Friday, June 29, 2007

...ज़िँदगी ख्वाब है..चेप्टर -- ८



समय फिर आगे बढता गया. आज राजश्री और प्रकाश बेहद खुश थे.
उनका पुत्र प्रताप आज २ साल का हो गया था.
वे लोग बडे उत्साह के साथ नन्हे प्रताप राजा का बर्थ -डे मना रहे थे.
पार्टी मेँ सारे मित्रोँ के बच्चे, मम्मीयोँ के साथ आ पहुँचे थे. बडे सी कार की शेप वाला केक काटा गया और खूब जोर से सब मिलकर 'हेप्पी बर्थ डे टू यू ...हैप्पी बर्थ डे डीअर प्रताप.. .." गा रहे थे.
मुँह मीठा किया तभी मोबाइल की रीँग सुनकर प्रकाश ने
' हेल्लो हेल्लो ..कौन ?'
पूछा तो सामने से रोहित की जानी पहचानी आवाज़ आयी,
" बडा हँगामा हो रहा है ! पार्टी चल रही है क्या तेरे यहाँ ? "
उसने पूछा तो प्रकाश ने कहा,
" हाँ आ जा ना ...प्रताप आज २ वर्ष का हो गया आके केक खाओ ! "
तो रोहित भी आधे घँटे बाद वहाँ आ पहुँचा.
प्रकाश और राजश्री उससे मिलकर खुश हुए.
रोहित परिवार के सदस्योँ से बारी बारी से जा कर मिला.
फिर रात देर तक वे लोग बातेँ करते रहे.
पँखुरी और प्रताप को सुलाकर
राजश्री भी गेलेरी मेँ आ गयी जहाँ दोनो दोस्त कुर्सीयोँ पर बैठे थे.
" राजश्री जी, कहिये, कैसी हैँ आप ? " रोहित ने मुस्कुराकर प्रश्न किया
तो राजश्री ने कहा, " ठीक हूँ ..बस !
थकान हो रही है ..तुम सुनाओ ..कहाँ रहे इतने दिन ? '
" वही, अमरीका और अब यहाँ ..काम काम और फिर औ भी ज्यादा काम
..मेरा समय तो ऐसे ही बीत रहा है भाभी .."
राजश्री ने अचानक कहा, " रीना से मुलाकात हुई थी ..२ महीने पहले ..सच बत्ताना रोहित, क्या तुम दोनोँ दुबारा एक नहीँ हो सकते ? "
" ना ..मैँने बहुत सोचा है, हम एक साथ खुश नहीँ रह सकते .
.अब वो चेप्टर खत्म हो गया ..भाभी जी ..जाने दीजिये उस बात को "
रोहित बोला
..तो राजश्री और प्रकाश रोहित का चेहरा निहारने लगे और
उसे बहुत उदास और सँजीदा पाया -
- "क्या बात है दोस्त ? तुम ठीक तो हो ? " प्रकाश ने पूछा,
" हाँ अब तो अकेले रहने की आदत हो गयी है ! "
रोहित ने गहरी साँस लेते हुए आहिस्ता से कहा
तो राजश्री ने प्रकाश की ओर निहारा ,
दोनोँ की निगाहोँ मेँ सुहानुभूति घुल गयी
अपने मित्र के दुख से वे भी दुखी हो गये.
" तुम मेरी मानो और दुबारा शादी कर लो ! " राजश्री ने कहा,
" रीना से तुम्हारी नहीँ निभी
..हो जाता है ऐसा, समाज बदल चुका है, लोग समझने लगे हैँ और तलाक होना कोयी बहुत बडी बात नहीँ रही अब हमारे भारतीय समाज मेँ
खास कर बँबई जैसे शहरोँ मे "
ये प्रकाश ने समझाते हुए कहा ..तो रोहित ने कहा,
" शायद तुम सच कह रहे हो मित्र !
पर शादी - ब्याह की ओर मेरा मन नहीँ -
- मैँ काम मेँ इतना मस्रुफ रहता हूँ
कि शादी या लडकीयोँ के बारे मेँ सोचने की फुर्सत नहीँ मुझे "..
रोहित ने अपनी बात , अपने अँदाज़ मेँ रख दी -
जब भी थोडी - सी भी फुर्सत मिलेगी
तब शादी और लडकीयोँ के बारे मेँ भी सोचना जरुर !!
.लडकीयाँ इतनी बुरी नहीँ होतीँ रोहित ! "
राजश्री ने उलाहना देने के लहजे से कहा ..
" मैँ कहाँ बुराई कर रहा हूँ !
अब आप ही इतनी अच्छी मिसाल हो भाभी जी !
तब और क्या कहेँ ! " रोहित ने कहा और फिर जोडते हुए कहा,
" अरे हाँ, शालिनी से मिला था -- एक Air -port पे "
" अच्छा ? शालू को अवोर्ड मिला है इस साल -
- बेहतरीन कार्य कुशलता पर ,
उसके शहर की नगर पालिका की ओर से ! -
- ये वसुधँरा दीदी बतला रहीँ थीँ "-
राजश्री ने बडे गर्व के साथ अपनी चहेती शालिनी का जिक्र करते कहा .
" ओह यस ! शी डीझर्वज़ देट ! " ( oh yes she deserves that )
प्रकाश ने भी हाँ मेँ हाँ मिलाते हुए कहा -
"रात के ११.३० बज रहेँ हैँ ...मैँ चलूँ ? "
रोहित ने आहीस्ता से प्रश्न रखा .
.और रात के गहराते सन्नाटे मेँ, रातरानी की खुश्बु
बाग के भीतर से गेलेरी तक आ पहुँची.
तो तीनोँ उठ खडे हुए.
पति पत्नी मित्र को विदा कर भीतर घर मेँ चले गये
और रोहित अपनी नयी मर्सीडीज़ मेँ अकेला
अपने सूने आशियाने की ओर चल निकला.
१ साल बाद :
वसुँधरा दीदी , प्रकाश और राजश्री और माँ जी से मिलने आयीँ थीँ
और अचानक पूछने लगीँ --
" प्रकाश , वो तुम्हारा दोस्त रोहित किस शहर मेँ रहता है ? "
" क्योँ दीदी ? ऐसे क्यूँ पूछ रही हो ?
वोशीँगटन डी.सी. अमीरीकी राजधानी है ना,
उसी शहर से , "गणमान्य" जो उसकी आइटी कँपनी है
उसका सारा कारोबार देखता है रोहित . " प्रकाश ने बतलाया --
" अच्छा ! तब ये बतला दूँ कि शालिनी अब शिकागो शहर से,
वहीँ तुम्हारे वोशीँगटन डी.सी. रहने चली गयी है ! -
- ये मेरे जेठ जी , बतला रहे थे -- "
दीदी ने नये सामाचार सुनाये
अपनी लाडली ननद शालिनी के बारे
मेँ , तो इसे सुनकर, सभी को आस्चर्य हुआ ..
" अमीराका मेँ लोग ना जाने कितने घर बदलते हैँ " -
- माँ ने कहा, तो सब हँसे क्यूँ कि बात तो सच थी !
फिर बात दिमाग से उतर गयी --
पर एक रात ...
. ठीक मध्य रात्रि को , जब दीदी के बडे जेठ जी का ,
अमेरीका से फोन आया ,
तब प्रकाश और राजश्री की नीँद उड गयी -
- " हेल्लो ! मैँ , झवेर बोल रहा हूँ ..
हाँ हाँ ..अमेरीका से ..
वो तुम्हारा दोस्त रोहित कहाँ है ? "
बडे झल्लाये स्वर मेँ वे पूछ रहे थे
जिसे सुनकर प्रकाश की रही सही तन्द्रा भी गायब हो गयी -
- " भाइस्स्सा ..क्या बात है ?
इतनी रात आप मेरे दोस्त की खबर लेने मुझे फोन कर रहे हो ! "
प्रकाश ने पूछा तो झवर भाई सा'ब ने अब झल्ला कर कहा,
" सुना है रोहित , मेरी बेटी शालिनी से कल शादी कर रहा है ! "
" सच !! हमेँ तो इसके बारे मेँ खबर भी नही .
..ना ही कोयी सँदेशा आया है ना ही बुलावा ! "
प्रकाश ने -- कहा तब भी झवर भाई साहब खीजे हुए थे -
-" शालिनी ने हम से बातचीत करना लगभग छोड दिया है "
..सयानी हो गई है .
.उसकी जो मरजी करे ..
पर शादी कर रही है तो पिता को भी अब , इस वक्त बताया
जब कि मैँ शादी मेँ शामिल भी हो न पाऊँगा -
- हाँ उसकी मम्मी जी को भारत से बुला लिया है -
- मुझे और सुधा को ( नई पत्नि ) और उसके भाई बहनोँ को भी
नहीं बुलाया
और तुम जैसे पुराने और खास दोस्तोँ को भी
कुछ बतलाने की आवश्यकता नहीँ लगी उन दोनोँ को ! "
झवर भाईसाहब ने गुस्से से शिकायत की
तो प्रकाश और राजश्री भी असमँजस मेँ पड गये !
पर लोन्ग डीस्टन्स फोन पे क्या बात करते .
.जैसे तैसे समझा बुझा कर झवर भाई साहब से ,
बात खत्म की -
और सुबह वसुँधरा दीदी से ७ बजे फोन कर के सारा किस्सा बतलाया -
- फिर ९ बजे प्रकाश के माता पिता से ,
डा. प्रियँका दीदी के केन्सास के घर का फोन नँबर लिया गया
तब कहीँ जाकर,
प्रकाश और राजश्री,
शालिनी और रोहित से बात कर पाये !
- शादी की मुबारकबाद दी -
अपनी और परिवार की ओर से
शादी की सफलता की शुभकामनाएँ व बडोँ के आशीर्वाद दिये
तब रोहित ने इतना ही कहा था,
" राजश्री भाभी और तुम, हमारे हित के बारे मेँ कितने सही थे
ये गूढ रहस्य,
आज समझ पाये हैँ हम दोनोँ -
- अचानक ये सब तै हुआ है
बतला नहीँ पाये आप लोगोँ से ! " -
- अब और क्या कहना ?
मियाँ बीवी राजी तो क्या करे समाजी ...
वाली उक्ति ..
.चरितार्थ थी इस मामले मेँ -
- ऐसा सोचकर राजश्री और प्रकाश ने भी अपने दोस्त की खुशी को
सामने रखते हुए और बातो पे ध्यान नहीँ दिया --

क्रमश:

...ज़िँदगी ख्वाब है..चेप्टर - - ७


रोहित और शालिनी , वहां से अपने अलग अलग रास्तोँ पर चल दिये .रोहित ने अपना अमरीका का काम समाप्त किया और कुछ समय निकाल के, केन्सास शहर , अपनी बडी दीदी प्रियँका से मिलने चला गया

-शालिनी अपने पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के काम मेँ लगी रही..

यूँ ही फिर समय रेत की तरह बीत गया.


"रे समय...तू, किस पाखी के डैन चुरा कर आया है ?
चुपचाप उडाये क्षण क्षण जीवन के, उडता जाये रे!
. तू, बतला, ओ अविचल, बहता तू जो प्रतिपल,
कौन लोक से आया है ? रे समय..ओ समय ..
तू, किस पाखी के डैन चुरा कर आया है ?"
एक दिन की बात है राजश्री बाजार ,सौदा लेने गयी थी .
मिठाई की दुकान मेँ दाखिल होते ही
उसकी निगाह रीना से जा टकरायी

जो काउँटर पे अपने पैसे दे रही थी -
रीना ने ही उसे अपने पास बुलाया था,
" राजश्री बहन, कैसी हो ? "
इतना सुनते ही राजश्री , रीना के नज़दीक आ गयी
- " मजे मेँ हूँ !- घर गृहस्थी मेँ समय कहाँ बीत रहा है ,
कैसे बतलाऊँ ?"
उसने कहा तो रीना भी मुस्कुराई -
- "हाँ कैसे हैँ पँखुरी और प्रताप ? "
उसने मीठे स्वर से पूछा तो राजश्री भी खुश हो गई -
- " बिलकुल आनँद मेँ हैँ -- आज वे दोनोँ अपने पापा के पास हैँ -
- तो वे उन्हेँ कौन सी नयी शरारत सीखला रहे होँगे क्या पता !"
राजश्री ने कहा तो दोनोँ को हँसने का मौका मिल गया !
-- इसी तरह यहाँ , वहाँ की बातेँ होने लगीँ -
- अचानक राजश्री ने कुछ गँभीर होकर पूछ लिया,
" एक बात पूछूँ रीना ? बुरा तो नहीँ मानोगी ? "
अब तक वे दुकान के बाहर आ गईँ थीँ -
- " ना पूछिये न दीदी क्या प्रश्न है ! " रीना बोली
तो राजश्री ने पूछ ही लिया
" तुम मेँ और रोहित मेँ क्या हुआ था ? क्यूँ दूर हो गये ? "
तो रीना ने कहा," सच बतलाऊँ ?
रोहीत - is a Hyper active personality in my opinion !
He is too , too much demanding !
He never can make up his mind on any one thing !
He is never satisfied with what is in front of him !
Ive noticed this habit in him ! "
रीना ने कहा,
" How do you say that humm " ? राजश्री ने उत्सुकतावश पूछा -
" well, nothing is enough for him !
even when I serve 3 types of condiments
he wants the fourth kind ...!
अब आप ही बतलाओ!..ये भी क्या तमाशा हुआ !
और ......इस तरह से नहीँ रह पाती थी !
अकसर ममी मुझसे पूछती रहती कि 'रीना बता क्या खाओगी ?
और रोहित के साथ ऐसा होता था कि जब हम खाने की मेज़ पर खाना खाने लगते तो कितनी भी डीशीस बनी होँ वो कोयी अलग चीज़ की डीमान्ड करने लगता ! जिससे मुझे घबराहट हो जाती --
i was not used to such behaviour you know.! ..
-- उसने रुँआसे स्वर मेँ धीमी आवाज़ मेँ इतना कह कर बात को वहीँ खत्म किया तो राजश्री ने भी आगे बात नहीँ बढायी ..
इतनी बात ज़ाहिर थी कि रीना भी परेशान थी ..
..अब राजश्री ने बातोँ का सिलसिला वहीँ दफनाते हुए
रीना के मन की तह को समझते हुए,
अपने घर की ओर क रुख अपनाया ..
'मियाँ बीवी के ऐसे विवाद, किसी कोर्ट कचहरी मेँ निपटे हैँ कभी ?'
राजश्री सोचती रही .
..'.की , आज इनका हल निकल पायेगा ?
असंभव ! '
घर पहुँचते ही उसने नन्हे प्रताप और चहकती हुई नन्ही पँखुरी को कुछ ज्यादह ही प्यार से चूमते हुए अपने से भीँच कर गले लगा लिया था -
- और फिर प्रकाश को रीना से अचानक हुई मुलाकात के बारे मेँ बतलाने लगी तो शाम कब रात मेँ ढल गई उन्हेँ पता ही न चला .
.सर्द हवाओँ को सहना पड जाये तो पँछी भी अपने घोँसलोँ को सहेजने लग जाते हैँ ! ये हर जीव का अपने आप को सुरक्षित रखने का नैसर्गिक प्रयास रहता है .राजश्री भी ऐसे ही प्रयास से अपने को रोक न पायी --
क्रमश:

Sunday, June 24, 2007

...ज़िँदगी ख्वाब है .चेप्टर ~ ६..( सत्य कथा पर आधारित )


रोहित ने अपने आपको कामकरने मेँ इतना मस्रुफ कर लिया कि उसे अपने अकेलेपन का अहसास कभी कभी ही होता था
. उसने ढेरोँ डी.वी.डी.. खरीद कर रख लीं...
वह जिस मानसिक नैराश्य के दौर से जुज़र रहा था उसके अनुरुप फिल्मेँ उसने चुन चुन कर देखना शुरु किया था -
जिन्हेँ देखते वक्त वह रोता नहीँ था बल्कि एकाकार हो जाता था !
आह ! क्या गुरु दुत्त जी थे...कमाल करते थे..
."प्यासा" ..का गाना .
." ये महलोँ ये तख्तोँ ये ताज़ोँ की दुनिया "
हल्के से शुरु होता और अँत होते रोहित भी तैस मेँ आकर गाने लगता,
" जला दो जला दो .इसे फूँक डालो ये दुनिया
..तुम्हारी है, तुम ही सम्हालो ये दुनिया ! "
और ठँडी आह लेते हुए ..थका हारा सोने की कोशिश करता .
.हेल्थ क्लब मेँ भी जाता
..अनमने ढँग से मशीनोँ का इस्तेमाल करता .
.पर , उसका मन था कि किसी भी स्थिती मेँ उसे चैन न लेने देता --
एक दिन उसने प्रकाश को फोन मिलाया -
- पता चला कि भाई, साहब के यहाँ एक और शिशु का आगमन हो चुका है और उसी मेँ दोनोँ व्यस्त रहे !
उसने तै किया कि अबके भारत और बँबई पहुँचते ही वो उनसे मिलने जायेगा
.आखिर हैद्राबाद, बँगलूर, चेन्नई मेँ कई सारे इन्टर्व्यू लेकर
"गणमान्य" के सी. इ ओ. ( CEO ) रोहित ने घर की राह ली --
अपने काम से कुछ मुक्ति मिलते ही वह प्रकाश व राजश्री के नवजात बालक बेटे प्रताप को मिलने आ पहुँचा -
- नन्हे मासूम बच्चे को गोद मेँ लिये रोहित कुछ पल के लिये अपना सारा अवसाद भूल गया -
- उसे पहली बार मुस्कुतराता देखकर प्रकाश को भी राहत हुई -
- उसने पूछ ही लिया, " कैसे हो दोस्त ? ठीक तो हो ना ? "
" हां -- all things considering ..I'm holing up quite well "
तुम लोग सुनाओ क्या हाल हैँ ? परिवार के सारे लोग ..सब ठीक हैँ ना ?"
" हाँ रोहित ..सब मजे मेँ हैँ -- प्रकाशने कहा -
- राजश्री ने अपनी बात जोड़ते हुए कहा,
" शालिनी अपने पापा के बुलाने पर अमरीका गई है -
- तुम्हे मिली क्या वहाँ पे ? "
" अरे भाभी , मुझे कैसे पता कि वो वहाँ है ?
अमरीका क्या एक छोटा सा उपनगर है ? .
..जैसा हम तुम रहते हैँ वैसा ?
जहाँ हर परिवार एक दूसरे के बारे मेँ सब कुछ जानता है ! " -
- "अरे बाबा ! हम तो बम्बैया हैँ ना -- हमेँ अमरीका की धौँस न दीखाओ "-- राजश्री ने झूठमुठ का गुस्सा जतलाया तो तीनोँ हँसने लगे -
- रोहित सोचने लगा, " इनके सँग मैँ कैसे हँस लेता हूँ -
- कितना सहज है ये -
- "फिर कुछ सोचकर उसने कहा, " अच्छा, उसका पता ठिकाना बतला दो -
- अगली बार जाऊँगा तो उसे भी फोन कर लूँगा - ठीक है ना ? क्या कर रही है वो वहाँ ? "
उसने पूछा तो रजश्री ने बतलाया कि शालिनी के
पापा ने शालिनी को वहीँ बुलवा लिया था और अब उसे कालिजसे स्क्लोरशीप भी मिली है और वह पढाई कर रही है --
" ये तो अच्छी दिशा मिल गई उसके जीवन को " रोहित ने तुरँत कहा और पूछा," उसकी नानी जी व मम्मी जी कहाँ हैँ ? "
"यहीँ हैँ -- " प्रकाश ने कहा ...चलो ..ठीक है "
इतनी बातेँ हुईँ फिर और बातेँ राजनीति, फिल्म से सँबँधित नये किस्से कहानियोँ की बातेँ भी होतीँ रहीँ -
-कई दिन बाद रोहित स्वस्थता महसूस करता
रात को बिस्तर पे लैटते ही सो गया -
- उसे रात स्वप्न आया जिसमेँ उसने बगिया देखी ..फूल पँछी, फव्वारे, वह घूम रहा है ..निश्प्रयोजन ..और सहसा, एक मोटरकार बाग मेँ घूस आयी और बेतहाशा तेज रफ्तार से फूलोँ को उजाडती हुई रोहित को धक्क्का देती हुई , होर्न बजाती हुई निकल गई ...रोहित कोौर कन्डीशन कमरे मेँ भी शीत ज्वर हो आया .वह काँपने लगा -ये क्या था ? उसका जीवन उस गाडी की तरह था क्या? जो फूलोँ को रौँद कर निकल गया ?
-- उसने लँबी साँस ली -- और जब नीँद खुल ही गयी थी तो फिर उठकर अपना लेपटोप ओन करके काम देखने लगा -
- ३ साल बाद :
इस सारे समय मेँ रोहित की कँपनी " गणमान्य" अमरीका की ५०० सबसे तेजीसे प्रगतीशील , कँपनीयोँ मेँ अपना गौरव भरा स्थान बना चुकी थी -
- रोहित आज स्वीट्झरलेन्ड के "डावोस" शहर के प्रतिभा सम्पन्न सभागार मेँ तीसरी पँक्ति मेँ बैठा हुआ है -
- सबसे आगे अमरीका के सुविख्यात अबजपति तकनीकी क्षेत्र के सर्वोच्च अधिपति, आज के सँचार माध्योमोँ के गुरु श्रीमान "बील गेट्स जी " बैठे हुए हैँ ये भी रोहित ने देखा -
- रोहित को "" गणमान्य" " की प्रगति पर सम्मानित किया जा रहा है -
- रोहित फिर भी अलिप्त ,सारा नज़ारा देखता रहा -
उसने सोचा, "काश ! मेरे साथ इस वक्त कोयी अपना होता !
जो मेरी इस प्रगति पर मुझे अपनापन देता -
- तब मेरी खुशी दुगनी न हो जाती ?
परँतु भाग्य मेँ क्या लिखा है ये कौन पहचानता है ?
कोइ
नही ! मैँ भी इन्सान हूँ -
- ये उपलब्धि मेरी नहीँ -
- ईश्वर की देन है "
रोहित नास्तिक भी नहीँ था परँतु बहुत ज्यादा कर्मकाँड करने वाला भी नहीँ था -- वह अति आधुनिक सँप्रेष्णा व सँचार , माहिती विनिमय ,
वाणिज्य
युग का एक ,
अन्य उसी के जैसे दीर्घ द्रष्टि वाले व्यापारी कौम के अन्य सफल अधिनायकोँ की तरह , उन्हीँ के जैसा एक प्रणेता था -
- इक्कीसवी शताब्दी रोहित के जैसे सफल व्यापारीयोँ के हस्ताक्षर ग्रहण कर रही थी !
इतिहास के पन्ने नये आध्याय जोडने मेँ लगे थे..
इन महानुभावोँ के नाम की सूची
समय की रेत पर अपने पदचाप छोडने को कटिबध्ध थी
--रोहित ने अपने माता पिता को फोन मिलाया और ये सूचना दी कि उसने अपना मानपत्र ग्रहण किया है -
- अभी अभी ' तो वहाँ से हर्षातिरेक से सने आशीर्वादोँ की झडी लग गयी -
- दो दिन बाद प्रकाश ने भी रोहित को मुबारकबाद देते हुए फोन किया तो रोहित को बहोत खुशी हुई -
- " अरे ऐसे थोडे न चलेगा रोहित जी ! अब तो आप से पार्टी लेकर ही रहेँगे -- कब आ रहे हो घर ? "
राजश्री ने भी बधाई देते हुए कहा तो रोहित ने कहा, " एक बढिया फ्रेन्च पर्फ्यूम लेकर आ रहा हूँ राजश्री भाभी आपके लिये ...दावत के लिये तैयार रहियेगा "
" हाँ आओ तो सही ..यहाँ सारे मित्र तुम्हारा बेसब्री से इँतज़ार कर रहे हैँ " इतना कहकर -- फोन रखा गया -
- रोहित ने अपना वादा निभाया -
- बँबई आते ही फाइव स्टार ताज महाल होटल के बडे होल मेँ पार्टी का आयोजन किया गया -
- बहुत सारी डीशीस , सँगीत का प्रबँध भी किया गया था -
- सभीने रोहित को गले मिलकर या पीठ थपथपाकर
..या उपहार, पुष्प गुच्छ देकर अपनी अपनी रीत से बधाई दी थी -
- उस शाम को रोहित कभी नहीँ भूलेगा -
- इतने अच्छे दोस्त...!!
इतना प्रेम मिला था उसे -
- कितने सारे लोग आये थे रोहित से मिलने -
- परँतु, रोहित फिर भी अकेला ही था ! ..
.दो दिनोँ के बाद प्रकाश के घर उसे रात्रि भोज के लिये आमँत्रित किया गया तो वह काम था फिर भी छोड कर निकल पडा -
- वहाँ जाते ही उसने देखा तो शालिनी भी मौजूद थी !
"अरे ! कैसी हो ? कब आयीँ अमरीका से ? " -
- " आई तो थी महीना भर पहले से
..पर मम्मी जी को साउथ इन्डीया घूमाने ले गई थी " शालिनी ने जवाब दिया , तो रोहित ने उसे देखा कि अब वह पहले से ज्यादा सलीका सीख गई थी. उसका सौँदर्य गँभीर किस्म का था.
ऐसा नहीँ जो शोख रँग सा चटखता हो !
वह था, किसी बाग के कोने मेँ फूली मधुमालती जैसी - शाँत सौम्य !"
"और इस सण्डे को ( British Air ways ) " ब्रिटीश एअर" से जा रही हूँ "-
- उसने मँद मुस्कान के साथ जोडते हुए बतलाया -
- " अच्छा ! पसँद आ रहा है वहाँ का जीवन तुम्हेँ ? "
रोहित ने पूछा तो शालिनी ने कहा,
" जीवन मेँ जो भी आता है उसे स्वीकार करना जानती हूँ -
- पीछे मुडकर अफसोस करने से कुछ हासिल नहीँ होता ! "
उसने कहा तो रोहित को लगा
मानों वो उसी को ये बात जतलाने की कोशिश कर रही थी -
- " क्या किया इतने वर्ष वहाँ ?
कुछ घूमना भी हुआ या बस पढाई ही चलती रही ? "
उसने बडप्पन जतलाते हुए पूछा
तो राजश्री ने तपाक से कहा,
" अरे ये शालू बडी ही साहसी है !
युरोप के ५ शहर Bag -Pack लेकर अकेली घूम आयी थी पिछले साल ! "
उसने कहा जिसे सुनकर रोहित को ताज्जुब हुआ और हर्ष भी ! "
" i like Independant minded people " उसने कहा...
घर जाते वक्त रोहित के तेज दीमाग मेँ एक जबर्दस्त आइडीया आया -
- और वह ठठाकर हँस पडा -
- बडे दिनोँ के बाद, आज फिर रोहित मेँ एक नई आशा का सँचार हुआ था -- उसका स्वभाव था जो उसे नये , अपरिचित रास्तोँ पर चलने के लिये बाध्य किये रहता था -
- ये उसी तरह का बिलकुल तरोताज़ा विचार था -
- हाँ! वह ऐसा ही करेगा उसने तै किया और उसी की प्लानिँग मेँ कम्प्यूटर खोलकर अपनी खुद की यात्रा के बारे मेँ इँतजाम करने लगा -- उसने दूसरे दिन सुबह शालिनी, प्रकाश राजश्री और बेला को चाइनीज़ खाने पर बुला लिया और बातोँ ही बातोँ मेँ कहा, " शालिनी हम सभी तुम्हेँ छोडने हवाई अड्डे चलेँगेँ " " क्यूँ ? ऐसी क्या जरुरत है ? "
शालिनी ने कहा तो रोहित ने कहा,
" राजश्री की बिटिया पँखुरी को प्लेन कैसे " Landing aur Take off " करते हैँ वो बतलायेँगे -
-बडा मज़ा आयेगा उसे -- क्यो चलोगे ना सब ?"
रोहित ने पूछा तो सभी ने उत्साह से हामी भरी -
- अब, तै रहा और निर्धारीत रात्रि को शालिनी को प्लेन मेँ बिठाकर रोहित ने खुद भी ,
उसी समय, " Air -France " - " एयर फ्रान्स " के विमान से , प्रस्थान किया -
- पर ये बात और किसी को पता भी नहीँ थी -
FRANCE : फ्रान्स
- ड गोल हवाई अड्डे पहुँचते ही रोहित एक खास यात्रा खँड की ओर बढता गया -- वहाँ कोँकोर्ड विमान खडा था -
- जो सबसे तेज , अबतक निर्माण किया गया विमान था -
- कोन्कोर्ड विमान जिस समय उडान की शुरुआत करता तब अगर ५ बजे का समय होता तब युरोप से अमरीका पहुँचते , पृथ्वी इतना घूम गई होती अपनी धुरी पर कि, आगँतुक यात्री, ५ बजे , उसी दिवस के समय से -- चँद मिनटोँ पहले भौगोलिक ,भूखँड पर उतर रहा होता -- उनका ये लोगो था,
" We reach our destination before your departure Time " !!
&
ये रोहित का एक आयोजन था -
स्वप्न देखना नहीँ उन्हेँ जीना भी रोहित को आता था -
- अपने जीवन की ऐसी अभूतपूर्व, अनोखी , रोमाँचक यात्रा करके रोहित अमरीकन राजधानी वोशीटँगटन डी..सी पहुँच गया -
और हँसी छिपाते हुए, ब्रिटीश ऐर " के यात्रियोँ के आगमन के द्वार पर खडा हो गया -
- कुछ यात्री निकल कर आगे बढते गये तब शालिनी, थकी सी , परँतु अपना बेग उठाये आती दीखलायी दी तो रोहित ने आवाज़ लगायी,
" हेल्लो शालिनी ! " --
हैरान शालिनी रोहित को देखती रही उसे लगा मानो उसके पैरोँ तले से ज़मीँ हट गयी थी -
- विस्फरीत नेत्रोँ से उसने रोहित को हँसते हुए ,
सामने आते देखा तो, इतना ही पूछ पायी,
"अरे ! तुम यहाँ कैसे ? तुम तो भारत मेँ थे ! "
" जादू है ये जादू
--राज़ की बात है -
- हम कैसे बतायेँ !!" -
- रोहित अब खुलके हँस रहा था -
- उसे शालिनी का चेहरा देखकर इतनी हँसी आयी कि वो
अपनी हँसी को रोक न पाया !
तो ऐसी ख्वाबोखयालात के परे की ये कहानी है शालिनी और रोहित की -- अगला हिस्सा , जल्दी ही ..


Saturday, June 23, 2007

...ज़िँदगी ख्वाब है..चेप्टर ~ ५


रोहित को ऐयर पोर्ट से घर ले जाने के लिये उसका ड्राइवर आ गया था -
उसके माता पिता ने कहा कि "हम आयेँगेँ तुम्हेँ लेने "
तब रोहित ने मना किया था कि,
" मैँ जब सोके उठूँगा तब आपके पास आ जाऊँगा -
आप लोग कष्ट ना करेँ !"
जेट लेग से तँग आकर रोहित पूरे १२ घँटोँ बाद ही उठ पाया था. चाय पीते हुए, बील, डाक वगैरह देखने लगा तो एक हरे लाल रँग का ब्याह का निमँत्रण पत्र देखा तो कौतूहल से उलट पुलट कर नाम इत्यादि पढने लगा .
" अब कौन फँसने जा रहा है ?? .......
कोल्हू का बैल बनेगा ! "
उसके सीनीकल दिमाग ने चुहल की तो रेशनल माइन्ड ने उलाहाना दिया,
" ऊँहूँ ! इसका लक्क मुझसे तगडा होगा
और जन्न्नत नसीब होगी मेरे यार को ! " -

- नाम था पीयूष परमार -
- आहा ! मिस्टर परमार ईज गेटीँग मेरीड!
वो स्वगत बोल उठा - दुल्हन कौन हैँ -
देखेँ तो नाम उभर कर सामने आया,
" पायल बजाज " -- वाह !
अब तो पीयूष के पैरोँ मेँ पायल बँधेगी --
उसने सोचा और तारीख भी कल की ही थी -
और विवाह की दावत पे जाना तो होगा ही -
- ड्राइवर से कह दीया कि कल शाम के बाद
उसकी रात ११ बजे तक की ड्यूटी ओवर टाइम की होगी -


" जी साब " ड्राइवर ने आहिस्ता से पूछा, " आज कहीँ चलना है साब "
" हाँ --मैँ आता हूँ .... तुम नीचे इँतजार करो "
कहता रोहित स्नान करने चला गया -
और अपने माता पिता के, छोटे से फ्लेट की ओर चल दिया -
- रास्ते मेँ रोहित ने उन सारे सवालोँ के जवाब मन ही मन तैयार कर लीये जो उसे मालूम था कि उसके सीधे सादे माता पिता उसे पूछेँगे -
-जो जो सोचा था उसी तरह उसने ,
उनसे बातेँ कीँ और उन्हेँ ढाढस बँधाया,
हीम्मत दी कि अब जो भी होगा देखा जायेगा --
इस परिस्थिती मेँ और क्या किया जा सकता है ? "
उसके ये कहने पर वे आश्वस्त हुए --
और वो फिर घर चला आया था -
- हाँ घर पर रीना उसे अब नहीँ मिलनेवाली थी ,
ये भी वो जानता था --

खैर!
दूसरे दिन उसने फिर बातेँ कीँ अपने वकील से और तलाक की कार्यवाही को किस तरह निपटाया जाये उस पर सलाह मश्वरा भी किया.
फिर शाम होते ही फ्रेश हो कर रोहित पीयूष के विवाह समारोह मेँ शामिल होने के लिये चल पडा !


-- धूम धाम, फूलोँ से सजा प्रेवेश द्वार, स्कूल कालिज के कई परिचित दोस्तोँ के चेहरे, बँबई के गुजराती परिवारोँ के सँभ्राँत बुजुर्ग वर्ग के सदस्य, कुछ परिचित कुछ नये चेहरे, आगे स्टेज भी फूलोँ से लदा सजा रँगीन रोशनी के बल्ब, हवा मेँ सँगीत लहरी बहती हुई, खुश्बुओँ के झोँकोँ से झकझोर कर बारी बारी से कह रहे थे, " आ जाओ भारत मेँ रोहित ! ये तुम्हारे देश का विवाह उत्सव है " --

सच! भारतीय शादीयोँ मेँ फूलोँ की जितनी तेज मादक सुगँध उसने महसूस की है वैसी खुश्बु लँदन अमरीका के बेशकिमती फूलोँ के गुल्दस्तोँ मेँ उसने नहीँ पायी -- भारतीय गुलाब व मोगरोँ के गजरोँ से महकती शामेँ , सर्वथा बेजोड होतीँ हैँ उसे ये पता था -

- " हेल्लो ! बीग शोट ! आप यहाँ तशरीफ लाये -- बडी मेहरबानी की हुज़ूर ! " इतना कहती , बेला उसके पास चल कर आयी -
उसकी सहपाठी थी वो -- और भी कई सारे मित्र उसे देखते सामने से चलकर आने लगे -
- बहुतोँ से वो कई महीनोँ बाद मिला था -
खूब बातेँ होने लगीँ --
कभी अमरीका की कितनी ट्रीप उसने कीँ उस के बारे मेँ
तो कभी क्या काम कर रहा है उस विषय पर ,
प्रश्न करते दोस्तोँ से रोहित , सबके जवाब देता मुस्कुराता हुआ खडा था

- तभी मनोज ने पूछा, " यार ! तेरी बीवी कहाँ है ? नहीँ मिलवाओगे ? "
अब रोहित ने जो सूझा कह दिया, ' आज उसकी तबियत ठीक नहीँ -
- इसलिये नहीँ आ पायी - मिलवा दूँगा - फिर कभी ! "

इतने मेँ बेला फिर चहक कर बोली,
" तुम्हारी गप्प मारने की आदत अब भी वैसी ही है रोहित !
केमेस्ट्री क्लास मेँ गली पार करके स्कूल आधा घॅँटा देरी से पहुँचते थे और रस्तोगी सर से कहते थे,
"ट्रेन लेट थी सर बैठ जाऊँ क्लास मेँ -?" -
ह हा ह ह हा ..हा ..झूठे कहीँ के !
वो देखो, रीना तो आयी है शादी मेँ !
वहाँ डा. मोदी के साथ कौन खडा है ? "


उसने कहा तो सारे मित्र मँडली की निगाहेँ उसी ओर घूम गईँ
जहाँ रीना अपनी डा. मम्मी के साथ खडी होकर आइस्क्रीम की तश्तरी
वेटर के हाथोँ से ले रही थी.

अब तो रोहित के चेहरे से खून उतर गया --
क्या कहता सब के सामने ?

" अरे यार, अब मिलवा दे रीना से " गौतम ने कहा तब तो रोहित की रही सही सँज्ञा भी सुन्न पडने लगी -
- क्या करे वो?
रीना उससे सीधे मुँह बात भी करेगी या नहीँ उसका रोहित को भरोसा नहीँ था -- और क्या ठाठ थे उसकी अब चँद दिनोँ की मेहमान बीवी जी के !
खूब सज सँवर कर आयी थी रीना --

रोहित मौन खडा था और उसके दोस्त ,
रोहित के, बदलते हाव भाव देखकर सोच रहे थे कि
"ये माजरा क्या है ? कुछ तो है जिसके तहत ये खामोश है ! "-

लोगबाग भी समझ लेते हैँ !
खत का मजमूँ , लिफाफा देखकर !

सो, भीड छँट गयी रोहित के इर्दगिद से
-- सिर्फ एक बेला वहीँ खडी उसका चेहरा पढने की नाकाम कोशिश कर रही थी, " क्या बात है ? Any problems my friend ? "
उसने पूछा तो रोहित ने दो टूक उत्तर दीया,
" Its a damn long story Bela ..
.I just lost my appetite ..
.will fill you in some other time Bela !
Come let's go wish our friend Piyush & his New Bride "
इतना कह कर रोहित नवविवाहीत वर वधु को
उनके विवाह पर अपनी बधाई और शुभ सँदेश देने स्टेज की ओर चल पडा --

" मुबारक हो सब को समाँ ये सुहाना ..
.मैँ खुश हूँ मेरे आँसूओँ पे न जाना ..
.मैँ तो दीवाना दीवाना दीवाना .
..मैँ तो दीवाना दीवाना दीवाना "
रोहित के जहन मेँ ये मुकेश जी का गाया हुआ गीत बजने लगा ..
.तो उसने सोचा
" हिन्दी फिल्मोँ के गाने हर मौके की तलाश मेँ छिपे बठे रहते हैँ घात लगाये ..
.मौका देखते ही छा जाते हैँ ...
और आज यही गाना उभर आया था


रीना की मम्मी ने रोहित को स्टेज पर खडे देखा तो अपनी लाडली को कुहनी मारकर सँकेत करके रोहित की उपस्थिती के बारे मेँ सावधान कर दीया --

माँ बेटी मौन ही रहे पर देखते रहे रोहित के नये सूट को -
- अब तो आगमन हो गया है महाशय का !
आगे क्या होगा देखते हैँ --
ऐसी ही कुछ अस्फुट सी बातेँ दोनोँ के बीच हुईँ ......
" चल बेटी -- हम भी मिल आयेँ नये जोडे को "
कहती मम्मी जी रीना को लेकर रोहित के सामने ही रीना के साथ स्टेज पर गईँ परँतु रोहित से कोयी बातचीत ही नहीँ की उल्टे वे रोहित से कतरा कर उतर गये और सामने ही सोफे पे जाकर पीयूष की मम्मी के पास बैठ गये ! --


ये सारा द्रश्य सारे मेहमानोँ ने न चाहते हुये भी देख ही लिया था और सभी जान गये कि रोहित का काम जिस तेजीसे सफलता की सीढीयाँ चढ रहा था उसकी निजी जिँदगी उतनी ही तेजी से,
मुँह के बल गिर कर , नीचे लुढक कर गर्त मेँ गिरी जा रही थी --

सभी जानते हैँ कि, समाज एक ऐसी व्यवस्था है कि, जब कोयी मुश्किल मेँ हो ,
-- गहरे पानी मेँ मेँ गोते खाता है तब लोग किनारे की सुरक्षित सतह से तमाशे को देखते रहते हैँ !
गहरे पानी मेँ डूबते को बचाने
कोयी बिरला ही छलाँग लगा कर मदद करने का साहस करता है ! -

- लोग देखते रहे, रोहित और रीना के इस अलग अलग आने और बैठने को -- ये कैसा दँपति है ?

"छोडो जी ...बडे लोगोँ की बडी बातेँ !!
-- अजी जो भी होगा आ जायेगा सामने .
.आखिर " डाइवोर्स " और " प्रेग्नन्सी "
कितने दिन कोयी छिपा लेगा भला ?
दुनिया के सामने आ ही जायेगा जो भी हो रहा है ! " -
- लोग फुसफुसा रहे थे -

- और रोहित अनसुना कर के वहाँ से जल्दी ही घर की ओर , अपने सूने मगर आलीशान आशियाने की ओर चल पडा -
- एक मशहूर चित्रपट के हीरो की बीवी जो आजकल " इन्टीरीयर डेकोरेशन " का सफल व्यवसाय कर रही थी
उसीने रोहित का फ्लेट, अत्याधुनिक साज सज्ज्जा से सँवारा था और रोहित ने मुँहमाँगी कीमत चुका कर रीना को तोहफे मेँ पेश किया था उन दोनोँ के नये आशियाने को !
और आज ये क्या हुआ ?
इसी आशियाने को छोड कर रीना
अपने मैके के शानदार तिमँजिले ,
राजसी शानो शौकतवाले घर को चुनकर ,
रोहित को अकेले छोड कर चली गयी थी --

अब रोहित उसे कोर्ट मेँ ही मिलेगा -
- उसने भी फैसला कर ही लिया -
- दुस्वप्न की तरह सारी कार्यवाही निपट गयी ..................
उसके बाद --
रीना ने एक अजीब प्रस्ताव रखा,
" रोहित क्या हम एक बार और साथ रहने का प्रयास करेँ ?
क्या खयाल है तुम्हारा ? "

और रोहित, हतप्रभ: उसका चेहरा विषाद के साथ देखता रह गया था -
" पागल ये लडकी हे या मैँ हूँ ?
फिर साथ रह का फिर वही लडाई झगडे ??
और रोज की यातना ?
क्या उसके लिये रोहित तैयार था ? ? " -
- नहीँ --
उसने अपने इस चेप्टर का अँत किया था --
" रीना ! तुम मुझे समझ ही नहीँ पयी -
- जो मेरा है वह सब तुम्हारा था -
- सिर्फ ५० लाख माँग कर तुमने मुझे सदा सदा के लिये खो दीया है -
- रोज रोज के लडाई झघडोँ से अच्छा है कि हम
अपनी अपनी ज़िँदगी अब अपने तरीकोँ से जीयेँ --

तुम्हेँ आज़ादी मुबारक हो ! "
इतना कह कर रोहित ,
रीना से लँबे डग भरता हुआ सदा के लिये दूर होता चल निकला --

भविष्य की ओर ,..........
रास्ता कहाँ पहुँचायेगा उसकी रोहित को भी खबर नहीँ थी --


आगे ...क्या होगा ?
अगले भाग मेँ रोहित की कथा शेष है : ~~

Monday, June 18, 2007

...ज़िँदगी ख्वाब है..चेप्टर ~ ३



"याद है ..एक बार बँगाल गया था तब सध्य स्नाता सुँदरी को घाट पर देखा था मानोँ कवि रवीँद्र की कविता मूर्त हो उठी हो. समीप के मँदिर मेँ जा कर दीप जलाती उस कन्या का स्वरुप आजतक मेरे मन मेँ अकँपित लौ की तरह विराजमान है !" उसने प्रकाश से कहा था तो दोनोँ हँस पडे थे. अब
राजश्री भी आ गई थी और बातेँ सुन रही थी -उसी ने कहा था, वो बोली, " सुनो ...मेरी मरज़ी है कि तुम शालिनी और हम इस इतवार को उस नये रीवोल्वीँगरेस्तराँ मेँ लँच लेने जायेँ कैसा है आइडीया मेरा ? "
" अरे मियाँ बीबी मेँ हमेँ हड्डी नहीँ बनना भाभी " रोहित ने कहा तो राजश्री और भी ज्यादा ज़िद्द करने लगी थी . इस तरह दूसरी बार शालिनी से मुलाकात उसी घूमते रेस्तराँ मेँ हुई थी. खाना लज़ीज़ था और खाने के बाद शालिनी ने कहा था कि उसे अपनी मम्मी से मिलने , नानी जी के यहाँ जाना है तो रोहित ही उसे वहाँ तक पहुँचा आया था और दोनोँ से शिष्टाचार वश मिला भी पर चाय या कोफी के लिये मना करते हुए जल्द ही निकल कर अपने घर जाने को निकल पडा था --
. राजश्री ने बहुत बार पूछा पर उसका यही कहना था, "वो मुझसे १२ साल छोटी है ! " जिसे सुनकर राजश्री ने कहा, " जब उसे ऐतराज़ नहीँ तब तुम्हेँ क्यूँ इतनी छोटी लग रही है हुम्म रोहित ! " रोहित ने बात को टाल कर फिर आगे बढने न दी और वह उसके बाद भी कई लडकियाँ देखता रहा था और आखिर डाक्टर माता पिता की इकलौती सँतान रीना से उसने शादी कर ली थी. सोचा था, पढे लिखे परिवार से है तो उसके साथ अच्छी निभ जायेगी. पर शुरु से ही रीना का अपने माइके ही सुबह से चले जाना, बात बात पर रोहित के परिवार के छोटे फ्लेट के बारे मेँ मुँह फूलाना और माँग करना कि "जब अपना अलग और बडा फ्लेट खरीदोगे तभी वहाँ आऊँगी " ये सब रोहित को सहमा गया था. भविष्य मेँ और भी माँगेँ बढेँगीँ वो ये जान गया था.

शादी के आगामी ३ वर्ष रोहित की ज़िँदगी के सबसे दुख्दायी, मस्तिष्क को जकडकर,त्रस्त करनेवाले, सबसे ज्यादा परेशानी वाले साबित हुए ! रीना और रोहित के बीच हर छोटी बात के लिये झगडा होना आम बात होने लगी थी.अगर वह किसी दोस्त को खाने पे न्योता देता तो वह माइके चली जाती या बहाना करती कि सर दर्द है - अपने नये फ्लेट के कमरे मेँ चली .जाती
..... रोहित को मेहमान के साथ बाहर खाना पडता. उसके मता पिता से वह झूठ बोलता कि " खाना खा लिया " जबकि कई दिन उसे भूखे पेट सोने की नौबत आई थी और दूसरे दिन फिर सुबह काम के लिये भागना और रीना का मैके चले जाना ! हद्द हो गई ! पर रोहित करता भी तो क्या ? सोचता, " क्या शादी के बाद सब की ऐसी हालत होती है " पर जवाब उसे पता था -
"नहीँ प्रकाश और राजश्री को ही देख लो ! "
कैसे दोनोँ एकदूसरे का खयाल रखते हैँ -- हाँ उनका प्रेम विवाह हुआ था और उन्होँने परिवार वालोँ को कई साल समझाते हुए बिताये थे पर क्या उसकी तरह लडकी देखभाल कर, घर परिवार की टोह लेने के बाद शादीयाँ होतीँ हैँ वे भी तो सुखी होते हैँ ! शायद कसूर उसके भाग्य का था. पर अब वह जैसे तैसे निभाने की कोशिश किये जा रहा था ...

तेरा देर से आना, आकर मुझे रुलाना,
वादे कसमेँ तोडने का लम्बा सिलसिला,
और मुकर जाना बात बात पे वो रोना,
क्यों करतीँ थीँ झूठे बहाने, ऐसे हरदम ?...
..मरता क्या न करता !! कौन मानेगा उसकी बात अगर वह कह भी दे कि उपर से सँभ्राँत कुलीन दीखनेवाली यही रीना कुपित होकर कैसी तीखी भाषा मेँ उसे अपमानित करते बिलकुल हिचकती न थी ! और उसके परिवार के प्रति मोह इतना कि भागी चली जाती थी हर सुबह. शाम लौटती तो उसकी मम्मी जी रसोइया और २ आयाओँ को भी साथ भेज देतीँ -- बेबी को खाना खिला देना और बाई , रसोई का सारा काम निपटाके ही घर वापुस आना समझीँ ? " उनकी हिदायत होती और तीन नौकर २ सेठ और सिठानी !! माने रीना और रोहित की सेवा करते. बिस्तर लगता और ऐरकन्डीशन की तेज़ ठँडी हवा कमरे को और भी ठँडा बना कर रख देती -- और रोहित परेशान अगले दिन काम के बारे मेँ सोचता हुआ सो जाता .सुबह वो तैयार होकर कालबा देवी तक जाता और रीना उसीके साथ अपनी मम्मी जी के यहाँ चली जाती ! खैर ! उसका कारोबार बढने लगा तो उसे अमरीका के दैरे भी जल्दी लगने लगे जिससे रीना को चिढ हो आई थी -- वह हमेशा कहती, " क्या रखा है वहाँ ? क्यूँ भागे जाते हो ? " वो कहता, " तुम्हारा वीज़ा आये तो तुम भी चलना मेरे साथ ! " तो वह तुनककर कहती, " जाये मेरी जूती ! हमेँ वहाँ नौकरानी बनाने ले जाओगे ? हमेँ नहीँ आना ...! वहाँ ..तो बहुत काम करना पडता है मालूम है ... मेरी कई सहेलियाँ ऐसी गल्तियाँ करके अब पछता रहीँ हैँ ! " "अरे वहाँ भी काम करनेवाले मिल जाते हैँ -- " वो धीरे से कहता तो वो मुँह फूला के कमरे से मँथर गति से ऐसे निकल जाती मानोँ सुना अनसुना कर रही हो ! एक बार वो नई फीयाट लेके मैके चली गई -- वो घर आया तो ड्राइवर को भेजा कि मेमसाहिबा से जाकर गाडी ले आओ और रर्जिस्ट्रेशन करवा लाओ " द्राइवर खाली हाथ , भीगी बिल्ली बना लौट आया -- पूछा तो बोला, " मालकिन ने साफ मना किया है कहे रहीँ कि गाडी उनकी है " ...उसने गर्दन झुकाके नज़रेँ नीची कर लीँ -- अब रोहित झल्ल्ला उठा, " हाँ उन्हीँ की है पर रजिस्ट्रेशन तो करवाना जरुरी है ! " रोहित की खीज, मायूसी मेँ बदली तो उसने फोन मिलाया और रीना को समझा बुझा कर काम करवाया -- गाडी तो आ गयी पर दूसरे दिन शाम को जब रोहित घर लौटा तो कीचन मेँ जाते उसकी आँखेँ आस्चर्य से खुली की खुली रह गईँ ! देखता क्या है कि समाचार पत्र खुला हुआ था पूरे फर्श पर और उस पर सारी दालेँ, चावल, आटा, हल्दी, मिरची , धनिया सब उलट दिया गया था !! अजीब तस्वीर बन गई थी -- सारे मिश्रण से ! ये किसने नुकसान किया ? उसकी कल्पना के बाहर की द्रश्यावली देखकर रोहित का चेहरा फक्क पड गया था -- रुँआसा हो गया था वह! उसने सोचा ...उसका मन फिर भी प्रश्न किये जा रहा था -- पर वहाँ तो आज कोयी नहीँ था उसे जवाब देने के लिये -- कहाँ होगी रीना ? उसने सोचा और फोन घुमा दिया उसकी ससुराल, " हेल्लो, नमेस्ते पापा जी -- जी हाँ रीना है ? दीजियेगा उसे फोन -- आभार - थैन्क्स ! " रीना आयी तो उससे रहा नही गया, पूछा, " हमारे फ्लेट के कीचन मेँ ये किसने बिखराया है सब ? " " मैँने ! " उसने शाँति से कहा " तो उसका पारा भी सातवेँ आसमान पर चढ गया ; " ये क्या बचकानी हरकेतेँ करती हो ! यही सीखा है ? " अब रीना भी चीखती हुई बोली, " वो सरा सामान मेरा था -- मेरे मम्मी पापा ने दिया था -- जैसे तुम्हारी कार है वैसे वो मेरा सामान था - इस्लिये कूडा कर के फेँक दिया " -- रोहित ने फोन पटक दिया और अपना माथा पकड कर पहली बार उसे भीतर तक गुस्सा आ गया -- और दूसरे दिन बिना बतलाये अमेरीका की फ्लाइट लेकर भारत से, रीना से, अपने परिवार से, सभी से , वह ह्ज़ारोँ मील दूर चला गया था - - आगे पढियेगा :

Saturday, June 16, 2007

....ज़िँदगी ख्वाब है .... चेप्टर ~ ४


बहारेँ आयेँगीँ, मुझे ले जायेँगीँ, फिर,


उन मस्त अमिया के बागोँ मेँ चुपचाप,


आँख मिचौनी खेला करते थे हम तुम,


आँखोँ मेँ हँसती थी हर मुबारक रात!







समय : २ साल बाद :


उस बात को शायद रोहित भूल ही जाता अगर एक दिन जब वह बँबई के कालबा देवी के भीडभरे इलाके से गुजर रहा न होता और वहीँ प्रकाश भी सामने से आता हुआ दीखाई दे गया -- प्रकाश के मुख पर एक रहस्यमय मुस्कान थी - "क्योँ बर्खुदार, कहाँ की सवारी है ? " शादी क्या कर ली तुम तो इद का चाँद बन गये लाला !! " कैसी हैँ रीना जी ? "


उसने पूछा तो रोहित ने बतला दिया कि अभी अभी वीजा के खास खास डोक्युमेन्ट्स तैयार करने मेँ उसने दिनभर कितनी भागदौड की है !


" अच्छा शाम को घर आ जा साथ खाना खाते हैँ - और ठीक ७ बजे पहुँच जाना -- " " क्या ? ७ बजे डीनर खाते हो ? " रोहितने पूछा -- अब हँसने की बारी प्रकाश की थी -" वो बोला, " अरे ! तु बडा लेट लतीफ है यार !और मेरा महाराज ९ बजे रसोई घर बँद कर देता है ! समझे ? तो आ जाना वक्त पे! "


अब तो रोहित भी उतावला भागा , चूँकि शहर के आफिस के इलाके से उपनगर तक जाते जाते २ घँटे का समय तो लगने ही वाला था - - प्रकाश ने आकर राजश्री को बता दिया कि उसका मित्र रोहित भी आ रहा है ~ तो राजश्री ने कहा ," अरे उससे कहा ना कि जल्दी आये ? वो हमेशा देरी से आता है ! "


तो प्रकाश ने कहा, " मैँने जानबूझकर उसे २ घँटे पहले का समय बतलाया है तुम देख लेना मेरा यार ९ बजे तक आ ही जायेगा ! "और क्या पता अब बीवी के साथ शायद टाइम का पाबँद भी हो गया हो !"मुझे देख लो ! आपके साथ रहकर हम घडी के काँटोँ के साथ साथ साँस लेना सीख गये हैँ !
"अजी जाओ जाओ ..राजश्री ने कहा, " सारा दोष मेरा ही तो है ...अब इस जनम मेँ तो भुगतना ही है भाग्य मेँ ! "


और वही हुआ ! रोहित आया ९ बजे और वह भी रीना के बगैर ! बहाना बना गया -- पर अब दोस्तोँ ने मिलकर खाना खाया -- बडे अर्से बाद रोहित कुछ स्वस्थ हुआ --


रोहित को प्रकाश के महाराज यानी खानसामा साहब के हाथ का बना भोजन बहुत प्रिय था ! सबने छक्क कर खाया. फिर बाग मेँ बँधे बडे से झूले पे तीनोँ सुस्ताने लगे. पँखुरी भी राजश्री की गोद मेँ झूलते झूलते कब सो गई पता भी नहीँ चला


फिर अचानक बातेँ शालिनी की ओर मुड गईँ ......."


कैसी है वो ? " रोहितने पूछा तो


र्राजश्री ने लँबी साँस छोडते हुए कहा, " वो अब यहाँ नहीँ रहती अपनी नानी जी के यहाँ कालिज के फाइनल यर मेँ है --


" उसके पापा कहाँ हैँ ? " उसने प्रश्न किया
-- तब प्रकाश ने समझाते हुए कहा, " शालिनी के मम्मी पापा का तलाक हो चुका है . मगर शालिनी अपनी दादी और काकी याने के मेरी दीदी वसुँधरा के साथ ही रहना चाहती थी और रह रही थी -- इँटर पास किया -- बडी काबिल और नेक लडकी है " उसने भूमिका बाँधते हुए कहा -


अब राजश्री ने आगे बात बढायी " क्या कहते हो ? इतनी सारी लडकियोँ को तो देख चुके थे -- पर आखिर रईसजादी रीना जी पर हमारे रोहित का दिल आ गया ! क्योँ आईँ नहीँ हमारे यहाँ खाने पे ? "
उसने यूँ ही मजाक किया तो रोहित सँजीदा हो गया
--


--" मेरी मानते तो शालिनी ही तुम्हारे लिये सही जीवन साथी बनने की क्षमता रखती थी ! "


"राजश्री -- अब रहने दो ये बातेँ " प्रकाश ने डाँट लगायी तो राजश्री को रोहित के उदास चेहरे का ध्यान हो आया


रोहित ने एक कोशिश की और अपने आपको सहज करते हुए हँसते हुए पूछा,


" अरे बाबा ! मुझे मिलाने मेँ कोयी कसर नहीं रखी थी तुमने पर उपरवाले की रज़ा न थी -- "


राजश्री बोली, " जब उसे कोयी आपत्ति नहीँ थी पर, आज तुम क्यूँ ये सारी बातोँ को इतना तूल दे रहे हो ! "


" चलो छोडो बेकार की बातोँ मे कहीँ बित न जाये रैना __ "


प्रकाश ने कहा तो रोहित भी उठ खडा हुआ -


" तुमसे मिलने के लिये अब कब का अपोइन्टमेन्ट दे रहे हो ? उसने पूछा तो


" अच्छा तब तो लँच पक्का रहा -- आ जाऊँगा -"


इतना कह कर रोहित चला गया --


-- वह प्रकाश और राजश्री के साथ उसी नियत किये रेस्तराँ मेँ मिला था -- कुछ खास बातेँ तो नहीँ हुई पर उस बार रोहीत उखडा उखडा सा रहा सारा वक्त ! बास १० मिन्टोँ तक एक औपचारिक सी मुलाकात हुई थी उन दोनोँ से !


यह थी उनकी दूसरी भेँट ! रोहित सोचता रहा, " हम अचानक क्यूँ मिलते हैँ किन खास व्यक्तियोँ से ? "


फिर बात आयी गयी हो गई --
उसे फिर अमरीका जाना पडा था - काम बढ रहा था ---


रोहित को मानोँ अपने जीवन के बारे मेँ उस वक्त सोचने का समय नहीँ था -- आज अचानक उसे ये सारी बातेँ अतीत के पन्नोँ से निकल कर याद आ रही थीँ .....


शालिनी .....
अपने से, उसे मानोँ अपने जीवन से, कहीँ दूर करके उसने रीना से नाता जोड तो लिया पर एक दबी चिनगारी सी उसे शालिनी याद आ जाती -- कभी उसे पूरी दुनिया से नाराजगी हो जाती ----


वह सोचने लगा -- किस तरह सब अचानक हुआ था --. माता पिता की एकमात्र सँतान !! बहोत समृध्ध परिवार की कन्या के बारे मेँ सँदेशा आया -- देखते देखते बात तै हो गई - शादी भी हो गई और उसके बाद के ३ वर्ष रोहित के जीवन के सबसे कठोर, ह्रदयविदारक, आघात जन्य साबित हुए !


ना तो कन्या का कसूर था ना उसके घरवालोँ का !


पर लाड प्यार मेँ बडी हुई रीना को रोहित के मित्रोँ से कितनी चिढ थी -- ये उसका अहम्` भाव ही था -- superiority Complex of stupid amount !


- वो किसी को खाने पे बुलाता तो वह बहाना बना कर मैके चली जाती.ये भी कोई बात हुई ? वो सोचता रहा


की बार बार उसे अपने माता पिता से झूठ बोलना पडा था जब वे पूछते, बेटे खाना खा लिया ? कैसे हो तुम लोग ? "


" ठीक हैँ हम " इतना ही कह पाता खाली पेट, दुविधा मेँ रोहित ये कैसे बतलाता कि उसका वैवाहिक जीवन नर्क यातना से गुजर रहा है ? "
आख़िर कब तक ऐसे चलता ?


बात इतनी पटरी से उतरती गई की रीना ने ही तलाक के कागज़ भेजे --


रोहित ने पहली फीयाट पद्मिनी गाडी खरीदी थी उसे भी रीना मैके लेकर चली गई -- उसे अपना पति जो धीरे धीरे मेहनत करके अपना नया कारोबार जमा रहा था वह अत्यँत नापसँद था -- तलाक के कागज़ात मेँ रीना ने उससे ५० लाख रुपये का हर्जाना भी माँगा था जिसे देखकर रोहित को आघात लगा -- ये कैसी अजीब लडकी है ? क्या करूँ ? उसके माता पिता को भी भनक आ गयी तो उन्होँने बेटे को अमरीका फोन किया और चिँता व्यक्त की -एकबारगी रोहित को लगा कि वह सो रहा है और ये सारी घटनाएँ एक बुरे स्वप्न की तरह चलती जा रहीँ हैँ जिनपर उसका कोयी जोर नहीँ -- पर वास्तविकता दूसरे क्षण उसे ठोस धरातल पर ला पटकती.
उसने भी वकील रख लिया -- और सँदेशा भेजा कि भारत आने पर आगे की कार्यवाही होगी -- तब तक रीना को मिसेज दवे यानी रोहित की पत्नी का तमगा लगाये ही समाज मेँ घूमना पडेगा जिसका उसे खेद है -- परँतु रोहित इस वक्त काम मेँ ऐसा उलझके रह गया था कि, उसे इतने समय की मोहलत माँगनी पड रही थी. -- भारत जाकर अपने वृध्ध माता पिता से क्या कहेगा वह ? ये सोच सोच कर रोहित का क्षोभ बढता जा रहा था --
जैसे तैसे काम निपटा कर उसने अपनी डाक्टर बडी बहन जो केन्सास रहती थीँ उन्हेँ फोन करके सारी बातेँ बतलयीँ -- दीदी चुप सुनतीँ रहीँ अपने प्यारे छोटे भाई के साथ हुए इस मूर्खतापूर्ण कटु व्यवहार के बारे मेँ सुनकर प्रियँका को पहली बार विचार आया -- ये कैसी कन्या है रीना ? डाक्टर तो मैँ भी हूँ !!--


अपने माता पिता के डाक्टर होने का इतना घमँड ? क्या सीख दी है इसे ?


दीदी ने ढाढस बँधाया तब रोहित के आँसू निकल आये -- अपने को सँयत कर के अब रोहित ने भारत यात्रा के लिये भारी मन से प्लेन का टीकट लिया और लौट पडा ...घर की ओर ..पर घर कहाँ था ? ...कौन इँतज़ार कर रहा था उसका ? तलाक ? ये सोच भी नहीँ सका था वो कि ऐसा भी सुनेगा ...पर अब ऊखल मेँ सर रख दिया तो चोट की क्या परवाह ..ये सोचते हुए ..प्लने की खिडकी से सुफेद घने बादलोँ को देखता रहा ..रोहित
पथराई आँखोँ से ...


भारत जा कर रोहित से रीना कहाँ मिली ? .


..पढियेगा आगे ...








....ज़िँदगी ख्वाब है ... चेप्टर ~ २

तुझसे मिलने का मौसम, बिछुडने के पल भी,
हसीं ख्वाबोँ मेँ लिपटी तारोँ की बारात,
वह झीनी सी बारिश,हल्का सा धुँधलका
कोहरे से भरी, तेरे काजल में डूबी -सी रात!

वाह वाह ! सुभान अल्ल्लाह ...क्या बात है ! आज़ तो आप के भीतर मियाँ गालिब की रुह दाखिल हुई हो ऐसा लग रहा है"

...शालू ने मुस्कुराते हुए कहा ..पर उसका सलोना चेहरा खिल उठा था .रोहित रास्ते को देखता रहा और कनखियोँ से शालू को भी देखे जा रहा था. जो मँद मंद मुस्कुराती बडी भली लग रही थी. अचानक शालू सँज़ीदा हो गई बोली,

"R " ..( जब भी वे अकेले होते वह उसे सिर्फ यही कहती थी ) "

" प्रि - दीदी ( डो.प्रियँका मेहता ) का फोन आया था - बुला रहीं हैँ हमेँ ! कहतीँ थीँ देर ना करो ! बताओ कब चलेँ ? "

चलेंगे...चलेँगे ...आहिस्ता से अब रोहित की आवाज़ आयी ...बहोत सा काम बाकी है शालू ..." ' ओके ओके ..तुम बात कर लेना नही तो दीदी मुझ पे गुस्सा होगीँ . ठीक है ना ? " और उसने रोहित का हाथ अपने हाथोँ मेँ लेते हुए सहलाया ......

.अब रात के सन्नाटे मेँ उन दोनोँ की चुप्पी गाडी की तेज रफ्तार के साथ साथ गहरी होती चली गयी. घर आया तो नीचे गराज मेँ रोहित ने कार को पार्क कियातब तक शालू उनके अपार्टमेन्ट का दरवाज़ा खोलकर दाखिल हो चुकी थी. रात मेँ थके हुए लौटे थे दोनोँ तो झट रात के खुले, आरामदेह कपडे पहनकर सोने चले गये पर उस रात ..रोहित को देर तक नीन्द न आई ...
वह कभी खिडके पे झूलते पर्दोँ के पार गहराये बादलोँ को देखता तो कभी शालू को जो थककर सो रही थी. वह उठा और खिडकी के सामने खडा हो गया -- याद आया उसे जब उसने पहली बार शालू को देखा था जैसे वह कल की सी बात थी. कालिज से एक शाम वह अपने दोस्त प्रकाश के घर चला गया था. प्रकाश और वह, बचपन के सहपाठी थे. पर प्रकाश की शादी हो गई थी. राजश्री से ! उन्हेँ एक नन्ही सी प्यारी गुडीया सी बच्ची भी हो गई थी औरउनसे मिलने शाम को टहलता हुआ पहुँच जाता था. आज शाम जब रोहित उनके घर पहुँचा तो बहाँ प्रकाश की माँ बाहर झूले पर अपनी बेटी के साथ दीखलाई दीँ. रोहितने नमस्ते किया दीदी वसुँधरा से भी बातचीत होने लगी तब दीदी ने ही कहा, " अरे रोहित, तुम्हारा दोस्त मेरे ससुराल गया है ." और आप यहाँ बैठी हैँ ''रोहित ने हँसते हुए कहा..." अभी आई ना बाज़ार ले गई थी माँ को ..अब चलते हैँ चलोगे मेरे साथ ? उन्होँने उठते हुए माँ से कहा, " चलूँ माँ ? कल आऊँगी फिर " और रोहित प्रकाश की दीदी के साथ उनके ससुराल की ओर चल पडा - वहाँ प्रकाश उसे मिलने आया देखकर बडा खुश हुआ ! दोनोँ दोस्त, हँसीमज़ाक मेँ डूब गये. तभी एक १९ या २० वर्षीय लडकी शर्माती हुई कमरे मेँ दाखिल हुई. तो प्रकाश की पत्नी राजश्री ने तपाक्` से उन दोनोँ का परिचय करवा डाला, " रोहित मिलो ये है शालिनी ! शालिनी मीट रोहित दवे ! "

" हेल्लो " एक मीठे स्वर को रोहित ने सुना तो उसे भी सलीका याद आया --"हेल्लो हेल्लो " उसने भी कहा पर आगे कुछ सूझा नहीँ कि और क्या कहे ? पर उसने देखा था एक सलोने चहेरे को जो उसे ध्यान से देख रहा था बडी बडी सँवेदनाशील आँखोँ नेँ एक सँज़ीदगी थी -- और एक चौकन्ने होने का स्वभाव भी बना हुआ था -आम लडकियोँ की तरह शालिनी अपनी युवावस्था मेँ भी कुछ कुछ गँभीर थी. हाँ जब भी वह अनायास मुस्कुराती तब मानोँ उसका पूरा चेहरा खिल उठता था!

बिना चाहे भी अपनी आदतानुसार इतना सब कुछ रोहित ने देख लिया था -दूसरे क्षण उसने अपना ध्यान हटा लिया था - सही है कि वह आजकल लडकियाँ देख रहा था -- उसने तकरीबन्` २० २५ लडकिय़ोँ से बातचीत की थी -- अपनी शादी के सिलसिले मेँ -- वह जाता नाश्ते पर तो कभी खाने का निमँत्रण मिलता -- बातेँ होतीँ - किसी लडकी के रँगरुप उसे जचते , किसी के घरवालोँ से मिलकर खुशी होती तो किसी की प्रतिभा से वह प्रभावित होता -- परँतु आजतक ऐसी लडकी उसे नहीँ दिखी थी जो उसे पहली नज़रोँ मेँ भा जाये ! शायद शालिनी से वह कुछ हदतक प्रभावित ज़रुर हुआ था परँतु दूसरे ही पल उसने सोचा, " अरे यार ! ये तो मुझसे उम्र मे बहुत छोटी लगती है ! " और फिर वह पूरा समय प्रकाश और नन्ही पँखुरी से खेलता रहा --

आगे पढियेगा अगली पोस्ट मेँ : ~~~

....ज़िँदगी ख्वाब है ...!! चेप्टर ~ १



उस रात रोहित को काम करते करते समय किस तेज़ी से गुज़रा उसका एहसास ही नहीँ रहा ----
जब
आँख उठाई फाइल की चौकोर सीमासे तो हाथ की कलाई भी सुन्न पड गई थी उसे जैसे तैसे सहलाते हुए अपनी नई चमचमाती पाटेक फीलिप घडी के नक्शेदार मूँगेसे बने गोलार्ध को देखा तो हीरे से बनी बडी सूँइ अब ९ पर थी. आह ! आज भी शालू नाराज़ होगी. वह हठात्` सोचने लगा ..
शालू और अपने बारे मेँ .... शालू रास्ता देख रही होगी !
..और रोहित हडबडाकर उठ बैठा..
उसका
अपना व्यवसाय था. तकनीकि क्षेत्र में, उसकी कँपनी का नाम अब प्रतिष्ठितहो चुका था. पर कितनी कडी मेहनत की थी उसने ..
पहले
अमरीका आया.....यु, एस. सी से तकनीकि डिग्री हासिल की और उस के काम शुरु करते ही मानोँ इन्टर्नेट की दुनिया मेँ एक विस्फ़ोट आया और तेज़ रफ्तार से रोकेट अँतरिक्श मेँ उडे ऐसी प्रगति आई थी जो उसे एक आम तकनीकि विशेषज्ञ से सफल व्यापारी बनाती गई.
उसने
जल्दी भाँप लिया था कि अमरीका मेँ कई सारे, उसी के जैसे लोगोँ की आवश्यकता बढेगी और वह बँबई जाने के साथ साथ हैद्राबाद और बँगलूर की हवाई टीकट लेकर सीधा भारत पहुँचा था -
सबसे
पहले १० प्रतिभावान छात्रोँ का इन्टर्व्यु लिया था उसने !
-- किसी को कैण्टीन मेँ ही मिला था रोहित तो किसी को कोफी हाउस मेँ !
तै
किया था उन की माँगोँ को, अपना कोन्ट्रेक उसने हवाई जहाज यात्रा के दौरान, अपने ही पीसी पर बहुत सोचने के बाद तैयार किया था -
कुछ
शर्तेँ भी रहीँ थीँ अपनी - कि ये लोग कम्स्कम २ साल उसके लिये काम करने पर अनुबँधित होँगेँ और करार पर हस्ताक्षर करेँगे - और उसकी कँपनी "गणमान्य" - अपने तहत्` काम करने वाले को अमरीका की किसी भी कँपनी मेँ काम करने के लिये भेज सकेगी -- एक तरह का यह " व्यक्ति व्यापार " था - उसे मन ही मन ये भी विचार आया था कि "क्या मैँ यह ठीक कर रहा हूँ ? " -
- फिर उसके रेशनल दीमाग ने कहा था, " अगर ये तुम नहीँ करोगे रोहित तो कोई और करेगा ! " --
इसके बाद अपने वकील से पूछकर रोहित ने भारत से काम पर अनुबँधित कर्मचारीयोँ के अमरीकन वीज़ा के बारे मेँ उसके इन्तजामात तैयार किये थे . मामला एक के बाद एक बातोँ से गुजर कर अपने आप ठीक से बैठ रहा था
इससे पहले ऐसा हुआ नहीँ था .....
आज
अमेरीका और पश्चिम के मुल्कोँ को भारत के तकनीकि विशेषज्ञ वहाँ पहुँचेँ उसकी सख्त्` जरुरत थी और उनके बीच की जोडनेवाली कडी रोहित की कँपनी थी !
उसने आलससे अपने केशोँ मेँ हाथ फेरा ...और याद आई उसे शालिनी की ...कितनी शालीन थी शालू ! उसने भी अमरीका आकार पर्यावरण विषय लेकर उसी क्षेत्रमेँ काम किया था और उसके शहर मेँ पर्यावरण को दूषित होने से बचाने वाले व्यक्तियोँ मेँ शालू के प्रयोगोँ की, नवीन उपायोँ की, सराहना ही नहीँ की गई थी उसे सम्मान देकर नवाज़ा भी गया था ...
और उस शाम जब शालू सुफेद लिबास मेँ सज कर सभारँभ मेँ स्टेज पर अपना पारितोषक ले रही थी तब रोहित को कई दिनोँ के बाद अपने दिल से उठी शायरी पर सुखद आस्चर्य हुआ था .
.ओहो ..तो अब तक शायराना अँदाज़ बाकी बचा है जहन मेँ !
ये व्यापार , तकनीकि दौड मेँ, भागते भागते, शुष्क नहीँ हुआ मैँ !
वह
सोचता रहा ...
और गाडी मेँ , जब वे दोनोँ घर लौट रहे थे तब तक उसने , अपने शेर को कई दफे गुनगुना भी लिया था ..
शालू
के साडी को सहेज कर बैठते ही उसने कहा था,

" बधाई हो मेम सा'ब ! आपको ये ऐवोर्ड मिला हमेँ बडी खुशी हुई ! "
--" अरे, थेन्क्यू थेन्क्यू जनाब ! "
शालू ने हँसते हुए कहा ..और शीशे पर एक उँगली से ठँड मेँ शीशे पर छाये धुँध पर " रोहित आइ लव यु " लिख दिया था ..
.तो रोहित ने अपनी रौबदार आवाज़ को थोडा नीचे कर के आखिरकार सुना ही दिया शालू को अपना नया शेर ,
" सुनिये, शालू जी, आपकी खिदमत मेँ अर्ज़ किया है ,
" रुई के नर्म फाहोँ जैसे मेरे अह्सास, और तुम, मिट्टी के इत्र की शीशी,
सिमटी है खुश्बु सारे कायनात की बिखरती जा रही खयालातोँ मेँ मेरे ! "
( आगे की कहानी का इँतज़ार करियेगा ...)

Monday, June 11, 2007

सुश्री दिलीप कुमार उर्फ युसुफ खाँ की बातेँ ~ अँतिम भाग



हम जब जब मिलते थे गालिब , मीर तकी के शेर कहते और सुनते थे.मीर तकी ने एक शेर मेँ कहा है --

" यह पूछा गुल ने कि क्या है सबात ? कली ने मुस्कुरा कर, तबस्सुम किया "

[ फूल ने कली से कहा कि इस सँसार मेँ क्या है ? सुनकर कली जोर से मुस्कराई और मुस्कुराते ही वह कली से फूल बन गई , जो चँद क्षणोँ का मेहमान होता है और मुर्झा जाता है ! ]

गालिब मुश्किल -पसँद शायर माने जाते हैँ उसका उदाहरण है --

" सादगी मेँ भी आयना आफरीनी है ? -"

- दूसरा है,

" नक्शे नाज़े बुते तज्जाज़ व आगोशे रकीब पताउस पैमाना मानी माँगे "

[ My Beloved Deity is in the arms of my Rival , Mani is a well known writer . He says that he has asked for the legs of a Peacock ( which are ugly ) to make a Pen to describe the Beauty of his Beloved . He wants to use the ink for writing from the feathers of a peacock which are the most beautiful ]

इस तरह नरेन भैया भी हमेँ उनके गीत व कविताएँ सुनाते थे --

( फिर गाते हुए ) --

" रुक कहाँ चली , ओ चँद्र वदन, चँपे की कली , गोकुल की लली ...
रूक कहाँ चली !"

गालिब का एक और शेर याद आया --

" दामेँ हर मौज मेँ है हलक एक सद्`काम निहँग जाने क्या गुजरी है शम्मा पे, सहर होने तक "

इस तरह की सारी, कई तरह की चर्चाएँ होते रहतीँ थीँ और समय कहाँ चला जाता, पता ही नहीँ चलता था !

This is not the  END !

जो भी मैँने यहाँ कहा है, वा तो सिर्फ इब्तिदा है, उसकी इन्तहा नहीँ।
यानी आप ऐसा न समझ लेँ कि बात मैँने खत्म की -- बातेँ बहुत हैँ , लेकिन मैँ उन्हेँ "अनकही " ही छोड रहा हूँ !

-- सुश्री दिलीप कुमार उर्फ युसुफ खाँ

स्व. पँडित नरेन्द्र शर्मा के स्मृति ग्रँथ "शेष ~ अशेष " से साभार

अगर आपको "शेष ~ अशेष " पुस्तक के अन्य सँस्मरण पढने होँ तो क्र्पया सँपर्क करेँ :

श्री परितोष नरेन्द्र शर्मा , ५९४, १९ वाँ रास्ता, खार, बम्बई- ४०००५२ भारत

प्रस्तुति : -- लावण्या

दिलीप कुमार सा'ब की कहानी, उन्हीँ की ज़ुबानी:

दादा साहब फालके पुर्स्कार लेते वक्त बीना राय ( ताज़ महल फिल्म की नायिका )
 और पत्नी सायरा जी के साथ दिलीप कुमार साहब

एक बार किसीने पूछा कि, " कल ही तो किसीने यह बात मुझे आपके सामने कही थी !" उन्होँने फौरन उत्तर दिया, " मैँ तो इस तरह की हर बात एक कानसे सुनकर , दूसरे कान से निकाल देता हूँ !"
इँडस्ट्री की बेकार बातोँ से दामन बचाकर किस तरह निकला जाता है, यह हमने उन्हीँसे सीखा है। 
मैँ अक्सर कहता था कि  " मुझे ऐसा लगता है कि मैँ, इस काम के लिये मौज़ू नहीँ हूँ ! " 
तब उन्होँने बडा अच्छा कहा था कि, " हमेँ इस प्रोफेशन मेँ पढे लिखे नौजवानोँ की बडी सख्त ज़रुरत है। 
मैँ तुम्हारी अदाकारी के बारे मेँ तो ज्यादा नहीँ बोल सकता, पर तुम्हारा अहसास, Your acting has not been corrupted by other factors of Life ! तुम्हारा अहसास,जब इतना lucid है तब तुम अपने अहसासोँ को भी articulate कर पाओगे। तुम देख लेना -- तुम देख लेना ! "
वे पूछते, " तुम्हेँ क्या पसँद नहीँ ? " मैँ कहता, " Enviornment ! "
वे कहते, "कैसे ? " मैँ जवाब देता, " डाइरेक्टर शूटीँग के दौरान रेस की किताब देखते रहते हैँ काम या काम की बातेँ करके, काम को खत्म करने की नहीँ सोचते ! " मैँ पूछता, " ये सारी चीज़ोँ को अलग कैसे करेँ ?" एक ओर लाइटवाला शोर मचाता है -- तो दूसरी ओर कोई ज़ोर ज़ोर से हँसता है ! आप तो कागज़ कलम की दुनिया मेँ जाकर दुनिया भर को भुला बैठते हैँ हम क्या करेँ ? " इस बात पर वे जोरसे खिलखिलाकर हँस कर कहते 
" ये तो साधना की बात है ~ "
जब बोम्बे टोकीज़ छोडकर हम लोग अलग अलग जगह काम करने लगे , तब हमारी मुलाकातोँ का फासला बढने लगा लेकिन जब हम मिलते थे, बातेँ फिर वहीँ से शुरु होतीँ थीँ , जहाँ हमने छोडीँ थीँ ! इसीलिये मैँने शुरु मेँ यह शेर कहा है कि "पुराना दोस्त जब कभी मिल जाये, तो उसका मिलना मसीहा के मिलने से भी ज्यादा कीमती है ! "
मसीहा या तो हमेँ रास्ता बताता है, या उस से हमारा परिचय करवाता है।  हम क्या ? खुदसे अपना परिचय या तो हमेँ खुद करना पडता है या तो अच्छा दोस्त करवाता है ~ इन्सान जो भी है, जैसा भी है और जहाँ भी है,वह इस कायनात की एक बेहतरीन गुत्थी है।  ऐसे मेँ एक ऐसे साथी की जरुरत है, जिसकी सारी खूबियाँ नरेन भैया मेँ थीँ जिसे मैँ बयान कर चुका हूँ !"
यह सब होने के बावजूद -- he could take very quick decisions and often strong ones and stand by them , thereby , revealing very little of mind and character. He had very strong character "

हिन्दुस्तान की 'freedom struggle ' मेँ कैसी कैसी तारीखेँ आयीँ 'Movement ' ने, कैसे कैसे मोड लिये अँग्रेज़ी की मुख्तलिक उनकी क्या क्या 'strategies' इन सारी बातोँ की उन्हेँ ' exhaustive' मालूमात थीँ। 

 वे मुझे अक्सर बताया करते कि उस 'Movement ' की जेनेसिस Genesies मेँ , 'provincial autonomy ' किन किन ' collective movements ' मेँ किन किन का परिणाम थीँ, उनमेँ क्या क्या ' International pressures ' थे ......वगैरह ..ये सारी बातेँ उन्हेँ मालूम थीँ उदाहरण के तौर पर, 
" दूसरा विश्व युध्ध ब्रिटन के लिये जीतना बडा मुश्किल है।  अगर वे जीतेँगे तो भी उन्हेँ बहुत कुछ करना पडेगा "
और हुआ भी वही! ये उनके कुछ "opinions" थे। -- वे भी उन्हीँ मेँ से थे। 
He once gave me a Book on " Lenin & Trostky " which was on letters exchanged between Lenin & Trostky .
                       मराठा, टीपू सुल्तान, डेक्कन के राजा भारतीय स्वतँत्रता का आँदोलन वगैरह का उल्लेख था। These are some of the his inner vibrations of our relationship. These were the acedemic vibrations !

Sunday, June 10, 2007

दिलीप कुमार साहब के अल्फाज़ * एक हसीन शख्शियत *


दिलीप कुमार साहब वैजयँतीमाला के साथ जिन्होँने फिल्म गँगा जमुना मेँ उनके साथ सफल अभिनय किया था
दिलीप कुमार सा'ब अब ८३ साल के हो गये हैँ और दादा साहेब फालके संम्मान मिलने पर उन्होँने कहा कि 
"मुझे किसी बात का अफसोस नहीँ - मैँने ज़िँदगी को भरपूर जिया है "
देखिये ~~ उनकी फिल्मी यात्रा का विवरण ~~ 

( बाबा रे ! टाइप करते करते इतना समय लगा , 
तब सोचिये इतनी सारी फिल्मोँ मेँ काम करते कितने साल गुजरे होँगेँ !
As Presenter : आग का दरया -- Aag Ka Darya (1990)
As Artiste :

किला- Quila- (1998) सौदागर- (1991) इज़्ज़त्दार (1990) -- आग का दरिया (1990) Kanoon Apna --कानून अपना अपना --(1989) धर्माधिकारी --Dharm Adhikari (1986) कर्मा Karma (1986) मशाल -Mashaal (1984) दुनिया -Duniya (1984) मज़दूर - Mazdoor (1983) विधाता Vidhaata (1982) शक्ति Shakti (1982) क्रान्ति Kranti (1981) बैराग Bairaag (1976) फिर कब मिलोगी ? Phir Kab Milogi (1974) सगीना Sagina (1974) अनोखा मिलन Anokha Milan (1972) दास्ताँ Dastan (1972) गोपी Gopi (1970) आदमी Aadmi (1968) सँघर्ष Sunghursh (1968) राम और श्याम Ram Aur shyam (1967) दिल दिया दर्द लिया Dil Diya Dard Liya (1966) आसमान महल Aasman Mahal (1965) लीडर Leader (1964) गँगा जमुना Ganga Jamna (1961) कोहीनूर Kohinoor (1960) मुगल्-ए -आज़म Mughal-E-Azam (1960) पैगाम Paigham (1959) मधुमती Madhumati (1958) मुसाफिर Musafir (1957) नया दौर Naya Daur (1957) आज़ाद Azad (1955) देवदास Devdas (1955) इन्सानियत Insaniyat (1955) उडन खटोला Udan Khatola (1955) अमर Amar (1954) फूटपाथ Footpath (1953) शिकस्त Shikast (1953) आन Aan (1952) दाग Daag (1952) सँगदिल Sangdil (1952) दीदार Deedar (1951) हलचल Hulchul (1951) तराना Tarana (1951) आरज़ू Arzoo (1950) बाबुल Babul (1950) जोगन Jogan (1950) अँदाज़ Andaaz (1949) शबनम Shabnam (1949) 
घर की इज़्ज़त Ghar Ki Izzat (1948) मेला Mela (1948)
नदीया के पार Nadiya Ke Paar (1948) शहीद Shaheed (1948) अनोखा प्यार Anokha Pyar (1948) जुगनु Jugnu (1947) मिलन Milan (1946) प्रतिमा Pratima (1945) ज्वार भाटा Jwar Bhata (1944) As Playback Singer कर्मा Karma (1986) & मुसाफिर -- Musafir
एक हसीन शख्शियत
" ऐ दोस्त, किसी हमदमे दरीना का मिलना बेहतर है मुलाकातेँ मसीहा और फिज़ार से .."
उसका मिलाप हमारी किसी मसीहे के मिलाप से बेहतर होता है यह है नरेन भैया की अहमियत हमारी ज़िँदगी मेँ जो हमारी जिँदगी का बहुत बडा हिस्सा है बडा भरपूर चैप्टर है i remember him with feelings with warmth, with comforts and with optimism. All these things oriented with the values of the rights, proper and improper "

             मैँ, बोम्बे टाकीज़ मेँ जब मैँ गया नरेन भैया भी वहाँ थे। वहीँ से जो हमारा साथ शुरु हुआ वह अब तक है।  फिल्म इंडस्ट्री उनके लिये भी उतनी ही अनोखी थी जितनी कि मेरे लिये ! क्योँकि वे मुझसे कुछ ही दिनोँ पहले वहाँ दाखिल हुए थे।  उनके पास बहुत कुछ था।  जो वे फिल्मी दुनिया को देने आये थे या दे रहे थे और उन्हेँ देना था।  ज़िन्दगी के जो जुरुरी फैसले हैँ उन्हेँ वे, मन ही मन कर चुके थे। 
 In the sense that he had very evolved mind !
हम लोग थे नआजमुदा न त्तजुर्बेकार ! जो हमने सीखा था वह भी था - not tested or tried at the anvil of Time ! इसलिये उन्हीँके पास हमे sense of comfort मिलता था ! He tried to infuse spirit of confidence in us. खुद मै भी ऐसा था कि literature से नाआशना था - उर्दु मेरा base था और अँग्रेज़ी मैँने
adopt की थी Classical Literature उस भाषा से मैँ वाकीफ था। 
About the Values of Life,about the desperate need to transplant these literary values in Indian Cinema. खुद हिन्दुस्तानी सिनेमा भी 'promising" दौर से गुज़र रहा था।  अच्छी फिल्मोँ के लिये एक अच्छा माहौल भी बहुत जरुरी होता है। इसलिये नरेन भैया और उन जैसे साथीयोँ के साथ हम यह महसूस नहीँ करते थे कि हम किसी pedestrian किस्म के profession मेँ हैँ।  बल्कि ऐसा महसूस होता था कि किसी Acedemy मेँ आये हैँ ! बडा सेहतनुमा Communication होता था ! हँसी मज़ाक भी होता था ! बडा मक्`सूस किस्म का माहौल था।  कोई छीछोरी बात न होती थी। दोस्ताने के जो अँदाज़ हैँ , उठने बैठने के जो सलीके हैँ।  उसे पूरी अहमियत दी जाती थी।  Due importance was given to the general deportment.
हुस्न उर्दू मेँ BEAUTY को कहते हैँ।  शायराना अँदाज़ मेँ वह किसी महबूब से मुताल्लिक किया जाता है।  लेकिन हुस्न फूलोँ मेँ भी होता है।  इन्सान की शख्शियत मेँ भी होता है ! इसी लिहाज़ मेँ नरेन भैया हम लोगोँ के लिये बहुत ही "एक हसीन शख्शियत " थे ! सिर्फ पसँद के लिये ही नहीँ , बल्कि अदब और ऐतराम के लिए भी! सिर्फ इन्हीँ के लिये ही नहीँ, बल्कि दोस्ताने के लिये भी!
He was a TRUE - GANDHIAN and an ascetic , pure soul and I saw him as a person who had withdrawn all his Energies..." Inward " !! 
In the outer world, he gave Love, Compassion, Understanding and Good Will to ALL that he came in contact with --
                   फिल्मोँ का जो माहौल है वह बडा militant है।  हम लोग इस बात से आगाह हैँ कि नरेन भैया was a very profound patriot also a profound humanist ! हम लोग इस बात से आगाह हैँ कि फिल्मोँ के लिये जो छोटे - छोटे आपस के टँटे , गासीप और किसी की कामयाबी या नाकामयाबी का जब कभी भी ज़िक्र करते, तो वह सदा दायम मुस्काराते रहते थे। 
क्रमश: ~`