देहली में आकाशवाणी के लिए चीफ प्रोड्यूसर एवं डायरेक्टर
के पद पर कार्य करने के समय जब उन्हें ७ वर्ष ,
देहली में रहना पड़ा था , सबसे बड़ी दीदी
बड़े चाचा जी की बिटिया गायत्री दीदी हम ३
बहनें, पूज्य पापा जी की बगिया के पुष्प थे हम !
बड़ी वासवी , मंझली मैं, लावण्या व छोटी
बाँधवी व १ भाई को अम्मा
ने ,बहुत साहस व प्रेम सहित बागबानी एवं
अन्य सारे कार्य पूरे करते हुए अकेले ही सम्हाला
था उस वक्त , हमे पापा की कमी तो सदा , बेहद खलती रही
थी पर , अम्मा के ममतामय आंचल तले दुनिया की कड़ी धूप से हम ,
सदा सुरक्षित रहे , पले , बढ़े . ये भी याद है तो उस वक्त मेरी
अम्मा का साहस पूर्ण उत्तरदायित्व निभाना जो अति
महत्त्वपूर्ण था वह याद करते हुए श्रध्धा नत हूँ .
ये उनकी पहली बात है जिसे मैं आज भी याद कर
अभिभूत हो जाती हूँ
शायद मेरी यह नियति रही है कि
मुझे अपने पति दीपक जी का सहकार व सानिध्य ,
अधिक मिला और इस कारण जो साहस अम्मा में देखा था
वैसा कम प्रदर्शित करने के अवसर आये
और पति देव द्वारा , अधिकाँश कार्यभार
वहन करने की मुझे आदत हो गयी!
दूसरी बात जो महत्त्वपूर्ण है वह है अम्मा द्वारा हम बच्चों
पर लगाया हुआ अनुशाशन !
प्यार से भरी चपत ने ना जाने कितनी अच्छी बातों के
प्रति सचेत किया और बहुत सी बातें सीखलाईं भी !
जैसे गोल और नर्म रोटी बेलना और घर गृहस्थी के
अन्य बीसीयों महत्त्वपूर्ण कार्यों को सीखलाना
ये भी तो , अम्मा के जिम्मे था .
जिसे मैंने, आगे , अपनी पुत्री पे अनुशासित नहीवत किया है .
आज समय बदला है अगर अमरीकी समाज में रहते हुए ,
वे अलग बानगी पसंद करें और
खाना चाहें तो यह उनकी इच्छा है जिस का मैं
सम्मान करती हूँ और आग्रह नहीं करती कि , मेरी
तरह ही मेरी पुत्री या पुत्रवधू ' रोटी ' बनाएं .
अगर वे , इटालियन, मेक्सीकन या पंजाबी
या दक्षिणी डॉसा , या इडली से पेट भरना चाहें तो वही सही -
इस बात को देखते , मैं , अनुशाशन के मामले में मेरी अम्मा से
कम हूँ - तीसरी महत्त्वपूर्ण बात और सब से अधिक जिसका महत्त्व है वह है
हम में आत्म विश्वास भरना !
जिस के तहत , आज , कहीं भी जाऊं, जिस किसी से भी मिलूँ ,
विश्व के सभी मुझे अपने लगते हैं और अम्मा के द्वारा दिया
वात्सल्य - भाव आज शायद मुझ में समा कर , पुन :
प्रवाहित होते हुए सहज व स्वाभाविक बना हुआ है .
समाजशास्त्र और मानस शास्त्र मेरे ग्रेज्यूएशन के विषय रहे हैं
फिर भी मेरी अम्मा, ने भारत की अनगिनत माताओं की तरह,
ना जाने , कब और कैसे , इतना सारा कैसे कर लिया
उसका उत्तर , मेरी एकेडेमिक पढाई के आधार पर
भी , कुछ शब्दों में समेटना , सर्वथा , असंभव लग रहा है !
आगे कहूँ तब आज के बच्चों में ,
अपार आत्म विश्वास पहले से ही मौजूद है
शायद स्वतन्त्र भारत की पहली व
दूसरी पीढी को अपना आपा व अस्तित्त्व स्थापित करने में
अधिक संघर्ष करना पड़ा जब के आज जो बच्चे हैं ,
उन के लिए गूगल , फेस बुक , कम्प्यूटर व
आधुनिक शिक्षा प्रबाली , संचार माध्यमों से लैस वातावरण ने
जीवन को पारदर्शी एवं अधिक सुलभ बना कर प्रस्तुत किया है
आशा यही है कि प्राचीन से अच्छा लेकर , नये के अच्छे तत्त्वों को मिलाकर
भावी पीढी और प्रगति करे और यही , हरेक माता व पिता की
इच्छा होगी ऐसा मैं सोचती हूँ
चित्र : अम्मा : श्रीमती सुशीला नरेंद्र शर्मा