Sunday, April 20, 2008

ऋतु ~~ संहार !


ऋतु ~~ संहार ! ( प्रथम ~~ पुष्प ) ~ [ रस शिरोमणि महाकवि कालिदास की अमर लेखनी को .......बारम्बार , प्रणाम करते हुए : ~~~ सादर , समर्पित ]

ना रहे वसन्त में कोई संत !

आयीं रम्भा , मेनका उर्वशी , तिलोत्तमा

कलि कलि ने मानो ली अंगडाई ,

लद गए तड़ाग कवल दल से ,

मत्त भ्रमर के गुंजन वन - वन !

यह प्रकृति का वसंत - पर्व !

शुक पीक , आम्र मंजरी की गंध ,

प्रकृति का जादू टोना बांटे कोयलिया ।

विश्वामित्र की अडिग तपस्या टूटी ,

रति नाथ मधुप , मधु बरसावे

कुसुम धनुष करी शर संधान -

कंदर्प , मदन बाण चलावे !

नभ पर दिवाकर का रचा वितान

नर - नारी , जीव - ब्रह्म , मिलन युति ,

प्रमाद में गुंफित , रस प्रसाद पावें !

हुई तपस्या भंग , भ्रिंगी , भैरव की ,

शिव - शिवा , समन्वय ~ संधि , तब ,

कुमार सम्भव , दैत्य नशावन् आवें !

~~ वासवदता उवाच्च : ~~~

( द्वितीय ~~ पुष्प )

हां ये सखी कैसा वसंत !

न हो मिलन कामिनी ~ कंत !

दूर पिया , मेरा मन सूना नभ छाए सप्त ~ रंग !

नयन दीप आस का काजल ,सभीत मृगी के स्वप्न भंग !

- दोनों कविताएँ : - लावण्या द्वारा लिखित

10 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

कालिदास और कालिदासीय शृगार रस में गये बहुत दिन हो गये थे। आपने स्मरण करा दिया - बहुत धन्यवाद!

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

मेरा ऐसा मानना है कि ज्ञान की प्यास अधूरी कभी नहीं रखनी चाहिए. यह बात कभी मैने सरदार जाफ़री से कही थीं, उनकी शायद छपी हुई आख़िरी किताब- 'लखनऊ की पाँच रातों' के ताल्लुक से.

दुर्भागय कि मैं उस बचपने में यह नहीं समझ पाया कि मैं कितने बड़े आदमी से बात कर रहा हूँ. उनसे मैंने एक लफ्ज़ तिश्ना लबी इस्तेमाल किया था. अर्थ वही है कि प्याला अर्थ का आते-आते छूट गया. कृपा करें. क्योंकि यह अद्भुत महागाथा है हमारे भुला दिए जाने लायक साहित्य की. बहरहाल...

Alpana Verma said...

बहुत ही सोम्य सी सुंदर सी कविता है और साथ ही दिया गया चित्र बहुत ही सुंदर है...पहली बार कालिदास लिखित कुछ पढ़ा है और पढने की इच्छा है---
एक महान कवि की रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद--

पारुल "पुखराज" said...

दीदी…आभार

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लगा-कम ही पढ़ने मिल पाता है आजकल इतने महान लोगों की रचनायें.आभार.

Dr.Bhawna Kunwar said...

बहुत अच्छा लगा इस रचना को पढ़कर...धन्यवाद...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अरे अल्पना जी ...
ये महाकवि कालिदास की रचना नहीँ -
मेरी लिखी कविता है -विषय वस्तु कालिदास जी से प्रेरित हुई है -
कालिदास जी ने तो सँस्कृत मेँ ही सारा लिखा है ना !
ये तो उन्हीँ की तरह, लिखने की कोशिश, "हिन्दी" मेँ की गयी है.
तस्वीर मुझे भी बहुत पसँद आयी थी --
स्नेह्,
-लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अरे समीर भाई,
महान लोगोँ से प्रेरणा ली है
नतीजा आपके सामने है !
स्नेह्,
-लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

पारुल , डा.भावना जी
आप का भी आभार !
स्नेह्,
-लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

विजयशँकर जी
आप का भी आभार !

आपने सरदार जाफरी साहब से आपकी बातोँ को हमेँ बतलाया --


स्नेह्,
-लावण्या