आकाशवाणी के भीष्म पितामह मेरे पापा स्वर्गीय पँडित नरेन्द्र शर्मा
स्टुडियो मेँ चिँतन की मुद्रा मेँ पँडित नरेन्द्र शर्मा ~
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जब
हम छोटे थे तब पता नहीँ था कि मेरे पापा जो हमेँ इतना प्यार करते थे,
वे एक
असाधारण प्रतिभाशाली व्यक्ति हैँ, जिन्होँने अपने कीर्तिमान, स्वयं बनाये और वही पापा जी, हमेँ अपनी नरम हथेलियोँ से, ताली बजाकर, जिस वक्त स्वरचित गीत सुनाया करते थे तब हमें स्वर्गीय आनंद मिला करता था। हमारे पापा, श्री कृष्ण पर लिखा सुमधुर गीत गाया करते थे तो हम बच्चे आस पड़ौस के अन्य बाल गोपालों के संग उठ खड़े होते और नाचने लगते ! हमेँ नृत्य करता देख, पूज्य पापा जी हलके से मुस्कुराते और उनके सधे हुए, मीठे स्वर से यह सुन्दर कृष्ण गीत गाय करते थे ~~
"राधा नाचे कृष्ण नाचे,
नाचे गोपी जन !
मन मेरा बन गया सखी री, सुँदर वृँदावन !
राधा नाचे कृष्ण नाचे, नाचे गोपी जन!
मन मेरा बन गया सखी री, सुंदर वृंदावन
कान्हा की नन्ही उंगली पर नाचे गोवर्धन
राधा नाचे कृष्ण नाचे, नाचे गोपी जन!
मन मेरा बन गया सखी री सुंदर वृँदावन।
जोड़ी जुगल लिए गोपी दल, कुञ्ज गलिन से निकली~
खड़े कदम्ब की छाँह, बाँह में बाँ भरे मोहन!
राधा नाचे कृष्ण नाचे, नाचे गोपी जन !
वही द्वारिकाधीश सखी री, वही नन्द के नंदन!
एक हाथ में मुरली सोहे, दूजे चक्र सुदर्शन!
कान्हा की नन्ही उंगली पर नाचे गोवर्धन!
राधा नाचे कृष्ण नाचे, नाचे गोपी जन
जमुना जल में लहरें नाचें , लहरों पर शशि छाया!
मुरली पर अंगुलियां नाचे , उंगलियों पर माया!
नाचे गैय्याँ , छम छम छैय्याँ , नाच रहा मधुबन!
राधा नाचे कृष्ण नाचे , नाचे गोपी जन!
मन मेरा बन गया सखी री सुंदर वृंदावन
~ पंडित नरेंद्र शर्मा
आज स्मृतियों के सुनहरे रुपहले पंखों के सहारे मैं, शैशव की इंद्रधनुषी आभा को पार करते हुए अपने बचपन के घर के उस कमरे में पहुँच रही हूँ जहां उस गीत को पापा जी जब गाया करते थे, तब शायद मेरी ऊम्र ४ या ५ बरस की रही होगी.... चित्र ~ वासवी ६ वर्ष की व मैं, लावण्या, ४ वर्ष की
याद आता है जब भी पापा जी कुछ लिख रहे होते माने साहित्य सृजन में संलग्न रहते, तब हमारी प्यारी अम्मा, सुशीला जी, हमेँ डाँटती और कहतीं, ~
" शोर मत मचाओ शाँत रहो और अपना होम वर्क करो " बचपन के दिनों में, हमारी हिम्मत न होती कि हम पापा जी के सामने कभी रेडियो चलाते ..हाँ अम्मा,पापा जी बाहर जाते ही, हम बच्चे, रेडियो सीलोन से प्रसारित "बीनाका गीतमाला " रेडियो स्टेशन लगा लेते और खुश होते थे जब यह धमाकेदार गाना उस पर बजता था और घर पर अम्मा पापाजी की उपस्थिति नहीं हुआ करती थी तो हमारा जोश उमड़ घुमड़ पड़ता था ~~ रफ़ी सा'ब का स्वर
" तीन कनस्तर पीट पीट कर गला फाड कर चिल्लाना,
यार मेरे मत बुरा मान ये गाना है ना बजाना है ...तीन कनस्तर .." ;-)
मुझे याद है कि, हम तीनों बहनें अपनी हथेलियां आगे फैला लेते और हाथ मिलाकर तालियां बजाने लगते थे जब 'तीन कनस्तर' शब्द सुनाई पड़ता था।
जैसा
रेडियोनामा का लोगो है बिलकुल वैसा रेडियो हमारे घर पे भी था।
पूज्य पापाजी व अम्मा का घर ~~
घर के फर्श
की टाइल्ज़ का रँग एकदम टमाटर के लाल रँग जैसा चटख था जिस पे सुफेद और काले
छीँटे थे वैसा रँग आजतक किसी घर के फ़र्श का मैँने देखा नहीँ और जितना शोख
लाल रँग उस घर की जमीन का था वैसा ही लाल चटख प्यार की ऊष्मा से लबरेज़ माहौल खुशनुमा प्यार से भरा, छलकता हुआ माहौल भी पापाजी और अम्मा के उस घर में सदैव कायम रहता था। हमारे पापा अम्म्मा के घर के दरवाज़े सभी के लिये दिन रात, खुले रहते थे। भारत वर्ष की बडी बडी नामचीन हस्तियाँ, वहाँ मेहमान बन कर पधारा कर पधारा करते थे। जैसे यूसीफ अंकल याने मशहूर साइन कलाकार श्री दिलीप कुमार साहब। उन्होंने एक बेशकिमती पर्शीयन कारपेट जो गहरे मैरून रंग की थी उसे तोहफे मेँ दी थी। वही दीवाने खास यानी कि, ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाया करते। वह ड्रॉइंग रूम पूज्य पापा जी का अध्ययन कक्ष था। वहीं उनकी खरीदी हुई असंख्य दुर्लभ पुस्तकें थीं। जिन्हें हमारी अम्मा झाड़ पोंछ कर, व्यवस्थित रखा करतीं। साथ विशुध्ध भारतीय
ढँग की बैठक भी सजाया करती थीँ मेरी अम्मा ! तीन बड़े ब,ड़े रुई से भरे गद्दों को करीने से लगाया जाता उन पर बीचों बीच, एक बड़ा सा गोलाकार मृदङ्गाकार तकिया और आस पास दो उसी आकार के लम्ब गोल गाव तकियेरखे रहते।
चित्र : शास्त्रीय गायक श्री सुरेंद्र सिंह सचदेव जी डोगरी भाषीय कवयित्री पद्मा सचदेव जी के पति व पं. नरेंद्र शर्मा तखत के पास बैठे बतियाते हुए ~
भारतीय क्रिकेट टीम के Selector & C.C.I
President मेरे पूज्य दादा
श्री श्री राज सिँह जी "डुँगरपुर " कुँवर सा'ब भी आया करते थे। पूज्य दादा ने मुझे, एक वर्षगाँठ पर, उपहार में, हथेली जितना
छोटा सा एक ट्राँज़िस्टर रेडियो मेरी साल गिरह पे दिया था और कहा था, " Talents ! You must listen to my Expert comments during the Test match " ;-) ( वे मुझे टेलेन्ट्ज़ ही बुलाते थे और उलाहना देते थे कि मुझ मेँ बहुत सारे गुण तो हैँ परँतु मैँ उनका सद्`उपयोग नहीँ किया करती :-)
सं. १९७० में भारत
सरकार ने अन्य दो, तकनीकी विशेषज्ञ व दो ईँजीनीयरोँ के साथ, पापा जी पंडित नरेंद्र शर्मा जी को जापान और
अमरीका की यात्रा पे भेजा।
विविध भारती रेडियो प्रोग्राम " आकाशवाणी" के अंतर्गत सुचारु रूप से चल रहा था। करोड़ों श्रोता अपने मनपसंद व अत्यंत लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम विविध भारती के विविध बहुआयामी कार्यक्रम जैसे चित्रहार, स्वर संगम, झरोखा, हवा महल, काब्य संध्या उत्यादि जैसे कार्यक्रमों का नामकरण किया तथा उनकी विशिष्ट रुपरेखा भी बनायी थी जो श्रोता वर्ग में अत्यंत लोकप्रिय हो चलीं थीं। भारत के कोने कोने से करोड़ों श्रोतागण जुड़ चुके थे।
चित्र ~ महानगर लॉस एंजिलिस, कैलिफोर्निया प्रांत अमरीकी भूखंड के पश्चिमी किनारे पर पं. नरेंद्र शर्मा शिप में
चित्र : अमरीकी टेलीविज़न स्टूडियो सी बी. एस. में भारतीय सरकार के प्रतिनिधि पंडित नरेंद्र शर्मा
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology)
जापन यात्रा के दौरान वहाँ के रेडियो कार्यक्रम संस्थान वालोँ ने एक बड़ा सुँदर ट्राँज़ीस्टर रेडियो जिसे व्यक्ति अपने संग ले कर कहीं भी ले जा सकता है और जो एक ही जगह पर सहित रेडियो के बजाय इस नाते अलग प्रकार की सुविधा प्रदान करता है वैसा नई ईजाद का ट्रांज़िस्टर रेडियो पूज्य पापा जी को गीफ्ट मेँ तोहफे में दिया था। मुझ से बड़ी मेरी बडी बहन (अब स्व. वासवी मोदी) और मैं मँझली लावण्या, जब हम, उच्च शिक्षा ग्रहण करते हुए विश्व विद्यालय माने कोलेज मेँ आ पहुंचे, तब तक, वासवी उसी ट्रांज़िस्टर से दिन भर गाने सुना करती
थी। मेरी आदत प्रिय वासवी से कुछ अलग है। मैँ जब भी रेडियो से या टेलेविज़न या किसी भी माध्यम से कोइ गीत सुनती हूँ तब मैं कोई अन्य काम नहीँ करती ! क्योंकि मेरा पूरा ध्यान गीत के बोल, सँगीत, उतार चढाव पे केन्द्रित रहता है और इसी कारण मुझे लाखोँ गीतोँ के बोल अक्सर याद रहते हैँ ..!!
हमारे पूज्य पापा जी व हमारी प्यारी अम्मा के घर का रहन सहन बहुत ही सादा हुआ करता था। घर भर में फैली शाँति इतनी असीम हुआ करती थी कि, आप मान नहीँ ही सकते कि, बँबई जैसे महानगर व भीडभाड भरे उस विशाल जनसंख्या से दिनरात अविरल, अनवरत चल रहे उस बड़े शहर के एक भूभाग में, एक उपनगर खार के एक छोटे से घर मेँ आप बैठे हैँ और शोर शराबे से दूर सुकून पा रहे हैं। शायद यह
मेरी अम्मा की मेहनत व प्रेम का दर्पण था जो मँदिर जैसे उस पवित्र आवास के आसपास के वातावरण को,
ऐसी ऊर्जा दिया करता था। चन्दन, चमेली की सुगंध से महकती अगरबत्ती पूज्य पापाजी के अध्ययन खण्ड में सुवासित रहती घर के आसपास बगिया थी। उस बाग़ में, अम्मा के अथक परिश्रम से उपजे असंख्य सुगन्धि मनोरम पुष्प जैसे जुई, जाई, चमेली, मोगरा, गुलाब व गेंदा इत्यादि खिले रहते। ईमली,अमरुद, नारिकेल जैसे फलों से लदे पेड़ों से मुस्कुराते हुए उस बाग के सुगँधित फूलोँ से अम्मा घर के विभिन्न कक्ष सुसज्जित किया करतीं थीं। वह घर सदा महकता रहता थाबी और इसी घरके साथ,
भारत के सुप्रसिध्ध रेडियो प्रोग्राम आकाशवाणी के सभी कार्यक्रमोँ के नाम,
उनकी रुपरेखा व अन्य सारी बारिकियोँ को अँजाम देनेवाले पण्डित नरेन्द्र
शर्मा,रेडियो के जनक या भीष्म पितामह की यादेँ जुडीँ हुईँ हैँ मेरे लिये, जो आज भी वैसी ही फूलोँ की तरह महकतीँ हुईँ, तरोताज़ा हैँ ~~~~
-- लावण्या
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