Saturday, August 9, 2008

एक विश्व, एक स्वप्न

विक्टोरिया पेँडल्टन ट्रेक और फील्ड धावक - ग्रेट ब्रिटन की महिला खिलाडी बेज़ीँग चीन मेँ जारी ओलिम्पीक मेँ , प्रसन्न मुद्रा मेँ दीखाई दे रही हैँ।
ये सोवियत संघ की महिला खिलाड़ी टीम , ओलीम्पीक के लिए सुसज्ज होकर प्रसन्न हो , चल पड़ीं हैं ....और दर्शक दीर्घा में , बारबरा बुश , अपनी माँ , लोरा बुश के साथ , तल्लीन हैं -
भारत ने जब से , ओलिम्पिक में हिस्सा लेना शुरू किया , तब से आज तक, १५ मैडल , हासिल किए हैं। लगभग ८० साल का समय हुआ है जहाँ, २ रजत पदक, ५ ताम्र पदक
भारत ने होकी के खेल में हासिल किए हैं। दुःख की बात है , इस साल होकी खेल के लिए
भारतीय टीम , शामिल भी न हो पाई !
भारत के लिए दुःख इस बात का भी है के खेलकूद पे भी राजनीति हावी है - खेलकूद के लिए
समय किसे है ? ना ही, सरकारी प्रोत्साहन या सहायता का स्तर ही ऐसा है जिसके बल पर , खिलाडी , तैयार हों !
आम भारतीय, जीवन यापन की दौड़ से , उभरते ही नहीं , ना ही खेलों को जीवन में कोई, ख़ास तवज्जो दी जाती है !
कई सारे दूसरे विषय व शौक , जनता को घेरे हुए हैं । इस के बावजूद , जो भी , स्पोर्ट्स खेले जाते हैं उनमे सिर्फ़ क्रिकेट ही सबसे ज्यादा पोपुलर है और कमाई का जरिया भी और क्रिकेट खिलाडी अब कमाई भी करने लगे हैं।
पहले की अपेक्षा ये स्थिति , अवश्य बदलाव , की है , परन्तु आज क्रिकेट भी कई खेमों में बाँट लिया गया है !
भारत के बच्चों को व्यायाम करवाया जाता है परन्तु खेलकूद के प्रति फ़िर भी , कम ध्यान दिया जाता है -
गली मोहल्ले में , क्रिकेट खेल लेना ही पर्याप्त नहीं रह गया आज के समय में ! हमारा खान पान का स्तर , आज भी , बहुत सुधरा नही - भले ही पाश्चात्य देशों के प्रमुख राजनीतिज्ञ ये कहें की चीन और भारत में खाद्यान्न की खपत बढ़ी है !
उनके देशों के मुकाबले , भारत का आम इंसान , कम ही खाता है !
ये मेरी देखी हुई बात है -- भरोसे के साथ कह रही हूँ .....
ओलिम्पिक खेलों के लिए भारतीय दस्ता काफ़ी विशाल लगा पर उसमे खिलाडी कम, अफसर अधिक होंगें , सरकारी खर्च पे घूमने निकले होंगें !
१९३४ से १९३२ में भारतीय फ़िल्म जगत के जानकीदास नामक हास्य कलाकार ने साइकिल प्रतियोगिता में विश्व विक्रम तोडा था !
ये भी आश्चर्य की घटना थी और बर्लिन १९३६ की ओल्य्म्पिक कमिटी के वे एकमात्र भारतीय सदस्य रह चुके हैं !
इंटरनेशनल ओल्य्म्पिक कमिटी : यहाँ क्लीक करिए और विस्तार से पढिये -

फ्रान्स के कोबुर्टीन नामक सज्जन ने इस की स्थपना, पेरिस शहर मे, १८९२ , २५ नवम्बर के दिन की थी। उस्के पीछे उनकी ये सोच थी कि, खेलकूद से ही शरीर सौष्ठव का विकास होता है जिसके रहते, सर्वाँगीण व्यक्तित्व का विकास भी हो जाता है -
ये बात उन्हेँ फ्रान्स की पराजय के समय समझ मेँ आई -
१८७ इस्वीसन मेँ, फ्रान्स और प्रशीया के युध्ध मेँ जर्मन सेना ने फ्रान्स को बुरी तरह पराजित किया तब एक अमीर फ्रेन्च नागरिक श्रीमान पियेर ड्`कोर्बुटीन : क्लीक करिए : Pierre de Coubertin
ने ये बात पर गौर किया कि शारीरिक निर्बलता ही मूल कारण था उनके देश की सेना की हार का और हमलाखोर जर्मन सेना बलवान सिध्ध हुई थी -
३९३ ईसा पूर्व काल में , प्राचीन ओलिम्पिक खेल हर ४ साल की अवधि पे आयोजित होते थे
यही क्रम १२०० वर्ष तक जारी रहा था -
देखें लिंक : ancient Olympic Games --
ओलिम्पिक खेलों की शुरुआत रोमन बहादुर हर्क्युलीस ने की थी -
Heracles (the Roman Hercules),
जो Zeus / ज़उस माने इन्द्र, जो देवों के अधिपति हैं , उन्ही का देव पुत्र था !
७७६ ईसा पूर्व के काल में उसी ने ओलिम्पस परबत की वादियों में , खेल का आरम्भ किया -
और आज वे सन २००८ में , दुनिया की सबसे ज्यादा आबादीवाले देश चीन के मुख्य शहर बेजींग में , आयोजित किए जा रहे हैं जहाँ विश्व के हर कोने से , खिलाडी प्रतिस्पर्धा के लिए आ गए हैं ....
और अब , विविध प्रकार के खेल आरम्भ हो चुके हैं !
...स्वर्ण, रजत और ताम्र पदक जीते खिलाड़ियों की मुस्कान के साथ, हर प्रदेश के टेलीविजन से , घर घर में प्रसारित हो रहे हैं programme & Events -
हमारी भी यही दुआ है , " एक विश्व, एक स्वप्न " साकार हो !!
- लावण्या








17 comments:

राज भाटिय़ा said...

लावण्यम् जी ,आप का लेख बहुत ही अच्छा हे, मेरी बात का बुरा ना माने
भारत ने इन ६० सालो मे इतने मेडल लिये हे कि हमारा सिर गर्व से उठना चाहिये,
बेईमानी मे गोलड मेडल,घाटोलो मे गोल्ड मेडल,हेरा फ़ेरी मे गोल्ड मेडल, रिश्वत खोरी मे गोल्ड मेडल,दोगली राज नीति मे गोल्ड मेडल, देश के साथ गद्दरी मे गोल्ड मेडल,अपनी मात्र भाषा को जलील करने मे गोल्ड मेडल... अजी ऎसे लाखो मेडल हे मेरे महान देश के पास , फ़िर क्यो हमे शर्म आये

Udan Tashtari said...

भारत के कितने खिलाड़ी क्या गुल खिलायेंगे, क्या कहें मगर आपने ओलम्पिक के बारे में बड़ी विविध जानकारी दी है, आभार.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

राज भाई साहब,
अब ये मेडल्ज़ हैँ या बद्ननुमा दाग हैँ जिन्हेँ जितनी जल्दी छुडाया जाये उसी मेँ देश की भलाई है ? बुरा बस्, इसी बात का लग रहा है कि ऐसा क्यूँ ?
कब बदलेगा ये सब ? क्या पता ~~
Thanx for your comments.
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

समीर भाई,
आपका धन्यवाद -
हाँ देखते हैँ क्या गुल खिलाते हैँ अपनी टीमवाले !! :-)

Harshad Jangla said...

Lavanyaji
Very well written blog with genuine criticisms.It may remain a dream to win many medals in Olympics.
Rgds.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

Gyan Dutt Pandey said...

भारत ने जिस गम्भीरता से खेल विकास की ओर ध्यान देना था, नहीं दिया। यह बात भी है कि एक आध क्षेत्र को छोड़ कर किसी भी क्षेत्र में विकास पर व्यवस्थित ध्यान नहीं दिया। जो कुछ हो रहा है वह लोगों के व्यक्तिगत यत्न से हो रहा है। टीम स्पिरिट और सिनर्जी नजर नहीं आती।

दिनेशराय द्विवेदी said...

खेलों में प्रदर्शन का स्तर किसी भी देश की आंतरिक राजनैतिक सामाजिक व्यवस्था के स्तर को मापने का मानक होता है। अन्य देशों के साथ हमारे भारत के खिलाड़ी भी औलिम्पिक में अपने देश की राजनैतिक सामाजिक व्यवस्था के स्तर को ही प्रदर्शित करेंगे।
आप का आलेख सुंदर है।

बालकिशन said...

आपने ओलम्पिक के बारे में विविध जानकारी का आभार.
बाकी और क्या कहें?
दुखद है!

डॉ .अनुराग said...

हमारी भी यही दुआ है , " एक विश्व, एक स्वप्न " साकार हो !!
AAMEEN....

Manish Kumar said...

chaliye aaj to koyi dukh nahin hoga aapko aakhirkar asli gold medal bhi mil hi gaya ek lambe intezaar ke baad

Unknown said...

लावण्याजी,
प्रणाम!

पंडित नरेंद्र शर्मा की बिटिया से इंटरनेट के सहारे ही संपर्क हो पाया, तो मैंने कुछ ना कुछ सुख पुरखों को ज़रूर पहुंचाया होगा। बचपन में रेडियो पर गीतकार के रूप में पंडित जी का नाम सुनकर ऐसा लगता था मानो कोई अपने घर का भी मायानगरी में मोती चुन रहा है।

आपके ब्लॉग पर आज पहली बार आया, ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं सारा कोना दालान और आले छान मारे। बस हर तरफ मिली तो एक नमी सी, जो शायद आपकी आंखो के किसी कोर के आंसू से अब भी छलक आती है। परदेस जाकर कितना भी सुख हो, घर की देहरी पर बैठने का सुख कहीं नहीं मिलता। आपसे उम्र में कहीं छोटा हूं, इसलिए ज़्यादा बड़ी बातें नहीं लिख रहा। अपने ब्लॉग पर मैंने "मां" पर एक पोस्ट लिखी थी, चाहता हूं कि उसे आप ज़रूर पढ़ें। ना जाने क्यो सोचकर मुंबई चला आया हूं, ना कोई जान ना पहचान। बस एक सपना देखा था फिल्म बनाने का और चला आया यहां....। आशीर्वाद है आप जैसे लोगों का कि ये पूरा हो गया है, बस अब तड़के दिखने वाली लाली सी एक फिल्म बनाने की चाहत है, कहानी तैयार है, बस सितारों का इंतज़ार है...

आशीर्वाद का इंतज़ार रहेगा। मुंबई आएं तो ज़रूर लिखें...मिलने की इच्छा है..

कहा सुना माफ़

पंकज

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आपने मेरी भारत के लिये, मेरे शैशव के घर के लिये और अम्मा और पापाजी के लिये, आज भी जो तडप है उसे महसूस कर लिआ ये एक सँवेदनाशील इन्सान के दील की ही बात है - धन्यवाद आपका ! सौहार्द्र और अपनापन तो देशवासीयोँ से ही मिलता है - बेटीयोँ का जीवन ही ऐसा है कि वे उमरभर , जीवन की नैया की पतवार बनीँ बहतीँ रहतीँ हैँ - यही सँस्कार हैँ हमारे. पापाजी की यादोँ के लिये आपको नमन व आभार !
अगर भारत ( बम्बई ) आई तब अवश्य सूचित करुँगी ~ पर मैँ,
बस एक
ई - मैल की दूरी पर हूँ ~
Here it is :
lavnis@gmail.com
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Harshad bhai,
Thank you so much for liking my sincere feelings for the betterment of Bharat -
rgds,
L

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ज्ञान भाई साहब,

टीम स्पीरीट और सीनर्जी की जरुरत है इस समय - आज बिन्द्रा जी के गोल्ड मेडल ने नई आशा का सँचार किया है -
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दिनेशभाई जी, धन्यवाद -
आपने सही आँका है परिस्थिति को !
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बालकीशनजी ,
अनुराग भाई
आपकी टीप्पणीयोँ का भी बहुत बहुत आभार !
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Yes, Manish bhai, Absolutely correct !
I'm thrilled that India
Won its first GOLD in current Olympic Games.
Thank you very much for your kind comments too.
Warm rgds,
_ L