Friday, December 28, 2012

' नारी ' होने की सजा

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वेदना की सीमाओं से परे 

एक दबी चीख सुनी क्या 

' निर्भया ' खामोश है अब 

क्या कहे ? कह चुकी सब 

यातनाओं से परे जो भी सहा 

मौत से आँख मिलाये पड़ी 


Sophie Lancaster


' नारी ' होने की सजा 

मौत से भी बदतर है 

शब्द नहीं संभव जहां 

उस घोर यन्त्रणा से परे 

निर्भया अभया रहेगी 

निर्भ रा , अब सो रहेगी 

यांत्रिकी उपचार सारे 

चलते रहेंगें जब तक 

सांस आतीं जातीं रहेंगीं 

हर प्रार्थना में तुम रहोगी 

हर दुआ तुम तक चलेगी 

हे भारत की बिटिया 

हम सब तुम्हारे संग दोषी 

न बदला समाज अगर 

न किसी की बहन बेटी 

सुरक्षित जीवन जियेगी 

- लावण्या

दिल्ली में सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई लड़की ज़िंदगी की जंग हार गई है. हालत बिगड़ने के बाद उसे गुरुवार को सिंगापुर भर्ती कराया गया था जहाँ अब से कुछ देर पहले डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/12/121228_rape_victim_health_va.shtml

Thursday, December 6, 2012


हे माँ ! दे मुझे वरदान ..

घना जो अन्धकार हो तो हो  रहे, हो रहे 
तिमिराच्छादित हो निशा भले हम वे सहें  
चंद्रमा अमा का लुप्त हो आकाश से तो क्या 
हूँ चिर पुरातन, नित नया रहस्यमय बिंदु मैं 
हूँ मानव ! ईश्वर का सृजन अग्नि शस्य हूँ मैं! 

काट तिमिर क्रोड़ फोड़ तज  कठिन कारा , 
नव सृजन निर्मित करूं निज कर से पुनः मैं !
हैं बल भुजाओं में  वर शाश्वत शक्ति पीठ का  
हे माँ ! दे मुझे वरदान ऐसा हूँ शिशु अबोध तेरा  
कन्दराएँ फोड़ निर्झर सा बहूँ  ऐसा वरदान दे !

चन्द्र सूर्य तारक समूह सृष्टि के कण कण पर 
तेरा है सहज अधिकार सर्वत्र हे माँ स्वयं प्रभा 
ब्रह्मांड की सृजन दात्री हैं मेरी माँ अंबे भवानी 
तुझ से ही प्रलय या नव विहान होते साकार ! 
हर सर्जन विसर्जन तेरी भृकुटी का हैं विलास I 

अमावस्या की कालिमा खंडित ये तेरी कृपा  
दीपकों से जगमगा उठे घनी अंधियारी निशा 
धर परम शुभ मंगल स्वरूप महालक्ष्मी प्रकाशित 
आतीं हर घर कृपा का अमृत रस बिखरातीं! 

श्री राम, बुध्ध, महावीर नानक देव ऋषि गण 
तेरी कृपा याचते दीप पर्व उत्सव सभी मानते   

हो शुभ मंगल सदा सुख धरती के जन जन पर 
हों शान्ति पूर्ण अस्तित्त्व ये कर बध्ध अंजलि 
लिए माँ , हम  शुभ आशिष तुझ से मांगते हैं !

- लावण्या दीपक शाह 
2012 ओहायो , यु। एस ए I 

Monday, November 26, 2012

विश्वकर्मा : ' सौर देवता '

ॐ 
विश्वकर्मा : 
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पुराणों में एवं ' महाभारत ' में ' विश्वकर्मा ' का नाम एक सिद्धहस्त 
शिल्पशास्त्री व शिल्प प्रजापति के रूप में वर्णित किया गया है 
विश्वकर्मा के लिए एक और नाम ' त्वष्ट ' भी प्रतिरूप की तरह  प्रयुक्त हुआ हैविश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ ' ऋग्वेद ' में भी ' विश्वकर्मा ' का  उल्लेख किया गया है और  उन्हें ' सर्वद्रष्टा प्रजापति ' कहा गया है 
स्वरूप वर्णन में चार दिशाओं में मुखाकृति, भुजा, पैर व नेत्र वर्णित होने से ब्रह्मा से मेल खाती हुई विश्वकर्मा की आकृति है परन्तु ब्रह्माजी से एक भिन्नता यह है कि ' विश्वकर्मा ' के पीठ में, पंख दर्शाए गये हैं
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विश्वकर्मा के लिए ' सौर देवता ' उपाधि भी प्राप्त है। 

उन्हें  द्रष्टा, पुरोहित एवं प्राण सृष्टि का पिता भी कहा गया है
विश्वकर्मा ने पृथ्वी को उत्पन्न किया और आकाश को अनावरण किया था

 सारे देवताओं का नामकरण भी इन्होंने किया। 

महाभारत महाग्रंथ में विश्वकर्मा को ' कृतीपति ' कहा गया है 

' मय' विश्वकर्मा के पिता हैं। कहीं कहीं इन्हें प्रभास वसु 

तथा  बृहसपति  भगिनी ' योग्सिध्धा ' का पुत्र कहा गया है

 महाभारत में ब्रह्माजी के दक्षिण वक्ष से उत्पन्न होने की कथा प्राप्त है  

विश्वकर्मा द्वारा निर्मित नगरों के नाम की सूची " 

१ ) इन्द्रप्रस्थ : धृतराष्ट्र के लिए 

२ ) द्वारिका : श्री कृष्ण के लिए 

३ ) वृन्दावन : श्रीकृष्ण के लिए 

४ ) लंका : सुकेश पुत्र राक्षसों के लिए 

५ ) इन्द्रलोक : इंद्र के लिए 

६ ) सुतल : पाताल लोक 

७  ) हस्तिनापुर : पांडवों के लिए 

८ ) विश्वय वाहन गरूड का भवन ( मत्स्य पुराण में वर्णित )

विश्वकर्मा ने विविध देवों के लिए अस्त्र का निर्माण भी किया है  

१ ) श्री महाविष्णु का सुदर्शन चक्र 

२ ) शिव का त्रिशूल एवं रथ ( त्रिपुरदाह के लिए ) 

३ ) इंद्र का वज्र एवं धनुष ( दधीच ऋषि की अस्थियों से निर्मित ) 

विश्वकर्मा  परिवार की कथाएँ : 

उनकी पुत्री संज्ञा का विवाह वेवस्वत  सूर्य से हुआ ऐसा वर्णन प्राप्त है 

संज्ञा,  सूर्य का असह्य जाज्व्लयमान ताप सहन ना कर पायीं और अपने 

पिता के पास लौट आयीं। तब सूर्य भी उनके पीछे आ पहुंचे 

तब विश्वकर्मा ने सूर्य में थोड़ा तेज रहने दिया और विश्वकर्मा ने कुछ अंश ले लिया   

इस सूर्य से बचे शेष  तेज से विश्वकर्मा ने विविध देवों के आयुधों का निर्माण किया।  

ऐसी कथा है   

भागवत  में विश्वकर्मा पत्नी का नाम ' आकृति ' / या ' कृति '  है 

उनके ३ अन्य पत्नियां थीं रति, प्राप्ति व नंदी   

पुत्र  : १ ) मनु चाक्षुष २ ) शम ३ ) काम ४ ) हर्ष ५ ) विश्वरूप ६ ) वृत्रासुर 


इंद्र के  विश्वरूप की हत्या करने पर, इंद्र  के प्रति द्रोह्बुध्धि के कारण वृत्र की 


उत्पत्ति  की गयी इंद्र ने वृत्रासुर का भी  वध  किया। यह कथा सर्वविदित है


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पुत्रियाँ  : 

१ ) बहिर्श्मती -  प्रियव्रत राजा की पत्नी बनीं


२ ) संज्ञा - व छाया दोनों - सूर्य पत्नियां कहलातीं हैं।  


ब्रह्माजी की आज्ञा से  विश्वकर्मा ने द्वारा त्रिलोक की अनिन्ध्य सुन्दरी 

अप्सरा तिलोत्तमा  का  निर्माण किया 

इंद्र दरबार की अप्सरा धृताची को क्रोधवश ' शूद्र्कुल में जन्म लोगी '

ऐसा श्राप विश्वकर्मा ने दिया तब कालान्तर में वह ग्वाले के घर जन्मीं  

ब्रह्मा  जी की कृपा से विश्वकर्मा ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए और उनका विवाह 

उसी ग्वाल - कन्या से हुआ 

ब्राह्मण  पिता व ग्वाले की कन्या के संयोग से ' दर्जी, कुम्हार , स्वर्णकार , बढई, 

शिल्पी आदि तंत्र विद्या प्रवीण अनेक  उप  जातियों का निर्माण हुआ

 अत: यह सारे उद्योग से सम्बंधित ज्ञातियाँ  विश्वकर्मा को अपने पूर्वज मानतीं हैं 

और वे विश्वकर्मा के  वंशज कहलाते हैं      

Link : 1 )  http://vishwakarmavishwa.org/# 

२ ) विश्वकर्मा से जुड़ा गीत - संगीत  : 
http://www.flipkart.com/vishwakarma-mahima/p/itmd8gsatwur3wfg



- लावण्या दीपक शाह 

Thursday, November 8, 2012

" क्या मातृत्व का स्वरुप बदल रहा है ? " / Is ' the Concept of Motherhood changing ?


" क्या मातृत्व का स्वरुप बदल रहा है ? "..कुछ इन प्रश्नों को ध्यान  में रखियेगा :
१ क्या आज के आपाधापी के युग में माँ की  छवि बदली है? 
उत्तर १ : समय के साथ साथ , समाज , व्यक्ति तथा व्यवहार
तीनों में बदलाव आता है परंतु इस की गति पृथ्वी के घूमने की तरह आहिस्ता से घटती है 
जिसका आभास हमे होता तो है परन्तु हमें यह  परिभ्रमण  डगमगाता नहीं बल्कि अपने संग ,
हमसफर बनाये हुए ले  चलता है मेरे पापा पण्डित नरेंद्र शर्मा जी ने धरती माता के लिए कहा है ..
" धरित्री पुत्री तुम्हारी हे अमित आलोक ,
जन्मदा मेरी वही है  स्वर्ण -गर्भा कोख ! "

स्व. पं. नरेंद्र शर्मा,
माँ की छवि बदली तो है परंतु प्राचीन बिम्बों और मूल्यों को
भी आत्मसात कीये हुए , छाया और प्रतिमा को संग लिए हुए है .
२ क्या आप अपने बच्चों को पूरा समय दे पाती हैं ?
उत्तर २ : जी हां कोशिश तो यही की है .
३. अगर आप हाउस वाइफ  हैं तो  बच्चों के पालन पोषण में आपका कितना योगदान है ? /या
 यदि आप नोकरी पेशा हैं तो  आपकी बच्चों के लालन पोषण में क्या भूमिका है ?
त्तर ३ : हाउस वाईफ ही रही हूँ और अगर गणितीय अंकों के
सहारे कहूं तो  ७५ % से अधिक मेरा योगदान रहा है
४  क्या बच्चे अपने मन   की   बात  आपसे शेयर करते हैं?
उत्तर ४ : हां ,कुछ प्रतिशत अवश्य करते हैं .
५ क्या  आपको लगता है कि बदलते परिवेश में टी. वी,फिल्में   और फेस बुक   आपके
बच्चों पर ज्यादा हावी हैं?
उत्तर ५ : संचार माध्यमों का हर पढ़े लिखे व्यक्ति के जीवन
में दाखिला हो चुका है और सेल फोन , 
लेप टॉप इत्यादी, आज , आम हो चुके हैं
मेरे बच्चों के बारे में कहूं तो , 
वे इन सभी का सदउपयोग ही करते हैं ,
दुरूपयोग नहीं करते .
६ क्या आप अपने बच्चों के साथ ह़ी रात   का खाना खाती हैं? 
उत्तर ६ : जी हां , कोशिश तो यही रहती है .
७.*सबसे महत्व पूर्ण प्रश्न :तुलनात्मक रूप से देखें तो क्या आप अपने माँ से
बेहतर माँ हैं ?
 या आपको लगता है आपकी   माँ  आप से  बेहतर माँ थीं ?* 
उत्तर ७ : मेरी अम्मा श्रीमती सुशीला नरेंद्र शर्मा सम्पूर्ण
माँ थीं . वे मुझसे हर क्षेत्र में , बेहतर थीं .
८. आप अपने माँ को अपने से  बेहतर  मानती हैं तो  अपनी माँ की ३ महत्व पूर्ण बाते बताये जो आपमें नहीं हैं या कम हैं ! और अपने  को बेहतर मानती हैं तो  भी तीन विशेष बातें बताएं जो आपमें हैं... माँ में नहीं  थीं या कमी  थीं!
उत्तर ८ : अम्मा ने मेरे कवि पिता पण्डित नरेंद्र शर्मा के
देहली में आकाशवाणी के लिए चीफ प्रोड्यूसर एवं डायरेक्टर 

के पद पर कार्य करने के समय जब उन्हें ७ वर्ष , 
देहली में रहना पड़ा था , सबसे बड़ी दीदी
बड़े चाचा जी की बिटिया गायत्री दीदी हम ३
बहनें,  पूज्य पापा जी की बगिया के पुष्प थे हम !
बड़ी वासवी , मंझली मैं, लावण्या व छोटी
बाँधवी व १ भाई को अम्मा
ने ,बहुत साहस व प्रेम सहित बागबानी एवं 
अन्य सारे कार्य पूरे करते हुए अकेले ही सम्हाला
था उस वक्त , हमे पापा की कमी तो सदा , बेहद खलती रही
थी  पर , अम्मा के ममतामय आंचल तले दुनिया की कड़ी धूप से हम ,
सदा सुरक्षित रहे , पले , बढ़े . ये भी याद है तो उस वक्त मेरी
अम्मा का साहस पूर्ण उत्तरदायित्व निभाना जो अति 
महत्त्वपूर्ण था वह याद करते हुए श्रध्धा नत हूँ .  
ये उनकी पहली बात है जिसे मैं आज भी याद कर 
अभिभूत हो जाती हूँ
शायद मेरी यह नियति रही है कि
मुझे अपने पति दीपक जी का सहकार व सानिध्य ,
अधिक मिला और इस कारण जो साहस अम्मा में देखा था 
वैसा कम प्रदर्शित करने के अवसर आये
 और  पति देव द्वारा , अधिकाँश कार्यभार 
वहन करने की मुझे आदत हो गयी!
दूसरी बात जो महत्त्वपूर्ण है वह है अम्मा द्वारा हम बच्चों
पर लगाया हुआ अनुशाशन !

प्यार से भरी चपत ने ना जाने कितनी अच्छी बातों के 
प्रति सचेत किया और बहुत सी बातें सीखलाईं भी ! 
जैसे गोल और नर्म रोटी  बेलना और घर गृहस्थी के 
अन्य बीसीयों महत्त्वपूर्ण कार्यों को सीखलाना 
ये भी तो , अम्मा के जिम्मे था . 
जिसे मैंने, आगे , अपनी पुत्री पे  अनुशासित नहीवत किया है . 
आज समय बदला है अगर अमरीकी समाज में रहते हुए ,
वे अलग बानगी पसंद करें और
खाना चाहें तो यह उनकी इच्छा है जिस का मैं
सम्मान करती हूँ और आग्रह नहीं करती कि , मेरी
तरह ही मेरी पुत्री या पुत्रवधू ' रोटी ' बनाएं .
अगर वे , इटालियन, मेक्सीकन या पंजाबी
या दक्षिणी डॉसा , या इडली से पेट भरना चाहें तो वही सही -
इस बात को देखते , मैं , अनुशाशन के मामले में मेरी अम्मा से
कम हूँ - तीसरी महत्त्वपूर्ण बात और सब से अधिक जिसका महत्त्व है वह है
हम में आत्म विश्वास भरना ! 
जिस के तहत , आज , कहीं भी जाऊं, जिस किसी से भी मिलूँ ,
विश्व के सभी मुझे अपने लगते हैं और अम्मा के द्वारा दिया 
वात्सल्य - भाव आज शायद मुझ में समा कर , पुन :
प्रवाहित होते हुए  सहज  स्वाभाविक  बना हुआ है . 
समाजशास्त्र और मानस शास्त्र मेरे ग्रेज्यूएशन के विषय रहे हैं 
फिर भी मेरी अम्मा, ने भारत की अनगिनत माताओं की तरह,
ना  जाने , कब और कैसे , इतना सारा कैसे कर लिया 
उसका उत्तर , मेरी एकेडेमिक पढाई के  आधार पर
भी , कुछ शब्दों में  समेटना , सर्वथा , असंभव लग रहा है !
आगे कहूँ तब आज के बच्चों में , 
अपार आत्म विश्वास पहले से ही मौजूद है
शायद स्वतन्त्र भारत की पहली व
दूसरी पीढी को अपना आपा व अस्तित्त्व स्थापित करने में 
अधिक संघर्ष करना पड़ा जब के आज जो बच्चे हैं ,
उन के लिए गूगल , फेस बुक , कम्प्यूटर व 
आधुनिक शिक्षा प्रबाली , संचार माध्यमों से लैस वातावरण ने
जीवन को पारदर्शी एवं अधिक सुलभ बना कर प्रस्तुत किया है
आशा यही है कि प्राचीन से अच्छा लेकर , नये के अच्छे तत्त्वों को मिलाकर
भावी पीढी और प्रगति करे और यही , हरेक माता व पिता की
इच्छा होगी ऐसा मैं सोचती हूँ
चित्र : अम्मा : श्रीमती सुशीला नरेंद्र शर्मा
[Mail0010.JPG]
९ क्या युग परिवर्तन ने माँ के रूप को बदला है ? स्पष्ट करें ! 
उत्तर ९ : आज के भारतीय समाज की माताएं , घर द्वार, रिश्ते - नाते 
सम्हालतीं हैं और नौकरी पेशा महिलाएं बाहर भी खपती हैं -
आज की माँ , गाडी चलाकर , बाजार से सौदा लाने से लेकर ,
बच्चों के विविध कार्य , गतिविधियों को भी सम्हाल लेतीं हैं -
पहले मतलब कुछ दशक पूर्व तक माताएं घर के दायरे तक सीमित थीं
आज भारतीय अमरीकन अंतरीक्ष यान में यात्रा करने वालीं सुनीता 
वीलीय्म्स व कल्पना चावला की छवि नये रूप लेकर उपस्थित हैं -
विश्व के हर देश में या फिर भारत के संदर्भ में भी , माँ का स्वरूप
माता की छवि बहुत से आयामों को समेटे समाज के साथ बदलती रही
है और प्राचीन को अपने व्यक्तित्व के विकास के संग लिए चल रही हैं 
मैंने बहुत सी ब्लॉग प्रविष्टीयाँ मेरे ब्लॉग " लावण्यम - अंतर्मन " पर

एवं जाल घरों के लिए लिखीं हैं उन्हीं से कुछ लिंक्स पाठकों के लिए 
प्रस्तुत कर रही हूँ -- अंग्रेज़ी आलेख :
http://www.boloji.com/index.cfm?

md=Content&sd=Articles&ArticleID=1969
Nari 2001!
by Lavanya Shah
On March 8th, an all women crew will take off its flight! The historic team will consist, Captain Meena Pandey ' Event Manager, Captain Sudha Bengari ' Instructor, Captain Geetanjali Kudaria ' Assistant Instructor, Madhu Sood ' Engineer, Kanchan Singh ' Technician along with all female flying crew! 
What should be the role and the image of a female in 21st century and beyond? 
Researchers say that the first female had made the transition from an ape to a human erectus who stood on her 2 feet and they named her 'Lucy' and she is the first female. Judeo, Christian and Islamic religions teach us that Adam & Eve were the first from whom we all emerged. Hinduism's Devi-Geeta has this - asDevi tells Himvan," Life begins with Ishwar. (Ahamvesha Purvim) I'm Para-Brahma in whichMaya resides. I'm ChittaSam-vitta and Atma -swaroopini." Akash ' Space is the male to the Earth as Female symbol. 
Ancient Vedic lore fascinates us as we get 'wired' through the web in 2001! Nari, the female remains as alluring, as mysterious and fascinating as she was in the pre dawn of civilization. The veil of culture only enhances her age-old mystique as she resides in her own personal 'Shangri-La'.

Women have taken great strides, on all the seven continents. Their achievements have been staggering in spite of obstacles and pitfalls. Female's always had the additional task of 'child bearing' and 'nurturing' of family to solidify the unit in the parameter of yet another institution, which is Marriage. Civilizations, nations and cultures rest upon it. 
Family values the much touted buzz word of politicians is powerful institution indeed! Women who choose careers do an amazing balancing act by taking care of their own motherhoods, babies and mid career decisions within matrimony.

India is perhaps the fastest 'wired' nation where 60% Indian females, still remain illiterate.

Those fortunate few who reach dazzling heights of pinnacles seem like beacons for future growth and potential. Indra Nooyi, the management executive of PepsiCo has shattered glass ceiling for all females of all races. Vani Kola, started her career in Sunnyvale public library in California, with an engineering degree, setting up the Right works Pioneer web based computing system. Both of them have strong religious roots, balanced family life and values and thus carve the perfect role model as Nari-2001!
The perfection of Womanhood! The nurturing and conquering aspects of career success combined with motherhood is simply awe inspiring and awesome! Looking at their glorious achievements we shudder when we look at the depths, far below the valley when we are faced with ICCW ' Indian Council of Child Welfare which runs an orphanage for abandoned girl-child. Due to the gruesome practice of female infanticide practiced in Tamil Nadu, Punjab, Gujarat and Rajasthan, Bihar etc., the absent ratio of female birth, stops us in our tracks and makes us ask 'why?'  What is the answer to this social problem? A female is a burden to her parents and her marriage an expanse. So many dowry deaths, abuse and neglect, lack of proper nutrition and food, inadequate education, improper emphasis on a male child and desire for the same are all culprits in the unfair treatment and handling of a girl-child in modern India. 
Western world has made much more progress in giving women their freedom and status but even then the comparison is still like that of an apple to an orange. Second class citizenship of females is a silent feature of society. Sad examples of injustices, perpetuated by females on younger females remains a by product of an orthodox mind set where bride burning can follow if she did not bring enough wealth to her in-laws and now her new home as she enters as a bahu, a daughter-in-law and the mother-in-law ill treats her. To change this scene, women needs to be nurtured, given equal love and care as her brother in a family and given education so she can be self-reliant and confident about her future and has a say in her destiny with her choices and decisions. She should be taught to take pride in her femininity otherwise a lack of self esteem leads her into vulnerable and manipulative situations. 
Every woman's liberation attempt, the world over, has had its own backlash. Patriarchal, male dominated societies have somehow deluded us all into believing that female is the weaker and an inferior sex. Even Mr. Freud is guilty of that. Gandhiji made a wise decision by assimilating women in freedom struggle, which made it feasible for India to have a female prime minister in Indira Gandhi whereas America still has not achieved it. New theories are coming to light due to the research initiated by female scientists who are setting the records straight.

Anthropologist Adrienne Zihlman's article in TIME magazine states that in the survival struggle of human species, 30 % food was gathered by males from hunting but females were gatherers from plants etc of 70% food source which enabled our survival. 
The child birth discomforts and its associated difficulties actually provides mothers tremendous physical boosters as high Estrogen levels in the blood stream prevents many dreaded disease like Alzheimer's and even Dementia. The Fetal cells from a mother's off spring, survive in her blood stream, decades after child birth and provides resistance to many diseases and still we call women the weaker sex!

Female as perhaps the 'less understood' species would be a more accurate assumption. Aphrodite or Venus or a Laxmi emerging from an ocean along with wealth and breath taking sublime beauty is a picture for all art at all times. The female form has enchanted the eye since millennium and reached at the threshold of 21st century.

Nari, of 2001 is reshaping the world around her by entering all fields & endeavors. Along with men, she has emerged as a doctor, engineer, lawyer, astronaut, aviator, soldier, political leader, humanitarian, teacher, nurse, beauty queen, actress, singer, musician, poet, thinker and writer, painter etc.  Nari is the first teacher of an infant in most cases. A female plays many roles. She's a loving, daughter, sister, wife and a mother then an elder of a family as Nani Ma andDadi ji fulfilling not only herself but also the society. 
May the Nari of 2001, continue her struggle as she supports the male, in their role as their loving, nurturing and worthy counterpart. The two wheels of life are male and female which move the flow of time as it becomes, History, Civilization and Culture for us to glimpse and to learn from, in order to evolve as better human beings.

The opportunities for achievements accomplishments are manifold as we all come closer through faster mode of telecommunication medias and Internet, which is taking us at an alarming speed ahead! Fast-forward is here to stay! As we catch a glimpse of the emerging, beguiling swaroop of Nari 2001
8-Mar-2001

१०  क्या आपके पति आपको एक अच्छी माँ मानते हैं ?
उत्तर १० : कभी पूछा नहीं .. तो पूछ कर बतलाऊंगी !

११  क्या आप सचमुच अच्छी माँ  हैं....क्या आपके बच्चे आपकी हर बात मानते हैं ? 
कहाँ कहाँ वो आपसे   सहमत नहीं होते? और क्यूँ ?  
व लगन के साथ करे - माताएं, महिला होने के साथ व्यक्ति भी हैं 
अपने समूचे जीवन का आकलन मैं किस पलड़े में रख कर करूं ? 
 यही लगता हैं , कि काश ! कुछ और ज्यादह किया होता ..
फिर याद करती हूँ -- ' कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन "
अपनी एक फोटो ,कार्य क्षेत्र और संक्षिप्त परिचय भी दें

रचनाकार परिचय:-

लावण्या शाह सुप्रसिद्ध कवि स्व० श्री नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं और वर्तमान में अमेरिका में रह कर अपने पिता से प्राप्त काव्य-परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।

समाजशा्स्त्र और मनोविज्ञान में बी.ए.(आनर्स) की उपाधि प्राप्त लावण्या जी प्रसिद्ध पौराणिक धारावाहिक "महाभारत" के लिये कुछ दोहे भी लिख चुकी हैं। इनकी कुछ रचनायें और स्व० नरेन्द्र शर्मा और स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेसकर से जुड़े संस्मरण रेडियो से भी प्रसारित हो चुके हैं।

इनकी एक पुस्तक "फिर गा उठा प्रवासी" प्रकाशित हो चुकी है जो इन्होंने अपने पिता जी की प्रसिद्ध कृति "प्रवासी के गीत" को श्रद्धांजलि देते हुये लिखी है।

संभव हो तो अपने बच्चों के साथ भी एक चित्रे प्रस्तुत करें !


दीपक जी [ मेरे पति ] पुत्र सोपान, बहुरानी मोनिका देव व मैं लावण्या 
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 अपनी एक फोटो ,कार्य स्थान    और संक्षिप्त परिचय भी दें, 
संभव हो तो  अपने बच्चों के साथ भी एक चित्र प्रस्तुत करें !
आपकी
डॉ सरस्वती माथुर / अंशु हर्ष ( संपादक : सिम्पली जयपुर )