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मेरे आदरणीय दादा _ ...सोच रही हूँ, आज की सुबह मेरे जीवन में,
कितनी बुरी खबर लेकर आयी !!
क्यों ऐसा समय आया के , मुझ अनाथ के सर से, एक और पिता सम हाथ भी आज हट गया ?
वैसे , मेरा उन राज कुंवर से लहू का रिश्ता तो नहीं
पर वे मेरे बड़े भ्राता मेरे दादा ही हैं !
खार , हमारे छोटे से घर पर , दादा पहली बार आये थे तब, मानों घर की छत , झुक गयी थी
इतने ऊंचे , भरे पूरे ६ ' से भी ऊपर !
उनका मुस्कुराता चेहरा , मैं अपलक देखती रह गयी थी !
आँखों के सामने , घूम गयी हॉलीवुड की फिल्म " गोंन विथ द विंड " के नायक क्लार्क गेबल की छवि !
Respected DADA is handsomer then Clark Gable &
even Sean Connery who plays James Bond !!
( ये विचार मेरे युवा मानस में आये थे )
इतने हसीं किसी भद्र सज्जन पुरुष को , इससे पहले , मैंने नहीं देखा था !
हां, धर्मेन्द्र जी मुझे सभी नायकों से ज्यादा पसंद हैं पर दादा जैसा , आज तक जीवन में किसी को देखा ही नहीं !!
ये तो था आँखों से देखा व्यक्तित्त्व फिर जब् उन्हें शिष्टाचार सहित प्रणाम किये और उनकी आवाज़ सुनी
और उन्मुक्त और निश्छल बच्चों सी पवित्र हंसी का ठहाका भी सुना तो मैं भी खूब मुस्कुराई थी --
दिन बीतते गए...हम तीनों बहनें अविवाहीत थीं ...
पूज्य पापा जी की बगिया के ३ पुष्प थे हम !!
एक जूही, एक चमेली तो एक रजनी गंधा ही हों मानों ...फुलवारी को मह्कातीं हुईं , सहेलियों के संग ,
चिरैया सी चहकती हुई हमारी युवावस्था , पापा जी की छत्रछाया के सुरक्षित कवच के नीचे कितनी महफूज़ थी !
मेरी अम्मा के जतन से संवारी बगिया में और भी अनगिनत फूल थे ,
पर हम तीन बहने , लाड प्यार के संग कभी कभार डांट फटकार और एकाध चपत भी खा ही लेतीं थीं !
पर इतना प्यार मिलता था के हम फिर भी , खिलखिलाते ही रहते थे
अब , उन्हीं की तरह हमें लाड दुलार के साथ , दुनिया की नई चीजें सिखलाने वाले ,
दुनिया भर में भ्रमण करने वाले , दादा भी
हमारे छोटे से घर व परिवार का हिस्सा बन गए थे --
पहली बार चाइनीज फ़ूड , उन्हीं के संग खाया था -
कैसे , चाइनीज सूप के लिए टेढी, सुफेद चीनी मिट्टी की चम्मच को soup bowl से , पीया जाता है वो सीखा ,
पञ्च सितारा होटल में शानदार भोजन से पहले
सुफेद नैपकिन गर्म भाप से निकला आता है जिससे हाथ पोंछ कर,
दुसरे नैपकिन से कांटे , चम्मच और फोर्क निकालकर ,
नैपकिन , गोदी में कैसे बिछाते हैं और
फोर्क से पुलाव किस तरह खाया जाता है,
ये भी दादा ने , हमें माडर्न लाइफ की तहजीब का हिस्सा मानकर सिखलाया था !
हम तो थे एक आश्रम जैसे सीधे सादे घर में रहनेवाले शहरी गंवार !
हमने ये सब इससे पहले कभी देखा तक नहीं था !
खैर !! ये तो हुई , औपचारिक बातें ...
दादा अम्मा से कहते ,
" अम्मा बहनों की शादियाँ जल्दी न करवाना !
घर सूना हो जाएगा !! "
मेरे दादा के पास अनुभव और अलौकिक बातों के भरपूर खजाने थे ..
राज परिवार की अलौकिक बातें, देस परदेस की रंगबिरंगी जानकारियाँ हों
या वन्य प्राणी संबन्धी बातें हों
या विश्व राजनीति की बातें ..
पापा से उनकी बातचीत समय को पंख लगाकर गुजार देतीं थीं
जयपुर की महारानी साहिबा गायत्री देवी जी , उनकी आंटी आयेशा थीं !
वे तो नहीं आयीं परंतु,
महारानी बीकानेर उनकी बड़ी दीदी हैं वे तो किशनगढ़ की कुंवरी
स्वयं उनकी आदरणीय माँ साहिबा थीं ..वे ,
रीन्वां की महारानी साहिबा दादा की मासी माँ ,
कुंवर श्री हनुमंत सिंह जी ..दांता के ,
(क्रिकेट भी खेलते और दादा के चचेरे भाई हैं ) --वे ,
उदयपुर महाराणा साहब भी
ये सभी , कई बार ,
पापा जी के आवास पर पधारे ...
हम कभी इन राजसी महापुरुष व सन्नारियों के लिए
चाय बनाते तो , कभी शरबत
और दौड़ दौड़ कर
जलपान हमारे दीवानखाने तक
अम्मा के आदेशानुसार , पहुंचाते थे ...
कहाँ तो इन सभी के संगमरमर जटित ६०० कमरों के राज प्रसाद
और कहाँ हमारा कुल ३ कमरे और १ लम्बे रसोईघर वाला
कुटिया - सा छोटा सा , घर !!
पर माँ साहिबा किशनगढ़ भी बारामदे में आकर आस पास देखतीं हुई कहतीं ,
" पण्डित जी , म्हने आपनु घर बहु पसंद छे ! "
ये बड़प्पन था माँ साहिबा का !
जो ये ऐसा कहतीं थीं --
घेरदार नीले राजस्थानी घाघरे और सर पर ओढी केसरिया चुनरी में
तेज नैन नक्श्वालीन माँ साहिबा ,
मीरां जी की प्रतिकृति सी ही लगतीं मुझे !
उन्हीने दादा से कहा था,
" पण्डित जी के घर जब् भी जाओ , खाली हाथ न जाना "
और माँ जी के आदेश अनुसार हमारे दादा ,
हमेशा फल या ओरंज पीको चाय का पेकेट,
बॉम्बे जिम खाना से और कभी मिठाई या ऐसा ही कुछ लेकर ही आते ! --
कितनी सारी यादों ने आ घेरा है ...
मन इतना उदास है के दादा के जाने के समाचार , पढ़कर !
सजल नयन लिए बैठी हूँ जब्
ये लिख रही हूँ..........................
हमारे छोटे भाई परितोष का मेसेज था और अभी बात हुई
वह पूज्य दादा को अंतिम विदाई देकर , हताश और टूटे मन से , घर लौटा है ....
दादा, माँ साहिबा और महाराणा डूंगर पुर महा रावल राजा साहिब लक्षमण सिंह जी के पास जा चुके हैं ...
आत्मा अनंत पथ की और अग्रसर हो गयी ...
और रह गयीं यादें ..........
ईश्वर उन्हें अपने प्रकाश में , समा ले
और दादा की पवित्र आत्मा को वैकुण्ठ लोक मिलेगा ये मेरा विशवास है !
मेरे दादा जैसा सच्चा और वीर - धीर और सदाचारी महापुरुष , आज तक मैंने देखा नहीं --
दादा सर से पैर तक, एक सज्जन पुरुष थे और नस नस में राजसी शौर्य और उदारता उनमे भरी हुई थी -
- दादा मेरी स्मृतियों में ही नहीं
सदा अमर रहेंगें ..
कोइ उन्हें सचिन तेंदुलकर के दुनिया के समक्ष लानेवाले , क्रिकेट सेलेक्टर
C.C. I. - सी सी आई संस्था के प्रेजिडेंट के नाम से जानेगा और याद करेगा
तो कोइ उन्हें, भारत के एक जगमगाते राजसी परिवार के कुंवर की तरह याद करेगा ,
परंतु मेरे दादा , मेरे लिए, हमेशा मेरे परम आदरणीय बड़े भाई रहेंगें
जिनकी चौड़ी कलाई पर , मैंने , राखी बाँध कर , मन से नेह नाता बाँध लिया था
जो आज भी , वैसा ही अटूट है....
और मेरी अंतिम साँसों तक रहेगा ..............
मेरे दादा , आप क्यूं चले गए ?
अब इस दुखियारी बहन की कौन सुध लेगा ?
आप इतनी दूर आये थे , मुझ से मिलने
वह अब स्मृति - शेष रह जाएगा
.......... दा .. दा दा दा..
आप आज बहुत याद आ रहे हैं ....
- लावण्या .
ये बहुत पहले मेरे ब्लॉग पर लिखा था -
- आज पुन: प्रस्तुत कर रही हूँ --
Full Story of Indian CricketDungarpur's oral history of Indian Cricket As a young cricketer he played with legendary CK Naidu and watched him cracking sixes. He played with Vinoo Mankad and saw the great cricketer struggling in poverty. Himself a first class cricketer he later managed Indian sides and later as one of the country's most successful cricket administrators he was closely associated with the rise of Indian cricket. But one of his toughest assignments was to manage the rivalry between Kapil Dev and Gavaskar. Raj Singh Dundarpur tells the full story of Indian cricket.To listenClick here (English)