Tuesday, August 4, 2009

हमारे प्रकाशकों ने अभी लेखकों को भाव देना नहीं सीखा।

उत्तर अमरीका में निवास करतीं सभी रचनाकार महिलाओं की कृतियाँ आपको इस पुस्तक में
पढने को मिल जायेगी -- संपादिका हैं डाक्टर अंजना संधीर जी --
पुस्तक का नाम है, ' प्रवासिनी के बोल '

पूर्णिमा बर्मन जी

http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/2009/pravasi.htm

पश्चिमी प्रकाशकों का सफल व्यापार चातुर्य एवं कई तरह के प्रश्न आज के साहित्य पर पढने को मिले - लेखिका सुप्रसिध्ध भारतीय मूल की, श्री सुषम बेदी जी ने इस लेख में सलमान रशदी के बर्ताव और पश्चिम के साहित्य संस्था द्वारा मिले रशदी के मुखिया मान लिए जाने पर भी अपना असंतोष व्यक्त किया है -
प्रवासी भारतीयों का साहित्यिक उपनिवेशवाद : -सुषम बेदी

सुप्रसिध्ध लेखिका है श्री सुषम बेदी जी

सुषम जी का लिखा, विचारोत्तेजक निबंध अभिव्यक्ति पर आपने शायद देख भी हो

" अभिव्यक्ति " की संपादिका हैं पूर्णिमा बर्मन जी

- पूर्णिमा बर्मन जी का नाम कौन नहीं जानता ?

शिक्षा :

संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि, स्वातंत्र्योत्तर संस्कृत साहित्य पर शोध, पत्रकारिता और वेब डिज़ायनिंग में डिप्लोमा।

पीलीभीत (उत्तर प्रदेश, भारत) की सुंदर घाटियों में जन्मी पूर्णिमा वर्मन को प्रकृति प्रेम और कला के प्रति बचपन से अनुराग रहा। मिर्ज़ापुर और इलाहाबाद में निवास के दौरान इसमें साहित्य और संस्कृति का रंग आ मिला। पत्रकारिता जीवन का पहला लगाव था जो आजतक साथ है। खाली समय में जलरंगों, रंगमंच, संगीत और स्वाध्याय से दोस्ती, 1995 से यू ए ई में।

कार्यक्षेत्र :

पिछले पचीस सालों में लेखन, संपादन, फ्रीलांसर, अध्यापन, कलाकार, ग्राफ़िक डिज़ायनिंग और जाल प्रकाशन के अनेक रास्तों से गुज़रते हुए फिलहाल संयुक्त अरब इमारात के शारजाह नगर में साहित्यिक जाल पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' और 'अनुभूति' के संपादन और कला कर्म में व्यस्त। इसके अतिरिक्त वे हिंदी विकिपीडिया की प्रबंधक भी हैं।

दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य अकादमी तथा अक्षरम के संयुक्त अलंकरण "प्रवासी मीडिया सम्मान", जयजयवंती द्वारा जयजयवंती सम्मान तथा रायपुर में सृजन गाथा के "हिंदी गौरव सम्मान" से विभूषित।

प्रकाशित कृतियाँ :
कविता संग्रह : 'वक्त के साथ'


संपर्क :
abhi_vyakti@hotmail.com


नव वर्ष की मंगल कामनाएँ

धुंध में डूबा ग्रीष्माकाश

दुबई में नाट्य उत्सव

अपनी तो पाठशाला

अमरीकी गोली-बारूद

टूटे गिटार का ग़म

गर्म देश में बर्फ़ गिरी

मुफ्त का सामान
एक रेत-यात्रा यह भी
बार्बी हुई पचास की
पान बनारस वाला
मंदी की ठंडी में उपदेशों की बंडी
रंग बरसे
जाना कहाँ रे
बरसात में
वर्तनी का वर्तमान
श्रद्धांजलि
हिंदी-विकिपीडिया सही दिशा की तलाश
बड़े भाई साहब
दौड़ से दूर
चोरी चिड़ियों की
बीते हुए दिन हाय
सूरज चमक रहा!
शोकाकुल सप्ताह
हंगामा-ए-जलाबिया
अकेलेपन का अंधेरा
जिन्हें मैं," पर्ल "
के प्यारभरे संबोधन से ही बुलाया करती हूँ ) ,
बखूबी निभा रहीं हैं


जन्म: 27 जून 1955
हिंदी भाषा को सर्व प्रथम , विश्व जाल पर सदा के लिए , स्थापित करने के महत्त्वपूर्ण कार्य को पूर्णिमा जी

उनसे पहली मुलाकात ,
" काव्यालय " वेब साईट पर , हुई -
पढने के बाद, मन किया , लेखिका को बधाई भी दूं ई मेल पता देखा और उन्हें प्रशस्ति पत्र भेज दिया था
उत्तर आया और उस समय, कंप्यूटर सीखा ही था
परंतु पूर्णिमा जी से बातचीत का सिलसिला आरम्भ हो गया था --
कई सम्मान प्राप्त पूर्णिमा जी , समय और अवसर के अनुसार,
भारतीय उत्सव, चुनिन्दा कथानक -
जैसे गत माह का कदम्ब पर आधारित अंक तथा कई नवोदित व स्थापित रचनाकारों की कृतियों को
अपने वेब मेगेज़ीन पर स्थान देतीं रहीं हैं
वे ब्लॉग लेखन भी करती रहीं हैं
" चोंच में आकाश " उनका जाल घर है
परंतु प्रसिध्धि उन्हें सम्पादन से मिली और लेखिका का कर्म भी साथ साथ
उन्होंने बखूबी निभाने का कठिन काम भी जारी रखा है --
रक्षा बंधन के पावन उत्सव पर , मंगल कामनाएं देते, हर्ष अनुभव कर रही हूँ --
कन्या जीवन , दो पाटों में बहता नदिया का नीर है --
शैशव के चिरपरिचित घर को , पतिगृह के लिए , छोड़ कर जाती हुई कन्याएं ,
नये घर को आबाद करने चल देतीं हैं --
आजकल लड़के भी , शैशव के घर को छोड़ कर , अपनी नई गृहस्थी बसाते हैं -
कई , दूर परदेस भी आकर बसते हैं जहां एकल परिवार होते हैं सर्वथा
नवीन , नई पीढी का अपना वजूद , अपने ढंग से विकसित होता हुआ ,
भारतीय परिवार में बढ़ते बच्चों को यहां ,
" ए बी सी डी = या , अमेरीकन बोर्न confused देसी " भी कहते हैं !!
घर की चारदीवारी के भीतर, सर्वथा भारतीय परम्पराएं , प्रणाम करना,
हिन्दू प्रणालियाँ , या अपने धर्मानुसार की रूढिगत सोच, कुछ हद तक आज़ादी भी,
बहुत ज्यादा लाड प्यार , बाहर जाकर , एकदम अमरीकन माहौल , इस दुधारे जीवन से ,
पसोपेश में पलकर बढ़ते बच्चे ,
कन्फ्यूजियायेंगे नहीं न तो और क्या होगा जी ? :)
कई तरह की बातें सुनी हैं, -
किस्सा -
- एक भारतीय दंपत्ति बच्चों पर इतनी बन्दीशें लगाता रहा के बालक विद्रोह कर बैठा ! शायद वह गोद लिया हुआ भी था और टैक्सस प्रांत में समाचार पढ़कर लोग सन्न रह गए जब् इस बेटे ने सोते हुए पेरेंट्स को , पूरे घर में आग लगाकर , उसी हालत में जलते हुए छोड़ दिया और बाहर आकर कार में स्वयं को भी गोली मार दी :-(
- माता पिता की गलती यही थी के उसे , दुसरे बच्चों के संग रात्री में देर तक बाहर जाने से मना किया था !
किस्सा - 2
अभी की बात है - 2 माह पहले की , हमारे घर के पास , दक्षिणी परिवार के १३ , १४ साल के बच्चे ने ४ थी मंजिल की छत से कूदकर , प्राण त्याग दीये ! कारण अज्ञात है -- किसीने उसे स्कूल में परेशान किया होगा या किसी गर्ल फ्रेंड ने दिल तोड़ दिया या पढाई से निराश था या सामाजिक कारण थे ? अभी पता नहीं चला :-((
मगर , इस हादसे की सुनकर उदासी इतनी हुई थी कि,
माइकेल जैकसन की असमय मौत से भी ज्यादा , उस बच्चे के बारे में सोचते , मन उदास हो गया --
किस्सा -
दक्षिणी परिवार ये भी - पिता जी की तरते हुए ऑस्ट्रेलिया में मौत हो जाने के बाद, माँ , बच्चों पर ज्यादा अनुशाशन बरतने लगी थी - तीनो बच्चे , पढाई में अव्वल आते फिर भी कठोर अनुशाशन लगा रहता -- बड़ी लडकी डाक्टर बननेवाली थी और एक रात्री को क्या सूझी के माँ को , आखिरकार उन्ही की कार में , बंद कर , ख़त्म कर दिया -- मेंटल प्रताड़ना कारण बतलाते हैं और आज भी वह लडकी जेल में है - वहां, दूसरों को पढाती है --
कुछ किस्से , अभूतपूर्व सफलता के भी सुनने में आते हैं -
प्रथम पीढी , भारतीय संस्कारों की थाती लेकर , कड़ी मेहनत से ,
सफलता अर्जित करने में प्रयासरत है --
ये पढ़े लिखे सभी संस्कारी भारतीय ,
मध्यम वर्ग के, परदेस में , नये मूल जमाने की , नई नई , कहानी है --
आगे क्या होगा, किसी को पता नहीं --
लगा आज ये आपके साथ शेयर करुँ.......
नीचे का चित्र पारम्पारिक वेशभूषा में , भारतीय कन्या का नववधू स्वरूप ...
यहां होनेवाली शादियाँ भी इसी तरह के द्रश्य सर्जित करतीं हैं ...बदलाव हो रहा है ......
.परंतु कहीं त्रासदी है तो कहीं सफलता ........
कदम बढ़ते हैं फिर लौट कर पीछे भूतकाल में कभी नहीं लौटते ...
दिशा स्पष्ट करने का कोइ कम्पास भी तो नहीं है ..है तो सिर्फ ,
हमारे बुजुर्गों से मिली सीख जो परिवार के भले के लिए ,
हम से जो हो सके , वही करना ,
फिर धरती के किसी भी भाग पर क्यों न हम अपना घर बसायें ..
गुजराती कहावत है, ' धरती नो छेडो, घर !
" मतलब, " घरती का अंतिम छोर, घर "
- लावण्या

19 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

दीदी, रक्षाबंधन पर प्रणाम!
वह दिन भी आएगा जब हमारे प्रकाशक लेखकों को भाव दिया करेंगे। अभी पुस्तकों की खरीद भारत में बहुत कम है।
आप ने जो हादसे दिखाए हैं वे हमारे आस पास भी होते हैं। इस का कारण है पारिवारिक जीवन में जनतांत्रिक पद्धति का अभाव। हमें अधिकाधिक जनतांत्रिक पद्धति को परिवार में अपनाना चाहिए और बच्चों को भी अपने फैसलों में धीरे धीरे सम्मिलित करना चाहिए। उन की इच्छाओं का ध्यान रखना चाहिए और अपनी आर्थिक सामाजिक हैसियत का ज्ञान भी बच्चों को समय पर होता रहना चाहिए। इस के लिए माता-पिता का अधिक ध्यान होना चाहिए।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

श्री दीनेश भाई जी , आपको भी राखी के मंगलमय पर्व पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं
आपने सही सुझाव दिए हैं , अकसर, अभिभावक और माता पिता , समझते तो सब हैं
परंतु जैसा जनतांत्रिक पद्धति को अपनाया जाना चाहीये, कर नहीं पाते - अनुशाशन और
प्यार का सम्मिश्रण और उनकी मात्रा , सही होना भी जरुरी हो जाता है -
परदेस में , परवरीश की कठिनाई और मुश्किल हो जाती है -
- जहां , भारत जैसा माहौल
नहीं होता -
- फिर भी, प्रयास तो आवश्यक हैं --
तभी भावी पीढी ,
स्वस्थ रहेगी
और पुस्तके एक ख़ास वर्ग आज भी खरीदता है पढता भी है ,
अन्यथा साहित्य और पुस्तक
भी बदलते समय को देख कर ही रचे जा रहे हैं
सादर, स - स्नेह,

- लावण्या

शोभना चौरे said...

लावन्याज़ी
रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई |महदेवी जी के अनुसार यह स्नेहबंधन है |कितना सुख है इस सनेहबंधन शब्द मे |
आपने बहुत ही बढ़िया आलेख लिखा है अक कन्या के जीवन की सामाजिक रीति रिवाजो से पूर्ण परिवार को जोड़ने और और परिवार से जुड़ने की भाव पूर्ण यात्रा | परिवर्तन होते रहते है और साथ मे सफलता भी लाते है तो विसनगतियो को भी जन्म देते है |तथाकथित आधुनिकता की दौड़ मे हम न तो अपना पूरा छोड़ पाते है न ही बाहर का पूरा ले पाते है |फिर भी आज की पीढ़ी अपनी पूरी योग्यता से सफलतापूर्वक अपने लक्ष्यो को पा रही है |
धन्यवाद

Smart Indian said...

लावण्या जी, सपरिवार आपको और आपके पाठकों को भी श्रावणी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं!

Udan Tashtari said...

रक्षाबंधन की शुभकामनाऐं.

बड़ा कुछ समेटा एक पोस्ट में.

आभार!!

ताऊ रामपुरिया said...

रक्षाबंधन की प्रणाम स्वीकारें और इस पावन पर्व पर आपका आशीष पाकर मन बहुत प्रफ़्फ़ुल्लित हुआ.
बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

अजित गुप्ता का कोना said...

वर्तमान में मेरे हाथ में अंजना संधीर की संगम है। प्रवासिनी के बोल अभी समाप्‍त ही की है। पिछले वर्ष उनसे अहमदाबाद में मुलाकात हो गयी थी, तभी उनसे भेंट स्‍वरूप ये पुस्‍तके प्राप्‍त हुई थी। इन पुस्‍तकों के माध्‍यम से मैंने अमेरिका का यथार्थ जाना। मैंने भी अपनी पुस्‍तक - सोने का पिंजर....अमेरिका और मैं में इसी प्रकार के भाव लिखे थे। उन्‍हें पढ़कर लगा कि जो मैंने अनुभूत किया वह सत्‍य था। आपने पूर्णिमाजी के बारे में भी जानकारी दी, उन्‍हें भी हम ब्‍लाग के माध्‍यम से ही जान रहे हैं। आशा है यह क्रम जारी रहेगा। रक्षा बंधन पर हमारी भी बधाई स्‍वीकार करें। हम सब प्रेम के इसी बंधन में बंधे रहे।

L.Goswami said...

रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई.

दिलीप कवठेकर said...

दीदी, मेरा भी प्रणाम स्वीकार करें, रक्षाबंधन के इस पावन और पुनीत अवसर पर.

हम सभी ब्लोग परिवार का हिसा हैं और प्रेम की यही अदृष्य डोर ही तो मेरे , आपके और हम सब के बीच बंध सी गयी है, जो राखी के पवित्र रिश्ते को रेखंकित करती है.

कार के बोनट पर चित्र बढिया है!!

कंचन सिंह चौहान said...

Raksha Bandhan ki shubh kamnaen didi

Gyan Dutt Pandey said...

जिन्दगी के तनाव और बच्चों का विद्रोही स्वभाव यहां भारत में भी बढ़ गया है। असल में जहां वर्तमान युग में चेतना का विस्फोट हुआ है, वहीं अपेक्षाओं का विस्तार भी हुआ है। आदमी के समेटे नहीं रुक रहा यह विस्तार। कई बार यह अवसाद और विद्रोह का रूप धर लेता है!

Ria Sharma said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ....
अति प्रसन्नता हुई !!!

आपको भी राखी के बहुत बधाई
धन्यवाद !!

Harshad Jangla said...

Lavanya Di
Bahut bahut badhaiyan on Raksha Bandhan.
Aapse Rakhi ke rupme amulya khazana mil raha hai!
Rgds.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

Akshitaa (Pakhi) said...

Apne to bahut kuchh likh diya..aram se padhungi.
Happy Rakhi.

पाखी की दुनिया में देखें-मेरी बोटिंग-ट्रिप !!

Arvind Mishra said...

रक्षाबंधन पर हार्दिक स्नेह !

Science Bloggers Association said...

Yah post to poori patrika ban gayee. Aapki baat se poori tarah sahmat.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Arshia Ali said...

सही कहा आपने.
{ Treasurer-T & S }

डॉ .अनुराग said...

शीर्षक पढ़ के पोस्ट पढने आया ओर फिर कहाँ कहाँ से गुजर गया ....किस्से पढ़के लगा जैसे जीवन कही भी हो .अपनी मजबूरिया .अलग अलग रूपों में लिए बैठा है ....वक़्त को हर आदमी अपने बस में करना चाहता है ...जल्दी ही.....पर आदमी की यही कैफियत उसे ले डूबी है .
पूर्णिमा जी के बारे में पढ़कर प्रसन्नता हुई...विदेश में लोग हिंदी से जुड़ कर बहुत अच्छा काम कर रहे है

vijay kumar sappatti said...

didi

pranaam

aaj bahut der se aapke blog par hoon , bahut dino ke baad blogworld me lauta hoon ..

aapke blog par poornima ji ke baare me padna bahut hi man ko sukh dene wala raha ...

poornima ji bahut achi writer hai , aur unke website me meri kavita bhi prakashit hui hai .

didi , rakhi ki shubkaamnaye..

abhar

vijay