Friday, January 30, 2009

करिश्मा ये तेरा कुदरत,खुदा का रहमो करम है ये,

बर्फ़ ही बर्फ बिछी हो जमीँ पर,
तब,
इन हौसलोँ का क्या होगा ऐ,
मेरे दील !
हमने भी सुना था, कि,
खुद को इतना तू कर बुलँद,
कि खुदा पूछे कि,
' ऐ बँदे,बता, तेरी रजा क्या है?'
वीराँ लग रही जमीँ है तो क्या है ?
सब कुछ बदल जायेगा,
जो उसकी रजा है !
जो हरी घास बिछी थी,
कालीन -सी,
जमीँ पे मखमली,
आज ढँकी है ,
सुफेदी ओढ !
फिर फूल खिल उठेँगेँ,
उन सूखे दरख्तोँ पे,
मुस्कुराते, हजार रँगोँ मेँ !
है करिश्मा ये तेरा कुदरत,
खुदा का रहमो करम है ये,
हैँ जब तक ऊसूल तेरे कायम,
ना हौसलोँ को टूटने का डर है !
बहारेँ फिर लौट आयेँगी
चमन गुलजार, बाग -बाग होगा
इसकी खुशी है मुझको एय खुदा
आबाद यूँ ही, तेरा , रहमो करम होगा !
तपती हुई धरती से,
ठहरे हुए सहरा से,
मुश्किल हर लम्हे से,
इन्सा ही बनाता है
हर राह नई नई -
जिन पर चलकर,
आतीं हैँ, पीढीयाँ,
इतिहास नया रचने,
सेतु समय पर रखने,
इस २१ वीँ सदी मेँ !
-लावण्या
The snow promises
The coming of spring
The spring that of summer!
Summer's heat beckons autumn
And autumn turns to winter!
The ever-changing cycle
We face with such surety!
As days turn to nights,
And darkness turns to dawn!
Nothing remains the same,
forever,Yet everything looks the same!
A child grows everyday
And a youth becomes a man!
A man will surely age then,
And an old man will surely die!
Who has set all these patterns?
Who controls ebbs and tides?
Who paints the sky above?
And who lends the colors below?
Who fashions each blade and dale?
Who paints the merry flowers?
Who fashioned this world around us?
Who silently smiles and hides?
Who gave me eyes to see all this?
And ears to hear, sweet melodies?
Who gave me love and life?
Who gave laughter and smiles?
Why tears flow from memories,
Why pain brings forth new pain?
What then men strive to gain?
In the whirling, churning flow...
I try to grasp some straws!
These are my understandings?
For the riddles of life's flows.
-- by : Lavanya Shah
हमारे शहर में , आस पास बस , चारों और , यही नज़ारा है
बर्फ ही बर्फ ....पिघली हुई चांदनी सी फ़ैली हुई है ज़मी पर !
किसी ने मानो खेल खेल में ,
रुई के असंख्य ढेर बिछाए हैं
और मन करता है , उन पे ,
हलके हलके पाँव रखते हुए
सरपट भागा जाए !
कुदरत के करिश्मे के सामने ,
वाणी मौन है
पर मन मयूर
नाच उठने को उतावला सा अधीर -!
लावन्या





Posted by Picasa

24 comments:

राज भाटिय़ा said...

लावण्यम् जी अरे आप ने तो लगता है हमारे यहां से सारे चित्र खींच लिये है, इस वर्ष हमारे यहां ज्यादा वर्फ़ तो नही गिरी लेकिन पिछले दो साल नही गिरी इस लिये इतन्ही ही अच्छी लगी, लेकिन सर्दी बहुत हो गई है,
आप ने चित्र ओर चित्रो के साथ साथ कविता बहुत सुंदर लिखी है.
धन्यवाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

जी राज भाई साहब,
हमारे शहरोँ के तापमान और बर्फबारी एक सी होती हुई दीख रही है
है ना ?
आभार !
कविताओँ को पसँद करने के लिये ...
स्नेह,
- लावण्या

Alpana Verma said...

चित्र बहुत अच्छे लग रहे हैं.
बर्फ देखने में बहुत अच्छी लगती है..लेकिन जब इसे हटाना पड़ता है तब..और जब बर्फ वाले रास्ते पर चलना पड़ता है तब..पता चलता है..खूब ठण्ड हो रही होगी वहां ..
कविता भी बहुत ही सुंदर है..
'चमन गुलजार, बाग -बाग होगा
इसकी खुशी है मुझको एय खुदा
आबाद यूँ ही, तेरा , रहमो करम होगा !'
-यही दुआ है की इस दुनिया पर ऊपर वाले का रहमो करम बना रहे!

Smart Indian said...

लावण्या जी,
सचमुच आजकल की दृश्यावली बहुत सुंदर है. प्रकृति का आनंद उठाइये और गाडी बहुत संभाल कर चलाईये.

Udan Tashtari said...

हम बचे इस साल... :) हेव फन!!

विवेक सिंह said...

हाय हुसैन ! हम अभी तक ऐसी जगह नहीं जा पाए !

P.N. Subramanian said...

सुंदर रचना के साथ सुंदर परिदृश्य. सोने पे सुहागा. आभार

रंजू भाटिया said...

चित्र के साथ सुंदर कविताएं ..बहुत सुंदर ..इस मौसम के भी अपने मजे हैं ..

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर कविता. चित्र देख कर तो हम प्रशन्न हो गये. यहां भारत मे तो इस बार बर्फ़ दूर की बात है सर्दी ही नही पडी ठीक से.

बहुर धन्यवाद.

रामराम.

Anonymous said...

किसी ने ठीक ही कहा हैं कि...
अडिग लगन और दृढ़निश्चय से ही लक्ष्य सदा पाया जाता हैं,
संघर्षों से विजय प्राप्त कर जग में मुस्कुराया जाता हैं !
बस अपना ध्यान रखना और इसी तरह प्रकृति की नवरंगनाओं को हमारे सामने प्रस्तुत करते रहना, जिससे हमें यह अहसास हों कि कुदरत के करिश्मों से हम कभी महरूम नही रहे!
काश हमारे राजस्थान में भी ऐसा नजारा रहता! चलो कोई नही, सब ईश्वर कि कृपा हैं!
और हाँ! आपकी प्रोफाइल में आपके बारे में पढने को नहीं मिला कि आप कहाँ के रहने वाले हो और ये तस्वीरें कहाँ की हैं!
सस्नेह!
दिलीप गौड़
गांधीधाम

डॉ .अनुराग said...

एक चीज होती है जलन .....हमें आपसे हो रही है.

Gyan Dutt Pandey said...

एक अलग सी ही दुनियां लग रही है हम यूपोरियन को!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

I did a "double take "
on reading the word -
" यूपोरियन "
the mind recalled
"European/ युरोपिअन " ,
somehow ...
पस्चिम गोलार्ध मेँ पाँव रखने से पूर्व,
हमने भी,
'बर्फ' सिर्फ हिन्दी फिल्मोँ मेँ ही देखी थी ..
(खास तौर से जब भी शम्मी कपूर को गाते, नाचते देखता करते थे तब :)
याद आता है,
सन्` १९७४ दीसम्बर
जब स्वीस ऐयर ने जीनीवा मेँ उतारा और हमेँ लगा
"अरे,
ठँड और बर्फ़ कितनी सुँदर है !"
और दूसरे क्षण,
सिल्क की साडी के आर पार
हड्डीयोँ तक
सर्द हवा के झोँके के वार से
प्राण सूख गये थे ! :)
और भीतर लाउन्ज की ओर भागे थे ..
वही पहली बर्फ का अनुभव था -

सो, अनुराग भाई,
जलने से क्या लाभ ? :-)
आ जाइये आप भी...
गर्म चाय, कोफी, होट चोकलेट
सब रेडी है ..
स्नेह सहित,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दिलीप भाई,
मैँ उत्तर अमरीका के मध्य भाग मेँ रहती हूँ
- लावण्या

daanish said...

khoobsurat alfaaz...
khoobsurat manzar....
khoobsurat adaaygii...
khoobsurat lehjaa......
aur utnaa hi
khoobsurat asar...sabhi padhne walon par.......
badhaaeee....!!!
---MUFLIS---

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Shukriya Muflis jee

Harshad Jangla said...

Lavanya Di
How wonderful is our mother nature.
Waiting to see such season in Atlanta this yr.
Nice write up and pic too.
Thanx.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

Arvind Mishra said...

कुदरत के करिश्मे के सामने वाणी मौन है -सच है !

Amit Kumar Yadav said...

Bahut sundar...!!
___________________________________
युवा शक्ति को समर्पित ब्लॉग http://yuva-jagat.blogspot.com/ पर आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??

Abhishek Ojha said...

सुंदर चित्रों के साथ कमाल की प्रस्तुति. आपके शब्द तो हमेशा की तरह हैं ही मनमोहक !

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

चित्रों के साथ कविताओं की इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए साधुवाद.

दिलीप कवठेकर said...

हमारे भारतीय मानस पटल पर बर्फ़ एक परिकथा की अनूभूति में नज़र आता है, या फ़िल्मों में .

बेहद सुंदर चित्र, और खूबसूरत एहसासात जो कविता की शक्ल में इस जमी हुई बर्फ़ से पिघल कर आपकी कलम से टपक पडे़.

पिछले साल युरोप के सबसे अंतिम छोर नोर्थ केप पर जब पहूंचा था तो उस परिकथा का सपना सच होने का अद्भुत अहसास हुआ, जब बर्फ़ और सांय सांय हवा के चलते हुए मीलों दूर अपनों की याद की उष्णता में कुछ पल जीये.

महावीर said...

लावण्या जी
यह कुदरत का करिश्मा देख कर आनंद आगया। बहुत ही सुंदर चित्र हैं।
यहां भी आज इतनी स्नो गिर रही है जितनी पिछले २० वर्षों में नहीं देखी। इसी कारण, लंदन इस स्थिति के लिए तैयार नहीं था। स्कूल बंद, दुकानों में ग्राहक नदारद, एम्बुलेंस की धीमी गति, बसें गराजों में बंद, अंडरग्राउंड रेलों का और भी बुरा हाल - बस यूं कहिए कि लंदन कुछ समय के लिए जैसे ठहर गया हो।
और इससे ज़्यादा क्या कहूं कि हमारे छोटे से परिवार की सब से प्यारी और सब से छोटी दुलारी सदस्या 'कीका' - हमारी बिल्ली, बाहर जाने के लिए तड़प रही है।
वैसे हर जगह बच्चे खूब आनंद ले रहे हैं। स्नो- मैन बनाने में पूरा मज़ा ले रहे हैं।
आपके चित्रों में स्नो देख कर ६०वें दशक की याद आगई।
Poem बहुत अच्छी लगी।
In the whirling, churning flow...
I try to grasp some straws!
These are my understandings?
For the riddles of life's flows.
वाह!

art said...

बेहद सुंदर चित्र, और खूबसूरत कविता.......