ॐ
देवी भगवती : हैमावती, ईश्वरी यह देवी के अन्य नाम हैं। शक्तिवाद में उन्हें शक्ति
या दुर्गा, जिसमे भद्रकाली और चंडिका भी शामिल है, में भी प्रचलित हैं। यजुर्वेद के
तैत्तिरीय आरण्यक में उनका उल्लेख प्रथम किया है। स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि वे
परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं, जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दी
गई सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया। वे शक्ति की आध्य स्वरूपा हैं। पाणिनि
ने माहेश्वर सूत्रों की उत्पत्ति भगवान नटराज (शिव) के द्वारा किये गये ताण्डव
नृत्य से प्रतिपादित की है।
"नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥
अर्थात:- "नृत्य (ताण्डव) की समाप्ति पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि व कामना पूर्ति हेतु नवपंच = चौदह बार डमरू बजाया। उसी से चौदह शिवसूत्रों की वर्णमाला प्रकट हुयी।" डमरु के चौदह बार बजाने से चौदह सूत्रों के रूप में ध्वनियाँ निकली, इन्हीं ध्वनियों से व्याकरण प्रकट हुआ। इसलिये व्याकरण सूत्रों के आदि-प्रवर्तक, भगवान नटराज हैं । प्रसिद्धि है कि महर्षि पाणिनि ने इन सूत्रों को देवाधिदेव शिव के आशीर्वाद से प्राप्त किया जो कि पाणिनीय संस्कृत व्याकरण का आधार बना।
पतञ्जलि के ग्रन्थ, ईसा पूर्व दुसरी शताब्दी में रचित महाभाष्य में देवी का उल्लेख किया हे। उनका वर्णन देवीभागवत पुराण एवं मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में भी प्राप्य है। जिसे ४०० से ५०० ईसा में लिपिबद्ध किया गया था। बौद्ध एवं जैन ग्रंथों व कई तांत्रिक ग्रंथों, विशेष रूप से कालिका पुराण (१० वीं शताब्दी) में देवी का उल्लेख प्राप्य है। जिसमें उड़ीसा में देवी कात्यायनी और भगवान जगन्नाथ का स्थान बताया गया है। देवी पार्वती के अनगिनत नामों से पूजा की जाती है। देवी माँ के असंख्य नामों में से कुछ प्रमुख नाम हैं ~सती, शिवा, शिवानी, भगवती, तारा, अम्बिका, कात्यायनी, कामरूपा,पार्वती, उमा, महेश्वरी, दुर्गा, कालिका, महिषासुरमर्दिनी, भवानी, अम्बा, गौरी, कल्याणी, विंध्यवासिनी, चामुन्डी, वाराही, भैरवी, काली, ज्वालामुखी, बगलामुखी, धूम्रेश्वरी, वैष्णोदेवी, जगधात्री, जगदम्बिके, श्रीजगन्मयी, परमेश्वरी, त्रिपुरसुन्दरी ,जगत्सारा, जगादान्द्कारिणी, जगाद्विघंसकारिणी,भावंता, भव्या,साध्वी, दुख्दारिद्र्य्नाशिनी, चतुर्वर्ग्प्रदा, विधात्री, पुर्णेँदुवदना, निलवाणी, सर्वमँगला, सर्वसम्पत्प्रदा,शिवपूज्या,शिवप्रिता, सर्वविध्यामयी, कोमलाँगी, विधात्री,नीलमेघवर्णा,विप्रचित्ता, मदोन्मत्ता, मातँगी, माँ चिंतापूर्णी देवी खडगहस्ता, भयँकरी,पद्`मा, कालरात्रि, शिवरुपिणी, स्वधा, स्वाहा, शारदेन्दुसुमनप्रभा, शरद्`ज्योत्सना, मुक्त्केशी, नँदा, गायत्री, सावित्री, लक्ष्मी, अलँकार सँयुक्ता, व्याघ्रचर्मावृत्ता, मध्या, महापरा, पवित्रा, परमा, महामाया, महोदया इत्यादी देवी भगवती के कई नाम हैँ।
भारतवर्ष के प्रत्येक प्राँत मेँ, देवी के विविध स्वरुप की पूजा होती है। इनमें से कई स्थान, शताब्दियों से देवी माँ के स्वरुप की आराधना के मुख्य केन्द्र रहे हैँ। शाक्त पूजा की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा पूरे बँगाल की आराध्या हैं। वे 'काली कलकत्ते वाली ' कहलातीं हैँ। गुजरात प्रांत में वे ही अँबा माँ हैँ। पँजाब की जालन्धरी देवी भी वही हैँ। विन्ध्य गुफा की विन्ध्यवासिनी भी वही माता रानी हैँ। उत्तर में स्थित जम्मू में वे, वैष्णोदेवी कहलातीँ हैँ। त्रिकुट पर्बत पर माँ का डेरा है।आसाम मेँ ताँत्रिक पूजन विधि मेँ कामाख्या मँदिर बेजोड है। दक्षिण भारत मेँ वे कामाक्षी के मँदिर मेँ विराजमान हैँ तथा चामुण्डी परबत पर भी वही माता चामुण्डेश्वरी स्वरूप में विराजमान हैँ। शैलपुत्री के रुप मेँ वे पर्बताधिराज हिमालय की पुत्री पार्वती कहलातीँ हैँ .. तो भारत के शिखर से पग नख तक आकर, देवी माँ कन्याकुमारी या कन्यका देवी के रुप मेँ पूजी जातीँ हैँ। महाराष्ट्र की गणपति की मैया गौरी भी वही हैँ और छत्रपति शिवाजी महाराज कीं युध्ध विजय दीलवानेवाली ' तुळजा भवानी ' भी वही माँ हैं। गुजरात प्रांत के रहवासी गरबा और रास करते हुए ९ दिवस रात्रि में नृत्य और रात्रि के समय माता अम्बिके का आह्वान करते हैँ ..गुजरात के घर घर के चौक में हर गाँव में, शहरों और कस्बों में
' हे माड़ी , हे माँ, पावागढ़ परबत से उतर कर पधारिये , आईये माँ आ जाइयो ' ऐसे गीत गूंजते हैं। गुजरात के ग्राम प्रांत में, देवी माँ खोडीयार स्वरूप से भी पूजी जातीं हैं। असंख्य ग्राम - प्रांत की आराध्या या कई एक कुलों की ' कुल - देवी ' भी यही माँ पार्वती हैं।
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॐ दुर्गा देव्येय नमो नमः। या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता नमोस्तुते नमोस्तुते नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।
देवी पार्वती ' विन्घ्याचल पर्वत पर '
विंध्यवासिनी ' के नाम से प्रतिष्ठित हैं। नवदुर्गा की आराधना की अत्याधिक महिमा
है। नवदुर्गा के नाम एवं मन्त्र ~
( १ ) शैलपुत्री ~ वन्दे वांच्छितलाभाय
चंद्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
( २ )
ब्रह्मचारिणी ~ दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि
ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
( ३ ) चन्द्रघंटा ~ पिण्डजप्रवरारूढ़ा
चण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
( ४ )
कूष्माण्डा ~ सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा
शुभदास्तु मे॥
( ५ ) स्कंदमाता~ सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा
देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
( ६ ) कात्यायनी ~ चंद्र हासोज्जवलकरा शार्दूल वर
वाहना|
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि||
( ७ )
कालरात्रि ~ एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी
तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥ वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा
कालरात्रिर्भयंकरी॥
महागौरी ~ सिद्धिदात्री हैं।
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
एक बार ब्रह्माजी ने ' निशा ' (रात्रि ) को देवी पार्वती जी के समीप
भेजा।
निशा के संसर्ग से, माँ की काया काली पड गई ! शिवजी ने उन के रूप को प्रेम
सहित निहारते हुए कहा, ' काली ' ! शिवजी, अपनी प्रिय पत्नी को चिढ़ा रहे थे किन्तु
माँ कुपित हो कर रूढ़ गईं ! स्मरणमन्त्र से, माता ने चार सखियाँ निर्मित कीं उनके नाम हैं ~जया,
विजया, जयन्ती तथा सोमप्रभा। तदन्तर पार्वती जी तपस्या करने चलीं गईं। तपस्या रत माँ के अंग से,
काली चमड़ी उतर कर गिर पडी। उस कालिमा युक्त चर्म से कौशिकी देवी निकलीं। ब्रह्माजी
के आशीर्वाद से तद्पश्चात माँ गौरां हुईं ! तब वे ' माँ गौरी ' कहलाईं। माता पार्वती जी की कन्या
हैं ' अशोकसुन्दरी ' । जिनका विवाह राजा नहुष के संग हुआ। बाणासुर की कन्या ' उषा '
को देवी पार्वती ने पुत्रीवत माना। तुलसी दास जी की लिखा पवित्र ग्रन्थ
' राम चरित
मानस ' एवं वाल्मिकी ऋषि कृत रामायण दोनों में वर्णन है कि माता पार्वती ने
राजकुमारी जनक दुलारी सीता जी को श्री रामचंद्र पति रूप में अवश्य मिलेंगें ऐसे
आशीर्वाद, दिए थे। सीता जी ने माता पार्वती की स्तुति इन शब्दों से की थी ~~ " जय जय
गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि
दुति गाता॥
भावार्थ:- हे श्रेष्ठ पर्वतों के राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती! आपकी
जय हो, जय हो ~ हे महादेवजी के मुख रूपी चन्द्रमा की ओर टकटकी लगाकर देखने वालीं
चकोरी जी ! आपकी जय हो ! हे हाथी के मुख वाले गणेशजी एवं छह मुख वाले स्वामी कार्तिकेय
जी की माता! हे जगज्जननी! हे बिजली की सी कान्तियुक्त शरीर वाली! आपकी जय हो! बाबा
तुलसीदास जी ने ग्रन्थ ' पार्वती मंगल ' में, शिव जी का पार्वती जी से पाणिग्रहण
संस्कार हुआ था उस का रोचक वर्णन लिखा है. जिस का पाठ अत्यंत शुभ एवं मंगलकारी है।
" सुनु सिय
सत्य असीस हमारी पूजहूँ मनकामना तुम्हारी " यह आशीर्वाद दिया
माँ पार्वती जी ने सीता जी ! जिसे
देते हुए मानस में पारवती जी ऐसा कहतीं हैं। इसी भाँती विदर्भ देश की राजकुमारी रुक्मिणी जी को भी पार्वती
देवी ने आशीर्वाद दिए थे, कि, ' श्रीकृष्ण तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगें। '
भारतीय कुंवारी कन्याओं द्वारा माता पार्वती की पूजा करना और प्रेम व आदर देनेवाला पति
मांगना, ऐसे व्रत ~ पूजन, अनुष्ठान भारत में प्राचीन काल से आज तक अखंड रीत से चले
आ रहे हैं। करवा चौथ के पवित्र मंगलमय तथा सर्वथा निस्वार्थ स्नेह के प्रतीक रूप
पूजा व्रत के पावन अवसर पर हर पत्नी अपने सात फेरों से प्राप्त पति रूप में पाए अपने साथी
के लिए भूखी रह कर, निर्जला व्रत रख, माँ पार्वती से हाथ जोड़कर प्रार्थना करतीं
हैं,' हे माँ आप की जय हो! आप की कृपा हो ! माँ, मेरे पति को लम्बी आयु दें !
उन्हें सुखी और स्वस्थ रखें ! हमारे परिवार में सुख- शान्ति और संतोष रहे । '
कविता : दुर्गा -पूजा
सजा आरती सात सुहागिन तेरे दर्शन को आतीं
माता तेरी पूजा कर के
भक्ति निर्मल हैं पातीं
दीपक कुमकुम अक्षत लेकर तेरी महिमा गातीं
माँ दुर्गा तेरे
दरसन कर वर सुहाग का पातीं
वे तेरी महिमा शीश नवां करकर गातीं !
हाथ जोड़ कर शिशु
नवातीं,
धीरे से हैं गातीं, ' माँ ! मेरा बालक भी तेरा " ~
~ ऐसा तुझको हैं समझातीं
फिर फिर वे तेरी महिमा गातीं '
तेरी रचना भू मंडल है ! '
ऐसे गीत गरबे में हैं
गातीं '
माता तुझसे कितनी ही सौगातें,
भीख मांग ले जातीं !
माँ सजा आरती, सात
सुहागिन
तेरे दर्शन को आतीं
मंदिर जा कर शीश नवां कर,
हैं तेरी महिमा गातीं !
-~
लावण्या
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