Wednesday, November 25, 2009

http://www.ted.com/talks/hans_rosling_asia_s_rise_how_and_when.html
मेरी पोस्ट इस से आगे की पोस्ट पर कई सालगिरह की शुभकामनाएं मिलीं -- आप सभी का ह्रदय से आभार प्रकट करती हूँ .........
ख़ास तौर से अनुज भाई श्री पंकज 'सुबीर जी ' की कोटिश: आभारी हूँ जिन्होंने मेरे सालगिरह को सार्वजनिक उत्सव बना कर, हिन्दी ब्लॉग जगत के प्रिय साथियों की शुभकामनाओं से मुझे अभिभूत किया । धन्यवाद कहना महज औपचारिकता कहलायेगी मगर फिर भी मैं उन्हें शुक्रिया कह रही हूँ और सभी को पुन: स स्नेह आभार ।
देखिये उनकी ये प्रविष्टी :
कल लावण्य दीदी साहब का जन्‍म दिन है : http://subeerin.blogspot.com/2009/11/22.html
आज ज्यादा बातें ना करते हुए , एक
सीमित प्रविष्टी लिख रही हूँ ।
कई तरह की जानकारी नेट पर बिखरी रहती है ।
बहुत सारा , इसी तरह , इन बॉक्स में भी आ पहुंचता है ।
कई लिनक्स , द्रश्य - श्रव्य माध्यम लिए होते हैं जिनसे , हम , विश्व में होनेवाली , विविध गतिविधियों को , चन्द मिनटों में जान पाते हैं । आधुनिक युगीन आविष्कारों ने वास्तव में , विश्व को , समतल या सपाट कर दिया है । जैसा थोमस फ्रीडमैन नामक प्रसिध्ध [ संवाददाता ने [ वोशींगटन पोस्ट अखबार से जुड़े हुए ] भी अपनी किताब , वर्ल्ड इस फ्लैट में शीर्षक देते हुए कहा था ।
एशिया के 2 महत्त्वपूर्ण प्रदेश, चीन तथा भारत की तेजी से हो रही प्रगति, यूरोप और अमरीका के अर्थतंत्र में छायी मंदी से , विश्व के व्यापार उद्योग का , ध्यान अब चीन और भारत पर

आशा की किरण जगाते हुए, ले चुकी हैं ।
भारत के हर तबक्के के आम आदमी की कर्मठता ,

सचमुच वन्दनीय है । हर मुश्किल परिस्थिति में जीते हुए, लड़ते रहना , अपने आसपास के वातावरण व रोजीन्दी , तकलीफों के बीच भी , एक रास्ता निकाल कर आगे बढना ये भारतीय मानस का एक गुण है ।
जिसे अब दुनिया के लोग भी विस्मय तथा आदर के साथ देखने को मजबूर होने लगे हैं ।
हर समाज में अच्छाईयां और बुराईयाँ होतीं ही हैं ।

पर , इनसे कौन किस ताकत के सहारे झूझता है और इन मुश्किलों को पार करता है, इसी की ये परिक्षा का समाय आज विश्व में जारी है ।-- ऐसी ही कर्मठता की छवि इस डॉसा बनाते इंसान की मुस्कान में मैंने देखी ।

भारत में मुगलकालीन राजवंश की सत्ता का अंत नवाब बहादुर शाह के साथ हुआ था । ये उन्हीं की ग़मगीन तस्वीर है ।
जिसे देखकर , अस्ताचलगामी सूर्य को देखने जैसी अनुभूति हुई --

मुगलिया सल्तनत के एक लम्बे दौर के बाद जो करीब बाबर के आगमन से आरम्भ हुआ १२ वी सदी के बाद १७ वी सदी तक निर्बाध चलता रहा था . अब भारत की बागडोर , एक बार फिर , दूर देश से आये , अंग्रेजों के हाथों में पहुँच रही थी --- अंगेरजी शाशन व्यापारी के भेस में , भारत में घुसा था - ईस्ट इंडिया कंपनी -- के नाम से -- जिसके प्रुष्ठ्बल में , इंग्लैंड के राजपरिवार का समस्त बल भी था ही -- जिसे खदेड़ने के प्रयास , पहले , १८५८ में मुठ्ठीभर राज घरानों ने अवश्य किया जिसमे महारानी लक्ष्मी बाई तथा तात्या टोपे उल्लेखनीय हैं -- मगर वह क्रान्ति निष्फल गयी .
भारत को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करने के लिए कई स्वतंत्रता सैनानियों ने समय समय पर अपना योगदान दिया । भारत , स्वतन्त्र हुआ १९४७ में और तब तक कई ऐसे वीर देशभक्तों की एक समूची पीढी ने , भारत को भारतवासीयों के लिए , हासिल करने में , अपने घर परिवार की चिंता न करते हुए, एक सामूहिक प्रयास किया -
महात्मा गांधी के नेतृत्त्व में अहिंसक सत्याग्रह की ये विजय यात्रा संसार के इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ है .
जिसके चलते हुए, 2 विश्व युध्ध की दारुण घटना भी विश्वपटल पर घट चुकी थी
भारत आज़ाद होने के लिए व्याकुल था .
भारत माता का सिंगार उतरा हुआ था निरस्त्र , आभूषण विहीन , लज्ज्जित , बेडीयों में बंधी हमारी वीर प्रसूता , वेद जननी भारत माँ का गौरव पुन: जग्मागाने के लिए , असंख्य बहादुर देश प्रेमी , महात्मा गांधी , कस्तूर बा जैसे माता , पिता के पीछे चल पड़े थे . ........
भारत स्वतन्त्र हुआ ।
२००० तक आते आते , हमारी पूरी नस्ल , बहुत जल्दी , देश प्रेम को भूल कर, स्वयं के प्रेम में डूब गयी । राजनेता , पाखण्ड से भरा राजतंत्र , आम जनता के लिए बदहाली, दुश्वारी, महंगाई , भ्रष्टाचार , रिश्वतखोरी, मुनाफाखोरी, अराजकता, संसद सभा में आये दिन मार पीट , गुंडागर्दी , ---और भी ना जाने क्या , क्या, हम सभी ने देखा ।
कभी टेलिविज़न के जरिए तो कभी अपने स्वयं के अनुभव से --

आज का दौर : आज भारत २००९ के अंत तक आ पहुंचा है । अपनी तमाम बुराईयों के साथ भी प्रगति के पथ पर , भारतीय १ बिलियन का आंकड़ा लिए हुए प्रजा , ना जाने क्यूं दुनिया के आकर्षण का केंद्रबिंदु बना हुआ है ।
तो मैं यही कहूंगी , कुछ तो है भारत में -- जो आज भी ,
तथाकथित सभ्य व विक्सित देशों के बीच भी , विकासशील भारत से निकली नई नई बातें , लोग अपनाने लगे हैं ।
संगीत भी एक ऐसा ही जादू है जो किसी सरहद या कौम या सीमा के पहरे में कभी बंद नहीं पाता ।
- लोग मधुर संगीत सुनकर, डोलने लगते हैं, मानों ये --
एक तरह का वशीकरण ही है !! अब देखिये ये लिंक :
http://www.youtube.%20com/watch?
अब देखिये ये लिंक : यहां ब्रिटन की महारानी एलिजाबेथ के निजी आवास , बकीन्घम पेलेस के प्रांगन में , स्कूली बच्चे, संस्कृत के श्लोक से , भारत से आयीं राष्ट्रपति के पद पर आसीन श्रीमती प्रतिभा पाटील का स्वागत करते हुए , गीत गा रहे हैं --
http://www.youtube. com/watch? v=0M652COEqNg
ना जाने आज बापू ज़िंदा होते, तो ऐसा द्रश्य देख कर क्या कहते ? :)
मंद मंद मुस्कुराती बापू की छवि आज सचमुच सजीव लग रही है । लगता है जैसे , उन के द्वारा आरम्भ की गयी " सत्य की साधना " ,
व्यर्थ नहीं गयी ।
चलिए, इतिहास तो हर घड़ी , चुपचाप घटता रहता है ।
भूतकाल से वर्तमान को जोड़ रहे हर पल के मध्य , खडा आज का यथार्थ हमारा वर्तमान , हमारे हाथों में है जिसे या तो हम सहेजें , संवारें या व्यर्थ करें ।
ये भी हमारा फैसला है ।
व्यक्ति की विजय हो - - आत्म बल की जय हो -- -- भारत खुशहाल रहे -- विश्व को अपने संस्कारों से प्राप्त सदगुणों से प्ररित करता हुआ , सम्पूर्ण विश्व का भ्राता बने तभी सर्वोदय का नव विहान उगेगा ।
विश्व्बंधुत्त्व भावना विकसित होगी -- आमीन --
स स्नेह,
- लावण्या



Friday, November 13, 2009

सदाबहार गीत और मन के भाव

कुछ गीत ऐसे होते हैं जिन्हें आप पहली बार सुन ले फ़िर बरसों तलक वे आपके वजूद का एक हिस्सा बन जाते हैं ।
इन्हे तो मैं, सदाबहार गीत ही कहूंगी ।
~~~~ जरूरी नहीं के वे खुशीयों के गीत हों ! शादी - ब्याह पर गाये जानेवाले , मंगल - गीत हों !
......ये गीत इतने पुरअसर क्यूं हैं , इनके कई कारण होंगें ........
सबसे मुख्य बस यही के ये , आपके दिल को , छू जाते हैं ।
जैसे कोई , आप की बात , आपके दिल से चुराकर, जग जाहीर कर रहा हो ।
बेहद खूबसूरत अल्फाज़ और सुर और ताल को पैंजनियों में बांधकर ,
ह्रदय वीणा के तार को झंकृत कर ने के लिए , कोई , गा रहा हो
...............प्यार भी हो, इबादत भी हो और भरपूर एहसास भी शामिल हों ये कुछ ऐसे गीत हैं
ऐसे गीत आज याद आ रहे हैं .................
तो सोचा आपके संग इन्हे साझा करुँ ..............
सुनिए ये मेरी पसंद का पहला गीत
: " जागो मोहन प्यारे "
( राग : भैरव )
( क्लीक करें )
http://www.youtube.com/watch?v=vN_5GcfiRDI
जब जब कवि ने , अपने मन को आडम्बर हीन किया , अपने आपे को , समष्टी व सृष्टी से एकाकार किया ,
तब तब उसकी कविता ने शाश्वत सत्य को उजागर किया .........
जिसे हर रूह ने महसूस किया
ऐसेही लफ्ज़ , फ़िर उसके कलाम से गूंजे हैं ....
और उसकी कविता ने उन्हें तब तब , आकार दिया ।
" सांझ होते ही जाने छा गयी कैसी उदासी ?
क्या फ़िर किसी की याद आयी,
विरह व्याकुल प्रवासी ? "
( शब्द : स्वपंनरेंद्र शर्मा : काव्य पुस्तक " प्यासा निर्झर " से )
विरह की घनीभूत संध्या ने फ़िर प्रश्न किया,
" क्या तुमको भी कभी, आता है, हमारा ध्यान ?
पकड़ कर आँचल तुम्हारा , खींचता, क्या कभी सुनसान ? "
( शब्द : स्वपंनरेंद्र शर्मा : काव्य पुस्तक, " प्रवासी के गीत " से )

ना जाने " प्यार , प्रेम, मुहोब्बात , इश्क " को हम अजीब निगाहों से क्यूं देखते हैं ?
अरे कभी तो हमें ये मज़ाक सा भी लगता है और कभी वो बन जाता है, एक गोसीप का विषय भी !
इसे मापने का कोई पैमाना भी तो नहीं होता ना !!
इसी कारण से, हम अभी तक इस रहस्य को सुलझा नही पाये ..हम नही जान पाते के ,
...........
" कोई किसी से क्यूं प्यार करता है ? " या, " ये प्यार या प्रेम क्या बला है ? "
इसके पीछे क्या राज़ है, ये भी हम नहीं जानतेहमेशा देखा जाता है के, इंसान, प्यार का ,
सम्मान का , अपनेपन का भूखा होता है ।
कोई प्यार के २ बोल बोले, इज्ज़त से पेश आए तो , सामनेवाला , खुश हो जाता है ।

फ़िर हम क्यों , कभी कभी इतने विरक्त और रूखे रूखे से हो जाते हैं के ,
ऐसे फूलों से नाज़ुक एहसास का भी मखौल उडाते हैं ? .........
या अगर प्यार को देखें , महसूसें , तब भी , उस पे विश्वास नही करते ।

बचपन से माँ का प्यार जिसे नसीब होता है, वह इस दुलार का आदी हो जाता है । पर व्यस्क होते होते, हम , एक उदासी की चादर को ओढ़ लेते हैं ताकि हमें कोई , दिल तोड़कर , दुखी ना कर पाये । यह हमारा अभेध्य किला बन जाता है जहाँ किसी और के एहसास का प्रवेश , धीरे धीरे , निशिध्ध कर दिया जाता है और हम हो जाते हैं, एकाकी , अकेले............उदास और चिडचिडे , या दुनिया दारी की भाषा में , कहे तो , हम वयस्क हो जाते हैं । बड़े हो जाते हैं
वो तो भला हो , माँ का, और पिता का, जो अपना प्रेम , उजागर तो करते हैं ।
किसी ने सच ही कहा के,
" जब ईश्वर हर जगह उपस्थित नही हो पाते तब, माँ को ( या पिता को ) अपनी जगह भेज देते हैं "
ऐसी ममतामयी माता ( या पिता का ) का कोमल स्पर्श , शिशु , इन पवित्र एहसास से ही तो समझता है !
जहाँ वाणी मौन हो जाती है, वहाँ , भाव जन्म ले लेते हैं ।
प्रेम , वात्सल्य, माया ही सही,परन्तु, हैं ये वाक् विलास के परे की भावना ।
मनुष्य जन्म मिला और प्रेम भाव से , नाता जुडा , यही तो हमारे अस्तित्त्व का प्रथम चरण है ।
वैराग्य और त्याग , समाधि और साधना भी इन्ही चरणों से आगे बढ़तीं हैं ।
ठाकुर श्री रामकृष्ण परमहंस देव भी माँ महाकाली के प्रति प्रेम भाव में आकंठ डूब गए थे ।
तब, माता ने ही कृपा कर , अनासक्ति की खडग से , इस प्रेम डोर को काट कर , उन्हें मुक्त किया था ताकि ,
उनकी साधना दूसरे चरण में प्रवेश कर पाये ...........
वे तो , परमहंस थे और हम, हैं , साधारण इंसान ! .......

हमारे मन को अभी कई कई बार तपना बाकी है । तभी तो हम, आगे बढ़ पायेंगे .............
पहले, ममता, वात्सल्य और अपनेपन का पाठ तो सीखें
......जहाँ प्रकाश ही प्रकाश है ...........उस ह्रदय और उस में उत्पन्न होतीं प्रेम की भावना को तो समझें ......
अगर आप के मन कीवाड बंद हैं , आपने उन पर , कठोर मनोभावों के ताले भी जड़ रखे हैं तब आप क्या मह्सूस करेंगें के ये कोमल, नाज़ुक भाव क्या होते हैं ? कैसे होते हैं ?
जीर्ण - शीर्ण , इमारत से आपके व्यक्तित्त्व में , कोई द्वार , प्रेम के लिए भी , खोले रखना होगा .
जहाँ से ' प्रेम जैसा कोमल भाव ' प्रवेश तो करे ..
........अन्यथा , कठोरतर होते भाव , कठोरतर होता जीवन , हमें , बाँध कर व्यथित ही करेगा ।
जीवन ऐसे नही बीत पाता ।
जहाँ प्रेम का निर्मल मधुर निर्झर न हो , वह स्थान कदापि गुलज़ार न हो पायेगा ।

ईश्वर आराधना, आत्म - साधना तो उसके बाद की बातें हैं ।
इस आत्मा को , व्यक्ति वाद को पोषित करे ऐसे अहम् को, हम , पहले , आत्मसात कर ले,
ईश्वर तभी मुस्कुरायेंगें .....
न आप या मैं, सब से विलक्षण , व्यक्ति, इस धरा पर प्रकट हुए हैं , नाही , हमारा वजूद ,
कोई अभूतपूर्व घटना है जो , पहले कभी न हुई हो !

~ हाँ हर व्यक्ति की जीवन - यात्रा अवश्य , अनूठी और अनजानी है ।
उसे हम अलिप्त भाव से देखें ।
मानो , इस नैया को खेनेवाली शक्ति हम नही , कोई अज्ञात है।
हमारा प्रयास यही हो, के हम, हमारी इस नन्ही नैया को , मंझधार में खेते हुए ,
सुरक्षित रखें और उसे खेते हुए , साहिल तक ले आयें ।
केवट जब श्री राम का चमत्कारी अस्तित्त्व जान गया तब ही , उसकी नैया , भी पार लगी थी !

फ़िल्म तक्षक से : गीत : स्वर संयोजन : ऐ आर । रहमान शब्द हैं ,
खामोश रात , सहमी हवा,
तनहा तनहा दिल अपना
और दूर कहीं , रोशन हुआ , एक चेहरा
ये सच है या सपना ?
सच , ये जीवन भी सच है या कोई सपना ?
चेहरा कोई भी हो, आपके ध्यान का केन्द्र बिन्दु , ईश्वर की कोई - सी भी प्रतिमा हो, या आपके प्रियतम की प्रतिकृति ही क्यों न हो ? स्वर - ताल के पर , फडफडा कर , उड़ने दीजिये , आपके दिल के पखेरू को ...........
http://www.youtube.com/watch?v=kVO-EEpksgc
स्वर साम्राज्ञी सुश्री लता मगेश्कर : एक दूजे के लिए

" सोला बरस की बाली उमर को सलाम
अय प्यार तेरी पहेली नज़र को सलाम

मिलते रहे यहाँ हम यह है यहाँ लिखा
इस लिखावट की ज़र - -ज़बर को सलाम
साहिल की रेत पर यूँ लहरा उठा यह दिल
सागर में उठने वाली हर लहर को सलाम
इन मस्त गहरी गहरी आंखों की झील में
जिस ने हमें डुबोया उस भंवर को सलाम
घूँघट को तोड़ कर जो सर से सरक गई
ऐसी निगोडी धानी चुनर को सलाम

उल्फत के दुश्मनों ने कोशिश हज़ार की
फिर भी नही झुकी जो उस नज़र को सलाम "

लताजी ने इन पंक्तियों को , ऐसे गाया है के वे
दिल को गहराई तलक छू जातीं हैं
http://www.youtube.com/watch?v=gJ13EOg0kbM
स्वर साम्राज्ञी सु श्री लता मगेश्कर : फ़िल्म गंगा जमुना
http://www.youtube.com/watch?v=t4LL2w6Ahhg

लताजी ने इन पंक्तियों को , ऐसे गाया है के हर प्रेमी ह्रदय के बिछोह को घनीभूत करतीं हुई , एक अन बूझी प्यास और पीडा को स्वर देते हुए , हमें, इस गीत की स्वर लहरी, घनी विरह भावना से एकाकार कर देतीं हैं । .
.........प्रेमी ह्रदय की प्यास हो या आत्मा के हंस की टेर हो , ' चल बुलाता है तुझे फ़िर मान सर , हंस उड़ जा ...हंस उड़ जा ....'
और अंत में गज़लों के बेजोड़ गायक जगजीत सिंह जी के स्वर में ये ग़ज़ल के जादूगरी के सुनहरे जाल में , आपको , छोड़ कर , चलते हुए ..............
ये गीत भी सुनवा दूँ जो मुझे बहुत पसंद है ..........
अच्छा ही है , इन्टरनेट का ज़माना आ गया है , अब कौन हाथों से ख़त लिखता है और कौन यूँ मायूस होकर , सोचता भी है , के हाथों से लिखे ,
इन , प्रेम - पत्रों का क्या हश्र होगा !!! ...........खैर !
' रस ' से ही जीवन सरस रहता है .....................................
.नीरस जीवन, मरूभूमि सम दारूण होता है ।
आइये, जीवन में रस भर कर, उसे समरस करें ......................
' असतो माँ सत ...
तमसो मा , ज्योतिर य........
मृत्योर्मा अमृतं य.......'
और सुनिए ,
" तेरी खुश्बू में बसे ख़त ,
मैं , जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए ख़त ,
मैं , जलाता कैसे ?
तेरे हाथों के लिखे ख़त ,
मैं , जलाता कैसे ,
तेरे ख़त, आज मैं ,
गंगा मैं बहा आया हूँ
आग बहेते हुए पानी में लगा आया हूँ ...


http://www.youtube.com/watch?v=YLwFRdjVXSM
चलिए ................अब आज्ञा ,
मेरी बातों को सुनने का शुक्रिया .!.
...........आपके दिन सुहाने हों ...
जीवन यात्रा सुखद हो, आपके संग किसी के प्यार की निर्मल धारा भी बहती रहे
...........इस आशा के साथ, आज यहीं , विदा लेते हुए,
स्नेह सहित,
- लावण्या

Monday, November 2, 2009

नवम्बर , आरम्भ हो गया है .........

अजी सुन रहे हैं क्या ? जी हां नवम्बर आरम्भ हो गया है

अरे हां, हमने भी दुनियाभर के समाचार सुन लिए -- ओबामा जी कहते हैं,
अब सब ठीक होनेवाला है -- मैं , नाना को भी यही तो सुना रहा हूँ ;-)

नवम्बर आरम्भ हो गया है आपको पता भी है क्या , अब २००९ का ये साल
बस कुछ दिनों का मेहमान है ?
हम दोनों , कब से , दरवाज़े पर दस्तक दे रहे हैं !!
खोलिए ना....देखिये, इस दरवाज़े के पीछे , कौन छिपा है ? हमें पता है !! वो है - २०१० , का नया साल ! सज धज कर , आने की तैयारी में जुटा है
हरी - हरी धरती है, नीला - नीला आसमान,
नदिया के पार कहीं, गूंजे बांसुरी की तान
ज्योति यशोदा , धरती गैया ,
नील गगन गोपाल कन्हैया
श्यामल छबि झलके, ज्योति कलश
छलके

धरित्री पुत्री तुम्हारी, हे अमित आलोक
जन्मदा मेरी वही है, स्वर्ण - गर्भा कोख
[शब्द : स्व। पण्डित नरेंद्र शर्मा ]
मैं ऊचक कर देख रहा हूँ ,
कौन आ रहा , उस पथ से
कौन दिवा के पार खडा है
किस भविष्य के रथ पे ?

[- लावण्या ]

मेरी कविता अन्न प्राण मन की हो वाणी

प्लावित करे धरा को वह गंगा कल्याणी
[शब्द : स्व। पण्डित नरेंद्र शर्मा ]

नन्ही कोमल हथेली , थामे मेरा हाथ
भोले नयनों में भरा , है अटल विश्वास
ये नन्हे मुन्ने राजा , धीरे धीरे बढेंगें
आज ऊंगली थामे चलते है, ,
कल, ना जाने क्या कहेंगें ?
भावी के हाथों में सब -
स्वप्न मेरी आँखों में ,
देखा करतीं जो, तुझे
नन्हे , लाल, सलोने
मन भीगा रहता है मेरा
प्रेम की गंगा यमुना सा
कभी तुम कृष्ण बन जाते,
कभी राम, या भारत लला !
शिशु मुस्कान है अजोड
जग में नहीं, इसका तोड़
नन्हे मुन्ने आज के बच्चे,
कल के होंगें खूब सयाने
दूध, मिठाई, टोफ्फी बिस्कुट ,
फल, मीठे और रसीले,
जो तुम्हें खिलाती हूँ, मैं,
चाव भरी, अपने हाथों से मैं
जब् मीठी नींद सुलाती हूँ,
तुम पूछते, हो यूं मुझसे,
" नानी, परी कब आयेगी ? "
मैं कहती , " जब् , तू आँखें मूंदे ! "
फिर सो जाता है हर शिशु,

विश्वास भरा लिए मन
मैंउठकर कविता रचती
कैसे लिख दूं, नन्हे राजा ,
क्यूं आँखें मेरी यूं भरतीं ?
खूब देखती, तुम्हें प्रेमवश
फिर भी बहुत रह जाता है
कैसे समझाऊँ लिखकर यूं
क्या, मेरा तुझसे नाता है ?

तुम ईश्वर के कृपा - वरदान
हो सदा, तुम्हारा शुभ्कल्याण
खूब हंसो, बढो, कूदो और खेलो-
नानी का " बाबू " तू बने महान !
- लावण्या
आइ लव यू " नोआ"
ये गीत सुनिए -- मुझे बहोत पसंद है ये गीत
If I could save time in a bottle
The first thing that Id like to do Is to save every day
Till eternity passes away
Just to spend them with you
If I could make days last forever
If words could make wishes come true
Id save every day like a treasure and then,
Again, I would spend them with you
But there never seems to be enough time
To do the things you want to do
Once you find themIve looked around enough
to know That youre the one I want to go
Through time with If I had a box just for wishes
And dreams that had never come true
The box would be empty Except for the memory
Of how they were answered by you
But there never seems to be time
To do the things you want to do
Once you find them Ive looked around enough
to know That youre the one I want to go Through time with