Friday, August 31, 2007
विश्व में दिन रात हलचल होती रहतीं हैं....इसके लिंक देखिये
ये चित्र सोनार पेनल का है जिससे ऊर्जा प्राप्ति हो रही है
विश्व में दिन रात हलचल होती रहती हैं.
हरेक क्षण यहाँ कोई न कोई , नई घटना , या कोई हादसा होता रहता है ..इसके लिंक देखिये
http://www.globalincidentmap.com/home.php
और जहाँ निशान बना हुआ है वहाँ क्लिक करिये तो समाचार विस्तार से देखे जा सकते हैं
२ कलाकार २ गीत / आप बताएं की आप को इन २ कलाकारों के कौन से गीत प्रिय हैं ?
मधुबाला और राज कपूर ये दो कलाकार अपनी हसीं शख्शियत के लिए जग प्रसिध्ध हो गए हैं
मुझे ये दो गीत याद आते हैं जब जब मैं इन दो कलाकारों को याद करती हूं तब ..
१ ) आइये महेरबान ..जिस गीत में मधु की मस्ती खिली हुई है... अपने शबाब पर है ..
और
राज कपूर जीं का ये गीत "जपु जपु जपु जपु जपु जपु रे ...जप रे प्रीत की माला ..फ़िल्म शारदा से
आप बताएं की आप को इन २ कलाकारों के कौन से गीत प्रिय हैं ?
Thursday, August 30, 2007
फटा ट्वीड का कोट और कलिका गुलाब की
तुम्हेँ याद है क्या उस दिन की
नए कोट के बटन होल मेँ,
हँसकर प्रिये, लगा दी थी जब
वह गुलाब की लाल कली ?
फिर कुछ शरमा कर, साहस कर,
बोली थीँ तुम, " इसको योँ ही
खेल समझ कर फेँक न देना,
है यह प्रेम -भेँट पहली ! "
कुसुम कली वह कब की सूखी,
फटा ट्वीड का नया कोट भी,
किन्तु बसी है सुरभि ह्रदय मेँ,
जो उस कलिका से निकली !
( फरवरी १९३७, रचना प्रवासी के गीत काव्य सँग्रह से : नरेन्द्र शर्मा )
Wednesday, August 29, 2007
अँतिम भाग - ४ डा. अमरनाथ दुबे का आलेख -
ग्रामीण सँस्कृति का चित्रण राष्ट्रीय धारा का अँग माना जाता है. गोधूली मे घर लौटते ढोरोँ का यह चित्र कितना सहज, पर कितना मार्मिक है -- " हो रही साँझ, आ रहे ढोर,
हैँ रँभा रहीँ गायेँ भैँसेँ
जँगल से घर को लौट रही
गोधूली वेला मे धरती "
कृषि - भूमि पर श्रमरत कृषक गोरी का यह चित्र देखिये -
" सिर धरे कलेऊ की रोटी, लेकर के मट्ठा की मटकी,
घर से जँगल की ओर चली होगी बटिया पर पग धरती,
कर काम खेत मे स्वस्थ हुई होगी तलाब मे उतर नहा,
दे न्यार बैल को , फेर हाथ, कर प्यार बनी माता धरती "
*****************************************
किस से कम है यह पली धूल मेँ, सोना धूल भरी धरती ?
तू तू मैँ मैँ तथा व्यक्तिगत स्वार्थ राष्ट्र को खोखला बना देते हैँ कवि उससे दुखी है -
" आज हिल रही राष्ट्र की नीँव, व्यक्ति का स्वार्थ न टस से मस,
राष्ट्र के सिवा सभी स्वाधीन, व्यक्ति - स्वातँत्रय अहम के वश ! "
कवि फिर भी देश को ललकारता है -- " ध्यान करो निज बल का मन मेँ,
भारत पवन कुमार,
एक बार फिर उठो गगन मे ,
कनक भूधराकार !"
शर्मा जी ने राष्ट्रीय चेतना के साथ कभी खिलवाड नहीँ किया. यध्यपि उनकी कुछ कविताएँ साम्यवाद , लाल निशान, तथा रुस के महापुरुषोँ से सँबँधित अवश्य हैँ पर वास्तव मे उनकी आत्मा भारतीय परिवेश तथा भारतीय जनजीवन से अपना सँबँध कभी भी तोड नहीँ सकी. उन्होने अपने काव्य मेँ राष्ट्रीय चेतना के श्रेष्ठतम आयामोँ की कल्पना की है, यही कवि के भावी भारत का सपना है, जिसके केन्द्र मेँ गाँधी जी स्वयम्` हैँ : ~
" आधा सोया, आधा जागा,
देख रहा था सपना,
भावी के विराट दर्पण मेँ ,
देखा भारत अपना ,
गाँधी जिसका ज्योति - बीज, उस विश्व वृक्ष की छाया,
सितादर्ष लोहित यथार्थ यह नहीँ सुरासुर माया -
************************************************************************************
डा. अमरनाथ दुबे के आलेख को प्रस्तुत किया है पुस्तक " सृजन और सँवेदना - नरेन्द्र शर्मा " से लावण्या ने
Saturday, August 25, 2007
छायावाद की दीप शिखा स्वरुप सुप्रसिध्ध, कविश्रेष्ठ सुमित्रा नँदन पँत जी-- भाग -- ३
श्री सुमित्रा नँदन पँत ने लिखा है --
" वह ( नरेन्द्र ) क्रान्तिकारियोँ की वर्दी पहन कर एक दो वर्ष के लिए शायद देवली कैँप मे भी नजरबँद रहा, हहाँ के कठोर अनुशासन की पाषाण -शिला से उसके कवि के भीतर "कामिनी " नामक खँड - काव्य का मर्म मधुर प्रणय स्त्रोत फूटा तथा उसने "मिट्टी और फूल " शीर्षक अपने काव्यसँग्रह की रचना की."बैरक " से कविता मे जेल मे रहते हुए भी कवि का प्रकृति के प्रति व्यक्त आकर्षण द्रष्टव्य है.
कवि का " साँझ " का यह चित्र
ग्राम - प्राँत को कितनी शांति प्रदान करता है --
" बछडे सा बिछुडा था दिन भर जो ग्राम -प्राँत,
श्याम धेनु सँध्या के आते ही हुआ शाँत "
*******************
' माता भूमि पुत्रोहँ पृथिव्याँ ' राष्ट्रीय चेतना की सबसे बडी कसौटी है. धरती माता सबसे महान होती है. स्वर्ग से भी ! इसीलिये कहा गया है - " जननी जन्मभूमिस्च स्वर्गादपि गरीयसी " -- कवि " कामिनी " कविता मे इसी धरती माता के लिए आशीर्वाद माँगता है.
" धरित्री पुत्री तुम्हारी हे अमित आलोक,
जन्मदा मेरी वही है, स्वर्ण गर्भा कोख !"
कवि की "सुवीरा " काव्य सँग्रह मे ऐसे अनेक प्रसँग आये हैँ जहाँ भारत के उद्दाम वर्णन मे देशप्रेम मुखर हुआ है एक उदाहरण प्रस्तुत है -
" धर्म भूमि यह, कर्मभूमि यह, ज्योतिर्मय की मर्मभूमि यह,चार पदार्ठोँ से परिपूरित , धरती कँचन थाल है "
नील लहरोँ के पार लगी है चीन देश मे आग, जाग रे हिन्दुस्तानी जाग
उन दिनोँ बहुत लोकप्रिय हुई थी.
वही कवि अपने १९६० मे प्रकाशित "द्रौपदी:" खँडकाव्य की भूमिका मे स्वाकार करता है कि "राष्ट्रीय चेतना के निर्माण मे पुराण कथाओँ का बडा हाथ होता है. भारतीय जन मानस पर इनका गहरा प्रभाव है. सुधार, प्रगति या आधुनिकता के नाम पर अचेतन जनमानस और पुराण कथाओँ से आज का काव्य अछूता , असँपृक्त रहे , यह उचित नहीँ : "
" विश्व को वामन पगोँ से नापने की कामना है "
कवि के लिये गाँधी जी राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक रहे हैँ अत: उनके काव्य मे गाँधी दर्शन अथवा गाँधी प्रशस्ति प्रचुर मात्रा मे मिलती है. " रक्त -छँदन " की सभी रचनाएँ गाँधी जी के बलिदान से सँबँध हैँ किन्तु अन्य बलिगानियोँ की कवि ने उपेक्षा नहीँ की है. ग्राम जहाँगीरपुर से प्रयाग , काशी होता हुआ कवि बम्बई के सागर तट पर आ बसता है, पर, कृषि प्रधान गाँव की धरती से उसका नाता अटूट बना रहता है. गाँव की धरती का ये शब्द चित्र देखिये -
"-" पक रही फसल, लद रहे चना से बूट पडी है हरी मटर "
क्रमश:
भाग -- २राष्ट्रीय चेतना के गीत ~ शब्द : " युग की सँध्या कृषक वधू सी किसका पँथ निहार रही ?"
युग का रावण मानव - सभ्यता की सीता को बँदी बनाये है ~
" क्या न मानव सभ्यता ही भूमिजा पावन ?
क्या न इसको कैद मेँ डाले हुए रावण ?"
लेकिन कवि हताश नही है, क्यो कि उसे राम के पुल बाँध कर रावण को समाप्त करने की कथा ज्ञात है वह मानता है कि यह सभ्यता की सीता का परीक्षाकाल है
" क्या न बँधता जा रहा पर सेतु रामेशवर ?
स्वर्ण लँका और अणु के अस्त्र की माया
दर्पमति लँकेश फिर सब विश्व पर छाया ?"
************
चिर पुनीता है हमारी सभ्यता सीता
न उसका भी परीक्षाकाल है बीता !
( अग्निसश्य काव्य ~ सँग्रह से )
यह पराधीन भारत की व्यथा -कथा है , किन्तु वह कल आनेवाली स्वतँत्रता के प्रति आश्वस्त है. " केँचुल छोडी " शीर्षक कविता मे कवि ने अपनी इसी आस्था को अभिव्यक्ति दी है""
शेष नाग ने केँचुल छोडी धरती ने काया पलटी
नाश और निर्माण चरण युग नाच रही है नियति नटी "
अपनी इस शीर्षक रचना मे जो १५ अगस्त, १९४७ को लिखी गई थी, कवि ने इस नवोदित स्वतँत्रता का बडे हर्षोल्लास से स्वागत किया है. उसने इस नये राष्ट्र की प्रगति के प्रति आस्था प्रगट की है ~
" तिमिर क्रोड फोड भानु भासमान रे
नवविहान, नवनिशान, भारती नई !
अब न जन रहे विपन्न, ग्रास - ह्रास के,
नृत्य करे ओस -पुष्प अश्रु - हास के,
आज देश माँगता पवित्र एक वर
दास फिर न बने कभी पुत्र दास के "
किन्तु दो वर्षोँ के विभाजन की विभीषिका और दो वर्षोँ के शासन ने उसे बहुत निराश कर दिया फिर भी वह हारा नहीँ
" आज के दुख मे निहित है कल सुखोँ का साज, क्योँ न आशा हो मुझे इस देश के प्रति आज ? राज अपनोँ का बनेगा, क्या न अपना राज ? "
सन्` १९५० की यह कविता है. भारत के गणतँत्र की घोषणा तथा नेहरु के भारत निर्माण की कल्पना के साथ इस राष्ट्र को तटस्थ राष्ट्र घोषित करने पर कवि खीझ उठा था और १९४८ मे इस सँवेदनशील कवि ने क्रान्ति के अपने स्वर को वाणी दी -
- " कौन है मध्यस्थ ? कौन तटस्थ ? केवल कल्पना है !
वाम दक्षिण पक्ष, बीचोबीच कोरी कल्पना है ,
पेच पहलू हैँ बहुत पर सत्य भी प्रत्यक्ष है यह,
मध्य मार्ग, विशाल से, लघु रेख बनता जा रहा है !"
कवि का स्वर मानवतावादी है वह देश की सच्ची प्रगति चाहता है
- वह किसी भी दल से, सँतुष्ट नही है अत: वह प्रार्थना करता है -
मुझे मुक्ति दो, आज अगति से, खँडित कर भूधर जडता के, पाश खोल दो, परवशता के, सीमाओँ को प्रहसित कर अब, पथ सँवार दो, सहज सुमति से ***********
दुर्बलता मे शक्ति प्रगट हो, अल्प पूर्ण हो जायेँ अति से !
***********
क्रमश:
नरेन्द्र शर्मा के काव्योँ मेँ राष्ट्रीय चेतना :डा. अमरनाथ दुबे- -- भाग -- १
तुलसी ने इस चेतना के प्रतीक के रुप मे "राम -राज्य " की कल्पना की थी. इसके लगभग १०० वर्ष बाद समर्थ गुरु रामदास ने भी महाराज शिवाजी जैसे राष्ट्रपुरुष के द्वारा ' हिन्दू पद पादशाही " का उद्`घोष करवाया. हिन्दी साहित्य का मध्यकाल मुख्यत: भक्ति आँदोलन , हमारे साँस्कृतिक जीवन के पुनर्निर्माण एवँ राष्ट्रीय जीवन को एक नया परिवेश देते हुए उसे सुसँगठित करने का अभिनव प्रयास माना जा सकता है. गाँधी जी का अँग्रेजोँ के विरुध्ध सत्य और अहिँसा का आँदोलन स्वतँत्रता सँग्राम के इतिहास मे इसी चेतना धारा की अगली परिणीती मानी जायेगी, जिसका प्रवाह - पथ भारतेन्दु हरिस्चँद्र , प्रेमचँद , प्रसाद, निराला आदि के साहित्य से स्पष्ट परिलक्षित होता है. राष्ट्रीय चेतना के इसी प्रवाह ने आगे चलकर जन आँदोलन का रुप लिया और सन्` १८८५ के कोँग्रेस की स्थापना इसकी चरम परिणति बनी.
गाँधीयुग को हमारी राष्ट्रीय चतना का स्वर्ण युग माना जाना चाहिए
महात्मा गाँधी ने न केवल भारतीय राजनीति को प्रभावित किया अपितु, साहित्य को भी एक नई दिशा दी, उसे सत्याग्रह अहिँसा आत्मोसर्ग तथा आत्मानुशीलता की चेतना से अभीभूत किया.
" चाह नहीँ मैँ सुरबाला के गहनो मे गूँथा जाऊँ "
उसी चेतना की परिणति है, प्रसाद के नाटकोँ मेँ, निराला की गीतिका मेँ !स्वतँत्रता प्राप्ति के बाद हमारे युग की राष्ट्रीय चेतना ने एक नया परिवेश धारण कर लिया है.आलोचक डा. रामरतन भटनागर के अनुसार "पिछले ५० वर्षोँ मेँ हमारा राष्ट्रीय काव्य राजनीति काव्य मे बदल गया है और उसने विभिन्न राजनैतिक दलोँ से अपनी साँठ गाँठ बैठा ली है.आर्थिक विषमताओँ और सामाजिक उत्पीडन ने उनके स्वर को बराबर खँडित किया है "
पँडित नरेन्द्र शर्मा के काव्य मे हमे एक बहुमुखी राष्ट्रीय राष्ट्र चेतना के दर्शन होते हैँ उसमे एक उदीयमान राष्ट्र की वेदना, भावुकता , तेज, उनके उत्सर्ग एवँ त्याग की अदम्य लालसा अत्यँत सशक्त स्वरोँ मेँ मुखरित हुई है.उसमेँ देश की पीडा बडे ही सशक्त स्वरोँ मे मूर्तिमान हुई है.शर्मा जी की रचनाओँ मे देश भक्ति, राष्ट्र गौरव, समकालिन राजनीति के साथ ही साथ ग्राम जीवन और प्रकृति को भी महत्त्व दिया गया है -
उन्होँने "कदली वन " काव्य -सँग्रह की "देश मेरे " शीर्षक कविता मे कहा है "दीर्घ जीवी देश मेरे, तू, विषद वट वृक्ष है "
( इलाहाबाद मेँ ली गई एक पुरानी श्याम /श्वेत छवि)
नरेन्द्र शर्मा को छायावादी कवियोँ के अतिरिक्त्त छायावादोत्तर कवि बच्चन,अँचल आदि के साथ भी रखा जा सकता है.ये उत्तर छायावादी कवि अपने चतुर्दिक जीवन - जगत के प्रति पूर्ण सँवेदित हैँ ये सभी सद्` गृहस्थ हैँ
-पँ नरेन्द्र शर्मा के काव्य मेँ राष्ट्रीय चेतना का उदय इनके कवि कर्म के रुप मे ही हुआ है.सन्` १९४२ के आँदोलन के बाद शर्माजी की रचनाओँ देशभक्ति तथा जन जीवन के प्रति लगाव विशेष रुप से दिखाई देता है देश मे नित्यप्रति होते नैतिकता के ह्रास से दुखी होते हैँ
" अहँकार के साथ बुध्धि की जब से हुई सगाई है
हीन विवेक हुआ मानव - मन, नैतिकता बिसराई है "
Sunday, August 19, 2007
उन्मुक्त जी की इच्छा थी कि नाग देवता पर फिल्माये गये नृत्य देखेँ जायेँ -तो लीजिये ..ये रहे लिन्क
शिवलिँगम्`
नागिन फिल्म के गीत मन मेँ गूँज रहे हैँ - " मन डोले मेरा तन डोले रे मेरे दिल का गया करार रे ये कौन बजाये बाँसुरिया "
http://www.youtube.com/watch?v=Uz4vSIgJ7MM
और श्रीदेवी की छवि मन पटल पर उपस्थित हो गयी -- नगीना मेँ नीली , हरी आँखोँ के लेन्स लगाये , सँपेरे बने अमरीश पुरी को गुस्से से फूँफकारती हुई, डराती हुई लहराती हुई , नाचते हुए, लता जी के स्वर मेँ गाती हुई जादूभरी नागिन " मैँ तेरी दुशमन, तू दुशमन है मेरा, मैँ नागिन तू सँपेरा ..आ आ "
http://www.youtube.com/watch?v=fOFogcZIT4I&mode=related&search=
और भी एक अद्भुत नृत्य है - श्रीदेवी और जया प्रदा दोनोँ साथ नाच रहीँ हैँ मँदिर मेँ और जीतेन्द्र गा रहे हैँ " हे नाग राजा तुम आ जाओ " -
http://www.youtube.com/watch?v=0A7H7l_Pt5o
Saturday, August 18, 2007
उमा भारती जी , नाग पँचमी के अवसर पर पूजा करते हुए बहुत प्रसन्न हुईँ -
- नाग पँचमी के अवसर पर भारत के उज्जैन शहर के मँदिर मेँ भगवान शिव और पार्वती जी की प्रतिमा पर शेष नाग छत्र किये हुए हैँ
जिसकी अत्याधिक महिमा है जिसकी पूजा उमा भारती जी पूजा-करते हुए बहुत प्रसन्न हुईँ - तो सोचा नाग विषय पर कुछ लिखा जाये - नागिन फिल्म के गीत मन मेँ गूँज रहे हैँ - " मन डोले मेरा तन डोले रे मेरे दिल का गया करार रे ये कौन बजाये बाँसुरिया "
- और श्रीदेवी की छवि मन पटल पर उपस्थित हो गयी -- नगीना मेँ नीली , हरी आँखोँ के लेन्स लगाये , सँपेरे बने अमरीश पुरी को गुस्से से फूँफकारती हुई, डराती हुई
लहराती हुई , नाचते हुए, लता जी के स्वर मेँ गाती हुई जादूभरी नागिन " मैँ तेरी दुशमन, तू दुशमन है मेरा, मैँ नागिन तू सँपेरा ..आ आ " - और भी एक अद्भुत नृत्य है - श्रीदेवी और जया प्रदा दोनोँ साथ नाच रहीँ हैँ मँदिर मेँ और जीतेन्द्र गा रहे हैँ " हे नाग राजा तुम आ जाओ " -
नाग पूर्वजोँ को भी कहा गया है कि सँपत्ति व सँतति के प्रति बहुत मोह या लोभ के कारण नाग योनि मेँ पैदा होकर वे रखवाली करते हैँ -
गाईड फिल्म मेँ वहीदा जी का भी एक रोमाँचक सर्प नृत्य दीखलाया गया था -- नाग लोक पाताल लोक है जिसकी राजधानी भोगावती कहलाती है - तो आइये, नाग देवताओँ को प्रणाम करेँ --
- नाग सारे कश्यप ऋषि की सँतान हैँ - और कद्रू और वनिता जो गरिद की माता थीम वे कश्यप जी की पत्नीयाँ थीँ
- Anantha: अनन्त शेष नाग जिस पर महाविष्णु दुग्ध सागर मेँ शयन करते हैँ
- Balarama: बलराम: श्री कृष्ण के बडे भाई, रेवती के पुत्र जो शेष नाग के अवतार हैँ
- Karkotaka: कर्कोटक- जों आबोहवा के नियँत्रक हैँ
- Padmavati: पद्मावती: राजा धरणेन्द्र की नाग साथिन
- Takshaka: तक्षक :नागोँ के राजा
- Ulupi: Arjuna : की पत्नी : नाग वँश की राज महाभारत से (epic Mahabharata.)
- Vasuki: वासुकी : नागोँ के राजा जिन्होँने देवोँ की अमृत लाने मेँ सहायता की (devas ) Ocean of Milk.
[edit] Where nāga live
- Bhoga-vita: भोगावती : पाताल की राजधानी
- Lake Manosarowar: मानसरोवर : नाग भूमि
- Mount Sumeru : सुमेरु पर्बत
- Nagaland : भारत का नागालैन्ड प्राँत
- Naggar: नग्गर ग्राम : हिमालय की घाटी मेँ बसा Himalayas, तिब्बत
- Nagpur: नागपुर शहर, भारत (Nagpur is derived from Nāgapuram, )
- Pacific Ocean: (Cambodian myth)
- Pātāla: (or Nagaloka) the seventh of the "nether" dimensions or realms.
- Sheshna's well: in Benares, India, said to be an entrance to Patala.
Thursday, August 16, 2007
८ वां विश्व हिंदी सम्मेलन + मेरी एक कविता पाठ का लिंक ~ (श्री अनुप भार्गव जीं के सौजन्य से )
ये शब्द हैं कविता के
विश्व हिंदी सम्मेलन में , कविता पाठ का लिंक
(श्री अनुप भार्गव जीं के सौजन्य से )
" फिर गा उठा प्रवासी "
मेरी हिंदी कविता की किताब छप के तैयार है :~~
इसी पुस्तक से मेरी एक कविता सुनाने का मौका मिला
जिस किताब का मुख पृष्ठ
,मेरे , गुनी , युवा कालाकार साथी ,
श्री विजेंद्र विज ने तैयार किया है :~~
Vij विज
http://vijendrasvij.blogspot.com/
सौभाग्यवती बेटी संगीता मनराल के साथ
Wednesday, August 15, 2007
करें उपयोग हिंदी का हरदम, आओ , ऐसा ऐलान करें --
वह भाषा भारती , ही, मेरी वाणी
-संस्कृति की वाहिका वही बहती
भास्वर हैं स्वर वेदों के जिनसे
वह गौरावशालिनी, वेद वाणी सी
या की उस का सन्मान करे
करें उपयोग हिंदी का हरदम,
तब तक भारतीय होने का गौरव अनुभव इस तरह से करिये,
अपने आप से पूछिये कि
Sunday, August 12, 2007
आप का स्वागत है - "मुक्ति " -- मेँ -भारत की ६० वीँ आज़ादी के पर्व पर सुदूर अमरीका मेँ भारत की आज़ादी का जश्न इस प्रकार मनाया जायेगा -
Program Agenda:
9: 45 AM - Grand Parade
Sponsoring Organizations
भारतिय मनिषा / भारतीय मानस क्या है ? ( श्री प्रेम कपूर की यादेँ - उन्हीँ की ज़बानी )
उनका घर, उनका कमरा और पँडित जी खुद बिलकुल नहीँ बदले।
एक लँबे अँतराल की कडी जुड गयी है। जब बँबई मेँ पहली बार, इस घर मेँ, उनके यहाँ आमँत्रित था, वह सन्` '६८ की गर्मियोँ वाली सुबह थी।
मैँ इलाहाबाद पर फिल्म बना रहा था।
पँत, फिराक गोरखपुरी, बच्चन जी, की फिल्मिँग कर आया था।
पँडित नरेन्द्र शर्मा जी के घर, कैमरा, लाइट के साथ, एक बार ही आना हुआ था। इसके पहले सन्` '५४ मेँ , बँबई आया था और चेँबूर मेँ, आर. के. स्टुडियो जाने के लिये, कुर्ला स्टेशन पर खडा था। तब वहाँ उस प्लेटर्फोर्म से इँजनवाली गाडी, चेँबूर जाती थी, शायद, एक घँटे के अँतराल से !
आगे मैँने मित्र को बोलने नहीँ दिया। जरुरत ही नहीँ थी।
पर जब फिल्म "त्रिवेणी" बना रहा था, उस समय मैँ, "धर्मयुग " मेँ था।
तब मैँने फोन पे कहा था, " फिल्म बनेगी जुरुर, कब और कैसे ये कह नहीँ सकता। जब तक बन नहीँ जाती, सारा कुछ गुप चुप रखना है --यहाँ तक की भारती जी को भी नहीँ मालूम कि मैँ फिल्म बना रहा हूँ। आप मेरी बात को सीक्रेट रखेँ और फिल्म मेँ आपकी एक कविता इलाहाबाद पर चाहिये.'प्रयाग !
तू सीख त्याग, तू सीख प्रेम, तू नियम-नेम ले अज्ञानी-
-क्या पत्थर पर अब तक अंकित यह दया-द्रवित कोमल वाणी?
" वे भी बात करना चाहते हैँ " निर्माता ने बताया पँडित जी से आप जरुर मिलिये - मिलने गया, तो बातोँ का जो सैलाब उमडा, तो लगा, उसे रीकोर्ड करना जरुरी है। कहा, कल फिर आऊँगा और टेपरीकोर्डर के साथ !
गलती हो गयी आज टेपरीकोर्डर नहीँ लाया ! जाने क्योँ वे राजी हो गये!
मैँ अगले दिन टेप के साथ उनके पास बैठा हूँ ~
लग रहा है, हम कितना कम जानते हैँ ! मैँ, इस छोटी सी अवधि मेँ वह सारा जी लेना चाहता हूँ , जो उन्होँने स्वतँत्रता आँदोलन मेँ जिया था और उसके बाद, बँबई मेँ रहते, फिल्मोँ मेँ गीत लिखते -लिखते ! बात विचार कृष्ण तक सीमित नहीँ रही।
मेरा खोजी मन, जीवन के कुल -कुँजोँ का पता चाहता है।
उस दिन के बाद, जब भी समय मिलता है, मैँ, उनके पास जाता हूँ -
पँडित जी के न रहने की बात, रेडियो पर सुनी है - धक्क्` से रह गया हूँ !
देश, उन जैसोँ की कद्र नहीँ कर सका ! भारतीय मानस पर वे ऐनसाइक्लोपीडिया से कम नहीँ ! उस दिन की रेकार्डीँग के बाद मैँने उनसे लगातार कहा है कि, उनका इतना गहन चिँतन, उस सबको, किसी तरह, घरोहर के रुप मेँ सुरक्शित रखना चाहिये। यह सब कैसे हो ? वे मुस्करा के टाल जाते हैँ।
जानते हैँ देश जिस लीक पर चल रहा है, उसमेँ अब, यह सब नहीँ होता -
टेप खोजकर निकालता हूँ - उसे सुनता हूँ -
पँडित जी की आज के जमाने पर टिप्पणी -
राज, कवि और देश के सँबँध मेँ - मेरे प्रश्न करने पर, कि " इतनी गहराई के स्तर पर, कैसे वे, चिँतन के स्तर पर उतर सकते हैँ ?
उन्होंने कहा, " "स्वतँत्रता आँदोलन - मैँ कवि तो था ही - कवि होने के नाते, आई हैड ए कमिटमेँट टू सोसायटी - बट आई वोज़ फाइटीँग तू जनरेट इनफ अनर्जी तू सर्व सोसायटी -आई डीस्कवर्ड माई ओन सोलीट्यूड ! क्यूँकि व्होट वन गीव्ज़ तू सोसायटी, इट्`स ओनली फ्रोम वन्स्` सोलीट्यूड !
अगर हम सोयेँ नहीँ अच्छी नीँद से, तो हम जाग करके कुछ नहीँ कर सकते।
सोना जो है, सोलीट्यूड का एक रुप है।
ये जो कहा है कि, मैन एज ए सोशीयल ऐनीमल। तो ' ही' ओर 'शी '
इस आल्सो ए चाइल्ड ओफ - सोलीट्यूड टू ! सोलीट्यूड हसबँड और वाईफ भी चाहते हैँ। एक डबल बेड मेँ सोये हैँ - वे सोते हैँ तो अपनी - अपनी नीँद सोते हैँ और उस समय वे पूर्ण बीइँग हैँ।
वह सोलीट्यूड मुझे मिला - इलाहाबाद से मैँ यहाँ आ गया।
बँबई , फिल्मोँ मेँ बाँबे टाकिज़ मेँ उनके साथ पूरा वक्त, सँबँध तो था नहीँ , पोएट तो मैँ था - सो, विचार भी करता था - फ्रीडम -फाइटर भी रह चुका था तो मुझे यहाँ पर, एकाँत मिला ," जैसे बँद अँधेरे कमरे मेँ, आदमी, बैठे -बैठे, धीरे, धीरे, वहाँ रखी हुई चीजोँ को देखने लगता है, मन के अँधेरे कोने मेँ कहीँ बैठ करके, उसे, मन के अँधेरे भवन मे भी चीजेँ देखनी शुरु की - धीरे - धीरे समझ मेँ आने लगा कि, जो हमारे वेद मेँ है, वही हमारे "लोक -गीत " मेँ है -
हमारे यहाँ तीन चीजेँ कही गयीँ हैँ --
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैँ
-राम जी को , आदेश दे रहे हैँ - वसिष्ठ जी " कि , कर्म करो ! " लोकमत यानि कि जो लोक का मत है, उसके अनुसार काम करो।
साधु का मतलब, साधु, सन्यासी, वैरागी नहीँ !
साधु का मतलब है - शिष्टजन -
समाज - में जो सँस्कृत, अच्छे लोग हैँ जो हमारे समाज का जो नेतृत्व कर रहे हैँ, उन लोगोँ का जो मत है, वैसा करो और नृप जो राजा की नीति, वेदोँ से लेकर, आज तक श्रुति, स्मृति मेँ चली आ रही है, उस नित्य और उन तीनोँ मेँ, नियम का निचोड है, वैसा नियम मानेँ वेदोँ का है जो हमारे हाईवेज़ हैँ कलचर के और बाइवेज़ हैँ कालचक्र के और जो रुट एक्स्पोसेस हैँ सबको अपने भीतर सँबोधित करके, मत निस्चय करने का सौभाग्य तुम्हेँ मिला है "
हमारे यहाँ राजा - नेता की क्या कहेँ , किसी की भी कोई प्राइवेट लाइफ नहीँ है - पब्लिक लाइफ है - बच्चा पैदा होता है, उत्सव !
नामकरण = उत्सव !
पढने जाता है - उत्सव !
कामकाज करता है - मान लेँ वही, रिटायर होकर, वानप्रस्थ मेँ जाता है,
वह भी उसकी पब्लिक लाइफ है !
उसकी प्राइवेट लाइफ तो होती नहीँ !
सन्यासी की तो एकदम नहीँ !
हमारे यहाँ, एवरी मिनिट, एवरी डे, HE ओर SHE इज़ अकाउन्टेबल टू पिपल्`, ओन दी अर्थ एँड गोड अबव ! ये हमारे यहाँ का कल्चर है "
- और मैँ सोच रहा हूँ, हम यह सारा कितना कम जानते हैँ !
इस आपाधपी मेँ किसे फुरसत है, पीछे मुडकर देखने की और कृष्ण पर जो कुछ उन्होँने कहा, वह एकदम नया द्रष्टिकोण है ....वह फिर कभी ....!!-
Thursday, August 9, 2007
कवि श्री इन्दीवर की यादें ~` उन्हीँ के शब्दोँ में ,( गीतकार शैलेन्द्रजी, साहिर लुधयानवी
जिस दिल मेँ बसा था प्यार तेरा [#1296]
कसमेँ वादे प्यार वफा सब बातेँ हैँ बातोँ का क्या [#841]
कोई जब तुम्हारा ह्र्दय तोड दे [#146]
मैँ तो भूल चली बाबुल का देस [#1136]
इन सारे गीतोँ की खूबी ये है कि उन्हेँ सुनते समय हमेँ भी साथ गुनगुनाने को मन करता है. शब्द सरल हैँ आम जीवन से जुडे से, रोज की बोल चाल की भाषा से लिये हुए तभी ऐसा महसूस होता है मानोँ कोई अपने मन की बात ही कह रहा है पर कवि एक कलाकार है.
जब कभी दिल रोया तो कोई गीत याद आया. जब जब खुशी आयी तब भी फिल्म का गीत उसी के अनुरुप याद आया है ऐसा अक्सर हुआ है .
पँडित नरेन्द्र शर्मा ,