति सँभली हुई है "

आज भाई श्री जयप्रकाश जी के ब्लॉग से , एक पुरानी प्रविष्टी ,
मेरे ब्लॉग पर प्रस्तुत करते , अपार हर्ष हो रहा है -
- आशा है आप सभी को , भाई श्री जयप्रकाश जी जैसे,
प्रबुध्ध , साहित्यकर्मी से, यहां परिचित होना अच्छा लगा होगा --
लीजिये अब यह प्रविष्टी भी देख लीजिये ....
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संसार गीतविहीन कभी था ही नहीं । गीत वेदों से भी सयाना है । निराला जी ने कभी कहा था- “गीत मानव की मुक्ति-गाथा का प्रथम प्रणव है”।
जो गाने-गुनगुनाने नहीं जानता या तो वह पाषाण है या फिर जीव होकर भी
जीवनहीन है ।
मेरी माँ बताती है-
जब मैं जनमा तो मेरे रोने में उन्हें गाने की अनुभूति हुई ।
शायद हर माँ को शिशु का प्रथम रूदन एक शाश्वत गान ही लगता है । जो भी हो, मैं बचपन में मेले-ठेले जाता था तो सबसे अधिक रूचने वाली बात गीत ही होता था । वे लोकगीत होते थे- राउतनाचा के गीत, रथयात्रा के गीत, डंडागीत, सुवागीत और भी न जाने कितने तरह के गीत । उन दिनों लगता था कि मेरा जनपद लोकगीतों का जनपद है ।
घर में महाभारत, रामचरित मानस, लक्ष्मीपुराण या फिर सत्यनारायण की कथा होती थी तो पंडित जी या मंडली गीत ही तो गाते थे । माँ जब पवित्र तिथियों में मंगला (दुर्गा देवी) की व्रत रखती थी तो उडिया में जो मंत्रपाठ करती थी वह गीत ही तो था ।
स्कूल में पढाई की शुरूवात गद्य से नहीं बल्कि पद्य यानी कि गीत से ही हुआ । शायद आप भी जानते हों इस गीत को ।
चलिए हम ही बताये देते हैं- ओणा मासी धम्म-धम्म, विद्या आये छम-छम । वह भी गीत ही था जो हमारे प्रायमरी स्कूल के गुरूजी हर नवप्रवेशी बच्चों को पहले दिन पढाते रहे यद्यपि यह गीत जैसा नहीं लगता किन्तु वे उसे ऐसे सिखाते थे कि मैं उसे गीत माने बिना नहीं रह सकता और यह गीत था- एक एक्कम एक, दो एक्कम दो , तीन एक्कम तीन, चार एक्कम चार.............. ।
शायद वे गद्य को पद्य बनाकर नहीं गाते तो शायद जाने कितने बच्चे आज भी अनपढ रह जाते ।
स्कूल की ईबारत सीखते-सीखते जाने कब मैं जन-गण-मन से लेकर वंदे मातरम्और युवा होने से पहले-पहले दुलहिन गावहु मंगलाचार या फिर हेरी मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दरद न जाणे कोय आदि-आदि आत्मसात कर लिया पता ही नहीं चला । कुछ मन मचला तो किशोर दा के गीत भी मन को अतिशय भाने लगे और मैं भी गुनगुनाने लगा- जिंदगी के सफर में गूजर जाते हैं वे जो पल फिर नहीं आते । उन दिनों, जब प्रेम मन में अंगडाई लेने लगा और कभी तनहाई सताने लगी तो ये गीत भी खुब सुहाने लगे थेः
आज पुरानी राहों से कोई मुझे आवाज न दे

इस बीच कुछ-कुछ लिखने लगा । लघुकथायें लिखीं । कविता भी और आलेख भी । पर सच कहता हूँ मन तो गाना चाहता है ।
कविता, लघुकथा, आलेख, निबंध तो पढने की विधाएँ है ।
इन्हें थोडे न गाया जा सकता है । जीवन में पहली बार गीत लिखा । लगा मैं स्वर्गीय आनंद से भर उठा हूँ । गाकर सुनाया कवि मित्रों को तो मत पूछिए क्या हुआ । सबने गले से लगा लिया । कंठ तो ईश्वर से मिला ही है । लोग मंचों पर सुनाने का आग्रह करने लगा । तब से अब तक लगातार लिख रहा हूँ । क्या-क्या लिखा । कितना लिखा । कितना नाम कमाया और कितना दाम भी । उसकी चर्चा फिर कभी । आज तो बस मैं अपने उस प्रिय रचनाकार के गीत सुनाना चाहता हूँ जिनके बिना हिन्दी गीत-यात्रा अधूरी रह जाती ।

मेरे मन मानस मैं पैठे उस गीतकार का नाम है- पं.नरेन्द्र शर्मा । वे छायावाद काल के समापन के समय ही हिन्दी की दुनिया में प्रतिष्ठित हो चुके थे । इनके आरंभिक गीतों के केन्द्र में प्रेम हिलोरें मारता है । बाद के गीतों में लोक और परलोक के भी संदर्भ हैं । संयोग का उल्लास, मिलन की अभिलाषा, रूप की पिपासा, संयोग की विविध मनोदशायें तथा वियोग की पीडा नरेन्द्र शर्मा जी के गीतों का विषय है । वे केवल व्यक्तिवादी नहीं थे, उनमें सामाजिकता भी लबालब है । ऐसा कौन होगा जो हिन्दी का प्रख्यात टी.व्ही.सीरियल देखा हो और पंडित जी को न जानता हो । तो काहे की देरी । लीजिए ना उनके वे गीत जो मुझे बहुत पसन्द हैं-
एक...
तुम रत्न-दीप की रूप-शिखा

तुम दुबली-पतली दीपक की लौ-सी सुन्दर
मैं अंधकार
मैं दुर्निवार
मैं तुम्हें समेटे हूँ सौ-सौ बाहों में, मेरी ज्योति प्रखर
आपुलक गात में मलय-वात
मैं चिर-मिलनातु जन्मजात
तुम लज्जाधीर शरीर-प्राण
थर्-थर् कम्पित ज्यों स्वर्ण-पात
कँपती छायावत्, रात, काँपते तम प्रकाश अलिंगन भर
आँखे से ओझल ज्योति-पात्र
तुम गलित स्वर्ण की क्षीण धार
स्वर्गिक विभूति उतरीं भू पर
साकार हुई छवि निराकार
तुम स्वर्गंगा, मैं गंगाधर, उतरो, प्रियतर, सिर आँखों पर
नलकी में झलका अंगारक
बूँदों में गुरू-उसना तारक
शीतल शशि ज्वाला की लपटों से
वसन, दमकती द्युति चम्पक
तुम रत्न-दीप की रूप-शिखा, तन स्वर्ण प्रभा कुसुमित अम्बर
…………………
दो...
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे

आज से दो प्रेमयोगी अब वियोगी ही रहेगें
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

आयगा मधुमास फिर भी, आयगी श्यामल घटा घिर
आँख बर कर देख लो अब, मैं न आऊँगा कभी फिर
प्राण तन से बिछुड कर कैसे मिलेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

अब न रोना, व्यर्थ होगा हर घडी आँसू बहाना
आज से अपने वियोगी हृदय को हँसना सिखाना
अब आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे
न हँसने के लिए हम तुम मिलेंगे ।

आज से हम तुम गिनेंगे एक ही नभ के सितारे
दूर होंगे पर सदा को ज्यों नदी के दो किनारे
सिन्धु-तट पर भी न जो दो मिल सकेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

तट नही के, भग्न उर के दो विभागों के सदृश हैं
चीर जिनको विश्व की गति बह रही है, वे विवश हैं
एक अथ-इति पर न पथ में मिल सकेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

यदि मुझे उस पार के भी मिलन का विश्वास होता
सत्य कहता हूँ न में असहाय या निरूपाय होता
जानता हूँ अब न हम तुम मिल सकेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

आज तक किसका हुआ सच स्वप्न, जिसने स्वप्न देखा
कल्पना के मृदृल कर से मिटी किसकी भाग्य रेखा
अब कहां संभव कि हम फिर मिल सकेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

आह, अंतिम रात वह, बैठी रही तुम पास मेरे
शीश कन्धे पर धरे, घन-कुन्तली से गाते घेरे
क्षीण स्वर में कहा था, अब कब मिलेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।

कब मिलेंगे ?पूछता जब विस्व से मैं विरह-कातर
कब मिलेंग ?गूँजते प्रतिध्वनि-निनादित व्योम-सागर
कब मिलेंगे प्रश्न उत्तर कब मिलेंगे ?
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।
…………………
तीन...
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

शुन्य है तेरे लिए मधुमास के नभ की डगर
हिम तले जो खो गयी थीं, शीत के डर सो गयी थी
फिर जगी होगी नये अनुराग को लेकर लहर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

बहुत दिन लोहित रहा नभ, बहुत दिन थी अवनि हतप्रभ
शुभ्र-पंखों की छटा भी देख लें अब नारि-नर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

पक्ष अँधियारा जगत का, जब मनुज अघ में निरत था
हो चुका निःशेष, फैला फिर गगन में शुक्ल पर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

विविधता के सत विमर्षों में उत्पछता रहा वर्षों
पर थका यह विश्व नव निष्कर्ष में जाये निखर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

इन्द्र-धनु नभ-बीच खिल कर, शुभ्र हो सत-रंग मिलकर
गगन में छा जाय विद्युज्ज्योति के उद्दाम शर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

शान्ति की सितपंख भाषा, बन जगत की नयी आशा
उड निराशा के गगन में, हंसमाला, तू निडर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
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(क्रमशः..... )

1 comments:

लावण्या said...

आपके ब्लोग पर मेरे पापाजी की यह अमर कविताएँ पढ कर मन हर्शोल्ल्लास मे डूब गया !

आप को सन्मान मिला उसके लिये बधाई !
निरन्तर उन्नत पथ पर पग बढ्तेँ जायेँ !
स - स्नेहाषिश

श्री जयप्रकाश मानस जी को ढेरों बधाईयाँ व शुभकामनाएँ.